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Saturday, September 19, 2020

पत्नी के गर्भ में लड़का है या लड़की, पता लगाने को 5 बेटियों के पिता ने काट डाला पेट

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बदायूं (Budaun) में पांच बेटियों के एक पिता ने शनिवार शाम को...

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आज राज्यसभा में पेश होंगे किसानों से जुड़े तीन बिल, सरकार ने बनाई ये खास रणनीति

किसानों के लिए लाए जा रहे तीन कृषि विधेयकों को लेकर आज सड़क से संसद तक विरोध प्रदर्शनों के आसार हैं. इन विधेयकों को लेकर विपक्ष के तेवर तो गरम हैं ही, NDA की सहयोगी अकाली दल के सुर भी बागी हो गए हैं, लेकिन तमाम विरोधों के बीच सरकार इन विधेयकों को आज राज्य सभा में पेश करेगी.

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सुशांत सिंह राजपूत को दोस्त ने Roar सॉन्ग के जरिए दी आखिरी विदाई, बोले- अब आराम करो भाई, हम दहाड़ेंगे...

सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) मामले में ड्रग्स के एंगल ने सबको सकते में डाल...

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कृषि विधेयकों के खिलाफ हरसिमरत का इस्तीफा साहसिक और ऐतिहासिक : प्रकाश सिंह बादल

शिरोमणि अकाली दल (SAD) के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल (Parkash Singh Badal) ने केंद्रीय...

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टिकटॉक ने अपने अमेरिकी कारोबार को लेकर ओरेकल और वॉलमार्ट के साथ प्रस्तावित समझौते की पुष्टि की

जाने-माने वीडियो ऐप टिकटॉक (TikTok) ने शनिवार को घोषणा की कि उसने ओरेकल (Oracle) के साथ...

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Updates: India's Covid Tally Crosses 53-Lakh Mark, Total 85,619 Deaths

India's COVID-19 case tally crossed the 53-lakh mark with a spike of 93,337 new cases in last 24 hours, data released by the Health Ministry on Saturday showed. The total number of confirmed cases now...

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कंगना पर टिका है इंडस्ट्री का 250 करोड़ का दांव; सुशांत केस में कैसे हुई लापरवाही; IPL में आज पंजाब से भिड़ेगी दिल्ली

कारोबार जगत से खबर है कि ई-कॉमर्स कंपनियां दिवाली पर 50 हजार करोड़ का बिजनेस कर सकती हैं, जो 4 साल पहले तक 1 हजार करोड़ रुपए से भी कम था। वहीं, संसद का मानसून सत्र जल्द खत्म होने की संभावना है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...

आज इन 3 इवेंट्स पर रहेगी नजर
1. IPL में आज दिल्ली कैपिटल्स और किंग्स इलेवन पंजाब के बीच मुकाबला होगा। शाम 7 बजे टॉस होगा और 7:30 बजे से मैच शुरू होगा।
2. हरियाणा में कृषि विधेयक के विरोध में किसान संगठनों ने आज रोड जाम करने का ऐलान किया है।
3. हिमाचल प्रदेश में आज से 12 रूट पर नाइट बस सर्विस शुरू हो जाएगी।

अब कल की 7 महत्वपूर्ण खबरें
1. कंगना पर इंडस्ट्री के 250 करोड़ से ज्यादा दांव पर
कंगना रनोट की 4 फिल्में 'तेजस', 'धाकड़', थलाइवी' और 'इमली' कतार में हैं। ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन की मानें तो कंगना की हर फिल्म का एवरेज बजट 60-70 करोड़ रुपए पहुंच जाता है। इस हिसाब से कंगना पर बॉलीवुड के 250-300 करोड़ रुपए दांव पर लगे हैं। -पढ़ें पूरी खबर

2. सुशांत मामले में एम्स की टीम अगले हफ्ते रिपोर्ट सौंपेगी
सुशांत सिंह राजपूत का विसरा सही तरीके से सुरक्षित नहीं किया गया था। सूत्रों ने बताया कि एम्स के फोरेंसिक डिपार्टमेंट को जो विसरा मिला है, वह काफी कम और विकृत (डिजेनरैटिड) है। इससे जांच में मुश्किल हो रही है। सुशांत की मौत के मामले में एम्स की टीम अगले हफ्ते रिपोर्ट सौंपेगी। -पढ़ें पूरी खबर

3. बंगाल-केरल से अलकायदा के 9 आतंकी पकड़ाए
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने शनिवार को पश्चिम बंगाल और केरल में छापे मारकर अलकायदा के नौ आतंकियों को गिरफ्तार किया। इनमें से छह आतंकी मुर्शिदाबाद से और तीन एर्नाकुलम से पकड़ाए। इन्हें सोशल मीडिया से पाकिस्तान स्थित अलकायदा आतंकवादियों ने कट्टरपंथी बनाया था। -पढ़ें पूरी खबर

4. 22 साल में 29 पार्टियों ने छोड़ा एनडीए का साथ
एनडीए के गठन से लेकर अब तक 22 साल हो चुके हैं। इस दौरान 29 पार्टियों ने एनडीए छोड़ दिया। अब सिर्फ बची है प्रकाश सिंह बादल की पार्टी अकाली दल। हालांकि, किसानों के मुद्दे पर इसने भी बागी तेवर दिखाए हैं। अब एनडीए में 26 पार्टियां हैं। जानिए अब तक कौन आया और गया? -पढ़ें पूरी खबर

5. भारत-चीन सीमा पर तैनात डॉक्टर-सोल्जर्स की कहानी
लद्दाख में आईटीबीपी की डॉक्टर हैं डॉ. कात्यायनी। वे कहती हैं, 'माइनस 50 डिग्री तापमान के बीच जब ये सैनिक फॉरवर्ड पोस्ट पर तैनात होते हैं तो स्नो ब्लाइंडनेस के शिकार हो जाते हैं। कई बार जब वो अपने सैनिक को इंजेक्शन देने के लिए दवाई बाहर निकालती हैं तो वो बर्फ बन चुकी होती है।' -पढ़ें पूरी खबर

6. ई-कॉमर्स कंपनियां कर सकती है 50 हजार करोड़ रु. तक का कारोबार
रेडसीर (Redseer) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल फेस्टिव सीजन में ई-कॉमर्स का ग्रॉस मर्चेंडाइज वॉल्यूम 7 बिलियन डॉलर (51.52 हजार करोड़ रु.) तक पहुंच सकता है। भारत सहित दुनियाभर में कोरोना का असर कारोबार पर भी पड़ा है। कारोबारियों को अब फेस्टिव सीजन का इंतजार है। -पढ़ें पूरी खबर

7. वैष्णो देवी में 5000 लोग कर सकेंगे दर्शन, बाहरी राज्यों से सिर्फ 500 ही
वैष्णोदेवी मंदिर से लेकर तिरुपति तक, अब श्रद्धालुओं की संख्या और दान की राशि में बढ़ोतरी हो रही है। वैष्णो देवी में 5000 लोग कर सकेंगे दर्शन जबकि बाहरी राज्यों से सिर्फ 500 लोग ही शामिल हो सकेंगे। शिरडी के साईं मंदिर को लॉकडाउन में 20.76 करोड़ रुपए का दान मिला है। -पढ़ें पूरी खबर

अब 20 सितंबर का इतिहास

1933: सामाजिक कार्यकर्ता और हिंदुस्‍तान की आजादी के लिए लड़ने वाली अंग्रेज महिला एनी बेसेंट का निधन हुआ था।
1948: भारतीय फिल्म डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और स्क्रिप्ट लेखक महेश भट्ट का जन्म हुआ।
1984: लेबनान की राजधानी बेरूत में स्थित अमेरिकी दूतावास पर आत्मघाती हमला किया था।

जाते-जाते अब जिक्र गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का। आज ही के दिन 1911 में उनका जन्म हुआ था। पढ़िए उनका एक विचार।



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Kangna's industry bets 250 crore; How negligence happened in Sushant case; Delhi will face Punjab in IPL today


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47 साल पहले बिली जीन किंग ने जीता था 'बैटल ऑफ द सेक्सेस', पुरुष टेनिस खिलाड़ी बॉबी रिग्स को सीधे सेट्स में हराया था

आज का दिन महिलाओं के लिए बहुत खास है। इससे जुड़ी घटना भले ही टेनिस की है, लेकिन इसने महिला अधिकारों, खास तौर पर खेलों में बराबरी की नींव रखी थी। 'बैटल ऑफ सेक्सेस' कहकर प्रचारित 1973 में खेले गए इस टेनिस मुकाबले में एक लाख डॉलर की पुरस्कार राशि थी। उस समय 29 साल की बिली जीन किंग ने 55 साल की पूर्व नंबर एक टेनिस खिलाड़ी बॉबी रिग्स की चुनौती स्वीकार की थी। दरअसल, रिग्स का दावा था कि महिलाओं के टेनिस में कोई दम नहीं है। वह इस उम्र में भी किसी भी महिला टेनिस खिलाड़ी को हरा सकते हैं। हालांकि, उनका दावा खोखला साबित हुआ। बिली किंग ने ह्यूस्टन एस्ट्रोडोम में खेले गए मैच में सीधे सेट्स में 6-4, 6-3, 6-3 से हराया था।

यह टेनिस मुकाबला काफी लोकप्रिय हुआ। 30 हजार दर्शकों ने ह्यूस्टन एस्ट्रोडोम में मैच को देखा जबकि करीब 5 करोड़ लोगों ने टीवी पर। किंग ने टेनिस कोर्ट पर क्लियोपाट्रा की स्टाइल में पुरुष गुलामों के साथ प्रवेश किया था। वहीं, रिग्स महिला मॉडल्स के साथ कोर्ट पहुंचे थे। किंग की जीत ने महिलाओं के प्रोफेशनल टेनिस को स्थापित करने में मदद की। साथ ही महिला एथलीट्स की क्षमता को भी साबित किया। इस जीत को महिलाओं के अधिकारों की जीत के तौर पर भी देखा गया।

1857 में दिल्ली पर कब्जे के साथ कमजोर हुआ पहला स्वतंत्रता संग्राम

ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में 20 सितंबर एक अहम पड़ाव साबित हुआ। तब भारतीय राजाओं ने बड़े भूभाग पर कब्जा जमाकर वहां से अंग्रेजों को भगा दिया था। लेकिन कंपनी ने पलटवार किया। इंग्लैंड से गोला-बारूद मंगवाया गया। पहला पड़ाव था दिल्ली। कंपनी की फौजों ने जुलाई से लेकर सितंबर तक दिल्ली की घेराबंदी कर रखी थी। जैसे ही अतिरिक्त गोला-बारूद दिल्ली के पास पहुंचा, कंपनी की जीत आसान हो गई। 20 सितंबर को अंग्रेज फौजों ने दिल्ली पर फिर कब्जा कर लिया था। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की आंखों के सामने उनके तीन बेटों को गोली मारी गई। बाद में उन पर मुकदमा चलाकर उम्रकैद की सजा दी गई। रंगून की जेल में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।

2004 में इसरो ने पहला एजुकेशन सैटेलाइट एडुसेट लॉन्च किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो ने 20 सितंबर 2004 को जीसैट-3 लॉन्च किया था, जिसे जिसे एडुसैट के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत का पहला डेडिकेटेड एजुकेशनल सैटेलाइट है। इससे सैटेलाइट-बेस्ड टू-वे कम्युनिकेशन स्थापित हुआ, जिससे क्लासरूम में एजुकेशनल कंटेंट डिलीवर किया जा रहा है। कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान एडुसैट का इस्तेमाल कई राज्यों में सरकारी स्कूलों तक एजुकेशनल कंटेंट पहुंचाने के लिए हुआ है।

2011 में अमेरिका में डोंट आस्क, डोंट टेल पॉलिसी खत्म

20 सितंबर 2011 को अमेरिकी मिलिट्री में डोंट आस्क, डोंट टेल पॉलिसी खत्म हुई। 1990 में क्लिंटन प्रशासन ने मिलिट्री में समलैंगिकों की इंट्री पर प्रतिबंध लगाया था। इसे ही बाद में डोंट आस्क, डोंट टेल पॉलिसी नाम दिया गया। इसके तहत समलैंगिकों को तब तक काम करने की इजाजत थी, जब तक कि उनकी पहचान साबित नहीं होती या जांच में सामने नहीं आ जाती। प्रेसिडेंट बराक ओबामा ने कांग्रेस में रिपब्लिकन पार्टी के विरोध के बाद भी इस पॉलिसी को खत्म किया था।

इतिहास में आज को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता है...

  • 1946: फ्रेंच रिविएरा की रिजॉर्ट सिटी में पहले कांस फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत हुई।
  • 1965: यूएन सिक्योरिटी काउंसिल ने सर्वसम्मति से भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोकने के लिए प्रस्ताव पास किया। भारत ने इस प्रस्ताव को 21 सितंबर को और पाकिस्तान ने 22 सितंबर को स्वीकार किया था। 23 सितंबर को युद्ध खत्म हुआ था।
  • 1970: रूसी प्रोब ने चांद की सतह से चट्टानों के टुकड़े इकट्ठा किए थे।
  • 1984: लेबनान की राजधानी बेरूत में स्थित अमेरिकी एम्बेसी पर आत्मघाती हमला हुआ।
  • 1996: बेनजीर भुट्टो के भाई मुर्तजा भुट्टो और उनके छह फॉलोवरों की कराची में पुलिस से भिड़ंत में मौत हो गई थी। मुर्तजा भुट्टो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के शहीद भुट्टो धड़े का नेतृत्व करते थे।
  • 2001: अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 9/11 के आतंकी हमले के बाद वॉर ऑन टेरर की घोषणा की। इस शब्द का इस्तेमाल यूनाइटेड स्टेट्स कांग्रेस में बुश ने अपने भाषण में किया था।
  • 2003ः संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर इजरायल से फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा।
  • 2006ः ब्रिटेन के रॉयल बॉटेनिकल गार्डन्स में 200 वर्ष पुराने बीज उगाने में कामयाबी मिली।
  • 2008: इस्लामाबाद के मैरियट होटल में कार बम हमला। चेक राजदूत और तीन अमेरिकियों समेत 54 लोग मारे गए थे। अल-कायदा से लिंक तालिबान आतंकियों ने इसकी जिम्मेदारी ली थी।
  • 2009ः मराठी फिल्म 'हरिशचन्द्राची फैक्ट्री' को ऑस्क अवार्ड्स की विदेशी फिल्म कैटिगरी में भारत की एंट्री के तौर पर चुना गया।
  • 2010: मध्य प्रदेश के शिवपुरी में रेल हादसे में 21 लोगों की मौत हो गई। बदरवास स्टेशन पर खड़ी यात्री ट्रेन से मालगाड़ी टकरा गई।

जन्मदिन

  • 1899: लियो स्ट्रॉस (जर्मन-अमेरिकी राजनीतिक दार्शनिक)
  • 1911: श्रीराम शर्मा आचार्य (ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार के संस्थापक)
  • 1948: महेश भट्ट (फिल्म निर्देशक और निर्माता)
  • 1946: मार्कंडेय काटजू (पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज)


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Today History for September 20th/ What Happened Today | 1973 Battle of Sexes Billie Jean King vs Bobby Riggs | East India Company recpatured Delhi 1857| Dont Talk Dont tell policy ends in America| Edusat launched


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किंग्स इलेवन पंजाब ने 6 साल पहले यूएई में आईपीएल के सभी 5 मैच जीते थे, लेकिन इस बार स्पिनर्स के दम पर दिल्ली कैपिटल्स भारी पड़ सकती है

आईपीएल के 13वें सीजन का दूसरा मैच किंग्स इलेवन पंजाब और दिल्ली कैपिटल्स के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। यूएई में पंजाब टीम अब तक एक भी मैच नहीं हारी है। टीम ने यहां 2014 में सभी 5 मैच में जीत दर्ज की थी। साथ ही पंजाब पंजाब ने पिछले तीन सीजन में अपना पहला मैच जीता है। ऐसे में टीम अपने इस रिकॉर्ड को बरकरार रखना चाहेगी।

हालांकि, इस बार बेहतरीन स्पिनर्स से सजी दिल्ली कैपिटल्स भारी पड़ सकती है। टीम में दिग्गज रविचंद्रन अश्विन, अमित मिश्रा और अक्षर पटेल जैसे अनुभवी स्पिनर्स हैं। इनको स्लो पिच पर काफी मदद मिलेगी और इनकी दम पर दिल्ली इस बार अपना पहला खिताब जीतने की भी पूरी कोशिश करेगी। अश्विन पिछली बार पंजाब टीम के कप्तान थे।

यूएई में दिल्ली का खराब रिकॉर्ड
लोकसभा चुनाव के कारण आईपीएल 2009 में साउथ अफ्रीका और 2014 सीजन के शुरुआती 20 मैच यूएई में हुए थे। तब यूएई में दिल्ली का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा था। टीम ने तब यहां 5 में से 2 मैच जीते और 3 हारे थे।

इन रिकॉर्ड्स पर रहेगी नजर

  • लोकेश राहुल मैच में 23 रन बनाते ही आईपीएल में अपने 2 हजार रन पूरे कर लेंगे। वे ऐसा करने वाले 20वें भारतीय होंगे।
  • क्रिस गेल 16 रन बना लेते हैं तो लीग में 4500 या उससे अधिक रन बनाने वाले दूसरे विदेशी बन जाएंगे।‌
  • 100 छक्के का आंकड़ा छूने के लिए शिखर धवन को 4, जबकि ऋषभ पंत को 6 छक्के की जरूरत है।

हेड-टु-हेड
पंजाब की टीम ने आईपीएल में सबसे ज्यादा 14 मैच दिल्ली के ही खिलाफ जीते हैं। दोनों के बीच अब तक 24 मुकाबले खेले गए हैं। दिल्ली ने 10 मैच जीते हैं। पिछले सीजन में दोनों को एक-एक मैच में जीत मिली थी।

पिच और मौसम रिपोर्ट: दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 28 से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है।

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122

दिल्ली अकेली टीम, जो अब तक फाइनल नहीं खेली
पंजाब और दिल्ली दोनों अब तक लीग का खिताब नहीं जीत सकी हैं। बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रीति जिंटा की मालिकाना वाली पंजाब टीम अब तक एक ही बार 2014 में फाइनल खेल सकी और एक ही बार 2008 में सेमीफाइनल से बाहर हुई थी। वहीं, दिल्ली अकेली ऐसी टीम है, जो अब तक फाइनल नहीं खेल सकी। हालांकि, दिल्ली टूर्नामेंट के शुरुआती दो सीजन (2008, 2009) में सेमीफाइनल तक पहुंची थी।

पंजाब में गेल, राहुल और मैक्सवेल पर अहम जिम्मेदारी
पंजाब टीम में इस बार नए कप्तान लोकेश राहुल के साथ सबसे अनुभवी दिग्गज वेस्टइंडीज के क्रिस गेल और ऑस्ट्रेलियाई ऑलराउंडर ग्लेन मैक्सवेल के कंधों पर अहम जिम्मेदारी होगी। गेल ने लीग के इतिहास में सबसे ज्यादा 326 छक्के और सबसे ज्यादा 6 शतक लगाए हैं। बॉलिंग डिपार्टमेंट में टीम के लिए मोहम्मद शमी और शेल्डन कॉटरेल अहम भूमिका में रहेंगे।

दिल्ली में युवा खिलाड़यों पर रहेगा दारोमदार
दिल्ली कैपिटल्स में युवा खिलाड़ियों पर अपनी टीम को जीत दिलाने का दारोमदार रहेगा। कप्तान श्रेयस अय्यर, ऋषभ पंत और पृथ्वी शॉ जैसे युवा बल्लेबाज टीम में की-प्लेयर हैं। इसके अलावा शिखर धवन, अजिंक्य रहाणे और अश्विन जैसे अनुभवी खिलाड़ी भी टीम को मजबूती प्रदान करेंगे।



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KXIP Vs Delhi Capitals IPL Live Score: Latest Breaking News On IPL UAE 2020 2nd Match | Delhi Capitals (DC) vs Kings XI Punjab (KXIP) Live Cricket Score and Updates


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एमएसपी क्या है, जिसके लिए किसान सड़कों पर हैं और सरकार के नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं? क्या महत्व है किसानों के लिए एमएसपी का?

केंद्र सरकार खेती-किसानी के क्षेत्र में सुधार के लिए तीन विधेयक लाई है। इन विधेयकों को लोकसभा पारित कर चुकी है। इन विधेयकों से पंजाब और हरियाणा समेत कुछ राज्यों में किसान नाराज हैं। उन्हें अपनी उपज पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की चिंता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यह साफ कर चुके हैं कि एमएसपी खत्म नहीं होने वाला। वह विपक्षी पार्टियों पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे हैं। एनडीए की घटक पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी इस मुद्दे पर सरकार से नाराज है। हरसिमरत कौर बादल ने तो केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। किसानों और विपक्षी पार्टियों को एमएसपी खत्म होने का डर है।

क्या है एमएसपी या मिनिमम सपोर्ट प्राइज?

  • एमएसपी वह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी गारंटेड मूल्य है जो किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम हो। इसके पीछे तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े। उन्हें न्यूनतम कीमत मिलती रहे।
  • सरकार हर फसल सीजन से पहले सीएसीपी यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है। यदि किसी फसल की बम्पर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती है, तब एमएसपी उनके लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइज का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों में गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है।

इसकी जरूरत क्यों है और यह कब लागू हुई?

  • 1950 और 1960 के दशक में किसान परेशान थे। यदि किसी फसल का बम्पर उत्पादन होता था, तो उन्हें उसकी अच्छी कीमतें नहीं मिल पाती थी। इस वजह से किसान आंदोलन करने लगे थे। लागत तक नहीं निकल पाती थी। ऐसे में फूड मैनेजमेंट एक बड़ा संकट बन गया था। सरकार का कंट्रोल नहीं था।
  • 1964 में एलके झा के नेतृत्व में फूड-ग्रेन्स प्राइज कमेटी बनाई गई थी। झा कमेटी के सुझावों पर ही 1965 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना हुई और एग्रीकल्चरल प्राइजेस कमीशन (एपीसी) बना।
  • इन दोनों संस्थाओं का काम था देश में खाद्य सुरक्षा का प्रशासन करने में मदद करना। एफसीआई वह एजेंसी है जो एमएसपी पर अनाज खरीदती है। उसे अपने गोदामों में स्टोर करती है। पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के जरिये जनता तक अनाज को रियायती दरों पर पहुंचाती है।
  • पीडीएस के तहत देशभर में करीब पांच लाख उचित मूल्य दुकानें हैं जहां से लोगों को रियायती दरों पर अनाज बांटा जाता है। एपीसी का नाम 1985 में बदलकर सीएपीसी किया गया। यह कृषि से जुड़ी वस्तुओं की कीमतों को तय करने की नीति बनाने में सरकार की मदद करती है।

एमएसपी का किसानों को किस तरह लाभ हो रहा है?

  • खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों के राज्यमंत्री रावसाहब दानवे पाटिल ने 18 सितंबर को राज्यसभा में बताया कि नौ सितंबर की स्थिति में रबी सीजन में गेहूं पर एमएसपी का लाभ लेने वाले 43.33 लाख किसान थे, यह पिछले साल के 35.57 लाख से करीब 22 प्रतिशत ज्यादा थे।
  • राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले पांच साल में एमएसपी का लाभ उठाने वाले गेहूं के किसानों की संख्या दोगुनी हुई है। 2016-17 में सरकार को एमएसपी पर गेहूं बेचने वाले किसानों की संख्या 20.46 लाख थी। अब इन किसानों की संख्या 112% ज्यादा है।
  • रबी सीजन में सरकार को गेहूं बेचने वाले किसानों में मध्यप्रदेश (15.93 लाख) सबसे आगे था। पंजाब (10.49 लाख), हरियाणा (7.80 लाख), उत्तरप्रदेश (6.63 लाख) और राजस्थान (2.19 लाख) इसके बाद थे। यह हैरानी वाली बात है कि कृषि कानूनों को लेकर मध्यप्रदेश में कोई आंदोलन नहीं हुआ। और तो और, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी मध्यप्रदेश से ही ताल्लुक रखते हैं।
  • खरीफ सीजन में एमएसपी पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 2018-19 के 96.93 लाख के मुकाबले बढ़कर 1.24 करोड़ हो गई यानी 28 प्रतिशत ज्यादा। खरीफ सीजन 2020-21 के लिए अब तक खरीद शुरू नहीं हुई है। 2015-16 के मुकाबले यह बढ़ोतरी 70% से ज्यादा है।

इस कानून से किसानों को मिलने वाले एमएसपी पर क्या असर होगा?

  • कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भास्कर संवाददाता धर्मेंद्र भदौरिया को दिए इंटरव्यू में साफ किया कि नए कानून से किसानों को खुले बाजार में अपनी फसल बेचने का विकल्प मिलेगा। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को अपनी उपज की बेहतर कीमत मिलेगी।
  • तोमर ने यह भी कहा कि मंडी के बाहर जो ट्रेड होगा, उस पर कोई भी टैक्स नहीं देना होगा। मार्केट में सुधार होगा, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, बाजार सुधरेगा और किसान को भी वाजिब दाम मिलेगा। जब किसान को दो प्लेटफॉर्म मिलेंगे तो जहां ज्यादा दाम मिलेगा वह उसी को चुनेगा।
  • कृषि मंत्री ने कहा कि बिल ओपन ट्रेड को खोल रहा है। इस बिल का एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है। वैसे भी एमएसपी एक्ट का हिस्सा नहीं है। एमएसपी प्रशासकीय निर्णय है यह किसानों के हित में है और यह हमेशा रहने वाला है।
  • स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के अनुरूप किसानों को लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर हम एमएसपी घोषित कर रहे हैं। रबी सीजन की एमएसपी घोषित कर दी थी। खरीद भी की। खरीफ सीजन की फसलों के लिए एमएसपी जल्द घोषित हो जाएगा। एमएसपी पर कोई शंका नहीं होना चाहिए।
  • शांताकुमार कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि देश में छह फीसदी किसानों को एमएसपी मिलता था। इस पर तोमर ने कहा कि देश में 86% छोटा किसान है। उसका उत्पादन कम होता है और मंडी तक माल ले जाने का भाड़ा अधिक लगता है। इस वजह से उसे एमएसपी का फायदा नहीं मिलता। अब खुले बाजार में उसे मंडी तक जाने की आवश्यकता नहीं होगी।


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What is MSP (Minimum Support Price) Complete Update | Why Haryana Punjab Farmers Protesting Against Agriculture Bills? All You Need To Know MSP Meaning


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कोरोना के बीच मध्यप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में 6 महीने बाद स्कूल खुलेंगे, लेकिन 90% पैरेंट्स अब भी बच्चों को नहीं भेजना चाहते

अनलॉक-4 में केंद्र सरकार ने करीब 6 महीने बाद 9वीं से 12वीं तक के बच्चों के स्कूल खोलने की इजाजत दी है। सरकार ने कहा कि बच्चे गाइडेंस के लिए 21 सितंबर से स्कूल जा सकते हैं। इसके बाद राज्य सरकारों को स्कूल खोलने पर फैसला लेना था। लेकिन, अभी तक मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा ही स्कूल खोलने को राजी हुए हैं। लेकिन, सर्वे में पता चला है कि 70% से 90% पैरेंट्स अब भी बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते।

दैनिक भास्कर ने स्कूलों और पैरेंट्स के मन की बात जानने के लिए 9 राज्यों से ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है-

1. मध्यप्रदेश : सरकारी और प्राइवेट स्कूल 21 सितंबर से आंशिक रूप से खुलेंगे। कक्षाएं नहीं लगाई जाएंगी। 9वीं से 12वीं तक के छात्र पैरेंट्स की परमिशन से थोड़े समय के लिए स्कूल जा सकेंगे।

  • भोपाल में सागर पब्लिक स्कूल की चेयरमैन जयश्री कंवर ने कहा, "हम स्कूल खोलने के लिए तैयार हैं, लेकिन यह तय नहीं है कि 21 सितंबर से ही खोलेंगे। पहले पैरेंट्स की काउंसलिंग और ओरिएंटेशन करेंगे। इसके बाद उनकी सहमति लेंगे। यह पूरी तरह से पैरेंट्स पर निर्भर करेगा कि वे बच्चों को स्कूल भेजें या नहीं।"
  • भोपाल के आईपीएस की प्रिंसिपल चित्रा अय्यर ने कहा कि हमारे यहां कोरोना से बचाव के अरेंजमेंट हो गए हैं, पूरी तैयारी है। पहले पैरेंट्स से एक सहमति पत्र भरवाया जाएगा। उसके बाद ही बच्चों को स्कूल बुलाएंगे।
  • इंदौर के एनी बेसेंट स्कूल के संचालक मोहित यादव ने बताया कि स्कूल खोलने को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है। ऑनलाइन क्लास अच्छी चल रही हैं, ऐसे में जिन बच्चों को कहीं कुछ समझ नहीं आ रहा है वे ही स्कूल आएंगे। यदि पैरेंट्स अपने बच्चों को भेजना चाहते हैं तो ये उनकी जिम्मेदारी होगी। उन्हें पहले हमें लिखित में अपनी सहमति देनी होगी।
  • दो बच्चों की मां प्रेरणा शर्मा कहती हैं कि इतने महीने इंतजार किया है तो अब वैक्सीन लगने के बाद ही बच्चों को स्कूल भेजेंगे।

2. छत्तीसगढ़ : यहां पर स्कूलों में तैयारियां हो रही थीं, लेकिन इससे पहले ही शनिवार को रायपुर समेत 6 शहरों में लॉकडाउन लग गया। ऐसे में फिलहाल स्कूल खोलने की कोई गुजाइंश नहीं है। दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में है।

  • रायपुर के बड़े स्कूल मौजूदा हालात में बच्चों को बुलाने के विरोध में हैं। ज्यादातर स्कूलों में 28 सितंबर तक परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी। वहीं स्कूल एसोसिएशन का कहना है कि एग्जाम ऑनलाइन ही कराएंगे, लेकिन सरकार स्कूल खोल देगी तो परीक्षा के लिए छात्रों को बुला सकते हैं।
  • डीपीएस के प्रिसिंपल रघुनाथ मुखर्जी कहते हैं कि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि स्कूल में बच्चों को संक्रमण नहीं होगा। केपीएस की प्रिसिंपल प्रियंका त्रिपाठी का कहना है कि स्कूल खुले तो सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से तैयारी की जाएगी।
  • रायपुर में रहने वाली डॉली साहू का बेटा 11वीं में पढ़ता है। डॉली कहती हैं कि बेटे की जान जोखिम में नहीं डाल सकते। दो बेटियां के पिता पीयूष खरे कहते हैं कि वैक्सीन आने के बाद देखेंगे, अभी स्कूल भेजने का सवाल ही नहीं उठता।

3. राजस्थान: बच्चे सिर्फ पैरेंट्स की लिखित परमिशन से गाइडेंस के लिए स्कूल जा सकेंगे। केंद्र सरकार की एसओपी के बाद राज्य सरकार ने भी साफ निर्देश जारी कर दिए हैं।

  • जयपुर के सुबोध पब्लिक स्कूल के प्रवक्ता संजय सारस्वत का कहना है कि ऑनलाइन परीक्षाओं के चलते स्कूल नहीं खोलने का फैसला लिया है। 5 अक्टूबर तक नई गाइडलाइन जारी होंगी। इसके बाद स्कूल खोलने पड़े तो पूरी तैयारी है। बच्चों को रोटेशन के आधार पर बुलाएंगे और एक क्लास में 12 से ज्यादा बच्चों को नहीं बैठाया जाएगा।
  • अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल के डायरेक्टर अनिल शर्मा ने बताया कि 21 सितंबर से बच्चे स्कूल गाइडेंस के लिए खोले जाएंगे। इसे फिलहाल हम ट्रायल के तौर पर देख रहे हैं। रोजाना पांच सब्जेक्ट के टीचर की व्यवस्था की गई है। कर्मचारियों को सैनेटाइजेशन की ट्रेनिंग दी गई है। स्टूडेंट की थर्मल स्क्रीनिंग करने की ट्रेनिंग क्लास टीचर को दी गई है।
  • निजी स्कूलों की सबसे बड़ी संस्था स्कूल शिक्षा परिवार के प्रदेश अध्यक्ष शर्मा के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में करीब 30 प्रतिशत पैरेंट्स चाहते हैं कि बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए। वहीं, ग्रामीणों इलाकों में करीब 70 प्रतिशत पैरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हैं।

4. गुजरात: राज्य में 16 मार्च से स्कूल बंद है। इस बीच राज्य सरकार ने कहा है कि दिवाली तक स्कूल बंद रखे जाएंगे ​​​और आगे हालात को देखते हुए फैसला लिया जाएगा।

  • गुजरात में केंद्र की गाइडलाइन के बावजूद 21 सितंबर से कक्षा 9 से 12 तक के स्कूल भी नहीं खुलेंगे।। राज्य के शिक्षा मंत्री भूपेंद्र सिंह चूड़ासमा ने कहा कि फिलहाल दिवाली तक स्कूल नहीं खुलेंगे, उसके बाद रिव्यू किया जाएगा।
  • स्कूल एसोसिएशन का कहना है कि मौजूदा स्थिति में स्कूलों पर भी खतरा है, इसलिए राज्य सरकार ने स्कूलों को खोलने का फैसला नहीं किया है। स्थिति में सुधार होने पर फैसला लिया जाएगा। तब तक ऑनलाइन पढ़ाई जारी रहेगी।

4. बिहार : स्कूल खोले जाने पर अभी न तो स्कूलों ने सहमति दी है और न ही पैरेंट्स तैयार हैं। कहा जा रहा है कि चुनाव और छठ पूजा के बाद सोचा जाएगा। राज्य सरकार की तरफ से भी कोई साफ निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। ऐसे में सोमवार से स्कूल नहीं खुल रहे हैं।

  • पटना हाई स्कूल के प्रिंसिपल रवि रंजन ने कहा कि स्कूल खोलने को लेकर कोई निर्देश नहीं मिला है। ऑनलाइन क्लास के साथ एग्जाम भी ऑनलाइन हो रही हैं।
  • कृष्णा निकेतन स्कूल के सचिव डॉ. कुमार अरुणोदय का कहना है कि प्रशासन को पहले स्कूलों और पैरेंट्स के साथ बैठक कर स्ट्रैटजी बनानी चाहिए, क्योंकि मामला बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा है।
  • 9वीं क्लास की छात्रा सृष्टि के पिता विकास मेजरवार ने कहा कि जब हम ऑफिस में ही डरकर काम कर रहे हैं तो बच्चों को स्कूल कैसे भेज सकते हैं?

5. झारखंड : यहां राज्य सरकार ने 30 सितंबर तक स्कूल नहीं खोलने का निर्देश दिया है। पैरेंट्स के साथ टीचर्स इस बात के पक्ष में नहीं हैं कि बच्चों को अभी स्कूल बुलाया जाए।

  • रांची के दिल्ली पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल राम सिंह ने बताया कि राज्य सरकार की गाइडलाइन का इंतजार कर रहे हैं। स्कूल में सैनेटाइजेशन, थर्मल स्क्रीनिंग, हैंड वॉश की व्यवस्था हो चुकी है। बहुत ज्यादा बच्चों के आने की संभावना नहीं है। फिर भी जो भी बच्चे डाउट क्लियरिंग के लिए आएंगे उनके लिए सेपरेट क्लास रखी जाएगी।
  • एक बच्चे की मां ने कहा कि अभी बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगी, क्योंकि ऑनलाइन स्टडी का सिस्टम इम्प्रूव हो गया है। जो समस्याएं थीं, वे दूर कर ली गई हैं।

6. हरियाणा: यहां 21 सिंतबर से स्कूल आंशिक तौर पर केंद्र की गाइडलाइन के मुताबिक खोले जाएंगे।

  • पानीपत के एसडी विद्या मंदिर की प्रिंसिपल सविता चौधरी ने बताया कि फिलहाल 22 सितंबर से 30 सितंबर तक उनके स्कूल में कंपार्टमेंट के एग्जाम हैं। हर दिन स्कूल सैनेटाइज हो रहा है। थर्मल स्कैनर से जांच हो रही है। अभी हाफ ईयरली एग्जाम भी बाकी हैं। इसके बाद हालात को देखते हुए स्कूल खोले जाएंगे।
  • यहां के सरकारी और प्राइवेट विद्यालयों के टीचर्स के लिए आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करना और कोविड टेस्ट करवाना भी जरूरी है।

7. चंडीगढ़ : प्रशासन की तरफ से कराए गए सर्वे में सामने आया है कि 75% से ज्यादा पैरेंट्स बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं हैं। यहां स्कूल खोलने को लेकर कोई साफ निर्देश प्रशासन की तरफ से नहीं दिया गया है। ऐसे में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

  • स्ट्रॉबेरी फील्ड्स हाई स्कूल सेक्टर-26 के डायरेक्टर अतुल खन्ना का कहना है कि सभी तैयारियां कर ली हैं। 75% पैरेंट्स बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते, इसलिए बाकी 25% के लिए प्लान तैयार कर रहे हैं। टीचर्स को भी सिर्फ तभी बुलाएंगे अगर उनकी जरूरत है। हाफ ईयरली एग्जाम नहीं ले रहे।
  • विवेक हाई स्कूल सेक्टर-38 की प्रिंसिपल रेनु पुरी कहती हैं कि स्कूल खोलने को लेकर एक सर्वे किया था, जिसमें सामने आया कि 90% पैरेंट्स बच्चों नहीं भेजना चाहते। स्कूल में रोज सैनेटाइजेशन किया जा रहा है। टीचर्स और स्टाफ तो ऑनलाइन सिस्टम से कंफर्टेबल हैं, हम अभी उन्हें नहीं बुलाएंगे।

8. उत्तर प्रदेश : केंद्र सरकार की गाइडलाइन पर योगी सरकार ने अभी तक कोई भी फैसला नहीं लिया। 15 सितंबर को बैठक होनी थी, वह भी नहीं हुई। राज्य के बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा है कि अभी कोरोना के केस बढ़ रहे हैं, इसलिए स्कूल 21 सिंतबर से नहीं खोले जाएंगे।

  • लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल के प्रबंधक जगदीश गांधी का कहना है कि अभी तक तो स्कूल में सभी क्लासेस ऑनलाइन चल रही हैं। हमारे सभी स्कूल की ब्रांच में कोविड-19 को लेकर तैयारियां पूरी की गई हैं। ऑनलाइन टेस्ट और पढ़ाई जारी है।
  • पैरेंट्स से अभी कोई बातचीत नहीं हुई है। ऑनलाइन ही क्लास और टेस्ट लिए जा रहे हैं। हाफ ईयरली एग्जाम भी ऑनलाइन ही कराए जाएंगे।
  • सिटी मॉन्टेसरी स्कूल के प्रवक्ता ऋषि कपूर बताते हैं कि फिलहाल स्कूल खोलने को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है। सभी टीचर्स को ऑनलाइन पढ़ाई कराने के संबंध में गाइडलाइन और मोबाइल ऐप्स की जानकारियां दी गई हैं। टीचर और बाकी स्टाफ वर्क फ्रॉम होम हैं।

9. महाराष्ट्र: राज्य में 30 सितंबर तक सभी स्कूल बंद रहेंगे। अनलॉक-5 यानी 1 अक्टूबर के बाद राज्य सरकार तय करेगी। पैरेंट्स के रिएक्शन जानने के लिए सर्वे भी कराए जा रहे हैं।

  • मुंबई, पुणे समेत देश के 14 शहरों में चलने वाले 'विबग्योर ग्रुप ऑफ स्कूल्स' के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर पेशवा आचार्य ने बताया कि स्कूलों को फिर से खोलने का रोडमैप और एसओपी तैयारी कर ली गई है। हालांकि, ज्यादातर पैरेंट्स चाहते हैं कि जब तक कोरोना की दवा बाजार में नहीं आ जाती तब तक पढ़ाई ऑनलाइन ही होनी चाहिए।
  • आचार्य ने बताया कि ज्यादातर पैरेंट्स स्कूल की तरफ से शुरू किए गए 'वर्चुअल लर्निंग सिस्टम' से संतुष्ट हैं। हम कक्षा 1 से 8वीं तक का इन्फॉर्मल रिव्यू कर रहे हैं। 9 से 12वीं तक ऑनलाइन एग्जाम करवा रहे हैं।


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School Reopening Ground Report Update | Resuming Classes In Madhya Pradesh, Haryana, Rajasthan Chhatisgarh and Jharkhand Bihar


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एक भी मरीज की मौत नहीं, मेडिकल स्टाफ में जीरो इंफेक्शन, आईटीबीपी ने ये कैसे मुमकिन किया

बड़ा सा एयरकंडीशंड टीन शेड, लाइन में लगे हजारों बिस्तर, उन पर आराम कर रहे कोरोना संक्रमित। जहां तक नजर जाती है बस मरीज ही नजर आते हैं। मेडिकल स्टाफ और मरीजों के बीच में एक ट्रांसपेरेंट प्लास्टिक शीट लगी है जिसके पास लाइन में वे लोग खड़े हैं, जिनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई है और अब उन्हें डिस्चार्ज होना है।

वॉर्ड का दौरा कर रहे डिप्टी मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ प्रशांत मिश्रा से डिस्चार्ज हो रहा एक मरीज कहता है, ‘क्या मैं कैब बुलाकर घर चला जाऊं।' डॉ. मिश्रा उसे समझाते हैं, ‘यहां सबकुछ एक व्यवस्था के तहत हो रहा है। आपको सुरक्षित घर पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है। एंबुलेंस की व्यवस्था की जा रही है। वो ही आपको घर छोड़ेगी।' दिल्ली के बाहरी छोर छतरपुर में राधा स्वामी सत्संग ब्यास के कैंपस में दुनिया का सबसे बड़ा कोविड केयर केंद्र शुरू किया गया है, जिसकी कमान भारत के अर्धसैनिक बल आईटीबीपी के हाथ में है।

यहां जरूरत पड़ने पर दस हजार बिस्तर लगाए जा सकते हैं। अभी दो हजार बिस्तरों पर संक्रमितों को भर्ती किया जा रहा है। महिलाओं के लिए अलग से वॉर्ड बनाया गया है। यहां पांच दिनों से भर्ती पूजा कहती हैं, ‘मुझे लग रहा है,, मैं अच्छे माहौल में हूं और सुरक्षित हूं। यहां हमें अस्पताल से भी बेहतर सुविधाएं दी जा रही हैं। यहां हम एक डिसिप्लिन में रह रहे हैं। समय पर खाना मिल रहा है। समय पर मेडिकल स्टाफ हालचाल पूछ रहा है।'

दिल्ली के बाहरी छोर छतरपुर में राधा स्वामी सत्संग ब्यास के कैंपस में दुनिया का सबसे बड़ा कोविड केयर केंद्र शुरू किया गया है जिसकी कमान आईटीबीपी के हाथ में है।

पूजा कहती हैं, ‘यहां की सबसे अच्छी बात है टीम का व्यवहार। वो हमसे अच्छे से बात करते हैं। काउंसलिंग करते हैं और हर संभव मदद करने की कोशिश करते हैं। उनकी हम लोगों के साथ बॉन्डिंग बहुत अच्छी है।' पूजा के साथ ही खड़ी सरिता भी उनकी हां में हां मिलाते हुए कहती हैं, ‘लग ही नहीं रहा हम घर से दूर हैं।'

यहां भर्ती लोगों के चेहरे पर तनाव या चिंता नजर नहीं आती। अधिकतर लोग बिस्तरों पर आराम कर रहे हैं। कुछ लाइब्रेरी से पुस्तकें ले रहे हैं। कुछ कुर्सियों पर बैठे हैं। यहां हो रहे हर काम में एक अनुशासन नजर आता है जो सिर्फ स्टाफ में ही नहीं, मरीजों में भी है।

यहां सबसे अधिक ध्यान संक्रमितों की मानसिक सेहत का रखा जा रहा है। इंस्पेक्टर सुमन यादव और ब्रजेश कुमार एजुकेशन एंड स्ट्रेस काउंसलर हैं। उनकी टीम का काम मरीजों का तनाव कम करना है। वो बताती हैं, ‘सुबह मरीजों को योग कराया जाता है, शाम को मेडिटेशन कराया जाता है। हर मरीज की काउंसलिंग की जाती है। हम मरीजों को ये अहसास कराते हैं कि हम उनके साथ हैं।'

वो कहती हैं, ‘कोरोना का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं। संक्रमण का पता चलने पर तनाव में आ जाते हैं। हम उन्हें ये अहसास दिलाते हैं कि आप सुरक्षित हाथों में है और आपको कुछ नहीं होगा। हम उन्हें दिमागी तौर पर मजबूत करते हैं। हम उनकी छोटी से छोटी बात सुनते हैं। जब सारा स्टाफ उनके साथ खड़ा होता है तो उन्हें लगता है कि हम अकेले नहीं हैं।'

इंस्पेक्टर ब्रजेश कहते हैं, "ये महामारी का समय है। बहुत चुनौतियां भी हैं। लेकिन हमारी टीम उन्हें संभाल लेती है। हम टीम वर्क करते हैं और अधिकारियों के निर्देश का पालन करते हैं।’ डॉ. रीता मोगा मेडिकल स्पेशलिस्ट हैं। वह उन मरीजों का ध्यान रखती हैं जो पहले से किसी और बीमारी से भी पीड़ित हैं। वह कहती हैं, "यहां मरीज बहुत ज्यादा हैं। कई बार उनसे बात करने में मुश्किल होती है। मरीजों के साथ कोई नहीं है। हमें ही उनकी हर जरूरत का भी ध्यान रखना होता है। हमें उनकी हर चीज में मदद भी करनी होती है।"

यहां सुबह मरीजों को योग कराया जाता है, शाम को मेडिटेशन कराया जाता है। हर मरीज की काउंसलिंग की जाती है।

डॉ. रीता कहती हैं, 'बुजुर्गों का अधिक ध्यान देना पड़ता है। उन्हें मास्क पहनने के लिए भी समझाना पड़ता है।’डॉ रीता और यहां काम कर रहे दूसरे मेडिकल स्टाफ घर नहीं जा रहे हैं। उनके रहने का इंतेजाम पास ही किया गया है। वो कहती हैं, "सबसे मुश्किल होता है पीपीई किट पहनकर मरीजों को देखना और घरवालों को ये समझाना की हम यहां ठीक हैं।"

आईटीबीपी के फार्मासिस्ट सुशील कुमार बताते हैं, ‘यहां आ रहे मरीजों के लिए खाने का बंदोबस्त राधा स्वामी सत्संग की ओर से किया जा रहा है। मरीजों को दिन में तीन बार काढ़ा, दो बार चाय, गरम पानी और भोजन मुफ्त उपलब्ध करवाया जाता है।'

यहां जब मरीज पहुंचते हैं तो उन्हें एक मेडिकल किट भी दी जाती है जिसमें बाकी जरूरी चीजों के अलावा च्यवनप्राश भी होता है। सुशील बताते हैं, "बच्चों और कुछ विशेष जरूरत वाले मरीजों की डाइट डॉक्टर की सलाह के मुताबिक तैयार की जाती है।"

भारत में इस समय रोजाना कोरोना संक्रमण के करीब एक लाख नए मामले सामने आ रहे हैं और ये तादाद दुनिया में सबसे ज्यादा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जुलाई के पहले सप्ताह में सरदार पटेल कोविड केयर केंद्र शुरू किया। इसमें दिल्ली सरकार, दिल्ली के नगर निगम, राधा स्वामी सत्संग व्यास और कई अन्य गैर सरकारी संगठन सहयोग दे रहे हैं। इसकी कमान आईटीबीपी के हाथ में है।

यहां अब तक करीब पांच हजार संक्रमित भर्ती हो चुके हैं। यहां बिना लक्षणों वाले या हल्के लक्षणों वाले मरीज भर्ती किए जाते हैं। अभी तक यहां एक भी मरीज की मौत नहीं हुई है। डॉ. प्रशांत मिश्रा बताते हैं, ‘यहां 1800 सामान्य बिस्तर हैं जबकि 200 बिस्तरों पर ऑक्सीजन सपोर्ट है। आपात स्थिति के लिए आईसीयू भी तैयार किया गया है।'

इस अस्थायी अस्पताल को बहुत ही कम समय में तैयार किया गया और ये काफी चुनौतीपूर्ण भी था। डॉ मिश्रा बताते हैं, 'हमारे डॉक्टर अभी तक अस्पताल या ऐसी जगह काम करते रहे थे जहां प्रॉपर इंफ्रास्ट्रक्चर था। लेकिन यहां हमने गृह मंत्रालय के निर्देश में महामारी के समय ये अस्थाई अस्पताल बनाया है। सीमित समय में ये काम करना काफी चुनौतीपूर्ण था।' वह बताते हैं, "25 जून को इस केंद्र को बनाने को लेकर हमारी पहली मीटिंग हुई थी और 05 जुलाई को हमने पहले मरीज को भर्ती कर लिया था।

डॉ. मिश्रा बताते हैं, 'आईटीबीपी के महानिदेशक एसएस देशवाल ने इस काम के लिए टीम गठित की। हमारे लिए यही निर्देश है कि जो भी यहां से जाए अच्छा महसूस करता हुआ जाए। हम सब इसी टॉस्क में जुटे हैं।'

इस कोरोना केंद्र में 17 दिन के बच्चे से लेकर 78 साल तक के बुजुर्ग आ चुके हैं। डॉ मिश्रा कहते हैं, 'बहुत से संक्रमित ऐसे आते हैं जिन्हें पहले से और भी बीमारियां होती हैं। कई को तो पता भी नहीं होता कि वो डायबिटीज या हाइपरटेंशन जैसी बीमारी से पीड़ित हैं।'

इस कोरोना केंद्र में अभी तक मेडिकल स्टाफ का कोई भी व्यक्ति संक्रमित नहीं हुआ है। जीरो फीसदी इंफेक्शन है। डॉ. मिश्रा कहते हैं, 'हमने बायो मेडिकल वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए प्लानिंग की है। हमने कई प्रोटोकॉल और एसओपी बनाए हैं जिनका हर स्तर पर पालन किया जा रहा है। अभी तक हमारी कामयाबी का कारण हमारा डिसिप्लिन ही है। यहां हर कोई अनुशासन में रहकर अपना काम कर रहा है।'

यहां मरीजों को दिन में तीन बार काढ़ा, दो बार चाय, गरम पानी और भोजन मुफ्त उपलब्ध करवाया जाता है।

इस कोविड केंद्र के बायो मेडिकल वेस्ट का कलेक्शन दक्षिण दिल्ली नगर निगम की टीम करती है। वह कहते हैं, 'हमारा काम वायरस की चेन को तोड़ना है। लोगों के सहयोग के बिना हम ये काम नहीं कर सकते। अच्छी बात ये है कि हमें सबका सहयोग मिल रहा है।'

आईटीबीपी इस समय सरहद पर चीन से और सरहद के भीतर चीन से आए वायरस से जूझ रही है। डॉ. मिश्रा कहते हैं, 'देश ने हम पर भरोसा किया है। दुनिया के इस सबसे बड़े कोविड केंद्र का संचालन अलग तरह का अनुभव है। इसके सबक आगे काम आएंगे।'

क्या जरूरत पड़ने पर इस केंद्र की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है, इस सवाल पर मिश्रा कहते हैं, "हमें जो भी आदेश मिलेगा, हमें उसे लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। अब तो हमारे पास अनुभव भी है। 'मैंने इस कोविड केंद्र का दो बार दौरा किया और चीजों को करीब से देखने की कोशिश की। हर बार वही डिसिप्लिन नजर आया। यहां सबकुछ तय प्रोटोकॉल के तहत हो रहा है। और शायद यही डिसिप्लिन इस कोरोना केंद्र की कामयाबी का राज भी है।

कोविड केंद्र से ठीक होकर जा रहे एक मरीज रुआंसी आवाज़ में कहते हैं, 'मैं दो दिन निजी अस्पताल में भी रहा। वहां मेरा ध्यान तो नहीं रखा गया। मोटा बिल जरूर थमा दिया गया। यहां फैसिलिटी वर्ल्ड क्लास है और खर्च कुछ भी नहीं।'



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Not a single patient died, zero infection in medical staff, how did ITBP make this possible…


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6 महीने पहले बिहार की राजनीति को बदलने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर अब गायब क्यों हैं?

इसी साल फरवरी में जदयू के पूर्व नेता और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। जदयू से निकलने के बाद वे पहली बार मीडिया से बात कर रहे थे। प्रशांत जिस जगह पर बैठे थे उसके पीछे महात्मा गांधी की एक फोटो लगी थी और उनका एक कथन “The best politics is right action” लिखा था।

आज छह महीने बाद लगता है कि प्रशांत किशोर अपने पीछे लिखे इसी वाक्य को समझ नहीं पाए। अगर समझ भी रहे थे, तो व्यवहार में नहीं ला पाए। उनकी राजनीति से “एक्शन” गायब हो गया है। उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर ने 'बात बिहार की' नाम से एक मुहिम की शुरुआत की थी।

तब उन्होंने कहा था, 'मैं अगले सौ दिन तक केवल बिहार की हर पंचायत, प्रखंड और गांव में जाऊंगा। बिहार की 8800 पंचायतों में से एक हजार ऐसे लोगों को चुनूंगा, उनसे जुड़ूंगा जो यह समझते हैं कि अगले दस सालों में बिहार को देश के अग्रणी राज्यों में खड़ा होना चाहिए।'

लेकिन सौ दिन तो दूर प्रशांत किशोर अगले तीस दिन भी बिहार में नहीं रुके। पटना के एग्जीबिशन रोड में दफ्तर खुला था। सौ से डेढ़ सौ लोग काम कर रहे थे। बिहार में उनकी मुहिम का असर यह हुआ कि खुद को रजिस्टर करवाने के लिए दफ्तर के बाहर सुबह से ही लंबी-लंबी लाइनें लग जाती थीं।

ये सब मार्च के आखिर तक बदल गया। दफ्तर बंद हो गया। भीड़ गायब हो गई। प्रशांत किशोर खुद पटना से बाहर चले गए। पटना में जो लोग उनके और उनकी कंपनी आइ-पैक के लिए काम कर रहे थे वे 'मिशन बंगला' में लग गए। सवाल उठता है कि एकदम से ऐसा क्यों हुआ? फरवरी में पूरे जोश के साथ एक मुहिम की लॉन्चिंग करने वाले प्रशांत किशोर एक महीने बाद ही ठंडे क्यों पड़ गए?

बिहार से अंग्रेजी अखबार द हिंदू के लिए लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी कहते हैं, 'देखिए… प्रशांत किशोर एक विशुद्ध बिजनेस मैन आदमी हैं। वे इसी तरह से सोचते हैं। यहां उन्होंने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। ऐसे में आप पटना में अपना बड़ा दफ्तर, बड़ी टीम रखकर काम नहीं कर सकते।'

'सरकार उनके खिलाफ हो गई थी। एक राजनीतिक व्यक्ति सरकार से टकरा सकता है। लोग टकराते भी रहे हैं, लेकिन जब आप व्यापार कर रहे हों तो सरकार से भिड़ना मुश्किल होता है। अगर आप भिड़ गए तो उसके बाद वहां रहकर काम करना और भी मुश्किल हो जाता है। खासकर तब जब आपके सामने नीतीश कुमार हों, जो लम्बे वक्त तक अपनी दुश्मनी निभाते हैं।'

आज जब बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा में कुछ दिन बाकी हैं। राजनीतिक पार्टियां ताल ठोक रही हैं। नए-नए समीकरण बन रहे हैं तो ऐसे में सवाल उठता है कि प्रशांत किशोर कहां हैं और क्या कर रहे हैं?

प्रशांत किशोर दो साल पहले जदयू में शामिल हुए थे। उन्हें जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था।

जानकारों का कहना है कि प्रशांत किशोर ने इस वक्त अपनी पूरी ताकत पश्चिम बंगाल में लगा रखी है। वे ममता बनर्जी को अगले चुनाव में जीत दिलवाना चाहते हैं। खबर ये भी है कि प्रशांत किशोर की पिछले दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुलाकात हुई है और उन्हें पंजाब में कोई बड़ा पद मिल सकता है।

तो क्या बिहार से बाहर प्रशांत किशोर केवल नए मौके की तलाश में घूम रहे हैं? प्रशांत किशोर पर कंटेंट चोरी का आरोप लगाकर पुलिस से शिकायत करवाने वाले कांग्रेस नेता शाश्वत गौतम को ऐसा नहीं लगता। वे कहते हैं, 'प्रशांत किशोर को कोर्ट से बेल नहीं मिली है। ऐसे में अगर वे आज बिहार जाएंगे तो उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर लेगी। वे गिरफ्तारी से बचने के लिए भाग रहे हैं।'

शाश्वत गौतम जिस पुलिस केस का जिक्र कर रहे हैं वो इसी साल 27 फरवरी को दर्ज करवाया गया था। गौतम ने आरोप लगाया था कि प्रशांत किशोर ने उनके प्लान का कंटेंट चोरी किया और उसे अपना बताकर 'बात बिहार की' नाम से लॉन्च कर दिया। शाश्वत गौतम की शिकायत पर पुलिस ने प्रशांत किशोर के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 और 406 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था। फिलहाल ये मामला अदालत में है।

तो क्या पुलिस की कार्रवाई ही वह वजह है, जिसने प्रशांत किशोर को बिहार से दूर रखा हुआ है? अमरनाथ तिवारी को ऐसा नहीं लगता है। वे कहते हैं, 'इसकी गुंजाइश थोड़ी कम लग रही है। वे नहीं आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि फिलहाल बिहार में माहौल उनके लिए सही नहीं है।'

'इसलिए वे दिल्ली में कभी-कभार बड़े-बड़े पत्रकारों को इंटरव्यू देकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहते हैं। प्रशांत किशोर को लेकर एक बात समझ लेनी चाहिए कि वे चुनाव लड़वाने का व्यापार करते हैं। ये उनका धंधा है। जो व्यक्ति धंधा करता है, वह अपने हर कदम में नफा-नुकसान देखता है।'

बिहार का एक बड़ा वर्ग प्रशांत किशोर को 'बिजनेस मैन' मानता है। राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले चुनावी पंडित तो ये भी मानते हैं कि बिहार को लेकर उन्होंने गलत आकलन किया। बिना सोचे-समझे मोर्चा खोल दिया और जब सब बिखरता हुआ तो दिखा तो निकल गए।

वजह चाहे जो भी हों, लेकिन इतना साफ है कि जब बिहार में चुनावी दंगल का मैदान तैयार हो रहा है, तो दंगल लड़ाने और जिताने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर गायब हैं। इस वजह से बिहार के चुनावी पंडित राज्य की राजनीति को लेकर उन पर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।

प्रशांत किशोर को लेकर उठ रहे सभी सवालों, उन पर लगाए गए आरोपों का जवाब देने और उनका पक्ष जानने के लिए भास्कर ने उनसे सम्पर्क करने की कोशिश की, लेकिन संभव नहीं हो पाया। इसके बाद हमने उनके वॉट्सऐप पर सवालों की एक फेहरिस्त भेजी। सवाल भेजने के चौबीस घंटे बाद तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।



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जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से निकाले जाने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ‘बात बिहार की’ नाम से एक कैंपेन शुरू करने की घोषणा की थी।


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आठ नौकरियां बदलीं, फिर पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए मशरूम उगाना शुरू किया; 3 लाख रुपए इन्वेस्ट किए, अब हर साल 2 करोड़ का कारोबार करती हैं

उत्तराखंड की एक लड़की पढ़ाई करने दिल्ली गई, वहां एमिटी यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ सोशल वर्क की पढ़ाई की। फिर प्राइवेट कंपनी में 25 हजार रुपए महीने की नौकरी भी की। एक के बाद एक करीब 8 नौकरियां बदलीं, क्योंकि इनसे संतुष्ट नहीं थी। कुछ अलग करने की चाह उसे वापस अपने राज्य ले आई। 2013 में जब वो वापस उत्तराखंड लौटी तो देखा कि नौकरी की तलाश में प्रदेश के छोटे-छोटे गांवों से लोग दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को मजबूर हैं। तभी इस लड़की ने कुछ अलग करने का फैसला लिया।

हम बात कर रहे हैं देहरादून में रहने वाली 30 साल की दिव्या रावत की। आज दिव्या मशरूम कल्टीवेशन के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम हैं। ‘मशरूम गर्ल’ से नाम से पहचान बनाने वाली दिव्या को उत्तराखंड सरकार ने मशरूम का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया है। मशरूम के जरिए दिव्या आज करीब 2 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना कारोबार कर रही हैं।

दिव्या कहती हैं, ‘मशरूम जल, जमीन, जलवायु की नहीं बल्कि तापमान की खेती है। इसकी इतनी वैरायटी होती हैं कि हम हर मौसम में इसकी खेती कर सकते हैं। फ्रेश मशरूम मार्केट में बेच सकते हैं और इसके बाय प्रोडक्ट भी बना सकते हैं।’

दिव्या मशरूम कल्टीवेशन के साथ-साथ इसके बाय प्रोडक्ट भी बनाती हैं।

पलायन रोकने के लिए रोजगार की जरूरत थी, इसलिए मशरूम की खेती को चुना

दिव्या बताती हैं, ‘दिल्ली में मैंने देखा कि बहुत सारे पहाड़ी लोग 5-10 हजार रुपए की नौकरी के लिए अपना गांव छोड़ कर पलायन कर रहे हैं। मैंने सोचा कि मुझे अपने घर वापस जाना चाहिए और मैं अपने घर उत्तराखंड वापस आ गई। मैंने सोचा कि अगर पलायन को रोकना है तो हमें इन लोगों के लिए रोजगार का इंतजाम करना होगा। इसके लिए मैंने खेती को चुना, क्योंकि खेती जिंदगी जीने का एक जरिया है।’

मशरूम की खेती को चुनने के पीछे की वजह को लेकर दिव्या बताती हैं, ‘मैंने मशरूम इसलिए चुना, क्योंकि मार्केट सर्वे के दौरान यह पाया कि मशरूम के दाम सब्जियों से बेहतर मिलते हैं। एक किलो आलू आठ से दस रुपए तक मिलता है, जबकि मशरूम का मिनिमम प्राइज 100 रुपए किलो है। इसलिए मैंने मशरूम की खेती करने का फैसला लिया।

2015 में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ली। इसके बाद 3 लाख रुपए के इन्वेस्टमेंट के साथ खेती शुरू की। धीरे-धीरे लोगों का साथ मिलता गया और जल्द ही दिव्या ने अपनी कंपनी भी बना ली। उन्होंने मशरूम की खेती के जरिए बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दिया। दिव्या अब तक उत्तराखंड के 10 जिलों में मशरूम उत्पादन की 55 से ज्यादा यूनिट लगा चुकी हैं। उन्होंने बताया कि एक स्टैंडर्ड यूनिट की शुरुआत 30 हजार रुपए में हो जाती है। इसमें प्रोडक्शन कॉस्ट 15 हजार रुपए होती है और 15 हजार इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च होता है जो मिनिमम 10 साल तक चलता है।

मशरूम कल्टीवेशन के जरिए दिव्या ने स्थानीय महिलाओं को भी रोजगार दिया।

शुरुआत में लोगों का माइंड सेट बदलना सबसे बड़ी चुनौती थी

दिव्या ने बताया कि शुरुआत में एक सबसे बड़ी परेशानी लोगों का माइंड सेट बदलना था। लोगों को लगता था कि ये काम नहीं हो पाएगा। जब मैंने उन्हें बताना शुरू किया कि मशरूम की खेती आपके लिए एक बेहतर विकल्प है, तो लोग कहने लगे कि जब इतना ही अच्छा है तो आप खुद करो। मैं लोगों के सामने एक उदाहरण के तौर पर खड़ी हुई, इसके बाद लोगों ने इसे समझा और इस फील्ड में काम करने लगे।

मशरूम की खेती करने की चाह रखने वालों को दिव्या इसके कल्टीवेशन की ट्रेनिंग भी देती हैं।

10 बाय 12 के कमरे में भी मशरूम की खेती, दो महीने में हाेगा 4 से 5 हजार का प्रॉफिट

दिव्या ने बताया कि कोई भी आम इंसान 10 बाय 12 के एक कमरे से भी मशरूम की खेती शुरू सकता है। मशरूम की एक फसल की साइकिल करीब 2 महीने की होती है। इसके सेट अप और प्रोडक्शन की कॉस्ट करीब 5 हजार रुपए आती है। एक कमरे में आप दो महीने के सभी खर्चे काट कर 4 से 5 हजार रुपए का प्रॉफिट निकाल सकते हैं। मशरूम की खेती के लिए शुरुआती ट्रेनिंग की जरूरत होती है जो आप अपने प्रदेश के एग्रीकल्चर या हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट से ले सकते हैं। इसके अलावा हमारे हेल्पलाइन नंबर (0135 253 3181) पर कॉल करके भी जानकारी ली जा सकती है।

दिव्या ने कीड़ा जड़ी मशरूम के कल्टीवेशन के लिए एक लैब बनाई है, यह मशरूम 3 लाख रुपए प्रति किलो तक बिकता है।

3 लाख रुपए प्रति किलो मिलने वाले कीड़ा जड़ी मशरूम के कल्टीवेशन के लिए लैब बनाई

फिलहाल दिव्या ‘सौम्या फूड प्राइवेट कंपनी’ चलाती हैं, जिसका सालाना टर्नओवर करोड़ों रुपए में है। उनका मशरूम प्लांट भी है, जहां साल भर मशरूम कल्टीवेशन होता है। इस प्लांट में सर्दियों के मौसम में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों के मौसम में मिल्की मशरूम का कल्टीवेशन होता है। इसके साथ ही दिव्या हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाली कीड़ा जड़ी की एक प्रजाति कार्डिसेफ मिलिटरीज़ का भी कल्टीवेशन करती हैं, जिसकी बाजार में कीमत 2 से 3 लाख रुपए प्रति किलो तक है। कीड़ा जड़ी के कमर्शियल कल्टीवेशन के लिए दिव्या ने बकायदा लैब बनाई है। दिव्या की ख्वाहिश है कि आम आदमी की डाइट में हर तरह से मशरूम को शामिल किया जाए।



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देहरादून में रहने वाली 30 साल की दिव्या रावत को उत्तराखंड के लोग मशरूम गर्ल के नाम से जानते हैं।


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खाली वक्त में नई स्किल्स सीखने की तैयारी करें, गैर जरूरी खर्चों पर लगाएं लगाम; आर्थिक और मानसिक मोर्चे पर जानिए कैसे करें तैयारी

कोरोनावायरस के कारण कई लोग घर से काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें वायरस चेन को तोड़ने के लिए वर्क फ्रॉम होम दिया गया है। यह प्रोफेशनल दुनिया का एक हिस्सा है। दूसरे हिस्से में वे लोग हैं, जिन्हें कंपनी ने नुकसान के कारण नौकरी से निकाल दिया है या अनिश्चितकाल के लिए छुट्टी पर भेज दिया है। दोनों घर में हैं, लेकिन हाल एक दम अलग हैं। नौकरी गंवा देने मनोबल तोड़ देने वाला होता है। कई लोग परिवार और आर्थिक हिस्से की चिंता में मानसिक तौर पर परेशान हो जाते हैं।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, भारत में दिसंबर 2019 में बेरोजगारी दर 7.60% थी। यह मार्च 2020 में बढ़कर 8.75% पर पहुंच गई। जबकि, अप्रैल 2020 में यह आंकड़ा 23.52% था। हालांकि, अगस्त 2020 में यह कम होकर 8.35% पर आ गई थी। इसके बाद भी ऐसे कई लोग हैं जो काम पर दोबारा वापस नहीं जा पाए। डॉयचे वेले की एक खबर के अनुसार, एक्सपर्ट्स का मानना है भारत को बेरोजगारी संकट से उबरने में लंबा वक्त लगेगा।

टिप्स, जो आपको मानसिक तौर पर तैयार करेंगी
राजस्थान के उदयपुर स्थित गीतांजलि हॉस्पिटल में एसोसिएट प्रोफेसर और साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं कि सबसे जरूरी है समय। यह कभी रुकता नहीं है। हमें समय से घबराना नहीं है। खुद को तैयार करो। डॉक्टर शर्मा से जानें, कैसे रखें खुद को शांत।

  • शांत रहें: अपने आप को रिलेक्स रखने की कोशिश करें, क्योंकि नौकरी की परेशानियों के कारण नेगेटिविटी बहुत बढ़ जाती है। जॉब की वजह से आर्थिक परेशानियां आ जाती हैं, फैमिली प्रॉब्लम्स शुरू हो जाती हैं। इसकी वजह से स्ट्रेस हो जाता है।
  • सकारात्मक रहें: पॉजिटिव रहें और सकारात्मक चीजें पढ़ें।
  • कोई भी काम छोटा नहीं होता: बुरे हालात में किसी भी काम को छोटा बड़ा न समझें। अपनी परेशानी को लेकर थोड़ा विचार करें। इससे हो सकता है कि भविष्य और बेहतर हो जाए। जो चीज आप आजीविका के लिए कर सकते हैं करें, ताकि कमाने की चिंता कम हो।
  • स्वास्थ्य का ख्याल: मानसिक तौर पर हो रही परेशानी को सेहत बिगड़ने का कारण न बनने दें। खुद को शांत रखने, स्वस्थ रहने के लिए पूरी नींद और संतुलित डाइट लें। डाइजेशन बिगड़ने से आपका फोकस गोल के बजाए हेल्थ पर शिफ्ट हो जाता है। इसके बाद स्ट्रेस बढ़ता है। तनाव का सीधा असर हमारे दिल, पाचन और रेस्पिरेटरी पर पड़ता है।
  • अकेले न रहें: ऐसे वक्त में व्यक्ति स्ट्रेस का शिकार जल्दी हो जाता है। कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा वक्त परिवार के साथ बिताएं। इससे आपको मानसिक तौर पर मजबूती मिलेगी। स्ट्रेस नहीं हो पाएगा।

डॉक्टर शर्मा ने बताया कि उनके एक परिचित पहले कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करते थे, लेकिन बुरे दौर से गुजर रही कंपनी ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। इसके बाद वे स्ट्रेस में आ गए, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और सरकार की योजनाओं का फायदा उठाकर सब्जियों का काम शुरू कर दिया है। वे अब केवल बिजनेस ही करना चाहते हैं।

आर्थिक मोर्चे पर खुद को कैसे तैयार करें
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर आपने महामारी के दौर में अपना बिजनेस या नौकरी गंवा दी है और आपके पास सेविंग्स हैं तो उसका सही इस्तेमाल ही एकमात्र रास्ता है। अपनी सेविंग्स को ध्यान से खर्च करना बेहद जरूरी है।

  • जरूरी खर्चे: एक्सपर्ट्स इस दौरान किसी भी गैर जरूरी खर्च को रोकने की सलाह देते हैं, क्योंकि जब तक आप कोई काम दोबारा शुरू नहीं कर देते, तब तक आपके पास सेविंग्स ही एकमात्र सहारा है। ऐसे में पहली प्राथमिकता भोजन और हेल्थ को दें।
  • गलत फैसले न लें: नौकरी जाने के बाद कई बार हम गलत फैसले ले लेते हैं। थोड़ा विचार करें और अनुमान लगाएं कि आपकी बेरोजगारी का दौर कब तक चल सकता है। जल्दबाजी में आकर अपने जमा पूंजी को खर्च न करें। अगर आप समझ नहीं पा रहे हैं तो किसी आर्थिक सलाहकार की मदद लें।
  • उधारियों पर गौर करें: इस हिस्से पर गौर करना जरूरी है। ध्यान से देखें कि आपको किसे कितना रुपया चुकाना है। ऐसा करने से आप दूसरे जरूरी खर्चों की जानकारी भी रख पाएंगे और सेविंग्स का अनुमान लगा पाएंगे। अगर आप पूरी प्लानिंग के साथ अपनी उधारियां चुकाते हैं तो आपके सिविल स्कोर पर भी गलत असर नहीं पड़ेगा।
  • गैर जरूरी बिल चुकाना बंद करें: नौकरी के दौरान आपने कई सर्विसेज ले रखी थीं। जैसे- ओटीटी सब्सक्रिप्शन, जिम या क्लब मेंबरशिप। इन सुविधाओं को ऐसे बुरे वक्त में जारी रखना मुश्किल हो सकता है। अपने बिल की प्राथमिकता तय करें। देखें कि पहले क्या चुकाया जाना जरूरी है। अगर कहीं मुमकिन है तो कम पैसा चुका दें, ताकि आप पेनाल्टी या लेट फीस से बच सकें।

अब भविष्य की तैयारी

  • तुरंत नई नौकरी खोजना शुरू कर दें: कई लोगों को ऐसा लगता है कि वे तुरंत ही नई नौकरी खोज लेंगे और तलाश शुरू करने से पहले छुट्टी का प्लान करने लगते हैं। याद रखें कि यह सुनने में बेहतर लग सकता है, लेकिन काम में ज्यादा लंबा गैप आपकी प्रोफाइल को कमजोर बना सकता है। बेरोजगार होने के बाद अगर आप छुट्टी का प्लान करते हैं तो आप अपने इमरजेंसी फंड को खतरे में डाल रहे हैं।
  • स्किल्स के बारे में बताएं: एक लिस्ट तैयार करें, जिसमें यह साफ हो कि आप पिछली नौकरी में क्या करते थे और आप बेहतर किस काम में हैं। अपनी स्किल्स के बारे में पता करने के बाद एक अच्छा सीवी तैयार करें, जिसमें आपकी हर उपलब्धि और स्किल्स की जानकारी हो। अपने हुनर को दर्शाने के लिए लिंक्डइन जैसे प्रोफेशनल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की मदद लें।
  • नई चीजें सीखें: जब आप स्किल्स की सूची बना रहे थे, तब आपको यह पता लग गया होगा कि नया क्या सीखना होगा। हमेशा सीखते रहना ही आपका लक्ष्य होना चाहिए। नई नौकरी मिलने तक अपने अंदर नई स्किल्स तैयार करें।
  • मौका नहीं मिल रहा तो तैयार करें: आप काफी समय से नई नौकरी तलाश रहे हैं, लेकिन इस काम में सफल नहीं हो रहे। ऐसे में खुद का काम शुरू करने के बारे में सोचें। अगर आप खुद को नई शुरुआत के काबिल मानते हैं तो विचार करें। ऐसे में आप अपने सीनियर का फील्ड के एक्सपर्ट की मदद ले सकते हैं।
  • खुद को कम न समझें: नौकरी से निकाला जाना बहुत ही बुरा महसूस होता है, लेकिन इसे निजी तौर पर न लें। आप क्या हैं यह आप बताते हैं न कि आपकी नौकरी या कंपनी। हो सकता है कि कंपनी ने आपको नौकरी से किसी आर्थिक परेशानी के कारण निकाला हो। ऐसी आर्थिक मुश्किल जिसपर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता है। अपनी स्किल्स को तैयार करें और काबिलियत के दम पर फिर से काम तलाशें।


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इंफोसिस की को-फाउंडर सुधा मूर्ति अरबों की संपत्ति होने के बाद भी साल में एक बार सब्जी बेचती हैं? जानें वायरल फोटो की सच्चाई

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है, जिसमें एक महिला सब्जी के ढेर के बीच बैठी दिख रही हैं।

दावा किया जा रहा है कि ये इंफोसिस की को-फाउंडर सुधा मूर्ति हैं। अरबों की संपत्ति होने के बाद भी वे साल में एक बार सब्जी बेचती हैं।

और सच क्या है ?

  • इंफोसिस की को-फाउंडर सुधा मूर्ति की इंटरनेट पर फोटो सर्च करने से यह पुष्टि हुई की वायरल हो रही फोटो उन्हीं की है। पड़ताल के अगले चरण में हमने उस दावे की पड़ताल की जो फोटो के साथ किया जा रहा है।
  • फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि सुधा मूर्ति साल में एक बार सब्जी बेचती हैं।
  • अलग-अलग कीवर्ड सर्च करने से हमें Banglore Mirror की वेबसाइट पर सुधा मूर्ति का एक इंटरव्यू मिला। इसमें सुधा मूर्ति ने बताया था कि वे साल में 3 बार सुबह चार बजे उठकर एक असिस्टेंट के साथ राघवेंद्र स्वामी मंदिर में सेवा करने जाती हैं। सुधा मंदिर के किचन और बगल में स्थित कमरों को साफ करती हैं। अपने असिस्टेंट की मदद से ही वे सब्जियों और चावल की बड़ी बोरियों को मंदिर के स्टोर रूम में पहुंचाने में मदद करती हैं।
  • सुधा मूर्ति के इंटरव्यू से स्पष्ट हो रहा है कि वायरल हो रही फोटो में वे सब्जी नहीं बेच रही हैं। बल्कि राघवेंद्र स्वामी मंदिर में सेवा करने गई हैं। सोशल मीडिया पर फोटो को गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।


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Fact Check: Infosys co-founder Sudha Murthy sells vegetables once in a year, despite having wealth of billions? Learn the truth of viral photos


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अक्षय कुमार, आर माधवन शूटिंग के लिए विदेश गए, अभिषेक बच्चन और सैफ अली खान घर से ही काम कर रहे

कोरोना के दौरे में अनलॉक-4 शुरू होते ही बॉलीवुड सेलेब्स अपने प्रोजेक्ट पूरे करने में व्यस्त हो गए। कई एक्टर और एक्ट्रेस देश के अलग-अलग शहरों में शूटिंग कर रहे हैं, तो कुछ शूटिंग के लिए विदेश चले गए हैं। वहीं, कुछ घर से अपना काम संभाल रहे हैं।

अक्षय कुमार अपनी फिल्म 'बेल बॉटम' की शूटिंग स्कॉटलैंड में कर रहे हैं। उनके साथ वाणी कपूर, हुमा कुरैशी और लारा दत्ता भी हैं। आर माधवन और एली अबराम दुबई में वेब शो 'सेवंथ सेंस' की शूटिंग कर रहे हैं। उनके साथ वहां करीब 100 लोगों की टीम है।

शाहरुख खान राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बन रही अपनी अगली फिल्म की शूटिंग के लिए कनाडा जा सकते हैं। आमिर खान कुछ दिनों पहले ही तुर्की से अपनी फिल्म 'लालसिंह चड्ढा' की शूटिंग कर लौटे हैं।

15 दिन से जयपुर में हैं तापसी पन्नू
तापसी पन्नू और विजय सेतुपति 15 दिन से जयपुर में एक साउथ इंडियन फिल्म की शूटिंग कर रही हैं। इस यूनिट में उनके अलावा 100 लोगों की एक टीम है। उधर, दीपिका पादुकोण और अनन्या पांडे गोवा में हैं। इस फिल्म का निर्देशन शकुन बत्रा कर रहे हैं।

करीना कपूर प्रेगनेंसी के बावजूद मुंबई में 'लाल सिंह चड्ढा' के लिए अपना पोर्शन शूट कर रही हैं। चर्चा है कि उनके बेबी बंप को ग्राफिक्स की मदद से छुपाया जाएगा।

ये सितारे भी जल्द ही देश में ही शूटिंग शुरू करेंगे
जॉन अब्राहम दो फिल्मों के लिए लखनऊ और हैदराबाद जा सकते हैं। कंगना रनोट अक्टूबर के बाद चेन्नई जाकर जयललिता की बायोपिक 'थलाइवी' की शूटिंग करेंगी। उसके बाद वे मुंबई में 'धाकड़' की शूटिंग शुरू करेंगी। विद्या बालन अक्टूबर में मध्यप्रदेश के बालाघाट जा सकती हैं। यहां वे 'शेरनी' की शूटिंग शुरू करेंगी। जल्दी ही रणवीर सिंह भी मुंबई में ही अपनी अपकमिंग फिल्म शूट करेंगे।

मुंबई के स्टूडियोज में भी जारी है शूटिंग
संजय दत्त ने हाल ही में एक स्टूडियो में 'शमशेरा' की शूटिंग पूरी की। रणबीर कपूर भी इसी फिल्म के लिए इसी स्टूडियो में शूटिंग कर सकते हैं। आलिया भट्ट 'ब्रह्मास्त्र' के लिए डबिंग शुरू कर चुकी हैं। इसके बाद वे संजय लीला भंसाली की फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' के लिए शूटिंग करेंगी। सलमान खान अक्टूबर में महबूब स्टूडियो में अपनी फिल्म 'राधे' की शूटिंग पूरी कर सकते हैं।

ये सेलेब्स फिलहाल घर से कर रहे काम
सैफ अली खान ने हाल ही में 'बंटी और बबली 2' की शूटिंग पूरी की है। अब वे अली अब्बास जफर के वेब शो 'दिल्ली' के लिए घर से ही डबिंग कर रहे हैं। मनोज बाजपेयी फिलहाल घर पर ही स्क्रिप्ट मंगवाकर उनकी रीडिंग कर रहे हैं।

अमेजन प्राइम वीडियो की वेब सीरीज 'ब्रीद 2' की डबिंग के लिए बाहर जाने पर अभिषेक बच्चन कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। कहा जा रहा है कि इसके बाद अमेजन की ओर से उन्हें ऐसी डिवाइस उपलब्ध कराई है, जिसके जरिए वे घर से ही डबिंग कर सकते हैं।


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अक्षय कुमार 'बेल बॉटम' की शूटिंग में व्यस्त हैं। अभिषेक बच्चन 'ब्रीद 2' पर काम कर रहे हैं।


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केन्या में गुलेल और हेलिकॉप्टर से फेंकी जाती हैं चारकोल में लिपटे बीजों की गेंदें, 4 साल पहले बच्चों ने खेल-खेल में इस तरीके से जंगल तैयार कर दिए थे

केन्या के वीरान पड़े मैदानों में छोटी-छोटी काले रंग की गेंदें यानी सीडबॉल्स हरियाली वापस लाने का काम कर रही हैं। चारकोल में लिपटे हुए बीजों को गुलेल और हेलिकॉप्टर की मदद से दूर तक फेंका जा रहा है। बारिश होने पर चारकोल मेंं मौजूद बीज से पौधे पनपने की शुरुआत होती है। 2016 में सीडबॉल्स केन्या नाम के ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत टेडी किन्यानजुई और एल्सन कार्सटेड ने की थी।

पिछले चार साल में करीब 11 करोड़ सीडबॉल्स बांटी जा चुकी हैं। इनका लक्ष्य स्कूल और लोगों के साथ मिलकर केन्या के मैदानों में जंगलों को वापस तैयार करना है। सीडबॉल को एक सफल प्रयोग माना गया और भारत समेत कई देशों में इससे हरियाली वापस लाने की कोशिश की जा रही है। सीडबॉल्स केन्या के को-फाउंडर टेडी कहते हैं कि अगले 5 सालों में केन्या में हरियाली दिखने लगेगी।

मिट्‌टी की बजाय चॉरकोल वाले सीड बॉल ज्यादा सुरक्षित
हर सीडबॉल में एक बीज होता है। इस बीज के ऊपर चारकोल को चढ़ाकर गेंद जैसा आकार दिया जाता है। ये आकार में एक सिक्के जितने होते हैं। टेडी कहते हैं कि इसे गर्म मौसम में मैदानों में फेंका जाता है। बीजों पर चारकोल को लगाने के पीछे एक बड़ा कारण है। केवल बीजों को छोड़ने पर उसे चिड़िया और दूसरे जीव खा जाते हैं। लेकिन, इस पर चारकोल लिपटा होने के कारण यह सुरक्षित रहता है। जब बारिश आती है तो बॉल में नमी बढ़ती है और बीज अंकुरित होना शुरू होता है। इस तरह बीज से पौधा तैयार हो जाता है।

कैसे हुई शुरुआत?
टे‌डी कहते हैं, एक पौधा अपने क्षेत्र में पौधों की मां की तरह होता है। इससे दूसरे बीजों को पनपने में मदद मिलती है। इन पौधों से निकलने वाले बीज नए पौधों को जन्म देते हैं। इसकी शुरुआत 2016 में स्कूली बच्चों के साथ मिलकर की गई, ताकि बीजों को स्कूल के मैदानों में छोड़ा जाए। बीजों को आसपास के बच्चों को बांटा गया, उन्होंने गुलेल की मदद से इसे दूर तक पहुंचाया।

इस काम को इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए बच्चों की बीच कॉम्पिटीशन शुरू किए गए। उन्हें गुलेल देकर बीजों को दूर तक पहुंचाने का टार्गेट दिया गया। इस तरह यह काम उनके लिए एक गेम की तरह बन गया, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया।

सीडबॉल केन्या के को-फाउंडर टेडी बच्चों के साथ मिलकर हरियाली वापस लाने में जुटे हैं।

जिन इलाकों में बीज पहुंचाना मुश्किल, वहां हेलिकॉप्टर की मदद ली गई
टे‌डी के मुताबिक, जिन दूर-दराज वाले इलाकों में बीजों को पहुंचाना आसान नहीं था, वहां हेलिकॉप्टर से सीडबॉल छोड़े गए। इस दौरान जीपीएस तकनीक से जाना गया कि कहां बीजों की जरूरत है, वहीं इन्हें छोड़ा गया। विमान में पैसेंजर की सीट की जगह सीट बॉल की बोरियां रखी गईं ताकि सही जगह और सही समय पर इसे पहुंचाया जा सके। इस तरह सिर्फ 20 मिनट में 20 हजार बीज छोड़े गए।

केन्या में हरियाली सबसे ज्यादा जरूरी
केन्या में जिराफ की संख्या तेजी से घटी है। 2016 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने जिराफ को लुप्त होने की कगार पर खड़े जानवरों की लिस्ट में शामिल किया था। इसकी सबसे बड़ी वजह पेड़ों की घटती संख्या को बताया गया।

टेडी कहते हैं, सीडबॉल में ऐसे पौधों के बीज हैं जो बेहद कम पानी में विकसित हो जाते हैं। जैसे- बबूल, यह तेजी से बढ़ता है। इसकी जड़ें मजबूत होने के कारण यह सूखे का सामना आसानी से कर सकता है। इससे मिट्‌टी का कटाव भी रोका जा सकता है। गांवों में रहने वाले केन्या के लाखों लोग मक्के पर निर्भर हैं। लगातार चारकोल का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर करने के लिए जंगल काटे गए। नतीजा, यहां सूखे जैसे हालात बन गए।

अब किसानों की आमदनी बढ़ाने की तैयारी
टे‌डी कहते हैं कि अगले पांच साल में हरियाली दिखने लगेगी। हम कोशिश कर रहे हैं कि किसान ज्यादा से ज्यादा बीजों को तैयार करें, ताकि उनकी आमदनी और बढ़े। टेडी और एल्सन की संस्था सीडबॉल केन्या बीजों को केन्या फॉरेस्ट्री रिसर्च इंस्टीट्यूट से वेरिफाई कराने के बाद ही इन पर चारकोल की लेयर चढ़ाती है।



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The story of coin-shaped seedballs bringing greenery to many countries including Kenya


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