भारत-चीन के बीच तनाव जारी है। शनिवार को ही खबर आई कि चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश के एक गांव से पांच लड़कों को अगवा कर लिया। 55 साल पहले भी आज ही के दिन यानी 6 सितंबर 1965 को पश्चिमी सीमा पर तनाव था। तब भारत ने पंजाब के रास्ते पाकिस्तान में घुसकर उसके हमले का जवाब दिया था। भारत ने यह जंग जीत ली थी। ...बहरहाल, शुरू करते हैं आज की मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
आज इन 3 इवेंट्स पर रहेगी नजर
1. आईपीएल के सीजन-13 का शेड्यूल जारी हो जाएगा। इस बार यह टूर्नामेंट यूएई में होना है। 19 सितंबर से 10 नवंबर तक कुल 60 मैच खेले जाएंगे।
2. सुशांत की मौत के मामले में ड्रग्स कनेक्शन की जांच कर रही नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की टीम शोविक को रिया के सामने बैठाकर पूछताछ करेगी।
3. नई दिल्ली स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह छह महीने बाद खुलने जा रही है।
अब कल की 6 महत्वपूर्ण खबरें
1. रेलवे 80 और ट्रेनें चलाएगा
रेलवे 12 सितंबर से 80 नई स्पेशल ट्रेनें शुरू करने जा रहा है। रिजर्वेशन 10 सितंबर से शुरू होंगे। ये ट्रेनें 38 शहरों को जोड़ेंगी। इनमें राजस्थान के 5 और मध्यप्रदेश के 4 शहर शामिल हैं। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव के मुताबिक, जिस ट्रेन में वेटिंग लिस्ट लंबी है, उसके लिए क्लोन ट्रेन चलाई जाएगी।
2. चीन की सेना ने अरुणाचल के 5 लड़कों को बंधक बनाया
चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश के सुबानसिरी जिले के बॉर्डर इलाके से पांच लड़कों को अगवा कर लिया। शनिवार को यह खबर सरकार के हवाले से नहीं, बल्कि अरुणाचल के कांग्रेस विधायक निनॉन्ग एरिंग के जरिए सामने आई। फिलहाल इसकी शुरुआती जांच अरुणाचल पुलिस को सौंपी गई है।
मुकेश अंबानी ने 5 सितंबर 2016 को रिलायंस जियो को फ्री 4G डेटा और वॉयस कॉलिंग के साथ देश में लॉन्च किया था। तब देश में 12 टेलीकॉम कंपनियां थीं। अब 5 ही बचीं। 31 मार्च 2020 तक रिलायंस इंडस्ट्रीज पर 1.61 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था, लेकिन जियो में आए इन्वेस्टमेंट की वजह से कंपनी ने खुद को मार्च 2021 के तय समय से पहले ही यानी 18 जून 2020 को कर्ज मुक्त घोषित कर दिया।
4. सुशांत केस में रिया का भाई 9 सितंबर तक रिमांड पर
सुशांत केस से जुड़े ड्रग्स कनेक्शन मामले में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने रिया चक्रवर्ती के भाई शोविक को 9 सितंबर तक रिमांड पर रखा है। पूर्व स्टाफर सैमुअल मिरांडा भी 4 दिन की रिमांड पर है। इस केस में अब तक 6 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं।
14 सितंबर से संसद का मानसून सत्र शुरू होगा। इस बार प्रश्नकाल नहीं होगा। शून्यकाल की अवधि एक घंटे से घटाकर आधा घंटा कर दी गई है। इस पर सरकार की आलोचना हो रही है। इस मानसून सत्र में ऐसे कई कदम उठाए गए हैं, जो 1952 से अब तक के संसदीय इतिहास में पहली बार दिखेंगे।
6. अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान पर विवाद
:अटलांटिक मैगजीन के मुताबिक- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने युद्ध में मारे गए अमेरिकी सैनिकों को लूजर्स (हारने वाला) कहा है। इस बयान के बाद अब उनको डेमोक्रेट्स और दूसरे विरोधियों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि, ट्रम्प खुद को आर्म्ड फोर्सेस का चैंपियन बताते रहे हैं।
तेलंगाना सरकार का सबसे महत्वाकांक्षी सपना साकार होने वाला है। आंध्रप्रदेश के तिरुपति बालाजी के मुकाबले तेलंगाना में बन रहे यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह स्वामी मंदिर का काम करीब 90% पूरा हो गया है। मंदिर के आसपास निर्माण अभी जारी है। सितंबर महीने में ही इसके शुभारंभ की घोषणा होने की संभावना है। 2016 में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना के लिए तिरुपति जैसा ही मंदिर बनाने की योजना पर काम शुरू किया, क्योंकि आंध्र से अलग होने पर तिरुपति तेलंगाना के हिस्से में नहीं आया था।
पौराणिक महत्व के यदाद्री मंदिर को 1800 करोड़ रुपए की लागत से भव्य रूप दिया जा रहा है। इसमें 39 किलो सोने और करीब 1753 टन चांदी से मंदिर के सारे गोपुर (द्वार) और दीवारें मढ़ी जाएंगी। ये भारत में ग्रेनाइट पत्थर से बना सबसे बड़ा मंदिर होगा। इसमें 2.5 लाख टन ग्रेनाइट पत्थर लगा है। पहले तेलंगाना सरकार की योजना मार्च 2020 में इसके शुभारंभ की थी, लेकिन कोरोना के चलते इसमें देरी हुई है। मंदिर की शुभारंभ की तारीख खुद मुख्यमंत्री ही बताएंगे।
इसे यदाद्रीगिरीगुट्टा मंदिर भी कहा जाता है। हैदराबाद से करीब 60 किमी दूर यदाद्री भुवनगिरी जिले में मौजूद मंदिर का क्षेत्रफल करीब 9 एकड़ था, इसके विस्तार के लिए 300 करोड़ रुपए में 1900 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई। इसके लिए इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट्स ने करीब 1500 नक्शों और योजनाओं पर काम किया, उनमें से इसका डिजाइन फाइनल किया गया। डिजाइन हैदराबाद के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट और दक्षिण भारतीय फिल्मों के आर्ट डायरेक्टर आनंद साईं ने तैयार की है।
स्कंद पुराण में है मंदिर का उल्लेख
यदाद्री मंदिर का उल्लेख स्कंध पुराण में मिलता है। कथा है कि महर्षि ऋष्यश्रृंग के पुत्र यद ऋषि ने यहां भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उनके तप से प्रसन्न विष्णु ने नृसिंह रुप में दर्शन दिए थे। महर्षि यद की प्रार्थना पर भगवान नृसिंह यहीं तीन रूपों में विराजित हो गए। दुनिया में एकमात्र ध्यानस्थ पौराणिक नृसिंह प्रतिमा इसी मंदिर में है।
गुफा में मौजूद है नृसिंह की तीनों प्रतिमाएं
भगवान नृसिह की तीन मूर्तियां एक गुफा में हैं। साथ में माता लक्ष्मी भी हैं। करीब 12 फीट ऊंची और 30 फीट लंबी इस गुफा में ज्वाला नृसिह, गंधभिरंदा नृसिंह और योगानंदा नृसिंह प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसका पुनर्निर्माण वैष्णव संत चिन्ना जियार स्वामी के मार्गदर्शन में शुरू हुआ था। निर्माण आगम, वास्तु और पंचरथ शास्त्रों के सिद्धांतों पर किया जा रहा है, जिनकी दक्षिण भारत में खासी मान्यता है।
156 फीट ऊंची तांबे की हनुमान प्रतिमा
यदाद्री मंदिर क्षेत्र के प्रवेश द्वार पर भगवान हनुमान की एक खड़ी प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है। इस मंदिर में लक्ष्मी-नृसिंह के साथ ही हनुमान का मंदिर भी है। इस वजह से हनुमान को मंदिर का मुख्य रक्षक देवता माना गया है। इस प्रतिमा को करीब 25 फीट के स्टैंड पर खड़ा किया जा रहा है, यह कई किमी दूरी से दिखाई देगी। मंदिर की भव्यता का अंदाजा पर्यटकों को इस प्रतिमा की ऊंचाई से हो जाएगा।
सबसे ऊंचा होगा राजगोपुरम, 5 सभ्यताओं की झलक
मंदिर का मुख्य द्वार जिसे राजगोपुरम कहा जाता है, वह करीब 84 फीट ऊंचा होगा। इसके अलावा मंदिर के 6 और गोपुर (द्वार) होंगे। राजगोपुरम के आर्किटेक्चर में 5 सभ्यताओं- द्रविड़, पल्लव, चोल, चालुक्य और काकातिय की झलक मिलेगी।
तिरुपति की तरह लड्डू प्रसादम् कॉम्प्लेक्स
तिरुपति की तरह ही यदाद्री मंदिर में भी लड्डू प्रसादम् मिलेगा। इसके लिए अलग से एक कॉम्प्लेक्स तैयार किया जा रहा है, जहां लड्डू प्रसादम् के निर्माण से लेकर पैकिंग तक की व्यवस्था होगी।
क्यू कॉम्प्लेक्स में कैफेटेरिया जैसी सुविधाएं
मंदिर में दर्शन के लिए क्यू कॉम्प्लेक्स बनाया जा रहा है, जिसकी ऊंचाई करीब 12 मीटर होगी। इसमें रेस्ट रूम सहित कैफेटेरिया जैसी सुविधाएं होंगी। इसे पर्यटकों के लिए ज्यादा से ज्यादा सुविधाजनक बनाने पर काम चल रहा है।
अन्नप्रसाद के लिए रोज 10 हजार लोगों के भोजन की व्यवस्था
अन्नप्रसाद आदि के लिए भी पूरी व्यवस्था होगी। रोज लगभग 10 हजार लोगों के लिए खाना तैयार होगा। जैसे-जैसे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ेगी, उसके हिसाब से अन्न प्रसादम् की व्यवस्था भी बढ़ाई जाएगी। इसके अलावा मंदिर परिसर में अलग-अलग जगह अन्न प्रसादी के काउंटर भी लगाए जाएंगे।
1000 साल तक मौसम की मार झेल सकने वाले पत्थर
मंदिर के निर्माण के लिए जिन पत्थरों का उपयोग किया गया है, वे हर तरह के मौसम की मार झेल सकते हैं। उनके मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होगा। लगभग 1000 साल तक ये पत्थर यथा स्थिति में रह सकें, इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है।
कैसे पहुंच सकते हैं यदाद्री मंदिर तक एयरपोर्ट - यदाद्री मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे पास का एयरपोर्ट हैदराबाद का है। हैदराबाद से यदाद्री भुवनगिरी जिला महज 60 किमी दूर है। एयरपोर्ट से टैक्सी या बस से यदाद्री पहुंचा जा सकता है। रेलवे स्टेशन - मंदिर से सबसे पास का रेलवे स्टेशन यदाद्री भुवनगिरी ही है। यहां से लगभग सभी रूट की ट्रेनें मिल जाती हैं। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी करीब 13 किमी है।
मंदिर तक फोरलेन सड़कें, बस डिपो भी नए बने
मंदिर तक पहुंचने के लिए हैदराबाद सहित सभी बड़े शहरों से जोड़ने के लिए फोरलेन सड़कें तैयार की जा रही हैं। मंदिर के लिए अलग से बस-डिपो भी बनाए जा रहे हैं। जिससे लोगों को मंदिर तक आने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
वीआईपी विला से लेकर यात्री निवास तक सारी सुविधा
इसमें आम यात्रियों से लेकर वीआईपी तक की सुविधाओं का ध्यान रखा जाएगा। यात्रियों के लिए अलग-अलग तरह के गेस्ट हाउस का निर्माण किया गया है। वीआईपी व्यवस्था के तहत 15 विला भी बनाए गए हैं। एक समय में 200 कारों की पार्किंग की सुविधा भी रहेगी।
भारतीय इतिहास में 1965 में पाकिस्तान से हुए युद्ध को उतना महत्व नहीं दिया जाता जितना 1962 के चीन युद्ध या 1971 के पाकिस्तान युद्ध को देते हैं। लेकिन, अहम यह है कि 1965 में आज ही के दिन भारत ने पंजाब के रास्ते पाकिस्तान के लाहौर पर हमला बोला था। भारतीय फौजें पंजाब फ्रंट से लाहौर तक पहुंच गई थीं। सियालकोट, लाहौर के साथ ही कश्मीर के कुछ उपजाऊ हिस्से भी भारत के कब्जे में थे।
संयुक्त राष्ट्र के दखल के बाद 23 सितंबर को सीजफायर की घोषणा हुई। दोनों ही देश दावे करते हैं कि यह युद्ध उन्होंने जीता। पाकिस्तान तो आज भी इस दिन को डिफेंस डे के तौर पर मनाता है। इस खुशी में कि उसने भारत को आगे बढ़ने से रोका। बाद में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने पाक प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ ताशकंद समझौता किया। ताशकंद उस समय सोवियत संघ में था, और आज उज्बेकिस्तान का हिस्सा है। 1965 के युद्ध के बाद ही लालबहादुर शास्त्री ने प्रसिद्ध नारा दिया था- जय जवान, जय किसान।
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक रिश्तों की जीत
सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2018 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उसने 1861 के इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) के सेक्शन 377 को रद्द किया था। इस सेक्शन के हिसाब से तो समलैंगिकता एक अपराध थी, जिसे दंडित किया जाना चाहिए। इसे भारत के एलजीबीटी अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं की बड़ी जीत बताया जाता है। हालांकि, अब भी एलजीबीटी राइट्स एक्टिविस्ट समलैंगिक शादियों की वैधता को लेकर लड़ रहे हैं।
विक्टोरिया ने पूरा किया दुनिया का चक्कर
1522 में विक्टोरिया दुनिया का पहला ऐसा जहाज बन गया जिसने दुनिया का पूरा चक्कर लगाया हो। यह एक स्पेनिश जहाज था, जिसकी कमांड पुर्तगाली एक्सप्लोरर फर्डीनांड मैगेलन के पास थी। उन्होंने 20 सितंबर 1519 को इंडोनेशिया के लिए सबसे अच्छा रास्ता तलाशने के लिए सफर शुरू किया था। यह खोज 5 जहाजों के साथ शुरू हुई थी, जिसमें विक्टोरिया और 260 क्रू मेंबर शामिल थे। तीन साल बाद 6 सितंबर 1522 को जब यह जहाज दुनिया का पूरा चक्कर लगाकर स्पेन के सेविले में लौटा तब सिर्फ 18 क्रू मेंबर बचे थे। मैगेलन की भी मौत हो चुकी थी।
इतिहास के पन्नों में दर्ज अन्य अहम घटनाएं इस प्रकार हैं-
1716ः पहला लाइट हाउस उत्तरी अमेरिका के बोस्टन में बनाया गया।
1870: अमेरिका में पहली बार किसी महिला ने स्थानीय चुनावों में वोट डाला। हालांकि, राष्ट्रीय चुनावों में वोटिंग का अधिकार महिलाओं को 1920 में मिला था।
1901: अमेरिका के 25वें राष्ट्रपति विलियम मैककिनले को गोली मार दी गई थी। आठ दिन बाद उनकी मौत हो गई थी।
1915ः पहला युद्धक टैंक बनाया गया। इंग्लैंड में बने टैंक के पहले प्रोटोटाइप को "लिटिल विलि' के नाम से पुकारा गया।
1916: पहला सुपर मार्केट अमेरिका के टेनेसी में खुला।
1937: इल मजूको युद्ध के साथ स्पेन में गृह युद्ध शुरू हुआ।
1958: अमेरिका ने अटलांटिक सागर में परमाणु परीक्षण किया।
1969: अफ्रीकी देश स्वाजीलैंड को ब्रिटेन से आजादी मिली। आज के दिन को इस देश का राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया।
1972: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज उस्ताद अलाउद्दीन खान का निधन हुआ।
1986: इस्तांबुल में यहूदी उपासना गृह में हमले में 23 लाेग मारे गए।
1988: 11 साल की उम्र में थॅामस ग्रेगोरी इंग्लिश चैनल पार करने वाला सबसे कम उम्र के तैराक बने।
1991: रूस के दूसरे सबसे बड़े शहर को कभी सेंट पीटर्सबर्ग, कभी पेत्रोग्राद तो कभी लेनिनग्राद नाम से जाना जाता रहा। इस शहर को अपना पुराना नाम सेंट पीटर्सबर्ग वापस मिला था।
1991: सोवियत संघ ने तीन बाल्कन राष्ट्रों एस्टोनिया, लाट्विया और लिथुआनिया को 50 साल के कम्युनिस्ट शासन से आजाद किया था।
1997: एक हफ्ते तक शोक मनाने के बाद प्रिंसेस डायना को ब्रिटेन ने अंतिम विदाई दी थी।
2007: इजरायल ने ऑपरेशन ऑर्चर्ड चलाते हुए सीरिया के न्यूक्लियर रिएक्टर को उड़ाया था।
2008: अमेरिका और भारत के बीच न्यूक्लियर डील को न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप ने मंजूरी दी थी। इससे अमेरिका को यह अनुमति मिल गई थी कि वह भारत को एनर्जी प्रोग्राम को तेजी देने के लिए न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी बेच सके।
2012: बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बने।
करीब 11-12 बजे की बात है। घर पर चार-पांच लोग आए हैं। उनमें से कुछ परिचित भी हैं। हालचाल पूछने के बाद चाय-पानी के लिए बोला तो उन्होंने कहा- 'नहीं, अभी फलाने के यहां से पीकर ही आए हैं।' थोड़ी देर बाद उन्होंने क्षेत्र के विधायकजी के कामों को गिनाना शुरू किया। फिर कहा कि विधायकजी आपसे जुड़ना चाहते हैं। चूंकि लोग परिचित थे, इसलिए हम मना कैसे करते, बोले ठीक है।
इसके बाद उन्होंने वोटर आईडी कार्ड और मोबाइल नंबर मांगा। हमने भी दे दिया। उन्होंने अपना फोन निकाला और वोटर आईडी का और हमारा फोटो लिया। फिर मोबाइल नंबर पर कुछ मैसेज आया, जो उन्होंने अपने मोबाइल में दर्ज कर लिया। कुछ ही देर बाद हमारे मोबाइल पर एक संदेशा आया- 'आप फलां पार्टी के सदस्य बन गए हैं।'
यह कहानी किसी एक घर की नहीं है, बल्कि बिहार के घर-घर की है। कोरोनाकाल में मेहमानों का आना भले न हो रहा हो, लेकिन नेताजी के नुमाइंदों का आना शुरू हो गया है। पांच साल बाद आने वाले भी हालचाल भले न पूछे,लेकिन मोबाइल नंबर जरूर पूछ रहे हैं। क्योंकि मौसम चुनाव का है और अब इसकी बानगी भी देखने को मिलने लगी है। कोरोना के चलते रैली तो हो नहीं रही, इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को मोबाइल पर ही जोड़ा जा रहा। कोई वॉट्सऐप ग्रुप में जोड़ रहा है, कोई फेसबुक ग्रुप में तो कोई लोगों को डिजिटल मेंबर बना रहा है। हर पार्टी अपने-अपने तरीके से वोटरों को साधने में जुटी है।
बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है... ये गाना और नारा पिछले चुनाव में खूब चला था। इस बार के चुनाव के लिए जदयू और नीतीश का क्या नारा है और वे लोगों तक कैसे पहुंच रहे हैं, यह भी जान लीजिए...
जदयू का चुनावी रथ सजधज कर तैयार है, उसके चारों तरफ पोस्टर लगे हैं। सामने नीतीश की तस्वीर लगी है, सिर्फ नीतीश की। जिस पर बिहार की पुकार फिर से नीतीश कुमार, नीतीश सबके हैं, जैसे स्लोगन लिखे गए हैं। इस हाईटेक रथ में दो बड़ी एलईडी स्क्रीन लगी हैं, साथ ही साउंड सिस्टम और जनरेटर भी। पार्टी ने कार्यकर्ताओं को सीडी और पेन ड्राइव दिए हैं। जिसमें नेताओं के भाषण और हिंदी-भोजपुरी में बने गाने हैं।
ऐसे एक दो रथ नहीं, बल्कि 150 से ज्यादा रथ जदयू तैयार कर रही है, जो हर विधानसभा में घुमेंगे। एक रथ को बनाने में करीब डेढ़ लाख का खर्च आया है। जिन गलियों में रथ नहीं जा पाएगा वहां पार्टी के कार्यकर्ता डोर टू डोर कैंपेन करेंगे।
चूंकि कोरोना का समय है तो ऐसे में मैदानी रैली के बजाए अब पार्टी वर्चुअल मोड में चली गई है। इसके लिए बाकायदा हर जिले में टीमें भी बनाई गई हैं। इतना ही नहीं गांवों में भी चौपाल लगाकर कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया की ट्रेनिंग दी जा रही है। मंगलवार को जदयू ने चुनाव प्रचार के लिए एक नई वेबसाइट भी लॉन्च की। जेडीयू लाइव डॉटकॉम। सीएम नीतीश कुमार 7 सितंबर को वर्चुअल रैली करेंगे। पार्टी ने इसे निश्चय संवाद नाम दिया है।
भाजपा: हर वार्ड के लिए एक वॉट्सऐप प्रमुख बनाया
भाजपा हर चुनाव में पन्ना प्रमुख पर फोकस करती थी, लेकिन इस बार इनकी जगह वॉट्सऐप एडमिन ने ले ली है। पार्टी ने ऊपर से लेकर नीचे तक हर एक वार्ड के लेवल पर वॉट्सऐप एडमिन और सोशल मीडिया प्रमुख बनाया है। जिन्हें ऑडियो, वीडियो और पार्टी के संदेश भेजे जा रहे हैं। इसके अलावा अलग-अलग लेवल पर ऑनलाइन ऐप के माध्यम से लोगों से पार्टी वर्चुअल संवाद कर रही है। इस मामले में भाजपा बाकी पार्टियों से बहुत आगे है। सोशल मीडिया पर भाजपा के सबसे ज्यादा फॉलोअर हैं, चाहे फेसबुक हो या ट्विटर या फिर यूट्यूब। और वो इसका फायदा भी उठा रही है।
इसके अलावा भाजपा ने अपना एक हाईटेक और एडवांस रथ भी तैयार किया। जिस पर लिखा है 'भाजपा है तैयार, आत्मनिर्भर बिहार'। ऊपर पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की तस्वीर लगी है। नीचे बिहार के स्थानीय नेताओं की। रथ पर माइक के साथ मंच की भी व्यवस्था है, यानी नेताजी के भाषण के लिए मंच और स्टेज अलग से नहीं बनाना पड़ेगा।
कोरोना और प्रवासी मजदूरों का पलायन चुनाव में कहीं भारी न पड़े, इसलिए भाजपा गांवों पर फोकस कर रही है। आलाकमान ने पार्टी के बड़े नेताओं को गांव में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने को कहा है। भाजपा पंचायती राज के प्रदेश संयोजक ओमप्रकाश भुवन कहते हैं, 'हमने हर पंचायत के स्तर पर एक शक्ति प्रमुख, उप शक्ति प्रमुख और आईटी प्रमुख को बनाया है। इसके अलावा, हर बूथ स्तर पर हमने एक सात लोगों की टीम बनाई है, उसे सप्तर्षि नाम दिया है। इसमें हर वर्ग के लोग हैं, महिलाएं भी शामिल हैं। इनका काम एक-एक बूथ तक जाकर लोगों से मिलने का है। अभी तक हमारे कार्यकर्ता 62 हजार बूथों तक पहुंच चुके हैं।
भाजपा ने बिहार से आने वाले हर राज्यसभा-लोकसभा सांसद से हर रोज अपने क्षेत्र की दो पंचायत में जाने को कहा है। साथ ही सितंबर में हर सांसद के लिए कम से कम 60 पंचायतों के दौरे का लक्ष्य रखा गया है।
राजद: सोशल मीडिया पर फोकस
राजद चाहती थी कि चुनाव टल जाए, क्योंकि वह भाजपा के मुकाबले डिजिटल मीडिया के मामले में काफी पीछे है। राजद के लिए रैली और घर-घर जाकर मिलना ही आमतौर पर कैंपेनिंग का जरिया रहा है। लेकिन इस बार कोरोना प्रोटोकॉल के चलते रैली और भीड़ जुटाने की इजाजत नहीं है। इस बार लालू यादव भी जेल में हैं,जिसका असर चुनाव कैंपेन पर हो रहा है।
राजद जमीनी स्तर पर पहले से कमजोर हो गई है। तेजस्वी यादव कोशिश जरूर कर रहे हैं, लेकिन वह लोगों से उस तरह कनेक्ट नहीं हो पा रहे हैं जिस अंदाज में लालू होते थे। इसलिए लोगों तक पहुंचने के लिए राजद तेजी से सोशल मीडिया को अपना रही है। उसने हर जिले के नाम से ट्विटर पर पेज बनाया है, जिससे हर घंटे पोस्ट किए जा रहे हैं। इनमें से ज्यादातर अकाउंट इस साल मार्च या उससे बाद के बने हैं। लालू यादव जेल से ही सोशल मीडिया पर नीतीश और भाजपा पर पलटवार कर रहे हैं। राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव और पार्टी के दूसरे नेता लगातार ट्वीट कर रहे हैं।
हालांकि, ब्रह्मपुर से राजद विधायक शंभूनाथ यादव कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि हम सिर्फ सोशल मीडिया पर ही प्रचार कर रहे हैं। हम लोग अपने क्षेत्र में जाकर लोगों से मिल रहे हैं और अपने पक्ष में वोट करने की अपील कर रहे हैं। ये काम हमारे लिए नया नहीं है, हम तो साल भर यह काम करते हैं। कोरोना की वजह से जरूर मूवमेंट कम हुआ है। यहां कोरोना का बहुत असर नहीं है।
कांग्रेस: घर- घर जाकर लोगों को बना रही डिजिटल मेंबर
कोरोनाकाल में हाथ भले नहीं मिला सकते, लेकिन साथ तो मिला ही सकते हैं। इसी तर्ज पर कांग्रेस कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को सदस्य बना रहे हैं। वे लोगों से वोटर आईडी कार्ड और उनकी फोटो लेते हैं। फिर उस व्यक्ति के मोबाइल पर एक ओटीपी आता है जिसे वे अपने पोर्टल में दर्ज कर देते है। इसके बाद वह व्यक्ति कांग्रेस का मेंबर हो जाता है। थोड़ी देर बाद उसके नंबर पर कन्फर्मेशन मैसेज भी आ जाता है। इसके अलावा, कांग्रेस वॉट्सऐप ग्रुप में भी लोगों को मेंबर बनने की अपील कर रही है और लिंक भेज रही है।
जब हमने इसे लेकर कांग्रेस प्रदेश प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल से बात की तो बोल, 'हमें आलाकमान से कोई टारगेट तो नहीं मिला है, लेकिन हमारी कोशिश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की है। अभी तक डेढ़ लाख नए सदस्य बन चुके हैं। हर दिन करीब 10 हजार नए सदस्य बन रहे हैं। इसके साथ ही अब हम अलग- अलग लेवल पर वर्चुअल मीटिंग भी कर रहे हैं और लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे है।'
वहीं, बक्सर से कांग्रेस विधायक संजय तिवारी कहते हैं, 'हमारी डिजिटल मेंबरशिप भाजपा के मिस्ड कॉल की तरह नहीं है। हमारे कार्यकर्ता लोगों तक पहुंचते हैं, उन्हें कांग्रेस की नीतियों के बारे में बताते हैं, मोदी सरकार और बिहार सरकार की नाकामियों के बारे में बताते हैं। जब वे कांग्रेस से जुड़ने में दिलचस्पी दिखाते हैं तो हम उन्हें सदस्य बनाते हैं। इसके लिए बाकायदा हम उस व्यक्ति की फोटो और वोटर कार्ड लेते हैं, तब सदस्य बनाते हैं।'
कई भाजपा वाले भी हो गए कांग्रेसी
कांग्रेस की डिजिटल मेंबरशिप के दौरान कुछ दिलचस्प जानकारियां सामने आई हैं। हमने जब लोगों से इस बारे में जानने की कोशिश की तो कुछ लोग ऐसे मिले जो थे तो भाजपाई लेकिन इस बार कांग्रेस के मेंबर बन गए हैं। इसमें भी दो तरह के लोग हैं। एक जो भाजपा से नाराजगी की वजह से कांग्रेस की सदस्यता ले रहे हैं और दूसरे वो जो घर पर आने वाले कार्यकर्ताओं के साथ व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर सदस्य बन रहे है।
हमने बक्सर के मझरियां गांव के लोगों से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे क्षेत्र में काम नहीं हो रहा है, इसलिए हम भाजपा छोड़ रहे हैं। गांव के ही एक बुजुर्ग श्रीनिवास उपाध्याय ने बताया, 'मैं शुरुआत में कांग्रेसी था, फिर कांग्रेस कमजोर हुई तो भाजपा का सदस्य बन गया। सालों तक भाजपा के लिए काम किया। लेकिन अब फिर से कांग्रेस ज्वाइन कर रहा हूं, क्योंकि हमारे सांसद हमारा काम नहीं करते हैं। मिलने पर सिर्फ आश्वासन देते हैं।
जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस 4 सितंबर से बिहार में वर्चुअल रैली की शुरुआत करेगी। कांग्रेस ने पहले चरण में 100 रैली का टारगेट रखा है। हर चरण में 8-10 हजार लोगों को जोड़ने की कोशिश है।
कोरोनावायरस की महामारी से आज पूरा विश्व जूझ रहा है, इस महामारी के साथ अब कई और परेशानियां भी सामने आ रही हैं। इसमें सबसे बड़ी परेशानी है कोविड मेडिकल वेस्ट। कोरोना के इस दौर में मास्क, पीपीई किट और ग्लव्स का इस्तेमाल करना हर शख्स की जरूरत बन चुकी है, ऐसे में इनका इस्तेमाल भी पहले की तुलना में काफी बढ़ा है। कोविड मेडिकल वेस्ट डिस्पोज होने के बाद यह सारा वेस्ट लैंडफिल साइट्स में पहुंचता है, जो उसके आस-पास रहने वालों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।
कोविड मेडिकल वेस्ट से आई इस पर्यावरणीय आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश की है गुजरात के सोशल एंटरप्रेन्योर बिनीश देसाई ने। कोविड मेडिकल वेस्ट के मैनेजमेंट पर काम कर रहे बिनीश को ‘रीसायकल मैन ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। वो इससे पहले भी वेस्ट से बिल्डिंग मटेरियल समेत करीब 150 प्रकार के प्रोडक्ट बना चुके हैं। बिनीश कहते हैं कि इस दुनिया में कुछ भी वेस्ट नहीं है, जो चीज आपके लिए वेस्ट है, वो किसी और के लिए एसेट्स हो सकती है।
मार्च के बाद से देश में रोजाना 101 मीट्रिक टन कोविड बायोमेडिकल वेस्ट निकल रहा है
बीड्रीम कंपनी के फाउंडर बिनीश देसाई इंडस्ट्रियल वेस्ट से सस्टेनेबल बिल्डिंग मटीरियल बनाने की टेक्नोलॉजी का ईजाद कर चुके हैं। बिनीश ने बताया कि उनका पहला इनोवेशन पेपर मिल से निकलने वाले कचरे को रीसाइकल करके पी-ब्लॉक ब्रिक्स ईंट बनाना था। अब बिनीश कोविड मेडिकल वेस्ट जैसे यूज्ड मास्क, ग्लव्स और पीपीई किट से भी पी-ब्लॉक 2.0 बनाने जा रहे हैं। बिनीश बताते हैं कि मार्च 2020 के बाद से ज्यादातर लोग सिंगल यूज मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं। एक बार इस्तेमाल के बाद ये मास्क या खुले में या कूड़े के ढेर में फेंक दिए जाते हैं। लॉकडाउन में घर बैठा था तो मैंने सोचा क्यों न मैं इस वेस्ट से भी ईंटें बनाने का काम शुरू करूं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च के बाद से देश में हर दिन 101 मीट्रिक टन कोविड से जुड़ा बायोमेडिकल वेस्ट निकल रहा है। इसके अलावा, हमारे देश में एक दिन में 609 मीट्रिक टन बायोमेडिकल वेस्ट निकलता है।"
वेस्ट कलेक्शन और डिसइंफेक्शन की प्रक्रिया के दौरान टीम मेंबर पीपीई किट पहनकर काम करेंगे
कोविड वेस्ट कलेक्शन की प्रक्रिया के बारे में बिनीश बताते हैं, 'इसके लिए हम हॉस्पिटल, रेस्त्रां, सलून समेत पब्लिक प्लेस पर ईको बिन रखेंगे। जब यह बिन भर जाएंंगी तो सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की गाइडलाइन के मुताबिक इस बिन को 72 घंटे तक आइसोलेट किया जाएगा यानी इसे टच नहीं किया जाएगा। 72 घंटे के बाद इन बिन को हमारी टीम पूरी सावधानी और नियमों का पालन करते हुए हमारे सेंटर तक लाएगी।
यह टीम पीपीई किट पहनी होगी। यहां आने के बाद बिन को डिसइंफेक्ट किया जाएगा और फिर इसकी फर्स्ट वॉशिंग होगी। इसके बाद इसमें से पीपीई किट और मास्क को अलग करके दोबारा वॉश किया जाएगा। यह पूरा काम भी हमारे टीम मेंबर पीपीई किट पहनकर करेंगे। इस प्रक्रिया के बाद इस कोविड वेस्ट पूरी तरह डिसइंफेक्ट हो जाता है। फिर इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर कागज की स्लेज और बाइंडर के साथ निश्चित अनुपात में मिलाकर ब्रिक्स तैयार की जाएंगी।" बिनीश कहते हैं कि बाइंडर का फॉर्मूला हमारा ट्रेड सीक्रेट है, इसलिए हम उसके बारे में आपसे ज्यादा कुछ शेयर नहीं कर सकते हैं।
पी-ब्लॉक 2.0 बनाने में 52% PPE मटेरियल, 45% गीले कागज़ के स्लज और 3% गोंद का इस्तेमाल
बिनीश बताते हैं, 'इस ईंट को बनाने में 52 % PPE मटेरियल, 45% गीले कागज के स्लज और 3% गोंद का इस्तेमाल किया जाएगा। बायोमेडिकल वेस्ट से ईंट बनाने की प्रक्रिया ठीक वैसी ही है जैसे पेपर मिल के वेस्ट से ब्रिक्स बनाई जाती है।' बिनीश ने सबसे पहले अपनी होम लैब में काम किया और फिर अपनी फैक्ट्री में कुछ सैंपल ईंटें तैयार कींं। प्रयोग सफल रहने पर बिनीश ने इन ईंटों को वलसाड की ही एक सरकारी लैब से टेस्टिंग के लिए भेजा। बिनीश बताते हैं कि कोराना महामारी के चलते हम अपने सैंपल्स को नेशनल लैब नहीं भेज पाए। हमारे ब्रिक्स प्रोटोटाइप ने टेस्टिंग के दौरान सभी क्वालिटी टेस्ट को पास किया है।
रोजाना 4 हजार ब्रिक्स तैयार होंगी, अगले डेढ़ महीने तक की बुकिंग भी हो गई है
बिनीश बताते हैं कि इन ईंट का साइज 12 x 8 x 4 इंच है। एक स्क्वायर फुट ईंट बनाने के लिए 7 किलोग्राम बायोमेडिकल वेस्ट का इस्तेमाल हुआ है। ये ईंट वॉटर और फायर प्रूफ हैं, यह ईंट ट्रेडिशनल ईंट की तुलना में हल्की भी होती है। एक ईंट की कीमत 2 रुपए 80 पैसे है। इन ईंटों का इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन में किया जाएगा। बिनीश कहते हैं कि वे सितंबर के दूसरे सप्ताह से ईंटे बनाना शुरू करेंगे। उनके प्लांट में रोजाना 4 हजार ब्रिक्स तैयार होंगी। अगले डेढ़ महीने तक इन ब्रिक्स की भी प्री बुकिंग हो चुकी है।
च्युइंगम से शुरू हुआ वेस्ट से बेस्ट बनाने का सफर
वेस्ट से बेस्ट बनाने के सफर के बारे में बिनिश ने बताया कि जब वे छठवीं क्लास में थे तो एक दिन क्लासरूम में उनकी पैंट पर च्युइंगम चिपक गई। क्लास में कागज के टुकड़े से च्युइंगम को जैसे-तैसे निकाला और इस कागज में ही लपेटकर जेब में यह सोच कर रख लिया कि बाद में इसको बाहर फेंक देंगे। स्कूल खत्म होने के बाद जब बिनिश का ध्यान इस कागज पर गया तो देखा कि कागज में रखी हुई च्युइंगम पत्थर जैसी हो चुकी है। यहां से बिनिश को आइडिया मिला कि क्यों ना इससे ईंटे बनाई जाए। बिनिश की बात किसी ने नहीं सुनी तो उन्होंने अकेले ही प्रयोग शुरू कर दिया।
बिनिश ने 16 साल की उम्र में अपनी कंपनी बनाकर ऑर्गेनिक बाइंडर के साथ इस तरह की ईंट बनाने का प्रयोग शुरू किया। बिनिश ने अब इस तरह की ईंटे बनाने के लिए पेपर मिल वेस्ट, जिप्सम वेस्ट, मेटल और टैक्सटाइल वेस्ट का इस्तेमाल किया। वे इस वेस्ट से विभिन्न तरह की डिजाइन की ईंटें और बिल्डिंग मटेरियल बनाते हैं। गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में उनकी बनाई हुई ईंटों से 1000 से अधिक टॉयलेट भी बनाए जा चुके हैं।
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर राफेल फाइटर जेट के क्रैश होने का दावा किया जा रहा है। मैसेज के साथ एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी वायरल हो रहा है। यह ट्वीट भारतीय वायुसेना का बताया जा रहा है।
और सच क्या है ?
पिछले 24 घंटों में किसी भी न्यूज एजेंसी ने राफेल के क्रैश होने से जुड़ी कोई खबर जारी नहीं की है। पड़ताल के अगले चरण में हमने वायरल हो रहे ट्वीट के स्क्रीनशॉट की पड़ताल की।
वायरल हो रहे ट्वीट के स्क्रीनशॉट में, 4 सितंबर रात 11:33 बजे का समय दिख रहा है। वायुसेना के ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट पर हमें 4 सितंबर को ऐसा कोई ट्वीट नहीं मिला।
4 सितंबर को भारतीय वायुसेना की तरफ से आखिरी ट्वीट शाम 7:51 मिनट पर किया गया है। वायुसेना अध्यक्ष के एक दौरे के संबंध में।
वायु सेना अध्यक्ष एसीएम आरकेएस भदौरिया ने 03सितंबर20 को कॉलेज ऑफ एयर वारफेयर (सीएडब्ल्यू) का दौरा किया। सिकंदराबाद में स्थित इस संस्था की स्थापना सन् 1959 में हुई थी। यह एक उच्च शिक्षा संस्थान है, जो तीनों सेनाओं के अधिकारियों के लिए एयरवारफेयर पर आधारित पाठ्यक्रम संचालित करता है pic.twitter.com/JIOXVqUBDL
गुरुवार को अटलांटिक मैगजीन ने एक आर्टिकल पब्लिश किया। इसके मुताबिक, 2018 में फ्रांस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति ट्रम्प ने बारिश का बहाना बनाकर प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के स्मारक पर जाने से इनकार कर दिया था। दावा है कि ट्रम्प ने सैनिकों को लूजर यानी हारा हुआ करार दिया था। आर्टिकल सामने आया तो विपक्ष यानी जो बिडेन और उनकी डेमोक्रेट पार्टी को मुद्दा मिल गया। बिडेन ने कहा- मेरा बेटा इराक में तैनात था, उसकी मौत कैंसर से हुई। लेकिन, वो लूजर या हारा हुआ नहीं था। अब ट्रम्प डैमेज कंट्रोल की कोशिशों में जुट गए हैं।
मौके की तलाश में थे डेमोक्रेट्स
शुक्रवार को डेमोक्रेट्स और खासतौर पर वे जिनका संबंध कभी सेना से रहा है, एक्टिव हो गए। ट्रम्प से नाराजगी जताई। कई प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं। बिडेन ने कहा- ट्रम्प लंबे वक्त से सेना और सैन्य परिवारों को दरकिनार करते रहे हैं। उनका अपमान किया गया। अगर आर्टिकल सही है तो ट्रम्प राष्ट्रपति बनने लायक नहीं हैं। पूर्व सैनिकों के एक संगठन ने इराक और अफगानिस्तान में शहीद हुए सैनिकों के परिवारों की मदद के लिए महज पांच घंटे में एक लाख डॉलर जुटा लिए।
राजनीतिक रणनीति
डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने उन नेताओं को मैदान में आगे कर दिया जो कभी फौज का हिस्सा रहे हैं। जैसे सीनेटर टैमी डकवर्थ, पीट बुटीगिग। रिटायर्ड सैनिकों को आमतौर पर रिपब्लिकन पार्टी का समर्थक माना जाता है। डेमोक्रेट पार्टी के 70 वर्तमान या पूर्व सांसदों ने राष्ट्रपति ट्रम्प को खुला पत्र लिखकर उनसे माफी मांगने को कहा। डेमोक्रेट्स ये जानते हैं कि उन्हें पूर्व सैनिकों या उनके परिवारों का पूरा समर्थन नहीं मिलेगा। लेकिन, इन लोगों के बीच ट्रम्प की लोकप्रियता कम की जा सकती है।
डेमोक्रेट्स की इन राज्यों पर ज्यादा नजर
2016 में ट्रम्प को नॉर्थ कैरोलिना, फ्लोरिडा और एरिजोना में मिलिट्री बैकग्राउंड वाले लोगों के वोट हिलेरी क्लिंटन के मुकाबले दोगुने मिले थे। अगर ताजा विवाद से डेमोक्रेट्स कुछ भी फायदा उठा पाए तो इससे बेहतर क्या होगा। अगर कुछ अश्वेत और हिस्पैनिक वोटर्स भी मिल गए तो जीत भी सकते हैं। इनसाइड इलेक्शन वेबसाइट के एडिटर नैथन गोन्जेल्स कहते हैं- जब मुकाबला करीबी और कांटेदार होता है तो हर चीज और हर व्यक्ति अहम हो जाता है।
नैथन आगे कहते हैं- 2016 को याद कीजिए। ट्रम्प बहुत कम अंतर से जीते थे। मिशिगन, पेन्सिलवेनिया, विस्कॉन्सिन और फ्लोरिडा में तो उन्हें दो पॉइंट्स भी नहीं मिल सके। इसलिए, वे कोई रिस्क नहीं ले सकते।
...और ट्रम्प का दावा
ट्रम्प फेसबुक पर कैंपेन चला रहे हैं। इसमें कहा गया, "हमने आतंकवादियों का खात्मा किया। मिलिट्री को फिर से मजबूत बनाया और पूर्व सैनिकों के लिए काम किया।" लेकिन, करीब दो करोड़ बुजुर्गों के लिए ये ज्यादा मायने नहीं रखता कि ट्रम्प ने मिलिट्री के लिए क्या कहा। मायने ये रखता है कि उनकी पार्टी और सरकार ने स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती और आसान बनाने के लिए क्या किया? छोटे शहरों की महिलाओं के लिए भी यह मुद्दा अहम है।
मिलिट्री बैकग्राउंड वाले 80 फीसदी लोग ट्रम्प की योजनाओं से सहमत हैं। कुल बुजुर्गों में यह आंकड़ा 60 फीसदी है। रिपब्लिकन और पूर्व सैनिक फ्रेड वेलमैन कहते हैं- बुजुर्गों के वोटों में 10 फीसदी अंतर भी बहुत ज्यादा हो जाएगा। सैन्य अफसरों और सैनिकों में भी कुछ ऐसे हैं जिनको अब ट्रम्प पर भरोसा नहीं। लेकिन, इसका मतलब ये भी नहीं कि वे बिडेन के पक्ष में चले जाएंगे।
मिलिट्री बैकग्राउंड वाले लोग ज्यादा
वेलमैन कहते हैं- करीब तीन करोड़ लोग मिलिट्री बैकग्राउंड से हैं। फौज से जुड़े पूर्व और वर्तमान लोग रिपब्लिकन पार्टी के साथ हैं। लेकिन, कुछ आज भी खराब मकानों में रहते हैं। मंगलवार को जब हमने इनकी समस्याओं पर चर्चा के लिए टाउनहॉल किया तो 10 हजार से ज्यादा व्यूअर्स जुड़े। इनका ‘वोटवेट्स’ संगठन चुनाव तक ढाई लाख लोगों तक पहुंच बनाना चाहता है। इस ग्रुप ने चक रोचा नाम के एक्सपर्ट की मदद ली है जिन्होंने सीनेटर बर्नी सैंडर्स को लैटिन अमेरिकी वोटर्स तक पहुंचाया था। रोचा कहते हैं- हम टीवी कमर्शियल्स के जरिए वोटर्स तक पहुंचना चाहते हैं, पोस्टकार्ड्स के जरिए नहीं। सोशल मीडिया और टैक्स्ट मैसेज भी किए जा रहे हैं।
कुछ बिडेन के भी साथ
कॉमन डिफेंस नामक एक छोटा ग्रुप भी है। इसका कुछ असर एरिजोना, नॉर्थ कैरोलिना और मायने में है। ये बिडेन के पक्ष में माहौल बना रहा है। लेकिन, एक बात डेमोक्रेट्स भी बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि मिलिट्री बैकग्राउंड वाले परिवारों या लोगों में ट्रम्प का बेस कम करना आसान नहीं है। वोटवेट्स के चेयरमैन जॉन सोल्ज कहते हैं- अटलांटिक मैगजीन की स्टोरी में जो कुछ कहा गया है, उससे ट्रम्प की लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। शुरुआती तौर पर जरूर कुछ लोग इस बारे में बात कर रहे हैं।
मामला ताजा है, इसलिए चर्चा हो रही है। व्हाइट हाउस स्टोरी का खंडन कर चुका है। उसने इतनी जल्दी खंडन इसलिए किया, क्योंकि वे जानते हैं कि इस आर्टिकल से कितना और कितनी तेजी से नुकसान हो सकता है।
(सारा शिजिपिंस्की) अमेरिका में लगातार शिंगल्स के मामले बढ़ रहे हैं। इंसान के शरीर में जब चिकनपॉक्स का वायरस दोबारा सक्रिय होता है तो स्किन पर लाल चकत्ते हो जाते हैं। इन दर्दनाक रेशेज को शिंगल्स कहा जाता है। जीवन में पहले कभी चिकनपॉक्स से गुजर चुके कई एडल्ट्स शिंगल्स का शिकार हो रहे हैं और यह उन बच्चों में चिकनपॉक्स का कारण बन सकती हैं, जिन्हें अभी तक वैक्सीन नहीं लगाई गई है। कई बार पैरेंट्स उम्र या अपनी इच्छा के कारण बच्चे को बूस्टर वैक्सीन नहीं लगवाते हैं, लेकिन यह जरूरी है।
जुलाई में टेक्सास के रहने वाले 30 साल के युवक की मौत की खबर अखबार की सुर्खियां बन गई थी। वह कोविड-19 पार्टी में शामिल होने के कारण कोरोनावायरस का शिकार हो गया था। मैथोडिस्ट अस्पताल के चीफ मेडिकल ऑफिसर के मुताबिक, युवक कह रहा था कि वो कोरोनावायरस की सच्चाई का पता करने और इम्युनिटी पाने के लिए एक संक्रमित व्यक्ति के साथ पार्टी में शामिल हुआ था।
हालांकि, यह पहला मामला नहीं है, जब कोई इम्युनिटी के लिए संक्रमितों के बीच गया हो। 1995 में चिकनपॉक्स वैक्सीन उपलब्ध होने से पहले भी कई अमेरिकी परिवारों ने चिकनपॉक्स पार्टी आयोजित की थी। तब शायद इन परिवारों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि यही वायरस एक दिन दोबारा शिंगल्स के तौर पर वापस आ जाएगा।
शिंगल्स और इसके लक्षण क्या हैं?
शिंगल्स को हर्पीज जोस्टर भी कहा जाता है और इससे जूझ रहे लोगों को काफी दर्द, बुखार और कमजोरी होती है। गंभीर मामलों में व्यक्ति को निमोनिया, दिमाग में सूजन, फेशियल पैरालिसिस, सुनने में दिक्कतें जैसी परेशानियां हो सकती हैं। अगर व्यक्ति को आंखों के पास रेश हो रही है तो यह नजर को नुकसान पहुंचा सकती है। शिंगल्स एक से ज्यादा बार हो सकता है।
बच्चे को जल्दी वैक्सीन लगवाएं
8700 एडल्ट्स के साथ किए गए ग्लोबल सर्वे के मुताबिक, केवल 3% लोगों को इस बात की जानकारी थी कि चिकनपॉक्स करने वाला वायरस शिंगल्स का कारण भी बन सकता है। चिकनपॉक्स से जूझ रहे बच्चों में में खुजली वाली रेश, बुखार, कमजोरी, सिरदर्द, भूख नहीं लगने जैसे लक्षण नजर आते हैं। ज्यादातर बच्चों में यह एक हफ्ते के भीतर ठीक हो जाता है। इसके अलावा ज्यादा जोखिम वाले लोगों में यह स्ट्रैपोटोकोक्कल इंफेक्शन, एनसिफेलाइटिस, मेनिनजाइटिस, स्ट्रोक और मौत का कारण भी बन सकता है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैगेलोस कॉलेज ऑफ फिजिशियन्स एंड सर्जन्स में पीडियाट्रिक इन्फेक्शियस डिसीज स्पेशलिस्ट डॉक्टर एन गर्शन ने कहा "अगर बच्चे को इम्यूनाइजेशन नहीं है और वो स्वस्थ है तो उसे पहला शॉट लगवा लें। बूस्टर डोज के लिए 4 साल का होने का इंतजार न करें। बच्चों को दूसरा शॉट जल्दी दे दें। आप 18 महीने में भी ऐसा कर सकते हैं।"
अगर आप पैरेंट्स हैं और दर्दनाक रेश का सामना कर रहे हैं तो उसे बैंडेज से कवर करें, ताकि आपका बच्चा इसके कॉन्टैक्ट में न आए। साथ ही डॉक्टर की सलाह लें। डॉक्टर ने कहा कि शुरुआती इलाज साइड इफेक्ट्स को भी कम कर सकता है।
एडल्ट्स अपने शिंगल्स के जोखिम को भी पहचानें
सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, अमेरिका में 95% से ज्यादा एडल्ट्स 18 साल की उम्र से पहले चिकनपॉक्स का शिकार हो चुके हैं। इनमें हर तीन में से एक व्यक्ति अपने जीवन में शिंगल्स डेवलप करेगा। सीडीसी की वायरल डिसीज डिविजन में मेडिकल एपेडेमियोलॉजिस्ट डॉक्टर राफेल हरपाज का कहना है "ऐसा लगता है कि यह एक सीधे तरीके से बिना घटे और तेजी के एक स्थिर चाल के साथ बढ़ रहा है।"
इस बढ़त का कारण अभी साफ नहीं है, लेकिन डॉक्टर हरपाज ने पाया कि शिंगल्स बुजुर्गों में ज्यादा है और सभी उम्र के लोगों में हर साल इसके 2.5 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। खासतौर से तब जब उन्हें कोई ऐसी क्रोनिक बीमारी हो, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो गया है या परिवार में किसी को शिंगल्स रहा हो।
डॉक्टर हरपाज ने कहा कि जब 50 से कम उम्र के लोगों को पहले से ज्यादा बढ़ी दर से शिंगल्स हो रहे हैं, तो स्टडी और ट्रैकिंग मुश्किल हो रही है। क्योंकि, जिन लोगों मे हल्के लक्षण नजर आ रहे हैं, वे हो सकता है कि इसे कोई दूसरी बीमारी समझ रहे हों। युवा मरीज कभी शिंगल्स का इलाज या इसका पता नहीं लगाते हैं। उन्हें यह एहसास नहीं होता कि वे अपने खुद के बच्चों को वायरस के संपर्क में ला रहे हैं।
कोविड के भी लक्षण हो सकते हैं शिंगल्स
मई में पब्लिश एक आर्टिकल में मिस्र के शोधकर्ताओं ने दो मरीजों के बारे में बताया था, जो कोविड-19 के लक्षण शुरू होने से थोड़े पहले ही शिंगल्स से जूझ रहे थे। इसके अलावा यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स के डिपार्टमेंट ऑफ इमरजेंसी मेडिसिन के डॉक्टर्स ने बताया कि शिंगल्स से जूझ रहे एक मरीज में मेनिनजाइटिस जैसे लक्षण नजर आ रहे थे।
(जेनी मार्डर). कोरोनावायरस महामारी ने हमारी सफाई की आदतों को और गंभीर बना दिया है। अब हम किसी भी चीज को साफ रखने की ज्यादा कोशिश में लगे रहते हैं। फिलहाल हाथ धोना, सतह को साफ करना जैसी आदतें हमारे लिए सामान्य हैं, लेकिन मानसिक बीमारी ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) से जूझ रहे लोगों के लिए यही आदतें मुश्किलें पैदा कर रही हैं। इसका ज्यादा बुरा असर बच्चों पर पड़ा है।
ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जिससे जूझ रहा व्यक्ति किसी डर या चिंता के कारण एक ही चीज को बार-बार दोहराता है। जैसे- लगातार हाथ धोना, किसी चीज की बार-बार जांच करना, चीजों को कई बार जमाना। ओसीडी में दो चीजें होती हैं- ऑबसेशन और कंपल्शन। ऑबसेशन ऐसे विचार, इच्छा, एहसास होते हैं, जिन पर व्यक्ति का काबू नहीं होता। वहीं, कंपल्शन किसी भी चीज को बार-बार दोहराने को कहा जाता है।
बच्चों में नजर आ रहे हैं ओसीडी के लक्षण
पैरेंट्स के लिए बच्चों के बदले हुए व्यवहार का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। उन्हें पता करने में मुश्किल होती है कि बच्चा सुरक्षा के लिए ऐसा कर रहा है या किसी मजबूरी में। मई में 15 साल का एक लड़का लंबे समय बाद अपने दोस्त से 6 फीट की दूरी से मिला। बच्चों के साइकोलॉजिस्ट जॉन डफी के मुताबिक, जब बच्चा घर लौटकर आया तो उसके मन में वायरस को लेकर अलग ही डर था। उसने हाथों को कई बार धोना शुरू कर दिया, किसी भी सतह को छूना बंद कर दिया। डॉक्टर डफी ने कहा कि उनके पास ओसीडी जैसे लक्षणों से जूझ रहे मरीजों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है।
माता-पिता इन तरीकों से अपने बच्चों के व्यवहार में फर्क का पता कर सकते हैं
बच्चों के डर को जानने की कोशिश करें
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में प्रोफेसर और चाइल्ड ओसीडी एन्जायटी एंड टिक डिसऑर्डर्स प्रोग्राम की तारा पेरिस कहती हैं कि सतर्क रहना समझ आता है, लेकिन ओसीडी में आप अजीब तरह से डरे हुए होते हैं। पैरेंट्स को अपने बच्चे के व्यवहार को मॉनिटर करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या अलग हो रहा है।
उदाहरण के लिए, किसी सार्वजनिक जगह से आने के बाद सीडीसी साबुन और पानी से 20 सैकेंड तक हाथ धोने की सलाह देता है। डॉक्टर पेरिस ने कहा "अगर कोई एक दिन में 20 से 30 बार अपने हाथ धो रहा है या हाथ धोते वक्त 15 से 20 मिनट बाथरूम में गुजार रहा है, तो वो जरूरत से ज्यादा चिंतित है। अगर उसका व्यवहार परिवार, दोस्ती और बच्चे के स्कूल के काम को प्रभावित कर रहा है तो यह खतरे का संकेत है।"
पैरेंट्स अपनी सोच पर भरोसा करें
डॉक्टर डफी ने कहा कि एक परेशानी की बात यह है कि किसी व्यक्ति के बदले हुए व्यवहार का पता चलना मुश्किल है। उन्होंने कहा "मैं माता-पिता को खुद पर भरोसा रखने की सलाह देता हूं। अगर आपका बच्चा भावनात्मक रूप से कमजोर या आपकी उम्मीदों से अलग नजर आ रहा है, तो किसी एक्सपर्ट की सलाह लें।"
इलाज बेहद जरूरी है
हल्के से लेकर मध्यम ओसीडी वाले मरीजों के लिए एक्सपोजर रिस्पॉन्स प्रिवेंशन के साथ व्यवहार थैरेपी सबसे ज्यादा प्रभावी होगी। इसके तहत मरीज को ऐसी चीज से परिचित कराना होगा, जिससे वह डरता है। बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन में प्रोफेसर और ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के एक्सपर्ट एरिक स्टॉर्च ने कहा कि यह इलाज 75% तक मामलों में लक्षणों को कम करने में मददगार है। ज्यादा गंभीर मामलों में थैरेपीज के साथ दवाइयां भी दी जा सकती हैं।
18 साल की लारा कोएलिक्कर 8 साल की उम्र से ही ओसीडी का इलाज करा रही हैं। उन्होंने कहा कि एक्सपोजर थैरेपी के विशेषज्ञ से मिलने से पहले वे 3 साल तक गंभीर लक्षणों से जूझ रहीं थीं। इस ट्रीटमेंट ने उन्हें लक्षणों को संभालना सिखाया।
इंटरनेट के जरिए थैरेपी लें
कई थैरेपिस्ट वीडियो कॉल के जरिए भी मरीजों का इलाज कर रहे हैं। ब्रेडले हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक एन्जायटी रिसर्च सेंटर में रिसर्च और ट्रेनिंग की डायरेक्टर जैनिफर फ्रीमैन ने कहा कि इंटरनेट के जरिए मरीज को घर में ही एक्सपोजर ट्रीटमेंट देना मददगार हो सकता है। उदाहरण के लिए बच्चों को अपने घर के सदस्य, पालतू जानवर या घर के किसी हिस्से से डर लगता है। उन्होंने कहा "जूम पर मैं मरीज से कह सकती हूं कि क्या आप मुझे अपना रूम दिखा सकते हैं? क्या आप मुझे दिखा सकते हैं कि वो काउच कौन सा है, जिससे आप डरते हैं, क्या आपको लगता है कि आप वहां बैठ सकते हैं।"
बच्चों के अहसासों को समझें माता-पिता
डॉक्टर फ्रीमैन ने कहा कि थैरेपी के अलावा बच्चों की बातों को सुनना पैरेंट्स की प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा "बच्चे जो भी महसूस कर रहे हैं उन्हें मानें और मुश्किल बातचीत करने के लिए तैयार रहें, ताकि हमारे अंदर का तनाव दूर हो। बच्चों से यह नहीं कहना चाहिए कि उन्हें दुखी या चिंतित होने की जरूरत नहीं है।"
देश में हर साल 42 हजार करोड़ रुपए के मेडिकल उपकरण इंपोर्ट किए जाते हैं। इनमें सर्जिकल उपकरण, इम्प्लांट और दूसरी डिवाइस शामिल हैं। देश के 80% बाजार पर विदेशी कंपनियों का कब्जा है। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ कहते हैं कि कॉरपोरेट सेक्टर के अस्पताल देशी उपकरण पसंद नहीं करते। वहीं सरकारी अस्पतालों में सस्ते प्रोडक्ट्स खरीदे जाते हैं। हम जिन उपकरणों को इंपोर्ट करते हैं, उनमें 12 हजार करोड़ के उपकरण तो सैकेंड हैंड होते हैं।
एम्स के पूर्व घुटना इम्प्लांट एक्सपर्ट डॉ. सी एस यादव कहते हैं कि ज्यादातर इम्प्लांट या मेडिकल उपकरण भारत में बनने लगें तो इलाज के खर्च में 30% से 50% तक कमी आ सकती है।
इक्विपमेंट
भारतीय प्रोडक्ट (रुपए)
विदेशी प्रोडक्ट (रुपए)
रेडिएंट हीट वार्मर
45 हजार से 1 लाख
2 लाख से 6 लाख
फोटोथैरेपी मशीन
20 हजार से 30 हजार
85 हजार से 1.25 लाख
कृत्रिम घुटना
45 हजार से 50 हजार
1.25 लाख
एक्स-रे मशीन
50 हजार से 3 लाख
15 लाख से 1.5 करोड़
ईसीजी मशीन
25 हजार 75 हजार
45 हजार से 5 लाख
विदेशी उपकरणों की एमआरपी वास्तविक कीमत से 3-4 गुना ज्यादा होती है
1. अच्छी क्वालिटी के भारतीय उपकरण निजी अस्पतालों में सप्लाई नहीं हो पाते, क्योंकि इंपोर्टेड प्रोडक्ट की एमआरपी खरीद की कीमत से 3-4 गुना ज्यादा होती है। इससे कंपनी और अस्पताल दोनों की कमाई होती है।
2. सरकारी अस्पतालों में जब भी इम्प्लांट या किसी उपकरण के लिए टेंडर होता है तो सबसे कम कीमत वाली कंपनी को प्रमुखता दी जाती है। ऐसे में चीनी या दूसरी विदेशी कंपनियां बाजी मार जाती हैं।
3. विदेशों से सैकेंड हैंड प्रोडक्ट भी भारत आते हैं। खासकर वेंटिलेटर, अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन मशीन। ऐसी स्थिति में भारतीय कंपनियां सस्ती कीमतों को चुनौती नहीं दे पातीं।
4. विदेशों से भारत आने वाले मेडिकल उपकरणों पर मैक्सिमम 7.5% तक ही कस्टम ड्यूटी लगती है। इसलिए भी ये सस्ते मिल जाते हैं।
5. कई खरीदार अमेरिका के एफडीए अप्रूव्ड प्रोडक्ट मांगते हैं, खासकर कॉरपोरेट सेक्टर। इसकी वजह से भारतीय प्रोडक्ट बाहर हो जाते हैं।
देश में रिसर्च, मैन पावर पर खर्च बढ़ाना होगा
पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. जगदीश प्रसाद कहते हैं कि अगर उपकरण स्वदेशी हों तो कीमत 50-70% तक कम हो जाएगी। हालांकि, सरकार को रिसर्च डेवलपमेंट और मैनपावर पर बहुत खर्च करना पड़ेगा।
वहीं एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ का कहना है कि सरकार देशी मैन्युफैक्चरर की दिक्कतें दूर करते हुए पॉलिसी बनाए तो, भारत इस मामले में ग्लोबल फैक्ट्री बन सकता है और हम सस्ती डिवाइस बना सकते हैं।
फ्रांस के डीजोन शहर में रहने वाले 57 साल के अलाइन कोक लाइलाज बीमारी से परेशान हैं। इलाज नहीं मिलने पर उन्होंने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से इच्छामृत्यु की गुहार लगाई। लेकिन, राष्ट्रपति ने कोक की मांग खारिज कर दी। कोक ने अब खाना-पीना छोड़ दिया है। साथ ही शनिवार सुबह से फेसबुक पर अपनी मौत की लाइव स्ट्रीमिंग भी शुरू कर दी है।
कोक ने कहा- ‘‘मैं एक हफ्ते से ज्यादा जी नहीं पाऊंगा। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, वैसे ही मुझे बेचैनी हो रही है।" कोक ने राष्ट्रपति को चिट्ठी में लिखा था- "मैं ऐसी बीमारी से ग्रसित हूं, जिसका इलाज नहीं हो पा रहा है। मेरे असहनीय दर्द को शांत करने के लिए कुछ ऐसी चीज दी जाए, जिससे मैं शांत होकर मर सकूं।’’
इस पर राष्ट्रपति मैक्रों ने उन्हें समझाते हुए इच्छामृत्यु देने से इनकार कर दिया। मैक्रों ने कहा- ‘‘फ्रांस के कानून के मुताबिक मुझे इसकी इजाजत नहीं है, क्योंकि मैं कानून से बड़ा नहीं हूं। इसलिए मैं आपकी अपील नहीं मान सकता।’’
‘बीमारी से जूझ रहे लोगों को पीड़ा से बाहर लाना चाहता हूं’
राष्ट्रपति का जवाब मिलने पर कोक ने शुक्रवार को मौत की लाइव स्ट्रीमिंग करने की घोषणा की और शनिवार से शुरू भी कर दी। इस बारे में कोक ने कहा- "अपनी मौत की लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए लोगों में जागरूकता लाना चाहता हूं। बीमारी से जूझ रहे लोगों की पीड़ा को बाहर लाना चाहता हूं ताकि उन्हें इच्छामृत्यु की अनुमति मिल सके।"
फ्रांस उन यूरोपीय देशों में से एक है, जो इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं देते। 2016 में बनाए गए एक कानून के मुताबिक, अपने अंतिम पलों के दौरान मरीजों को इच्छामृत्यु नहीं दी जाती है। लेकिन, ऐसे मरीजों को सिर्फ बेहोश करके रखा जा सकता है।
कोक ने कहा- शायद मेरे कदम से कानून में बदलाव की गुंजाइश बने
कोक पिछले 34 साल से बीमार हैं। बीमारी की वजह से उन्हें बिस्तर पर ही रहना पड़ता है। उन्होंने लाइव स्ट्रीमिंग करने पर कहा- ‘‘अपनी मौत को यादगार बनाना चाहता हूं। इच्छा है कि मेरी मौत को पूरी दुनिया याद रखे। शायद इससे फ्रांस के कानून में बदलाव की गुंजाइश बने। इस पर राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा-‘इस इच्छा का सम्मान करते हैं।’’
अगर आप एथलीट हैं तो किसी फ्लू के टीके से आपको बेहतर इम्युनिटी मिलेगी। आपकी इम्युनिटी उन लोगों की तुलना में ज्यादा बढ़ेगी जो एक्टिव नहीं रहते हैं। यह दावा दो नई स्टडी में किया गया है। इन स्टडीज में धावक, तैराक, रेसलर, साइक्लिस्ट और दूसरे एथलीट शामिल हुए थे।
यह स्टडी इसलिए भी अहम मानी जा रही है, क्योंकि कोरोना की वैक्सीन लगभग तैयार है और दुनियाभर में बड़े स्तर पर टेस्टिंग की जा रही है। यह स्टडी जर्मनी की सारलैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ने की है। स्टडी दो ग्रुप्स पर की गई है।
सारलैंड यूनिवर्सिटी की इम्युनोलॉजिस्ट और नई स्टडी की को-ऑथर मार्टिना सेस्टर कहती हैं कि इस अध्ययन में एथलीट्स के इम्यून सिस्टम ने टीके के प्रति ज्यादा बेहतर रेस्पॉन्स दिया। मार्टिना और उनके साथियों को उम्मीद है कि कोरोना की वैक्सीन भी उन लोगों पर ज्यादा बेहतर असर करेगी जो नियमित एक्सरसाइज करते हैं।
ऐसे ही निष्कर्ष वाला दूसरा अध्ययन मेडिसिन एंड साइंस इन स्पोर्ट्स एंड एक्सरसाइज जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें भी टीके के बेहतर असर के लिए एक्सरसाइज को जरूरी बताया गया है।
ज्यादा कड़ी एक्सरसाइज भी न करें
कई रिसर्च में यह भी कहा गया है कि ज्यादा कड़ी एक्सरसाइज करने से इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ जाता है। महामारी के एक्सपर्ट के रिसर्च और एथलीट्स के पर्सनल एक्सपीरियंस से पता चला है कि कड़ी एक्सरसाइज कुछ समय के लिए इम्युनिटी को कमजोर करती है। लेकिन, ज्यादातर एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये कम समय के लिए होता है। तीन घंटे से लेकर 72 घंटे तक इम्यून सिस्टम अस्थायी रूप से कमजोर हो सकता है, उसके बाद सामान्य हो जाता है।
कोरोना संकट का असर कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री पर भी है। छात्रों के भरोसे चलने वाली कोटा की इकोनॉमी बैठ गई है। यहां फीस छोड़कर हर साल छात्रों से करीब 2 हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता था। इसमें खाना-पीना, हॉस्टल की फीस, ट्रांसपोर्टेशन जैसे खर्च शामिल हैं। आज यह कमाई घट गई है।
पिछले साल यहां करीब 1,75,000 स्टूडेंट्स जेईई मेन और एडवांस और नीट की तैयारी कर रहे थे। अभी 3 हजार से भी कम छात्र कोटा में मौजूद हैं। जो हैं वो भी ज्यादा खर्च नहीं कर रहे हैं। कोचिंग एरिया में सन्नाटा है। हॉस्टल, मेस और स्टेशनरी जैसे व्यापारों पर भी फर्क पड़ा है।
कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि कोटा में करीब 3 हजार हॉस्टल हैं, जिनमें लगभग सवा लाख कमरे हैं। यहां से हर साल करीब 12 सौ करोड रु. का कारोबार होता था। पीजी से भी करीब 450 करोड़ रु. का कारोबार था।
नवीन कहते हैं कि हॉस्टल संचालकों के सामने बड़ी मुसीबत है। हर हॉस्टल पर औसतन एक करोड़ रु. का कर्ज है। एक-एक हॉस्टल पर हर माह 90 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक की ईएमआई आती है। ऐसे में बच्चे नहीं रहेंगे तो इनको भरना संभव नहीं है।
इन 6 तरीकों से पढ़ाई पूरी करवाई जा रही है
1. फैकल्टी के घर स्टूडियो बनवाया, लेक्चर रिकॉर्ड कर भेजते हैं
एलेन कोचिंग के निदेशक राजेश माहेश्वरी बताते हैं कि हमने टीचिंग फैकल्टी के घर पर ही रिकॉर्डिंग स्टूडियो बनवा दिया है। इसका फायदा यह हो रहा है कि फैकल्टी अपने घर से ही वीडियो लेक्चर रिकॉर्ड करके हमें भेज देती है, जिसे हम शेड्यूल वाइस छात्रों को भेज देते हैं।
2. बायजू जैसे एप से कंटेंट टाइअप, नया रेवेन्यू मॉडल तैयार किया
कुछ संस्थानों ने नया रेवेन्यू मॉडल भी बनाया है। बायजू जैसे ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफाॅर्म से टाइअप किया गया है। ये एप इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी का मॉडल बनाने में मदद कर रहे हैं। इसके लिए कोटा कोचिंग ने बतौर कंटेंट पार्टनर टाइप किया है।
3. पढ़ाई में मदद के लिए कॉल सेंटर, अटेंडेंस भी यहीं से चेक
कोचिंग संस्थानों ने छात्रों के लिए कॉल सेंटर की भी व्यवस्था की है। कोई भी छात्र यहां कॉल करके अपनी समस्या बता सकता है। इसके अलावा कॉल सेंटर के कर्मचारी बच्चों की अटेंडेंस पर भी निगाह रखते हैं। दो-तीन दिन किसी छात्र के क्लास अटेंड न करने पर ये कर्मचारी बच्चे के घर पर संपर्क करते हैं।
4. प्रॉब्लम सॉल्विंग काउंटर, हर सवाल की डेडलाइन तय
छात्रों की समस्याएं हल करने के लिए ऑनलाइन प्रॉब्लम सॉल्विंग काउंटर बनाए गए हैं। छात्रों को वॉट्सऐप नंबर और ग्रुप से जोड़ा गया है। इसके जरिए छात्र कभी भी समस्याएं या कोई सवाल पूछ सकते हैं। कोचिंग प्रबंधन ने समस्याओं का समाधान करने की डेडलाइन भी तय कर रखी है। अधिकतर समस्याएं 6-8 घंटे के भीतर हल हो जाती हैं।
5. वेबसाइट, कोचिंग एप और वॉट्सएप पर चल रही क्लास
राजेश माहेश्वरी बताते हैं कि हमने स्टूडेंट्स की जरूरतों का ध्यान रखकर ही ऑनलाइन टीचिंग मटेरियल डिजाइन किया है। हम पहले से ऑनलाइन मोड पर शिफ्ट होने के लिए तैयार थे। इसलिए हमें ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। नए सेशन में हमारे अलग-अलग प्लेटफाॅर्म पर करीब एक लाख स्टूडेंट जुड़े हुए हैं। वेब पोर्टल, एप और वॉट्सऐप के जरिए छात्र रोज वीडियो क्लास से जुड़ जाते हैं।
6. बच्चों के लिए ऑफलाइन स्टडी मटेरियल भी भेज रहे
मोशन क्लासेस के मैनेजिंग डायरेक्टर नितिन विजय कहते हैं कि हम ऑनलाइन और ऑफलाइन वीडियो लेक्चर के अलावा स्टडी मटेरियल भी छात्रों को भेजते हैं। कई अन्य कोचिंग सेंटर भी ऑफलाइन स्टडी मटेरियल भेज रहे हैं। ताकि उन बच्चों को परेशान न हो जो ऐसे क्षेत्रों में हैं जहां रोजाना 6-8 घंटे ऑनलाइन क्लास लेना संभव नहीं है।
कोरोना संकट का असर कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री पर भी है। छात्रों के भरोसे चलने वाली कोटा की इकोनॉमी बैठ गई है। यहां फीस छोड़कर हर साल छात्रों से करीब 2 हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता था। इसमें खाना-पीना, हॉस्टल की फीस, ट्रांसपोर्टेशन जैसे खर्च शामिल हैं। आज यह कमाई घट गई है।
पिछले साल यहां करीब 1,75,000 स्टूडेंट्स जेईई मेन और एडवांस और नीट की तैयारी कर रहे थे। अभी 3 हजार से भी कम छात्र कोटा में मौजूद हैं। जो हैं वो भी ज्यादा खर्च नहीं कर रहे हैं। कोचिंग एरिया में सन्नाटा है। हॉस्टल, मेस और स्टेशनरी जैसे व्यापारों पर भी फर्क पड़ा है।
कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि कोटा में करीब 3 हजार हॉस्टल हैं, जिनमें लगभग सवा लाख कमरे हैं। यहां से हर साल करीब 12 सौ करोड रु. का कारोबार होता था। पीजी से भी करीब 450 करोड़ रु. का कारोबार था।
नवीन कहते हैं कि हॉस्टल संचालकों के सामने बड़ी मुसीबत है। हर हॉस्टल पर औसतन एक करोड़ रु. का कर्ज है। एक-एक हॉस्टल पर हर माह 90 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक की ईएमआई आती है। ऐसे में बच्चे नहीं रहेंगे तो इनको भरना संभव नहीं है।
इन 6 तरीकों से पढ़ाई पूरी करवाई जा रही है
1. फैकल्टी के घर स्टूडियो बनवाया, लेक्चर रिकॉर्ड कर भेजते हैं
एलेन कोचिंग के निदेशक राजेश माहेश्वरी बताते हैं कि हमने टीचिंग फैकल्टी के घर पर ही रिकॉर्डिंग स्टूडियो बनवा दिया है। इसका फायदा यह हो रहा है कि फैकल्टी अपने घर से ही वीडियो लेक्चर रिकॉर्ड करके हमें भेज देती है, जिसे हम शेड्यूल वाइस छात्रों को भेज देते हैं।
2. बायजू जैसे एप से कंटेंट टाइअप, नया रेवेन्यू मॉडल तैयार किया
कुछ संस्थानों ने नया रेवेन्यू मॉडल भी बनाया है। बायजू जैसे ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफाॅर्म से टाइअप किया गया है। ये एप इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी का मॉडल बनाने में मदद कर रहे हैं। इसके लिए कोटा कोचिंग ने बतौर कंटेंट पार्टनर टाइप किया है।
3. पढ़ाई में मदद के लिए कॉल सेंटर, अटेंडेंस भी यहीं से चेक
कोचिंग संस्थानों ने छात्रों के लिए कॉल सेंटर की भी व्यवस्था की है। कोई भी छात्र यहां कॉल करके अपनी समस्या बता सकता है। इसके अलावा कॉल सेंटर के कर्मचारी बच्चों की अटेंडेंस पर भी निगाह रखते हैं। दो-तीन दिन किसी छात्र के क्लास अटेंड न करने पर ये कर्मचारी बच्चे के घर पर संपर्क करते हैं।
4. प्रॉब्लम सॉल्विंग काउंटर, हर सवाल की डेडलाइन तय
छात्रों की समस्याएं हल करने के लिए ऑनलाइन प्रॉब्लम सॉल्विंग काउंटर बनाए गए हैं। छात्रों को वॉट्सऐप नंबर और ग्रुप से जोड़ा गया है। इसके जरिए छात्र कभी भी समस्याएं या कोई सवाल पूछ सकते हैं। कोचिंग प्रबंधन ने समस्याओं का समाधान करने की डेडलाइन भी तय कर रखी है। अधिकतर समस्याएं 6-8 घंटे के भीतर हल हो जाती हैं।
5. वेबसाइट, कोचिंग एप और वॉट्सएप पर चल रही क्लास
राजेश माहेश्वरी बताते हैं कि हमने स्टूडेंट्स की जरूरतों का ध्यान रखकर ही ऑनलाइन टीचिंग मटेरियल डिजाइन किया है। हम पहले से ऑनलाइन मोड पर शिफ्ट होने के लिए तैयार थे। इसलिए हमें ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। नए सेशन में हमारे अलग-अलग प्लेटफाॅर्म पर करीब एक लाख स्टूडेंट जुड़े हुए हैं। वेब पोर्टल, एप और वॉट्सऐप के जरिए छात्र रोज वीडियो क्लास से जुड़ जाते हैं।
6. बच्चों के लिए ऑफलाइन स्टडी मटेरियल भी भेज रहे
मोशन क्लासेस के मैनेजिंग डायरेक्टर नितिन विजय कहते हैं कि हम ऑनलाइन और ऑफलाइन वीडियो लेक्चर के अलावा स्टडी मटेरियल भी छात्रों को भेजते हैं। कई अन्य कोचिंग सेंटर भी ऑफलाइन स्टडी मटेरियल भेज रहे हैं। ताकि उन बच्चों को परेशान न हो जो ऐसे क्षेत्रों में हैं जहां रोजाना 6-8 घंटे ऑनलाइन क्लास लेना संभव नहीं है।
देश में हर साल 42 हजार करोड़ रुपए के मेडिकल उपकरण इंपोर्ट किए जाते हैं। इनमें सर्जिकल उपकरण, इम्प्लांट और दूसरी डिवाइस शामिल हैं। देश के 80% बाजार पर विदेशी कंपनियों का कब्जा है। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ कहते हैं कि कॉरपोरेट सेक्टर के अस्पताल देशी उपकरण पसंद नहीं करते। वहीं सरकारी अस्पतालों में सस्ते प्रोडक्ट्स खरीदे जाते हैं। हम जिन उपकरणों को इंपोर्ट करते हैं, उनमें 12 हजार करोड़ के उपकरण तो सैकेंड हैंड होते हैं।
एम्स के पूर्व घुटना इम्प्लांट एक्सपर्ट डॉ. सी एस यादव कहते हैं कि ज्यादातर इम्प्लांट या मेडिकल उपकरण भारत में बनने लगें तो इलाज के खर्च में 30% से 50% तक कमी आ सकती है।
इक्विपमेंट
भारतीय प्रोडक्ट (रुपए)
विदेशी प्रोडक्ट (रुपए)
रेडिएंट हीट वार्मर
45 हजार से 1 लाख
2 लाख से 6 लाख
फोटोथैरेपी मशीन
20 हजार से 30 हजार
85 हजार से 1.25 लाख
कृत्रिम घुटना
45 हजार से 50 हजार
1.25 लाख
एक्स-रे मशीन
50 हजार से 3 लाख
15 लाख से 1.5 करोड़
ईसीजी मशीन
25 हजार 75 हजार
45 हजार से 5 लाख
विदेशी उपकरणों की एमआरपी वास्तविक कीमत से 3-4 गुना ज्यादा होती है
1. अच्छी क्वालिटी के भारतीय उपकरण निजी अस्पतालों में सप्लाई नहीं हो पाते, क्योंकि इंपोर्टेड प्रोडक्ट की एमआरपी खरीद की कीमत से 3-4 गुना ज्यादा होती है। इससे कंपनी और अस्पताल दोनों की कमाई होती है।
2. सरकारी अस्पतालों में जब भी इम्प्लांट या किसी उपकरण के लिए टेंडर होता है तो सबसे कम कीमत वाली कंपनी को प्रमुखता दी जाती है। ऐसे में चीनी या दूसरी विदेशी कंपनियां बाजी मार जाती हैं।
3. विदेशों से सैकेंड हैंड प्रोडक्ट भी भारत आते हैं। खासकर वेंटिलेटर, अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन मशीन। ऐसी स्थिति में भारतीय कंपनियां सस्ती कीमतों को चुनौती नहीं दे पातीं।
4. विदेशों से भारत आने वाले मेडिकल उपकरणों पर मैक्सिमम 7.5% तक ही कस्टम ड्यूटी लगती है। इसलिए भी ये सस्ते मिल जाते हैं।
5. कई खरीदार अमेरिका के एफडीए अप्रूव्ड प्रोडक्ट मांगते हैं, खासकर कॉरपोरेट सेक्टर। इसकी वजह से भारतीय प्रोडक्ट बाहर हो जाते हैं।
देश में रिसर्च, मैन पावर पर खर्च बढ़ाना होगा
पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. जगदीश प्रसाद कहते हैं कि अगर उपकरण स्वदेशी हों तो कीमत 50-70% तक कम हो जाएगी। हालांकि, सरकार को रिसर्च डेवलपमेंट और मैनपावर पर बहुत खर्च करना पड़ेगा।
वहीं एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ का कहना है कि सरकार देशी मैन्युफैक्चरर की दिक्कतें दूर करते हुए पॉलिसी बनाए तो, भारत इस मामले में ग्लोबल फैक्ट्री बन सकता है और हम सस्ती डिवाइस बना सकते हैं।
from Dainik Bhaskar /national/news/every-year-we-get-12000-crore-second-hand-medical-equipment-from-abroad-foreign-companies-occupy-80-of-the-market-127690711.html
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क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर राफेल फाइटर जेट के क्रैश होने का दावा किया जा रहा है। मैसेज के साथ एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी वायरल हो रहा है। यह ट्वीट भारतीय वायुसेना का बताया जा रहा है।
और सच क्या है ?
पिछले 24 घंटों में किसी भी न्यूज एजेंसी ने राफेल के क्रैश होने से जुड़ी कोई खबर जारी नहीं की है। पड़ताल के अगले चरण में हमने वायरल हो रहे ट्वीट के स्क्रीनशॉट की पड़ताल की।
वायरल हो रहे ट्वीट के स्क्रीनशॉट में, 4 सितंबर रात 11:33 बजे का समय दिख रहा है। वायुसेना के ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट पर हमें 4 सितंबर को ऐसा कोई ट्वीट नहीं मिला।
4 सितंबर को भारतीय वायुसेना की तरफ से आखिरी ट्वीट शाम 7:51 मिनट पर किया गया है। वायुसेना अध्यक्ष के एक दौरे के संबंध में।
वायु सेना अध्यक्ष एसीएम आरकेएस भदौरिया ने 03सितंबर20 को कॉलेज ऑफ एयर वारफेयर (सीएडब्ल्यू) का दौरा किया। सिकंदराबाद में स्थित इस संस्था की स्थापना सन् 1959 में हुई थी। यह एक उच्च शिक्षा संस्थान है, जो तीनों सेनाओं के अधिकारियों के लिए एयरवारफेयर पर आधारित पाठ्यक्रम संचालित करता है pic.twitter.com/JIOXVqUBDL
from Dainik Bhaskar /no-fake-news/news/fact-check-claim-of-rafale-fighter-jet-crashing-is-false-rumor-spread-based-on-fake-tweet-screenshot-127688210.html
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