कहानी - महाभारत युद्ध के बाद का प्रसंग है। युद्ध में पांडव विजयी हो गए थे। कुछ सालों तक युधिष्ठिर ही राजा बने रहे। बाद में अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राजा घोषित कर दिया गया। परीक्षित बहुत बुद्धिमान और धर्म के जानकार थे। एक दिन वे कहीं जा रहे थे, तब उन्होंने देखा कि खेत में एक काला आदमी गाय और बैल को मार रहा है।
परीक्षित ने तीनों से उनका परिचय पूछा। गाय ने कहा कि मैं धरती हूं। बैल ने कहा कि मैं धर्म हूं। गाय और बैल के बाद काला व्यक्ति बोला कि मैं कलियुग हूं। अब मेरे आने का समय हो गया है। मैं आते ही सबसे पहले धरती और धर्म पर प्रहार करता हूं। आप द्वापर युग के अंतिम राजा हैं, तो अब आप कलियुग को यानी मुझे प्रवेश दीजिए।
परीक्षित ने काफी सोचकर कहा कि चार जगहों से तेरा प्रवेश होगा। पहली जगह जहां मदिरा पी जाती हो, दूसरी जहां जुआं खेला जाता हो, तीसरी जहां हिंसा हो और चौथी जहां व्यभिचार होता हो। व्यभिचार यानी जहां पुरुष अपनी स्त्री के होते हुए भी अन्य स्त्री से संबंध रखता है और पति के होते हुए भी महिला किसी अन्य पुरुष से संबंध रखती है। कलियुग ने कहा कि ये चारों रास्ते खराब हैं, मुझे कम से कम एक रास्ता तो अच्छा दीजिए। जहां से मैं सरलता से आ सकूं। तब परीक्षित ने कहा था कि जहां सोना (स्वर्ण) हो, वहां से भी तू प्रवेश कर सकता है।
उस समय लेन-देन की करंसी गोल्ड ही थी। गलत रास्ते से यदि आप आमदनी करेंगे तो भी कलियुग आपके जीवन में आ जाएगा। कलियुग यानी गलत आचरण। आज भी अगर ये पांच स्थान ठीक नहीं हैं, तो कलियुग आता ही है। ये व्यवस्था उस समय परीक्षित ने कर दी थी। जीवन में सुख-शांति चाहते हैं तो नशा, जुआं, हिंसा, व्यभिचार से बचें और गलत तरीके से धन कमाने की कोशिश भी न करें।
सीख - ध्यान दें, कहीं हमारी जिंदगी में भी ये पांच बातें तो नहीं हो रही हैं। अगर इन पांच में से कोई एक बात भी हमारे जीवन में हो रही है तो समय रहते सावधान हो जाएं। वरना, गलत आचरण हम करेंगे और इसकी कीमत हमारा परिवार, समाज और ये राष्ट्र चुकाएगा।
फार्मेसी और जेनेटिक्स में मास्टर्स माधवी और मैकेनिकल इंजीनियर वेणुगोपाल मूलत: हैदराबाद के रहने वाले हैं। साल 2003 से पहले ये कपल नौकरी के सिलसिले में बैंकॉक, मलेशिया, सिंगापुर और फिर अमेरिका में रहा। जब बच्चे बड़े होने लगे तो उन्हें लगा कि अगर बच्चों की परवरिश विदेश में हुई तो वो भारतीय संस्कृति से नहीं जुड़ पाएंगे। ऐसे में उन्होंने वापस अपने मुल्क लौटने का निर्णय लिया। साल 2003 में हैदराबाद आकर बस गए।
हैदराबाद लौटने के बाद एक दिन माधवी ने अपनी सोसाइटी के बाहर प्लास्टिक की प्लेट-कटोरियों का ढेर देखा, जहां कुछ गाय इसमें भोजन ढूंढ रही थीं। कुछ दिन बाद पता चला कि भोजन के साथ प्लास्टिक खाने की वजह से एक गाय की मौत हो गई। इस घटना से दोनों को बहुत दुख हुआ, इसके बाद उन्हें प्लास्टिक की प्लेट-कटोरियों का काेई इको-फ्रेंडली विकल्प तलाशने का विचार आया।
इस तरह 2019 में उन्होंने विसत्राकू की शुरुआत की, जहां माधवी और वेणु साल, सियाली और पलाश के पत्तों से 7 तरह के इको-फ्रेंडली प्लेट और कटोरी तैयार करके पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहे हैं। तेलुगु भाषा में विसत्राकू का अर्थ पत्तल होता है।
अमेरिका से लौटकर 25 एकड़ जमीन ली, यहां 12 हजार किस्म के फलों के पेड़ लगाए
माधवी कहती हैं, ‘अमेरिका से लौटने पर हमने अपनी सेविंग्स से तेलंगाना के सिद्दिपेट में 25 एकड़ जमीन ले ली। यहां हमने 30 से भी ज्यादा किस्मों के फलों के 12 हजार से भी ज्यादा पेड़ लगाए। खेत में हमारा अक्सर आना-जाना रहता था। हमारे खेत पर कई पलाश के भी पेड़ भी हैं और एक दिन बातों-बातों में मेरी मां ने बताया कि पलाश के पत्तों से पहले पत्तल बनाए जाते थे। इसके बाद मैंने और वेणु ने पलाश के कुछ पत्ते इकट्ठा कर उनसे प्लेट बनाने की कोशिश की। हमें सफलता तो मिली लेकिन प्लेट्स काफी छोटी थीं।’
पर्यावरण के प्रति जागरूक रहने वाले वेणुगोपाल कहते हैं, ‘एक फेसबुक ग्रुप पर मुझे पता चला कि ओडिशा में आदिवासी समुदाय अभी भी साल और सियाली के पत्तों से इस तरह के पत्तल बनाते हैं और वो उसको खलीपत्र कहते हैं। तब समझ में आया कि इको-फ्रेंडली पत्तल, दोना आदि अभी भी बनते हैं। लेकिन इनका इस्तेमाल कम हो गया है और इसकी जगह सिंगल-यूज प्लास्टिक की क्रॉकरी ने ले ली है।
इसके बाद मैंने कई नैचुरोपैथ से भी इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि पलाश या साल के पत्तल पर खाना खाने से सिर्फ पर्यावरण ही नहीं बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा असर होता है। जब पत्तल पर खाना परोसा जाता है तो भोजन में एक प्राकृतिक स्वाद भरता है और इससे कीड़े-मकौड़े भी दूर भागते हैं।’
यह जानने के बाद वेणुगोपाल ने ओडिशा के ऐसे सप्लायर से संपर्क किया जो आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए काम करता था। अब वे ओडिशा से सियाली और साल और तेलंगाना से पलाश के पत्ते मंगवाते हैं। फिलहाल, उन्होंने अपने खेत पर ही इन पत्तों से लीफ प्लेट्स बनाने की यूनिट लगाई है, जहां वे पत्तल और कटोरी बनाते हैं।
इन इको-फ्रेंडली, सस्टेनेबल और प्राकृतिक प्लेट्स की मार्केटिंग वेणु और माधवी ने अपनी सोसाइटी से ही शुरू की। जिस भी दोस्त-रिश्तेदार ने अपने आयोजनों में इन प्लेट्स को इस्तेमाल किया, सभी ने सोशल मीडिया पर उनके बारे में लिखा और इस तरह उनके इस इनिशिएटिव को पहचान मिलने लगी। वेणुगोपाल बताते हैं कि अब उनके प्रोडक्ट्स भारत के अलावा अमेरिका और जर्मनी तक भी जा रहे हैं। वो कहते हैं कि भारत से ज्यादा विदेशों में लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक हैं।
2010 में माधवी को ब्रेस्ट कैंसर हुआ, पर्यावरण से नजदीकी बढ़ाकर कैंसर को मात दी
माधवी कहती हैं, ‘साल 2010 में मुझे पता चला कि ब्रेस्ट कैंसर है, मैं हैरान थी कि मुझे कैंसर कैसे हो सकता है। उस वक्त मैं तीन योगा कैंप कर रही थी। फिर अचानक मुझे लगने लगा कि मैं अपने परिवार से दूर चली जाऊंगी। मेरे बच्चे उस समय 10वीं क्लास में थे और मैं उन पर अपनी बीमारी का बोझ नहीं डालना चाहती थी, लेकिन मैं उन सभी के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहती थी।
मेरे जेहन में यह बात थी कि यह कैंसर मुझे प्रदूषण की वजह से हुआ है। इसके बाद मैंने तय किया कि हम खेती करेंगे और हमने अपने खेत में सब्जियों और फलों के ढेर सारे पेड़-पौधे लगाए। यही से उगाए गए अनाज, फल-सब्जी ही हम खाने लगे। मैंने हंसते-हंसते कैंसर को मात दे दी लेकिन इस सफर ने मुझे बहुत कुछ सिखाया और इसी वजह से मैं पर्यावरण से और ज्यादा जुड़ गई।’
माधवी और वेणुगोपाल कहते हैं कि उन्होंने कभी भी स्टार्टअप के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन जब उन्हें लगा कि वो विसत्राकू के माध्यम से पर्यावरण सरंक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं तो इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय लिया। शुरुआत में उन्हें यूनिट सेटअप करने में काफी परेशानी भी आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
पहले साल महज 3 लाख का बिजनेस हुआ, इस साल 20 लाख के टर्नओवर की उम्मीद
वेणुगोपाल कहते हैं, ‘विस्त्राकु की शुरुआत हुए महज दो साल ही हुए हैं। पहले साल में बमुश्किल 3 लाख रुपए का बिजनेस हुआ। लेकिन इस फाइनेंशियल ईयर में हम 20 लाख रुपए का बिजनेस कर लेंगे। अभी तक 15 लाख रुपए का बिजनेस कर चुके हैं। पिछले महीने ही हमें यूएस से एक बड़ा ऑर्डर मिला और एक कंटेनर माल हमने यूएस भेजा है।’
माधवी और वेणु की यूनिट में गांव की ही 7 लड़कियां काम कर रही हैं। इस यूनिट में हर दिन करीब 7 हजार लीफ प्लेट्स और कटोरियां बनतीं हैं। इसके प्रोसेस के बारे में वेणुगोपाल बताते हैं कि इसमें सबसे पहले पत्तों को फूड ग्रेड धागे से सिला जाता है और फिर उन्हें फूड ग्रेड कार्डबोर्ड के साथ मशीन के नीचे रख दिया जाता है।
मशीन का तापमान 60-90 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होता है और इसे 15 सेकंड का प्रेशर दिया जाता है जो इन पत्तों को एक प्लेट का आकार देता है। माधवी का उद्देश्य है कि वे पत्तल पर खाने की संस्कृति को वापस लाएं और लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने में एक अहम भूमिका निभाएं।
आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागार्नो-काराबाख पर नियंत्रण को लेकर भीषण लड़ाई चल रही है। दुनिया की नजर इन दोनों देशों पर है। सीजफायर के कई प्रयास अब तक नाकाम रहे हैं। इसी बीच भास्कर से बात करते हुए अजरबैजान के एंबेसडर और फर्स्ट वाइस प्रेसिडेंट के असिस्टेंट एल्चिन आमिरबायोफ ने कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत ने इस संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौते के पालन का समर्थन किया है।
उन्होंने कहा, 'भारत हमारे बॉर्डर का सम्मान करता है और हम इसके लिए शुक्रगुजार हैं। हमें विश्वास है कि भारत आगे भी तटस्थ रहेगा और इस संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं का समर्थन करेगा। अजरबैजान और भारत दोनों ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य हैं और भारत इसका फाउंडर मेंबर है। एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान ही इसका आधार है।'
वो कहते हैं, 'भारत अगले साल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनने जा रहा है। भारत की भूमिका विश्व में और भी अहम होगी। इसी परिषद में नागार्नो-काराबाख पर अजरबैजान के प्रभुत्व को लेकर चार प्रस्ताव पारित किए गए हैं। हमें विश्वास है भारत इनका समर्थन करेगा।'
अजरबैजान युद्ध में वहां रह रहे भारतीय की भूमिका के सवाल पर उन्होंने कहा, 'अजरबैजान में रह रहे भारतीय व्यापार में सक्रिय हैं। कोविड महामारी का उन पर भी असर हुआ है। वो अपनी तरह से प्रयास कर रहे हैं।' एल्चिन कहते हैं, 'अजरबैजान के टूरिस्ट अब भारत आ रहे हैं और भारत के लोग भी अजरबैजान घूमने अधिक जा रहे हैं। लोगों के आपसी संपर्क से दोनों देश करीब आए हैं और भविष्य में और भी करीब आएंगे।'
क्या अजरबैजान कश्मीर के मुद्दे पर भारत का समर्थन करता है और यदि भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को छुड़ाने का प्रयास किया तो क्या वो भारत का समर्थन करेगा इस सवाल पर उन्होंने कहा, 'मैं इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं कहूंगा लेकिन अजरबैजान का पक्ष इस बारे में स्पष्ट है। हम मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों और कानूनों का सम्मान होना चाहिए। दोनों पक्षों के हितों का ख्याल इसी दायरे में रहकर रखा जाना चाहिए।'
अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच युद्ध अब 41वें दिन में पहुंच गया है। दोनों ओर से हजारों लोग अब तक मारे जा चुके हैं। नागार्नो-काराबाख से बड़ी तादाद में आर्मेनियाई मूल के लोगों ने पलायन किया है। युद्ध की ताजा स्थिति क्या है? ये बताते हुए एल्चिन आमिरबायोफ ने कहा, 'आर्मेनिया न सिर्फ दो तरफ हमारे सैन्य ठिकानों पर बमबारी कर रहा बल्कि बॉर्डर के पास की रिहायशी बस्तियों को भी निशाना बना रहा है।
अजरबैजान ये कहता रहा है कि वह आर्मेनिया के नियंत्रण से अपने इलाके को छुड़ा रहा है। एल्चिन कहते हैं, 'अजरबैजान के बीस फीसदी हिस्से पर आर्मेनिया का कब्जा है। हमने आर्मेनिया के कब्जे वाले सात जिलों में से चार को अब तक छुड़ा लिया है। करीब दस लाख अजरबैजानी लोग आंतरिक प्रवासी थे। अब छुड़ाए गए इलाकों में इन्हें फिर से बसाया जाएगा। जब तक समूचा नागार्नो-काराबाख मुक्त नहीं करा लिया जाएगा ये लड़ाई जा रहेगी।'
अब तक आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच तीन बार सीजफायर हो चुका है। एक बार रूस ने, एक बार फ्रांस ने और एक बार यूरोपीय संघ ने सीजफायर करवाया है। लेकिन हर बार ये सीजफायर कुछ घंटों भी नहीं चल सका। अजरबैजान इसके लिए आर्मेनिया को जिम्मेदार बताता है।
एल्चिन कहते हैं, 'अजरबैजान के राष्ट्रपति ने एक बार फिर वार्ता और सीजफायर की पेशकश की है लेकिन आर्मेनिया के प्रधानमंत्री की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। आर्मेनिया अभी अपने कब्जे वाले क्षेत्र से अपनी सेना हटाने और युद्ध समाप्त करने के लिए तैयार नहीं है।'
क्या कुछ मुद्दों पर अजरबैजान समझौता करने या पीछे हटने के लिए तैयार है। इस सवाल पर एल्चिन आमिरबायोफ ने कहा, 'हमारी सेनाएं मजबूत स्थिति में हैं और अधिक से अधिक इलाके में आगे बढ़ रही हैं, बावजूद इसके हम अभी जंग रोकने को तैयार हैं। लेकिन आर्मेनिया को सार्वजनिक तौर पर ये बोलना होगा कि वो अब इन इलाकों पर फिर से कब्जे का कोई प्रयास नहीं करेगा। हम अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने के लिये तैयार हैं।'
अजरबैजान का आरोप है कि ये युद्ध आर्मेनिया ने शुरू किया है। 27 सितंबर को आर्मेनिया की ओर से बमबारी की गई जिसमें अजरबैजान के नागरिक और सैनिक मारे गए। एल्चिन कहते हैं, 'इसके जवाब में हमें बड़ा सैन्य ऑपरेशन शुरू करना पड़ा। हमें लगा ये वक्त है आर्मेनिया को ये बताने का कि अब अजरबैजान अपने नागरिकों पर कोई हमला बर्दाश्त नहीं करेगा।'
आर्मेनियाई लोगों ने डर जाहिर किया है कि यदि वो नागार्नो-काराबाख को हार जाते हैं तो आर्मेनियाई लोगों को एक और नरसंहार का सामना करना पड़ सकता है। एल्चिन ऐसे आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं, 'अजरबैजान एक बहुसांस्कृतिक क्षेत्र है। अजरबैजान के नियंत्रण वाले इलाकों में आर्मेनियाई लोगों को बराबर अधिकार होंगे और उनकी पूरी सुरक्षा की जाएगी।'
युद्ध में अजरबैजानी महिलाओं की भूमिका के सवाल पर एल्चिन कहते हैं, 'अजरबैजान की महिलाएं सीधे तौर पर सीमा पर युद्ध में शामिल नहीं हैं। लेकिन वो मां, बहन और पत्नी के रूप में युद्ध में शामिल हैं। वो समाज का सबसे अहम अंग है। वो दुआएं कर रही हैं और जो भी उनसे हो रहा है, कर रही हैं। हम चाहते हैं उनकी दुआएं पूरी हों।'
अजरबैजान पर आरोप हैं वह लड़ाई में सीरियाई चरमपंथियों और भाड़े के सैनिकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन आरोपों को खारिज करते हुए एल्चिन कहते हैं कि इसके उलट दुनिया भर से आर्मेनियाई मूल के लोग नागार्ने-काराबाख आ रहे हैं और लड़ाई में हिस्सा ले रहे हैं। असल में चरमपंथी वो हैं।
दुनियाभर में बहुत से लोग मानते हैं कि नागार्नो-काराबाख में चल रही लड़ाई इस्लाम और ईसाइयत के बीच टकराव भी है। इस पर एल्चिन कहते हैं, 'आर्मेनिया अब युद्ध में धर्म का कार्ड खेल रहा है। वो पश्चिमी देशों की सहानुभूति हासिल करने के लिए ऐसा कर रहा है। ये बहुत ही खतरनाक है। लेकिन सच ये है कि इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है। जो लोग इस जमीन का इतिहास जानते हैं वो ये मानते हैं कि ये पूरी तरह जमीन की लड़ाई है जिस पर आर्मेनिया दशकों से कब्जा किए बैठा है।'
अजरबैजान युद्ध में तुर्की की भूमिका के सवाल पर एल्चिन कहते हैं कि तुर्की की भूमिका सिर्फ कूटनीतिक और राजनीतिक समर्थन तक ही है। वो कहते हैं, 'तुर्की हमारा सबसे करीबी देश है। सबसे मजबूत सहयोगी है। ये सच है कि हम एक-दूसरे के इतने करीब हैं कि हम कहते हैं कि हम एक महान राष्ट्र के दो प्रांत हैं। और हमें इस रिश्ते पर गर्व है।
तुर्की ऐसा अकेला देश है जो हर समय हमारे साथ खड़ा रहा है। तुर्की हमारे साथ नहीं होता तो हम अकेले पड़ जाते। लेकिन इस लड़ाई में तुर्की की भूमिका सिर्फ राजनयिक और कूटनीतिक समर्थन तक ही है। तुर्की का कोई सैनिक अजरबैजान की ओर से नहीं लड़ रहा है।'
सोवियत संघ के टूटने से पहले तक अजरबैजान और आर्मेनिया दोनों ही सोवियत संघ का हिस्सा थे। रूस के दोनों ही देशों से रिश्ते हैं लेकिन वो आर्मेनिया के अधिक करीब है। इस लड़ाई में रूस की क्या भूमिका हो सकती है इस सवाल पर एल्चिन कहते हैं, 'इस संघर्ष में रूस सबसे अहम मध्यस्थ है। वह ओएससीई मिंस्क समूह का चेयरमैन है। रूस इस इस लड़ाई को समाप्त करने का हर संभव प्रयास कर रहा है। राष्ट्रपति पुतिन ने अजरबैजान के राष्ट्रपति और आर्मेनिया के प्रधानमंत्री से फोन पर बात की है। अजरबैजान सीजफायर में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है बशर्ते आर्मेनिया इसका इस्तेमाल अपने सेना को मजबूत करने के लिए ना करे।'
योगी के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर बोल गए कि राज्य सरकार ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार भी इस पर कानून बनाने की सोच रही है। बात निकली ही थी तो सरकार बचाने के लिए उपचुनावों में सक्रिय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम भी लव जिहाद को रोकने के लिए कानून लाएंगे। फिर बारी कर्नाटक की थी। वहां तो यह बरसों से उठ रहा मसला था।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के साथ-साथ वहां कई मंत्री बोल रहे हैं कि हम भी कानून बनाएंगे। कुल मिलाकर भाजपा के शासन वाले चार राज्यों ने अब तक लव जिहाद को कानून बनाकर रोकने की ठानी है। इस पर कानून विशेषज्ञ सवाल कर रहे हैं कि संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी देता है। यह हमारा मौलिक अधिकार है। ऐसे में आप लव जिहाद को कानून बनाकर कैसे रोक सकते हैं?
आइए जानते हैं कि यह मामला क्या है और क्या राज्य इस मुद्दे पर कानून बनाकर कोई बदलाव ला सकते हैं-
क्या है लव जिहाद?
लव जिहाद की कथित परिभाषा कुछ ऐसी है कि मुस्लिम लड़के गैर-मुस्लिम लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाते हैं। फिर उनका धर्म परिवर्तन कर उनसे शादी करते हैं।
2009 में यह शब्द खूब चला था। केरल और कर्नाटक से ही राष्ट्रीय स्तर पर आया। फिर UK और पाकिस्तान तक पहुंचा।
तिरुवनंतपुरम (केरल) में सितंबर 2009 में श्रीराम सेना ने लव जिहाद के खिलाफ पोस्टर लगाए थे। अक्टूबर 2009 में कर्नाटक सरकार ने लव जिहाद को गंभीर मुद्दा मानते हुए CID जांच के आदेश दिए ताकि इसके पीछे संगठित साजिश का पता लगाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में NIA से जांच भी कराई थी, जब एक हिंदू लड़की ने मुस्लिम प्रेमी से शादी करने के लिए मुस्लिम धर्म अपनाया। लड़की के पिता ने लड़के पर बेटी को आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए फुसलाने का आरोप भी लगाया था। खैर, निकला कुछ नहीं और लड़की ने खुद ही सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी प्रेम कहानी बयां की थी।
अभी एकाएक लव जिहाद पर कानून की चर्चा क्यों छिड़ गई?
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 29 सितंबर को नवविवाहित दंपती को पुलिस सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था। महिला जन्म से मुस्लिम थी और उसने 31 जुलाई को अपनी शादी के एक महीना पहले हिंदू धर्म अपनाया था।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति को उस धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं है या उस पर उसका विश्वास भी नहीं है तो सिर्फ शादी के लिए उसके धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
केंद्र सरकार का लव जिहाद पर क्या कहना है?
फरवरी में सांसद बैन्नी बेहनन ने लोकसभा में सरकार से पूछा था कि केरल में लव जिहाद के मामलों पर उसका क्या कहना है? क्या उसने ऐसे किसी मामले की जांच की है?
जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 25 लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के शर्ताधीन धर्म को अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रसार करने की अनुमति देता है।
यह भी कहा कि मौजूदा कानूनों में लव जिहाद शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। किसी भी केंद्रीय एजेंसी ने लव जिहाद के किसी मामले की जानकारी नहीं दी है। NIA ने केरल में जरूर अंतर-धर्म विवाह के दो मामलों की जांच की है।
सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है धर्म परिवर्तन पर?
भारत के संविधान के आर्टिकल-25 के मुताबिक भारत में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने की, आचरण करने की तथा धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता है। यह अधिकार सभी धर्मों के नागरिकों को बराबरी से है।
अदालतों ने अंतःकरण या कॉन्शियंस की व्याख्या भी धार्मिक आजादी से स्वतंत्र की है। यानी कोई व्यक्ति नास्तिक है, तो उसे अपने कॉन्शियंस से ऐसा अधिकार है। उससे कोई जबरदस्ती किसी धर्म का पालन करने को नहीं कह सकता।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने 1975 में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर इसकी अच्छे-से व्याख्या की है। दरअसल, मध्यप्रदेश और ओडिशा की हाईकोर्टों ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ बने कानूनों पर अलग-अलग फैसले सुनाए थे।
मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो उसने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन किया और कहा कि धोखाधड़ी से, लालच या दबाव बनाकर धर्म परिवर्तन कराना उस व्यक्ति के कॉन्शियंस के अधिकार का उल्लंघन है। उसे अपनी कॉन्शियंस के खिलाफ जाकर कुछ करने को मजबूर नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि पब्लिक ऑर्डर को बनाए रखना राज्यों का अधिकार है। जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो यह कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। राज्य अपने विवेक से कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए आवश्यक कानून बना सकते हैं।
क्या राज्यों में लव जिहाद के खिलाफ कानून संभव है?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट साफ कर चुके हैं कि धर्म परिवर्तन स्वेच्छा से और बिना किसी लालच या लाभ के होना चाहिए। इसे ही आधार बनाकर चार भाजपा-शासित राज्य प्यार और शादी के बहाने किसी व्यक्ति के इस्लाम या किसी और धर्म में परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की बात कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को देखकर साफ है कि कानून-व्यवस्था कायम रखना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। यदि राज्य यह साबित कर देते हैं कि कानून-व्यवस्था को कायम रखने के लिए लव जिहाद के खिलाफ कानून जरूरी है तो वह बना भी सकते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट 1975 का रुख दोहराता है या नई व्यवस्था देता है, यह भविष्य में स्पष्ट होगा।
आजकल मुल्क में आजादी की आंधी चली हुई है। किसी को झंडे से आजादी चाहिए। किसी को नारों से, कोई गला फाड़कर चीखने की आजादी मांगता है तो कोई एंबुलेंस रोक डफली बजाने की। इस शोर में औरतों की आजाद आवाज फुसफुसाहट में बदल गई। अमां, तुम्हें भला किसने बंदी बना रखा है जो मुट्ठियां लहराती हो! अच्छी-भली आजाद तो हो।
हां, औरतें आजाद हैं। तभी तो टीचर, नर्स, डॉक्टर से होते हुए वे पुलिस और कोर्ट में भी ऊंचे ओहदों पर हैं। बस किसी को ये नहीं पता कि कड़क वर्दी में लंबे-लंबे डग भरती औरत जब दफ्तर पहुंचती है तो अधीनस्थ पुरुषों की आंखें उसे टटोलने लगती हैं।
औरत की आंखों में रतजगा दिखे तो ठहाके मारे जाते हैं। 'लगता है आज मैडम को प्रॉपर डोज मिला है!' बॉस औरत झड़प लगाए तो फट् से जुमला उछलता है - 'औरतें तो होती ही चिड़चिड़ी हैं'। मेकअप और दिनों से ज्यादा हो तो नजरें जख्मों के निशान देखकर ही तसल्ली पाती हैं। और फिर एक सदाबहार कमेंट- औरतों से बाहर का काम नहीं संभलता तो रोटियां क्यों नहीं बेलतीं। खुदा-न-खास्ता, तेज-तर्रार हो तो उसका औरत होना ही संदेह के दायरे में आ जाता है। अपनी आजाद-खयाली को नजीर की तरह देखने वाले ज्यादातर पुरुषों को भी सब कुछ चलेगा लेकिन औरत बॉस नहीं। दफ्तर को नरक बना देती है।
एक दूसरे जनाब भी हैं जो फरमाते हैं कि बगैर शादी रह लूंगा लेकिन खुद से ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की नहीं चाहिए। अरेंज मैरिज हो तो लड़की में पिटी-पिटाई खूबियों के अलावा ये भी चयन की कसौटी होती है। पढ़ी-लिखी हो, अंग्रेजी में गिटपिटा सके लेकिन पति से बेहतर नहीं। ग्रेजुएट हो लेकिन पीएचडी नहीं, लड़की वाले भी लड़के के आगे दोहरे-तिहरे होते हुए शान बघारते हैं- इसका तो मन था आगे पढ़ने का लेकिन हमें कौन सा इसे गर्वनर बनाना है। आखिर एक न एक रोज बच्चे के पोतड़े धोने ही होंगे। तब अपनी डिग्रियों को रोएगी। अब जिसके घरवाले इतने संस्कारी हों, उनकी बेटी में भी तो गुलामी के कुछ अंश होंगे ही। तो लीजिए साहब, दन्न से बात पक्की हो जाती है।
चीन हमसे एक कदम आगे है। वहां ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़कियों को यूएफओ कहा जाता है। बता दें कि फिलहाल उड़न तश्तरियों के लिए ये टर्म इस्तेमाल होता है। चीन में इसके मायने बदल जाते हैं- वहां कोई लड़की ज्यादा पढ़-लिख जाए तो उसे यूएफओ कहते हैं, यानी- अगली (बदसूरत), फूलिश (मूर्ख) और ओल्ड (बूढ़ी)। यहां तक कि वहां औरतों के हक में बोलने वाली संस्था ऑल चाइना वीमेंस फेडरेशन ने कह दिया था कि पीएचडी करने वाली युवतियां शादी जैसे युवा रिश्ते के लिए बासी मोती रह जाती हैं। बासी मोती को भला कौन मर्द गले लगाए!
आसान जबान में कहें तो स्मार्ट औरतें अच्छी गुलाम नहीं हो पातीं। वो सवाल करती हैं, जवाब मांगती हैं और हद तो देखिये कि उसे चुनौती भी देती हैं। अब ऐसी आजादी भी भला किस काम की, जो घर तोड़ दे। लिहाजा, औरतों को पढ़ाया जाता है लेकिन तभी तक, जब तक वो विज्ञान और साहित्य के रट्टेभर लगाती दिखें।
किताबें पढ़ने तक मामला पकड़ाई में है लेकिन जैसे ही वे किताबों की दुनिया में पैर धरती हैं, सिंहासन डोल उठते हैं। तब शुरू होता है पढ़ी-लिखी औरतों को कोसने का सिलसिला। औरतों वाली मैगजीन पढ़ो, थोड़ा फैशन जानो। कुछ घर सजाने-बसाने की किताबें पढ़ो। ये क्या पीले पन्ने धर रखे हैं। अगर वो इतने में समझ जाए तो ठीक वरना फिर आदिमयुगीन टोटके आजमाए जाते हैं। औरत खींचकर किताबों से बाहर हो जाती है या फिर दिखती भी है तो अपने हिस्से के काम करती हुई।
कुल जमा औरतों के हिस्से वे काम आते हैं, जो तभी दिखते हैं, जब वे पूरे न हों। जैसे बिना इस्तरी के मुसे कपड़े या रसोई में जूठे बर्तनों का ढेर। इनका अधूरापन केवल गुस्सा दिलाता है। दिमाग या आत्मा को झकझोरता नहीं। अधूरी तस्वीर या अध लिखी किताब का दंश बेचारे पुरुषों के हिस्से है।
ऐसा क्यों है कि पढ़ी-लिखी,आत्मविश्वास से डग भरती औरतें या तो चरित्रहीन हो जाती हैं या फिर करियर की भूखी! पुरुष उजाला टूटने से पहले से लेकर देर रात तक लैपटॉप पर उंगलियां फटफटाएं तो जिम्मेदार। औरत करे तो कॉर्पोरेट क्वीन। बिल्कुल एक ही काम के लिए ये दो परिभाषाएं आखिर कैसे बनीं? जो औरत पढ़ सकती है, उसे साहित्य रचने पर क्यों रोका जाता है. या फिर अंतरिक्ष विज्ञान की बराबर समझ के बाद भी औरत से क्यों नींव का पत्थर बनने की उम्मीद की जाती है!
खानाबदोशी के दौर में औरत और मर्द साथ फिरा करते थे। शेर को देखकर न औरत मर्द के पीछे जाती थी और न मर्द मारे हुए जानवर को औरत के कांधे लटकाते परहेज करता था। घर लौटकर मांस कोई साफ करता, तो भूनता कोई था। गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी दोनों के हिस्से थे। तूफानी नदियों की तैराकी दोनों जानते। जंगलों में कहां खुराक मिलेगी और कहां खतरा- ये नक्शा भी दोनों के दिलों पर साफ था। फिर ये बंटवारा कब हुआ? कैसे ऐसा हुआ कि किताबें-दफ्तर मर्दों की जागीर हो गए और घर औरत की दहलीज!
चलिए, पता लगाते हैं। ज्यादा नहीं, यही कोई हजारों साल पहले लौटना होगा। उस काल में जब घर की दहलीज केवल बाहर जाने या भीतर लौटने का जरिया था। आसमान-नदियां-जंगल-पहाड़ सबपर जनाने-मर्दाने पैरों की बराबर छाप थी। न कहीं कम, न कहीं ज्यादा।
त्योहारों का मौसम चल रहा है। मिठाई और ड्राई फ्रूट्स हम पहले से ज्यादा खरीद रहे हैं। लेकिन क्या मिठाई और ड्राई फ्रूट्स खाने से हमारी इम्युनिटी स्ट्रांग होती है? कौन सी मिठाई और ड्राईफ्रूट्स से ज्यादा इम्युनिटी बूस्ट होती है? ये जानना हमारे लिए ज्यादा जरूरी है, क्योंकि कोरोना अभी गया नहीं है। तमाम रिसर्च में यह बात साबित भी हो चुकी है कि जिसकी इम्युनिटी जितनी स्ट्रांग होगी, उसे कोरोना का खतरा उतना कम होगा।
डायटीशियन और फूड एक्सपर्ट डॉक्टर निधि पांडेय कहती हैं कि फेस्टिव सीजन में इम्युनिटी को बूस्ट करने के लिए काजू, बादाम, पिस्ता और चिरौंजी जरूर खाएं। इन्हें हम दो तरीके से खा सकते हैं। पहला- रोस्ट करके, दूसरा- अंजीर की कोटिंग करके। हम इनसे बनी मिठाई भी खा सकते हैं।
इसके अलावा गुड़, तिल और सोंठ को ज्यादा से ज्यादा खाएं, ये चीजें आयरन की अच्छे सोर्स हैं, इन्हें ठंड में खाने से सर्दी-जुकाम होने का खतरा भी कम हो जाता है।
अलग-अलग कॉम्बिनेशन के लड्डू बनाएं
डॉक्टर निधि कहती हैं कि चूंकि ठंड के साथ फेस्टिव सीजन भी है तो हम इस समय अलग-अलग कॉम्बिनेशन के लड्डू बनाकर घर में रख सकते हैं। ये अन्य मिठाइयों से ज्यादा हेल्दी होती हैं। इन्हें बनाने के लिए सोंठ, ड्राईफ्रूट्स, गुड़, आटा का इस्तेमाल करेंगे तो और बेहतर होगा। इसके अलावा दाल, तिल और बेसन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ये प्रोटीन के अच्छे सोर्स हैं।
आटे और खोए से बनाएं गुझिया
डॉक्टर निधि कहती हैं कि त्योहारों में सबसे ज्यादा गुझिया बनती है, खासकर दिवाली के दिन तो हर घर में गुझिया बनती है। लेकिन यदि गुझिया बनाने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखें तो हम अपनी इम्युनिटी बूस्ट कर सकते हैं।
इन 4 बातों का ध्यान रखें-
गुझिया बनाने में मैदे की जगह आटे का इस्तेमाल करें।
खोया बाजार से न खरीदें, बल्कि घर पर ही बनाएं।
यदि मैदा इस्तेमाल कर रहे हैं तो लेअर पतली बनाएं, इससे कैलोरी कम बनती है।
प्योर खोए से बने पेड़े पेस्ट करके भी गुझिया बना सकते हैं।
गुड़ की मिठाइयां बनाएं
मिठाई बनाने में हो सके तो गुड़ और बूरा का ज्यादा इस्तेमाल करें। ये ज्यादा हेल्दी और आसानी से डाइजेस्ट भी हो जाता है। आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल मिठाई बनाने में बिल्कुल न करें। सूखे नारियल और खोए की बर्फी भी बना सकते हैं, ये भी हेल्दी मिठाई होती है और पूरे हफ्ते खा सकते हैं।
IPL के 13वें सीजन का दूसरा क्वालिफायर आज अबु धाबी में दिल्ली कैपिटल्स (DC) और सनराइजर्स हैदराबाद (SRH) के बीच खेला जाएगा। इस मैच की विजेता 10 नवंबर को मुंबई इंडियंस के साथ दुबई में खिताबी मुकाबला खेलेगी। इस मैच को जीतकर दिल्ली के पास अपना पहला फाइनल खेलने का मौका होगा। वहीं, आंकड़ों की बात करें, तो हैदराबाद मजबूत नजर आ रही है।
लीग राउंड में दोनों बार हैदराबाद ने हराया
लीग राउंड में दिल्ली और हैदराबाद के बीच हुए दोनों मुकाबले में वॉर्नर की टीम भारी पड़ी थी। सीजन के 11वें मैच में हैदराबाद ने दिल्ली को 15 रन से हराया था। वहीं, सीजन के 47वें मैच में दिल्ली को हैदराबाद के हाथों 88 रन की करारी हार झेलनी पड़ी थी।
क्वालिफायर में दिल्ली को मुंबई ने हराया था
दिल्ली को सीजन के पहले क्वालिफायर में मुंबई के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी थी। मुंबई ने पहले बल्लेबाजी करते हुए दिल्ली को 201 रन का टारगेट दिया था। जवाब में दिल्ली 8 विकेट पर 143 रन ही बना सकी थी।
एलिमिनेटर में हैदराबाद ने बेंगलुरु को हराया था
शुक्रवार को खेले गए एलिमिनेटर मुकाबले में हैदराबाद ने बेंगलुरु को 6 विकेट से हराया था। इसी के साथ बेंगलुरु का पहली बार खिताब जीतने का सपना अधूरा रह गया। बेंगलुरु ने पहले बल्लेबाजी करते हुए हैदराबाद को 132 रन का टारगेट दिया था। जवाब में हैदराबाद ने 2 बॉल शेष रहते 4 विकेट पर यह लक्ष्य हासिल कर लिया।
हैदराबाद के 4 और दिल्ली के 3 बॉलर्स के नाम 10+ विकेट
गेंदबाजी के मामले में हैदराबाद की टीम दिल्ली पर भारी है। हैदराबाद के 4 गेंदबाजों ने सीजन में 10 से ज्यादा विकेट अपने नाम किए हैं। वहीं, दिल्ली के 3 गेंदबाजों के नाम सीजन में 10+ विकेट हैं।
सीजन में हैदराबाद के राशिद खान ने 19, टी नटराजन ने 16, संदीप शर्मा और जेसन होल्डर ने 13-13 विकेट लिए हैं। वहीं, सीजन में दिल्ली के लिए कगिसो रबाडा ने 25, एनरिच नोर्तजे ने 20 और रविचंद्रन अश्विन ने 13 विकेट अपने नाम किए हैं।
हैदराबाद के 3 और दिल्ली के 2 बॉलर्स के नाम 100+ डॉट बॉल
डॉट बॉल की बात करें, तो हैदराबाद के राशिद ने 15 मैच में 164, टी नटराजन ने 15 मैच में 130 और संदीप ने 12 मैच में 112 डॉट बॉल फेंकी हैं। दूसरी ओर, दिल्ली के लिए नोर्तजे ने 14 मैच में 144 और रबाडा ने 15 मैच में 138 डॉट बॉल फेंकी हैं
दोनों टीमों में 3-3 बल्लेबाजों के 300+ रन
दोनों टीमों में एक-एक बल्लेबाज ने 500+, 400+ और 300+ रन बनाए हैं। हैदराबाद के लिए डेविड वॉर्नर ने 546, मनीष पांडे ने 404 और जॉनी बेयरस्टो ने 345 रन बनाए हैं। वहीं, दिल्ली के लिए शिखर धवन ने 525, श्रेयस अय्यर ने 433 और मार्कस स्टोइनिस ने 314 रन बनाए हैं।
हैदराबाद के 7 और दिल्ली के 5 बल्लेबाजों ने फिफ्टी लगाई
हैदराबाद के लिए सीजन में 7 बल्लेबाजों ने फिफ्टी लगाई हैं। वॉर्नर ने अपनी टीम के लिए सबसे ज्यादा 4, पांडे और बेयरस्टो ने 3-3, विलियम्सन और साहा 2-2, प्रियम गर्ग और विजय शंकर ने एक फिफ्टी लगाई है। वहीं, दिल्ली के लिए धवन और स्टोइनिस ने सबसे ज्यादा 3-3, अय्यर और पृथ्वी शॉ ने 2-2 और अजिंक्य रहाणे ने एक फिफ्टी लगाई है।
शिखर के नाम सीजन में 2 शतक
दिल्ली के ओपनर शिखर धवन सीजन में 2 शतक लगा चुके हैं। शिखर IPL में सबसे ज्यादा 40 फिफ्टी लगाने वाले भारतीय भी हैं। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के कप्तान विराट कोहली भी लीग में 39 फिफ्टी लगा चुके हैं। सबसे ज्यादा फिफ्टी लगाने का रिकॉर्ड हैदराबाद के कप्तान डेविड वॉर्नर (48) के नाम है।
लीग राउंड में दिल्ली दूसरे और हैदराबाद तीसरे स्थान पर
लीग राउंड में दिल्ली ने 8 मैच जीते और 7 हारे थे। वह 16 पॉइंट्स के साथ पॉइंट्स टेबल में दूसरे स्थान पर थी। वहीं, हैदराबाद ने लीग राउंड में 7 मैच जीते और इतने ही हारे थे। वॉर्नर की टीम 14 पॉइंट्स के साथ तीसरे स्थान पर थी।
पिच और मौसम रिपोर्ट
अबु धाबी में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 24 से 31 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले गेंदबाजी करना पसंद करेगी। इस आईपीएल से पहले यहां हुए पिछले 44 टी-20 में पहले गेंदबाजी करने वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 56.81% रहा है।
इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 44
पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 19
पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 25
पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 137
दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 128
दोनों टीमों के सबसे महंगे खिलाड़ी
हैदराबाद के सबसे महंगे खिलाड़ी कप्तान डेविड वॉर्नर हैं। उन्हें फ्रेंचाइजी सीजन का 12.50 करोड़ रुपए देगी। इसके बाद टीम के दूसरे महंगे खिलाड़ी मनीष पांडे (11 करोड़) हैं। वहीं, दिल्ली में ऋषभ पंत 15 करोड़ और शिमरॉन हेटमायर 7.75 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं।
हैदराबाद ने 2 बार खिताब जीता
हैदराबाद ने अब तक तीन बार फाइनल (2009, 2016, 2018) खेला है। जिसमें उसे 2 बार (2009, 2016) जीत मिली और एक बार (2018) हार का सामना करना पड़ा। वहीं, दिल्ली अकेली ऐसी टीम है, जो अब तक फाइनल नहीं खेल सकी। हालांकि, दिल्ली टूर्नामेंट के शुरुआती दो सीजन (2008, 2009) में सेमीफाइनल तक पहुंची थी।
IPL में हैदराबाद का सक्सेस रेट दिल्ली से ज्यादा
लीग में सनराइजर्स हैदराबाद का सक्सेस रेट 54.06% है। हैदराबाद ने अब तक कुल 123 मैच खेले हैं, जिनमें उसने 66 मैच जीते और 57 हारे हैं। वहीं, दिल्ली का सक्सेस रेट 44.47% है। दिल्ली ने अब तक कुल 192 मैच खेले हैं, जिनमें उसने 83 जीते और 106 हारे हैं। 2 मैच बेनतीजा रहे।
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। वीडियो में इलेक्शन ड्यूटी कर रहे सरकारी अफसर ही फर्जी वोटिंग करते दिख रहे हैं। वीडियो अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव का बताकर शेयर किया जा रहा है। सोशल मीडिया यूजर्स का दावा है कि ये फर्जी वोटिंग ट्रंप के विरोध में की गई है।
इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई विश्वसनीय खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में फर्जी वोटिंग से जुड़ा कोई वीडियो सामने आया है।
वीडियो के स्क्रीनशॉट को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से न्यूज एजेंसी AFP के ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर भी हमें यही वीडियो मिला। AFP के चैनल पर वीडियो 18 मार्च, 2018 को अपलोड किया गया है। जाहिर है इसका साल 2020 में हो रहे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से कोई संबंध नहीं है।
कैप्शन से पता चलता है कि वीडियो रूस का है। 2 साल पहले रूस में हुए चुनाव में वोटिंग करा रहे सरकारी स्टाफ के कुछ लोग ही फर्जी वोटिंग करते देखे गए थे। उसी वीडियो को अमेरिकी चुनाव का बताकर शेयर किया जा रहा है।
वॉशिंगटन पोस्ट वेबसाइट पर 19 मार्च, 2018 की खबर में भी फेक वोटिंग के इस वीडियो को रूस का ही बताया गया है।
इन सबसे साफ है कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा वीडियो अमेरिका नहीं रूस का है। 2 साल पुराने वीडियो को गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।
बिहार में 4 नवंबर को भाकपा (माले) के समर्थक प्रमोद दास को जदयू समर्थक चिरंजन सिंह ने गोली मार दी। प्रमोद का कुसुर सिर्फ इतना था कि उसने महागठबंधन की जीत का दावा किया था। इसी दिन कल्याणपुर सीट से युवा क्रांतिकारी दल के उम्मीदवार संजय दास को भी बदमाशों ने गोली मारकर जख्मी कर दिया। इससे पहले शिवहर सीट से जनता दल राष्ट्रवादी पार्टी के उम्मीदवार श्रीनारायण सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। ये कुछ घटनाएं हैं, जो बताती हैं कि बिहार में चुनावी हिंसा अब भी उतनी कम नहीं हुई हैं, जितना दावा किया जाता रहा है।
जब से चुनाव होने शुरू हुए, तब से ही हिंसा हो रही
बिहार में चुनावी हिंसा का इतिहास पहले चुनाव से ही जुड़ा है। बिहार में पहली बार 1951-52 में विधानसभा चुनाव हुए थे। उस समय कांग्रेस का ही राज था। चुनावों में अक्सर कांग्रेस और उसके खिलाफ खड़े उम्मीदवारों के बीच आए दिन मुठभेड़ होती रहती थी। उस समय असली लड़ाई कांग्रेस और कम्युनिस्टों के बीच थी। पहले चुनाव में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाकपा के उम्मीदवार कार्यानंद शर्मा को बुरी तरह पीटा था।
1952 से 1967 तक चुनावों में छुटपुट हिंसा की खबरें ही आती रहीं। लेकिन, 1969 के चुनाव में पहली बार पूरे बिहार में हिंसा की घटनाएं हुईं। इस चुनाव में 7 लोगों की मौत हुई। इस चुनाव में गरीबों और हरिजनों को तो वोट ही नहीं डालने दिया गया।
1977 में चुनावी हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ीं। इस चुनाव में 194 घटनाएं हुईं, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। 1985 में अब तक की सबसे ज्यादा 1,370 हिंसक घटनाएं हुई थीं, जिसमें 69 लोग मारे गए थे। हालांकि, 1990 के चुनाव में 520 घटनाओं में 87 लोगों की मौत हुई थी। 1995 में 1,270 घटनाएं घटीं, जिनमें 54 मौतें हुईं। जबकि 2000 के चुनाव में 61 लोग मारे गए थे।
2005 के बाद चुनाव आयोग की सख्ती के कारण चुनावी हिंसाओं में कमी आई और इनमें मरने वालों की संख्या भी काफी हद तक कम हो गई। फरवरी और अक्टूबर 2005 के चुनाव में 17 मौतें हुई थीं। 2010 में 5 लोगों की मौत हुई। जबकि, 2015 में किसी की मौत नहीं हुई।
पहली राजनीतिक हत्या 1965 में हुई थी
बिहार में राजनीतिक हत्या की पहली घटना 1965 में हुई थी। उस समय कांग्रेस से पूर्व विधायक शक्ति कुमार की हत्या कर दी गई थी। उनका शव तक नहीं मिला था। शक्ति कुमार दक्षिणी गया से विधायक रहे थे। शक्ति कुमार की हत्या के बाद 1972 में भाकपा विधायक मंजूर हसन की हत्या MLA फ्लैट में कर दी गई थी। 1978 में भाकपा के ही सीताराम मीर को भी मार दिया गया। 1984 में कांग्रेस के नगीना सिंह की हत्या हो गई।
जानकार मानते हैं कि बिहार में राजनीतिक हत्याओं के पीछे की वजह बाहुबलियों को तवज्जो देना है। राजनीतिक हिंसा और हत्या के दौर में बिहार में कई नेताओं की जान गई। जुलाई 1990 में जनता दल के विधायक अशोक सिंह को उनके घर पर ही मार दिया। फरवरी 1998 की रात को विधायक देवेंद्र दुबे की हत्या हो गई। इसी साल विधायक बृजबिहारी प्रसाद की भी हत्या हो गई। अप्रैल 1998 में माकपा के विधायक अजीत सरकार की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। अजीत सरकार की हत्या के मामले में तो बाहुबली नेता पप्पू यादव को उम्रकैद की सजा भी मिली थी। हालांकि, बाद में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
केंद्र सरकार की एजेंसी NCRB का डेटा बताता है कि बिहार में आज भी राजनीतिक हिंसाओं में राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला थमा नहीं है। 2019 में ही बिहार में 62 राजनीतिक हिंसा की घटनाएं हुई थीं, जिसमें 6 लोग मारे गए थे।
सोर्सः वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत की किताब ‘बिहार में चुनावः जाति, हिंसा और बूथ लूट’, कमल नयन चौबे की किताब ‘बिहार की चुनावी राजनीतिः जाति वर्ग का समीकरण (1990-2015), चुनाव आयोग और मीडिया रिपोर्ट्स’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज से चार साल पहले यानी 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे देश के नाम संदेश दिया। इसमें उन्होंने 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा कर दी थी। एकाएक हुई घोषणा से उस समय बाजार में चल रही 86% करेंसी महज रद्दी कागज का टुकड़ा हो गई।
उसके बाद लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए धीरे-धीरे भारतीय रिजर्व बैंक ने करेंसी उपलब्ध कराई। ATM से पैसे निकालने और बैंकों में पैसे जमा करने के लिए लगी लाइनों में ही पूरे देश में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। कारण कई तरह के थे, लेकिन मौतें लाइन में लगने के दौरान होने से खूब राजनीति भी हुई।
सरकार ने नोटबंदी को काले धन के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बताया। लेकिन, भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि 99% करेंसी बैंकों में आ गई। यानी काले धन को लोगों ने असेट्स में कन्वर्ट कर लिया। कुछ हद तक डिजिटल पेमेंट्स में बढ़ोतरी आई जरूर लेकिन कुछ समय बाद वह भी कैश इकोनॉमी में कन्वर्ट होती गई। इनकम टैक्स में जरूर एक साल बढ़ोतरी दिखी और टैक्सपेयर्स भी बढ़े, लेकिन कलेक्शन पर उसका बहुत ज्यादा असर नहीं दिखा। इतना ही नहीं, शुरुआत में सरकार ने यह भी दावा किया था कि जाली नोट की समस्या खत्म हो जाएगी। हालांकि, उस समय दो हजार रुपए के नोट मार्केट में सर्कुलेट किए थे और उसके हाई-क्वालिटी जाली नोट बाजार में आने की वजह से पिछले साल से उसकी छपाई भी बंद कर दी है।
नोटबंदी की वजह से GDP ग्रोथ रेट जरूर घट गया था। आर्थिक विकास दर घटकर 5% के आसपास ठिठक गई थी। कुछ महीने के लिए कारोबारी गतिविधियां ही थम गई थी। जैसे-तैसे संभल रहे थे कि केंद्र सरकार ने GST लागू कर दिया। कारोबारियों, खासकर MSMEs की हालत खराब हो गई। नोटबंदी के बाद से बेपटरी हुई भारतीय इकोनॉमी पटरी पर आने के लिए संघर्ष कर रही है। कोविड-19 ने भारतीय कारोबारियों की समस्याओं को और बढ़ा दिया है।
रोन्टजन ने दुनिया का पहला एक्स-रे लिया
आज एक्स-रे की बात करें तो बच्चे-बच्चे को पता है कि यह क्या होता है और क्यों निकाला जाता है। हड्डियों के टूटने से लेकर अंदरुनी हिस्सों की टूट-फूट देखने के लिए X-रे निकाला जाता है। इसकी खोज का किस्सा भी दिलचस्प है। जर्मनी के प्रोफेसर विल्हन कॉनरैड रोन्टजन ने 1895 में इसकी खोज की थी। विल्हम कैथोड रेडिएशन से प्रयोग कर रहे थे। उन्हें महसूस हुआ कि X-रे इंसानी टिश्यू के पार निकल जाता है। दरअसल, उनकी पत्नी बर्था का हाथ बीच में आ गया था। इम्प्रेशन में उनकी सिर्फ हड्डियां दिखी थी। जब इस बारे में और प्रयोग किए तो विल्हम अज्ञात किरणों तक पहुंचे, जिनकी वजह से यह प्रिंट निकला था। इन अज्ञात किरणों का नाम उन्होंने X-रे रखा गया। इस खोज के लिए रोन्टजन को 1901 में फिजिक्स का नोबेल प्राइज दिया गया।
भारत और दुनिया में 8 नवंबर को हुई महत्वपूर्ण घटनाएंः-
1627: मुगल शासक जहांगीर का निधन।
1829: ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा खत्म करने की पहल की।
1920ः भारत की प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना सितारा देवी का जन्म।
1929ः भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का जन्म।
1939ः एडोल्फ हिटलर की हत्या के लिए टाइम-बम लगाया था। किस्मत से हिटलर बच गया।
1956ः संयुक्त राष्ट्र ने सोवियत संघ से यूरोपीय देश हंगरी से हटने की अपील की।
1972: होम बॉक्स ऑफिस (HBO) लॉन्च हुआ, जो अमेरिका का सबसे पुराना पेड TV चैनल है।
1998ः बांग्लादेश में पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीब-उर-रहमान की हत्या के मामले में 15 लोगों को मौत की सजा।
1999ः राहुल द्रविड़ और सचिन तेंडुलकर ने वन-डे क्रिकेट मैच में 331 रन की साझेदारी कर विश्व रिकॉर्ड बनाया।
2008ः भारत का पहला मानव रहित अंतरिक्ष मिशन चन्द्रयान-1 चन्द्रमा की कक्षा में पहुंचा।
1. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम लगभग तय है। बाइडेन जीत की चौखट पर हैं, तो वहीं ट्रम्प की नाव डूबती दिखाई दे रही है। जानिए, इस आलेख में बाइडेन की खासियत और ट्रम्प की खामियां के बारे में विस्तार से...
2. सिंधु घाटी में हड़प्पा सभ्यता से लेकर सात हजार साल पुराने शहरों के इतिहास तक की जानकारी देती है ब्रिटिश इतिहासकार बेन विलसन की नई किताब- मेट्रोपोलिस
3. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में विवाद, डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से मतों की गिनती पर रोक लगाने की मांग की है। पढ़िए, राष्ट्रपति चुनाव का पूरा मामला इस लेख में...
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6. धर्मेंद्र, शर्मिला टैगोर और संजीव कुमार की 51 साल पुरानी फ़िल्म 'सत्यकाम' का संदेश आज भी समाज को आईना दिखाने के लिए कारगर है। जानिए, फ़िल्म 'सत्यकाम' के उन चर्चित सीन्स के बारे में जिसने समाज को झकझोर कर रख दिया...
2. अमेरिका में नस्लवाद के खिलाफ मार्टिन लूथर किंग जूनियर का 'मेरा एक सपना है' वो ऐतिहासिक भाषण जिसने नीग्रो के खिलाफ हो रहे जुर्म के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
योगी के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर बोल गए कि राज्य सरकार ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार भी इस पर कानून बनाने की सोच रही है। बात निकली ही थी तो सरकार बचाने के लिए उपचुनावों में सक्रिय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम भी लव जिहाद को रोकने के लिए कानून लाएंगे। फिर बारी कर्नाटक की थी। वहां तो यह बरसों से उठ रहा मसला था।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के साथ-साथ वहां कई मंत्री बोल रहे हैं कि हम भी कानून बनाएंगे। कुल मिलाकर भाजपा के शासन वाले चार राज्यों ने अब तक लव जिहाद को कानून बनाकर रोकने की ठानी है। इस पर कानून विशेषज्ञ सवाल कर रहे हैं कि संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी देता है। यह हमारा मौलिक अधिकार है। ऐसे में आप लव जिहाद को कानून बनाकर कैसे रोक सकते हैं?
आइए जानते हैं कि यह मामला क्या है और क्या राज्य इस मुद्दे पर कानून बनाकर कोई बदलाव ला सकते हैं-
क्या है लव जिहाद?
लव जिहाद की कथित परिभाषा कुछ ऐसी है कि मुस्लिम लड़के गैर-मुस्लिम लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाते हैं। फिर उनका धर्म परिवर्तन कर उनसे शादी करते हैं।
2009 में यह शब्द खूब चला था। केरल और कर्नाटक से ही राष्ट्रीय स्तर पर आया। फिर UK और पाकिस्तान तक पहुंचा।
तिरुवनंतपुरम (केरल) में सितंबर 2009 में श्रीराम सेना ने लव जिहाद के खिलाफ पोस्टर लगाए थे। अक्टूबर 2009 में कर्नाटक सरकार ने लव जिहाद को गंभीर मुद्दा मानते हुए CID जांच के आदेश दिए ताकि इसके पीछे संगठित साजिश का पता लगाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में NIA से जांच भी कराई थी, जब एक हिंदू लड़की ने मुस्लिम प्रेमी से शादी करने के लिए मुस्लिम धर्म अपनाया। लड़की के पिता ने लड़के पर बेटी को आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए फुसलाने का आरोप भी लगाया था। खैर, निकला कुछ नहीं और लड़की ने खुद ही सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी प्रेम कहानी बयां की थी।
अभी एकाएक लव जिहाद पर कानून की चर्चा क्यों छिड़ गई?
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 29 सितंबर को नवविवाहित दंपती को पुलिस सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था। महिला जन्म से मुस्लिम थी और उसने 31 जुलाई को अपनी शादी के एक महीना पहले हिंदू धर्म अपनाया था।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति को उस धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं है या उस पर उसका विश्वास भी नहीं है तो सिर्फ शादी के लिए उसके धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
केंद्र सरकार का लव जिहाद पर क्या कहना है?
फरवरी में सांसद बैन्नी बेहनन ने लोकसभा में सरकार से पूछा था कि केरल में लव जिहाद के मामलों पर उसका क्या कहना है? क्या उसने ऐसे किसी मामले की जांच की है?
जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 25 लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के शर्ताधीन धर्म को अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रसार करने की अनुमति देता है।
यह भी कहा कि मौजूदा कानूनों में लव जिहाद शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। किसी भी केंद्रीय एजेंसी ने लव जिहाद के किसी मामले की जानकारी नहीं दी है। NIA ने केरल में जरूर अंतर-धर्म विवाह के दो मामलों की जांच की है।
सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है धर्म परिवर्तन पर?
भारत के संविधान के आर्टिकल-25 के मुताबिक भारत में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने की, आचरण करने की तथा धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता है। यह अधिकार सभी धर्मों के नागरिकों को बराबरी से है।
अदालतों ने अंतःकरण या कॉन्शियंस की व्याख्या भी धार्मिक आजादी से स्वतंत्र की है। यानी कोई व्यक्ति नास्तिक है, तो उसे अपने कॉन्शियंस से ऐसा अधिकार है। उससे कोई जबरदस्ती किसी धर्म का पालन करने को नहीं कह सकता।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने 1975 में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर इसकी अच्छे-से व्याख्या की है। दरअसल, मध्यप्रदेश और ओडिशा की हाईकोर्टों ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ बने कानूनों पर अलग-अलग फैसले सुनाए थे।
मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो उसने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन किया और कहा कि धोखाधड़ी से, लालच या दबाव बनाकर धर्म परिवर्तन कराना उस व्यक्ति के कॉन्शियंस के अधिकार का उल्लंघन है। उसे अपनी कॉन्शियंस के खिलाफ जाकर कुछ करने को मजबूर नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि पब्लिक ऑर्डर को बनाए रखना राज्यों का अधिकार है। जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो यह कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। राज्य अपने विवेक से कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए आवश्यक कानून बना सकते हैं।
क्या राज्यों में लव जिहाद के खिलाफ कानून संभव है?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट साफ कर चुके हैं कि धर्म परिवर्तन स्वेच्छा से और बिना किसी लालच या लाभ के होना चाहिए। इसे ही आधार बनाकर चार भाजपा-शासित राज्य प्यार और शादी के बहाने किसी व्यक्ति के इस्लाम या किसी और धर्म में परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की बात कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को देखकर साफ है कि कानून-व्यवस्था कायम रखना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। यदि राज्य यह साबित कर देते हैं कि कानून-व्यवस्था को कायम रखने के लिए लव जिहाद के खिलाफ कानून जरूरी है तो वह बना भी सकते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट 1975 का रुख दोहराता है या नई व्यवस्था देता है, यह भविष्य में स्पष्ट होगा।
from Dainik Bhaskar /db-original/explainer/news/law-on-love-jihad-bs-yeddiyurappa-karnataka-govt-to-follow-uttar-pradesh-haryana-and-madhya-pradesh-127894807.html
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नमस्कार!
डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति होंगे। 77 साल के बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले सबसे बुजुर्ग व्यक्ति हैं। जबकि भारतवंशी कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनने जा रहीं हैं। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ।
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर
IPL के 13वें सीजन का दूसरा क्वालिफायर मुकाबला आज दिल्ली कैपिटल्स (DC) और सनराइजर्स हैदराबाद (SRH) के बीच खेला जाएगा। मैच अबु धाबी में शाम साढ़े सात बजे से शुरू होगा।
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) आज अपने इंटरनेट बैंकिंग प्लेटफॉर्म अपडेट करेगा। ग्राहकों को इंटरनेट बैंकिंग, YONO ऐप और योनो लाइट सर्विस के इस्तेमाल में परेशानी हो सकती है।
एक तरफ महाराष्ट्र में कोरोना के आंकड़े बढ़ रहे हैं। दूसरी तरफ मराठा क्रांति मोर्चा मराठा आरक्षण के मुद्दे पर आज राज्य के कुछ शहरों में प्रदर्शन करेगा। इनमें मुंबई भी शामिल है।
देश विदेश
ISRO का नया रॉकेट, 10 सैटेलाइट एकसाथ भेजे
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से शनिवार को अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट-1 (EOS-1) की लॉन्चिंग की। यह रडार इमेजिंग सैटेलाइट है। PSLV-C49 रॉकेट के जरिए देश के EOS-1 के साथ ही 9 विदेशी उपग्रह भी भेजे गए।
दुष्कर्मी बाबा राम रहीम को एक दिन की पैरोल मिली
दुष्कर्म और हत्या के मामले में 20 साल की सजा काट रहा डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम एक दिन की पैरोल पर बाहर आया था। राम रहीम को 24 अक्टूबर को अपनी बीमार मां से मिलने के लिए पैरोल दी गई थी। सरकार और जेल प्रशासन ने किसी को इसकी भनक नहीं लगने दी।
एग्जिट पोल: 14 से 16 सीटें भाजपा, 10 से 13 सीटेंकांग्रेस
मध्यप्रदेश उपचुनाव के संभावित नतीजे क्या होंगे, इसके लिए भास्कर ने एग्जिट पोल किया। इसके मुताबिक, भाजपा को 14 से 16 सीटें मिलती दिख रही हैं। कांग्रेस को 10 से 13 सीटें मिल सकती हैं। बसपा के खाते में एक सीट जा सकती है।
एग्जिट पोल: बिहार में फिर नीतीशे सरकार केआसार
बिहार विधानसभा चुनाव के संभावित नतीजे क्या होंगे, इसके लिए भास्कर ने एग्जिट पोल किया। इसके मुताबिक, NDA की सरकार बनती दिख रही है। भाजपा को 63 सीटें मिल सकती हैं, जबकि जदयू 58 सीटों के साथ राजद की 52 सीटों से आगे नजर आ रही है।
चैनल की अलग कहानीः बिहार चुनाव के एग्जिट पोल में 8 चैनलों के आंकड़े सामने आए। 4 एग्जिट पोल में तेजस्वी सरकार बनने के संकेत हैं, जबकि बाकी 4 में त्रिशंकु विधानसभा बनने के आसार दिख रहे हैं। हालांकि, एनडीए और महागठबंधन के बीच सीटों का अंतर बहुत कम रहेगा।
US इलेक्शन: बाइडेन की ट्रम्प से अपील- गुस्साथूकिए
शनिवार को डेमोक्रेट के बाइडेन लोगों के सामने आए। उन्होंने सियासी पारा ठंडा करने की कोशिश की। ट्रम्प का नाम लिए बिना उनसे अपील की कि गुस्सा थूकिए, हम विरोधी हो सकते हैं, लेकिन दुश्मन नहीं। हम सब अमेरिकी हैं। बाइडेन ने समर्थकों से शांति बरतने की अपील भी की।
डीबी ओरिजिनल
अमेरिका से लौटकर पत्तल बनाना शुरू किया, कमाई लाखोंरुपए
फार्मेसी और जेनेटिक्स में मास्टर्स माधवी और मैकेनिकल इंजीनियर वेणुगोपाल 2003 से पहले नौकरी के सिलसिले में बैंकॉक, मलेशिया, सिंगापुर और फिर अमेरिका में रहे। 2003 में हैदराबाद लौट आए। 2019 में सियाली और पलाश के पत्तों से 7 तरह के इको-फ्रेंडली प्लेट और कटोरी का बिजनेस शुरू किया। अब उनकी कमाई लाखों रुपए है।
कर्नाटक भी लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी में
उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और हरियाणा के बाद अब कर्नाटक की सरकार भी लव जिहाद को रोकने के लिए कानून बनाने की तैयारी में है। वहीं, कानून विशेषज्ञ सवाल कर रहे हैं कि क्या लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने से धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा? क्या लव जिहाद कानून से रोका जा सकता है?
रिपब्लिक ग्रुप के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को अभी जेल में ही रहना पड़ेगा। बॉम्बे हाईकोर्ट में अर्नब की जमानत अर्जी पर शनिवार को 6 घंटे सुनवाई हुई। कोर्ट ने फैसला रिजर्व रख लिया।
अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार वाले राज्यों में एल्कोहलिक ड्रिंक्स की बिक्री 75% बढ़ी। वहीं, रिपब्लिकन पार्टी की सरकार वाले राज्यों में यह 33% और स्विंग स्टेट्स में यह आंकड़ा 55% रहा।
अमेरिका में परंपरा है कि हारने वाला प्रत्याशी जीतने वाले को बधाई देता है। अमेरिकी मीडिया में चर्चा है कि इस बार फेयरवेल स्पीच की परंपरा टूट जाएगी। ट्रम्प शायद बाइडेन को जीत की बधाई न दें।
पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने कहा, 'बिना ट्रॉफी के 8 साल बेहद लंबा वक्त होता है। मुझे लगता है कि कोहली को हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। RCB को कोहली के ऑप्शन की तलाश करनी चाहिए।'
(प्रमोद कुमार) पहले अयोध्या के लोग कहते थे कि राम से पहले रोटी भी जरूरी है। अब यहां राम भी हैं और रोटी भी। रामलाल विराजमान के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आए 9 नवंबर को एक साल हो जाएगा। अब अयोध्या बदल रही है। यहां खूब पर्यटक आ रहे हैं। सिंगल लेन को टू लेन कर दिया गया है और फोरलेन का काम चल रहा है। पहले इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर तमाम प्रोजेक्ट्स लखनऊ के पास आते थे, लेकिन अब विकास प्रोजेक्ट्स अयोध्या की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं। यही नहीं पहले अयोध्या में जमीन को बिस्वा के हिसाब से बेचा जाता था। एक बिस्वा यानी 1361 स्क्वायर फीट। अब जमीन को बड़े शहरों की तरह स्क्वायर फीट में बेचा जा रहा है।
शहरी जमीन के दाम 10 गुना तो ग्रामीण क्षेत्र में जमीन के दाम 5 गुना तक बढ़ गए हैं। आधुनिक शहरों की तरह बिजली लाइन को अंडरग्राउंड कर दिया गया है। शहर से गुजरने वाली हाईटेंशन लाइन को सरयू पार शिफ्ट किया जा रहा है। इस कोरानाकाल में भी रोजाना औसतन 20 हजार लोग अयोध्या आ रहे हैं। पहले सीजन में रोजाना 2 हजार लोग आते थे। पर्यटकों की संख्या बढ़ने से कोरोनाकाल में भी लोग बेरोजगार नहीं हुए। अयोध्या के डीएम अनुज कुमार झा कहते हैं कि मेडिकल कॉलेज से लेकर सड़कों का चौड़ीकरण, राम की पौड़ी, गुप्तार घाट का कायाकल्प हो गया है।
राम जन्मभूमि ट्रस्ट के ट्रस्टी कमलेश्वर चौपाल कहते हैं कि प्राचीन धरोहर के मूल स्वरूप का हम ध्यान रखेंगे, लेकिन आधुनिक युग के हिसाब से लोगों की संख्या और सुविधा को देखना जरूरी है। आज हिंदू-मुस्लिम बिना तनाव के सौहार्द से अयोध्या मंे रह रहे हैं। ये बात पूरी दुनिया जान गई है। आज देश का हर उद्योगपति अयोध्या में व्यवसाय शुरू करना चाहता है। क्या वेटिकन सिटी या मक्का का स्वरूप नहीं बदला है? विदेशी पर्यटक जब देश में आए तो उसे ऊर्जा-स्फूर्ति मिले। सुविधाएं मिलें।
भीड़ के कारण कई स्थानों पर वीभत्स घटनाएं हुईं हैं, उनसे बचा जा सके। आज 20 हजार पर्यटक हैं तो मंदिर के बाद तो रोजाना 10 लाख पर्यटक अयोध्या आएंगे। आए दिन के तनाव के कारण अयोध्या के डाॅ. योगेंद्र लखनऊ में शिफ्ट हो गए थे। उनका पुश्तैनी मकान तो अयोध्या में था लेकिन वो बंद पड़ा था। वो उसे बेचना चाहते थे, लेकिन ग्राहक नहीं मिल रहे थे। 9 नबंवर 2019 को राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया तो उनके पास मकान खरीदने वालों की इंक्वायरी आने लगी। कुछ दिनों के बाद खरीदार उनके मकान की दोगुनी कीमत देने के लिए तैयार हो गए।
डॉ. योगेंद्र अब अपने मकान को होटल में तब्दील कर रहे हैं। उन्होंने अयोध्या की जगह लखनऊ का मकान बेचने का मन बना लिया है, क्योंकि अयोध्या में लखनऊ से ज्यादा व्यवसायिक संभावनाएं हैं। ऐसे ही डॉ. वीपी पांडे के पास दिल्ली के एक नामी कार्डियोलॉजिस्ट का फाेन आया। कार्डियोलॉजिस्ट ने कहा कि उसे अयोध्या में तीन एकड़ जमीन चाहिए अस्पताल बनाने के लिए। ये मात्र दो उदाहरण नहीं हैं, बल्कि सैंकड़ों लोग ऐसे हैं कि अयोध्या आ गए हैं यहां फिर आना चाहते हैं।
ये अलग बात है कि किसी की राम के प्रति आस्था है तो किसी को अयोध्या में व्यवसाय नजर आ रहा है। 75 साल के प्रहलाद राय कहते हैं कि राम मंदिर बनते देखना तो हमारा सौभाग्य है, लेकिन अयोध्या को ऐसे बदलते देखने की उम्मीद नहीं थी। जमीन की कीमत 5 गुना बढ़ गई है। जो जमीन कोई 6 लाख बीघा में खरीदने तैयार नहीं होता था वो 25 लाख रुपए बीघा में बिक रही है। पूरी अयोध्या के पांचों रास्ते फोरलेन हो रहे हैं।
136 प्रोजेक्ट चल रहे हैं अयोध्या-लखनऊ हाईवे पर
20% घरों का लैंडयूज बदला है। 10% होटल-स्टे होम में तब्दील हुए हैं। यहां निगम लैंडयूज की कार्रवाई तेजी से कर रहा है।
136 बड़े प्रोजेक्ट्स आ रहे हैं अयोध्या- लखनऊ हाईवे पर। इनमें 10 फाइव स्टार होटल, 7 अस्पताल, 5 शॉपिंग मॉल शामिल हैं।
02 धर्मशालाएं थीं ट्रस्ट की पहले अयोध्या में। लेकिन अब देश के मारवाड़ी, सिख, जैन समुदाय के लोग यहां जमीन खरीद रहे हैं।
...और एक साल में अपराध न के बराबर
अयोध्या थाना प्रभारी रामप्रकाश मिश्रा बताते हैं कि पिछले एक साल में अयोध्या थाने का ग्राफ बहुत नीचे गया है। छुट-पुट अपराधों को छोड़ दें तो पिछले एक साल में कोई बड़ी घटना नहीं हुई। मणि पर्वत क्षेत्र तो हमेशा अपराधियों का गढ़ कहा जाता था लेकिन पीएसी कैम्प के कारण वहां भी शांति है।