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Saturday, October 17, 2020

अब मुसीबत में कंगना, दर्ज हुआ मुकदमा; भारत की 14% आबादी भूखमरी से जूझ रही; मिथुन के बेटे पर मॉडल से रेप का केस दर्ज

देश में नौ राज्य और चार केंद्र शासित प्रदेशों में 90% से ज्यादा कोरोना संक्रमित ठीक हो चुके हैं। वहीं, न्यूजीलैंड में प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न की लेबर पार्टी ने चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की। 24 साल बाद किसी एक पार्टी को अकेले बहुमत मिला। 120 सदस्यों वाली संसद में आर्डर्न की पार्टी को कुल 64 सीटें मिलीं। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...

आज इन 3 इवेंट्स पर रहेगी नजर

1. रविवार को डबल हेडर मुकाबले। हैदराबाद और कोलकाता का मैच अबु धाबी में दोपहर 3.30 बजे से शुरू होगा। वहीं, दुबई में शाम 7.30 बजे से मुंबई और पंजाब आमने-सामने होंगे।

2. देश की पहली मोनोरेल यानी मुंबई मोनोरेल 6 महीने बाद आज से फिर शुरू होगी। हालांकि, शुरू में यह केवल चेंबूर-वडाला-जैकब सर्कल मार्ग पर चलेगी।

3. आज बैडमिंटन के डेनमार्क ओपन का फाइनल होगा। किदांबी श्रीकांत के बाहर होने के साथ टूर्नामेंट में भारतीय चुनौती खत्म हो चुकी है।

अब बात कल की 7 महत्वपूर्ण खबरों की

1. कंगना पर एक और केस दर्ज, हिंदू-मुस्लिम के नाम पर फूट डालने का आरोप

कंगना रनोट के खिलाफ अब एक और FIR दर्ज हो गई है। इस बार उन पर बॉलीवुड में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर फूट डालने के आरोप लगे हैं। पिटीशनर साहिल अशरफ अली सैयद की अर्जी पर मुंबई के बांद्रा कोर्ट ने पुलिस को कंगना के खिलाफ केस दर्ज करने के आदेश दिए थे। उनकी बहन रंगोली के खिलाफ भी केस दर्ज करने के ऑर्डर दिए गए थे।

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2. मिथुन के बेटे के खिलाफ केस दर्ज, रेप और जबरन अबॉर्शन के आरोप

मिथुन चक्रवर्ती के बेटे महाअक्षय चक्रवर्ती के खिलाफ मुंबई के ओशिवारा पुलिस स्टेशन में शादी का झांसा देकर रेप करने और अबॉर्शन करवाने का केस दर्ज किया गया है। मिथुन की पत्नी योगिता बाली को भी आरोपी बनाया गया है। फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाली एक एक्ट्रेस-मॉडल ने दोनों के खिलाफ केस दर्ज करवाया है।

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3. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों की रैंकिंग में भारत 94वें नंबर पर

107 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत इस साल 94वें नंबर के साथ सीरियस कैटेगरी में रहा। दुनियाभर में भूख और कुपोषण की स्थिति पर नजर रखने वाली वेबसाइट ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने शुक्रवार को यह रिपोर्ट जारी की, जो शनिवार को सामने आई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, "भारत का गरीब भूखा है, क्योंकि सरकार सिर्फ अपने कुछ खास मित्रों की जेबें भरने में लगी है।"

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4. अलीबाबा के जैक मा ला रहे हैं दुनिया का सबसे बड़ा आईपीओ

दुनिया का सबसे बड़ा आईपीओ आ रहा है। जैक मा की कंपनी अलीबाबा का एफिलिएट है एंट ग्रुप और यही 35 अरब डॉलर यानी 2.56 लाख करोड़ रुपए का आईपीओ ला रहा है। यह बात इसलिए भी खास है क्योंकि पिछले पांच साल में जितने आईपीओ भारत में आए हैं, उन सभी को मिला दें तो भी यह अकेला उन पर भारी पड़ने वाला है।

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5. 24 की उम्र में शुरू किया स्मार्ट टीवी का बिजनेस, आज 1200 करोड़ रु नेटवर्थ

आईआईएफएल वेल्थ और हुरुन इंडिया ने हाल ही में 40 और उससे कम उम्र वाले सेल्फ मेड अमीरों की लिस्ट जारी की। इसमें एकमात्र महिला हैं 39 साल की देविता सराफ। देविता वीयू ग्रुप की सीईओ और चेयरपर्सन हैं। उन्होंने 24 साल की उम्र में स्मार्ट टीवी का बिजनेस शुरू किया। आज जिसकी नेटवर्थ 1200 करोड़ रु है।

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6. बिहार चुनाव: सब ‘ठीक-ठाक’ सीटों के लिए लड़ रहे, सरकार तो जुगाड़ से ही बनेगी

बिहार 2020...। ये अपनी तरह का पहला चुनाव है, जब हालात इतने साफ हैं और चुनाव इतना खुला हुआ कि सबकुछ साफ दिख रहा है। पहली बार है, जब ये तय है कि कौन किसके खिलाफ लड़ रहा है। लेकिन, ये तय नहीं कि कौन किसे लड़ा रहा है। मसलन, सब ‘ठीक-ठाक’ सीटों के लिए लड़ रहे हैं और सरकार तो जुगाड़ से ही बनेगी।

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7. फेक न्यूज़ एक्सपोज़ : भाजपा सांसद किरण खेर ने रेप को संस्कृति का हिस्सा बताया?

उत्तरप्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश समेत देश के कई हिस्सों से रेप की दिल दहला देने वाली घटनाओं के बीच भाजपा नेता किरण खेर का बताकर एक बयान सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि किरण खेर ने कहा- बलात्कार हमारी संस्कृति का हिस्सा है, हम इसे नहीं रोक सकते। जानिए इसका सच।

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अब 18 अक्टूबर का इतिहास

1922: ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की स्थापना हुई।

1998ः भारत और पाकिस्तान परमाणु हथियार के खतरे को रोकने पर सहमत हुए।

2004ः कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन मारा गया।

आखिर में जिक्र हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता ओम पुरी का। आज ही के दिन 1950 में उनका जन्म हुआ था। पढ़िए उन्हीं की एक बात...



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Kangana will have another case registered; India at number 94 in Global Hunger Index; Mithun's son filed a rape case


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इस समुदाय की परंपराएं ही ऐसी हैं कि ज्यादातर लड़कियां ताउम्र कुंवारी रह जाती हैं, ये परिवार बेटी के लिए रिश्ता नहीं खोज सकते

मस्तारा बानो अगले साल 50 की हो जाएंगी। लेकिन आज भी वो अपनी उम्र 32 साल ही बताती हैं। इस उम्मीद के साथ कि शायद ऐसा करने से ही सही, उनके लिए शादी का कोई रिश्ता आ जाए।जीवन के 50 बसंत अकेले ही गुजार देने वाली मस्तारा को डर है कि अगर वे अपनी असल उम्र बताएंगी तो शादी से जुड़ी उनकी आखिरी उम्मीद भी टूट जाएगी।

अधेड़ उम्र के मुहाने पर खड़ी मस्तारा इसी तरह शादीशुदा जिंदगी में दाखिल होने के अपने सपने को जिंदा रखे हुए हैं। मस्तारा जिस पंचायत में रहती हैं वहां सैकड़ों महिलाओं का दर्द भी बिलकुल उनके जैसा ही है। पूरी जिंदगी कुंवारी रहना ही इन महिलाओं की नियति है। यह फैसला अगर इन महिलाओं ने अपनी इच्छा से लिया होता तो इसमें कुछ भी गलत नहीं था।

लेकिन, शेरशाहबादी मुस्लिम समुदाय की परंपराएं ही कुछ ऐसी हैं कि इनमें लगभग हर दस में से दो लड़कियां ताउम्र अविवाहित ही रह जाती हैं। बिहार के सुपौल जिले में नेपाल बॉर्डर से बमुश्किल दस किलोमीटर की दूरी पर कोचगामा पंचायत है। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में ज्यादातर मुस्लिम शेरशाहबादी समुदाय के ही हैं। इस पंचायत के साथ ही सीमांचल के कई दूसरे जिलों और नेपाल में भी शेरशाहबादी समुदाय के लोग रहते हैं।

60 साल की जैबुन निशा अपने भाई जिया उल हक के साथ।

कोचगामा के ही रहने वाले महबूब आलम बताते हैं, ‘शेरशाहबादी समुदाय में लड़की के परिजन न तो अपनी बेटी के लिए रिश्ता खोजते हैं और न ही किसी से ऐसा करने को कह सकते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं तो यह समझा जाता है कि लड़की में जरूर कोई दोष है जो खुद ही उसके लिए लड़का तलाश रहे हैं। तब लड़की की शादी और भी मुश्किल हो जाती है।’

वे आगे कहते हैं, ‘लड़की वाले सिर्फ रिश्ता आने का इंतजार ही कर सकते हैं। इसलिए जिन लड़कियों के लिए रिश्ता आता है उनकी तो शादी हो जाती है, लेकिन जिनके लिए नहीं आता वो ताउम्र सिर्फ रिश्ते का इंतजार ही करती रह जाती हैं।’

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अबु हिलाल बताते हैं, ‘महिलाओं के अविवाहित रह जाने की यह समस्या तब से मजबूत हुई जब से लोग दहेज के लालच में फंसना शुरू हुए। अब उन्हीं लड़कियों की शादी आसानी से होती है जो या तो खूबसूरत हों या जिनके पास दहेज देने के लिए पैसा हो।

जिन लड़कियों का कद कुछ कम है, रंग गोरा नहीं है या नैन-नक्श अच्छे नहीं हैं उनकी शादी नहीं हो पाती। कई बार ऐसा भी होता है कि दो-तीन बहनों में से लड़के वाले छोटी बहन को पसंद कर लेते हैं। ऐसे में बड़ी लड़की से पहले छोटी की शादी हो जाती है और फिर बड़ी लड़की की शादी लगातार मुश्किल होती चली जाती है।’

शेरशाहबादी समुदाय में अविवाहित महिलाओं की कुल संख्या कितनी है, इसका कोई ताजा आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन, हाल ही में आई वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र की चर्चित किताब ‘रुकतापुर’ के अनुसार, सिर्फ कोचगामा पंचायत में ही कुछ साल पहले 35 साल से ऊपर की अविवाहित महिलाओं की संख्या 140 से ज्यादा थी।

एक ही पंचायत में जब यह आंकड़ा इतना बड़ा है तो भारत और नेपाल के कई जिलों में रहने वाली इस कुल आबादी में यह संख्या निश्चित ही हजारों में होगी।

कोचगामा पंचायत के दो बार मुखिया रह चुके और साल 2010 में कांग्रेस से विधानसभा चुनाव लड़ चुके शाह जमाल उर्फ लाल मुखिया बताते हैं कि कुछ साल पहले इस समस्या को सुलझाने के लिए पूरे समुदाय ने एक बैठक बुलाई थी। करीब सात साल पहले भारत और नेपाल के अलग-अलग इलाकों में रह रहे शेरशाहबादी समुदाय के लोगों ने इस बैठक में शामिल होकर तय किया था कि अब लड़की वालों को भी रिश्ता खोजने या इसकी पहल करना शुरू कर देना चाहिए।

लाल मुखिया कहते हैं, ‘इस पहल से काफी असर हुआ। अब ऐसी लड़कियों की संख्या कम है, जिनकी शादी नहीं हो रही हो। अब तो लड़कियां खुद भी लड़के को पसंद कर लेती हैं और उनकी शादी हो जाती है।’ लाल मुखिया की इस बात से गांव के अन्य लोग सहमत नहीं होते। अबु हिलाल कहते हैं, ‘उस बैठक के बाद भी कुछ नहीं बदला है। लोग आज भी लड़की का रिश्ता लेकर नहीं जाते।’

कोचगामा पंचायत में घूमने पर यह भी साफ हो जाता है कि लड़कियों द्वारा खुद ही लड़का खोज लेने की जो बात लाल मुखिया कह रहे हैं, उस पर विश्वास करना बेहद मुश्किल है। आज भी समुदाय की लड़कियों के लिए घर से निकलने पर सौ पहरे हैं, उन्हें काम करने या मजदूरी करने की भी इजाजत नहीं है और वे पढ़ाई भी सिर्फ मदरसों में ही कर सकती है।

द हंगर प्रोजेक्ट के लिए काम करने वाली शाहीना परवीन ने इन महिलाओं की आवाज कई बार उठाई है। शाहीना परवीन मानती हैं कि इस समस्या से निकलने के लिए जो कदम उठाए जाने चाहिए, उनमें से एक अहम कदम लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाना भी है। वे कहती हैं, ‘ये लड़कियां अगर बाहर निकलेंगी, अच्छी पढ़ाई करेंगी और नौकरियां करने लगेंगी तो निश्चित ही इस समस्या से भी निकल जाएंगी।’

लेकिन, ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मुस्लिम समुदाय में ऐसा होना बहुत मुश्किल है। वहां तमाम मौलवी लड़कियों को मदरसों तक ही सीमित रखने की वकालत करते हैं और लोग उन्हीं की बात मानते हैं। बल्कि लड़कियों पर भी मौलवी के उपदेशों का ही सबसे मजबूत असर रहता है।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अबु हिलाल महिलाओं के अविवाहित रह जाने की यह समस्या तब से मजबूत हुई जब से लोग दहेज के लालच में फंसना शुरू हुए।

जो लड़कियां अविवाहित रह जाती हैं वो अपनी पैत्रिक सम्पत्ति पर भी दावा नहीं कर पाती। शिक्षित लड़कियां ही नहीं कर पाती तो अशिक्षित गांव की लड़कियों से यह उम्मीद करना भी बेमानी है। ऐसे में वो लड़कियां हमेशा अपने भाई पर बोझ समझी जाती हैं और माना जाता है कि वे भाई के रहम पर ही पल रही हैं और भाई उन्हें साथ रखकर उन पर अहसान कर रहा है।’

बिहार में जब चुनाव होने जा रहे हैं तो शेरशाहबादी समुदाय की इन हजारों अविवाहित महिलाओं का मुद्दा किसी के लिए भी चर्चा का विषय नहीं है। जिस विधानसभा क्षेत्र में इस समुदाय की बहुलता है, वहां भी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं है।

शाहीना परवीन कहती हैं, ‘इनमें से अधिकतर महिलाएं कुपोषण और एनीमिया से पीड़ित होती हैं क्योंकि बेहद मुश्किल से इन्हें दो वक्त का खाना भी नसीब होता है। रमजान में जो लोग जो दान-धर्म करते हैं उसके सहारे ही इनका पेट भरता है।

पॉलिसी के स्तर पर आज तक इनके लिए कुछ नहीं किया गया। विधवा महिलाओं को जो पेंशन मिलती है ये महिलाएं उसकी भी हकदार नहीं होती जबकि देखा जाए तो इनका पूरा जीवन विधवा महिलाओं की तरह ही अकेला और बेसहारा रहकर बीतता है।’

ये अविवाहित महिलाएं अपने हालात के लिए अपनी किस्मत के अलावा किसी और को दोषी नहीं मानती। लेकिन, वे सरकार से इतना जरूर चाहती हैं कि जब पूरे देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात हो रही है और आत्मनिर्भर भारत’ का नारा जगह-जगह गूंज रहा है तो सरकार इन्हें भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कोई पहल करे।



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The story of Sher Shahbadi Muslim women forced to remain virgin in this area of Bihar


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जो मर्द औरतों को जीवनसाथी चुनने का बुनियादी इंसानी हक देने को तैयार नहीं, वो उन्हें संपत्ति-सत्ता में बराबरी देने की वकालत कैसे करेंगे भला?

हम बात करते हैं औरतों की बराबरी की, लेकिन ये बराबरी कैसे मिलेगी। सिर्फ औरत की इज्जत करने से मिलेगी? बिल्कुल गलत जवाब। सिर्फ इज्जत करने से नहीं मिलेगी। औरतों को बराबरी मिलेगी, सत्ता, नौकरी और संपत्ति में बराबर की भागीदारी से। बराबर काम के लिए बराबर तनख्वाह से, बराबरी के मौके और बराबरी की जगह से।

और जैसे ही इन ठोस अधिकारों की बात करो, अधिकांश मर्दों की प्रतिक्रिया क्या होती है। उन्हें ऐसा लगता है, जैसे किसी ने उनकी गर्दन पर कुल्हाड़ी रख दी है। वो बिलबिलाने लगते हैं। पंजाब सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की घोषणा की है और अभी से इनके मुंह बिचकाने शुरू हो गए हैं।

मुंह तो इनका जरा-जरा सी बात पर बिचक जाता है। औरतों को जरा सा कुछ एक्स्ट्रा मिल जाए और फिर देखिए इनका रोना। दिल्ली में जब ऑड-इवन लागू हुआ तो दिल्ली सरकार ने अकेली और साथ में छोटा बच्चा लिए महिलाओं को इस नियम से छूट दी। मेरे दफ्तर में मर्द शिकायत करते पाए गए। औरतों का बढ़िया है। इन पर कोई नियम लागू नहीं होता।

मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन मैंने आवाज धीमी रखते हुए पांच मंजिला उस दफ्तर में ऊपर से लेकर नीचे तक काम करने वाली कम से कम 30 महिलाओं का नाम गिनाया, जो दफ्तर आने से पहले अपने छोटे बच्चे को स्कूल, क्रैच या उनकी नानी के घर छोड़कर फिर काम पर आती थीं। दफ्तर से लौटते हुए पहले बच्चे को लेतीं, फिर घर जातीं। ये सारी औरतें तलाकशुदा या सिंगल मदर नहीं थीं। लेकिन, बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी अकेले उनके ही सिर आई थी।

पूरे दफ्तर में एक भी ऐसा मर्द नहीं था, जो दफ्तर के पहले और बाद में बच्चे की जिम्मेदारी उठाता हो। ऐसे में औरतों को ये सुविधा देना कोई एहसान नहीं, बल्कि उनकी थोड़ी परवाह कर लेना थोड़ा जिम्मेदार, थोड़ा संवेदनशील होना है।

मर्दों ने तो नाक-भौं तब भी सिकोड़ी थी, जब औरतों को दिल्ली की बसों में मुफ्त यात्रा करने की सुविधा दी गई। मर्दों ने कहा- "ये मुफ्तखोर औरतें" इन्हें सबकुछ मुफ्त में चाहिए। यह अंतर्विरोध कितना मारक है कि संसार के 90 फीसदी धन, जमीन, संपदा पर अकेले कब्जा जमाए मर्द एक बस टिकट मिल जाने पर औरतों को मुफ्तखोर बुलाने लगते हैं। पता नहीं, ये महज मूर्खता है या असल में धूर्तता है।

राजनीति में औरतों के लिए आरक्षण का मुद्दा पिछले 45 सालों से लटका हुआ है। आजाद भारत के इतिहास में कोई दूसरा ऐसा बिल नहीं है, जिस पर 45 साल से मर्द नेता एकमत न हो पाए हों। 1974 में पहली बार यह सवाल उठा कि राजनीति में महिलाओं की बराबर भागीदारी को सुनिश्चित करना जरूरी है। समाज में औरतों की स्थिति तभी सुधरेगी, जब सत्ता और नीति निर्धारक पदों पर उनकी मौजूदगी होगी।

1996 में पहली बार देवगौड़ा सरकार के समय संसद में महिला आरक्षण बिल पेश हुआ, जो ज्यादातर मर्द नेताओं को नहीं सुहाया। संसद में जूतमपैजार हो गई। मजे की बात ये थी कि समाज के अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे पिछड़े वर्ग के नेता भी इस बिल के सख्त खिलाफ थे। शरद यादव ने संसद में कहा कि "इससे सिर्फ परकटी महिलाओं को फायदा होगा। उसके बाद 1998, 1999, 2002 और 2003 में दोबारा इसे संसद में पेश किया गया, लेकिन नतीजा सिफर। 2010 में मनमोहन सिंह सरकार के समय राज्य सभा से फाइनली बिल पास हो पाया, लेकिन लोकसभा में फिर भी अटका ही रहा। आज तक अटका है।

आगे भी अटका ही रहेगा, क्योंकि हम औरतों को मर्दों के बाहुबल वाली इस संसद और व्यवस्था से न्याय और बराबरी की बहुत उम्मीद है भी नहीं। जैसे डंडे के बूते जोर-जबर्दस्ती बीजेपी भी संसद में तमाम बिल पास कराती दिख रही है, औरतों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने वाले बिल को वो प्यार-मोहब्बत से भी पास करवाकर राजी नहीं है। उसे पड़ी ही नहीं है, किसी को पड़ी नहीं है।

उन्हें तनिष्क का विज्ञापन बंद करवाने की ज्यादा पड़ी है, जिसका एक बहुत सीधा और साफ संदेश ये भी है कि हर बालिग औरत को अपना जीवन साथी अपनी मर्जी से चुनने का अधिकार है, फिर चाहे वह किसी भी जाति और धर्म का क्यों न हो। उसे यह अधिकार भारत का संविधान देता है। लेकिन नहीं, इतनी मामूली सी बात इन मर्दों के दिमाग में नहीं घुसती। जो इतना बुनियादी इंसानी हक देने को तैयार नहीं, वो संपत्ति और सत्ता में औरतों को बराबरी का हक देने की वकालत कैसे करेंगे भला।

नवरात्र चल रहे हैं। घर-घर में बेटियों के चरण धोने, उन्हें पूजने का उपक्रम शुरू हो जाएगा। पूरे नौ दिन देवी दुर्गा के बहाने स्त्री शक्ति का गुणगान होगा। लेकिन, सच सब जानते हैं। लड़कियों को भी ये बात ढंग से पता है कि उनकी इज्जत तभी तक है, जब तक वो देवी हैं, मूर्तियों में विराजमान हैं, श्रद्धा स्वरूपा हैं। जैसे ही वो मूर्ति से बाहर निकलकर हाड़-मांस का इंसान हो जाती हैं, अपना हक मांगती हैं, दुनिया उन्हें नोचने-खाने पर उतारू हो जाती है।

दो मिनट में वो देवी के ओहदे से उतरकर डायन हो जाती है। फेमिनाजी कहलाती है। मर्द उनसे नफरत करते हैं, उन्हें मुफ्तखोर बुलाते हैं। उनके अधिकारों वाले बिल पर सांप की तरह कुंडली मारकर बैठ जाते हैं। लड़कियों, ये दुनिया तुम्हारे लिए नहीं है। तुम इनके झांसे में मत आना। इनके पूजा-पाठ के ढोंग को समझना। असली सवाल करना। असली हक मांगना, तब तक मत आना, जब तक ये मर्दानगी के शिखर से उतरकर इंसानियत की जमीन पर न आ जाएं, मनुष्य न बन जाएं।

बात बराबरी की ये खबरें भी आप पढ़ सकते हैं :

1. बात बराबरी की:सिर्फ लड़की की इज्जत उसके शरीर में होती है, लड़के की इज्जत का शरीर से कोई लेना-देना नहीं?

2. बॉलीवुड की औरतें नशे में डूबी हैं, सिर्फ वही हैं जो ड्रग्स लेती हैं, लड़के सब संस्कारी हैं, लड़के दूध में हॉरलिक्स डालकर पी रहे हैं

3. जब-जब विराट का खेल खराब हुआ, ट्रोलर्स ने अनुष्का का खेल खराब करने में कसर नहीं छोड़ी, याद नहीं कि कभी विराट की जीत का सेहरा अनुष्का के सिर बांधा हो

4. कितनी अलग होती हैं रातें, औरतों के लिए और पुरुषों के लिए, रात मतलब अंधेरा और कैसे अलग हैं दोनों के लिए अंधेरों के मायने



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How can men who are not willing to give basic human rights to women to choose a life partner, advocate for equal rights for women in property-power?


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2007 में बेनजीर के पाकिस्तान लौटते ही आत्मघाती हमले से स्वागत; बिजली का बल्ब बनाने वाले थॉमस एल्वा एडीसन की मौत

दुनिया की बड़ी और प्रतिभाशाली महिला नेताओं में से एक बेनजीर भुट्टो नौ साल का सेल्फ-एक्साइल काटने के बाद 2007 में पाकिस्तान लौटी थी। कुछ ही घंटों बाद उनके कारों के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ और 139 लोगों की मौत हुई थी। बेनजीर पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री थी और उन्होंने सिर्फ 35 साल की उम्र में यह जिम्मेदारी संभाली थी।

1988-90 और 1993-96 में दो बार उन्होंने देश के पीएम की जिम्मेदारी संभाली। भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने पर बेनजीर को 1999 में देश छोड़ना पड़ा था। 2007 में जब फौजी ताकत दम तोड़ रही थी और लोग लोकतंत्र के लिए आवाज उठा रहे थे, तब बेनजीर भुट्टो लौटी थीं।

उस समय की परवेज मुशर्रफ सरकार ने वापसी की इजाजत तो दी, लेकिन उन पर जानलेवा हमला होने की आशंका भी जताई थी। उसी साल 27 दिसंबर को रावलपिंडी में अपनी पहली रैली में ही उनकी हत्या कर दी गई।

1931: महान वैज्ञानिक ने ली आखिरी सांस

महान अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस एल्वा एडिसन का जन्म 11 फरवरी 1847 को हुआ था। उनके नाम 1,93 पेटेंट हैं जो बताते हैं कि वे कितने आविष्कारक थे। बचपन में गरीबी से गुजरने वाले महान वैज्ञानिक को बिजली के बल्ब की खोज के लिए जाना जाता है।

एडिसन बल्ब बनाने में 10 हजार बार से अधिक बार असफल हुए। इस पर उन्होंने यह भी कहा था कि मैं कभी नाकाम नहीं हुआ बल्कि मैंने 10,000 ऐसे रास्ते निकाले जो मेरे काम नहीं आए। एडीसन ने 10 साल की उम्र में ही प्रयोग करना शुरू कर दिया था।

प्रयोग करने के लिए पैसे की जरूरत पड़ती तो वे ट्रेन में अखबार और सब्जी भी बेच लेते थे। 1879 से 1900 तक एडिसन अपनी सारी प्रमुख खोजें कर चुके थे और एक अमीर व्यापारी भी बन चुके थे। पहला बल्ब बनाने में 40 हजार डॉलर की लागत आई थी। 40 इलेक्ट्रि‍क लाइट बल्ब जलते देखने के लिए तीन हजार लोगों का हुजूम जुटा था। थॉमस एडिसन का निधन 18 अक्टूबर 1931 हो गया था।

इतिहास में आज को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता हैः

  • 1386ः जर्मनी में हैडलबर्ग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
  • 1564ः इंग्लैंड के नाैसैनिक कमांडर जॉन हाॅकिन्स ने दूसरी बार अमेरिका यात्रा शुरू की।
  • 1572ः स्पेन की सेना ने मास्ट्रिच पर हमला कर दिया।
  • 1648ः उत्तर अमेरिकी उपनिवेशों में ‘बोस्टन शूमेकर्स’ पहला श्रम संगठन बना।
  • 1892ः अमेरिका में शिकागो से न्यूयाॅर्क के बीच पहली लंबी दूरी की वाणिज्यिक फोन लाइन को शुरू किया गया।
  • 1898ः अमेरिका ने स्पेन से प्यूर्टो रिको का अपने कब्जे में लिया।
  • 1900ः काउंट बर्नार्ड वॉन बुलो जर्मनी के चांसलर बने।
  • 1922ः ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कंपनी की स्थापना हुई, जिसका नाम बाद में बदलकर ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन किया गया।
  • 1925ः प्रसिद्ध रंगमंच निदेशक और नेशनल स्कूल 'फ ड्रामा के पूर्व निदेशक इब्राहिम अल्काज़ी का जन्म।
  • 1944ः द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी से चेकोस्लोवाकिया की स्वतंत्रता के लिये सोवियत संघ ने लड़ाई शुरू की।
  • 1954ः टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स कंपनी ने पहले ट्रांजिस्टर रेडियो का निर्माण किया।
  • 1972ः पहले मल्टी-पर्पज हेलीकॉप्टर एसए-315 का बेंगलुरु में हवाई परीक्षण।
  • 1976ः विलियम एन लिप्सकोंब जूनियर को रसायन का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
  • 1980ः पहली हिमालय कार रैली काे बम्बई (मुंबई) के ब्रेबोर्न स्टेडियम से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया।
  • 1985ः संपूर्ण विश्व में व्यापक विरोध के बावजूद दक्षिण अफ्रीकी सरकार द्वारा अश्वेत कवि बेंजामिन मोलोइस को फांसी।
  • 1991ः दक्षिण पश्चिम एशिया और दक्षिणी पूर्वी यूरोप के मुहाने पर स्थित अजरबैजान ने तत्कालीन सोवियत रूस से स्वतंत्र होने की घोषणा की।
  • 1995ः कोलंबिया के कार्टाजेना में गुट निरपेक्ष देशों का 11वां शिखर सम्मेलन प्रारम्भ।
  • 1998ः भारत और पाकिस्तान परमाणु हथियार के खतरे को रोकने पर सहमत हुए।
  • 2004ः कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन मारा गया।
  • 2012ः सीरिया ने मारेत अल नुमान में सैन्य हवाई हमलों 40 लोग मारे गए।


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Today History for October 18th/ What Happened Today | 2007 Benazir Bhutto returns to Pakistan | 1867 Alaska Becomes a Part of the United States | Veerappan shot dead


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धारा 370 रद्द करने के फैसले को चुनौती देने फिर साथ आए कश्मीर की राजनीति के दिग्गज; क्या यह धारा 370 का फ्यूनरल है जिसका लंबे समय से इंतजार था?

नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) समेत जम्मू-कश्मीर की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने 15 अक्टूबर को पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला के घर पर बैठक की। उन्होंने संविधान की धारा 370 को रीस्टोर करने और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश से फिर पहले की तरह राज्य बनाने की मांग करने वाले गुपकार डिक्लेरेशन के लिए अपना कमिटमेंट दोहराया। यह मीटिंग ऐसे वक्त हुई जब कुछ ही घंटों पहले पीडीपी चीफ मेहबूबा की 14 महीने बाद नजरबंदी से रिहाई हुई थी। इस लिहाज से यह काफी महत्वपूर्ण थी। लेकिन, जो बड़ा मुद्दा मीटिंग से निकलकर आया, वह यह था कि इस ग्रुप का नाम बदलकर अब पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन हो गया है।

पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने गुरुवार की मीटिंग के बाद कहा कि हम संविधान के दायरे में अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। हम चाहते हैं कि भारत सरकार राज्य के लोगों को 5 अगस्त 2019 के पहले के अधिकार फिर से दें। हमें यह भी लगता है कि इस राज्य के राजनीतिक मुद्दों का हल जल्द से जल्द निकाला जाएं और ऐसा सिर्फ जम्मू-कश्मीर की समस्या से जुड़े सभी लोगों के बीच शांति के साथ बातचीत से ही हो सकता है।

क्या है गुपकार डिक्लेरेशन?

  • करीब 14 महीने पहले, धारा 370 को रद्द करने के एक दिन पहले 4 अगस्त 2019 को श्रीनगर में भी जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियों की मीटिंग हुई थी। यह मीटिंग फारुक अब्दुल्ला के गुपकार रोड स्थित बंगले में हुई थी और यहां पर जॉइंट स्टेटमेंट जारी हुआ था। कहा था कि वे जम्मू-कश्मीर की आइडेंटिटी, ऑटोनोमी और स्पेशल स्टेटस की सुरक्षा के लिए लड़ते रहेंगे। इसे ही गुपकार डिक्लेरेशन कहा गया।

कश्मीर की पार्टियों को इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

  • नई दिल्ली में कश्मीर पर नजर रखने वाले तबके को लग रहा है कि पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन राजनीतिक मजबूरी है। पिछले सालभर यह नेता हिरासत में रहे। इस दौरान उन्हें जमीनी स्तर पर कोई सपोर्ट नहीं मिला। ऐसे में वे इस अलायंस के जरिए अपनी विश्वसनीयता को लोगों के बीच कायम करना चाहते हैं।
  • नई दिल्ली में सरकारी सूत्र यह भी कहते हैं कि कश्मीर में मोटे तौर पर कानून व्यवस्था अच्छा काम कर रही है। आतंकवादियों के जनाजों को लेकर होने वाले टकराव भी खत्म हो गए हैं। इस वजह से कश्मीर के कुछ नेता पहले ही मर चुकी धारा 370 का जनाजा निकालना चाहते हैं। हकीकत यही है कि धारा-370 अब कभी लौटने वाली नहीं है।
मेहबूबा मुफ्ती से मिलने के लिए उनके घर जाते फारुक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला।

क्या चाहते हैं इस नए-नवेले अलायंस के नेता?

  • कहीं न कहीं कश्मीर की मुख्य धारा की क्षेत्रीय पार्टियां अब भी उम्मीद कर रही है कि धारा 370 लौट सकती है। गुपकार डिक्लेरेशन पर साइन करने वालों ने संकेत दिए हैं कि यह लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में चलेगी।
  • जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के पूर्व राजनीतिक सलाहकार तनवीर सादिक कहते हैं कि मुद्दा यह नहीं है कि पीपुल्स अलायंस केंद्र के खिलाफ आवाज उठा रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां साथ में हैं। वह शांति के साथ और संवैधानिक तरीके से वह हासिल करने की कोशिश शुरू कर रही है जो राज्य की जनता से असंवैधानिक और अवैध तरीके से छीना गया है।
  • वह कहते हैं कि हम केंद्र के सामने अपनी दलील नहीं रखने वाले। हम तो सुप्रीम कोर्ट में जाकर संवैधानिक तरीके से लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हमारा मानना है कि केंद्र ने जो भी किया वह गैरकानूनी, असंवैधानिक और अनैतिक था, इस वजह से इसे बदला जाना चाहिए।

कितना समर्थन है इस अलायंस के नेताओं को?

  • अब्दुल्ला-मुफ्ती के भाईचारे ने कई लोगों को चौंकाया है। पिछले एक साल में एनसी और पीडीपी नेता नजरबंद थे। उनके समर्थन में न कोई बड़ा प्रदर्शन हुआ और न ही कोई लॉकडाउन। इससे यह साफ है कि जमीन पर उनके लिए कोई सपोर्ट नहीं बचा है।
  • उमर अब्दुल्ला के करीबी रहे और टीवी डिबेट्स में एनसी का कई बार प्रतिनिधित्व करते रहे जुनैद अजीम मट्टू भी आज नए ग्रुप को लेकर आशंकित हैं। उन्होंने खुद को इस ग्रुप से बाहर रखा है।
  • श्रीनगर के पूर्व मेयर जुनैद पीडीपी और एनसी दोनों में ही रहे हैं। वे कहते हैं, मेरा मानना है कि गुपकार डिक्लेरेशन दो ऐसी पार्टियों का गिल्ट (अपराध-बोध) है, जिनका नेतृत्व दो परिवार करते हैं। उनका यह सीजफायर खुद को रेलेवंट बनाए रखने की कोशिश है। ताकि वे एक-दूसरे को एक्सपोज न करें।
  • जुनैद कहते हैं, "मेरा भी यकीन है कि जम्मू-कश्मीर से जो छीना गया है, उसे वह वापस मिलना चाहिए। पर मैं यह भी नहीं मानता कि मुफ्ती और अब्दुल्ला रातोरात संत बन गए हैं। अगस्त 2019 से पहले जो भी हुआ, उसके लिए जवाब तो उन्हें देना ही होगा। वे इस सिचुएशन का लाभ उठाकर छुटकारा नहीं ले सकते।'

अब्दुल्ला ने चीन से सपोर्ट मांगा, इसका क्या मतलब है?

  • फारुक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को रीस्टोर करने में चीन से मदद लेने की बात कही और इस पर भाजपा के तीखे हमले हुए। अब्दुल्ला ने बातचीत के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को बुलाया तो यह भी राजद्रोह की नजर से देखा गया।
  • केंद्र सरकार को लगता है कि यदि सभी स्टेकहोल्डर्स को बातचीत के लिए बुलाएंगे तो उससे पाक-समर्थित भावनाएं बढ़ेंगी। इसका मतलब है कि अब्दुल्ला और उनकी गैंग को पहले चीन चाहिए था और अब पाकिस्तान। आम लोगों की तो बात ही नहीं हो रही।

जम्मू-कश्मीर का भविष्य क्या है?

  • एक्सपर्ट कहते हैं कि कश्मीर की नई राजनीति गुपकार से नहीं गुजरनी चाहिए। एनसी, पीडीपी, कांग्रेस और यहां तक कि भाजपा (पीडीपी-भाजपा गठबंधन) सरकारों ने भी सेपरेटिज्म को ही बढ़ावा दिया है। इससे नई दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में गैप बढ़ता गया। पॉलिसी पैरालिसिस की स्थिति भी बनी।
  • इस बार नई दिल्ली भी पॉलिटिकल आउटरीच के लिए डेस्पिरेट दिख रही है। मौजूदा सिचुएशन में लीडरशिप की नई पीढ़ी उभारने की कोशिश चल रही है। कश्मीर में लीडरशिप की नई पीढ़ी खड़ी करने की तैयारी हो रही है। यह भी देखना होगा कि नई पौध भी राजद्रोह की ओर न चल पड़ें। कश्मीर के पास अब तक सिर्फ धोखे की नहीं बल्कि पॉलिटिकल करप्शन और डबल गेम्स के भी भयावह किस्से रहे हैं।
  • आर्टिकल 370 को रद्द करने से पहले केंद्र के एक टॉप मिनिस्टर ने कहा था कि कश्मीर में अभूतपूर्व सिचुएशन से निकालने के लिए अभूपतूर्व उपाय करने होंगे। अब उपाय किए ही हैं तो कश्मीर को फिर टाइम बम पर न रखा जाएं, जिसका डेटोनेटर पाकिस्तान में हो। नई दिल्ली को ऐसा रास्ता नहीं पकड़ना चाहिए जो गुपकार से न गुजरता हो।

जम्मू-कश्मीर में चुनावों का क्या होगा?

  • इसी तरह जम्मू-कश्मीर में 2018 में पीडीपी-भाजपा सरकार के ब्रेक-अप के बाद चुनाव नहीं हुए हैं। सरकारी सूत्र संकेत दे रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं।
  • धारा 370 रद्द करने और केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा देने के बाद यह पहला मौका है जब असेंबली इलेक्शन कराए जाएंगे। यह चुनाव 2021 की गर्मियों में कराए जा सकते हैं।


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The stalwarts of Kashmir politics came together to challenge the decision to repeal Article 370; Is this the Funeral of Section 370 that was long awaited?


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सरकार ने बताया- देश में फ्लोरोसिस के 12 लाख मरीज, साफ पानी नहीं पीने से होती है बीमारी; इससे बचने के 7 तरीके

भारत में फ्लोरोसिस एक बड़ी बीमारी है, लेकिन हाल ही में सरकार ने लोकसभा में बताया कि देश में फ्लोरोसिस के मामले घट रहे हैं। फ्लोरोसिस ज्यादा फ्लोराइड वाला पानी पीने से होती है। इससे दांत और हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश में सोनभद्र के 296 गांवों में हजारों लोग इस बीमारी के शिकार हैं, इनमें से हर साल सैकड़ों की मौत होती है। इस इलाके में पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा जरूरत से ज्यादा पाई जाती है। सरकार पिछले कई सालों से शुद्ध पानी उपलब्ध करवाने का दावा कर रही है, लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं पाया।

इंडिया वाटर पोर्टल के मुताबिक, फ्लोरोसिस होने के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए दोबारा सामान्य जिंदगी जीना मुश्किल होता है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बेहतर यह है कि फ्लोरोसिस होने ही न दिया जाए। इंडिया साइंस वायर के मुताबिक, सिर्फ दूषित पानी से ही फ्लोरोसिस नहीं होता है, हमें पानी के अलावा भी बहुत सारी चीजों का ध्यान रखना चाहिए।

फ्लोरोसिस से बचने के 7 तरीेके-

1. पानी की जांच

पानी के नमूने में जांच के लिए इस्तेमाल होने वाले कैमिकल को मिलाएं, यदि इससे पानी का रंग पीला हो जाता है, तो इसका मतलब है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है। यदि यह गुलाबी हो जाता है तो साफ है कि पानी में फ्लोराइड कम है।

2. खून और यूरिन की जांच

खून में फ्लोराइड की मौजूदगी से पता चलता है कि फ्लोराइड आपके शरीर में प्रवेश कर गया है। अगर यह मात्रा 0.05एमजी/1 है, तो यह सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए खून और यूरिन की जांच कराएं।

3. लक्षण दिखने पर एक्सरे कराएं

एक्सरे की मदद से स्केलेटल फ्लोरोसिस का पता लगाया जा सकता है। हमें खास तौर पर लंबी हड्डियों का एक्सरे कराना चाहिए और उन हड्डियों का भी, जिनमें बीमारी का असर दिखाई देता हो।

4. फिल्टर पानी पीएं

पीने के पानी के लिए फ्लोराइड हटाने वाले फिल्टर का इस्तेमाल करें। एक्टिवेटेड एल्युमिना का इस्तेमाल करने वाले फिल्टर से फ्लोराइड हटाया जा सकता है। आइएनआरइएम फाउंडेशन द्वारा तैयार फिल्टर में जीरो-बी होता है, जो किसी भी बैक्टीरिया को हटा सकता है।

5. बारिश का पानी जमा करें

बारिश के पानी में बहुत कम या न के बराबर फ्लोराइड पाया जाता है। इसलिए हम बरसात के दिनों में छत पर गिरने वाले पानी को एक टैंक में जमा कर सकते हैं। इसे बाद में फिल्टर करके पिया जा सकता है। इसके अलावा यदि बारिश के पानी को कहीं जमा करते हैं, तो जमीन से निकलने वाले पानी की क्वालिटी भी बेहतर होती है।

6. पानी की जांच कराएं

घर में पीने के पानी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले विकल्प जैसे नल, नलकूप, कुआं की फ्लोराइड से जुड़ी जांच कराएं। इससे निकलने वाले पानी को आप फिल्टर करके भी पी सकते हैं।

7. कैल्शियम और विटामिन सी युक्त डाइट

यदि कैल्शियम, मैग्नीशियम और विटामिन-सी युक्त भोजन नहीं कर रहे हैं, तो फ्लोरोसिस की आशंका बढ़ जाती है। डॉक्टर की सलाह से आप मेडिकल सप्लीमेंट भी ले सकते हैं, जिसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन डी-3 और जिंक मौजूद हों। विटामिन सी का सप्लीमेंट अलग से ले सकते हैं।

फ्लोरोसिस के लक्षण क्या हैं ?

इंडिया वाटर पोर्टल के मुताबिक, फ्लोरोसिस के लक्षण बहुत ही साफ दिखाई देते हैं। दांतों में अधिक पीलापन, हाथ और पैर का आगे या पीछे की ओर मुड़ जाना, घुटनों के आसपास सूजन, झुकने या बैठने में परेशानी, जोड़ों में दर्द और पेट भारी रहना फ्लोरोसिस के मुख्य लक्षण हैं। ऐसे लक्षण दिखने पर बिना देर किए डॉक्टरों की सलाह लेनी चाहिए।

फ्लोरोसिस होने का कारण सिर्फ पानी ही नहीं

पिछले साल पश्चिम बंगाल के चार फ्लोराइड प्रभावित गांवों में एक सर्वे किया गया। इंडिया साइंस वायर के मुताबिक, इस सर्वे में फ्लोराइड से दूषित पानी पीने के बावजूद लोगों के यूरिन के नमूनों में फ्लोराइड का स्तर पीने के पानी में मौजूद फ्लोराइड की मात्रा से मेल नहीं खाता। इसका मतलब है कि पानी के अलावा अन्य स्रोतों से फ्लोराइड शरीर में पहुंच रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, मिट्टी के साथ-साथ गेहूं, चावल और आलू जैसी खाने की चीजों से भी फ्लोरोसिस हो सकता है।

भारत में फ्लोरोसिस के 12 लाख से ज्यादा मरीज

  • भारत सरकार ने हाल ही में लोकसभा में बताया कि भारत में फ्लोरोसिस के 12 लाख से ज्यादा मरीज हो सकते हैं। लेकिन, फ्लोरोसिस रिस्क वाले इलाके पिछले 10 साल में 80% कम हुए हैं। यानी उन इलाकों में जहां पानी में ज्यादा फ्लोराइड पाई जाती थी, वहां 80% की कमी आई है।
  • सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के 17 राज्यों में 5 हजार 485 ऐसे इलाके हैं, जो आज भी फ्लोरोसिस जोन हैं। यहां रहने वाले लोगों को फ्लोरोसिस होने का खतरा है। राजस्थान में सबसे ज्यादा 3 हजार इलाके हैं।
  • पूरे देश में फ्लोरोसिस के संभावित इलाकों में से 83% सिर्फ राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और पंजाब में हैं। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के मुताबिक इन राज्यों के फ्लोरोसिस संभावित इलाकों में एक लीटर पीने के पानी में 1 मिलीग्राम फ्लोराइड पाया जाता है।


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What is Fluorosis, Dental Fluorosis | What You Need to Know About Symptoms Of Fluorosis


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अपने लहू से भाजपा को निकालना मुश्किल, चुनाव के बाद क्या होगा… अभी कैसे बता सकता हूं: लोजपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह

17 अक्टूबर को भास्कर ने बताया था कि कैसे दिनारा में लोजपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह के लिए लोजपाई से ज्यादा भाजपाई-संघी लगे हैं, आज उन्हीं की बात सुनिए- “जिस सीट पर मैंने काम किया, उसे जदयू के पास मैंने तो नहीं दिया। अभी लोजपा के बैनर पर लड़ रहे, आगे का पता नहीं।” यहां भी भाजपा-लोजपा-जदयू के भविष्य का अंदाजा लगाना, समझना मुश्किल नहीं। क्यों और क्या कहा, भाजपा के 37 साल पुराने संघी राजेंद्र सिंह ने…पूरा इंटरव्यू।

सवाल: आप 37 सालों से भाजपा में थे। राज्य में पार्टी के उपाध्यक्ष थे। पिछले विधानसभा चुनाव में आप मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक थे। इस बार आपकी ही सीट जदयू को कैसे चली गई?
जवाब:
ये सीट गठबंधन के तहत हुए समझौते की वजह से जदयू को चली गई है, लेकिन हम पिछले पांच सालों से लगातार इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। सेवा का काम कर रहे हैं। हमने इस विधानसभा सीट के 6 हजार लोगों को रोजगार दिलाने का काम। जिस नेशनल हाइवे से आप आए होंगे, उसे संघर्ष करके बनवाने का काम। किसानों के धान का सही मूल्य मिले, इसके लिए काम किया। किसान का धान खेत से खरीदना चाहिए। खलिहान से खरीदना चाहिए। किसान के धान को उचित मूल्य मिलना चाहिए।

पिछले दिनों इलाके में पानी भर गया था तो सरकार की नींद खोलने के लिए अपने सर पर बोझा लेकर हम प्रखंड विकास पदाधिकारी के दफ्तर तक गए थे। लॉकडाउन के दौरान बाहर फंसे हजारों लोगों को हमने घर बुलवाया। उत्तरी बिहार में बाढ़ आई तो भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले 400 क्विंटल खाद्य पदार्थ भिजवाने का काम किया। कोरोना में जब लोग अपने घर में थे तो हम बाहर निकलकर काम कर रहे थे।

सवाल: मेरा सवाल वही था। आपने इतना काम किया फिर भी आपकी सीट जदयू के पास क्यों चली गई? आप जैसे सीनियर नेता को टिकट के लिए पार्टी क्यों बदलनी पड़ी?
जवाब:
टिकट क्यों नहीं मिला ये तो वो बताएंगे, जिन्हें देना था। मेरा काम तो है नहीं। वो क्यों नहीं दिए? समझौते में तो सीटें अदली-बदली जाती हैं। मुझसे कहा गया कि सिटिंग का फार्मूला है, लेकिन उसमें भी बदलाव होता है। सब कुछ जानने के बाद भी कि मैं कितना सक्रिय हूं। काम कर रहा हूं। उसके बाद भी मेरी सीट नहीं बदली गई। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि सब कुछ जानने के बाद भी मेरी सीट जदयू को क्यों दे दी गई? मुझे आज भी लगता है कि बदलना चाहिए था।

सवाल: अब तो पार्टी ने आपको 6 साल के लिए निकाल भी दिया है?
जवाब:
वो तो पार्टी का संविधान है। हमने उसे तोड़ा है। पार्टी लाइन से बाहर जाकर चुनाव लड़ रहे हैं तो ये तो होना ही था। ये कोई नया काम तो नहीं है।

सवाल: आपके कार्यकर्ता कह रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद आप भाजपा में फिर शामिल हो जाएंगे। वैसे भी लोजपा और भाजपा में कोई खास अंतर नहीं है। आप इस कानाफूसी पर क्या कहेंगे?
जवाब:
आगे क्या होगा और क्या नहीं होगा, ये कहना तो बड़ा मुश्किल है। लेकिन, अभी तो हम लोग लोक जनशक्ति पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां की जनता और कार्यकर्ताओं के दबाव के कारण लड़ रहे हैं।

सवाल: चुनाव के वक्त नेताओं का पार्टी बदलना आम सी बात हो गई है। आप तो संघी हैं। क्या ये फैसला लेना आसान था कि जिस पार्टी और विचारधारा को अपना सब कुछ दिया, उसे छोड़कर या उसके खिलाफ ही चुनाव लड़ा जाए?
जवाब:
देखिए, मैंने फैसला लिया ही नहीं है।

सवाल: लोजपा से टिकट तो लिया ही है ना?
जवाब:
मेरे कहने का मतलब कि मैं जिनके लिए पांच साल लड़ा। जिनके सुख-दुःख में शामिल रहा, फैसला तो उन्होंने लिया है और उनकी वजह से मुझे आना पड़ा है।

सवाल: जैसे आपका दावा है कि आपने पिछले पांच साल इस क्षेत्र में खूब मेहनत की है तो आप निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते थे। लोजपा का चुनाव क्यों?
जवाब:
सब लोगों के कहने से। कार्यकर्ताओं के कहने से ही मैंने लोजपा का चुनाव किया है। ये मेरा व्यक्तिगत फैसला नहीं था।

सवाल: सोशल मीडिया पर चर्चा है कि भले आप लोजपा के बैनर से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन भाजपा का साथ नहीं छोड़ा है। वजह है आपका फेसबुक पेज, जो आज भी आपके भाजपा में होने का भरोसा दिला रहा है। क्या वजह है कि वहां अभी तक लोजपा की मौजूदगी नहीं हुई है?
जवाब:
(हकलाते और हंसते हुए) अरे नहीं-नहीं। अभी तो हम चुनाव की प्रक्रिया में आए हैं। अभी तो आज हमारा पहला वीडियो-ऑडियो बना है। धीरे-धीरे चीजें होंगी। चीजें बदलेंगी। एक दिन में तो होता नहीं सब।

सवाल: ये सब बदलाव ना करके आप चुनाव बाद भाजपा वापस जाने का एक रास्ता रख रहे हैं क्या?
जवाब:
अभी कौन सा संकल्प है। विचारधारा को तो मैंने छोड़ा नहीं है। राम जन्मभूमि हमने छोड़ी नहीं है। मंदिर हमने छोड़ा नहीं है। वैसे इसकी जरूरत नहीं है, लेकिन हम हमेशा धारा 370 की बात करेंगे। हिंदुत्व की बात हमेशा करेंगे। इस देश की जो समस्या है, उस पर बोलते रहेंगे। राष्ट्रवादी ताकतों के साथ हमेशा रहेंगे।

सवाल: आपके हिसाब से राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी जी हैं?
जवाब:
हैं भी और हमेशा रहेंगे।

सवाल: बिहार में भी एक मोदी जी हैं। सुशील कुमार मोदी। क्या आप बिहार में उन्हें भाजपा का बड़ा नेता मानते हैं?
जवाब:
नरेंद्र मोदी जी देश के बड़े नेता हैं। उनके सामने विश्व के सारे नेता बौने हैं।

सवाल: मैंने सुशील मोदी जी के बारे में पूछा है?
जवाब:
(मुस्कुराते हुए) मैं नरेंद्र मोदी जी की बात कर रहा हूं।

सवाल: क्या आप मानते हैं कि आपकी सीट जदयू को जाने के पीछे सुशील कुमार मोदी की कोई चाल है?
जवाब:
हम किसी के बारे में नहीं बोल रहे। हमारी किसी से कोई शिकायत नहीं। वो स्वयं तय करें कि किसकी गलती है।

सवाल: आपके साथ लोजपा के कार्यकर्ता और नेता हैं क्या? मुझे तो भाजपा के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता आपका समर्थन करते हुए ज्यादा दिख रहे हैं?
जवाब:
अभी आपने देखा नहीं। यहां लोजपा के हजारों कार्यकर्ता थे। अभी भी लोजपा के जिला अध्यक्ष मेरे बगल में बैठे हैं। अब आपकी दृष्टि का दोष है तो मैं क्या करूं? इसमें मेरा कोई दोष नहीं है।

सवाल: भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता आपके समर्थन में यहां हैं या नहीं?
जवाब: आएं…?

सवाल: राजेंद्र सिंह के समर्थन में भाजपा के नेता कार्यकर्ता हैं या नहीं?
जवाब: देखिए…कोई हम भाजपा से अलग हो गए… एक दिन में भाजपा से अलग हो जाएंगे…कोई मेरा रक्त बदल देगा क्या? कोई मेरा जींस बदल देगा क्या? अभी तक जिसमें 37 साल घुंट-घुंट कर मरे हैं, वो कोई बदल देगा क्या? तो ये चीजें बदलती नहीं हैं। जो है सो है। अभी जिस सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं, वो कर रहे हैं।

सवाल: आपके कार्यकर्ता आपको बिहार का सरयू राय कह रहे हैं। वो तो पार्टी से निकले तो दोबारा पार्टी में नहीं गए?
जवाब: हमारी लड़ाई वो नहीं है। हमारी लड़ाई दिनारा का विकास है। यहां की जनता का विकास है। हमारी लड़ाई व्यक्तिवादी नहीं है। हमारी लड़ाई दिनारा के ढाई लाख मतदाताओं की लड़ाई है। उनके लिए लड़ रहे हैं, अपने लिए नहीं लड़ रहे हैं।



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Rajendra Singh Interview To Dainik Bhaskar | Chirag Paswan Party LJP Dinara Candidate Speaks On Bihar Vidhan Sabha Election 2020


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तेजस्वी डेढ़ साल डिप्टी सीएम रहे, लेकिन कभी गांव नहीं आए, सीएम बनने के बाद लालू ने बदली थी सूरत

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बिहार के लिए क्या किया और क्या नहीं, गोपालगंज के फुलवरिया के लोग उसकी चर्चा करने की जगह लालू के जमाने में गांव के लिए किए काम को यादकर आज भी जी रहे हैं। कोई खिलाफ नहीं बोलता, लेकिन लोग यह सच्चाई और उसका दर्द नहीं छिपा पाते कि “नया बिहार, तेजस्वी सरकार” का नारा देने वाले लालू पुत्र इस गांव को पूरी तरह भूल चुके।

40 साल की एक महिला मिलीं, नाम पूछा तो भागने लगीं। रोककर बात की तो भी नाम नहीं बताया, बस भोजपुरी में इतना कहा- “जे कइलन उ लालू जी, बेटवन सब झाकहुं न आइल। जे आज लउकता, उ 20 साल पहिले ओइसने रहे। इ लोग जे कमइलन-बनइलन, लेकिन फुलवरिया झांकहुं ना अइलन।” इन बातों का दर्द यहां हर तरफ दिखता है। अस्पताल है, मगर पिछली सदी की व्यवस्था वाला।

तेजस्वी-तेज प्रताप नहीं आते हैं, मगर लालू से शिकायत नहीं
भास्कर की टीम जब रेफरल अस्पताल में पहुंची तो वहां एक कमरे में दो लोग बातें करते हुए मिले। दोनों सरकारी कर्मचारी थे। इनमें से एक फुलवरिया के ही रहने वाले थे। पहचान उजागर नहीं किए जाने की शर्त पर उन्होंने बात की। बताया कि लालू प्रसाद 2017 में ही अपने गांव आए थे। इसके बाद उन्हें चारा घोटाले में जेल जाना पड़ा। इस विधानसभा चुनाव में वो नहीं हैं। जो बात उनमें है, वो उनके बच्चों में नहीं है।

तेज प्रताप और तेजस्वी यादव तो अपने ददिहाल में आते भी नहीं हैं। यहां के लोगों से संपर्क भी नहीं रखते हैं। गांव के लोगों को तो दोनों भाई पहचानते भी नहीं हैं। तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री बने और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने, लेकिन फुलवरिया के लिए कुछ नहीं किया। अपने लालू जी वाली बात उनके दोनों बेटों में नहीं है।
लालू के मुख्यमंत्री बनने के पहले तक फुलवरिया में कुछ भी नहीं था। न सड़क थी, न बिजली की कोई व्यवस्था। लोगों के इलाज के लिए न कोई अस्पताल था। बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई प्राइमरी स्कूल तक नहीं था। लेकिन, लालू मुख्यमंत्री बने तो सूरत बदल गई।

ये वही घर है, जहां लालू यादव का बचपन गुजरा।

घर से गांव तक लालू ही पहचान, नई पीढ़ी का वास्ता नहीं

यहां लालू प्रसाद के दो पुराने घर हैं। पहले में एक भाई के बेटे और उनका परिवार रहता है। दूसरे घर में दूसरे भाई का बेटा-पोता और परिवार के सदस्य रहते हैं। इस घर के आंगन में ही लालू प्रसाद की मां मरछिया देवी की एक प्रतिमा भी बनी हुई है, जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री रहते राबड़ी देवी ने किया था। लोग बताते हैं कि लालू परिवार में लालू-राबड़ी के अलावा किसी का इस गांव से वास्ता नहीं है। होता तो 2015 में जब तेजस्वी उप मुख्यमंत्री और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने तो नई सुविधाएं जुड़ जातीं। नया कुछ नहीं होने का दर्द झलकता है, लेकिन बोलने की बारी आती है, तो लोग लालू प्रसाद के किए काम को बताने लगते हैं।

अस्पताल, पुलिस, ब्लॉक, ट्रेन…सब लालू की ही देन

लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गांव में सबसे पहले रेफरल अस्पताल बनवाया। यह लालू प्रसाद की मां मरछिया देवी के नाम पर है। इसके बाद फुलवरिया में पुलिस आउट पोस्ट खुलवाई, जो बाद में थाना बन गई। लालू प्रसाद ने ही फुलवरिया को ब्लॉक बनाया। सब रजिस्ट्रार ऑफिस खुलवा दिया। बिजली के लिए सब स्टेशन बनवाया। इसके बाद से पूरे फुलवरिया और आसपास के दूसरे गांव के लोगों को बिजली मिलने लगी।

जब केंद्र में यूपीए की सरकार में लालू प्रसाद रेल मंत्री बने तो फुलवरिया होते हुए उत्तर प्रदेश के भटनी तक एक नई रेल लाइन ही बिछवा दी गई। इस रूट पर हाजीपुर से पंचदेवड़ी तक ट्रेन चलती है।

अपनी मां मरछिया देवी के नाम पर गांव में लालू यादव ने बनवाया था अस्पताल।

पहले बथूआ जाना पड़ता था बच्चों को पढ़ने के लिए
फुलवरिया में एक घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहे प्राइवेट टीचर इब्राहिम मिले। इसी गांव के रहने वाले हैं। वो बताते हैं कि गांव के अंदर पहले बच्चों के प्राइमरी एजुकेशन की कोई व्यवस्था नहीं थी। अपने कार्यकाल के दौरान लालू ने ही दो सरकारी मिडिल स्कूल खुलवाए। उनके माध्यम से ही अब बगल के मारीपुर गांव में हाई स्कूल खुला है। गांव के अंदर न अच्छी सड़क थी और न ही नाला, लेकिन उनके सीएम बनते ही गांव बदल गया।



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Lalu Prasad Yadav Tejashwi Yadav: Bihar Election 2020 | Dainik Bhaskar Ground Report From RJD Supremo Lalu Yadav Gopalganj Phulwaria Village


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बिहार सरकार के मंत्री ने भाजपा के चुनावी प्रचार के लिए फ्लाईओवर की जिस तस्वीर को मुजफ्फरपुर का विकास बताया, पड़ताल में हैदराबाद की निकली

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर बिहार विधानसभा चुनावों के लिए जारी किया गया भाजपा का एक चुनावी विज्ञापन शेयर किया जा रहा है। विज्ञापन को बिहार सरकार में मंत्री सुरेश कुमार शर्मा ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल और फेसबुक पेज से शेयर किया है।

विज्ञापन में पीएम मोदी की भी तस्वीर है। साथ ही स्ट्रीट लाइटों से लैस जगमगाता फ्लाईओवर दिख रहा है। नीचे लिखा है - जगमगा रही हैं मुजफ्फरपुर की सड़कें।

और सच क्या है ?

  • वायरल हो रही फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से तेलंगाना की आईटी मिनिस्ट्री के फेसबुक पेज पर भी हमें यही फोटो मिली। मंत्रालय के फेसबुक पेज पर इसी फोटो को बैरमलगुडा जंक्शन ( Bairamalguda Junction) स्थित आरएचएस फ्लाईओवर का बताया है।

  • यानी सोशल मीडिया पर एक फ्लाईओवर के निर्माण को लेकर दो अलग-अलग राज्यों का दावा है। इस दावे की सत्यता जांचने के लिए हमने ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स सर्च कीं, जिनसे पुष्टि हो सके कि आखिर फ्लाईओवर किस जगह का है।
  • इंडियन एक्सप्रेस वेबसाइट की खबर में बैरमलगुडा जंक्शन पर बने फ्लाईओवर के उद्घाटन की खबर है। फ्लाईओवर का फोटो भी है। हालांकि, यहां फ्लाईओवर का ड्रोन फोटो है। बिहार सरकार के मंत्री द्वारा शेयर की गई फोटो और इंडियन एक्सप्रेस की फोटो का हमने मिलान किया।
  • फ्लाईओवर की सतह और बाउंड्री का साइज दोनों तस्वीरों में बिल्कुल एक जैसा है। साथ ही स्ट्रीट लाइट्स के बीच का गैप भी बराबर है।
  • तेलंगाना सरकार में मंत्री केटी रामा राव ने 9 अगस्त को एक ट्वीट किया था। इस ट्वीट में आरएचएस फ्लाईओवर की अलग-अलग ऐंगल से ली गई चार तस्वीरें हैं। एक तस्वीर वह भी है, जिसे बिहार के मुजफ्फरपुर का बताया जा रहा है।
  • Google Earth की इन सैटेलाइट इमेजेस से भी यही पुष्टि होती है कि फ्लाईओवर की जिस फोटो को बिहार का बताया जा रहा है, वो असल में हैदराबाद में है।


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Fact Check: Bihar government minister shares photos of Hyderabad flyover to show development of Muzaffarpur


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व्यापारियों को 1 लाख करोड़ के कारोबार की उम्मीद, लेकिन ग्राहक को नहीं मिलेगा कोई भी ऑफर

त्योहारी सीजन करीब है, लेकिन बाजारों में रौनक गायब है। दिल्ली के चांदनी चौक, करोलबाग, खान मार्केट तो कोलकाता का न्यू मार्केट, धर्मतल्ला सब कुछ सुना है। बाजार में ना ग्राहक हैं, ना कोई त्योहारी तामझाम। अगर कुछ है, तो बिक्री की आस में बैठे कारोबारी और इन कारोबारियों को है दिवाली का बेसब्री से इंतजार। क्योंकि, कोविड-19 के चलते मंदी की मार झेल रहे देश भर के बाजार को अब इस दीवाली से काफी उम्मीदें हैं।

कोरोना महामारी से कारोबार में आई सुस्ती को फेस्टिव सीजन में रफ्तार मिलने की आस से व्यापारी स्टॉक जुटाने में लगे हैं। ताकि, जब ग्राहक आएं तो निराश होकर दुकान से वापस ना चले जाएं। कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने भास्कर को बताया कि इस साल दिवाली में करीब एक लाख करोड़ रुपए तक का कारोबार हो सकता है। पिछले साल 60-70 हजार करोड़ के करीब यह आंकड़ा था।

ऑफलाइन खरीदारी को लेकर इतनी उम्मीदें कैसे?

प्रवीण खंडेलवाल की मानें तो पिछले सात माह से लोगों ने सिर्फ जरूरत का ही सामान खरीदा है। ऐसे में ग्राहकों के पास सेविंग्स हुई है। और तो और, वो मेंटली भी खरीदारी के लिए तैयार हुए हैं। वे बताते हैं कि सालभर ग्राहक दिवाली का इंतजार करते हैं। ऐसे में अधिक शॉपिंग ना भी करें, तब भी खरीदारी तो करेंगे ही। दूसरी तरफ, लॉकडाउन में बढ़े ऑनलाइन फ्रॉड के मामले और ई-कॉमर्स पर फेक सामान के चलते ग्राहकों का भरोसा अब भी ऑफलाइन दुकानों पर भी है।

सरकार के फैसले का भी पड़ेगा असर

ग्राहकों द्वारा खर्च बढ़ाने के लिए सरकार की नई एलटीसी कैश वाउचर योजना के चलते गिरते बाजार को मजबूती मिलेगी। इससे पिछले कई महीनों से निराश बैठे और नुकसान उठा रहे व्यापारियों को थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। लोगों द्वारा पिछले सात महीनों में की गई बचत, केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में सरकारी कर्मचारियों को एलटीसी को नकद में बदलने की सुविधा और व्यापारियों द्वारा चीन से त्योहारी सीजन पर हर साल होने वाली खरीद का सारा पैसा देश में ही खर्च करने के चलते 31 मार्च 2021 तक देश के बाजारों में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए खर्च होने की सम्भावना है। इसको लेकर देश भर के व्यापारी उत्साहित हैं।

चीनी सेंटीमेंट्स का फायदा भारतीय कारोबारियों को होगा

प्रवीण के मुताबिक, भारत-चीन के बीच हुई सैन्य झड़प के बाद चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम देशभर में चलाई गई। इसका व्यापक समर्थन और असर देश भर में दिखाई दे रहा है। हर साल राखी से लेकर दीवाली तक चलने वाले फेस्टिवल सीजन में त्योहारी सामानों का तकरीबन 40 हजार करोड़ का एक्सपोर्ट चीन भारत में करता है। पर इस बार चीन को लेकर भारतीय ग्राहक की सोच पूरी तरह बदल गई है। जिसकी बानगी हाल ही में गुजरे रक्षाबंधन और गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों में देखने को मिली है।

चीन को राखी पर करीब 5,000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा, तो वहीं गणेश चतुर्थी में 500 करोड़ की चपत खानी पड़ी है। अब ये रकम इस साल त्योहार में भारतीय बाजारों में ही रहेगी। इसका फायदा 7 करोड़ व्यापारियों को होगा।

इस साल दिवाली पर ज्यादातर रिटेलर्स ऑफर्स देने के मूड में नहीं

दिल्ली के चांदनी चौक के एक कारोबारी भरत आहूजा ने बताया कि इस साल दिवाली के लिए खास तैयारी कर रहे हैं। लॉकडाउन के चलते जो सामान बिक नहीं पाया, उसे सस्ते दामों पर बेचना होगा। हालांकि, नए स्टाॅक पर कोई डिस्काउंट नहीं मिलेगा। दुकानदारों को पिछले सात माह में काफी नुकसान झेलना पड़ा है। वे बताते हैं कि ऑनलाइन मार्केट पर ना तो हमारे पीछे किसी निवेशक का हाथ होता है, ना किसी बैंक का सपोर्ट। ऐसे में हम ऑफर्स कहां से दें?

ऑफलाइन कारोबार में 30-40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई

खान मार्केट (दिल्ली) संगठन के अध्यक्ष संजीव मेहरा ने बताया कि कोरोना के चलते बाजार और व्यापार पूरी तरह से बंद पड़े थे। लॉकडाउन खुलने के बाद से अब तक व्यापार में 30-40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। देश भर में व्यापार अभी तक पटरी पर नहीं लौट पाया है। अब इस दीवाली फेस्टिवल सीजन से बाजार में फुटफॉल और खरीदारी बढ़ने की पूरी संभावना है। हालांकि, खान मार्केट में इस साल दिवाली पर पिछले साल के मुकाबले करीब 40 फीसदी कम सेल होने की आशंका है। रही बात ऑफर्स की तो संजीव बताते हैं कि इस साल फर्नीचर, कपड़े, होम अप्लायंसेस की डिमांड बढ़ेगी, लेकिन ऑफर्स देना संभव नहीं है।

पिछले साल के मुकाबले इस फेस्टिवल में दोगुने फायदे में रहेगा ई-कॉमर्स

रेडसीर (Redseer) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल फेस्टिव सीजन में ई-कॉमर्स की ग्रॉस मर्चेंडाइज वॉल्यूम 7 बिलियन डॉलर (51.52 हजार करोड़ रु.) तक पहुंच सकती है। यह पिछले साल के मुकाबले लगभग दोगुनी होगी। ई-कॉमर्स सेक्टर की बात की जाए तो इस समय दिग्गज कंपनियां अमेजन और फ्लिपकार्ट बिक्री बढ़ाने के लिए ग्राहकों को आकर्षक ऑफर्स दे रही हैं। इसमें अमेजन का ग्रेट इंडियन शॉपिंग फेस्टिवल और फ्लिपकार्ट का बिग बिलियन डेज सेल ऑफर्स मुख्य हैं। फेस्टिव सेल इवेंट में 4 बिलियन डॉलर (करीब 30 हजार करोड़ रुपए) तक की बिक्री हो सकती है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्केट में सस्ता 4जी डेटा होने के कारण ऑनलाइन मार्केट में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है। इसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी रिलायंस जियो की है। जियो ने ग्राहकों को सबसे कम कीमत में इंटरनेट डेटा देने की शुरुआत की थी। जिसका कारण है कि वर्तमान में भारतीय ई-कॉमर्स मार्केट 50 बिलियन डॉलर (3.68 लाख करोड़ रु.) का हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 तक भारत में 48 करोड़ लोगों तक इंटरनेट की पहुंच थी। इसमें से नौ करोड़ लोग ऑनलाइन शॉपर्स हैं।

इस बार लगभग सभी ई-कॉमर्स कंपनियों ने टीयर-2 और टीयर-3 शहरों पर ज्यादा फोकस किया है। इसमें अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैप डील जैसे दिग्गज शामिल हैं। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 2020 तक ऑनलाइन शॉपर्स की संख्या 16 करोड़ के पार जा सकती है, जबकि टोटल ई-कॉमर्स बिक्री 38 बिलियन डॉलर (2.80 हजार करोड़ रु.) तक पहुंच सकता है।



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Offline Market Vs Online Market: Businesses expect a turnover of 1 lakh crore, but the customer will not get any offer


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माता ब्रह्मचारिणी की आराधना से मिलेगी कठोर तप से सफलता पाने की शक्ति

नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। यह ब्रह्म शक्ति यानि तप की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्तों की तप करने की शक्ति बढ़ती है। शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा।

स्वरूप

माता अपने इस स्वरूप में बिना किसी वाहन के नजर आती हैं। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है।

महत्त्व

माता ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग-शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।

नवरात्रि के दूसरे दिन श्रद्धालु माता ब्रह्मचारिणी से जीवन में कठोर तप या यों कहें कि कड़े संघर्ष की शिक्षा लेते हैं। ऐसा ही कठोर तप करने वाली दो महिलाएं हैं, कार्तियानी अम्मा और भागीरथी अम्मा। 98 बरस की कार्तियानी अम्मा और 107 बरस की भागीरथी अम्मा देश की उन करोड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो परिवार के लिए जिम्मेदारी निभाते-निभाते अपनी इच्छाओं को मारकर हार मान लेती हैं।

केरल की इन दोनों अम्माओं ने बेहद कठिन हालातों में न केवल अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा किया, बल्कि जीवन के क्रमशः 9 और 10 दशक पूरे करने के बाद दोबारा पढ़ाई शुरू की और उसमें भी झंडे गाड़ दिए।केरल के अलापुझा जिले के हरिपद की रहने वाली कार्तियानी अम्मा ने 2018 में राज्य के लिट्रेसी मिशन अथॉरिटी (केएसएलएमए) की परीक्षा में टॉप किया। तब वे 96 बरस की थीं। उन्होंने कुल 100 में 98 नंबर हासिल किए।

अक्षरालक्षम नाम की यह परीक्षा कक्षा 4 के बराबर मानी जाती है। इसमें कुल 43,330 अभ्यर्थी शामिल हुए थे, उनमें से 42,933 ने पास किया था। इसमें तीन मुख्य विषय थे। पढ़ना, लिखना और गणित। कार्तियानी अम्मा ने लिखने में 40 में 38 और बाकी दोनों विषयों यानी पढ़ना और गणित में शत-प्रतिशत अंक हासिल किए।

परीक्षा देने के बाद कार्तियानी अम्मा ने कहा था, "बिना मतलब मैंने इतनी ज्यादा पढ़ाई की। टेस्ट मेरे लिए बहुत आसान थे।" 1922 में जन्मी कार्तियानी अम्मा की बेहद कम उम्र में शादी हो गई। इसलिए स्कूल जाना बंद हो गया। जल्द ही वे छह बच्चों की मां बन गईं। कम उम्र में ही पति का निधन हो गया। बच्चों को पालने के लिए उन्होंने लोगों के घरों पर काम करने के साथ सफाई कर्मचारी का भी काम किया।

कार्तियानी अम्मा की शादी बेहद कम उम्र में हो गई इसलिए स्कूल जाना बंद हो गया था।

स्कूल जाना चाहती थीं, बेटी को देखकर सूझा रास्ता

जीवन के इस पड़ाव में जब कार्तियानी अम्मा अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभा चुकी थी तो उनके मन में पढ़ने की इच्छा जागने लगी। दरअसल, उनकी बड़ी बेटी ने भी केरल सरकार के इस योजना के तहत ही पढ़ाई की थी। बस यहीं से उन्हें रास्ता सूझा और उन्होंने पढ़ना शुरू कर दिया।

पूरी तरह शाकाहारी, कभी नहीं गईं अस्पताल

कार्तियानी अम्मा पूरी तरह शाकाहारी हैं। वह रोज सुबह 4 बजे जाग जाती हैं। अपने सभी काम खुद ही करती हैं। उनका कहना है कि एक बार आंखों की सर्जरी को छोड़ दें तो वे पूरी जीवन में कभी अस्पताल नहीं गईं।

रुकी नहीं, लक्ष्य तय- 100 की उम्र में पास करेंगी 10वीं

कार्तियानी अम्मा यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने पढ़ाई में आगे के लक्ष्य भी तय कर लिए हैं। केरल की अक्षरालक्षम योजना में चौथी कक्षा के बराबर परीक्षा पास करने के बाद, सातवीं के बराबर मानी जाने वाली परीक्षा दी जाती हैं और इसके बाद दसवीं के बराबर मानी जाने वाली अंतिम परीक्षा। कार्तियानी अम्मा ने 100 वर्ष की उम्र में दसवीं के बराबर यही परीक्षा पास करने को ही लक्ष्य बनाया है।

9 साल की उम्र में छूटी पढ़ाई तो भागीरथी अम्मा ने 104 की उम्र में दोबारा की शुरू

भागीरथी अम्मा को 9 साल की उम्र में पढ़ाई छोडऩी पड़ी थी।

भागीरथी अम्मा केरल के कोल्लम में रहने वाली हैं। उन्हें बचपन से ही पढ़ने की ललक थी, लेकिन यह सपना उन्होंने 104 साल की उम्र में पूरा करना शुरू किया और 105 साल की उम्र में पहला बड़ा पड़ाव हासिल कर लिया, और वह बन गईं सबसे ज्यादा उम्र में केरल लिट्रेसी मिशन की परीक्षा पास करने वाली शख्सियत।

अम्मा को लिखने में दिक्कत होती है इसलिए उन्होंने पर्यावरण, गणित और मलयालम के तीन प्रश्न पत्रों का हल तीन दिन में लिखा था। इसमें उनकी छोटी बेटी ने मदद की थी। उनका कहना है कि वह हमेशा ही पढ़ना चाहती थीं, लेकिन बचपन में ही मां की मौत के बाद भाई-बहनों की देखरेख की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी। भागीरथी अम्मा 9 साल की उम्र में तीसरी कक्षा में पढ़ती थीं, जब उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।

इसके बाद तो जिम्मेदारियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। महज 30 साल की उम्र में उनके पति की मौत हो गई थी। जिसके बाद छह बच्चों की पूरी जिम्मेदारी आ गई। उम्र गुजरती गई। इस दौरान पढ़ाई का उनका सपना पूरा तो नहीं हुआ, लेकिन अम्मा उसे भूली नहीं।

जब 105 वर्ष की उम्र में उन्हें पढ़ने का मौका मिला तो वे पीछे नहीं हटीं। उन्होंने कोल्लम स्थित अपने घर में चौथी कक्षा के बराबर मानी जाने वाली परीक्षा दी और एक मिसाल बन गईं। ऐसी मिसाल कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के दौरान कहा कि अपने अंदर के विद्यार्थी को कभी मरने नहीं देना चाहिए। 105 साल की भागीरथी अम्मा हमें यही प्रेरणा देती हैं। इसलिए उन्हें कॉमनवेल्थ ऑफ लर्निंग गुडविल एंबेसडर के तौर पर चुना गया है।

बेहद तेज है याददाश्त, गाना भी खूब गाती हैं अम्मा

केरल लिट्रेसी मिशन के एक्सपर्ट वसंत कुमार का कहना है कि इस उम्र में भी अम्मा की याददाश्त बेहद अच्छी है। उन्हें पढऩे में कोई दिक्कत नहीं। उन्हें 74.5 प्रतिशत अंक मिले। उनके 16 नाती-पोते और 12 पड़ पोते-पोतियां हैं। अम्मा अभी भी बहुत अच्छा गाती हैं।

आधार कार्ड बना, पेंशन मिली और आगे की पढ़ाई शुरू

भागीरथी अम्मा का आधार कार्ड नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब मन की बात में उनका जिक्र किया, तो यह बात सामने आई कि उनका आधार कार्ड ही नहीं। इसके बाद स्थानीय प्रशासन ने उनके घर जाकर सभी औपचारिकताएं पूरी कर उनका आधार बना दिया। अब उन्हें हर महीने 1500 रुपए की वृद्धावस्था पेंशन भी मिलती है।

इधर, भागीरथी अम्मा ने मार्च में सातवीं के बराबर माने जाने वाले लिट्रेसी मिशन के अगले कोर्स में एडमिशन ले लिया है। उनका कहना है कि वे 10 वीं के बराबर वाली अगली परीक्षा भी पास करना चाहती हैं।



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Maa Brahmacharini Navratri 2020 Day 2 Devi Puja Significance and | Interesting Facts On Kerala's Bhageerathi Amma, Karthiyani Amma


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हैदराबाद का मुकाबला कोलकाता से, वॉर्नर के पास लीग में 5 हजार रन पूरे करने का मौका; शाम को पंजाब और मुंबई आमने-सामने

आईपीएल के 13वें सीजन में आज छठवां डबल हेडर (एक दिन में 2 मैच) है। पहले मैच में दोपहर 3.30 बजे अबु धाबी में सनराइजर्स हैदराबाद (SRH) और कोलकाता नाइट राइडर्स (KKR) का मुकाबला होगा। इसके बाद शाम 7.30 बजे दुबई में किंग्स इलेवन पंजाब (KXIP) और मुंबई इंडियंस (MI) आमने-सामने होंगी। लगातार दो मैचों में हार का सामना करने के बाद हैदराबाद और केकेआर हर हाल में जीत दर्ज करना चाहेंगी।

पहले मुकाबले में हैदराबाद के कप्तान डेविड वॉर्नर के पास आईपीएल में 5000 रन पूरे करने का मौका होगा। वे इस आंकड़े से सिर्फ 10 रन दूर हैं। लीग के इतिहास में अब तक विराट कोहली (5759), सुरेश रैना (5368) और रोहित शर्मा (5149) ही 5 हजार का आंकड़ा छू सके हैं।

पंजाब पॉइंट्स टेबल में सबसे नीचे

आज के दूसरे मुकाबले में फॉर्म में चल रही मुंबई इंडियंस का मुकाबला किंग्स इलेवन पंजाब से होगा। सीजन में लगातार 5 मैच हारने के बाद पंजाब ने पिछले मैच में बेंगलुरु को हराया था। वहीं, मुंबई ने केकेआर के खिलाफ आसान जीत दर्ज की थी। पंजाब 8 में से 2 मैच जीतकर पॉइंट्स टेबल में सबसे नीचे 8वें नंबर पर है। मुंबई 8 में से 6 मैच जीतकर दूसरे नंबर पर काबिज है।

कोलकाता नाइट राइडर्स ने अब तक 8 में से 4 मुकाबले जीते हैं। टीम 8 पॉइंट्स के साथ चौथे नंबर पर काबिज है। वहीं, सनराइजर्स हैदराबाद 8 में से 3 मैच जीतकर केकेआर के नीचे यानी 5वें नंबर पर है।

हैदराबाद-कोलकाता के सबसे महंगे खिलाड़ी
हैदराबाद के सबसे महंगे खिलाड़ी डेविड वॉर्नर हैं। उन्हें फ्रेंचाइजी सीजन के 12.50 करोड़ रुपए देगी। इसके बाद टीम के दूसरे महंगे खिलाड़ी मनीष पांडे (11 करोड़) हैं। वहीं कोलकाता के सबसे महंगे खिलाड़ी पैट कमिंस हैं। उन्हें सीजन के 15.50 करोड़ रुपए मिलेंगे। इसके बाद सुनील नरेल का नबंर आता है, जिन्हें सीजन के 12.50 करोड़ रुपए मिलेंगे।

पंजाब-मुंबई के सबसे महंगे खिलाड़ी
पंजाब में कप्तान लोकेश राहुल 11 करोड़ और ग्लेन मैक्सवेल 10.75 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं। वहीं, मुंबई में कप्तान रोहित शर्मा सबसे महंगे खिलाड़ी हैं। टीम उन्हें एक सीजन का 15 करोड़ रुपए देगी। उनके बाद टीम में हार्दिक पंड्या का नंबर आता है, उन्हें 11 करोड़ रुपए मिलेंगे।

पिच और मौसम रिपोर्ट
अबु धाबी और दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। अबु धाबी में तापमान 24 से 34 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। वहीं, दुबई में तापमान 22 से 36 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। दोनों जगह पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। अबु धाबी में टॉस जीतने वाली टीम पहले गेंदबाजी करना पसंद करेगी। वहीं, दुबई में टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी।

अबु धाबी में पिछले 44 टी-20 में पहले गेंदबाजी करने वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 56.81% रहा है। वहीं, दुबई में इस आईपीएल से पहले यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है।

दुबई में रिकॉर्ड

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122

अबु धाबी में रिकॉर्ड

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 44
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 19
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 25
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 137
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 128

कोलकाता और हैदराबाद ने 2-2 बार खिताब जीते
आईपीएल इतिहास में कोलकाता ने अब तक दो बार फाइनल (2014, 2012) खेला और दोनों बार चैम्पियन रही है। वहीं हैदराबाद ने भी अब तक दो बार (2016, 2009) में फाइनल खेला और जीत हासिल की।

मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार खिताब जीता
आईपीएल इतिहास में मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार (2019, 2017, 2015, 2013) खिताब जीता है। पिछली बार उसने फाइनल में चेन्नई को एक रन से हराया था। मुंबई ने अब तक पांच बार फाइनल खेला है। वहीं, पंजाब ने अब तक एक बार फाइनल (2014) खेला था। उसे केकेआर ने तीन विकेट से हराया था।

आईपीएल में हैदराबाद का सक्सेस रेट 52.58%, यह केकेआर से ज्यादा
हैदराबाद ने आईपीएल में 116 मैच खेले हैं। इसमें उसने 61 मैच जीते और 55 हारे हैं। यानि लीग में उसका सक्सेस रेट 52.58% है। वहीं कोलकाता ने 186 मैच खेले हैं। इसमें उसने 96 जीते और 90 मैच हारे हैं। यानि लीग में उसका सक्सेस रेट 52.41% है।

आईपीएल में मुंबई का सक्सेस रेट 58.71%, यह पंजाब से ज्यादा
लीग में मुंबई का सक्सेस रेट पंजाब से ज्यादा है। मुंबई ने आईपीएल में 195 मैच खेले हैं। इनमें से 115 मैच जीते और 80 हारे हैं, यानि लीग में उसका सक्सेस रेट 58.71% है। वहीं, लीग में पंजाब का सक्सेस रेट 45.38% है। पंजाब ने लीग में अब तक 184 मैच खेले, 84 जीते और 100 हारे हैं।



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IPL 2020, SRH Vs KKR - MI Vs KXIP Head To Head Record; Predicted Playing DREAM11, IPL Match Preview Update


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5 साल में सुकन्या समृद्धि खाते दोगुने हुए, देशभर में बेटियों के नाम 58,266 करोड़ रुपए जमा; झारखंड में 1016 करोड़ रुपए

(कुलदीप पारीक). नवरात्र के दाैरान देवी स्वरूप में पूजी जाने वाली बेटियाें से जुड़ी खुशखबर आई है। देश में पिछले पांच साल के दाैरान बेटियाें के नाम पर निवेश में जबर्दस्त बढ़ाेतरी हुई है। केंद्र सरकार की सुकन्या समृद्धि याेजना के आंकड़े बताते हैं कि इस दाैरान इस याेजना में खाताें की संख्या 85 लाख से बढ़कर एक करोड़ 70 लाख हो गई। यानी 100% बढ़ाेतरी हुई।

वहीं निवेश भी बढ़कर 58,266 करोड़ रुपए पहुंच गया। इन पांच सालाें में राष्ट्रीय स्तर पर 1000 बेटाें पर बेटियाें की संख्या भी 918 से बढ़कर 934 हाे गई। केंद्र सरकार ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को आगे बढ़ाते हुए 2015 में बेटियाें के उज्ज्वल भविष्य के लिए निवेश की सुकन्या समृद्धि योजना लॉन्च की थी।

इस याेजना में खाताें की संख्या 85 लाख से बढ़कर एक करोड़ 70 लाख हो गई



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देश में पिछले पांच साल के दाैरान बेटियाें के नाम पर निवेश में जबर्दस्त बढ़ाेतरी हुई है


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