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नमस्कार!
हरियाणा में पुलिस ने किसानों पर आंसू गैस और वॉटर कैनन चलाई। सिडनी टेस्ट में लगातार दूसरे दिन मंकीगेट विवाद हुआ। चीन ने भारतीय सेना से अपने सैनिक की रिहाई की मांग की है। बहरहाल शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर...
देश-विदेश
किसानों पर आंसू गैस-वॉटर कैनन चलाई
किसान आंदोलन का रविवार को 46वां दिन था। दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान अब भी केंद्र सरकार से दूरी बनाए हुए हैं। इस बीच, हरियाणा के करनाल में उस समय हंगामा हो गया, जब कैमला गांव में किसानों ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की रैली का विरोध किया। पुलिस ने किसानों को रोका तो दोनों के बीच झड़प शुरू हो गई। हंगामा इस कदर बढ़ा कि किसानों को रोकने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े और वॉटर कैनन भी चलानी पड़ी। इसके बाद खराब मौसम का हवाला देकर मुख्यमंत्री खट्टर का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है।
पीएम किसान योजना में बंदरबांट
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 20 लाख 48 हजार ऐसे किसानों को 1 हजार 364 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया गया, जो तय क्राइटेरिया में ही नहीं आते थे। इस बात का खुलासा राइट टू इनफॉर्मेशन (RTI) से मिली जानकारी से हुआ है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) से जुड़े वेंकटेश नायक ने यह जानकारी मांगी थी। केंद्रीय कृषि मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक, जिन अपात्र किसानों के पास स्कीम का पैसा पहुंचा है, उनमें दो कैटेगरी शामिल हैं। पहली में वे किसान हैं, जो इसके लिए जरूरी योग्यता नहीं रखते हैं। दूसरी कैटेगरी में ऐसे किसान हैं, जो इनकम टैक्स भरते हैं।
सिडनी में दूसरे दिन भी नस्लीय टिप्पणी
सिडनी टेस्ट में लगातार दूसरे दिन मंकीगेट विवाद हुआ। टेस्ट के चौथे दिन भी भारतीय बॉलर मो. सिराज पर दर्शकों ने नस्लभेदी टिप्पणी की। बाउंड्री के करीब बैठे दर्शकों की एक टोली लगातार सिराज को ब्राउन मंकी और बिग डॉग बोल रही थी। सिराज ने इसकी शिकायत फील्ड अंपायर पॉल राफेल से की। मैच रेफरी और टीवी अंपायर से फील्ड अंपायर ने बातचीत की और फिर पुलिस बुलाई गई। पुलिस ने 6 दर्शकों को बाहर निकाल दिया। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने भी इस घटना पर टीम इंडिया से माफी मांगी है। विराट कोहली ने भी इस घटना पर ऐतराज जताया है।
वैक्सीनेशन पर कांग्रेस में दो फाड़
16 जनवरी से देश में वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू होना है। इस बीच, वैक्सीन पर सवाल खड़े करने वाली कांग्रेस दो खेमों में बंट गई है। शशि थरूर, जयराम रमेश जैसे कई नेताओं ने वैक्सीन पर सवाल खड़े किए तो कांग्रेसी राज वाले राज्य पंजाब, झारखंड और राजस्थान के मंत्री वैक्सीन के पक्ष में खड़े हो गए। इन राज्यों के मंत्रियों ने साफ कहा कि वैक्सीन पर किसी तरह का सवाल खड़ा करना ठीक नहीं है। झारखंड के मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि जनहित के मामलों में वह केंद्र सरकार के साथ खड़े हैं। वहां कांग्रेस गठबंधन की सरकार है।
चीन ने सैनिक की रिहाई की मांग की
चीन ने भारतीय सेना की हिरासत में मौजूद अपने सैनिक की फौरन रिहाई की मांग की है। चीन की सेना यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के मुताबिक, यह सैनिक अंधेरे और इलाके की समझ न होने की वजह से भारतीय क्षेत्र में पहुंच गया था। इसलिए उसे जल्द रिहा किया जाना चाहिए। घटना पैगॉन्ग त्सो लेक के दक्षिणी हिस्से की है। अक्टूबर में भी एक चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस गया था। दो दिन बाद उसे चीनी सेना के अफसरों को सौंप दिया गया था।
जवानों की जान बचाएगा हिमतापक
चीन से तनाव के बीच सियाचिन और लद्दाख जैसे बर्फीले इलाकों में तैनात जवानों को अब ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ेगा। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) ने जवानों के लिए हिमतापक हीटिंग डिवाइस तैयार की है। ये ऐसी डिवाइस है, जिसके जरिए सेना का बंकर माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी गर्म रहेगा। आर्मी ने इस डिवाइस के लिए 420 करोड़ का ऑर्डर भी DRDO को दे दिया है। जल्द ही इसे बर्फीले इलाकों में ITBP और सेना की पोस्ट पर लगाया जाएगा।
एक्सप्लेनर
कृषि कानूनों पर सुप्रीम सुनवाई
किसान आंदोलन और कृषि कानूनों से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आज होगी। दरअसल, किसान आंदोलन से जुड़ी कई याचिकाएं कोर्ट में दायर हुई थीं। कुछ याचिकाओं में आंदोलन को खत्म करने की मांग की गई है, तो कई याचिकाओं में तीनों कानूनों को रद्द करने की। इन्हीं सब याचिकाओं पर अब चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की बेंच करेगी। इस मामले की आखिरी सुनवाई 17 दिसंबर को हुई थी। लेकिन सवाल ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट से मसला सुलझ सकता है? आइए एक-एक करके इस मामले को पूरी तरह समझते हैं।
पॉजिटिव खबर
फर्श से अर्श तक का सफर
आज हम आपको अजमेर के भरत ताराचंदानी की कहानी बताने जा रहे हैं। भरत जब छटवीं क्लास में थे, तब उनके पिता का एक्सीडेंट हो गया था। हादसे के बाद पिता बेड पर चले गए थे। तभी से भरत और उनके परिवार का स्ट्रगल शुरू हो गया था। लेकिन, आज वे पुष्कर में पांच दुकानों के मालिक हैं और टर्नओवर करोड़ों में है। ये सब वो कैसे कर पाए, उन्हीं से जानिए।
14 जनवरी हो सकता है सबसे सर्द दिन
दो दशक बाद जनवरी के पहले हफ्ते में देशभर में मानसून जैसा माहौल बन गया। उत्तर के पहाड़ी राज्यों में जबरदस्त बर्फबारी हुई तो दक्षिण के राज्यों में भारी बारिश। दक्षिण में जनवरी में बारिश के 100 साल तक के रिकॉर्ड टूट गए। पश्चिमी विक्षोभ के साथ-साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में एक साथ कई चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र बनने से यह स्थिति पैदा हुई। देश के सभी ऊंचे पहाड़ी इलाकों में 5 से 8 फीट तक मोटी बर्फ की चादर लिपटी है। मौसम विभाग के मुताबिक, बर्फीली हवाओं का असर समूचे उत्तर, पश्चिम, मध्य व पूर्वी राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार तक दिखेगा।
अंधेरे में डूबे पाकिस्तान के शहर
पाकिस्तान में शनिवार देर रात ब्लैकआउट (बिजली गुल) हो गया। इससे कराची, लाहौर, इस्लामाबाद, मुल्तान, कसूर, रावलपिंडी और मंडी अंधेरे में डूब गए। इसके बाद सोशल मीडिया पर #Blackout और #LoadShedding ट्रेंड करने लगा। इस्लामाबाद के डिप्टी कमिश्नर हमजा शफकत ने कहा कि बिजली कंपनी का सिस्टम ट्रिप होने के कारण ब्लैकआउट हुआ। लोगों ने सोशल मीडिया पर इस बदइंतजामी के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली।
सुर्खियों में और क्या है...
कहानी - महाभारत में पांडवों का 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास पूरा हो चुका था। इसके बाद श्रीकृष्ण पांडवों के दूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे और दुर्योधन से कहा कि अब पांडवों को उनका राज्य लौटा दो। लेकिन, दुर्योधन ने कृष्ण की बात नहीं मानी।
कृष्ण ने दुर्योधन को कई तरह से समझाने की कोशिश की, लेकिन दुर्योधन पांडवों को एक गांव तक देने के लिए तैयार नहीं था। तब श्रीकृष्ण दरबार से जाने लगे तो दुर्योधन ने उनसे कहा, 'आप हमारे यहां आए तो बिना भोजन किए कैसे जा सकते हैं, कृपया मैं आपको मेरे यहां भोजन करने के लिए आमंत्रित करता हूं।'
कृष्ण बोले, 'मेरा ये नियम है कि मैं किसी के यहां और किसी के साथ भोजन करते समय दो बातें ध्यान रखता हूं। पहली, मुझे बहुत भूख लगी हो। दूसरी, सामने वाला मुझे बहुत प्रेम से खिला रहा हो। इस समय तुम्हारे साथ ये दोनों बातें नहीं हैं। पहली बात, मुझे अभी भूख नहीं लगी है। दूसरी बात, तुम मेरी सही बात नहीं मान रहे हो। तुम मुझे खाना खिलाना चाहते हो, लेकिन मुझे इसमें प्रेम दिखाई नहीं दे रहा है। जैसा तुम्हारा स्वभाव है, इसमें भी कोई षड़यंत्र हो सकता है।'
इसके बाद कृष्ण विदुर के यहां भोजन करने चले गए।
सीख- श्रीकृष्ण ने सीख दी है कि हम जब भी किसी के यहां खाना खाने जाते हैं तो ये बात जरूर ध्यान रखें कि खाना खिलाने वाले के विचार कैसे हैं, उसकी नीयत कैसी है? क्योंकि अन्न हमारे मन पर असर डालता है। अगर हम बुरे स्वभाव वाले व्यक्ति के हाथ का बना खाना खाएंगे तो उसकी बुराई हमारे अंदर प्रवेश कर जाएगी। कोई व्यक्ति गलत इरादे से खाना खिलाए तो उसके यहां खाना खाने से बचना चाहिए।
आज हम आपको अजमेर के भरत ताराचंदानी की कहानी बताने जा रहे हैं। भरत जब छठवीं क्लास में थे, तब उनके पिता का एक्सीडेंट हो गया था और वो बेड रेस्ट पर चले गए थे। तभी से भरत और उनके परिवार का संघर्ष शुरू हो गया था। आज वो पुष्कर में पांच दुकानों के मालिक हैं और टर्नओवर करोड़ों में है। ये सब वो कैसे कर पाए, उन्हीं से जानिए।
भरत कहते हैं, 'पिता अकेले कमाने वाले थे और अचानक उनका एक्सीडेंट हो जाने से कमाई बंद हो गई। हम सब भाई-बहन छोटे थे। मां समझ नहीं पा रही थीं कि अब परिवार का भरण-पोषण आखिर होगा कैसे? दिनोंदिन हालात बिगड़ते ही गए। मां ने सिलाई-बुनाई का काम शुरू किया। बड़े भाई ने मेडिकल स्टोर पर जाना शुरू कर दिया। मैं किराने की दुकान पर जाने लगा। सुबह अखबार भी बांटता था। एसटीडी पीसीओ पर काम किया। हम लोग हर छोटा-बड़ा वो काम कर रहे थे, जिससे घर में चार पैसे आ सकें। कुछ सालों तक जिंदगी की गाड़ी ऐसे ही चलती रही।'
उन्होंने बताया कि हम सिंधी कम्युनिटी से आते हैं। हमारी कम्युनिटी के लोग या तो बिजनेस करते हैं या पैसा कमाने विदेश जाते हैं। पहले तो ऐसा ही होता था। मेरे बड़े भाई को किसी लिंक के जरिए पश्चिम अफ्रीका जाने का मौका मिला। वो वहां नौकरी करने लगे। वो जो पैसे भेजते थे, उससे हम उधारी चुका रहे थे। चार साल बाद वो वापस आ गए और पुष्कर में नौकरी करने लगे।
भरत बताते हैं, 'मैं 12वीं कर चुका था। अपने मामा के एक कॉन्टैक्ट से मैं दुबई चला गया और वहां टेक्सटाइल कंपनी में नौकरी करने लगा। मुझे लगता था कि दुबई जाते ही सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहां मैंने बहुत स्ट्रगल किया। सामान की डिलिवरी, बुकिंग से लेकर कार्टन उठाने तक का काम करता था। पांच साल तक वहां नौकरी करता रहा।'
इंसेंटिव की स्कीम काम कर गई
वो कहते हैं, 'जब लौटकर अजमेर आया तो बड़े भाई ने कहा कि अब हमें अपना कुछ करना चाहिए। आखिर कब तक किसी दूसरे के लिए काम करते रहेंगे। गल्फ कंट्री में रहने वाले अपने एक दोस्त से मैंने तीन लाख रुपए उधार लिए। कुछ पैसे बड़े भाई ने यहां-वहां से लिए और हमने पुष्कर में 6 लाख रुपए में लीज पर एक दुकान ले ली। जहां दुकान ली, वहां उस समय कोई डेवलपमेंट नहीं था। आसपास के दुकानदार बोल रहे थे कि यहां शाम को परिंदे भी नहीं दिखते, ग्राहक क्या आएंगे। लेकिन मैंने देखा कि वहां आसपास होटल और धर्मशालाएं बहुत हैं। मुझे उम्मीद थी कि कपड़े की दुकान खुलेगी तो ग्राहक आना शुरू हो जाएंगे। मैंने हिम्मत करके वहीं दुकान खोली।'
भरत ने बताया, 'गाइड और ड्राइवर्स को पांच परसेंट इंसेंटिव देना शुरू किया। शर्त यही थी कि जितने ग्राहक तुम दुकान पर लाओगे, उतना इंसेंटिव तुम्हें भी मिलेगा और दस से पंद्रह परसेंट डिस्काउंट ग्राहकों को भी दूंगा। मेरी ये स्कीम काम कर गई और दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगना शुरू हो गई। मेरी दुकान पर बसों में टूरिस्ट आने लगे। रात में दो-दो बजे तक ग्राहकी होनी लगी।'
तीन दुकानों को मिलाकर बनाया शोरूम
वो कहते हैं कि ये सब देखकर आसपास के कई व्यापारियों ने मेरी दुकान के आसपास दुकानें खोलना शुरू कर दीं। धीरे-धीरे मार्केट डेवलप हो गया। सब जगह एक जैसा माल मिलने लगा। फिर मुझे लगा कि अब कुछ बड़ा नहीं किया तो फिर बिजनेस में आगे नहीं बढ़ पाएंगे। इसलिए जो भी पैसा कमाया था, वो सब लगाकर दो दुकानें और खरीदीं। तीनों दुकानों को मिलाकर शोरूम में तब्दील कर दिया। तब से आज तक मुझे और मेरे परिवार को पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। अब हमारे पास पुष्कर में पांच दुकानें हैं। जिस दुकान पर मैं बैठता हूं, उसका ही टर्नओवर एक करोड़ से ऊपर है। दस से पंद्रह लोगों को हम रोजगार दे रहे हैं। मैंने ये अनुभव किया है कि भले ही जो किस्मत में तो वो आपको न मिले, लेकिन जो आपकी मेहनत का है, वो आपसे कोई नहीं छीन सकता।
भरत ने कहा, 'मुझे लिखने-पढ़ने का शौक बचपन से ही रहा है। पहले मजबूरी के चलते ये काम नहीं कर पाया था। अब बिजनेस के साथ ये भी कर रहा हूं। कई स्क्रिप्ट्स पर काम कर रहा हूं। हां और सुबह उठने का जो नियम पांच साल पहले था, वो आज भी है। आज भी सुबह साढ़े सात-आठ बजे दुकान खोल देता हूं। चाहे कुछ भी हो।'
देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का आज ही के दिन 1966 में उज्बेकिस्तान के ताशकंद में निधन हो गया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को शास्त्री प्रधानमंत्री बने थे। शास्त्री ने ही 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया था। वो करीब 18 महीने तक प्रधानमंत्री रहे। उनके नेतृत्व में ही भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को शिकस्त दी थी। इसके बाद वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद गए थे और वहीं उनकी मौत हो गई।
अभी तक रहस्य बनी है शास्त्री की मौत
लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य आज भी बना हुआ है। 10 जनवरी 1966 को पाकिस्तान के साथ ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के महज 12 घंटे बाद 11 जनवरी को तड़के 1 बजकर 32 मिनट पर उनकी मौत हो गई।
बताया जाता है कि शास्त्री मृत्यु से आधे घंटे पहले तक बिल्कुल ठीक थे, लेकिन 15 से 20 मिनट में उनकी तबियत खराब हो गई। इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें एंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन दिया। इंजेक्शन देने के चंद मिनट बाद ही उनकी मौत हो गई।
शास्त्री की मौत पर संदेह इसलिए भी किया जाता है, क्योंकि उनका पोस्टमार्टम भी नहीं किया गया था। उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने दावा किया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया। उनके बेटे सुनील का भी कहना था कि उनके पिता की बॉडी पर नीले निशान थे।
जब शास्त्री के शव को दिल्ली लाने के लिए ताशकंद एयरपोर्ट पर ले जाया जा रहा था तो रास्ते में सोवियत संघ, भारत और पाकिस्तान के झंडे झुके हुए थे। शास्त्री के ताबूत को कंधा देने वालों में सोवियत प्रधानमंत्री कोसिगिन और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान भी थे।
वो ऐसे पीएम थे, जिनके कहने पर लाखों भारतीयों ने एक वक्त का खाना छोड़ दिया
1965 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच जंग चल रही थी, तो अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्री को धमकी दी थी कि अगर आपने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई बंद नहीं की, तो हम आपको जो लाल गेहूं भेजते हैं, उसे बंद कर देंगे।
उस वक्त भारत गेहूं के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था। शास्त्री को ये बात चुभ गई। उन्होंने देशवासियों से अपील की कि हम लोग एक वक्त का भोजन नहीं करेंगे। उससे अमेरिका से आने वाले गेहूं की जरूरत नहीं होगी। शास्त्री की अपील पर उस वक्त लाखों भारतीयों ने एक वक्त खाना खाना छोड़ दिया था।
देशवासियों से अपील से पहले शास्त्री ने खुद अपने घर में एक वक्त का खाना नहीं खाया और न ही उनके परिवार ने। ऐसा इसलिए, क्योंकि वो देखना चाहते थे कि उनके बच्चे भूखे रह सकते हैं या नहीं। जब उन्होंने देख लिया कि वो और उनके बच्चे एक वक्त बिना खाना खाए रह सकते हैं, तब जाकर उन्होंने देशवासियों से अपील की।
पेरू में आए बर्फीले तूफान में 2 हजार लोगों की मौत
आज ही के दिन 1962 में पेरू के उत्तर-पश्चिम हिस्से में बर्फीले तूफान और चट्टान खिसकने से कम से कम 2 हजार लोगों की मौत हो गई थी। उस समय पेरू की सबसे ऊंची पहाड़ी एंडीज से अचानक लाखों टन बर्फ, चट्टानें, कीचड़ और मलबा नीचे गिरने लगा। ये हादसा आधी रात को हुआ था। इस मलबे के नीचे 8 शहर दब गए थे। कुछ लोगों को बचा भी लिया गया था। इसके बाद 1970 में भी पेरू में एक और बर्फीले तूफान में करीब 20 हजार लोग मारे गए थे।
भारत और दुनिया में 11 जनवरी की महत्वपूर्ण घटनाएं :
किसान आंदोलन और कृषि कानूनों से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आज होगी। दरअसल, किसान आंदोलन से जुड़ी कई याचिकाएं कोर्ट में दायर हुई थीं। कुछ याचिकाओं में आंदोलन को खत्म करने की मांग की गई है, तो कई याचिकाओं में तीनों कानूनों को रद्द करने की। इन्हीं सब याचिकाओं पर अब चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच सुनवाई करेगी। इस मामले की आखिरी सुनवाई 17 दिसंबर को हुई थी। सवाल ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट से मसला सुलझ सकता है?
आइए एक-एक करके इस मामले को पूरी तरह समझते हैं।
सबसे पहले बात खेती से जुड़े उन 3 कानूनों की...
1. फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्टः किसान सरकारी मंडियों (एपीएमसी) से बाहर फसल बेच सकते हैं। ऐसी खरीद-फरोख्त पर टैक्स नहीं लगेगा।
2. फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस एक्टः किसान कॉन्ट्रैक्ट करके पहले से तय एक दाम पर अपनी फसल बेच सकते हैं।
3. एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) एक्टः अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से बाहर कर दिया है। केवल युद्ध, भुखमरी, प्राकृतिक आपदा या बेहद महंगाई होने पर स्टॉक सीमा तय होगी।
दो वजहें, सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा किसानों का मसला?
पहलीः 26 नवंबर से किसान दिल्ली की सड़कों पर जमा हैं। उनकी वजह से आम लोगों को दिक्कतें हो रही हैं। इसको लेकर याचिकाएं दाखिल हुईं। इस पर कोर्ट ने कहा था कि जब तक कोई हिंसा नहीं होती, तब तक विरोध करना किसानों का अधिकार है।
दूसरीः किसान संगठन तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। इसको लेकर राजद से राज्यसभा सांसद मनोज झा, डीएमके से राज्यसभा सांसद तिरुचि सिवा और छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के राकेश वैष्णव ने याचिका लगाई और मांग की कि कोर्ट सरकार को तीनों कानून रद्द करने का आदेश दे।
अब बात सुप्रीम कोर्ट जाने पर क्या है सरकार और किसानों का रुख?
सरकार का रुखः 8 जनवरी को किसान संगठनों और सरकार के बीच बात हुई। बातचीत के दौरान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले को लेकर सुनवाई है। आप वहां बात रख सकते हैं। कोर्ट जो कहेगा, सब मान लेंगे।
किसानों का रुखः किसान कोर्ट जाने के पक्ष में नहीं है। किसान तीनों कानून को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। ऑल इंडिया किसान सभा के जनरल सेक्रेटरी हन्नान मुल्ला का कहना है कि जब तक कानून वापस नहीं होगा, तब तक लड़ाई चलती रहेगी।
अब सवाल क्या सुप्रीम कोर्ट से मसला सुलझ सकता है?
किसान नेताओं का ये कहना है कि हमारी लड़ाई सीधे सरकार से ही। कानून की संवैधानिकता को तो हमने पहले भी चुनौती नहीं दी थी। उसको हम अभी भी चैलेंज नहीं कर रहे हैं। कोर्ट का काम सिर्फ इतना है कि कोई कानून संविधान के दायरे में है या नहीं, ये तय करना। हम खुद कोर्ट नहीं गए, इसलिए सुप्रीम कोर्ट उस पर क्या कहता है, इससे हमें फर्क नहीं पड़ता। हम बस ये चाहते हैं कि सरकार ये तीनों कानून वापस ले, क्योंकि ये कानून किसानों के लिए नहीं, बल्कि पूंजीपतियों के हित में हैं।
क्या सुप्रीम कोर्ट सरकार को कानून वापस लेने को कह सकती है?
इस बारे में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप बताते हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि कानून संविधान के विरुद्ध है, संविधान की अवहेलना कर रहा है, तो वो कानून को निरस्त कर सकता है, लेकिन अगर संविधान के हिसाब से सही है, तो सुप्रीम कोर्ट को कुछ नहीं करना चाहिए।
वहीं, हैदराबाद की नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (NALSAR) यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के वाइस चांसलर फैजान मुस्तफा बताते हैं कि अगर कोई संविधान के विरुद्ध है और मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट तो क्या, हाईकोर्ट में भी चैलेंज किया जा सकता है। फैजान बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट उस कानून को निरस्त कर सकता है।
अगर सुप्रीम कोर्ट में कानून निरस्त, तो सरकार के पास क्या रास्ता बचा?
इस बारे में फैजान मुस्तफा बताते हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट से कोई कानून निरस्त हो जाता है, तो सरकार चाहे तो दोबारा संसद से उस कानून को बना सकती है। हालांकि, ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम होती है।
वो बताते हैं कि 2014 में सरकार ने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन बनाया था। इसके लिए कानून भी आया था और संविधान में संशोधन भी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कानून और संशोधन दोनों को ही निरस्त कर दिया था। उसके बाद सरकार ने इस पर कोई कानून नहीं बनाया।
आखिर किसानों की मांगें क्या हैं? सरकार क्या कह रही है उन पर?
1. खेती से जुड़े तीनों कानून रद्द हों। किसानों के मुताबिक इससे कॉर्पोरेट घरानों को फायदा होगा।
सरकार का रुखः कानून वापस नहीं ले सकते। संशोधन कर सकते हैं।
2. MSP का कानून बने, ताकि उचित दाम मिल सके।
सरकार का रुखः आंदोलन खत्म करने को तैयार हैं, तो आश्वासन दे सकते हैं।
3. नया बिजली कानून न आए, क्योंकि इससे किसानों को बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी खत्म हो जाएगी।
सरकार का रुखः बिजली कानून 2003 ही लागू रहेगा। नया कानून नहीं आएगा।
4. पराली जलाने पर 5 साल तक की जेल और 1 करोड़ रुपए जुर्माने वाला प्रस्ताव वापस हो।
सरकार का रुखः पराली जलाने पर किसी किसान को जेल नहीं होगी। सरकार इस प्रावधान को हटाने को राजी है।
बीते शुक्रवार किसानों की सरकार के साथ बातचीत एक बार फिर से विफल रही। अब 15 जनवरी को किसान नेता 9वीं बार केंद्रीय मंत्रियों से मिलेंगे। लेकिन इस बैठक को लेकर भी किसान नेताओं में कोई उत्साह नहीं है और करीब सभी किसान नेता ये मान रहे हैं कि अगली बैठक भी बेनतीजा ही रहने वाली है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब किसान नेताओं को इन बैठकों से समाधान की कोई उम्मीद ही नहीं है तो वे बैठक में शामिल ही क्यों हो रहे हैं? किसान नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां इस सवाल पर कहते हैं, ‘शहीद भगत सिंह से भी ऐसे ही सवाल पूछे जाते थे कि जब आपको न्यायालय से न्याय मिलने को कोई उम्मीद नहीं है तो आप हर तारीख पर अदालत क्यों जा रहे हैं। तब भगत सिंह का जवाब होता था कि हम अदालत इसलिए जा रहे हैं ताकि पूरे देश की अवाम को अपनी आवाज पहुंचा सके। हम भी इन बैठकों में सिर्फ इसीलिए जा रहे हैं।’
इन बैठकों के बेनतीजा रह जाने के लिए सरकार को जिम्मेदार बताते हुए उग्राहां कहते हैं, ‘बातचीत हमारे कारण नहीं, बल्कि सरकार के कारण विफल हो रही हैं। हमारी मांग तो बहुत सीधी है कि तीनों कानूनों को रद्द किया जाए, उसके बिना हम वापस नहीं लौटेंगे। सरकार को ये बात हम कई बार बता चुके हैं, लेकिन फिर भी वो हर बार हमें बुलाती है और ये मांग नहीं मानती। वो अगली बार भी ऐसा ही करेंगे, लेकिन हम फिर भी बैठक में शामिल होंगे ताकि सरकार को बेनकाब कर सकें।’
किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी भी मानते हैं कि सरकार के साथ हो रही इस बातचीत से समाधान नहीं निकालने वाला है और 15 जनवरी को होने वाली वार्ता भी पूरी तरह से विफल होने जा रही है। इसके बावजूद भी बैठक में शामिल होने के बारे में वे कहते हैं, ‘सरकार ने पहले ही इस आंदोलन को बदनाम करने की बहुत कोशिश की है। कभी हमें खालिस्तानी कहा गया, कभी आतंकवादी कहा गया और कभी कहा कि हम नकली किसान हैं। हम अपनी तरफ से सरकार को ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहते कि वो किसानों को बदनाम करे। इसीलिए हम बैठक में आते हैं। ऐसे में सरकार ये नहीं कह सकती है कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं, पर किसान ही इससे पीछे हट रहे हैं। इसीलिए हम ये जानते हुए भी अगली बैठक में जाएंगे कि उस दिन भी समाधान तो नहीं होने वाला है।’
किसानों की सरकार से बातचीत इसलिए अटक गई है, क्योंकि किसान कानूनों के रद्द होने से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं और सरकार कानूनों को रद्द करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में सरकार लगातार ये प्रयास कर रही है कि बातचीत के जरिए कोई बीच का रास्ता निकाला जा सके।
किसान नेता हन्नान मुल्ला कहते हैं, ‘ये कानून किसानों की मौत के वारंट हैं। इस पर कोई समझौता या बीच का रास्ता कैसे हो सकता है। मौत का वारंट तो रद्द ही किया जाता है, उसमें संशोधन नहीं होते। हम ये भी जानते हैं कि सरकार भी मानने वाली नहीं है। सरकार ने ये कानून उन लोगों के लिए बनाए हैं, जिनके पैसे से वो चुनाव जीते हैं, जिनके जहाजों में वो चुनावी रैली करते हैं। कानून वापस लेकर वो पूंजीपतियों को नाराज नहीं कर सकते। अगली बैठक में भी सरकार नहीं मानेगी, ये हम जानते हैं। इसलिए अपने संघर्ष को ऐसे आगे बढ़ा रहे हैं कि सबसे बेहतर नतीजों की उम्मीद करो, लेकिन सबसे बुरे नतीजों के लिए तैयार रहो।’
बीते शुक्रवार को हुई बैठक में सरकार ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि किसान चाहें तो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं और वहां इन कानूनों को चुनौती दे सकते हैं। इस प्रस्ताव पर अखिल भारतीय किसान सभा के नेता मेजर सिंह कहते हैं, ‘कोर्ट की भूमिका कानूनों की समीक्षा करते हुए यह तय करने की है कि कोई कानून संविधान के दायरे में है या नहीं। हम तो कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती दे ही नहीं रहे तो कोर्ट जाकर क्या करेंगे। कानून बनाना सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, लेकिन वो कानून किसान हितैषी नहीं हैं इसलिए हमारी लड़ाई सरकार से है और जब तक हम ये लड़ाई जीतेंगे नहीं, तब तक सरकार से लड़ते रहेंगे।’
सरकार से हो रही बातचीत को भी इसी लड़ाई का हिस्सा मानते हुए उत्तर प्रदेश के बड़े किसान नेता राकेश टिकैत कहते हैं, ‘सरकार इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए ही तारीख पर तारीख दे रही है। इनसे होना कुछ नहीं है। बस लोग बिना मुकदमे की तारीख झेल रहे हैं। अगली बैठक में भी यही होगा। सरकार को लगता है कि ऐसा करने से आंदोलन कमजोर होगा और जनता में ये संदेश जाएगा कि सरकार तो बात कर रही है, लेकिन किसान नहीं मान रहे। हम भी इसलिए बैठक से मना नहीं कर रहे, क्योंकि हम जनता को बताना चाहते हैं कि हम तो अपनी मांगों को लेकर बिलकुल स्पष्ट हैं और वो सरकार है, जो मान नहीं रही।'
गतिरोध की यही स्थिति बनी रही तो बातचीत का औचित्य क्या रहेगा और ऐसा कब तक चलेगा? इस सवाल पर राकेश टिकैत कहते हैं, ‘फिलहाल तो यही समझ लीजिए की हम अगली बैठक के बहाने 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर परेड की रेकी कर लेंगे। उस दिन किसान मार्च निकलेगा। तब भी सरकार नहीं मानी तो आंदोलन चलता रहेगा। हम मई 2024 तक ये आंदोलन चलाएंगे, जब तक इस सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं हो जाता।’
क्या आप लगातार घर से ऑफिस का काम या पढ़ाई कर रहे हैं? यदि हां, तो दो बार सोचिए, क्योंकि आप कोरोना से तो बच सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसी बीमारियों की गिरफ्त में आ सकते हैं, जो आपको जिंदगीभर परेशान कर सकती हैं।
एक स्टडी के मुताबिक, दुनियाभर में वर्क फ्रॉम होम करने वाले आधे से ज्यादा व्यस्क जॉब और घर के काम में बैलेंस बनाने के चक्कर में एंग्जाइटी की चपेट में आ चुके हैं। एस्टर डीएम हेल्थकेयर की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर अलीशा मोपेन ने वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोगों से जुड़ी 5 खतरनाक चीजें आइडेंटिफाई की हैं। उन्होंने इसे “DEMON” यानी भूत या पिशाच नाम दिया है। DEMON के सभी 5 वर्ड अलग-अलग खतरे के बारे में बताते हैं।
मोपेन के मुताबिक- जो लोग लॉकडाउन या आइसोलेशन के चलते वर्क फ्रॉम होम हैं या स्टडी फ्रॉम होम हैं, उन्हें समय रहते DEMON से छुटकारा पाने का तरीका ढूंढना होगा, नहीं तो ये 5 समस्याएं जिंदगीभर के लिए मुसीबत बन सकती हैं। हमारी जिंदगी लंबी है, इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम अपने घरों में दुबके हुए DEMON यानी पिशाच को पहचानें और उससे दूर रहें।
आइए जानते हैं DEMON को और उससे छुटकारा पाने के तरीकों के बारे में-
डिवाइस एडिक्शन-
नोमोफोबिया से बचना है तो डिजिटल डिटॉक्स है जरूरी
कोरोना आने के साथ ही हम बड़ी तेजी के साथ फिजिकल वर्ल्ड से डिजिटल वर्ल्ड में दाखिल हुए और अब इसकी कीमत चुका रहे हैं। इलेक्ट्रानिक डिवाइसेज ने हमारे काम, पढ़ाई और कम्युनिकेशन को तो आसान बनाया है, लेकिन दोस्तों और परिवार से फिजिकली तौर पर दूर कर दिया है। अब हम पहले से कहीं ज्यादा स्क्रीन पर निर्भर हैं। 2021 में जूम पर डेली मीटिंग करने वाले यूजर्स की संख्या 30 करोड़ तक पहुंच सकती है। माइक्रोसॉफ्ट को उम्मीद है कि इस साल यूजर्स एक दिन में 30 बिलियन मिनट तक उसके प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर सकते हैं।
नेटफ्लिक्स ने साल के पहले छह महीने में 2.6 करोड़ सब्सक्राइबर को जोड़ने का लक्ष्य रखा है। गूगल क्लासरूम को उम्मीद है कि उसके यूजर्स पिछले साल से दोगुना हो जाएंगे। इस तरह हम धीरे-धीरे अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए ऐसी तमाम कंपनियों के ऐप और प्लेटफार्म पर निर्भर होते जा रहे हैं। "नोमोफोबिया" या बिना मोबाइल के रहने पर होने वाला डर, ये 2020 में दुनिया में और ज्यादा बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में डिजिटल डिटॉक्स यानी थोड़े-थोड़े समय के लिए खुद को स्मार्ट डिवाइस से दूर रखने की तरकीब ही हमें सेफ रख सकती है।
आई स्ट्रेन-
स्क्रीन टाइम कम करें
डिवाइस एडिक्शन और स्क्रीन टाइम बढ़ने से हमारी आंखों पर जोर बढ़ गया है, इसी के चलते आंखों से जुड़ी कई तरह की समस्याएं भी सामने आ रही हैं। ऑनलाइन लर्निंग, गेमिंग और इंटरटेनमेंट से बच्चों में मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष की समस्या पैदा हो रही है। दुनियाभर में 6 से 19 साल तक के बच्चों में मायोपिया के मामले काफी बढ़ गए हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 40% बच्चों में मायोपिया की समस्या देखने को मिली है। एशियाई बच्चों में भी ये समस्या है।
व्यस्क लोग कम्प्युटर विजन सिंड्रोम या डिजिटल आई स्ट्रेन की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके सिंप्टम्स आंखों का सूखना, लगातार सिर दर्द होना, कम या धुंधला दिखाई देना हैं। इससे बचने के लिए आपको रेगुलर आई चेकअप कराना होगा। स्क्रीन टाइम के दौरान हर 20 मिनट पर आपको नजर फेरना चाहिए, इसके लिए 20 फीट की दूरी पर स्थिति किसी चीज को देख सकते हैं। साथ ही जितना संभव हो स्क्रीन टाइम को कम करें।
मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स-
दिनचर्या में सेल्फ केयर स्ट्रेटजी को शामिल करें
दुनिया में तीसरी बड़ी समस्या जो उभर के आई है, वे यह है कि बड़ी संख्या में लोग मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। 2020 में यह समस्या हर ऐज ग्रुप के लोगों में देखने को मिली। बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स अपने साथियों और टीचर से नहीं मिल पाने और भविष्य को लेकर एंग्जाइटी के शिकार हुए हैं। दुनिया के आधे से ज्यादा वर्किंग एडल्ट जॉब सिक्युरिटी को लेकर एंग्जाइटी के शिकार हैं। इसके अलावा जॉब, काम का पैटर्न और रूटीन बदलने से भी लोग तनाव में काम करने को मजबूर हैं।
WHO के मुताबिक आने वाले दिनों और सालों में लोगों को मेंटल हेल्थ और साइकोलॉजिकल सपोर्ट की बहुत जरूरत पड़ने वाली है। इसलिए हमें अपनी रोज की दिनचर्या में सेल्फ केयर स्ट्रेटजी को शामिल करने की जरूरत है, ताकि हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर रहे। रूटीन ब्रेक न हो, इसके लिए हमें कुछ आसान और प्रभावी कदम भी उठाने होंगे, जैसे- निगेटिव न्यूज मीडिया से रहें, पॉजिटिव चीजों पर फोकस करें, प्राथमिकताओं को तय करें और व्यस्त रहें, परिवार के लोगों से जुड़े रहें।
ओबेसिटी-
बचना है तो खुद को संयमित करें
कोरोना के पहले से ही मोटापा दुनिया की बड़ी समस्या रही है, लेकिन पिछले साल ये और बड़ी हो गई। मोटापे के पीछे कई तरह के फैक्टर काम करते हैं, जैसे- ज्यादा कैलोरी वाले फूड, अधिक स्क्रीन टाइम, फिजिकल एक्टीविटीज का कम होना और सस्ते नॉन-फिजिकल एंटरटेनमेंट आदि।
दरअसल, स्टे ऐट होम, क्वारैंटाइन, लॉकडाउन जैसी चीजों के चलते घर से निकलना बिल्कुल कम हो गया और लोग मोटापे के शिकार हो रहे हैं। घर पर रहने से आप कुछ समय के लिए तो सेफ रह सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक रहने वाली बीमारियों के चपेट में आ सकते हैं- जैसे डाइबिटीज, हाइपरटेंशन आदि।
इससे बचने के लिए हमें हर दिन 8 घंटे की नींद लेना चाहिए, नियमित व्यायाम (भले ही घर पर करें), संतुलित और स्वस्थ खान-पान करें, तंबाकू और शराब से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा आराम के लिए और खुद को रिचार्ज करने के लिए कुछ समय निकालना चाहिए।
नेक और बैक पेन-
खड़े होकर काम करें या आरामदायक कुर्सी खरीदें
घर पर घंटों लगातार पढ़ाई और ऑफिस का काम करने से गर्दन और कमर दर्द की समस्याएं आम हो गई हैं। दरअसल, गर्दन और कमर को बहुत कम हिलाने-डुलाने से ये दर्द और असहजता पैदा हो रही है। यदि इसे यूं ही जारी रखते हैं तो आगे यह समस्या आपको हमेशा के लिए हो सकती है और फिर इलाज के लिए डॉक्टरों के चक्कर लगाने को मजबूर होंगे।
इसके कुछ समाधान हैं, जैसे आप खड़े होकर टेबल पर अपना काम करें या ऐसी कुर्सी खरीदें जिसपर बैठने से कमर को अच्छा सपोर्ट मिले, आप अपनी बाहों, गर्दन और कमर को स्ट्रेच कर सकें। इसके अलावा छोटे ब्रेक भी ले सकते हैं, यह एकबार में एक घंटे के लिए भी हो सकता है।
अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के लिए धन संग्रह का काम 15 जनवरी यानी मकर संक्रांति से शुरू हो रहा है। यह कार्यक्रम 42 दिनों का होगा। 27 फरवरी यानी माघ पूर्णिमा को इसकी समाप्ति होगी। श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसे ‘राम मंदिर निधि समर्पण अभियान’ नाम दिया है। इस अभियान को लेकर हमने विश्व हिन्दू परिषद के इंटरनेशनल वर्किंग प्रेसिडेंट और इस अभियान के प्रमुख आलोक कुमार, मध्य प्रदेश के लिए अभियान प्रमुख राजेश तिवारी और बिहार के सह अभियान प्रमुख परशुराम कुमार से बात की। बातचीत के प्रमुख अंश...
धन संग्रह अभियान की रूपरेखा क्या होगी
हम सभी राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र के सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं। पूरे देश में 5.25 लाख गांवों में 13 करोड़ परिवारों के 65 करोड़ लोगों तक पहुंचने का टारगेट है। आंकड़ा बढ़ भी सकता है। इसके लिए हर राज्य में टीमें भी बन गई हैं। मध्य प्रदेश में 6.5 करोड़ और बिहार में 7.5 करोड़ लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य है। इसी तरह बाकी राज्यों ने भी अपने टारगेट सेट कर रखे हैं।
राम मंदिर के लिए चंदा किस मोड में स्वीकार किया जाएगा
अभी धन तीन तरह से लिए जा रहा है। पहला कूपन के माध्यम से, दूसरा रसीद के जरिए और तीसरा सीधे अकाउंट में डिपॉजिट किया जा सकता है। ट्रस्ट की तरफ से कूपन और रसीद राज्यों को भेज दिए गए हैं। 10 रुपए, 100 रुपए और 1000 रुपए के कूपन होंगे। 100 रु के 8 करोड़, 10 रु के 4 करोड़ और1000 रु के 12 लाख कूपन छापे जाएंगे। इससे ज्यादा जिसे दान करना है वो रसीद के जरिए कर सकता हैं। उसके लिए कोई लिमिट नहीं है।
कूपन पर भगवान राम और मंदिर का चित्र होगा। जो लोग रसीद के माध्यम से दान करेंगे उन्हें एक पत्रक और राम जी का चित्र भेंट किया जाएगा। पत्रक पर मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी होगी। जो हिंदी, अंग्रेजी के अलावा राज्यों की मातृ भाषा में भी होगा।
इसके अलावा जो लोग बड़ी राशि दान देंगे उन्हें पत्रक और चित्र के अलावा स्मृति के रूप में अंग वस्त्र, कॉफी टेबल जैसी चीजें भेंट की जाएगी। हालांकि ये अनिवार्य नहीं है। राज्य अपने लेवल पर ये तय करने के लिए स्वतंत्र हैं कि वो किसे क्या भेंट करना चाहते हैं।
क्या विदेश से धन स्वीकार किया जाएगा
फिलहाल, विदेशी धन स्वीकार नहीं होगा। क्योंकि इसके लिए फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (FCRA) की मान्यता जरूरी है जो फिलहाल ट्रस्ट के पास नहीं है। इसको लेकर प्रोसेस जारी है। लेकिन अप्रूवल कब तक मिलेगा, इसके बारे अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
क्या गहने या अन्न दान किया जा सकता है
अभी सिर्फ नकद पैसे ही लिए जाएंगे। आभूषण, अन्न या कोई और संपत्ति स्वीकार नहीं होगी। जो लोग दान देना चाहते हैं, उन्हें इन चीजों को बेचकर पैसे इकट्ठा करना होगा। फिर वो कूपन या रसीद के माध्यम से दान कर सकते हैं।
ट्रांसपेरेंसी और सुरक्षा के लिहाज से कौन से उपाय किए गए हैं
दान सिर्फ कूपन और रसीद के जरिए ही स्वीकार होंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में 24 घंटे और शहरी क्षेत्रों में 48 घंटे के भीतर दिन भर में जमा की गई राशि को नजदीकी बैंक में जमा करना होगा। पहले दिन जिस बैंक की जिस शाखा में पैसा जमा होगा, अगले 42 दिन तक उसी बैंक की उसी शाखा में पैसा जमा कराना होगा। बैंकों में पैसा जमा करने के लिए अलग से डिपॉजिट स्लिप छापे गए हैं, जिसमें कोड नंबर हैं, अकाउंट नंबर नहीं।
ये राशि सिर्फ तीन ही बैंकों में जमा होगी। ये बैंक हैं - स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा। ये तीनों बैंक जमा राशि के लिए सिर्फ कलेक्शन अकाउंट का काम करेंगे। यहां से पैसे निकाले नहीं जा सकेंगे।
कितने लोगों की टोलियां बनेंगी और इसमें कितने लोग होंगे
सभी राज्यों में जिला स्तर पर एक कमेटी होगी। कई राज्यों में ब्लॉक स्तर पर भी कमेटियां बनेंगीं। इसके लिए हर जिले में एक ऑफिस भी होगा। कुछ राज्यों में ऑफिस बन गए हैं जबकि कई जगहों पर अभी प्रोसेस में हैं। हर गांव या मोहल्ले में जरूरत के हिसाब से टोलियां बनेंगीं। किसी गांव में 4-5 टोलियां भी हो सकती हैं।
हर टोली में पांच लोग होंगे जिसमें एक टीम लीडर होगा। उसके पास कूपन और रसीद होंगे। धन संग्रह वही करेगा। इसी तरह हर पांच टोलियों पर एक डिपॉजिटर होगा। यही बैंक में जाकर पैसे जमा करेगा।
इस अभियान से जुड़े लोगों को हर लेवल पर ट्रेंड किया जा रहा है। देशभर में ऑनलाइन ट्रेनिंग दी जा रही है। इसमें टोलियों के संचालन, हिसाब किताब करना, बैंकों में पैसे जमा करना, प्रचार प्रसार करना जैसी चीजें शामिल हैं। इन विषयों से जुड़े एक्सपर्ट ट्रेनिंग दे रहे हैं।
केंद्र, राज्य और जिलों में जो कमेटियां बनी हैं। उनमें ज्यादातर लोग संघ और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या आम नागरिक टोली का हिस्सा हो सकता है...
आलोक कुमार कहते हैं कि ये जरूरी नहीं है कि वह संघ या VHP से जुड़ा हो तो ही कमेटी में शामिल होगा। उस राज्य या जिले का कोई भी सोशल वर्कर या अहम व्यक्ति टीम का हिस्सा हो सकता है। वहीं राजेश तिवारी बताते हैं कि धन संग्रह टोली में कोई भी शामिल हो सकता है। इसके लिए उसे लोकल लेवल पर टीम लीडर से कॉन्टैक्ट करना होगा। लेकिन डिपॉजिटर या टीम लीडर की जिम्मेदारी उसे ही दी जाएगी जो पहले से परिचित होगा।
कितने तरह की टोलियां होंगी और उनका काम क्या होगा
टोलियां बनाने की जिम्मेदारी राज्यों की है। वे अपनी सुविधानुसार टोलियां बना रहे हैं। मुख्य रूप से जो टोलियां अभी बनी हैं वो इस प्रकार है...
कितना धन संग्रह का टारगेट है
अभी हमने धन संग्रह को लेकर कोई टारगेट नहीं रखा है। राम के नाम पर लोग जितना भी अपनी श्रद्धा से देंगे, हम स्वीकार करेंगे। वैसे भी मंदिर के साथ-साथ और भी चीजें बननी हैं, जो अभी सिर्फ ड्रॉइंग बोर्ड पर है। अप्रूवल नहीं मिला है। इसलिए अभी से कुल खर्च का अनुमान लगाना मुश्किल है।
आपको बता दें कि ट्रस्ट ने अपनी तरफ से मंदिर निर्माण के लिए एक अलग कमेटी बनाई है। उसके अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा हैं। अकाउंट संभालने के लिए अलग से ऑडिटर जनरल भी नियुक्त किया गया है।
प्रचार-प्रसार और जन जागरूकता के लिए कौन -कौन से कार्यक्रम किए जाएंगे
ट्रस्ट की कोशिश है कि यह अभियान जन अभियान बने यानी इसमें हर आदमी की कोई न कोई भूमिका हो। इसके लिए हर लेवल पर जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। कई जगहों पर मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ, प्रभात फेरी, रात्रि जागरण भजन कीर्तन, अखबारों में विज्ञापन, रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस करना जैसे कार्यक्रम शामिल हैं।
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क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रही है। पोस्ट में एक फोटो है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'गुजरात फाइल्स' नाम की किताब पकड़े हुए हैं। कैप्शन में लिखा है, 'आखिरकार उन्होंने उस पुस्तक को पढ़ने का समय निकाला, जिसमें उन्होंने अभिनय किया था।'
He finally found the time to read that book he starred in...
— smishdesigns (@smishdesigns) December 28, 2020
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Gujarat Files Book by @RanaAyyub pic.twitter.com/aMA0iGR6WQ
और सच क्या है?