Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

HELLO ALL FOLLOW US FOR LATEST NEWS

IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER

TODAY'S BREAKING NEWS SEE BELOW

IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER

DAILY TOP 100 NEWS

IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER

SHARE WITH YOUR SOCIAL NETWORK

IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER

THANKS FOR VISITING HERE

IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER

Saturday, December 26, 2020

किसान बोले- बात करेंगे, पर शर्तें नहीं छोड़ेंगे; NDA को 3 महीने में दूसरा झटका और केरल में कोरोना के नए स्ट्रेन का खतरा

नमस्कार!
मध्यप्रदेश सरकार ने लव जिहाद बिल को मंजूरी दी। बॉक्सिंग-डे टेस्ट में ऑस्ट्रेलियाई टीम पहले ही दिन ऑलआउट हो गई। अरुणाचल में चीन से मुकाबले के लिए बर्फ में डटे हैं ITBP के जवान। बहरहाल, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।

आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल में आखिरी बार मन की बात करेंगे। उन्होंने लोगों से अगले साल की योजनाओं के बारे में पूछा है।
  • कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने रविवार को मन की बात के दौरान लोगों से ताली-थाली बजाने की अपील की है।
  • गुजरात के साबरमती से केवड़िया के बीच बंद पड़ी सी प्लेन सर्विस आज से फिर शुरू होगी। प्लेन के मेंटेनेंस के चलते यह सर्विस बंद थी।

देश-विदेश
किसान बात करेंगे, शर्तें नहीं छोड़ेंगे

सरकार की तरफ से बातचीत के न्योते पर किसानों ने शनिवार को फैसला ले लिया। उन्होंने बातचीत के लिए सरकार को 29 दिसंबर की तारीख दी है। लेकिन, किसानों ने साफ कहा कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की संभावनाएं और मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) की कानूनी गारंटी बातचीत के एजेंडे में होनी चाहिए। किसान नेता राकेश टिकैत ने यह जानकारी दी। इधर, पंजाब में पूर्व सांसद हरिंदर सिंह खालसा ने किसानों के समर्थन में भाजपा से इस्तीफा दे दिया।

कृषि बिलों पर NDA से छूटते सहयोगी
कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल के बाद शनिवार को राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) भी NDA से अलग हो गई। अलवर के शाहजहांपुर-खेड़ा बॉर्डर पर RLP के संयोजक और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने इसका ऐलान किया। इससे पहले, केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद 26 सिंतबर को NDA का दो दशक से ज्यादा पुराना सहयोगी अकाली दल अलग हो गया था। यानी तीन महीनों में NDA को यह दूसरा बड़ा झटका लगा है।

PM मोदी का राहुल गांधी पर तंज
PM नरेंद्र मोदी ने शनिवार को जम्मू-कश्मीर में प्रधानमंत्री जय सेहत योजना की शुरुआत की। इस योजना में जम्मू-कश्मीर के सभी परिवारों को पांच लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस कवर मिलेगा। कार्यक्रम में मोदी ने पंचायत चुनाव की चर्चा करते हुए कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "दिल्ली में कुछ लोग मुझे सुबह-शाम लोकतंत्र का पाठ पढ़ाते हैं। ये वही लोग हैं, जिनकी सरकार ने पुडुचेरी में पंचायत चुनाव नहीं होने दिए।"

केरल में कोरोना के नए स्ट्रेन का खतरा
UK के बाद अब केरल में कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन की मौजूदगी का खतरा सामने आया है। यहां कोझिकोड़ में हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से कराए गए सर्वे में कोरोनावायरस के स्ट्रेन में बदलाव देखा गया है। अब यह सर्वे पूरे केरल में कराने की तैयारी है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा- वायरस के स्ट्रेन में मामूली बदलाव देखा गया है। हालांकि, यह बदलाव UK में मिले नए स्ट्रेन जैसा नहीं है। स्ट्रेन में आए बदलाव पर एक्सपर्ट रिसर्च कर रहे हैं।

MP में लव जिहाद के खिलाफ बिल पास
मध्यप्रदेश में लव जिहाद के खिलाफ प्रस्तावित बिल धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020 के ड्राफ्ट को कैबिनेट ने अपनी मंजूरी दे दी है। अब इसे 28 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में पेश किया जाएगा। शनिवार कैबिनेट की बैठक में ड्राफ्ट को हरी झंडी मिली। इसमें कानून को और सख्त बनाने का फैसला लिया गया। कहा जा रहा है कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तेजी से यह कानून बनाया है, उसी की राह पर शिवराज सरकार भी आगे बढ़ रही है।

चीनी घुसपैठ रोकने LAC पर ITBP मुस्तैद
पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर भारत और चीन के बीच तनाव जारी है। इस बीच अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (ITBP) के जवान हाई अलर्ट पर हैं। बर्फीले मौसम में जवान स्नो-सूट पहनकर सीमा पर जीरो लाइन तक पेट्रोलिंग कर रहे हैं। ITBP की 55वीं बटालियन के कमांडर आईबी झा ने बताया कि चीन अब हमें चकमा नहीं दे सकता। हमारे जवान पूरी तरह चौकन्ने और मुस्तैद हैं।

देश में आतंकी घुसपैठ का नया रूट
पाकिस्तान अब आतंकियों को भारत में दाखिल कराने के लिए जम्मू-कश्मीर और पंजाब के अलावा राजस्थान और गुजरात से घुसपैठ करने की फिराक में है। BSF अधिकारियों ने बताया कि इस साल नवंबर के पहले हफ्ते तक जम्मू, कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात से लगे बॉर्डर से घुसपैठ की 11 घटनाएं रिकॉर्ड हुईं। इस साल जम्मू और पंजाब बॉर्डर से सबसे ज्यादा 4-4 घुसपैठ की घटनाएं सामने आईं।

बॉक्सिंग-डे टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया ऑलआउट
मेलबर्न में खेले जा रहे बॉक्सिंग-डे टेस्ट में पहले दिन भारतीय टीम ने 1 विकेट गंवाकर 36 रन बना लिए। ऑस्ट्रेलिया टीम पहली पारी में 195 रन पर सिमट गई। इस लिहाज से टीम ने 159 रन की बढ़त ले ली है। क्रिकेट इतिहास में 5वीं बार ऑस्ट्रेलिया टीम बॉक्सिंग-डे टेस्ट के पहले दिन ऑलआउट हुई है। इससे पहले ऑस्ट्रेलिया 2011 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट के पहले दिन 98 रन ही बना सकी थी।

एक्सप्लेनर
जम्मू-कश्मीर में AB-PMJAY

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य (AB-PMJAY) सेहत योजना को वर्चुअली लॉन्च किया। इसके तहत पांच लाख रुपए का हेल्थ इंश्योरेंस कवर मिलता है। यह योजना कई राज्यों में पहले से चल रही है। लेकिन, जम्मू-कश्मीर ऐसा पहला राज्य है जहां हर परिवार को स्कीम का लाभ मिलेगा। इस योजना में क्या-क्या कवर होता है और लोग इसका फायदा कैसे ले सकते हैं? जानिए यहां...

पढ़ें पूरी खबर...
पॉजिटिव खबर
दो किलो का अमरूद उगाकर लाखों की कमाई

आपने कभी डेढ़ से दो किलो का अमरूद देखा है ? आज हम आपको ऐसे किसान से मिलवाने जा रहे हैं, जो नई तकनीक से अमरूद की खेती करते हैं। गुजरात के टंकारा तहसील के रहने वाले मगन कामरिया इस तकनीक से डेढ़ से दो किलो का एक अमरूद उगाते हैं। आज वो 50 एकड़ से ज्यादा जमीन पर अमरूद की खेती कर रहे हैं। इससे सालाना 10 लाख रुपए की कमाई हो रही है। कई किसान उनसे ट्रेनिंग भी ले रहे हैं।
पढ़ें पूरी खबर...

सुर्खियों में और क्या है

  • 26 जनवरी और आर्मी डे की परेड में शामिल होने दिल्ली पहुंचे सेना के 150 जवान संक्रमित मिले हैं। देशभर से करीब 2000 जवान नवंबर के आखिर में दिल्ली आए थे।
  • कोरोना के एक्टिव मरीजों के मामले में भारत अब दुनिया का 10वां देश हो गया है। देश में 2.80 लाख एक्टिव मरीज हैं। 95.65% मरीज ठीक हुए, जबकि 1.44% की मौत हुई।
  • ब्रिटेन में मिले कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन से संक्रमित मरीज दूसरे देशों में भी सामने आने लगे हैं। जापान और फ्रांस के बाद स्पेन में भी शनिवार को इसके चार मरीज मिले हैं।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
The farmers said - they will talk, but will not give up the conditions; NDA's second setback in 3 months and threat of new corona strain in Kerala


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3pr3TxY
via IFTTT
Share:

कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, हमें काम के महत्व को समझना चाहिए

कहानी- महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल होने के लिए कोलकाता पहुंचे थे। उस समय उन्हें मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से ही जाना जाता था। जब वे कोलकाता में कांग्रेस कार्यालय पहुंचे, तो वहां उनकी मुलाकात घोषाल जी से हुई।

घोषाल जी ही कांग्रेस कार्यालय का कामकाज देख रहे थे। गांधीजी ने उनसे कहा, 'मैं यहां काम करने आया हूं। कोई काम हो तो बताएं।'

घोषाल जी ने गांधी को देखा तो उन्हें लगा कि ये क्या काम करेगा? कुछ सोचकर वे बोले, 'मेरे पास कोई बहुत बड़ा काम नहीं है। यहां बहुत से पत्र आए हुए हैं। इनमें से जो उपयुक्त हैं, उन्हें अलग निकालना है और उनके उत्तर देना है। क्या तुम ये काम कर सकते हो?'

गांधीजी इस काम के लिए तैयार हो गए और उन्होंने पत्रों के जवाब भी दे दिए। घोषाल जी को ये देखकर आश्चर्य हुआ कि एक-एक पत्र को गंभीरता से पढ़ा गया और उनके सही उत्तर भी गांधीजी द्वारा दिए गए।

घोषाल जी कार्यालय से निकलने लगे तो उनकी शर्ट के बटन गांधीजी ने लगा दिए। आमतौर ये काम घोषाल जी का सेवक ही करता था। जब गांधीजी ने बटन लगाए तो घोषाल जी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने गांधीजी के बारे जानकारी निकाली तो मालूम हुआ कि वे कितने पढ़े-लिखे हैं।

घोषाल जी हैरान रह गए कि इतना पढ़ा-लिखा व्यक्ति और सेवा करने की ऐसी भावना। उस दिन घोषाल जी ने गांधीजी से एक शिक्षा ली थी कि कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता है।

सीख- हमारी नीयत, इरादे और समझ के आधार काम का महत्व तय होता है। कुछ लोग जो बड़े पद पर होते हैं, उन्हें लगता है कि वे छोटे काम कैसे कर सकते हैं। लेकिन, जीवन में कभी-कभी ऐसे अवसर भी आते हैं जब हमें सामान्य काम भी करने पड़ते हैं। उस समय काम के महत्व को समझें। कभी भी अपने पद पर घमंड नहीं करना चाहिए।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, we should understand the importance of work, tips for success


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2WKCwmr
via IFTTT
Share:

खेती में फायदा नहीं हुआ तो नई तकनीक से अमरूद उगाना शुरू किया, अब हर साल 10 लाख की कमाई

क्या आपने कभी डेढ़ से दो किलो का अमरूद देखा है ? आज हम आपको एक ऐसे ही किसान से मिलवाने जा रहे हैं, जो अपने खेत में इतने बड़े अमरूद उगाते हैं। गुजरात के टंकारा तहसील के रहने वाले मगन कामरिया नई तकनीक से अमरूद की खेती करते हैं। जिससे बड़े आकार और 2 किलो तक वजन का अमरूद पैदा होता है। अब वे 50 एकड़ से ज्यादा जमीन पर अमरूद की खेती कर रहे हैं। इससे उन्हें हर साल 10 लाख रुपए की कमाई हो रही है।

मगन कहते हैं कि पहले वे कपास, मूंगफली और जीरा उगाते थे। लेकिन, उसमें लागत के हिसाब से कमाई नहीं हो रही थी। पांच साल पहले उन्हें इजरायली तकनीक से उगाए जाने वाले अमरूद के बारे में पता चला। उन्होंने तय किया कि वे भी अमरूद की खेती करेंगे। इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ के रायपुर से थाईलैंड में उगाए जाने वाले अमरूद के 5 हजार पौधे मंगाए।

इजराइली तकनीक से अमरूद उगाते हैं
मगन कहते हैं कि मैंने सबसे पहले इजरायली टेक्नोलॉजी से अमरूद उगाना सीखा। इसमें टपक विधि से सिंचाई करते हैं। पौधों पर बूंद-बूंद पानी टपकाया जाता है। इससे फसल अच्छी होती है और पानी की खपत भी कम होती है। इतना ही नहीं, रोज-रोज की सिंचाई से छुटकारा मिल जाता है।

मगन के पास सूरत, नवसारी, वडोदरा, अहमदाबाद, मोरबी और राजकोट तक से व्यापारी अमरूद खरीदने आते हैं।

डेढ़ साल में ही मेहनत रंग लाई
करीब एक-डेढ़ साल की मेहनत के बाद ही मगन को उनकी मेहनत का फल अमरूद के रूप में मिलने लगा। कम ऊंचाई वाले पौधों में ही 350 ग्राम से डेढ़ किलो वजन तक के अमरूद उगने लगे। इन अमरूदों का स्वाद भी इतना अच्छा था कि उन्हें इसकी अच्छी कीमत मिली।

दूसरी फसलों से कम मेहनत लगती है
खेती में मगन का साथ देने वाली उनकी पत्नी पुष्पाबेन बताती हैं कि इन पौधों की बहुत देखरेख करनी पड़ती है। हर पौधे की जांच करनी पड़ती है कि वे कीड़ों का शिकार न हो जाएं। हालांकि, कुछ घरेलू नुस्खों से ही फसल की सुरक्षा की जा सकती है। इसके बावजूद वे कहती हैं कि इसमें दूसरी फसलों से कम मेहनत लगती है।

खेत से ही बिक जाते हैं अमरूद

आज मगन 50 एकड़ से ज्यादा जमीन पर अमरूद की खेती कर रहे हैं। इस साल उनके खेत में 35 टन अमरूद का उत्पादन हुआ है।

मगन बताते हैं कि इन अमरूदों के बारे में कहावत है कि 'एक बार चखोगे तो याद रखोगे'। इनका स्वाद इतना अच्छा होता है कि लोगों की इनकी लग जाती है। इसी वजह से इन अमरूदों की बहुत डिमांड है। वे बताते हैं कि आज उनके अमरूद इतने फेमस हो गए हैं कि अब इन्हें बेचने बाजार नहीं ले जाना पड़ता। खेत से ही सारे अमरूद बिक जाते हैं। सूरत, नवसारी, वडोदरा, अहमदाबाद, मोरबी और राजकोट तक से व्यापारी उनके पास आते हैं।

कैसे करें ऑर्गेनिक अमरूद की खेती
ऑर्गेनिक अमरूद की बागवानी शुरू करने से पहले रिसर्च जरूरी है। आपको जहां खेती करनी है वहां के मार्केट, डिमांड और ट्रांसपोर्टेशन के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसके साथ ही हम जिस जमीन पर बागवानी शुरू करने जा रहे हैं, वो कम पानी वाली होनी चाहिए। केमिकल की जगह ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है।

दो पौधों के बीच 9/6 की दूरी होनी चाहिए। जुलाई से सितंबर के महीने पौधे लगाए जाते हैं। अच्छे किस्म की अमरूद के पौधे लगभग एक साल में तैयार हो जाते हैं। पहले साल में एक पौधे से 6-7 किलो तक अमरूद निकलता है। कुछ समय बाद 10-12 किलो तक उत्पादन होने लगता है।

मगन की पत्नी पुष्पाबेन बताती हैं कि हर पौधे की यह भी जांच करनी पड़ती है कि वे कीड़ों का शिकार न हो जाएं।

क्या- क्या सावधानियां जरूरी?

अमरूद की बागवानी के लिए सही समय और सही मिट्टी का होना जरूरी है। इस पर क्लाइमेट और बारिश का असर ज्यादा होता है, इसलिए उसके लिए पहले से तैयारी जरूरी है। ज्यादा प्रोडक्शन के लिए अक्सर लोग केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग करने लगते हैं। लेकिन, हमें इससे बचना चाहिए। इससे प्लांट को नुकसान तो होता ही है, साथ ही हमारी जमीन की सेहत के लिए भी ये ठीक नहीं होता है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
गुजरात की टंकारा तहसील में रहने वाले मगन कामरिया के अमरूद इतने फेमस हैं कि अब व्यापारी खेत से ही उनकी फसल खरीद ले जाते हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3nVjPIs
via IFTTT
Share:

कहानी उस मशहूर शायर की जो अपने शौक के चलते कर्जदार हो गया, जुए की लत के चलते 3 महीने जेल में कटे

'होगा कोई ऐसा जो 'गालिब' को न जाने, शायर तो अच्छा है पर बदनाम बहुत है..' ये शेर है मिर्जा असदुल्लाह बेग खान का, जिन्हें लोग मिर्जा गालिब के नाम से जानते हैं। गालिब उनका तखल्लुस (पेन नेम) था। इसी नाम से वो शेरो-शायरी करते थे। उनके दादा उज्बेकिस्तान से भारत आए थे। मिर्जा गालिब का जन्म आज ही के दिन 1797 में आगरा के एक दौलतमंद खानदान में हुआ था। उनकी शादी भी दिल्ली के एक रईस खानदान की लड़की से हुई थी। मगर उनकी जिंदगी मुश्किलों में ही गुजरी। गालिब के सात बच्चे हुए और कोई भी दो साल से ज्यादा नहीं जी पाया।

शराब पीने के बड़े शौकीन, वो भी महंगी और अंग्रेजी वाली
इस्लाम में शराब को हराम माना जाता है, लेकिन गालिब को शराब पीने का बहुत शौक था। वो भी महंगी और अंग्रेजी। भले ही पैसों की कितनी ही किल्लत हो। चाहे सैकड़ों किलोमीटर दूर जाकर शराब लानी पड़े, लेकिन लाते थे और पीते थे।

एक शाम मिर्जा को शराब न मिली, तो वो नमाज पढ़ने चले गए। इतने में उनका एक शागिर्द आया और उसने गालिब को शराब की बोतल दिखाई। बोतल देखते ही गालिब मस्जिद से निकलने लगे, तो किसी ने कहा- 'ये क्या कि बगैर नमाज पढ़े चल दिए?' तो गालिब बोले 'जिस चीज के लिए दुआ मांगना थी, वो तो यूंही मिल गई।'

मिर्जा गालिब दौलतमंद जरूर थे, लेकिन उनके नवाबी शौक ने उन्हें कर्जदार बना दिया था। बताते हैं कि उस समय उन पर 40 हजार रुपए से ज्यादा का कर्ज हो गया था। उस समय 40 हजार बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। कर्ज न चुकाने के आरोप में एक बार उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।

महफिलों से ज्यादा इज्जत जुआरी देते थे
ऐसा कहा जाता है कि मिर्जा गालिब को जितनी इज्जत महफिलों में मिलती थी, उससे कहीं ज्यादा इज्जत उन्हें दिल्ली के जुआरी देते थे। उन्हें जुआ खेलने की जबरदस्त आदत थी। इसके लिए उन्हें 6 महीनों की जेल भी हुई थी। मिर्जा गालिब के रिश्ते उस समय के दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफर से बहुत अच्छे थे।

बादशाह जफर ने गालिब को जेल से छोड़ने की सिफारिश भी की, लेकिन उनकी एक न चली। वो इसलिए भी, क्योंकि उस वक्त तक मुगलों की नहीं बल्कि अंग्रेजों की चलने लगी थी। बाद में मिर्जा गालिब ने बहुत जुगाड़ लगाया और तीन महीने में जेल से छूट गए।

गालिब की मौत की खबर 17 फरवरी 1869 को एक उर्दू अखबार में छपी थी। लेकिन उनकी मौत 15 फरवरी को ही हो चुकी थी।

पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री की हत्या
27 दिसंबर 2007 को एक धमाके में बेनजीर भुट्टो की मौत हो गई। बेनजीर पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, बल्कि किसी मुस्लिम देश की भी पहली महिला थीं, जो प्रधानमंत्री बनीं। 27 तारीख की शाम को बेनजीर रावलपिंडी से एक चुनावी रैली करके लौट रही थीं। तभी हमलावर उनकी कार के पास आया और बेनजीर को गोली मार दी। बाद में खुद को भी उड़ा लिया। बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं। पहली बार 1988 से 1990 तक और दूसरी बार 1993 से 1996 तक।

भारत और दुनिया में 27 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं :

  • 1911 : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता (अब कोलकाता) अधिवेशन के दौरान पहली बार ‘जन गण मन’ गाया गया।
  • 1939 : तुर्की में भूकंप से लगभग चालीस हजार लोगों की मौत।
  • 1960 : फ्रांस ने अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में तीसरा परमाणु परीक्षण किया और परमाणु प्रक्षेपास्त्र विकसित करने के रास्ते पर एक कदम और आगे बढ़ गया।
  • 1965 : बॉलीवुड एक्टर सलमान खान का जन्म।
  • 1975 : झारखंड के धनबाद जिले में चासनाला कोयला खदान दुर्घटना में 372 लोगों की मौत।
  • 1979 : अफगानिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद सोवियत सेना ने हमला किया।
  • 2000 : ऑस्ट्रेलिया में विवाह पूर्व संबंधों को कानूनी मान्यता दी गई।
  • 2008 : वी. शान्ताराम पुरस्कार समारोह में 'तारे जमीं पर' को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला।
  • 2013 : बॉलीवुड अभिनेता फारुख शेख का निधन।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Today History: Aaj Ka Itihas India World 27 December Update | Mirza Ghalib Facts, Pakistan Benazir Bhutto Assassination


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2WLD7V1
via IFTTT
Share:

कोरोना से भी जानलेवा है वायु प्रदूषण; जिनके घर सड़क के पास, उन्हें बीमारियों का ज्यादा खतरा

वायु प्रदूषण कोरोनावायरस से भी ज्यादा खतरनाक है। इसका सबूत हाल में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की एक रिपोर्ट में मिला है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत हुई। यह आंकड़ा 2020 में देश में कोरोना महामारी से हुई कुल मौतों से करीब 12 गुना ज्यादा है। देश में कोरोना से अब तक 1.47 लाख लोगों की जान गई है।

यही नहीं, वायु प्रदूषण के कारण देश को 2.60 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ है। फिलहाल देश में करीब 14 करोड़ लोग खराब हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 भारत में ही हैं। ऐसे में खराब हवा स्वस्थ लोगों को भी बीमार बना रही है और पहले से बीमार लोगों के लिए जानलेवा बन रही है।

वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियां कौन सी हैं?

एम्स (AIIMS) दिल्ली में रुमेटोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड डॉक्टर उमा कुमार कहती हैं। वायु प्रदूषण से सभी तरह की नॉन कम्युनिकेबल डिजीज का खतरा होता है। हार्ट, कार्डियो वैस्कुलर, ऑटो इम्युन डिजीज का भी सबसे ज्यादा खतरा होता है।

हाल ही में ब्रिटेन में हुई एक स्टडी के मुताबिक एयर पॉल्यूशन ज्यादा होने से कोरोना होने की आशंका बढ़ जाती है। एयर पॉल्यूशन की वजह से ओजोन की लेअर डैमेज हो रही है। इसका सीधा संबंध अल्ट्रा वॉयलट किरणों से है। वहीं, इससे शरीर में विटामिन D की कमी भी हो सकती है।

प्रदूषण से हुई मौतों के मायने क्या हैं?

ICMR की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडोर वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 1990 से 2019 तक 64% की कमी आई है। लेकिन, आउटडोर हवा में मौजूद प्रदूषण से होने वाली मौतों में 115% का इजाफा हुआ है।

वायु प्रदूषण किस बीमारी के लिए कितना जिम्मेदार?

  • ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव ने बताया कि अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि वायु प्रदूषण फेंफड़ों से जुड़ी बीमारियों के 40% मामलों के लिए जिम्मेदार है।
  • हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, डायबिटीज और समय से पहले पैदा होने वाले नवजात बच्चों की मौत के लिए वायु प्रदूषण 60% तक जिम्मेदार है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि वायु प्रदूषण रोकने के लिए सही उपाय नहीं किए, तो भारत को बड़ा खामियाजा उठाना पड़ेगा।
  • वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें, बीमारियां और आर्थिक नुकसान की वजह से भारत का 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना भी टूट सकता है।

इस रिपोर्ट से सीखने वाली 3 अहम बातें क्या हैं?

  1. वायु प्रदूषण के खतरों के प्रति जागरुकता की जरूरत है।
  2. सरकार को वायु प्रदूषण रोकने के लिए बड़े और कड़े कदम उठाने होंगे।
  3. आम लोगों से भी प्रदूषण रोकने में सहयोग की दरकार होगी।

वायु प्रदूषण में सबसे अहम रोल किन चीजों का है?

डॉक्टर उमा कहती है कि वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा रोल गाड़ियों से होने वाले पॉल्यूशन का होता है। गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ और उड़ने वाली धूल दोनों सेहत के नुकसानदायक हैं। हमने कुछ समय पहले एक स्टडी की थी। उसमें पाया था कि जिनका घर सड़क से जितना ज्यादा करीब होता है, उन लोगों में ऑटो इम्युन डिजीज का खतरा उतना ज्यादा होता है। इसे हमने सरोगेट पॉल्यूशन नाम दिया। इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि घर मुख्य सड़क से दूर खरीदें।

इसके अलावा एयर पॉल्यूशन सिर्फ आउटडोर ही नहीं, इनडोर होता है। दोनों पॉल्यूशन बराबर तौर पर सेहत के लिए खतरनाक हैं। इंडोर पॉल्यूशन से बचने के लिए आप एयर प्यूरीफायर भी लगवा सकते हैं, यह प्रदूषण को कम करने में थोड़ा बहुत मददगार है।

टोबेको पॉल्यूशन एयर पॉल्यूशन से भी ज्यादा खतरनाक

  • एम्स दिल्ली में डीएम कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर संजय कुमार चुघ कहते हैं टोबेको पॉल्यूशन, एयर पॉल्यूशन से भी ज्यादा खतरनाक हैं। इसके अलावा वॉटर, फूड, नॉइज पॉल्यूशन भी बहुत खतरनाक हैं। इसलिए हमें एयर के साथ बाकी पॉल्यूशन से भी दूर रहना चाहिए।
  • एयर पॉल्यूशन सांस के मरीजों के बहुत ज्यादा खतरनाक है। हवा में प्रदूषण होने से ऑक्सीजन का लेवल कम हो जाता है। इसके चलते थकान लगती है और काम करने की क्षमता में भी कमी आती है।

क्या भारतीय कानून हमें प्रदूषण से बचा सकते हैं?
भारत में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए साल 1981 में एक एयर एक्ट लागू किया गया था, लेकिन पिछले 40 साल में इस कानून के तहत दर्ज किए गए मुकदमों की संख्या न के बराबर है। वहीं इन 40 सालों में भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच चुका है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Coronavirus Vs Air Pollution Cases In India Update; 16.7 Lakh People Died In India Due To Air Pollution In 2019; वायु प्रदूषण कोरोनावायरस से भी ज्यादा खतरनाक है। इसका सबूत हाल में ICMR(इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में मिला है। इसके मुताबिक 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत हुई है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3nVHJUu
via IFTTT
Share:

तेजी से बढ़ रहा है बुजुर्ग मां-बाप की देखरेख का खर्च, आसान नहीं है इसकी तैयारी

कुछ दशक पहले ज्यादातर लोग संयुक्त परिवारों में रहते थे। बड़े सदस्य बच्चों की और बच्चे बड़े सदस्यों की आसानी से देखभाल कर पाते थे। लेकिन, बढ़ते शहरीकरण और एकल परिवारों ने कई बदलाव किए हैं। अब बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य की देखभाल न सिर्फ मुश्किल है, बल्कि काफी खर्चीली भी हो गई है।

खासकर जब बात बुजुर्गों की देखभाल की हो, तो मामला और पेचीदा हो जाता है। क्योंकि, बुजुर्गों की प्रतिरक्षा शक्ति और घाव भरने की क्षमता उम्र बढ़ने के साथ काफी कम हो जाती है। पहले जब लोगों के कई बच्चे होते थे, तब बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल का काम अपेक्षाकृत आसान होता था, लेकिन अब सिर्फ एक या दो बच्चों पर ही मां-बाप की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी होती है।

भारत में तेजी से बढ़ रही बुजुर्गों की आबादी
नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2003 तक भारत में हर महिला के औसतन 3 बच्चे होते थे। लेकिन, 2017 में लैंसेट में प्रकाशित यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की रिपोर्ट के मुताबिक यह आंकड़ा प्रति महिला करीब 2.2 तक पहुंच गया है। यानी जनसंख्या वृद्धि दर मंद पड़ चुकी है। अगर यह दर 2.1 हो गई तो यह रिप्लेसमेंट रेट पर पहुंच जाएगी। यानी जन्म दर 2.1 होने पर जनसंख्या नहीं बढ़ेगी। उतने ही लोग पैदा होंगे, जितनों की मौत होगी।

संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक भारत में जन्मदर में 2040 तक धीमी गिरावट जारी रहेगी, फिर जनसंख्या में स्थिरता आ जाएगी। भारत सरकार ने भी 2018-19 की नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी के तहत 2045 तक जनसंख्या में स्थिरता लाने का लक्ष्य रखा है। इसका मतलब होगा कि बच्चे कम पैदा होंगे। मेडिकल सुविधाएं बढ़ने से औसत आय बढ़ेगी और इससे बुजुर्गों की संख्या भी तेजी से बढ़ेगी। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र का अनुमान कहता है कि 2050 तक भारत की कुल जनसंख्या में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या 19% हो जाएगी। इसके साथ ही बढ़ जाएगी बुजुर्गों के स्वास्थ्य की चिंता।

इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, BHU के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ इंद्रजीत सिंह गंभीर इस उभरती समस्या पर कहते हैं, 'फिलहाल स्थिति बहुत गंभीर नहीं है। भारत को 'डबल हम्प' कहा जाता है। यानी यहां बूढ़ों और बच्चों दोनों की बड़ी आबादी रहेगी। अगले 20-30 साल तक चिंता की जरूरत नहीं है।' वे यह भी कहते हैं कि 2050 तक देश का हर पांचवां नागरिक बुजुर्ग होगा, इसलिए हमें तैयार रहना चाहिए।

60 पार के ज्यादातर बुजुर्गों को गंभीर बीमारियां
बुजुर्गों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी चिंता का विषय है। ऐसा इसलिए, क्योंकि WHO के अनुमान के मुताबिक 2030 तक भारत में स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्च का 45% बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर किया जाएगा। भारत में 60 की उम्र के पार के 40% से ज्यादा बुजुर्ग हाई ब्लडप्रेशर और 30% से ज्यादा टाइप-2 डायबिटीज जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं।

वृद्धाश्रमों में रहने वाले बुजुर्गों की हालत सबसे गंभीर
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) के एक सर्वे के मुताबिक उन बुजुर्गों के लिए खतरा सबसे ज्यादा है जो वृद्धाश्रमों में रहते हैं। करीब आधे डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। एक बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर पढ़े-लिखे नहीं है। उन्होंने सारा जीवन असंगठित क्षेत्र में काम करते हुए बिताया है। इससे उनका सामाजिक सुरक्षा का ताना-बाना काफी कमजोर था। भोपाल में 'अपना घर' नाम का वृद्धाश्रम चलाने वाली माधुरी मिश्रा बताती हैं कि उनके वृद्धाश्रम में फिलहाल 24 बुजुर्ग हैं। जिनमें से 6 चल-फिर नहीं सकते। यह आंकड़ा आम बुजुर्गों के मुकाबले बहुत ज्यादा था।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज के प्रोफेसर एसके सिंह कहते हैं, 'यह बात सच है कि कुल आबादी में बुजुर्ग सबसे ज्यादा खतरे में हैं।' वे इसके लिए मुंबई में कोरोना से हो चुकी रिकॉर्ड 11 हजार से ज्यादा मौतों का उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं, 'जान गंवाने वाले लोगों में 50% से ज्यादा की उम्र 60 से ऊपर थी।' इसी डर के चलते पिछले महीनों में हेल्थ इंश्योरेंस लेने वालों की संख्या में भारी उछाल देखा गया।

तेजी से बढ़े हेल्थ इंश्योरेंस लेने वाले लोग
द मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020-21 के शुरुआती 6 महीनों में हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम में 16% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों से लगातार बुजुर्ग माता-पिता और संबंधियों के स्वास्थ्य संबंधी खर्च आसानी से उठाने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस लेने का चलन बढ़ रहा था। यहां कुछ ऐसी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का जिक्र है, जो ग्राहकों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय रही हैं...

हेल्थ इंश्योरेंस बढ़ने के बावजूद इंवेस्टमेंट कंपनी सिक्योर इंवेस्टमेंट में सेल्स एक्जीक्यूटिव मुकेश कुमार कहते हैं, 'यह आसान नहीं होता। इंश्योरेंस से पहले होने वाले मेडिकल टेस्ट में अगर किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की जानकारी मिलती है, तो कई बार कंपनियां इंश्योरेंस देने से मना कर देती हैं। ऐसी हालत में अगर वे इंश्योरेंस देने को तैयार भी होती हैं तो वे प्रीमियम को कई गुना बढ़ा देती हैं।'

इंश्योरेंस तो बढ़े लेकिन स्वास्थ्य पर खर्च नहीं घटा
मुकेश बताते हैं, 'कई बार इंश्योरेंस का फायदा हॉस्पिटलों को होता है और लोगों को नुकसान। हॉस्पिटल हल्की-फुल्की बीमारी में ही मरीज को भर्ती कर लेते हैं ताकि कमाई कर सकें। वे बिल बनाकर इंश्योरेंस कंपनी से पैसे पा जाते हैं, लेकिन मरीज को जब गंभीर जरूरत होती है, तो इंश्योरेंस कंपनियां कई छिपी शर्तों के जरिए क्लेम देने से मना कर देती हैं।' इस बात पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज में प्रोफेसर डॉ संजय मोहंती कहते हैं कि यही वजह है कि हेल्थ इंश्योरेंस के तेजी से बढ़ने के बावजूद खर्च में कमी नहीं आई है। इसके लिए वे ओडिशा सरकार की बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना का उदाहरण देते हैं। जिसके तहत गंभीर बीमारियों का इलाज देने से मना करने के मामले सामने आए हैं।

एसोसिएशन ऑफ जेरेन्टोलॉजी इंडिया के अध्यक्ष और BHU के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ शुक्ला प्रसाद कहते हैं, 'इंश्योरेंस दिलाना एक माध्यम हो सकता है, लेकिन बुजुर्गों को एश्योरेंस की ज्यादा जरूरत है। इसके लिए सरकारों को उन्हें ध्यान में रखकर योजनाएं बनानी होंगी और प्राइवेट इंश्योरेंस पॉलिसी को रेगुलेट करना होगा। ताकि वे क्लेम देने से मना न करें।' बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर खर्चों में होने वाली बढ़ोतरी से निपटने के लिए सबसे जरूरी इन पर सरकार के फोकस को बढ़ाना है।

बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियों पर बढ़ाना होगा फोकस
स्वास्थ्य पत्रकार बनजोत कौर कहती हैं, '2019 में सरकार ने जीडीपी का 1.2% स्वास्थ्य पर खर्च किया। हमेशा की तरह इसमें से ज्यादातर खर्च नेशनल हेल्थ मिशन के तहत गर्भवती महिलाओं और शिशुओं पर हुआ। बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए सरकार को इसके लिए खर्च को बढ़ाने की जरूरत है।'

डॉ मोहंती कहते हैं, 'बच्चे और मां के सामने आगे 50 से 70 साल की जिंदगी होती है। ऐसे में यह खर्च सही भी है।' उन्होंने कहा, 'सामाजिक न्याय विभाग बुजुर्गों की समस्याओं के लिए सहायता देता है। केंद्र सरकार भी आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रम के तहत इनकी बीमारियों पर फोकस कर रही है। लेकिन, अभी ऐसी योजनाएं बहुत शुरुआती अवस्था में हैं। ऐसे में प्रभाव का सही आकलन नहीं हो सकता। लेकिन, यह तय है कि ऐसी योजनाओं के तहत इन गंभीर बीमारियों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।'

इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डॉ गंभीर बुजुर्गों की बढ़ती आबादी को देखते हुए बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियों के लिए तैयारी को समर्पित एक संस्थान की जरूरत बताते हुए कहते हैं, 'बुढ़ापे से संबंधित रोगों के प्रति गंभीरता बढ़ी है। कई मेडिकल कॉलेजों में इससे संबंधित विभाग खुले हैं और इसकी पढ़ाई शुरू हुई है, लेकिन सरकार के प्रयासों के बाद भी अब तक बुढ़ापे से जुड़े रोगों को समर्पित कोई केंद्रीय संस्थान नहीं खुल सका है।'



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Senior Citizen Health Plan | Middle-Aged Percentage In India Update; Medical Expenditure For Senior Citizens And Common Elderly Illnesses?


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3poN9aB
via IFTTT
Share:

सच यही है कि देवी की तरह पूजी जाती लड़कियां मर्दाना धरती पर उनकी मामूली नुमाइंदा तक नहीं बन पाई हैं

हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने तमाम सरकारी कामों की शुरुआत बेटियों की पूजा से करने को कहा है। यानी आने वाले दिनों में सरकारी महकमे बेटियों के पांव धोते और उन्हें तिलक लगाते दिख जाएंगे। यह एक तरह का सरकारिया एलान है कि भई हमने तो स्त्री को शक्ति मान लिया। देखो, उसकी पूजा भी कर दी। अब तो खुश!

लेकिन क्या इससे कुछ भी बदलने वाला है? क्या पूजा होते ही लड़कियों के आसपास एक सुनहरा घेरा बन जाएगा, जो सड़क से लेकर दफ्तर तक ताक में बैठे मर्दों को रोकेगा! घूरो मत, छेड़ो मत, हाथ न लगाओ, फलां लड़की कल-परसों या बीते साल पूजी गई थी। न! ये सब कुछ नहीं होगा, बल्कि होगा ये कि माथे पर तिलक की जगह जख्म ले लेगा,आंखों में चमक की जगह आंसू होंगे और जिन हाथों ने पांव धोए थे, उनमें से ही कोई हाथ उसके वजूद को रौंद रहा होगा।

कुल मिलाकर सच यही है कि देवी की तरह पूजी जाती लड़कियां मर्दाना धरती पर उनकी मामूली नुमाइंदा तक नहीं बन पाई हैं। उन्हें देवी, माता, रूहानी ताकत से भरपूर मानने वाला देश उन पर ही हिंसा के नए कीर्तिमान बना रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) का 2019 का डेटा बताता है कि 4 लाख से ज्यादा औरतों ने सालभर में किसी न किसी किस्म की गंभीर हिंसा की शिकायत दर्ज करवाई। ये आंकड़ा 2018 से 7.3%ज्यादा रहा।

ये तो हुई उन मामलों की बात जो पुलिस की फाइलों में दर्ज हो पाते हैं। कितने मामले किसी रिकॉर्ड में आने से रह जाते हैं, यह समझने के लिए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) ने पुलिस के साथ मिलकर एक सर्वे कराया। नतीजों ने अधिकारियों को चौंका दिया। इसके मुताबिक यौन शोषण के लगभग 99.1% मामले सामने ही नहीं आ पाते। इनमें से ज्यादातर मामले कम उम्र लड़कियों के साथ उन्हीं के रिश्तेदारों से जुड़े होते हैं। तब देवी को किसी मामा, किसी चाचा-ताऊ या पिता की इज्जत के हवाले से चुप करा दिया जाता है।

कोरोना महामारी के दौरान देवियां की पूजा और तबीयत से हो रही है। ज्यादातर दफ्तर बंद हैं, कामकाज घर से हो रहे हैं। अब जब बीवी सारा दिन आंखों के सामने डोलेगी, तो शौहर बेचारा आखिर करे भी क्या! तो बेचारों ने खलिहर बीवी के साथ मारपीट शुरू कर दी। NCRB के मुताबिक, घरों में किसी भी तरह की हिंसा सहने वाली लगभग 86% औरतें कभी मुंह नहीं खोलतीं। यौन हिंसा, मारपीट या तानों की सुई हद से ज्यादा कोंचने पर कभी-कभार रो-भर लेती हैं।

कई वेबसाइट्स खंगाली। सब की सब इस डेटा पर आंखें चौकोर किए दिखीं। इतनी हिंसा! इतनी चुप्पी! लेकिन मुझे या बहुतेरी औरतों को इससे कोई हैरानी नहीं होगी। हम सारी औरतें इसी माहौल में पली-बढ़ी हैं। हरेक के साथ मर्दाना हिंसा का एक पूरा चैप्टर साथ चलता है। सड़क पर चलते हुए, दफ्तर में की पैड पर अंगुलियां टकटकाते या फिर शॉपिंग मॉल में कपड़ों का ट्रायल लेते हुए ये चैप्टर दिमाग से किसी जोंक की तरह चिपका रहता है।कोई सुई होती है, तो हर घड़ी टिकटिकाती है कि बचो,अब अंधेरा हो गया। बचो, यहां सुनसान है। बचो, कि तुम औरत हो।

अब लौटते हैं देवियों से औरतों की तुलना पर

औरतों को दुनियावी मोह-राग से परे देवी बनाने का चलन पुरुषों के लिए हरदम ही काफी काम का साबित होता रहा। सबसे जबर्दस्त टोटका तो औरत को त्याग की देवी बनाना है। इस देवी का कोई चेहरा नहीं है। न ही ये फूल-धान-पूजा मांगती है। तो होता ये है कि देवी के इस ओहदे पर एक-दो नहीं, बल्कि सारी औरतों को बैठाया जाता है। इसका कोई अंत या शुरुआत भी नहीं। पांच साल की बच्ची को अपनी फेवरेट चॉकलेट छह साल के भाई के लिए छोड़ने को कहा जाता है। ज्यों ही बच्ची ने चॉकलेट परे की, उसे ममता की देवी बना दिया जाता है। ये प्रक्रिया चलती रहती है। बीवी प्रमोशन के समय दफ्तर से छुट्टी लेती है, ताकि पति के दोस्तों के लिए शानदार दावत पकाए। बच्चे के लिए मांएं नौकरी ऐसे छोड़ती हैं, जैसे कोई बुरी आदत छोड़ता हो।

कोई 'शातिर' औरत देवी की बजाए इंसान होना चुने, तो उसकी खैर नहीं। पकड़-धकड़कर किसी न किसी देवी की कुर्सी पर बांध ही दिया जाता है। औरत अगर तब भी छूट निकले, तो दनादन उसके चरित्र का स्तुतिगान शुरू हो जाएगा। यानी बनना है तो सीधे देवी बनो या फिर हमें तुमको वेश्या बनाते देर नहीं लगेगी। बचपन में पांव पूजन के बाद से कब्र तक औरत अपना इंसान होना भूली रहे, इसके लिए तमाम जतन होते हैं।

एक बड़ा ही मजेदार वाकया याद आता है। बेटी के जन्म के समय हालात कुछ ऐसे बने कि मेरी इमरजेंसी सर्जरी करनी पड़ी। लोकल एनेस्थीसिया दिया गया था तो मैं आराम से डॉक्टरों से हंस-बोल रही थी। बस आंखें ढंकी हुई थीं। सर्जरी पूरी हुई। बच्चे के रोने की आवाज सुनते ही रोके हुए आंसू एकदम से ढुलकने लगे कि तभी डॉक्टर की आवाज आई- 'रोओ मत, लक्ष्मी आई है'... वो मेरी फेवरेट डॉक्टर थी। पास आकर लगभग फुसफुसाते हुए ही बोली- 'अगली बार फिर कोशिश करना'। आंसुओं के बीच ही मैं जोरों से हंस पड़ी। जी में आया कि आंखों से पट्टी हटाकर डॉक्टर की तसल्ली को दोनों हाथों से पोंछ दूं। मुझे लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा या अन्नपूर्णा कुछ नहीं चाहिए। मुझे जो चाहिए था, वो मिल चुका। वो देश का नामी अस्पताल था। और मेरी डॉक्टर के नाम इंटरनेट पर फाइव स्टार हैं। लेकिन, इससे फर्क ही क्या पड़ता है!

पुराने समय में जब अल्ट्रासाउंड नहीं था, तब बच्ची के जन्म के साथ ही उसे अफीम चटा दी जाती। एक और तरीका था, जिसमें दूध की परात में बच्ची का सिर डुबोकर तब तक रखा जाता, तब तक कि हिलने या रोने जैसे मासूम प्रतिरोध भी रुक जाएं। राजस्थान में एक क्रूरतम तरीके के बारे में सुना था कि वहां चारपाई के पाये के नीचे बच्ची का सिर दबा दिया जाता था। एक आवाज में बच्ची की मौत हो जाए, तो अगली संतान लड़का होना तय है। इस परंपरा को मानने वाले लोग परिवार-समेत चारपाई पर बैठ जाते।

अल्ट्रासाउंड आया तो हत्या का बोझ अपने सिर लेने की जरूरत खत्म हो गई। अब सरकारें सख्त हैं। और फिर हम पर भी सभ्य दिखने का दबाव है। लिहाजा अल्ट्रासाउंड के समय सिले हुए मुंह बच्ची का चेहरा देखते हुए खुल पड़ते हैं। बधाइयों के बहाने तसल्ली दी जाती है कि भाईसाहब, रोओ मत, लक्ष्मी आई है। कोई भूले से भी नहीं कहता कि बिटिया की बधाई हो।

देवी के नाम पर एक-दूसरे को सांत्वना देते लोग तभी पक्का कर लेते हैं कि बेटी आ तो गई, लेकिन इसे इंसान नहीं, देवी ही बनाए रखना है। बस, गर्भ से बाहर निकली ये बच्ची लक्ष्मी से होते हुए अन्नपूर्णा और जाने क्या-क्या होती रहती है। क्यों नहीं, लड़के के जन्म पर कोई कहता कि बधाई हो फलां देवता आए हैं। नहीं, क्योंकि लड़का होना अपने-आप में एक खूबी है, तो इसे किसी देवता के नाम से ढंकने की क्या जरूरत!

ये जरूरत तो लड़कियों के लिए है। दशकों से यही चला आ रहा है और शायद सदियों तक चले। ये बदलेगा, जब हम खुद को देवी बनाए जाने से इनकार कर दें। हम इंसान हैं। तमाम चोटों, खामियों और खूबियों से भरे हुए। ठीक वैसे ही, जैसे कोई मर्द।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
The truth is that girls worshiped like Goddesses have not been able to become their nominal representatives on the masculine earth.


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/38AmWiE
via IFTTT
Share:

प्रदर्शन में शामिल युवा बोले- हम किसानों के लिए लड़ रहे हैं, जान भी चली जाए तो परवाह नहीं

दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को एक महीना हो चुका है। यहां अब बुजुर्गों की तुलना में युवा प्रदर्शनकारी अधिक हैं। टीकरी बॉर्डर और सिंघू बॉर्डर पर मीलों तक फैले ट्रालियों के काफिले के दोनों तरफ अब ट्रैफिक चलने लगा है। ट्रेक्टरों पर बैठे युवा तेज आवाज में संगीत बजाते हुए और नारेबाजी करते हुए गुजरते रहते हैं। कई बार उनके हाथों में लाठियां भी होती हैं। उनके नारे उग्र हो जाते हैं।

ऐसे ही एक ट्रेक्टर को रोकते हुए एक बुजुर्ग प्रदर्शनकारी ने कहा, 'हम यहां आंदोलन में मारे गए किसानों की मौत का गम मना रहे हैं, कोई जश्न नहीं।' ये सुनकर युवाओं ने लाउडस्पीकर पर बज रहा संगीत बंद कर दिया और ट्रैक्टर को पीछे घुमा लिया। अगले दिन एक बुजुर्ग किसान नेता मंच से ऐलान कर रहे थे, 'ट्रैक्टर पर स्पीकर बांध कर हुल्लड़बाजी ना करें। हमें गांधी और भगत सिंह के रास्ते पर चलना है। सब्र और त्याग हमारा रास्ता है। हमारे किसान मारे जा रहे हैं। ये आंदोलन है कोई जश्न नहीं।'

गुरविंदर सिंह चार युवाओं के साथ इनोवा कार से आए हैं। वो कहते हैं, 'मेरा पूरा गांव, खानदान यहीं है। मैं आज यहां पहली बार आया हूं, मेरा वापस लौटने का मन नहीं कर रहा है। हमारे गांव से और भी युवा पहुंच रहे हैं।' क्या उन्हें बुजुर्ग किसानों को ठंड में सड़क पर सोते हुए देखकर गुस्सा आता है? वे कहते हैं, 'गुस्सा होता तो हम हुल्लड़बाजी कर रहे होते, गुस्सा नहीं है, हम बुजुर्गों की तरह ही सब्र से काम ले रहे हैं।'

हरियाणा के सिरसा से आए राकेश कुमार अपने ग्रुप के साथ दो सप्ताह से टीकरी बॉर्डर पर प्रोटेस्ट में शामिल हैं। वो कहते हैं, 'बुजुर्गों को ठंड में कांपते देखकर बहुत बुरा लगता है। गुस्सा भी आता है। यहां बहुत परेशानियां हैं, लेकिन अपने हक के लिए इतना तो करना ही होगा।'

टीकरी बॉर्डर और सिंघू बॉर्डर पर हजारों की संख्या में युवा किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए आए हैं। वो बुजुर्ग किसानों में जोश भरने का काम कर रहे हैं।

राकेश कहते हैं, 'किसान पीछे हटने वाले नहीं हैं, सरकार को ही इस बारे में सोचना होगा। सरकार को देखना चाहिए कि दो युवा घर जा रहे हैं, तो उनके बदले दस आ रहे हैं।' राकेश के समूह में दिन भर आंदोलन की ही बात चलती है। वे सब एक दूसरे से यही पूछते रहते हैं कि सरकार कब मानेगी और वे कब घर लौटेंगे। कभी-कभी उन्हें इसे लेकर झुंझलाहट भी होती है, लेकिन बुजुर्ग किसानों को देखकर वे अपने मन को शांत कर लेते हैं।

रोहतास भी दो सप्ताह पहले प्रोटेस्ट में शामिल हुए थे। वो कहते हैं, 'टीवी पर आंदोलन की खबरें देखकर मेरा खून उबल रहा था। मुझसे घर में रहा नहीं गया और मैं यहां चला आया।' वे कहते हैं, 'किसानों को इस हालत में देखकर बहुत गुस्सा आता है। सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर आता है कि सरकार हमारे बारे में कुछ कर नहीं रही। अभी दिल में क्या चल रहा है, ये बताया नहीं जा सकता।' रोहतास को लगता है कि वे देश के लिए और किसानों के लिए लड़ रहे हैं और इस लड़ाई में अगर उनकी जान भी चली जाए, तो इसकी परवाह नहीं हैं। परिवार को उनकी चिंता होती है तो समझा देते हैं कि 'देश से बढ़कर कुछ नहीं है।'

किसान 29 दिसंबर को सरकार से मिलने को राजी; शर्त- कानून वापसी पर विचार, MSP की गारंटी पर बात हो

टीकरी बॉर्डर पर पुलिस और किसानों के मंच के बीच हुई बैरिकेडिंग से एक घेरा बन गया है जिसमें दर्जनों युवा हाथ में लाठी लिए खड़े रहते हैं। ये यहां किसान आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच खड़े हैं और व्यवस्था संभाल रहे हैं। प्रदीप सिंह रोजाना सुबह 11 बजे यहां पहुंचते हैं और फिर रात 4 बजे तक यहीं रहते हैं। वे कहते हैं, 'हम सबसे आगे हैं, अगर कुछ हुआ तो सबसे पहले हम ही सामने आएंगे।' पंजाब के मोगा से आए प्रदीप कहते हैं, 'अभी तक धरना शांतिपूर्ण है, इसलिए डर की कोई बात नहीं है। ये बैरिकेड हमने अपने आप लगाए हैं ताकि कोई पुलिस पर पत्थर ना फेंक दे, शरारत ना कर दे या हुल्लड़बाजी से हंगामा ना हो जाए।'

युवा कहते हैं कि किसान पीछे हटने वाले नहीं हैं, सरकार को ही इस बारे में सोचना होगा। सरकार को देखना चाहिए कि दो युवा घर जा रहे हैं तो उनके बदले दस आ रहे हैं।'

आखिर वे कब तक यहां यूं ही हाथ में लाठी लिए खड़े रहेंगे? प्रदीप कहते हैं, 'हमारे नेता जो फैसला लेंगे हम वही करेंगे, अगर वो कहेंगे कि आगे बढ़ना है तो आगे बढ़ेंगे, कहेंगे यहीं रुकना हैं तो यहीं रुकेंगे।' कबड्डी खिलाड़ी फरियाद अली और उनके कोच रिंकू पटवारी भी किसानों के बीच खड़े हैं। वो युवाओं को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। फरियाद कहते हैं, 'हम कबड्डी खिलाड़ी बाद में हैं, किसान के बेटे पहले, हम यहां युवाओं में जोश भरने आए हैं। सिर्फ मैं ही नहीं दूसरे पंजाबी कबड्डी खिलाड़ी भी यहां हैं। हमने अपने टूर्नामेंट रद्द कर दिए हैं।'

डॉ. अमित एक लोकगायक हैं और म्यूजिक वीडियो बनाकर यूट्यूब पर डालते हैं। वे भी आंदोलन में शामिल होने के लिए आए हैं। अमित कहते हैं, 'युवा होने के नाते ये देखकर निराशा होती है कि सरकार इतनी बड़ी तादाद में बैठे किसानों की बात नहीं सुन रही है।'

क्या उन्हें ये डर नहीं है कि आंदोलन में शामिल होने पर उन्हें निशाना भी बनाया जा सकता है। वो कहते हैं, 'अगर सरकार ऐसा करती है तो गलत करेगी। मेरे लिए तो ये अच्छा ही होगा क्योंकि इससे आंदोलन को और मजबूती मिलेगी।' टीकरी बॉर्डर पर बड़ी तादाद में शामिल युवा प्रदर्शनकारियों में अभी एक अनुशासन दिखता है। उन्होंने अपने गुस्से को थामा हुआ है। अनौपचारिक बातचीत में वो जरूर गुस्से का इजहार करते हैं, लेकिन कैमरे के सामने नपी-तुली भाषा में बोलते हैं।

ऐसे में एक सवाल मन में कौंधता है कि यदि ये युवा आंदोलनकारी बेकाबू हुए तो क्या होगा? इस सवाल पर किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां कहते हैं, 'शुरू में हमें युवाओं के बेकाबू होने का डर था। लेकिन हम उन्हें ये समझाने में कामयाब रहे हैं कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन ही आंदोलन की ताकत है। हिंसा इस आंदोलन को हरा देगी।'



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
टीकरी बॉर्डर पर पुलिस और किसानों के मंच के बीच हुई बैरिकेडिंग से एक घेरा बन गया है जिसमें दर्जनों युवा हाथ में लाठी लिए खड़े रहते हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/38GMevL
via IFTTT
Share:

पढ़िए, लाइफ एंड मैनेजमेंट की इस हफ्ते की सारी स्टोरीज सिर्फ एक क्लिक पर

1. हाल ही में जब एफसी बार्सिलोना के लिए लियोनेल मेसी ने 644 वां गोल किया तो उन्होंने मशहूर खिलाड़ी पेले के एक क्लब के लिए सबसे ज्यादा गोल करने के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। ऐसे कई रिकॉर्ड वे तोड़ चुके हैं। पढ़िए उनकी सक्सेस स्टोरी...

इंस्पायरिंग : छोटा कद लिए बड़े सपने के पीछे दौड़ते रहे, दिन में प्रैक्टिस और रात में इंजेक्शन लगवाते थे लियोनेल मेसी

2. थ्यूसिडिडीज़ बेहद अमीर परिवार से थे। एथेनियन इतिहासकार और जनरल भी थे। इतिहास में इन्होंने जो बदलाव किए थे, उनकी वजह से ही इनका काम मशहूर हुआ था। पढ़िए उनके कुछ विचार...

प्रेरणादायक : इतिहासकार थ्यूसिडिडीज़ के विचार जो आपमें भी उत्साह भर देंगे

3. संस्थान के माहौल को न समझ पाने और लगातार नकारात्मकता झेलने के बावजूद ज्यादातर लोग अपनी पुरानी नौकरी को छोड़ने में झिझकते हैं। ऐसा इसलिए कि वे बदलाव से डरते हैं, या करियर स्विच से होने वाले फायदों के बारे में सोच ही नहीं पाते हैं। ये संकेत आपको बताएंगे कि अब समय है बदलाव का ...

टिप्स : ये संकेत बताएंगे कि अब पुरानी नौकरी छोड़ नया काम शुरू करना चाहिए

4. आम धारणा है कि इंट्रोवर्ट्स में आत्मविश्वास की कमी होती है। ये महान हस्तियां भी इंट्रोवर्ट्स हैं, अपने क्षेत्र में बेहद सफल हैं पर इनमें कभी आत्मविश्वास की कमी नहीं देखी गई। पढ़िए इन नामी लोगों के बारे में...

इंस्पिरेशनल - इंट्रोवर्ट्स हैं, लेकिन आत्मविश्वास के बल पर सफल हुए



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Read this week's stories of Life and Management with just one click


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2KUNeEi
via IFTTT
Share:

पढ़िए, आज के रसरंग की सारी स्टोरीज सिर्फ एक क्लिक पर

1. यदि जीडीपी को विकास का पैमाना माना जाए तो पिछले बीस वर्षों में भारत ने अपनी विकास दर को बनाए रखा है। लेकिन, यह विकास जीवन स्तर की बेहतरी में नज़र क्यों नहीं आता? क्या जनता के स्वास्थ्य और खुशहाली के बिना विकास को पूर्ण माना जा सकता है? इसी सवाल की पड़ताल करती है यह स्टोरी क्या सचमुच में इसे ही विकास कहेंगे?

2. चक्र की मदद से कृष्ण शिशुपाल का शिरश्छेदन करते हैं जो उनका लगातार अपमान कर रहा था। वे चक्र से दुर्वासा ऋषि को विनम्रता भी सिखाते हैं। चक्र का केंद्र स्थिरता का प्रतीक है तो उसकी परिधि चेतना और तीलियां बौद्ध धर्म के विभिन्न सिद्धांतों का प्रतीक। चक्र एक है और उसका महत्व अनंत है। इसकी इसी अहमियत के बारे में बता रहे हैं प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रों के जाने-माने आख्यानकर्ता देवदत्त पटनायक...
चक्र अस्त्र की तरह नाश करता है तो विनम्रता भी सिखाता है, आखिर क्या है इसकी अहमियत?

3. सलमान की शख्सियत इतनी अलहदा है कि जो भी इनसे जुड़ता है, उसकी कई खास यादगारें बन जाती हैं। सलमान खान के जन्मदिवस के मौके पर उनसे जुड़ी यादें भास्कर को साझा कर रही हैं जानी-मानी फिल्म लेखिका, समीक्षक और इतिहासकार भावना सोमाया...

सलमान खान : दिल में आते हैं, समझ में नहीं

4. वेब सीरीज़ ‘स्कैम 1992’ के कई डायलॉग्स में जीवन प्रबंधन को लेकर कई तरह के अहम सबक छिपे हैं। कैसे ये डायलॉग्स हमारी जिंदगी को बदलने में अहम भूमिका निभा सकते हैं, जानिए मोटिवेशनल स्पीकर और लेखक डॉ. उज्ज्वल पाटनी से...

वेब सीरीज़ ‘स्कैम 1992’ के डायलॉग्स में भी छिपे हैं जीवन और व्यापार के लिए कई सबक

5. दो सबसे बड़ी और कामयाब फिल्में दो ऐसे लोगों ने बनाईं, जो मुंह में सोने की चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए थे। एक का नाम था के. आसिफ और दूसरे का नाम था महबूब ख़ान। एक ने बनाई ‘मुग़ल-ए-आज़म’ और दूसरे ने बनाई ‘मदर इंडिया।’ महबूब ख़ान के जीवन संघर्ष के बारे में बता रहे हैं राजकुमार केसवानी ...

'मदर इंडिया' फिल्म बनाने वाले महबूब ख़ान ने 30 रुपए महीने की नौकरी से की थी करिअर की शुरुआत...

6. कोविड-19 से निपटने के लिए कुछ देशों में टीकाकरण शुरू हो चुका है। भारत सहित अन्य देशों में भी यह जल्दी ही शुरू हो जाएगा। आज की स्थिति में कम से कम पांच वैक्सीन कंपनियां स्क्वैलिन का उपयोग कर रही हैं। स्क्वैलिन शार्क के लिवर से मिलता है। इस वजह से लाखों शार्क मारी जा सकती हैं। पढ़ें यह शोधपरक रिपोर्ट...

वैक्सीन का निर्माण कहीं शार्क के लिए संकट ना बन जाए!

7. भारतीय टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने कप्तान विराट कोहली की पैटरनिटी लीव पर सवाल उठाकर भारतीय क्रिकेट में भेदभाव के आरोपों को एक बार फिर से हवा दे दी है। इस पूरे मुद्दे की पड़ताल भास्कर 360 में....

बीसीसीआई में भाई-भतीजावाद, टीम इंडिया में कप्तान पर पहले भी लगे हैं पक्षपात के आरोप



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Read all the stories of today's Rasrang with just one click 27 December 2020


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3pq9nJl
via IFTTT
Share:

मोदी ने कश्मीर में भी शुरू की आयुष्मान भारत योजना; क्या है ये स्कीम? इन 4 राज्यों से हैं, तो नहीं मिलेगा फायदा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) को वर्चुअली लॉन्च किया। इस योजना में जम्मू-कश्मीर के हर परिवार को पांच लाख का हेल्थ इंश्योरेंस मिलेगा। ये योजना कई राज्यों में पहले से ही चल रही है। जम्मू-कश्मीर ऐसा पहला राज्य है जहां के हर परिवार को इस स्कीम का लाभ मिलेगा।

AB-PMJAY सेहत योजना क्या है? अब तक कितने लोग इस योजना का लाभ ले चुके हैं? जम्मू कश्मीर में योजना बाकी राज्यों से कितनी अलग है? स्कीम का लाभ लेने के लिए किन कागजात की जरूरत होगी? किस आधार पर मिलेगा कवर? जहां सिर्फ गरीबों के लिए ये योजना है, वहां किन लोगों के नाम दर्ज होंगे? आइए जानते हैं…

AB-PMJAY सेहत योजना क्या है?
23 सिंतबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रांची से AB-PMJAY सेहत योजना को लॉन्च किया था। योजना के तहत आने वाले परिवारों को हर साल 5 लाख तक का हेल्थ इंश्योरेंस कवर मिलता है। अब तक इस योजना के दायरे में जो राज्य थे वहां के 22 करोड़ 66 लाख से ज्यादा परिवारों में से 13 करोड़ 4 लाख से ज्यादा परिवार योजना के लिए एलिजिबल थे। जम्मू कश्मीर के करीब 37 लाख से ज्यादा परिवार शनिवार से इस स्कीम में और जुड़ गए हैं।

अब तक कितने लोग इस योजना का लाभ ले चुके है?
21 सितंबर 2020 तक कुल 1 करोड़ 26 लाख लोगों ने AB-PMJAY सेहत योजना के तहत इलाज कराया। इनमें से 5 लाख 13 हजार मरीज ऐसे थे जिन्हें कोरोना के चलते अस्पताल में भर्ती किया गया।

देशभर में 24 हजार से ज्यादा हॉस्पिटल ऐसे हैं, जहां सेहत कार्ड से मरीज को इलाज की सुविधा मिल सकती है। दिल्ली, ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल को छोड़कर पूरे देश में ये योजना लागू हो चुकी है।

योजना का लाभ लेने में गुजरात सबसे आगे है। यहां पिछले दो साल में 19 लाख 37 हजार से ज्यादा लोग योजना की मदद से अपना इलाज करा चुके हैं। दूसरे नंबर पर तमिलनाडु और तीसरे पर केरल है।

दिल्ली, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में योजना क्यों नहीं?

  • केंद्र सरकार ने जब योजना लॉन्च की, उस वक्त योजना में वही लोग शामिल थे, जो 2011 की जनगणना में गरीबी रेखा से नीचे थे। दिल्ली, ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल सरकार ने योजना का विरोध किया और कहा कि इनके राज्यों में पहले से चल रही स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएं, केंद्र की स्कीम से बेहतर हैं। केंद्र अगर इन राज्यों से बेहतर स्थिति लाता है, तो ही वो अपने राज्यों में इस स्कीम को लागू करेंगे।
  • हालांकि, बाद में केरल इस योजना को लागू करने के लिए सहमत हो गया और महज 1 साल के अंदर यहां के 13 लाख से ज्यादा लोगों को इस योजना का फायदा हुआ।

योजना के लिए पैसे कहां से आ रहे हैं ?
फंड के लिए कुछ राज्यों ने एक नॉन-प्रॉफिटेबल ट्रस्ट बनाया है, जहां उन्होंने अपने बजट से हेल्थ केयर फंड निकाला है। केंद्र सरकार इसमें लगभग 60% योगदान करती है। किसी मरीज के इलाज में खर्च होने वाले पैसे सीधे अस्पताल के खाते में ट्रांसफर होते हैं। दूसरा मॉडल ये है कि राज्य सरकारें स्वास्थ्य बीमा करने के लिए निजी बीमा कंपनियों के साथ भागीदारी कर रही हैं। कुछ राज्यों ने एक मिश्रित मॉडल का भी चयन किया है, जहां निजी बीमा कंपनियां छोटे भुगतान को कवर करती हैं और बाकी को सरकारी ट्रस्ट द्वारा फंड दिया जाता है।

इस योजना में कौन-कौन सी बीमारियां कवर होती हैं?
योजना में पुरानी बीमारियां भी कवर होती हैं। किसी बीमारी में अस्पताल में एडमिट होने से पहले और बाद के खर्च इसमें कवर होते हैं। ट्रांसपोर्ट पर होने वाला खर्च इसमें कवर होता है। सभी मेडिकल जांच, ऑपरेशन, इलाज जैसी चीजें इसमें शामिल हैं।

स्कीम के लिए कौन से कागजात की जरूरत होती है?
पहचान के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड या राशन कार्ड दिखा सकते हैं। नेशनल हेल्थ एजेंसी (NHA) ने आरोग्य मित्रों को अस्पतालों में तैनात किया है। इनके पास मरीजों की पहचान सत्यापित करने और उन्हें इलाज में मदद करने का काम है। पूछताछ और समाधान के लिए भी मरीज इन लोगों से संपर्क कर सकते हैं।

किस आधार पर कवर मिलता है?
जम्मू कश्मीर के हर नागरिक को इस कार्ड से इलाज मिल सकेगा। देश के बाकी राज्यों में 2011 के सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना में गरीब के तौर पर चिह्नित किए गए सभी लोग इसके पात्र होते हैं। मतलब अगर कोई शख्स 2011 के बाद गरीब हुआ है, तो वह कवर से वंचित हो जाएगा। बीमा कवर के लिए उम्र, परिवार के आकार को लेकर कोई बंदिश नहीं है। लाभार्थी सरकारी या निजी अस्पताल में हर साल 5 लाख रुपए तक का कैशलेस इलाज करा सकेंगे।

कैसे चेक करेंगे अपना नाम?
NHA ने इसके लिए वेबसाइट और हेल्पलाइन नंबर लॉन्च किया है, जिसके जरिए कोई भी नागरिक यह जांच सकता है कि फाइनल लिस्ट में उसका नाम शामिल है या नहीं। इसके लिए mera.pmjay.gov.in वेबसाइट देख सकते हैं या हेल्पलाइन नंबर 14555 पर कॉल कर सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के बाद मैसेज के जरिए मोबाइल पर आईडी नंबर मिलेगा।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Narendra Modi; Explained Ayushman Bharat Yojana | Who Benefited The Most? All You Need To Know About AB PMJAY SEHAT Scheme


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34N3r5j
via IFTTT
Share:

राम मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाया, किसानों के लिए 3 विवादित कानून बनाए; सांसदों-मंत्रियों की सैलरी काटी

मोदी सरकार का पूरा साल कोरोना से निपटने के लिए गाइडलाइन बनाने और देश को लॉक-अनलॉक करने में गुजर गया। इन सबके बीच सरकार ने कुछ बड़े फैसले लिए और कुछ नए कानून भी बनाए। दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक तीन दिन पहले प्रधानमंत्री ने श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट बनाने का ऐलान किया। कोरोना के बीच संसद खुली और सरकार ने किसानों से जुड़े ताबड़तोड़ तीन कृषि बिल संसद में पास करवा लिए। अब इन्हीं बिलों के खिलाफ किसान सड़कों पर हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान भी सरकार ने शुरू किया। चलिए देखते हैं इस साल के सरकार के 12 सबसे बड़े फैसले, नीति और कानून कौन से रहे...



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Narendra Modi Government Top 10 Decisions Of 2020; Farm Bill | National Education Policy To Jammu Kashmir Hindi Official Language National Education Policy


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2KOeeVQ
via IFTTT
Share:

Recent Posts

Blog Archive