एक बार अपनी सरकार को बचाने में कामयाब हो चुके राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ताजा बयान ने सियासत में सनसनी फैला दी है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि सरकारें गिराने का खेल फिर शुरू हो गया है। राजस्थान से पहले महाराष्ट्र का भी जिक्र किया है कि अब उसकी बारी है। उनके इस बयान को BJP के साथ गहलोत का सचिन पायलट के खिलाफ 'गेम प्लान' भी माना जा रहा है।
इस बयान के आते ही भाजपा उखड़ गई और गहलोत पर नैतिक साहस और मनोबल खो देने की बात कही। भाजपा ने यह कहने की कोशिश की है कि गहलोत से सरकार तो संभल नहीं रही है इसलिए भेड़िया आया..भेड़िया आया वाली हरकतें कर रहे हैं। हालांकि, पायलट गुट की ओर से कोई सख्त प्रतिक्रिया नहीं सुनने को मिली है।
अचानक बयान लेकिन मायने बिल्कुल साफ
दरअसल, गहलाेत ने एक बयान से दो निशाने साधे हैं। पहला BJP पर। दरअसल पार्टी की A और B (सरकार और संगठन) दोनों ही टीमें बिहार चुनाव के बाद फ्री हो गई हैं। बंगाल चुनाव में अभी समय है। ऐसे में महाराष्ट्र् की सियासी हलचल भांपते ही गहलोत ने बीजेपी को जोड़तोड़ का आरोप लगाकर फिर से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।
गहलोत सरकार पिछली बार वाला ही फॉर्मूला अपनाते दिख रही है। तब सरकार को लड़खड़ाते देख कुछ ऐसे फैक्ट्स 'सही जगह' भिजवाए थे, जिससे बीजेपी बैकफुट पर आ गई थी।
दूसरा अप्रत्यक्ष निशाना पायलट पर भी है। गहलोत ने ऐसे वक्त पर बयान जारी किया है, जब मंत्रिमंडल में बदलाव, राजनीतिक नियुक्तियां और प्रदेश कांग्रेस की नई टीम फाइनल होने की संभावना बन रही हैं। ऐसे में राजस्थान में सरकार और संगठन में पायलट फिर से दखल न दे सकें, वे यह मैसेज भी कांग्रेस आलाकमान को देना चाहते हैं। वे यह भी बताने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह पिछली बार मैंने ही सरकार बचाई।
पायलट के दोस्त सिंधिया का भी जिक्र
गहलोत ने अपने बयान में खासतौर पर राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी जिक्र किया है। सिंधिया और पायलट दोस्त हैं। जब गहलोत-पायलट में टकराव था, तब भी भाजपा में शामिल हो चुके सिंधिया का नाम उछला था।
सर्दियों में हमारा शरीर ठंड से बचने के लिए खुद की कैलोरी बर्न करता है। इसके चलते इस मौसम में शरीर को सामान्य से ज्यादा कैलोरी की जरूरत पड़ती है। सर्दियों में हमारा डाइजेशन सामान्य से बेहतर काम करता है यानी इस मौसम में हम अपनी डाइट बढ़ा सकते हैं।
हालांकि, इस मौसम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इस मौसम में बीमार पड़ने की आशंका ज्यादा होती है। जयपुर में मेडिकल न्यूट्रीशियनिस्ट सुरभि पारिक कहती हैं कि इस मौसम में ठंडी चीजों को खाने से बचना चाहिए और खाने में ज्यादा से ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट फूड को शामिल करना चाहिए।
ऐसे में सवाल यह है कि सर्दियों में हमें क्या खाना चाहिए? एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सर्दी के मौसम में डाइट में एनर्जेटिक और गर्म चीजों को शामिल करना चाहिए। आपको कुछ ही दिनों में अपने आप में काफी अंतर दिखने लगेगा।
सर्दियों में पानी को लेकर लोगों में भ्रम
हैदराबाद स्थित ICMR के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (NIN) के मुताबिक, एक एडल्ट को 24 घंटे में 4 से 5 लीटर, 8 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को 3 से 4 लीटर और 5 से 8 साल के बच्चों को 2 से 3 लीटर पानी पीना जरूरी है।
लेकिन, सर्दियों में प्यास कम लगने की वजह से हमारा पानी पीना औसतन आधा हो जाता है। डॉ. सुरभि कहती हैं कि सर्दियों में भले ही प्यास न लगती हो, लेकिन हमें उतना पानी जरूर पीना चाहिए जितना ICMR ने रिकमेंड किया है। सर्दियों में भी शरीर में पानी की कमी के चलते कई समस्याएं हो सकती हैं।
1- खजूर में विटामिन और मिनरल की भरपूर मात्रा
ठंड के मौसम में खजूर बड़े काम की चीज है। इसमें विटामिन A और B की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसकी तासीर भी गर्म होती है, सर्दियों में इसे खाने से शरीर में गर्माहट बनी रहती है।
इसके अलावा खजूर में फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम समेत फाइबर भी काफी मात्रा में होता है।
ये सभी न्यूट्रिशन हमारे शरीर के लिए जरूरी हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसे रात में डिनर के साथ और सुबह नाश्ते के साथ ले सकते हैं।
2- गुड़ से मिलता है आयरन, नहीं होता एनीमिया
गुड़ हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है, इस कारण आज भी कई लोग अपनी डाइट में इससे बनी हुई चीजें शामिल करते हैं। गुड़ में भी भरपूर आयरन, मैग्निशियम समेत कई न्यूट्रिशन होते हैं।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, आप इसे खाने में किसी भी तरह से शामिल कर सकते हैं। आप चाहें तो इससे बना हुए स्नैक्स खाएं या सीधे गुड़ ही खाएं। गुड़ भी गर्म होता है। यह हमें सर्दी से बचाता है।
3- सर्दियों में तमाम तरह की बीमारियों से बचाता है तिल
तिल की भी तासीर गर्म होती है, इसलिए इसे ठंड में ही ज्यादा खाया जाता है। इसमें मोनो-सैचुरेटड फैटी एसिड के साथ भारी मात्रा में एंटी-बैक्टीरियल मिनरल्स होते हैं। यह सर्दियों में न सिर्फ हमारे शरीर को गर्म रखता है, बल्कि हमें वायरल से भी बचाता है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, तिल वो लोग न खाएं जिन्हें हाइपरटेंशन, मोटापे और हार्ट की समस्या है। इसमें पाया जाने वाला सैचुरेटड फैटी एसिड उनकी समस्या को बढ़ा सकता है। लेकिन नॉर्मल लोगों के लिए यह सर्दियों में बहुत फायदेमंद है।
4- गाजर में लगभग सभी तरह के विटामिन
गाजर दिल, दिमाग, नस के साथ-साथ हेल्थ के लिए भी फायदेमंद है। गाजर में विटामिन A, B,C,D,E,G और K पाए जाते हैं, जिससे हमारी बॉडी को काफी सारे न्यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एक गाजर हमें हमारे दैनिक खपत से 300 % ज्यादा विटामिन-A दे सकती है।
5- मूंगफली में प्रोटीन की भरपूर मात्रा
मूंगफली में प्रोटीन और हेल्दी फैट के साथ कई विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 100 gm कच्ची मूंगफली में 1 लीटर दूध के बराबर प्रोटीन होता है।
इससे तेल (Peanut Oil), आटा (Peanut Flour) और प्रोटीन (Peanut Protein) के अलावा भी कई चीजें बनती हैं और इससे बनी हुई चीजों का उपयोग डेजर्ट, केक, कनफेक्शनरी, स्नैक्स और सॉस बनाने में भी किया जाता है।
आज से ठीक 6 साल, 9 महीने और 10 दिन पीछे चलते हैं। उस दिन तारीख थी 20 फरवरी 2014। नरेंद्र मोदी उस समय प्रधानमंत्री नहीं थे। सिर्फ प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। गुजरात के अहमदाबाद में उनकी रैली थी। यहां उन्होंने एक कविता पढ़ी- ‘सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं बिकने दूंगा।’ ये कविता बहुत लंबी है, जिसे लिखा है प्रसून जोशी ने। इस कविता को मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कई बार दोहरा चुके हैं।
अब लौटते हैं मुद्दे पर। आज उन्हीं नरेंद्र मोदी की सरकार है और उन्हीं की सरकार में सबसे ज्यादा सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेची गई। मोदी सरकार अब देश की दूसरी सबसे बड़ी फ्यूल रिटेलर कंपनी भारत पेट्रोलियम (BPCL) में 53.3% हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है। इसके जरिए सरकार को 40 हजार करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है।
मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी या शेयर बेचकर जितनी रकम जुटाई गई है, उतनी रकम 23 सालों में भी नहीं जुटी। इस पूरी प्रक्रिया को कहते हैं डिसइन्वेस्टमेंट या विनिवेश।
क्या होता है डिसइन्वेस्टमेंट?
इन्वेस्टमेंट या निवेश क्या होता है, जब किसी कंपनी या संस्था में पैसा लगाया जाता है। इसका उल्टा होता है डिस-इन्वेस्टमेंट या विनिवेश, यानी किसी कंपनी या संस्था से अपना पैसा निकालना। जब सरकार किसी सरकारी कंपनी से अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचकर उससे रकम जुटाती है, तो इस प्रक्रिया को कहते हैं डिस-इन्वेस्टमेंट।
अक्सर विनिवेश और निजीकरण को एक ही मान लिया जाता है। लेकिन दोनों में काफी अंतर होता है। निजीकरण में सरकार अपनी 51% से ज्यादा की हिस्सेदारी किसी निजी कंपनी को बेच देती है, जबकि विनिवेश में सिर्फ कुछ हिस्सा ही बेचा जाता है। विनिवेश की प्रक्रिया में सरकार का कंपनी पर मालिकाना हक बना रहता है। लेकिन निजीकरण में सरकार का कोई मालिकाना हक नहीं रह जाता।
हालांकि, कई बार विनिवेश का फायदा भी होता है। कई सरकारी कंपनियां ऐसी होती हैं, जिन पर करोड़ों खर्च होने के बाद भी कोई मुनाफा नहीं होता। इस वजह से सरकार ऐसी कंपनियों से अपनी हिस्सेदारी या शेयर बेच देती है। ताकि सरकार का पैसा न लगे। सरकार का पैसा यानी हमारा और आपका पैसा।
सरकार को विनिवेश की जरूरत क्यों पड़ती है?
होता ये है कि सरकार देश चलाती है और देश चलाने की लिए जरूरत होती है पैसों की। ये पैसा सरकार टैक्स के जरिए वसूलती है, लेकिन इतनी रकम से डेवलपमेंट वर्क नहीं हो पाता। इसके लिए सरकार पैसा जुटाने के लिए सरकारी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचती और रकम जुटाती है। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब किसी घर में खर्च चलाना मुश्किल होता है, तो लोग घर का सामान बेचते हैं। ऐसा ही सरकार भी करती है।
BPCLकी हिस्सेदारी क्यों बेच रही है सरकार?
अब सवाल उठता है कि आखिर सरकार BPCL की हिस्सेदारी क्यों बेच रही है। दरअसल, 2020-21 के लिए सरकार ने विनिवेश के जरिए 2.10 लाख करोड़ रुपए जुटाने का टारगेट रखा था। लेकिन कोरोना की वजह से अभी तक सरकार सिर्फ 6,311 करोड़ रुपए ही जुटा सकी है। BPCL के जरिए सरकार को 40 हजार करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है।
इसके अलावा पिछले 4 साल से BPCL का प्रॉफिट कम होता ही जा रहा था। 2018-19 में कंपनी को 7,132 करोड़ रुपए का फायदा हुआ था, जो 2019-20 में घटकर 2,683 करोड़ रुपए हो गया।
मोदी सरकार में अब तक कितनी कंपनियों की हिस्सेदारी बिक चुकी है?और सरकार ने इससे कितना कमाया?
मई 2014 में केंद्र में पहली बार मोदी सरकार आई। तब से लेकर अब तक मोदी सरकार में 121 कंपनियों की हिस्सेदारी बिक चुकी है। इससे सरकार ने 3.36 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा कमाई की है। ये आंकड़ा किसी सरकार में विनिवेश के जरिए जुटाई गई रकम का सबसे ज्यादा हिस्सा है।
1991 में जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था, तब सरकार ने सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर रकम जुटाने के लिए डिस-इन्वेस्टमेंट करने का फैसला लिया था। उसके बाद से अब तक के करीब 30 सालों में सरकार डिसइन्वेस्टमेंट के जरिए 4.89 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा जुटा चुकी है। सबसे ज्यादा रकम मोदी सरकार में ही जुटाई गई है।
क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है। इसमें कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जमीन पर बैठे दिख रहे हैं। ट्रूडो के आसपास सिख समुदाय के कुछ लोग भी बैठे हैं।
दावा किया जा रहा है कि कनाडा के प्रधानमंत्री भारत में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में धरने पर बैठ गए हैं।
और सच क्या है?
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो एक बयान जारी कर भारत में हो रहे किसानों के प्रदर्शन का समर्थन कर चुके हैं। लेकिन, इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली जिससे पुष्टि होती हो कि ट्रूडो धरने पर बैठे हैं।
वायरल फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से सर्च रिजल्ट में हमारे सामने न्यूज एजेंसी ANI की 24 नवंबर 2015 की एक रिपोर्ट आई। 6 साल पुरानी रिपोर्ट में ट्रूडो की वही फोटो है, जिसे हाल का बताकर शेयर किया जा रहा है।
कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो 2015 में भारतीय मूल के कनाडाई नागरिकों के साथ दिवाली मनाने पहुंचे थे। इस अवसर पर ट्रूडो मंदिरों और गुरुद्वारों में भी गए थे, फोटो तभी की है। साफ है कि सोशल मीडिया पर 6 साल पुरानी दिवाली की फोटो को गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 3 टी-20 की सीरीज का दूसरा मुकाबला आज सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में खेला जाएगा। टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया में भले ही वनडे सीरीज हार चुकी है, लेकिन टीम का टी-20 में रिकॉर्ड काफी बेहतर है। भारत पिछले 12 साल से ऑस्ट्रेलिया में कोई द्विपक्षीय टी-20 सीरीज नहीं हारा है।
यदि आज का मुकाबला भारतीय टीम जीतती है, तो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ओवरऑल 9 में से चौथी सीरीज जीतेगी।
4 साल पहले ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में क्लीन स्वीप किया था
भारतीय टीम को फरवरी 2008 में ऑस्ट्रेलिया से उसी के घर में टी-20 सीरीज में हार का सामना करना पड़ा था। पिछली बार 2018 में जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था, तब सीरीज 1-1 से बराबर रही थी। वहीं, 4 साल पहले भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 3-0 से क्लीन स्वीप किया था।
हेड-टु-हेड
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच यह 9वीं टी-20 सीरीज खेली जा रही है। पिछली 8 सीरीज में से भारत ने 3 और ऑस्ट्रेलिया ने 2 सीरीज जीती है, जबकि 3 ड्रॉ रही हैं। ऑस्ट्रेलिया में दोनों टीम के बीच अब तक 4 सीरीज खेली गई, जिसमें 1-1 से बराबरी का मामला रहा है। दो सीरीज ड्रॉ खेली गईं।
ओवरऑल मैचों की बात करें, तो दोनों टीम के बीच अब तक 21 टी-20 खेले हैं। इसमें भारत ने 12 और ऑस्ट्रेलिया को सिर्फ 8 में ही जीत मिली है, जबकि एक मैच बेनतीजा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में दोनों टीमें 10 बार आमने-सामने आई हैं, जिसमें टीम इंडिया ने 6 टी-20 जीते और 3 हारे हैं। एक मैच बेनतीजा रहा है।
मौसम और पिच रिपोर्ट
सिडनी में आसमान साफ रहेगा। अधिक तापमान 30 डिग्री और न्यूनतम तापमान 17 डिग्री रहने की संभावना है। सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। टॉस जीतने वाली टीम पहले बॉलिंग करना चाहेगी। यह चेज करने वाली टीम का सक्सेस रेट 50% है।
चोटिल जडेजा का बाहर होना टीम इंडिया को बड़ा झटका
पहले टी-20 में ऑलराउंडर रविंद्र जडेजा ने 23 बॉल पर 44 रन की नाबाद मैच जिताऊ पारी खेली थी। इसी मैच में वे हैम-स्ट्रिंग की शिकायत के बाद सीरीज से बाहर हो गए हैं। फॉर्म में चल रहे जडेजा मिडिल ऑर्डर की मजबूती थे। वनडे सीरीज के आखिरी मैच में भी उन्होंने 66 रन की नाबाद पारी खेलकर टीम को जिताया था। टीम के पास उनका विकल्प मौजूद नहीं है।
सिडनी के मैदान पर कोहली का रिकॉर्ड सबसे बेहतर
मौजूदा दोनों टीम में शामिल बैट्समैन की बात करें तो भारतीय कप्तान विराट कोहली का प्रदर्शन शानदार है। उन्होंने इस मैदान पर 2 टी-20 खेले और दोनों में फिफ्टी लगाई है। दूसरे नंबर पर शिखर धवन हैं, जिन्होंने 2 मैच में 67 रन बनाए हैं। हालांकि, पिछले कैनबरा मैच में दोनों कुछ खास नहीं कर सके थे। धवन एक और कोहली 9 रन बनाकर आउट हो गए थे।
बॉलिंग में चहल और बुमराह को मौका मिल सकता है
पहले मैच में चोटिल जडेजा की जगह कन्कशन सब्सटिट्यूट के तौर पर युजवेंद्र चहल को शामिल किया गया था। नियम के मुताबिक, उन्होंने बॉलिंग की और 3 विकेट लेकर टीम को जीत भी दिलाई। दूसरे मुकाबले में कप्तान कोहली उन्हें प्लेइंग इलेवन में शामिल कर सकते हैं। उनके अलावा बॉलिंग का दारोमदार टी नटराजन और जसप्रीत बुमराह पर भी रहेगा। यह नटराजन का डेब्यू मैच था, जिसमें उन्होंने 3 विकेट झटके थे। बुमराह पिछला मैच नहीं खेले थे। उम्मीद है कि उन्हें मोहम्मद शमी की जगह मौका मिल सकता है।
ऑस्ट्रेलिया के लिए स्टार्क, एगर और जम्पा की-बॉलर्स
मेजबान ऑस्ट्रेलिया के लिए सिडनी के मैदान पर तेज गेंदबाज मिचेल स्टार्क, एश्टन एगर और स्पिनर एडम जम्पा की-प्लेयर साबित होंगे। मौजूदा खिलाड़ियों में इस मैदान पर तीनों का प्रदर्शन शानदार है। इस मामले में टॉप-5 में भारत के जसप्रीत बुमराह अकेले बॉलर शामिल हैं। पहले टी-20 में ऑस्ट्रेलिया के लिए मोइसेस हेनरिक्स ने 3 और स्टार्क ने 2 विकेट लिए थे।
भारतीय टीम बैट्समैन: विराट कोहली (कप्तान), लोकेश राहुल (विकेटकीपर), मयंक अग्रवाल, शिखर धवन, श्रेयस अय्यर, मनीष पांडे, संजू सैमसन (विकेटकीपर)। बॉलर: जसप्रीत बुमराह, युजवेंद्र चहल, दीपक चाहर, मोहम्मद शमी, टी नटराजन, नवदीप सैनी, शार्दूल ठाकुर। ऑलराउंडर: हार्दिक पंड्या, वॉशिंगटन सुंदर।
औरतें कुदरती तौर पर जजमेंटल होती हैं, लेकिन जज नहीं हो सकतीं। ये हम नहीं, हमारे यहां का अदालती चलन कहता है। सुप्रीम कोर्ट में 32 पुरुष जजों के बीच सिर्फ 2 महिला जज हैं। दिल्ली हाई कोर्ट में 229 मर्दों के बीच 8 महिला हैं। मुंबई और दूसरे महानगरों के हाल भी कमोबेश यही हैं। फेहरिस्त लंबी है।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने माना कि महिला अधिकारों के लिए रास्ता अभी काफी संकरा-पथरीला है। ये बात उन्होंने उस मामले में कही, जहां मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के पुरुष जज ने रेप के दोषी को पीड़िता से राखी बंधवाने की सजा दी।
इसके बाद कोर्ट को ख्याल आया कि यौन शोषण जैसे मामलों के लिए महिला जज होतीं तो बढ़िया होता। यानी रेप जैसे मुद्दे रसोई या रस्मों की तरह 'औरतों का डिपार्टमेंट' हैं। भई, सही बात भी है। जब ज्यादातर पुरुष यौन शोषण के मामलों में शोषक की भूमिका में होते हैं तो वे पारदर्शी फैसला भला कैसे कर सकेंगे।
बहरहाल, जिस भी वजह से सही, अदालत में अदृश्य महिला जजों पर बात शुरू हुई। सवाल उठने लगे कि लॉ कालेज से टॉप कर चुकी लड़कियां आखिर कहां खप जाती हैं? दरअसल पढ़ते हुए ही उन्हें अहसास हो जाता है कि पढ़ाई में अव्वल होना और बात है, कोर्ट में अपराधियों के खिलाफ फैसला दूसरी बात। कोई तेजाब फेंक देगा। कोई परिवार को उठा लेगा। या ये भी न हुआ तो पांत की पांत मर्द जज रोज आपको घूरेंगे, तौलेंगे। और जज बन भी गई तो क्या? कौन सा सुप्रीम कोर्ट की चीफ जज हो जाओगी।
लड़कियां फैसले पर हामी भरने के लिए होती हैं, फैसला सुनाने के लिए नहीं। सुनते-सुनते आखिरकार लड़कियां खुद पीछे हट जाती हैं। ठीक भी है। सदियों से आखिरी और कानूनी बात किसी मर्द की ही रही। फिर चाहे विक्रमादित्य का सिंहासन हो या फिर अरब मुल्क की तख्त-ए-शाही।
ऊंची कुर्सी पर हथौड़े की ठुक-ठुक पर सबको चुप कराते जज आखिर औरत हों भी तो कैसे! सब कुछ तो औरत की बुनियादी तासीर के खिलाफ है। औरत- जो ऊंची आवाज में बात नहीं करती। औरत- जो मर्दों की जिरह में गूंगी हो जाती है। औरत- जो अपराधी को देखते ही थरथरा उठे। औरत- जो फुसफुसा तो सकती है लेकिन फैसला नहीं कर सकती।
ऐसे में औरत लड़ती-भिड़ती कोर्ट रूम तक पहुंच भी जाए तो जज या वकील नहीं रहती, होती है तो केवल औरत। सुप्रीम कोर्ट की बेहद तेज-तर्रार वकील इंदिरा जयसिंह ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि कैसे मर्द सहकर्मी उन्हें 'वो औरत' पुकारा करते, जबकि इंदिरा अपने पुरुष सहकर्मियों को 'मेरे काबिल साथी' बुलातीं।
मद्रास हाईकोर्ट में एक मामला दबते-दबाते भी उछल आया था, जब एक नामी-गिरामी जज ने एक महिला वकील के हेयर स्टाइल पर टिप्पणी कर दी थी। जज ने हल्के-फुल्के अंदाज की आड़ में कह दिया था कि फलां की हेयर स्टाइल उनकी जिरह से कहीं ज्यादा खूबसूरत है। जज का जिगरा देखें कि उन्होंने ये बात वकील के सामने ही कही। वकील के भड़कने पर साथी वकीलों ने उल्टे उन्हें ही माफी मांगने को कहा।
औरतों के फैसला देने के हुनर के खिलाफ मनोविज्ञान भी सांठगांठ कर चुका। वो दावा करता है कि औरतें दिमाग की बजाए दिल से फैसला देती हैं। ऐसे में वे किसी खूंखार अपराधी के आंसुओं या दलील पर मोम बन सकती हैं और उस छूट दे सकती हैं। या इसके उलट बिना सोचे किसी मासूम को मुजरिम करार दे सकती हैं। कुल मिलाकर वे भावुकता में फैसला लेती हैं, जो दुनिया के लिए बेहद खौफनाक है।
आज से कई दशक पहले औरतों के डॉक्टर बनने के बारे में भी यही दलील दी गई। औरतों का दिल कमजोर होता है। वे मरीज की हालत देख डर जाएंगी और सर्जरी के दौरान नश्तर यहां का वहां चुभो देंगी। लेकिन ये तर्क करते हुए मर्द बिरादरी भूल गई कि सर्जरी टेबल पर नश्तर-कैंची देने का काम नर्स ही करती है। जब वो तब बेहोश नहीं होती, तो सर्जरी करते हुए क्यों होगी! लेकिन वो भी अस्पताल पहुंची और सफेद कोट पहनकर उनके हाथ भी फौलाद हो जाते हैं।
कहानी आगे बढ़ती है और कोर्टरूम से अस्पताल का गलियारा फर्लांगते हुए पहुंचती है सिलिकॉन वेली यानी IT सेक्टर का हब। देश में सबसे अमीर महिलाओं की लिस्ट खूब चर्चा में है। वजह उनकी अमीरी नहीं, बल्कि उनका ऑफबीट होना है। लिस्ट में टॉप पर हैं रोशनी नाडर, जो IT कंपनी की सीईओ हैं। मर्दानी सोच वाली आंखें हैरत से चौकोर हुई पड़ी हैं कि फैशन या मेडिसिन में रहने वाली औरत IT में कैसे टिक गई।
सिलिकॉन वैली तक में गिनती की औरतें हैं। IT कंपनियों का मानना है कि औरतों की दिलचस्पी इंसानों और वाकयों में होती है। वे HR तक तो ठीक हैं लेकिन कोडिंग में कतई नहीं। यहां तक कि इसके लिए उनकी 'जैविक संचरना' को जिम्मेदार ठहरा दिया गया। औरत के अंदरुनी हिस्से की- दिमाग की बुनावट ऐसी है, जो कोडिंग को 'सूट' नहीं करती।
ओह, लेकिन ये क्या! औरत ने यहां भी खुद को साबित कर दिया। रोशनी नाडर ने बता दिया कि कंप्यूटर पर सिर झुकाए और आंखें गड़ाए बैठने वाले मर्द ही नहीं, औरतों को भी एलियन भाषा लिखनी आती है। महिला जजों के मामले में हम अब भी पीछे हैं। लेकिन एक उम्मीद बाकी है।
जज की टेबल पर रखी वो मूर्ति, जिसकी आंखों पर पट्टी होने के बाद भी एक हाथ में तलवार और दूसरे में तराजू है। ये कानून की देवी की मूरत है, जिसे हजारों सालों से इजिप्ट में पूजा जाता रहा और जो वहां से होते हुए दुनियाभर के फैसलापसंदों की टेबल पर विराज गई।
जब खुद कानून देवी की शक्ल में है तो कानून बनाने या फैसला देने वाले अकेले मर्द क्यों रहें! चलिए, घर से शुरुआत करते हैं। नई बाछी खरीदने से लेकर जमीन के बंटवारे तक में आंचल की ओट से सिर्फ देखें नहीं, बोलें. जो न्यायसंगत लगे, बस बोल डालें।
डॉक्टरों के घर से हैं और नाचना पसंद है तो नाचें। आर्ट लेने को कहा जाए और दिल गणित में रमे तो वही पढ़ें। और अदालती जिरह लुभाए, तो बस सीना फुलाकर एलान कर दें कि देश की पहली महिला चीफ जस्टिस आप या आप में से ही कोई एक बनेगी।
बतौर प्रोड्यूसर उनकी पहली फिल्म 'डिस्को डांसर' ने मिथुन चक्रवर्ती को रातोंरात स्टार बना दिया था। उनकी इस फिल्म को आज भी देश में ही नहीं, विदेशों में भी खूब देखा जाता है। 38 साल बाद भी इस फिल्म के गाने देश-विदेश के कई प्रोग्राम्स में धूम मचाते हैं।
उनके नाम भारत के पहले ऐसे फिल्म निर्माता का रिकॉर्ड है, जिन्होंने अमेरिकन आर्टिस्ट के साथ इंग्लिश फिल्म बनाई। हम बात कर रहे हैं दिग्गज निर्माता-निर्देशक सुभाष बब्बर की, जिन्हें बी.सुभाष के नाम से पूरी दुनिया जानती है। अपने 75वें जन्मदिन पर बी.सुभाष ने दैनिक भास्कर के साथ अपनी जर्नी शेयर की। उनसे हुई बातचीत के अंश:
सुभाष बब्बर से बी. सुभाष बनने की कहानी
मैंने अपने काम की शुरुआत मुंबई में ही की थी। लेकिन एस.एस. वासन की फिल्म 'शतरंज' (1969) के शूट के लिए मुझे मद्रास (अब चेन्नई) जाना पड़ा, जिसमें मैं असिस्टेंट डायरेक्टर था। इसके साथ ही मुझे एक अन्य डायरेक्टर वीरेंद्र सिन्हा मिल गए, जिनके साथ मैंने 'गंगा तेरा पानी अमृत' की।
वीरेंद्र ने मुझे बतौर डायरेक्टर शत्रुघ्न सिन्हा और राकेश रोशन स्टारर 'बुनियाद' में मौका दिया। इसके बाद लगा कि मुझे मद्रास में ही रहना है। वहां के नामों का चलन देखकर मैंने भी अपने नाम को बी.सुभाष लिखना शुरू कर दिया। हालांकि, कुछ समय बाद जब मद्रास में ठीक नहीं लगा तो मुंबई लौट आया। लेकिन मेरा नाम वही चलता रहा।
एनडीए में नहीं जा पाए तो फिल्ममेकर बन गए
मेरे दिमाग में दो ही प्रोफेशन थे। एनडीए (नेशनल डिफेन्स एकेडमी) या फिर फिल्म डायरेक्टर। मैं एयरफोर्स में जाना चाहता था। मैंने एनडीए का एग्जाम दिया और क्रैक भी कर लिया। लेकिन मेडिकल टेस्ट में सफल नहीं हो पाया। इसके बाद मैंने डायरेक्शन की ओर कदम बढ़ाया।
1963-64 में के. आसिफ साहब 'लव एंड गॉड' बना रहे थे। इसमें 11 असिस्टेंट डायरेक्टर थे, जिनमें मैं भी शामिल था। उस वक्त मेरी उम्र 18 साल रही होगी। के. आसिफ स्टूडियो में एक राइटर ने मुझसे कहा कि अगर डायरेक्टर बनना है तो किसी छोटी यूनिट में जाओ। वहां काम सीखने को मिलेगा। यहां तो सालों साल लग जाते हैं।
मैं किसी को जानता नहीं था तो उन्होंने मुझे पंजाबी फिल्म 'सात सालियां' में लगवा दिया, जिसके डायरेक्टर करुणेश ठाकुर थे। वहां काम सीखने को मिला। उसके बाद मुझे 'दूर का राही' में किशोर दा (किशोर कुमार) के साथ काम करने का मौका मिला। इस प्रोसेस में सीखने को बहुत मिला। वीरेंद्र सिन्हा ने मुझे बतौर डायरेक्टर काम दिया और मेरी पहली फिल्म 'बुनियाद' आई।
फिल्म का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया था। एक दिन प्यारे भाई ने मुझसे कहा कि वे अपने सेक्रेटरी के लिए एक फिल्म बनाना चाहते हैं और उन्हें मेरी स्टाइल बहुत पसंद आई है। उन्होंने मुझे अपनी फिल्म 'जालिम' के लिए बतौर डायरेक्टर साइन किया।
फिर इस फिल्म के एक प्रोड्यूसर एस.के. कपूर ने मुझे हेमा मालिनी, शशि कपूर स्टारर 'अपना खून' के लिए चुना। यह फिल्म भी चल निकली। फिर प्रोड्यूसर रामदयाल के साथ 'तकदीर का बादशाह' प्लान की, जिसमें मिथुन चक्रवर्ती हीरो थे।
संतुष्टि नहीं मिली तो खुद प्रोडक्शन शुरू किया
कई प्रोड्यूसर्स के साथ काम करने के बावजूद कुछ न कुछ कमी रह जाती थी। क्योंकि कई चीजों के लिए प्रोड्यूसर तैयार नहीं होते थे। तब मुझे लगा कि मुझे अपनी फिल्म करनी चाहिए। ताकि मैं जो करना चाहता हूं, वह कर सकूं। इस तरह मेरे दिमाग में 'डिस्को डांसर' का आइडिया आया। डिस्को उस समय पॉपुलर होना शुरू हुआ था।
वह दौर एक्शन और सोशल ड्रामा टाइप की फिल्मों का था। लेकिन मैं कुछ अलग बनाना चाहता था। उस समय तक बमुश्किल ही किसी ने म्यूजिकल और डांस ड्रामा फिल्म की होगी। मिथुन तब कुछ परेशान चल रहे थे। काफी कोशिश के बाद भी वे जिस तरह के स्टार बनना चाहते थे, वह नहीं बन पा रहे थे। उन्होंने मुझे अपना दर्द बताया।
तब मैंने उन्हें कहा कि मैं तुम्हारे साथ फिल्म 'डिस्को डांसर' बनाऊंगा और मुझे यकीन है कि तुम बहुत बड़े स्टार बन जाओगे। इसके बाद मैंने वह फिल्म बतौर डायरेक्टर, राइटर और प्रोड्यूसर बनाई। हमने इस फिल्म पर बहुत मेहनत की थी और हमें इसकी सफलता की उम्मीद भी थी। लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि यह फिल्म इस तरह का इतिहास रच देगी।
मिथुन के साथ कनेक्शन कैसे बैठा?
मैं एक प्रोड्यूसर की फिल्म कर रहा था, जो बन नहीं पाई। उनका और मिथुन का घर पास ही था। एक कनेक्शन यह था कि मिथुन की पत्नी योगिता बाली मेरे साथ 'गंगा तेरा पानी अमृत' और 'बुनियाद' में काम कर चुकी थीं। 'तकदीर का बादशाह' के प्रोड्यूसर किसी और को फिल्म में लेना चाहते थे। लेकिन मिथुन के चेहरे में मुझे एक स्टाइल और अलग सी कशिश देखी और प्रोड्यूसर पर उन्हें फिल्म में लेने का दबाव बनाया। फिर इस फिल्म के सेट पर हमारी अंडरस्टैंडिंग बनती गई।
'एडवेंचर ऑफ टार्जन' के पीछे की कहानी
'कसम पैदा करने वाले की' हमने घोषणा के तुरंत बाद शुरू कर दी थी। इस फिल्म के पूरा होने के बाद मैंने 'डांस-डांस' प्लान की थी। इस पर मिथुन बोले- 'गुरु आपने मुझे स्टार बनाया है। लेकिन मैंने काफी फिल्में साइन कर ली हैं तो मुझे 6-8 महीने का समय दीजिए। उसके बाद आप जो डेट चाहेंगे, वह मैं आपको दे दूंगा।'
मैंने कहा ठीक है। फिर मैंने सोचा कि ये 6-8 महीने क्या किया जाए? इस खाली समय का इस्तेमाल मैंने 'एडवेंचर ऑफ टार्जन' बनाने में किया। पहले लोग इसे सी-ग्रेड में बना चुके थे। लेकिन मैंने इसे अच्छे से A-ग्रेड में बनाने का फैसला लिया। मैंने इसे बहुत बड़े स्केल पर बनाया था, जो हिट भी हुई।
अमिताभ बच्चन के साथ क्यों नहीं कर सके काम
मैंने जिनके साथ भी काम किया, फिर चाहे शत्रुघ्न सिन्हा हों, विनोद खन्ना हों, हेमा मालिनी हों या फिर मिथुन चक्रवर्ती, वो लगभग सभी एक्टर्स आगे जाकर सांसद बनें। जिस वक्त मैंने अपनी फिल्में बनानी शुरू की, उस वक्त अमिताभ बच्चन राजनीति में चले गए थे। जब 1990 के बाद उन्होंने वापसी की तो बतौर एक्टर उनके साथ दिक्कत चल रही थी। इस गैप के चलते हमारा कॉम्बिनेशन नहीं बन पाया। हालांकि, मेरी बड़ी इच्छा थी और अभी है। अगर भगवान ने चाहा तो हम आगे साथ काम करेंगे।
आमिर की दखलंदाजी पसंद नहीं आई थी
आमिर के साथ मैंने 'लव लव लव' की थी। अगर उनका ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो वे ज्यादातर एक डायरेक्टर के साथ एक ही फिल्म करते हैं। उनके साथ दिक्कत यह थी कि वे दखलंदाजी बहुत करते थे। वह मुझे पसंद नहीं थी।
फिल्म की एक सीक्वेंस के मुताबिक, आमिर को शादी करनी थी और अपनी बीवी के लिए लड़ाई लड़नी थी। हमने इसे शूट भी कर लिया था। लेकिन आमिर इस बात के पीछे पड़ गए कि वे नए-नए हैं और उनकी इमेज लवर ब्वॉय की है। ऐसे में फिल्म में उन्हें शादीशुदा दिखाना सही नहीं है।
खैर, उनका अपना नजरिया था और इसकी वजह से फिल्म को कुछ नुकसान भी हुआ था। हालांकि, वे मेरी इज्जत बहुत करते हैं। जब हम चाइना में थे, जहां आमिर 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तां' को रिलीज करने गए थे। वहां डायरेक्टर्स की फोरम में मैं भी था। तब आमिर ने मेरे बारे में कहा था कि जब मुझे काम की बहुत जरूरत थी, तब सर ने मुझे तुरंत काम दे दिया था।
आगे की क्या प्लानिंग है
मेरे दिमाग में 'टार्जन' की रीमेक है। 'डिफेंडर' फिल्म मेरा बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है, जिस पर मैं काम कर रहा हूं। 'टार्जन' पर काम कर रहा हूं। इन्हें आने में अभी एक से दो साल का वक्त लग सकता है।
OTT प्लेटफॉर्म्स पर एडल्ट कंटेंट परोसने का आरोप अक्सर लगता है। यही वजह है कि सोशल और धार्मिक संगठन उन पर लगाम कसने की वकालत करते रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हाल में सरकार ने अधिसूचना जारी की कि OTT प्लेटफॉर्म्स को टेलीविजन नेटवर्क रूल्स के तहत चलना पड़ सकता है।
फिलहाल, इस मामले में सरकार की राह अभी थोड़ी मुश्किल लग रही है। फिल्मों के लिए जो सेंसर बोर्ड फिल्मों के सर्टिफिकेशन का काम कर रहा है, वो मैनपॉवर की कमी से जूझ रहा है। OTT प्लेटफार्म्स के कंटेंट पर कैसे लगाम लगाई जाएगी, इसे लेकर कोई रोडमैप तैयार नहीं है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से अलग-अलग जानकारियां अनौपचारिक तौर पर निकलकर सामने आ रही हैं, लेकिन सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) के अध्यक्ष प्रसून जोशी का कोई बयान अब तक सामने नहीं आया है। हालांकि, CBFC के कुछ पूर्व सदस्यों ने जरूर इसे लेकर बात की।
सेल्फ सेंसरशिप की वकालत कर रही सरकार
CBFC के एक रीजनल अधिकारी ने कहा, "फिलहाल सरकार ने सेल्फ सेंसरशिप की वकालत की है। वह इसलिए कि मंत्रालय पहले ही मैन पावर की कमी से जूझ रहा है। दिल्ली और मुंबई को मिलाकर महज 150 लोगों का स्टाफ हैं। उन पर साल की छोटी, बड़ी, मझौली मिलाकर डेढ़ हजार फिल्में देखने का बोझ है। ऐसे में मंत्रालय का अधिकारी वर्ग अतिरिक्त काम ले सकने की स्थिति में नहीं है।"
इसी मेंबर ने आगे कहा, "सरकार की तरफ से स्मार्ट मूव लिया जा रहा है। OTT प्लेटफॉर्म्स से ‘सेल्फ रेज्युलेशन’ या सेल्फ सेंसरशिप की बात कही जाएगी। इसके तहत न्यूडिटी और गाली गलौज पर भले थोड़ी नरमी बरती जाए, लेकिन देश विरोधी मुद्दों को कतई नहीं बख्शा जाएगा। इस स्थिति में वेब शो या फिल्मों या उनसे जुड़े फिल्मकारों पर शिकंजा कसा जाएगा। तकनीकी तौर पर इसे 'पिक एंड चूज' पॉलिसी कहते हैं।"
सेल्फ सेंसरशिप में OTT कंटेंट क्रिएटर्स को खुद ही तय करना होगा कि उनकी वेब सीरिज या फिल्मों में हिंसा, न्यूडिटी वगैरह अतिरेक भरे ना हो।
OTT पर सेंसरशिप के लिए कोई ड्रॉफ्ट नहीं
सेंसर में दो साल तक मेंबर रहे अमिताभ पाराशर कहते हैं, "CBFC के पास मैन पावर और बाकी संसाधनों की कमी है। ऐसे में अतिरिक्त वेब शो के सेंसर का काम भी वह कैसे ले पाएगी, वह देखने वाली बात होगी।" सेंसर बोर्ड के मौजूदा अधिकारियों ने भी पुष्टि की है कि अभी तक डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए तो कोई गाइडलाइंस ड्राफ्ट तैयार नहीं हुए हैं। न ही मंत्रालय में मैन पॉवर बढ़ाने की कोई चर्चा है।
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4. हेसियड 750 और 650 बीसी के दौरान के मशहूर ग्रीक कवि थे। इन्हें ‘फादर ऑफ ग्रीक डायडैक्टिक पोएट्री’ भी पुकारा जाता है। इनकी कही बातें आज के दौर में भी सटीक बैठती हैं। मानवीय व्यवहार पर उन्होंने कठोर विचार व्यक्त किए, वैसे भी कहा जाता है कि सच कड़वा होता है। इनकी बातें कड़वी लग सकती हैं लेकिन सच हैं। इनकी चुनिंदा विचार पढ़ने के लिए क्लिक करें....
आज से 28 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया था। अयोध्या की बाबरी मस्जिद को लेकर सैकड़ों साल से विवाद चला आ रहा था। भाजपा नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए 1990 में आंदोलन शुरू किया था।
5 दिसंबर 1992 की सुबह से ही अयोध्या में विवादित ढांचे के पास कारसेवक पहुंचने शुरू हो गए थे। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ढांचे के सामने सिर्फ भजन-कीर्तन करने की इजाजत दी थी। लेकिन अगली सुबह यानी 6 दिसंबर को भीड़ उग्र हो गई और बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया। कहते हैं कि उस समय 1.5 लाख से ज्यादा कारसेवक वहां मौजूद थे और सिर्फ 5 घंटे में ही भीड़ ने बाबरी का ढांचा गिरा दिया गया था। शाम 5 बजकर 5 मिनट पर बाबरी मस्जिद जमींदोज हो गई।
इसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। इन दंगों में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। मामले की FIR दर्ज हुई और 49 लोग आरोपी बनाए गए। आरोपियों में लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, चंपत राय, कमलेश त्रिपाठी जैसे भाजपा और विहिप के नेता शामिल थे। मामला 28 साल तक कोर्ट में चलता रहा और इसी साल 30 सितंबर को लखनऊ की CBI कोर्ट ने सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। फैसले के वक्त तक 49 में से 32 आरोपी ही बचे थे, बाकी 17 आरोपियों का निधन हो चुका था।
इसके अलावा पिछले साल 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला दिया था। इस फैसले के तहत जमीन का मालिकाना राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में सुनाया। मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अलग से देने का आदेश दिया। इसी साल 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन किया था।
आज ही के दिन हुआ था डॉ. अंबेडकर का निधन
भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्हें लोग बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से भी जानते थे। 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया था। डॉ. अंबेडकर ही थे, जिन्होंने हमारे देश का संविधान बनाया था। आज उन्हीं के बनाए संविधान पर हमारा देश चल रहा है। संविधान निर्माता होने के साथ-साथ डॉ. अंबेडकर हमारे देश के पहले कानून मंत्री भी थे।
डॉ. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। वो 14 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। गरीब परिवार में जन्मे अंबेडकर ने छुआछूत का जमकर विरोध किया। इसी ने उन्हें दलितों का नेता भी बना दिया।
उन्हें बंबई (अब मुंबई) यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। बाद में उन्होंने अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन यूनिवर्सिटी से मास्टर्स डिग्री हासिल की। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी भी की।
आजादी के बाद उन्हें कानून मंत्री बनाया गया। साथ ही कॉन्स्टीट्यूशन ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन भी अपॉइन्ट किया गया। डॉ. अंबेडकर को डायबिटीज की शिकायत थी। 6 दिसंबर 1956 को नींद में ही उनका निधन हो गया।
भारत और दुनिया में 6 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:
1917 : फिनलैंड ने खुद को रूस से स्वतंत्र घोषित किया।
1921 : ब्रिटिश सरकार और आयरिश नेताओं के बीच हुई एक संधि के बाद आयरलैंड को एक स्वतंत्र राष्ट्र और ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का स्वतंत्र सदस्य घोषित किया गया।
1946 : भारत में होमगार्ड की स्थापना।
1956 : भारतीय राजनीति के मर्मज्ञ, विद्वान शिक्षाविद् और संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर का निधन।
1978 : स्पेन में 40 साल के तानाशाही शासन के बाद देश के नागरिकों ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए मतदान किया। यह जनमत संग्रह संविधान की स्वीकृति के लिए कराया गया।
2007 : ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में सिख छात्रों को अपने साथ कृपाण ले जाने और मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने की इजाजत मिली।
from Dainik Bhaskar /national/news/aaj-ka-itihas-today-history-india-world-december-6-babri-masjid-demolition-date-ambedkar-death-anniversary-127984982.html
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