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Saturday, November 28, 2020

अंकिता लोखंडे ने सुशांत सिंह राजपूत को ट्रिव्यूट देने के लिए तैयार की परफॉर्मेंस, बोलीं- यह दर्दनाक है...

टीवी की जानी-मानी एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे (Ankita Lokhande) इन दिनों सोशल मीडिया पर...

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किसानों के प्रदर्शन की एक और रात, दिल्ली के बॉर्डर पर ही जमे हुए हैं अधिकतर किसान

दिल्ली की सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान जमे रहे, शनिवार दिन में उनकी...

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"Vicious" Campaign Against Me: Umar Khalid In Court On Delhi Riots Case

Former JNU student leader Umar Kahlid alleged before a Delhi court on Saturday that there has been a "vicious" media campaign against him in various newspapers and on TV channels about his alleged...

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Case Against Haryana Farmers' Leader Amid Massive Protest

A case has been filed against Haryana Bhartiya Kisan Union (BKU) president Gurnam Singh Chaduni for his alleged involvement in the farmers' agitation in the state in protest against the new farm laws.

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Centre Should Come Forward With Open Heart, Not On Condition: Farmers

Hours after Union Home Minister Amit Shah appealed to the farmers' union to gather on Nirankari Samagam Ground in Burari on the outskirts of Delhi, saying the Centre was ready to hold talks even...

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लद्दाख में मार्कोस कमांडो तैनात; सी-प्लेन सर्विस एक महीने में ही ठप और BMC मेयर ने कंगना को कहे अपशब्द

नमस्कार!
प्रधानमंत्री मोदी ने देश में बन रहीं कोरोना वैक्सीन का डेवलपमेंट जानने के लिए अहमदाबाद, हैदराबाद और पुणे में विजिट की। उधर, केंद्र ने दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे पंजाब-हरियाणा के किसानों से बातचीत की पेशकश की। बहरहाल, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।

आज इस इवेंट पर रहेगी नजर

  • भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली जा रही 3 मैच की वन-डे सीरीज का दूसरा मुकाबला आज सिडनी में खेला जाएगा।
  • उत्तराखंड में आज से एंट्री से पहले कोरोना टेस्ट करवाना अनिवार्य। बॉर्डर पर तैनात पुलिसकर्मी बाहर से आने वाले हर यात्री की जांच करेंगे।
  • मध्य प्रदेश के बौद्ध तीर्थस्थल सांची में आज से महाबोधि वार्षिकोत्सव शुरू होगा। 68 साल में पहली बार विदेशी धर्मगुरु और भक्त नहीं पहुंच सके।

देश-विदेश
लद्दाख में चीन की घेराबंदी, मार्कोस कमांडो तैनात

नेवी ने ईस्टर्न लद्दाख में पैंगॉन्ग झील के पास सबसे खतरनाक मार्कोस कमांडो तैनात कर दिए हैं। मार्कोस को दाढ़ी वाली फोर्स भी कहा जाता है। यहां एयरफोर्स के गरुड़ कमांडो और आर्मी की पैरा स्पेशल फोर्स पहले से मौजूद है। चीन की चालबाजी देखते हुए यहां ताकत बढ़ाई जा रही है।

केंद्र सरकार ने किसानों से बातचीत की पेशकश की
कृषि बिलों को लेकर पंजाब-हरियाणा के किसान का प्रदर्शन शनिवार को तीसरे दिन भी जारी रहा। उधर, केंद्र सरकार ने किसानों से बातचीत की पेशकश की। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान यूनियनों को बातचीत के लिए 3 दिसंबर को मिलने का न्योता भेजने की बात कही।

सी-प्लेन मेंटेनेंस के लिए मालदीव भेजा गया
प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद-केवडिया के बीच सी-प्लेन सर्विस की शुरुआत 31 अक्टूबर को की थी, लेकिन एक महीने में ही यह सर्विस बंद हो गई। सी-प्लेन को मेंटेनेंस के लिए शनिवार को मालदीव भेज दिया गया। इसकी वापसी कब होगी, इस बारे में अधिकारी फिलहाल चुप हैं। पहले भी 2 बार सर्विस बंद की गई थी।

BMC मेयर बोलीं- हिमाचल की एक्ट्रेस मुंबई को POK कहती है
कंगना रनोट का बंगला तोड़ने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने BMC को फटकार लगाई। इसके बावजूद BMC की मेयर किशोरी पेडनेकर ने कंगना पर तंज किया। उन्होंने कहा, 'एक एक्ट्रेस जो हिमाचल में रहती है और हमारे मुंबई को POK कहती है। ऐसे दो टके के लोग अदालत को राजनीति का अखाड़ा बनाना चाहते हैं।'

मुंबई हमलों के 12 साल बाद अमेरिका ने की कार्रवाई
2008 के मुंबई हमलों के 12 साल बाद अमेरिका ने इसके मास्टरमाइंड साजिद मीर पर 50 लाख डॉलर (करीब 37 करोड़ रुपए) का ईनाम घोषित किया। साजिद मीर हाफिज सईद के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर है। मुंबई हमलों में 166 लोग मारे गए थे। इनमें अमेरिका समेत कुछ दूसरे देशों के नागरिक भी थे।

खुद्दार कहानी
दादी रेसिपी बताती हैं, पोता यूट्यूब पर अपलोड करता है
यह कहानी महाराष्ट्र में अहमदनगर की रहने वाली सुमन धामने की है। 70 साल की सुमन कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन इन दिनों उनके यूट्यूब चैनल ‘आपली आजी’ पर 6.5 लाख सब्सक्राइबर हैं। इस पर सुमन पारंपरिक स्वाद में घर के बने मसालों के साथ महाराष्ट्रीयन डिशेज बनाती हैं। हर महीने दो लाख रुपए कमाती हैं।

पढ़ें पूरी खबर...

भास्कर एक्सप्लेनर
एक देश और एक चुनाव; क्या ये मुमकिन है?

मई 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई, तो कुछ समय बाद ही एक देश और एक चुनाव को लेकर बहस शुरू हो गई। संविधान दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, आज एक देश-एक चुनाव भारत की जरूरत है। लेकिन क्या वाकई देश में वन नेशन-वन इलेक्शन आज के समय में कर पाना मुमकिन है।

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सुर्खियों में और क्या है...

  • हैदराबाद में 'कोवैक्सिन' बना रही कंपनी भारत बायोटेक के रिसर्च सेंटर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने वैज्ञानिकों को ट्रायल में अब तक मिली कामयाबी के लिए बधाई दी।
  • जम्मू-कश्मीर में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल (DDC) के चुनावों के लिए पहले फेज की वोटिंग कड़ी सुरक्षा के बीच शनिवार को हुई।
  • यूपी में लव जिहाद के खिलाफ अध्यादेश को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की मंजूरी। लव जिहाद अब अपराध कहलाएगा। दोषी को 10 साल तक की सजा हो सकेगी।


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एजुकेशन के लिए परिश्रम, लगन और साधन के साथ ही भाषा और लक्ष्य भी स्पष्ट होना चाहिए

कहानी- डॉ. भीमराव अंबेडकर के छात्र जीवन से जुड़ी घटना है। अंबेडकर अमेरिका में पढ़ाई कर रहे थे। उस समय वे एक मात्र विद्यार्थी थे, जो यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में सबसे पहले पहुंचते थे और लाइब्रेरी बंद होने तक लगातार पढ़ते रहते थे। कभी-कभी वे ज्यादा समय भी वहां रुकते थे।

लाइब्रेरी का एक कर्मचारी हर रोज अंबेडकर को देखता था। एक दिन उसने अंबेडकर से कहा, 'मैं आपको रोज देखता हूं। आपकी उम्र के यहां कई लोग हैं, वे पढ़ाई के अलावा अन्य काम भी करते हैं। वे मौज-मस्ती भी करते हैं, लेकिन आप हमेशा पढ़ाई ही करते हैं, ऐसा क्यों?'

अंबेडकर बोले, 'मुझे बहुत पढ़ना है, क्योंकि मेरे पास वर्तमान शिक्षा के लिए भविष्य का एक बड़ा लक्ष्य है। मैं केवल अपने लिए पढ़ाई नहीं कर रहा हूं। भारत में मुझसे जुड़े कई लोग हैं, मुझे उनके लिए इसी शिक्षा से बहुत कुछ करना है।'

अंबेडकर की बातें सुनकर कर्मचारी हैरान रह गया। उसने सोचा कि शिक्षा का दूरगामी लक्ष्य लेकर भी कोई विद्यार्थी इस तरह पढ़ाई कर सकता है। कर्मचारी ने ये देखा कि अंबेडकर अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं की किताबें भी बहुत ध्यान से पढ़ते थे। ये देखकर वह और ज्यादा आश्चर्यचकित हो गया।

काफी समय बाद भारत में अंबेडकर और लालबहादुर शास्त्री के बीच संस्कृत में वार्तालाप हुआ तो उन्हें देखकर सभी चौंक गए थे। अंबेडकर का संस्कृत ज्ञान भी बहुत बेहतरीन था।

सीख- हमारे लिए अंबेडकर की सीख यही है कि भारत में शिक्षा का सदुपयोग तब ही हो पाएगा, जब यहां के विद्यार्थी परिश्रम, लगन, साधन के साथ ही लक्ष्य और भाषाएं भी स्पष्ट होंगी।



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दादी रेसिपी बताती हैं और पोता उसे यूट्यूब पर अपलोड करता है, 6.5 लाख सब्सक्राइबर, हर महीने दो लाख कमाई

महाराष्ट्र में अहमदनगर की रहने वाली सुमन धामने को कुछ महीने पहले तक कोई नहीं जानता था लेकिन, अब वो इंटरनेट सेंसेशन हैं। 70 साल की सुमन कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन इन दिनों उनके यूट्यूब चैनल ‘आपली आजी’ पर 6.5 लाख सब्सक्राइबर हैं।

इस पर सुमन पारंपरिक स्वाद में घर के बने मसालों के साथ महाराष्ट्रीयन डिशेज बनाती हैं। अहमदनगर से करीब 10 किलोमीटर दूर सरोला कसार गांव में रहने वाली सुमन धामने हिंदी नहीं बोल पाती हैं, वो सिर्फ मराठी ही बोलती हैं। वो अपने चैनल पर अब तक करीब 150 रेसिपी के वीडियो शेयर कर चुकी हैं।

सुमन कहती हैं कि इससे पहले वो यूट्यूब के बारे में कुछ भी नहीं जानती थीं। उन्होंने कभी ये सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी ऐसी वीडियो के जरिए सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से खाने के बारे में बात करेंगी। सुमन का यह यूट्यूब चैनल शुरू करने में उनके पोते यश पाठक ने उनकी मदद की।

अहमदनगर से करीब 10 किलोमीटर दूर सरोला कसार गांव में रहने वाली सुमन धामने पारंपरिक स्वाद में घर के बने मसालों के साथ महाराष्ट्रीयन डिशेज बनाती हैं।

11वीं क्लास में पढ़ने वाले 17 साल के यश बताते हैं कि इसी साल जनवरी महीने में दादी को पाव भाजी बनाने को कहा था। दादी ने कहा कि उन्हें ये बनाना नहीं आता है, तो मैंने उन्हें कुछ रेसिपीज के वीडियो दिखाए। वीडियो देखने के बाद, दादी ने कहा कि वो इससे अच्छी पाव भाजी बना सकती है। उस दिन दादी ने वाकई में बहुत शानदार पाव भाजी बनाई, घर के हर सदस्य ने उनके खाने की तारीफ की। बस इसी दौरान मुझे दादी का यूट्यूब चैनल शुरू करने का ख्याल आया।

‘करेले की सब्जी’ वीडियो को कुछ दिनों में ही मिले एक मिलियन व्यूज

यश कहते हैं ‘​मैं 8वीं क्लास से ही अपना एक यूट्यूब चैनल चला रहा था, लेकिन मैं बहुत कम वीडियो बनाता था। दादी के चैनल के लिए मैंने प्लानिंग की और नवम्बर 2019 में एक यूट्यूब चैनल बनाया और इस पर कुछ वीडियो अपलोड किए। दिसम्बर 2019 में हमने ‘करेले की सब्जी’ बनाने का एक वीडियो अपलोड किया। इसी वीडियो को कुछ दिनों में एक मिलियन से ज्यादा व्यूज मिले। (अब इस पर 6 मिलियन से भी ज्यादा व्यूज हैं) इसके बाद हम मूंगफली की चटनी, महाराष्ट्रीयन मिठाइयां, बैंगन, हरी सब्जियां और भी कई महाराष्ट्रीयन डिशेज के वीडियो बनाकर अपलोड करने लगे।’

यश और उनकी दादी मिलकर हफ्ते में दो वीडियोज यूट्यूब चैनल पर अपलोड करते हैं।

सुमन कहती हैं कि जब यश ने यूट्यूब चैनल शुरू करने की बात कही थी तो वो बहुत डरी हुई थी। उन्होंने जीवन में कभी कैमरा फेस नहीं किया था, शुरुआती कई वीडियो में वो काफी असहज नजर आईं। कई बार कैमरे के सामने बोलते समय भूल जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे कैमरे के सामने भी सहज हो गईं। सुमन कहती हैं ‘जब मुझे यूट्यूब क्रिएटर अवार्ड मिला है तो मुझे बहुत गर्व महसूस हुआ, मेरे परिवार और रिश्तेदारों ने भी मेरी काफी तारीफ की।’

6.5 लाख सब्सक्राइबर हैं, हर महीने डेढ़ से दो लाख रुपए की कमाई

यश कहते हैं ‘इन सबके बीच एक सबसे महत्वपूर्ण चुनौती ये थी कि रेसिपी बनाते समय कुछ अंग्रेजी के शब्द होते थे, जो दादी नहीं बोल पाती थीं। इसके बाद मैंने दादी को सॉस, बेकिंग पाउडर, कैचअप, मिक्सचर जैसे कई अंग्रेजी शब्दों को सही तरीके से उच्चारण करना सिखाया, दादी ने भी एक हफ्ते में ये सब कुछ सीख लिया।’

यश बताते हैं कि हमारे शुरुआती तीन महीने में ही एक लाख सब्सक्राइबर हो गए थे। आज हमारे चैनल पर 6.5 लाख सब्सक्राइबर हैं और हमें यूट्यूब की ओर से सिल्वर प्ले बटन मिला है। इस चैनल के जरिए हर महीने डेढ़ से दो लाख रुपए की कमाई होती है।

11वीं क्लास में पढ़ने वाले 17 साल के यश ने ही अपनी दादी को यूट्यूब चैनल शुरू करने का आइडिया दिया था।

16 अक्टूबर को हैक हो गया था चैनल, चार दिन बाद वापस मिला

सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन 16 अक्टूबर को अचानक ‘आपली आजी’ चैनल हैक हो गया। इस घटना से दादी-पोते की इस जोड़ी को बड़ा झटका लगा। यश कहते हैं कि जब ये बात मैंने दादी को बताई तो वो इतना परेशान हो गई थी एक दिन खाना तक नहीं खाया। इसके बाद मैंने ने यूट्यूब को ई-मेल किया तब जाकर 21 अक्टूबर को हमें हमारा चैनल वापस मिल सका, तब जाकर दादी को राहत मिली।

यश के पापा डॉक्टर और मम्मी हाउसवाइफ हैं, जब यश ने ये चैनल शुरू किया तो उन्होंने काफी सपोर्ट किया। यश वर्तमान में ‘आपली आजी’ चैनल के लिए हफ्ते में दो वीडियो बनाते हैं। यश इससे पहले सैमसंग के फोन से वीडियो रिकॉर्ड करते थे लेकिन जब कमाई हुई तो उन्होंने आईफोन 11 प्रो मैक्स और कैनन-750 DSLR ले लिया है, अब वो इसके जरिए ही वीडियो रिकॉर्ड करते हैं।



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Suman Dhamne Aapli Aaji YouTube Channel Earning | Suman Dhamne From Maharashtra Ahmednagar Hits 6.5 Million Subscribers


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'15,000 की दवा 28,000 में खरीदने की मजबूरी, नहीं खरीद सकते तो मत लगवाओ'

श्वेता यादव अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ 6 नवंबर को चिरायु हॉस्पिटल में एडमिट हुईं। पूरा परिवार कोरोना पॉजिटिव था। दो दिन बाद परिवार के दो सदस्यों श्वेता और उनके ससुर कमल बाजपेयी को रेमडेसिविर इंजेक्शन का डोज देने की एडवाइज डॉक्टर्स ने दी। उन्हें कहा गया कि आपका इंफेक्शन बढ़ सकता है, इसलिए रेमडेसिविर दे रहे हैं, ताकि बीमारी लंग्स तक न आए।

श्वेता का पूरा परिवार मप्र सरकार की स्कीम के तहत हॉस्पिटल में एडमिट हुआ था। यानी इलाज का पूरा खर्चा सरकार उठा रही थी लेकिन रेमडेसिविर इंजेक्शन का खर्चा मरीज को खुद ही उठाना था। मप्र में सरकार रेमडेसिविर इंजेक्शन का खर्चा नहीं उठा रही।

डॉक्टर्स के कहने के बाद श्वेता के परिजन ने हॉस्पिटल की मेडिकल स्टोर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन का रेट पूछा, तो उन्होंने बताया कि हमारे पास 4800 रुपए वाला इंजेक्शन (100 एमएल) है। छ इंजेक्शन 28,800 रुपए के आएंगे। क्या किसी दूसरे ब्रांड का सस्ता इंजेक्शन भी आता है? ये पूछने पर मेडिकल संचालक ने कहा कि 'हां आता है, लेकिन वो आपको बाजार से लेना होगा। हमारे यहां तो 4800 वाला ही है।'

इसके बाद श्वेता के परिजन ने बाजार में खोजबीन की। तो उन्हें एक दूसरी कंपनी का रेमडेसिविर 2500 रुपए में मिल गया। इसका छ डोज का एक पैक 15,000 रुपए का आ रहा था तो उन्होंने 30,000 रुपए में दो पैक खरीद लिए। वो पैक हॉस्पिटल लेकर गए तो डॉक्टर ने उन्हें लगाने से इनकार कर दिया। बोले, हमारे हॉस्पिटल में बाहर का ड्रग अलाउ नहीं है। आपको हम जो रेमडेसिविर दे रहे हैं, वही खरीदना होगा।

मप्र में कोरोना मरीजों का इलाज प्रदेश सरकार करवा रही है। यह मुफ्त है, लेकिन रेमडेसिविर इंजेक्शन का खर्चा मरीजों को ही उठाना होता है।

इसके बाद श्वेता के परिजन ने हॉस्पिटल के मेडिकल पर ही करीब 60,000 रुपए (बाजार से दोगुना) जमा किए और दोनों मरीजों को रेमडेसिविर लगना शुरू हुए।

उन्होंने हॉस्पिटल डायरेक्टर अजय गोयनका से बात की तो उन्होंने कहा कि 'रेमडेसिविर की पूरी डिटेल हमें मप्र सरकार को देना होती है। मैं बाहर का ड्रग यहां अलाउ नहीं करूंगा।' परिजन ने कहा, 'सर बाहर सस्ता मिल रहा है, आपके यहां महंगा है?' तो उन्होंने जवाब दिया, 'वो सब मैं नहीं जानता। बाहर का ड्रग यहां अलाउ नहीं है।'

हमने डायरेक्टर गोयनका से पूछा कि मरीजों को आप चिरायु से ही इंजेक्शन खरीदने पर मजबूर क्यों कर रहे हैं? इस पर वे बोले, 'मेरे अस्पताल के अंदर रेमडेसिविर मेरी दुकान से ही लेना होगा, क्योंकि मैं उसकी कोल्ड चेन मेंटेन करता हूं। बाहर से आए हुए, पेशेंट के पास पड़े हुए, इंजेक्शन मैं नहीं लगाता, क्योंकि उससे कोल्ड चेन मेंटेन नहीं होती। अब किसी को पांच-दस हजार बचाना है तो सिर्फ चिरायु हॉस्पिटल थोड़ी है, और भी कई हैं।' डॉ. गोयनका ने ये भी कहा कि 'अभी जो पीक आया है उसमें मोर्टेलिटी रेट सिर्फ रेमडेसिविर के चलते ही घटा है और मौका मिला तो मैं यह बात WHO के सामने भी रखूंगा'।

हमने अपर मुख्य सचिव लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण (मप्र) मोहम्मद सुलेमान से पूछा कि WHO ने रेमडेसिविर को प्रभावी नहीं बताया है और अस्पताल अपनी मर्जी के मुताबिक इसकी बिक्री कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि 'हमारा स्टैंड बिल्कुल क्लियर है। जो आईसीएमआर कहता है, वो हम लिख देते हैं। रेमडेसिविर एक ट्रायल मेडिसिन है और ट्रायल हम अपने खर्चे पर नहीं करवा सकते।' हमने पूछा कि अस्पताल अपनी मर्जी का ब्रांड खरीदने पर मरीजों को मजबूर क्यों कर रहे हैं? इस पर बोले, 'अब मैं किसी इंडिविजुअल केस में बात नहीं कर सकता।'

क्या रेमडेसिविर लगाना जरूरी है?
श्वेता का मामला सिर्फ एक बानगी है। दिल्ली, मुंबई सहित तमाम शहरों में कोरोना मरीजों को रेमडेसिविर दिए जा रहे हैं। इस बारे में हमने सरकारी नियम टटोले तो पता चला कि सरकार ने क्लीनिकल ट्रायल के लिए रेमडेसिविर को अलाउ किया है। इमरजेंसी केस में भी इसे दिया जा सकता है। लेकिन इसे लेकर किसी तरह की गाइडलाइन या नियम जारी नहीं किए गए।

जून माह में एडवोकेट एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रेमडेसिविर के इस्तेमाल पर रोक की मांग की थी। उन्होंने हमसे बात करते हुए कहा कि 'जब यह दवा कोरोना में असरदार ही नहीं है तो इसे धड़ल्ले से बेचा क्यों जा रहा है?

केंद्र ने इसे सिर्फ टेस्टिंग के लिए अलाउ किया है, लेकिन देशभर में खुलेआम इसे मरीजों पर लगाया जा रहा है। कुछ माह पहले तो कालाबाजारी की स्थिति आ गई थी। जमकर पैसों की वसूली हो रही थी।' शर्मा की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। लेकिन अभी तक केंद्र की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया।

क्या यह दवा इफेक्टिव है?
'कोरोनावायरस पेशेंट्स को रेमडेसिविर नहीं दिया जाना चाहिए, भले ही वो कितने भी बीमार हों'। यह चेतावनी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 20 नवंबर को जारी की है। WHO का कहना है कि ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं, जो यह साबित करते हों कि यह ड्रग कोरोनावायरस को खत्म करने में कारगर है या मरीजों को मौत से बचा सकता है।

WHO के वैज्ञानिकों ने यह बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 7 हजार पेशेंट्स पर हुए ट्रायल्स के बाद कही। उन्होंने चेतावनी दी है कि यह कुछ मरीजों की किडनी और लिवर को डैमेज कर सकता है।

डॉक्टर बोले, यह सिर्फ मॉडरेट केस में असरकारक

हमने मप्र के कोविड स्टेट एडवाइजर डॉ. लोकेंद्र दवे से पूछा कि यह दवा इफेक्टिव नहीं है तो मरीजों को क्यों लगाई जा रही है? तो उन्होंने कहा कि 'हमारा अनुभव है कि मॉडरेट केस में बीमारी को कंट्रोल करने में यह असरकारक है।' मॉडरेट केस वो होते हैं, जिनमें मरीज खुद भी ठीक होते हैं, लेकिन इसमें दो से तीन हफ्ते लग जाते हैं, जबकि रेमडेसिविर लगता है तो एक हफ्ते में ही मरीज ठीक हो जाता है।

हालांकि यह ड्रग गंभीर मामलों में असर नहीं करता। संक्रमण बढ़ गया हो तो तब भी यह कारगर नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि इसे लगाने के बाद मरीज में बीमारी बढ़ेगी नहीं या खत्म हो जाएगी। यह सिर्फ मॉडरेट लेवल पर बीमारी को जल्दी कंट्रोल करने का काम करता है।

क्या केंद्र सरकार ने इसके लिए कोई गाइडलाइन जारी की है? इस पर दवे ने कहा, सरकार ने कोई गाइडलाइन या रिकमंडेशन तो नहीं दीं लेकिन इस्तेमाल पर रोक भी नहीं लगाई।

हमने सीएमएचओ (भोपाल) डॉ. प्रभाकर तिवारी से पूछा कि अस्पताल रेमडेसिविर के नाम पर मनमानी कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि 'प्रदेश सरकार ने ऐसी कोई अनुशंसा नहीं की है कि मरीजों को रेमडेसिविर लगाया जाए। इसलिए सरकार इसे खरीद भी नहीं रही। कोई भी अस्पताल मरीज को इसे लगाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। अस्पताल तो अपनी मर्जी के मुताबिक, ब्रांड खरीदने पर मरीज को मजबूर कर रहे हैं? इस पर बोले, ऐसा करना बिल्कुल गलत है। मरीज अपनी मर्जी के मुताबिक, कहीं से भी ड्रग खरीद सकता है। यदि कोई ऐसा कर रहा है तो सीएमएचओ ऑफिस में इसकी शिकायत की जा सकती है।

आखिर क्या है रेमडेसिविर
यह एक एंटी वायरल ड्रग है, जिसे अमेरिकी कंपनी गिलियड साइंसेज इंक ने बनाया है। इस ड्रग को इबोला के इलाज के लिए डेवलप किया गया था। कोरोनावायरस आने के बाद अमेरिकी कंपनी ने फिर इसे यह कहकर पेश किया कि यह कोरोना में प्रभावकारी है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी जब कोरोना का शिकार हुए थे तो उन्हें रेमडेसिविर के डोज दिए गए थे। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने 1 मई को इसके इमरजेंसी यूज के लिए अनुमति दी। यूके के एनएचएस ने भी इसी दौरान इसके इस्तेमाल को ग्रीन सिग्नल दिया। अब WHO ने अपने ताजा अध्ययन के बाद इसे इस्तेमाल न करने की सलाह दी है।

ड्रग एक ही, फिर रेट में अंतर क्यों
हर कंपनी अपनी मार्केटिंग स्ट्रेटजी के हिसाब से इस ड्रग को बेच रही है। ब्रांड कितना बड़ा है और उसका पेनिट्रेशन कितना है, इस हिसाब से कीमतें तय की गई हैं। सरकारें कोरोना का मुफ्त इलाज तो उपलब्ध करवा रही हैं, लेकिन उन्होंने रेमडेसिविर को लेकर कोई गाइडलाइन जारी नहीं की है। जैसे मप्र में ही कोरोना का इलाज सरकार करवा रही है, लेकिन रेमडेसिविर को लेकर सरकार की तरफ से कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं। अब ऐसे में अस्पताल मनमर्जी कर रहे हैं।



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श्वेता अपने पूरे परिवार के साथ दस दिनों तक चिरायु हॉस्पिटल में एडमिट रही थीं।


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मोदी ने एक देश और एक चुनाव को बताया जरूरत; लेकिन क्या ये मुमकिन है? क्या हैं इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क?

मई 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई, तो कुछ समय बाद ही एक देश और एक चुनाव को लेकर बहस शुरू हो गई। मोदी कई बार वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं। एक बार फिर उन्होंने इसे दोहराया है। संविधान दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'आज एक देश-एक चुनाव सिर्फ बहस का मुद्दा नहीं रहा। ये भारत की जरूरत है। इसलिए इस मसले पर गहन विचार-विमर्श और अध्ययन किया जाना चाहिए।'

लेकिन क्या वाकई देश में वन नेशन-वन इलेक्शन मुमकिन है। इसके पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं? आइए जानते हैं...

सबसे पहले, क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन?

वन नेशन-वन इलेक्शन या एक देश-एक चुनाव का मतलब हुआ कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

क्या वाकई इसकी जरूरत है?

दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए।

तो क्या चुनावी खर्च सरकारी है?

हां। उम्मीदवार तो अपने प्रचार का खर्च खुद उठाता है, लेकिन चुनाव कराने का पूरा खर्च सरकारी ही होता है। अक्टूबर 1979 में लॉ कमीशन ने चुनावी खर्च को लेकर गाइडलाइन जारी की थीं। इस गाइडलाइन के मुताबिक, लोकसभा चुनाव का सारा खर्च केंद्र सरकार उठाती है। इसी तरह विधानसभा चुनाव का खर्च राज्य सरकार के जिम्मे है। अगर लोकसभा चुनाव के साथ-साथ किसी राज्य में विधानसभा चुनाव भी होते हैं, तो उसका आधा-आधा खर्च केंद्र और राज्य सरकार उठाती है।

तो जानिए लोकसभा चुनावों में कितना सरकारी खर्च होता है?

इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, देश में 1952 में जब पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे, तब 10.52 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। उसके बाद 1957 और 1962 के चुनाव में सरकार का खर्च कम हुआ था। लेकिन 1967 के चुनाव से हर साल केंद्र सरकार का खर्च बढ़ता ही गया। फिलहाल 2014 के लोकसभा चुनाव तक के ही खर्च का ब्यौरा है। 2014 में 3,870 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए थे।

ये तो हुई लोकसभा चुनाव में खर्च की बात, अब चलते हैं विधानसभा चुनावों की ओर

विधानसभा चुनाव के खर्च का सही हिसाब-किताब नहीं है, लेकिन 30 अगस्त 2018 को लॉ कमीशन ने एक और रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में कमीशन ने 2014 के लोकसभा चुनाव के आसपास हुए विधानसभा चुनाव के खर्च की जानकारी दी थी। उस रिपोर्ट में कमीशन ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में कितना खर्च हुआ, इसकी तुलना की थी और पाया था कि इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के वक्त जितना सरकारी खर्च हुआ, लगभग उतना ही विधानसभा चुनाव में भी हुआ था।

तो क्या साथ चुनाव कराने से खर्चा बचाया जा सकता है?

हां। एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में बोलने वाले यही तर्क देते हैं। लॉ कमीशन और नीति आयोग की रिपोर्ट में यही कहा गया है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराए जाते हैं, तो इससे खर्चा काफी कम किया जा सकता है। हालांकि, साथ चुनाव कराने से खर्च कितना बचेगा, इसका आंकड़ा तो रिपोर्ट में नहीं दिया था।

लेकिन, साथ में चुनाव कराने से थोड़ा खर्च जरूर बढ़ेगा, लेकिन इतना नहीं जितना अलग-अलग चुनाव कराने पर बढ़ता है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। ये खर्चा इसलिए क्योंकि EVM ज्यादा लगानी पड़ेंगी। इसमें ये भी कहा गया था कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो 2024 में 1,751 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ता। यानी, धीरे-धीरे ये एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाता।

जब खर्च बच रहा है तो फिर साथ चुनाव कराने में दिक्कत क्या है?

5 साल का कार्यकालः संविधान के आर्टिकल 83 के मुताबिक, लोकसभा का कार्यकाल 5 साल तक रहेगा। जबकि, आर्टिकल 172(1) के मुताबिक, विधानसभा का कार्यकाल 5 साल तक ही रहेगा। हालांकि, आर्टिकल 83(2) में ये प्रावधान है कि लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल एक बार में सिर्फ 1 साल तक के लिए ही बढ़ाया जा सकता है, बशर्ते देश में एमरजेंसी लगी हो। 1977 में एमरजेंसी की वजह से लोकसभा का कार्यकाल 10 महीने के लिए बढ़ाया गया था।

5 साल से पहले भंग कैसे होगीः लोकसभा और विधानसभा को 5 साल से पहले किस आधार पर भंग किया जा सकता है। आर्टिकल 85(2)(b) में राष्ट्रपति के पास लोकसभा भंग करने का अधिकार है। इसी तरह से आर्टिकल 174(2)(b) में गवर्नर के पास विधानसभा भंग करने का अधिकार है। लेकिन यहां भी एक पेंच है। वो ये कि अगर राज्यपाल विधानसभा भंग करने की सिफारिश करते भी हैं और दोबारा चुनाव कराने की जरूरत पड़ती है तो संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) की मंजूरी जरूरी होगी।

अगर लोकसभा 5 साल से पहले भंग हुई तोः एक साथ चुनाव कराने में तीसरी दिक्कत ये है कि अगर लोकसभा 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई तो क्या होगा? क्योंकि अभी तक लोकसभा 6 बार 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई, जबकि एक बार इसका कार्यकाल 10 महीने के लिए बढ़ा था। मतलब अगर साथ में चुनाव हो भी जाते हैं और लोकसभा समय से पहले भंग कर दी जाती है, तो स्थिति दोबारा से वही बन जाएगी, जो अभी है। यानी, हम घूम-फिरकर दोबारा से अलग-अलग चुनाव की तरफ ही आ जाएंगे।

तो फिर कैसे हो सकते हैं एक साथ चुनाव?

लॉ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले फेज में लोकसभा चुनाव के साथ ही कुछ राज्यों के चुनाव भी करा दिए जाएं और दूसरे फेज में बाकी बचे राज्यों के चुनाव साथ में करवा दें। हालांकि, इसके लिए कुछ राज्यों का कार्यकाल बढ़ाना पड़ेगा, तो किसी को समय से पहले ही भंग करना होगा।

तो क्या राजनीतिक पार्टियां मानेंगी, जिन्हें ये करना है?

जुलाई 2018 में लॉ कमीशन ने एक साथ चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों की एक मीटिंग बुलाई थी। सिर्फ 4 पार्टियों ने ही इसका समर्थन किया, जबकि 9 विरोध में थीं। भाजपा और कांग्रेस ने इस पर कोई राय नहीं दी थी।

विरोध करने वाली पार्टियों की कई चिंताएं भी थीं। उनका कहना था कि अगर साथ चुनाव कराने के कारण समय से पहले विधानसभा भंग कर दी गई और चुनाव में रूलिंग पार्टी या गठबंधन हार गई तो? पार्टियों का ये भी कहना था कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होने से वोटर स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट डालेगा।

एक सवाल ये भी कि साथ चुनाव कराने से एक ही पार्टी को जीत मिलेगी?

राजनीतिक पार्टियों को तो इसकी चिंता है, लेकिन ऐसा कहा भी नहीं जा सकता। क्योंकि हमारे देश का वोटर अलग सोच रखता है। अगर वो लोकसभा में किसी पार्टी को जिता रहा है, तो इसका मतलब ये नहीं कि विधानसभा में भी उसे ही जिताए।

जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव से 6 महीने पहले ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव हुए। इन तीनों राज्यों में भाजपा हार गई। लेकिन जब यहां लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने यहां की 95% से ज्यादा सीटें जीत लीं। इसी तरह लोकसभा के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए। भाजपा मुश्किल से हरियाणा में सत्ता बचा पाई।

इससे समझ आता है कि 6 महीने पहले वोटर ने जिस पार्टी को चुनाव में जिताया, 6 महीने बाद उसी पार्टी को हरा भी दिया। यानी वोटर लोकसभा में और विधानसभा में अलग मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट करता है।

इतना तो ठीक है, लेकिन क्या ये अभी मुमकिन है?

फिलहाल तो एक साथ चुनाव होने की गुंजाइश नहीं दिख रही है। अभी लॉ कमीशन एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का ढांचा तैयार कर रही है। ये अभी इसलिए भी मुमकिन नहीं है क्योंकि हमारे देश में हर साल औसतन 5 राज्यों के चुनाव होते हैं। अगले साल ही जनवरी से जून के बीच 6 राज्यों में चुनाव होने हैं।



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Narendra Modi, Ek Desh Ek Chunav: One Nation One Election Pros Cons | Know How Much Election Cost In India? Know Everything About


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जब राजीव की 'बोफोर्स' के सामने खड़ी हो गई थी विपक्ष की 'तोप'; लोकसभा में 404 से 193 सीट पर सिमट गई थी कांग्रेस

बात 31 साल पहले की है। कुछ महीनों बाद ही लोकसभा चुनाव होने थे। लेकिन उसके पहले ही 24 जून 1989 को लोकसभा में बोफोर्स तोप घोटाले पर विपक्ष की तोप खड़ी हो गई थी। उस समय 514 सीटों वाली लोकसभा में विपक्ष के सिर्फ 110 सांसद ही थे।

कांग्रेस के पास 404 सांसद थे। इस दिन ने कांग्रेस की राजनीति में भूचाल ला दिया। मामला 1,437 करोड़ रुपए के बोफोर्स घोटाले का था, जिसमें स्वीडिश कंपनी AB बोफोर्स से 155 मिमी की 400 हॉविट्जर तोपों का सौदा हुआ था। 1986 में हुई बोफोर्स डील में भ्रष्टाचार और दलाली का खुलासा 1987 में स्वीडिश रेडियो ने किया था।

आरोप था कि कंपनी ने सौदे के लिए भारतीय नेताओं और रक्षा मंत्रालय को 60 करोड़ रुपए की घूस दी। नवंबर में ही चुनाव हुए। उस समय 5 पार्टियों ने मिलकर नेशनल फ्रंट बनाया, जिसके नेता थे वीपी सिंह। नतीजे आए और कांग्रेस सिर्फ 193 सीट ही जीत सकी।

नेशनल फ्रंट को भी बहुमत नहीं मिला। बाद में भाजपा और लेफ्ट पार्टियों ने भी वीपी सिंह को समर्थन दिया और प्रधानमंत्री बनाया। 29 नवंबर 1989 को राजीव गांधी ने पद से इस्तीफा दे दिया।

वीपी सिंह 2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक प्रधानमंत्री रहे थे।

हालांकि, नेशनल फ्रंट की सरकार ज्यादा नहीं चली और कुछ ही महीनों में वीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया। बाद में कांग्रेस के समर्थन से जनता दल के नेता चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। लेकिन उनकी सरकार पर राजीव गांधी की जासूसी करवाने के आरोप लगने के बाद कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार भी गिर गई।

73 साल पहले UN ने फिलिस्तीन को अरब और यहूदियों के बीच बांटने के प्रस्ताव को मंजूरी दी
29 नवंबर 1947 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को अरब और यहूदियों के बीच बांटने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। यहूदी राष्ट्र इजरायल ने प्रस्ताव माना, जबकि अरब और फिलिस्तीनी नेताओं ने इसे खारिज कर दिया। बाद में 14 मई 1948 को इजरायल का गठन हुआ। उसके बाद से ही इजरायल और फिलिस्तीन के बीच तनाव जारी है।

भारत और दुनिया में 29 नवंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैंः

  • 1516: फ्रांस और स्विट्जरलैंड ने फ्रेईबर्ग के शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • 1775: सर जेम्स जे ने अदृश्य स्याही की खोज की।
  • 1830: पोलैंड में रूस के शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ।
  • 1870: ब्रिटेन में आवश्यक शिक्षा कानून लागू हुआ।
  • 1916: अमेरिका ने डोमिनिकन रिपब्लिक में मार्शल लॉ लगाने की घोषणा की।
  • 1944: अल्बानिया को नाजी कब्जे से छुड़ाया गया।
  • 1949: पूर्वी जर्मनी में यूरेनियम खदान में विस्फोट से 3,700 लोगों की मौत।
  • 1961: दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन भारत आए।
  • 1970: हरियाणा 100 फीसदी ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य पाने वाला पहला भारतीय राज्य बना।
  • 1987: कोरियाई विमान में थाईलैंड-म्यांमार की सीमा के पास विस्फोट में 115 लोगों की मौत।
  • 2012: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा दिया।
  • 2015: अमेरिकी समाजशास्त्री और शिक्षाविद ओटो न्यूमैन का निधन।


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Today History: Aaj Ka Itihas India World November 29 | Rajiv Gandhi Resignation Date 1989, Invisible Ink Discover


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कंगना का आरोप- शाहीन बाग वाली दादी अब किसान बनकर प्रदर्शन में पहुंचीं, बिलकिस बानो ने भास्कर को बताया सच

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर किसानों के प्रदर्शन में शामिल हुई एक वृद्ध महिला की फोटो वायरल हो रही है। एक तरफ जहां महिला के हौसले की तारीफ की जा रही है। वहीं कई यूजर इन्हें फर्जी किसान बता रहे हैं।

वायरल फोटो

दावा किया जा रहा है कि किसानों के प्रदर्शन में शामिल हुई ये महिला वही मशहूर बिलकिस दादी हैं, जो शाहीन बाग के प्रदर्शन में थीं। अभिनेत्री कंगना रनोट ने 27 नवंबर रात 10 बजे फोटो को इसी दावे के साथ सोशल मीडिया पर शेयर किया। हालांकि, बाद में कंगना ने पोस्ट डिलीट कर लिया। कई सोशल मीडिया यूजर कंगना के इस दावे को सच मानकर शेयर कर रहे हैं।

और सच क्या है

  • वायरल फोटो में वृद्ध महिला एक झंडा हाथ में रखे दिख रही हैं। झंडे पर बहुमुखी में लिखे टेक्स्ट को गूगल ट्रांसलेट करने पर पता चला कि ये- भारतीय किसान यूनियन का झंडा है।
  • अलग-अलग कीवर्ड सर्च करने से भी इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पता चल सके कि वायरल फोटो में दिख रही महिला कौन हैं।
  • दैनिक भास्कर ने शाहीन बाग आंदोलन से चर्चा में आईं बिलकिस दादी से संपर्क किया। बिलकिस बानो ने भास्कर से बातचीत में कहा- फोटो मेरी नहीं है। मैं तो पिछले एक हफ्ते से अपने घर से ही नहीं निकली। फिलहाल तो आंदोलन में जाने के बारे में नहीं सोचा। आगे देखते हैं।
  • साफ है कि सोशल मीडिया पर किया जा रहा दावा फेक है। बिलकिस बानो ने खुद किसानों के प्रदर्शन में शामिल होने वाली बात से इनकार कर दिया है।


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Kangana Ranaut Shaheen Bagh Dadi Bilkis Bano Participate Haryana Punjab Farmers Protest


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3 देशों और 13 हजार KM की यात्रा के बाद न्यूजीलैंड पहुंची पाकिस्तान टीम, फिर भी हेल्थ प्रोटोकॉल फॉलो नहीं किया

न्यूजीलैंड दौरे पर पहुंची पाकिस्तान टीम के 7 खिलाड़ी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। 3 देश और 13,120 किलोमीटर की यात्रा करके ऑकलैंड पहुंची टीम पर हेल्थ प्रोटोकॉल फॉलो नहीं करने के भी आरोप लगे हैं। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के मुताबिक, रवाना होने से पहले सभी खिलाड़ियों के कोरोना टेस्ट निगेटिव आए थे। हालांकि, न्यूजीलैंड में उतरते ही 6 खिलाड़ी पॉजिटिव आए।

इतना ही नहीं न्यूजीलैंड हेल्थ डिपार्टमेंट ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर क्वारैंटाइन के दौरान आइसोलेट रहने की जगह एक-दूसरे से मिलने और साथ खाने-पीने का भी आरोप लगाया। उन्होंने बताया कि 4 खिलाड़ियों में फ्रेश संक्रमण पाया गया। जबकि 2 की कोविड हिस्ट्री होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में पाकिस्तान का न्यूजीलैंड दौरा खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है।

न्यूजीलैंड दौरे के लिए रवाना होने से पहले फखर जमां में कोरोना के लक्षण दिखने की वजह से उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था। हालांकि बाद में उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि न्यूजीलैंड में पाकिस्तान खिलाड़ी कोरोना संक्रमित कैसे हुए?

शोएब ने पूछा- चार्टर्ड प्लेन से क्यों नहीं भेजा
पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब अख्तर ने कहा कि न्यूजीलैंड में पाकिस्तानी क्रिकेटर के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) भी काफी हद तक जिम्मेदार है। PCB को अपने खिलाड़ियों को चार्टर्ड फ्लाइट से ऑकलैंड भेजना चाहिए था, जो उसने नहीं किया।

वे अपने खिलाड़ियों को पाकिस्तान से पहले दुबई ले गए। फिर वहां से कुआलालम्पुर और फिर ऑकलैंड ले गए, जिससे खिलाड़ियों पर कोरोना का खतरा ज्यादा बढ़ा। फ्लाइट में खिलाड़ियों के अलावा बाकी पैसेंजर्स भी थे, जिससे खिलाड़ी पॉजिटिव हुए होंगे।

न्यूजीलैंड में जिस होटल में ठहरे, वहां और भी लोग ठहरे
उन्होंने कहा कि इसके बाद न्यूजीलैंड को उन्हें किसी ऐसे होटल में ठहराना था, जहां सिर्फ पाकिस्तान की टीम और उसका सपोर्टिंग स्टाफ ही रुकता, लेकिन उसने सभी को ऐसे होटल में ठहरा दिया, जहां और लोग भी ठहरे हुए हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमण कैसे रोक पाएंगे? शोएब ने आरोप लगाते हुए कहा कि वहां के होटल के वेटर भी मास्क उतारकर घूम रहे हैं।

पाकिस्तान को जिस होटल में आइसोलेट किया गया है, उसके बाहर डिफेंस स्टाफ और टाइट सिक्योरिटी देखी गई।

रवाना होने से पहले फखर जमां में दिखे थे कोरोना के लक्षण
न्यूजीलैंड रवाना होने से पहले पाकिस्तान टीम के प्लेयर फखर जमां में कोरोना के लक्षण दिखाई दिए थे। इस कारण उन्हें पहले ही सीरीज से बाहर कर दिया गया था। फखर को फीवर था। हालांकि फखर की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई थी।

4 नए संक्रमित, 2 की कोविड हिस्ट्री होने की आशंका
मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ के मुताबिक, जिन 6 खिलाड़ियों में कोरोना की पुष्टि हुई थी, उनमें 4 में कोरोना फ्रेश केस हैं। वहीं, 2 की कोविड हिस्ट्री होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में अगर टीम होटल में प्रोटोकॉल नहीं मान रही, तो यह पूरे टीम के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है।

पाकिस्तान क्रिकेट टीम को क्राइस्टचर्च स्थित होटल में आइसोलेट किया गया है।

टीम के खिलाड़ियों पर प्रोटोकॉल तोड़ने के आरोप
पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) के CEO वसीम खान ने कहा था कि उन्होंने न्यूजीलैंड सरकार से बात की। न्यूजीलैंड सरकार ने बताया कि पाकिस्तानी टीम ने 3 से 4 स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (SOP) का उल्लंघन किया। न्यूजीलैंड में इसके लिए जीरो टॉलरेंस पॉलिसी है। उन्होंने हमें फाइनल वॉर्निंग दी है।

मुझे पता है कि ये हमारे लिए मुश्किल समय है। हमें इंग्लैंड में भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था। दावा किया गया कि पाकिस्तानी खिलाड़ी होटल में सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। सीसीटीवी फुटेज में खिलाड़ी होटल में घूमते और एक-दूसरे से खाना शेयर करते दिखाई दे रहे हैं।

न्यूजीलैंड के लिए दौरा क्यों जरूरी
न्यूजीलैंड क्रिकेट पर वेस्टइंडीज, पाकिस्तान (34 खिलाड़ी और 20 सपोर्ट स्टाफ), ऑस्ट्रेलिया और बांग्लादेश के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की महिला क्रिकेट टीम के MIQ (मैनेज्ड आइसोलेशन एंड क्वारैंटाइन) के लिए 2 मिलियन डॉलर (14.93 करोड़ ज्यादा) से ज्यादा का बिल फेस कर रहा है। बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, बोर्ड प्रेसिडेंट ग्रेग बार्कले पहले ही कह चुके हैं कि बोर्ड इस सीजन में करीब 3.5 मिलियन (25.88 करोड़ रुपए) के नुकसान का सामना कर रहा है।

इंग्लैंड दौरे से पहले 10 खिलाड़ी संक्रमित हुए थे
पाकिस्तान टीम ने कोरोना के बीच जुलाई में अपना पहला दौरा इंग्लैंड का किया था। तब 28 जून को इंग्लैंड रवाना होने से पहले पाकिस्तान के 10 प्लेयर्स संक्रमित पाए गए थे। यह खिलाड़ी हैदर अली, हरीस रउफ, शादाब खान, मोहम्मद हफीज, वहाब रियाज, फखर जमां, इमरान खान, काशिफ भट्टी, मोहम्मद हसनैन और मोहम्मद रिजवान थे।

IPL जैसे बड़े टूर्नामेंट बायो-बबल माहौल में हुए
19 सितंबर से 10 नवंबर तक यूएई में इंडियन प्रीमियर लीग के 13वें सीजन का आयोजन किया गया। टूर्नामेंट बायो-सिक्योर माहौल में कराया गया। टीम के खिलाड़ियों को बबल से बाहर जाने या किसी को बबल में प्रवेश की इजाजत नहीं थी। टूर्नामेंट शुरू होने से पहले चेन्नई सुपर किंग्स के दीपक चाहर और ऋतुराज गायकवाड़ कोरोना की चपेट में आ गए थे। हालांकि इसके बाद पूरे टूर्नामेंट में कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया था।

IPL के दौरान करीब 40 हजार लोगों का टेस्ट हुआ
बोर्ड प्रेसिडेंट सौरव गांगुली ने बताया था IPL के लिए तैयार किए गए बायो-बबल में 400 लोग रुक रहे थे। ढाई महीनों में करीब 30 से 40 हजार टेस्ट कराए गए, ताकि सभी सुरक्षित रह सकें। गांगुली ने कहा था कि कोरोना के बीच टूर्नामेंट में दुनियाभर के खिलाड़ियों की भागीदारी के बाद भी हम सफलतापूर्वक इसका आयोजन करा सके, इससे मैं बहुत खुश हूं।



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pakistan tour of new zealand: 7 pakistan cricketer tests positive for covid 19 in new zealand isolated at hotel in Christchurch, violated covid protocol


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पुरुषों की जरूरतें बगैर डर पूरी हो सकें, इसके लिए कंडोम बांटा जा सकता है, तो औरतों के लिए सैनेटरी पैड क्यों नहीं

स्कॉटलैंड से खबर आई है। वहां औरतें को पीरियड से जुड़े उत्पाद नहीं खरीदने होंगे। स्कॉटिश संसद ने माना कि कोरोना-काल में पीरियड पॉवर्टी बढ़ी है। यानी पगार कम होने का असर सिर्फ रोटी पर नहीं पड़ा, बल्कि पहली मार औरतों की गैर-जरूरतों पर पड़ी। यानी सैनेटरी पैड। आखिर लिपस्टिक की तरह ये भी गैरजरूरी खर्च है। लिहाजा कटौती हुई और औरतों को घर के पुराने कपड़ों का रास्ता दिखा दिया गया।

शादी के बाद दुल्हन के अरमानों की तरह मुसी हुई चादर की कतरनें काटकर बंटवारा हुआ। ये वाला मां लेगी। ये वाला हिस्सा बेटी का। धोने के बाद घर के किसी गीले-सीले कोने में सुखाने का इंतजाम हुआ। और सूखने के बाद अगले पीरियड तक रखने के लिए कोने खोजे गए। पुराने समय में मुसीबत के वक्त राजाओं के छिपने के बंदोबस्त भी क्या ही इतने पुख्ता होते होंगे, जितनी गुप्त जगहें इन कपड़ों के लिए एक कमरे वाले घरों ने खोज निकालीं।

कई जगहों के हाल इससे भी खराब हैं। वहां तन ढंकने के कपड़े पूरे नहीं पड़ते तो खून सोखने के कहां से आएं! वहां के समाज ने इसका भी तोड़ खोज निकाला। औरतों को रेत दे दी या वो भी नहीं मिला तो नारियल की जूट। जिन दिनों में महीन से महीन कपड़ा जांघों में जख्म ला देता है, उन दिनों के लिए नारियल की जूट से बढ़िया क्या सजा होगी। शिकायत करें तो फट से सुनें- अभी से रो रही हो। जब बच्चा पैदा करोगी तो क्या हाल होगा। नतीजा! दर्द से ऐंठती औरतें संक्रमण से मरने लगीं।

वॉटर एड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल दुनियाभर में 8 लाख के करीब औरतें इसी दौरान होने वाले संक्रमण से मरती हैं। इस दौरान या फिर बच्चे के जन्म के बाद साफ-सफाई की कमी औरतों की मौत का पांचवां सबसे बड़ा कारण बन चुकी है। दसरा (Dasra) की एक रिपोर्ट बताती है कि कैसे हर साल 23 मिलियन लड़कियां पीरियड शुरू होते ही स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं। क्योंकि, स्कूलों में टॉयलेट की व्यवस्था नहीं। पीरियड के दौरान लड़कियों से छेड़छाड़ तो जैसे चना-मुर्रा है।

स्कूल तो स्कूल, अंग्रेजीदां कॉर्पोरेट भी इससे बचे हुए नहीं। जहां कोई औरत जरा चिड़चिड़ाई कि फौरन ऐलान हो जाता है- लगता है, फलां का टाइम आ गया! दिलदार-दिल्ली के हाल और भी खराब हैं। वहां मेट्रो की रेड लाइन के नाम पर लड़के ठहाके मारते और लड़कियों को घूरते कहीं भी दिख जाएंगे। मेट्रो में दफ्तर या कॉलेज से थकी, और तिसपर पीरियड के दर्द से दोहरी-तिहरी होती लड़कियों के चेहरे अलग से दिख जाएंगे। उन चेहरों को गौर से देखते और कानों में ईयरफोन ठूंसे चेहरे भी दिखते हैं, जो इत्मीनान से सीटों में धंसे होते हैं। औरतों को लेडीज सीट तो मिली हुई है। अब क्या अपना हक भी दे दें, का भाव बहुतेरे चेहरों का स्थायी भाव हो गया है।

पड़ोस का मुल्क नेपाल इस मामले में हमसे भी कई कदम आगे हैं। वहां चौपदी प्रथा के तहत पीरियड्स आते ही बच्ची हो या पचास-साला- सबको गांव से बाहर एक फूस-मिट्टी की बनी झोपड़ी में रहना होता है। कई गांवों में अलग घर नहीं होते तो उन्हें जानवरों के बीच रहना होता है। धोने-सुखाने का कोई बंदोबस्त नहीं। पास की नदी भी किलोमीटरों दूर। ऐसे में सालाना कई बच्चियां दम तोड़ देती हैं।

जो संक्रमण से नहीं मरतीं, वे किसी और कारण से मरती हैं। जैसे सांप काटने या फिर ठंड से। इससे भी कोई बच जाए तो बलात्कार तो है ही। गांव से बाहर सुनसान में इन अपवित्र औरतों का बलात्कार कर अघाए मर्द आराम से अपनी कुटिया लौट जाते हैं। इसके बाद औरत महीना-दर-महीना या तो रेप झेलती है या बच सकी तो डर से मरती है।

अमेरिकी खोजकर्ता एलन मस्क मंगल और चांद पर इंसानों को बसाने की तकनीक खोज रहे हैं। इधर मांएं अपनी बच्चियों को पीरियड का राज खुसपुसाते हुए बता रही हैं। पापा से मत बताना। भैया से मत कहना। पड़ोसी लड़कों के साथ उछल-कूद बंद। खून की वो पहली बूंद लड़कियों को उतना दर्द नहीं देती, जितना मां या दूसरी औरतों की ये घुट्टी।

खुद को आधुनिक बताता एक दूसरा तबका भी है, जो विज्ञापन में सैनेटरी पैड हिलाते हुए हरदम खिला हुआ रहने के नुस्खे देता है। यानी पैड लगाने भर से दर्द छूमंतर हो जाएगा। नतीजा ये कि सामर्थ्यवान मर्द नमक-तेल की तरह सैनेटरी पैड भी स्टॉक कर देता है। साथ में ये भाव रहता है कि देखो, अब दर्द का रोना मत रोना। बॉस, पीरियड एक हार्मोनल बदलाव है, जिसमें खून के साथ-साथ थक्के भी निकलते हैं। पैड खून रोकता है, दर्द नहीं.

कुछ सालों पहले यौन-बीमारियों से बचाने के लिए मुफ्त कंडोम बांटना शुरू किया गया। आज भी आंगनबाड़ी कार्यकताएं कंडोम वितरण करती हैं। साथ में एक पिटाया-पिटाया तर्क पुतले की तरह दोहराती चलती हैं कि इससे औरतों का ही भला होगा। अनचाहा बच्चा पेट में नहीं आएगा। या फिर मर्द की मुंहमारी का अंजाम औरतें नहीं भुगतेंगी। लेकिन अगर पुरुषों की यौन जरूरतें बगैर डर पूरी हो सकें, इसके लिए कंडोम दिया जा सकता है, तो औरतों के लिए सैनेटरी पैड क्यों नहीं! स्कॉटलैंड ने शुरुआत की, अब हमारी बारी है।



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Condoms can be distributed to meet the needs of men without fear, so why not a sanitary pad for women


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1. कोरोना वायरस महामारी के नए उफान ने डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को बुरी तरह प्रभावित किया है। अमेरिका के 12% स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हुए हैं, वहीं ब्रिटेन में 40% से अधिक डॉक्टर मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे हैं। समस्याओं के मुख्य केंद्र जानने के लिए पढ़ें ये लेख...

अमेरिका में 800 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत, ब्रिटेन में 40% डॉक्टर मानसिक बीमारियों से पीड़ित

2. टाइम मैग्जीन ने 2020 की सर्वश्रेष्ठ किताबों की सूची जारी की है। इसमें भारतीय मूल की दो लेखिकाओं- मेघा मजूमदार और दीपा अनप्परा के उपन्यासों को शामिल किया है। इनमें से सात किताबों का ब्योरा पेश है इस लेख में...

2020 की 100 सर्वश्रेष्ठ किताबों की सूची, भारतीय मूल के दो लेखकों की किताबें शामिल

3. गेम कंसोल प्ले-स्टेशन का नया स्पाइडरमैन गेम अमेरिका में रंगभेद की झलक को दर्शाता है। प्ले-स्टेशन वीडियो गेम का स्पाइडरमैन अश्वेत है। रोमांच से भरपूर इस गेम का क्या है मुख्य आकर्षण जानें इस लेख में...

प्लेस्टेशन वीडियो गेम का स्पाइडरमैन अश्वेत है

4. अमेरिका में कोरोना वायरस के दोबारा तेजी से फैलने के बीच पर्यटन स्थल हवाई को फिर खोलने पर स्थानीय लोग चिंतित हैं। वहीं कुछ लोग टूरिस्ट की वापसी को द्वीप के लिए अच्छा मानते हैं। महामारी के चलते हवाई में पर्यटकों के लिए क्या है नई व्यवस्था? जानने के लिए पढ़ें ये लेख...

हवाई में पर्यटकों की वापसी ने चिंता पैदा की



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MP के स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. प्रभुराम ने स्वीकारा- नवंबर के तीसरे सप्ताह में ही आ गई कोरोना की दूसरी लहर

मध्य प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर आ चुकी है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी ने भी इसे स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा- नवंबर के तीसरे सप्ताह में कोरोना संक्रमण के केस अचानक बढ़ गए। पहले और दूसरे सप्ताह में इसके संकेत मिलना शुरू हो गए थे, लेकिन इसके बाद प्रदेश में पॉजिटिव मरीजों की संख्या एक दिन में 1500 से ज्यादा होने लगे तब यह स्पष्ट हो गया कि संक्रमण एक बार फिर पैर पसार रहा है।

उन्होंने कहा कि नवंबर के पहले और दूसरे सप्ताह में यह आंकड़ा 1 हजार से नीचे था। ऐसे में अब ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। यही वजह है कि भोपाल, इंदौर सहित जिन जिलों में कोरोना केस बढ़े हैं, वहां नाइट कर्फ्यू लगाने का निर्णय लिया गया। प्रदेश के 60% पॉजिटिव मरीज होम आइसोलेशन में हैं। लेकिन स्थिति बिगड़ती है तो उन्हें अस्पताल में इलाज उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था है।

सवाल: लगातार नए केस बढ़े हैं। वेंटिलेटरों की डिमांड है, कितनी तैयारी है, बेड कम तो नहीं पड़ेंगे?

चौधरी: वेंटिलेटर की व्यवस्था जिला मुख्यालय, खासकर कोविड सेंटर में पर्याप्त है। सरकार की तरफ से कोई कोताही नहीं बरती जा रही है। लगातार मॉनिटरिंग हो रही है।

सवाल: दिसंबर में संक्रमण बढ़ने के आसार दिख रहे हैं। सरकार की रणनीति क्या है?

जवाब: रणनीति सिर्फ यही है कि संक्रमण को रोका जाए। इसके लिए जनता का सहयोग जरूरी है। कोरोना की गाइडलाइन का पालन प्रदेशवासियों को करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। प्रदेश के कई जिलों में जुर्माना भी लगाया गया है।

सवाल: भारत बायोटेक की को-वैक्सीन का ट्रायल प्राइवेट कॉलेज में हो रहा है, सरकारी मेडिकल कॉलेज जीएमसी (गांधी मेडिकल कॉलेज ) को अब तक अनुमति नहीं मिली, क्या कमियां रह गईं?

जवाब: देश में जो कंपनियां वैक्सीन पर काम कर रहीं हैं, वे तय करती हैं कि इसका ट्रायल किस कॉलेज में किया जाएगा। सवाल गांधी मेडिकल कॉलेज को लेकर है तो मुझे इसकी जानकारी नहीं है कि क्यों इस कॉलेज में ट्रायल नहीं हो पा रहा है। इसकी जानकारी विभाग के अफसरों से ली जाएगी।

सवाल: वैक्सीन की प्राथमिकता क्या होगी। सबसे पहले किसे देंगे। फिर क्या क्रम रहेगा। निजी कंपनियां को वैक्सीन बेचने की अनुमति मिलती है तो इसके दाम पर कंट्रोल कैसे रहेगा?

जवाब: इसके लिए गाइडलाइन केंद्र सरकार बना रही है। वैक्सीन की उपलब्धता पर यह ज्यादा निर्भर करेगा कि सरकार की प्राथमिकता क्या होगी। हालांकि केंद्र सरकार की गाइडलाइन पर ही काम होगा।

सवाल: वैक्सीन आने पर क्या उसे सभी को फ्री लगाया जाएगा या सरकार ने कोई व्यवस्था बनाई है।

जवाब: अभी वैक्सीन आई नहीं है। जब उपलब्ध हो जाएगी, उसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

सवाल: कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए अस्थाई रूप से कर्मचारियों को रखा गया था, लेकिन अब उनकी सेवाएं समाप्त की जा रही हैं। वह भी ऐसे समय में जब संक्रमण बढ़ा है।

जवाब: मेरे संज्ञान में यह मामला आया है। इस बारे में विभाग के अफसरों से बात करके वस्तुस्थिति की जानकारी लूंगा।



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मप्र के स्वास्थ्यमंत्री डाॅ. प्रभुराम ने कहा कि प्रदेश के 60% पॉजिटिव मरीज होम आइसोलेशन में हैं। स्थिति बिगड़ती है तो उन्हें अस्पताल में इलाज उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था है।


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जब राजीव की 'बोफोर्स' के सामने खड़ी हो गई थी विपक्ष की 'तोप'; लोकसभा में 404 से 193 सीट पर सिमट गई थी कांग्रेस

बात 31 साल पहले की है। कुछ महीनों बाद ही लोकसभा चुनाव होने थे। लेकिन उसके पहले ही 24 जून 1989 को लोकसभा में बोफोर्स तोप घोटाले पर विपक्ष की तोप खड़ी हो गई थी। उस समय 514 सीटों वाली लोकसभा में विपक्ष के सिर्फ 110 सांसद ही थे।

कांग्रेस के पास 404 सांसद थे। इस दिन ने कांग्रेस की राजनीति में भूचाल ला दिया। मामला 1,437 करोड़ रुपए के बोफोर्स घोटाले का था, जिसमें स्वीडिश कंपनी AB बोफोर्स से 155 मिमी की 400 हॉविट्जर तोपों का सौदा हुआ था। 1986 में हुई बोफोर्स डील में भ्रष्टाचार और दलाली का खुलासा 1987 में स्वीडिश रेडियो ने किया था।

आरोप था कि कंपनी ने सौदे के लिए भारतीय नेताओं और रक्षा मंत्रालय को 60 करोड़ रुपए की घूस दी। नवंबर में ही चुनाव हुए। उस समय 5 पार्टियों ने मिलकर नेशनल फ्रंट बनाया, जिसके नेता थे वीपी सिंह। नतीजे आए और कांग्रेस सिर्फ 193 सीट ही जीत सकी।

नेशनल फ्रंट को भी बहुमत नहीं मिला। बाद में भाजपा और लेफ्ट पार्टियों ने भी वीपी सिंह को समर्थन दिया और प्रधानमंत्री बनाया। 29 नवंबर 1989 को राजीव गांधी ने पद से इस्तीफा दे दिया।

वीपी सिंह 2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक प्रधानमंत्री रहे थे।

हालांकि, नेशनल फ्रंट की सरकार ज्यादा नहीं चली और कुछ ही महीनों में वीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया। बाद में कांग्रेस के समर्थन से जनता दल के नेता चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। लेकिन उनकी सरकार पर राजीव गांधी की जासूसी करवाने के आरोप लगने के बाद कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार भी गिर गई।

73 साल पहले UN ने फिलिस्तीन को अरब और यहूदियों के बीच बांटने के प्रस्ताव को मंजूरी दी
29 नवंबर 1947 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को अरब और यहूदियों के बीच बांटने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। यहूदी राष्ट्र इजरायल ने प्रस्ताव माना, जबकि अरब और फिलिस्तीनी नेताओं ने इसे खारिज कर दिया। बाद में 14 मई 1948 को इजरायल का गठन हुआ। उसके बाद से ही इजरायल और फिलिस्तीन के बीच तनाव जारी है।

भारत और दुनिया में 29 नवंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैंः

  • 1516: फ्रांस और स्विट्जरलैंड ने फ्रेईबर्ग के शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • 1775: सर जेम्स जे ने अदृश्य स्याही की खोज की।
  • 1830: पोलैंड में रूस के शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ।
  • 1870: ब्रिटेन में आवश्यक शिक्षा कानून लागू हुआ।
  • 1916: अमेरिका ने डोमिनिकन रिपब्लिक में मार्शल लॉ लगाने की घोषणा की।
  • 1944: अल्बानिया को नाजी कब्जे से छुड़ाया गया।
  • 1949: पूर्वी जर्मनी में यूरेनियम खदान में विस्फोट से 3,700 लोगों की मौत।
  • 1961: दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन भारत आए।
  • 1970: हरियाणा 100 फीसदी ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य पाने वाला पहला भारतीय राज्य बना।
  • 1987: कोरियाई विमान में थाईलैंड-म्यांमार की सीमा के पास विस्फोट में 115 लोगों की मौत।
  • 2012: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा दिया।
  • 2015: अमेरिकी समाजशास्त्री और शिक्षाविद ओटो न्यूमैन का निधन।


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Today History: Aaj Ka Itihas India World November 29 | Rajiv Gandhi Resignation Date 1989, Invisible Ink Discover


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