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कारोबार जगत से खबर है कि ई-कॉमर्स कंपनियां दिवाली पर 50 हजार करोड़ का बिजनेस कर सकती हैं, जो 4 साल पहले तक 1 हजार करोड़ रुपए से भी कम था। वहीं, संसद का मानसून सत्र जल्द खत्म होने की संभावना है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
आज इन 3 इवेंट्स पर रहेगी नजर
1. IPL में आज दिल्ली कैपिटल्स और किंग्स इलेवन पंजाब के बीच मुकाबला होगा। शाम 7 बजे टॉस होगा और 7:30 बजे से मैच शुरू होगा।
2. हरियाणा में कृषि विधेयक के विरोध में किसान संगठनों ने आज रोड जाम करने का ऐलान किया है।
3. हिमाचल प्रदेश में आज से 12 रूट पर नाइट बस सर्विस शुरू हो जाएगी।
अब कल की 7 महत्वपूर्ण खबरें
1. कंगना पर इंडस्ट्री के 250 करोड़ से ज्यादा दांव पर
कंगना रनोट की 4 फिल्में 'तेजस', 'धाकड़', थलाइवी' और 'इमली' कतार में हैं। ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन की मानें तो कंगना की हर फिल्म का एवरेज बजट 60-70 करोड़ रुपए पहुंच जाता है। इस हिसाब से कंगना पर बॉलीवुड के 250-300 करोड़ रुपए दांव पर लगे हैं। -पढ़ें पूरी खबर
2. सुशांत मामले में एम्स की टीम अगले हफ्ते रिपोर्ट सौंपेगी
सुशांत सिंह राजपूत का विसरा सही तरीके से सुरक्षित नहीं किया गया था। सूत्रों ने बताया कि एम्स के फोरेंसिक डिपार्टमेंट को जो विसरा मिला है, वह काफी कम और विकृत (डिजेनरैटिड) है। इससे जांच में मुश्किल हो रही है। सुशांत की मौत के मामले में एम्स की टीम अगले हफ्ते रिपोर्ट सौंपेगी। -पढ़ें पूरी खबर
3. बंगाल-केरल से अलकायदा के 9 आतंकी पकड़ाए
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने शनिवार को पश्चिम बंगाल और केरल में छापे मारकर अलकायदा के नौ आतंकियों को गिरफ्तार किया। इनमें से छह आतंकी मुर्शिदाबाद से और तीन एर्नाकुलम से पकड़ाए। इन्हें सोशल मीडिया से पाकिस्तान स्थित अलकायदा आतंकवादियों ने कट्टरपंथी बनाया था। -पढ़ें पूरी खबर
4. 22 साल में 29 पार्टियों ने छोड़ा एनडीए का साथ
एनडीए के गठन से लेकर अब तक 22 साल हो चुके हैं। इस दौरान 29 पार्टियों ने एनडीए छोड़ दिया। अब सिर्फ बची है प्रकाश सिंह बादल की पार्टी अकाली दल। हालांकि, किसानों के मुद्दे पर इसने भी बागी तेवर दिखाए हैं। अब एनडीए में 26 पार्टियां हैं। जानिए अब तक कौन आया और गया? -पढ़ें पूरी खबर
5. भारत-चीन सीमा पर तैनात डॉक्टर-सोल्जर्स की कहानी
लद्दाख में आईटीबीपी की डॉक्टर हैं डॉ. कात्यायनी। वे कहती हैं, 'माइनस 50 डिग्री तापमान के बीच जब ये सैनिक फॉरवर्ड पोस्ट पर तैनात होते हैं तो स्नो ब्लाइंडनेस के शिकार हो जाते हैं। कई बार जब वो अपने सैनिक को इंजेक्शन देने के लिए दवाई बाहर निकालती हैं तो वो बर्फ बन चुकी होती है।' -पढ़ें पूरी खबर
6. ई-कॉमर्स कंपनियां कर सकती है 50 हजार करोड़ रु. तक का कारोबार
रेडसीर (Redseer) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल फेस्टिव सीजन में ई-कॉमर्स का ग्रॉस मर्चेंडाइज वॉल्यूम 7 बिलियन डॉलर (51.52 हजार करोड़ रु.) तक पहुंच सकता है। भारत सहित दुनियाभर में कोरोना का असर कारोबार पर भी पड़ा है। कारोबारियों को अब फेस्टिव सीजन का इंतजार है। -पढ़ें पूरी खबर
7. वैष्णो देवी में 5000 लोग कर सकेंगे दर्शन, बाहरी राज्यों से सिर्फ 500 ही
वैष्णोदेवी मंदिर से लेकर तिरुपति तक, अब श्रद्धालुओं की संख्या और दान की राशि में बढ़ोतरी हो रही है। वैष्णो देवी में 5000 लोग कर सकेंगे दर्शन जबकि बाहरी राज्यों से सिर्फ 500 लोग ही शामिल हो सकेंगे। शिरडी के साईं मंदिर को लॉकडाउन में 20.76 करोड़ रुपए का दान मिला है। -पढ़ें पूरी खबर
अब 20 सितंबर का इतिहास
1933: सामाजिक कार्यकर्ता और हिंदुस्तान की आजादी के लिए लड़ने वाली अंग्रेज महिला एनी बेसेंट का निधन हुआ था।
1948: भारतीय फिल्म डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और स्क्रिप्ट लेखक महेश भट्ट का जन्म हुआ।
1984: लेबनान की राजधानी बेरूत में स्थित अमेरिकी दूतावास पर आत्मघाती हमला किया था।
जाते-जाते अब जिक्र गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का। आज ही के दिन 1911 में उनका जन्म हुआ था। पढ़िए उनका एक विचार।
आज का दिन महिलाओं के लिए बहुत खास है। इससे जुड़ी घटना भले ही टेनिस की है, लेकिन इसने महिला अधिकारों, खास तौर पर खेलों में बराबरी की नींव रखी थी। 'बैटल ऑफ सेक्सेस' कहकर प्रचारित 1973 में खेले गए इस टेनिस मुकाबले में एक लाख डॉलर की पुरस्कार राशि थी। उस समय 29 साल की बिली जीन किंग ने 55 साल की पूर्व नंबर एक टेनिस खिलाड़ी बॉबी रिग्स की चुनौती स्वीकार की थी। दरअसल, रिग्स का दावा था कि महिलाओं के टेनिस में कोई दम नहीं है। वह इस उम्र में भी किसी भी महिला टेनिस खिलाड़ी को हरा सकते हैं। हालांकि, उनका दावा खोखला साबित हुआ। बिली किंग ने ह्यूस्टन एस्ट्रोडोम में खेले गए मैच में सीधे सेट्स में 6-4, 6-3, 6-3 से हराया था।
यह टेनिस मुकाबला काफी लोकप्रिय हुआ। 30 हजार दर्शकों ने ह्यूस्टन एस्ट्रोडोम में मैच को देखा जबकि करीब 5 करोड़ लोगों ने टीवी पर। किंग ने टेनिस कोर्ट पर क्लियोपाट्रा की स्टाइल में पुरुष गुलामों के साथ प्रवेश किया था। वहीं, रिग्स महिला मॉडल्स के साथ कोर्ट पहुंचे थे। किंग की जीत ने महिलाओं के प्रोफेशनल टेनिस को स्थापित करने में मदद की। साथ ही महिला एथलीट्स की क्षमता को भी साबित किया। इस जीत को महिलाओं के अधिकारों की जीत के तौर पर भी देखा गया।
1857 में दिल्ली पर कब्जे के साथ कमजोर हुआ पहला स्वतंत्रता संग्राम
ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में 20 सितंबर एक अहम पड़ाव साबित हुआ। तब भारतीय राजाओं ने बड़े भूभाग पर कब्जा जमाकर वहां से अंग्रेजों को भगा दिया था। लेकिन कंपनी ने पलटवार किया। इंग्लैंड से गोला-बारूद मंगवाया गया। पहला पड़ाव था दिल्ली। कंपनी की फौजों ने जुलाई से लेकर सितंबर तक दिल्ली की घेराबंदी कर रखी थी। जैसे ही अतिरिक्त गोला-बारूद दिल्ली के पास पहुंचा, कंपनी की जीत आसान हो गई। 20 सितंबर को अंग्रेज फौजों ने दिल्ली पर फिर कब्जा कर लिया था। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की आंखों के सामने उनके तीन बेटों को गोली मारी गई। बाद में उन पर मुकदमा चलाकर उम्रकैद की सजा दी गई। रंगून की जेल में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।
2004 में इसरो ने पहला एजुकेशन सैटेलाइट एडुसेट लॉन्च किया
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो ने 20 सितंबर 2004 को जीसैट-3 लॉन्च किया था, जिसे जिसे एडुसैट के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत का पहला डेडिकेटेड एजुकेशनल सैटेलाइट है। इससे सैटेलाइट-बेस्ड टू-वे कम्युनिकेशन स्थापित हुआ, जिससे क्लासरूम में एजुकेशनल कंटेंट डिलीवर किया जा रहा है। कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान एडुसैट का इस्तेमाल कई राज्यों में सरकारी स्कूलों तक एजुकेशनल कंटेंट पहुंचाने के लिए हुआ है।
2011 में अमेरिका में डोंट आस्क, डोंट टेल पॉलिसी खत्म
20 सितंबर 2011 को अमेरिकी मिलिट्री में डोंट आस्क, डोंट टेल पॉलिसी खत्म हुई। 1990 में क्लिंटन प्रशासन ने मिलिट्री में समलैंगिकों की इंट्री पर प्रतिबंध लगाया था। इसे ही बाद में डोंट आस्क, डोंट टेल पॉलिसी नाम दिया गया। इसके तहत समलैंगिकों को तब तक काम करने की इजाजत थी, जब तक कि उनकी पहचान साबित नहीं होती या जांच में सामने नहीं आ जाती। प्रेसिडेंट बराक ओबामा ने कांग्रेस में रिपब्लिकन पार्टी के विरोध के बाद भी इस पॉलिसी को खत्म किया था।
इतिहास में आज को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता है...
जन्मदिन
आईपीएल के 13वें सीजन का दूसरा मैच किंग्स इलेवन पंजाब और दिल्ली कैपिटल्स के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। यूएई में पंजाब टीम अब तक एक भी मैच नहीं हारी है। टीम ने यहां 2014 में सभी 5 मैच में जीत दर्ज की थी। साथ ही पंजाब पंजाब ने पिछले तीन सीजन में अपना पहला मैच जीता है। ऐसे में टीम अपने इस रिकॉर्ड को बरकरार रखना चाहेगी।
हालांकि, इस बार बेहतरीन स्पिनर्स से सजी दिल्ली कैपिटल्स भारी पड़ सकती है। टीम में दिग्गज रविचंद्रन अश्विन, अमित मिश्रा और अक्षर पटेल जैसे अनुभवी स्पिनर्स हैं। इनको स्लो पिच पर काफी मदद मिलेगी और इनकी दम पर दिल्ली इस बार अपना पहला खिताब जीतने की भी पूरी कोशिश करेगी। अश्विन पिछली बार पंजाब टीम के कप्तान थे।
यूएई में दिल्ली का खराब रिकॉर्ड
लोकसभा चुनाव के कारण आईपीएल 2009 में साउथ अफ्रीका और 2014 सीजन के शुरुआती 20 मैच यूएई में हुए थे। तब यूएई में दिल्ली का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा था। टीम ने तब यहां 5 में से 2 मैच जीते और 3 हारे थे।
इन रिकॉर्ड्स पर रहेगी नजर
हेड-टु-हेड
पंजाब की टीम ने आईपीएल में सबसे ज्यादा 14 मैच दिल्ली के ही खिलाफ जीते हैं। दोनों के बीच अब तक 24 मुकाबले खेले गए हैं। दिल्ली ने 10 मैच जीते हैं। पिछले सीजन में दोनों को एक-एक मैच में जीत मिली थी।
पिच और मौसम रिपोर्ट: दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 28 से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है।
दिल्ली अकेली टीम, जो अब तक फाइनल नहीं खेली
पंजाब और दिल्ली दोनों अब तक लीग का खिताब नहीं जीत सकी हैं। बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रीति जिंटा की मालिकाना वाली पंजाब टीम अब तक एक ही बार 2014 में फाइनल खेल सकी और एक ही बार 2008 में सेमीफाइनल से बाहर हुई थी। वहीं, दिल्ली अकेली ऐसी टीम है, जो अब तक फाइनल नहीं खेल सकी। हालांकि, दिल्ली टूर्नामेंट के शुरुआती दो सीजन (2008, 2009) में सेमीफाइनल तक पहुंची थी।
पंजाब में गेल, राहुल और मैक्सवेल पर अहम जिम्मेदारी
पंजाब टीम में इस बार नए कप्तान लोकेश राहुल के साथ सबसे अनुभवी दिग्गज वेस्टइंडीज के क्रिस गेल और ऑस्ट्रेलियाई ऑलराउंडर ग्लेन मैक्सवेल के कंधों पर अहम जिम्मेदारी होगी। गेल ने लीग के इतिहास में सबसे ज्यादा 326 छक्के और सबसे ज्यादा 6 शतक लगाए हैं। बॉलिंग डिपार्टमेंट में टीम के लिए मोहम्मद शमी और शेल्डन कॉटरेल अहम भूमिका में रहेंगे।
दिल्ली में युवा खिलाड़यों पर रहेगा दारोमदार
दिल्ली कैपिटल्स में युवा खिलाड़ियों पर अपनी टीम को जीत दिलाने का दारोमदार रहेगा। कप्तान श्रेयस अय्यर, ऋषभ पंत और पृथ्वी शॉ जैसे युवा बल्लेबाज टीम में की-प्लेयर हैं। इसके अलावा शिखर धवन, अजिंक्य रहाणे और अश्विन जैसे अनुभवी खिलाड़ी भी टीम को मजबूती प्रदान करेंगे।
केंद्र सरकार खेती-किसानी के क्षेत्र में सुधार के लिए तीन विधेयक लाई है। इन विधेयकों को लोकसभा पारित कर चुकी है। इन विधेयकों से पंजाब और हरियाणा समेत कुछ राज्यों में किसान नाराज हैं। उन्हें अपनी उपज पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की चिंता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यह साफ कर चुके हैं कि एमएसपी खत्म नहीं होने वाला। वह विपक्षी पार्टियों पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे हैं। एनडीए की घटक पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी इस मुद्दे पर सरकार से नाराज है। हरसिमरत कौर बादल ने तो केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। किसानों और विपक्षी पार्टियों को एमएसपी खत्म होने का डर है।
अब ये दुष्प्रचार किया जा रहा है कि सरकार के द्वारा किसानों को MSP का लाभ नहीं दिया जाएगा।
— PMO India (@PMOIndia) September 18, 2020
ये भी मनगढ़ंत बातें कही जा रही हैं कि किसानों से धान-गेहूं इत्यादि की खरीद सरकार द्वारा नहीं की जाएगी।
ये सरासर झूठ है, गलत है, किसानों को धोखा है: PM
क्या है एमएसपी या मिनिमम सपोर्ट प्राइज?
इसकी जरूरत क्यों है और यह कब लागू हुई?
एमएसपी का किसानों को किस तरह लाभ हो रहा है?
इस कानून से किसानों को मिलने वाले एमएसपी पर क्या असर होगा?
प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी की प्राथमिकता में हमेशा गाँव, गरीब व किसान रहा है। उनके द्वारा लिया गया हर फैसला देश हित में होता है।
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) September 18, 2020
किसान बिल 2020 भी इसी दिशा में किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने वाला है।
झूठ से बचें...#JaiKisan #AatmaNirbharKrishi pic.twitter.com/NiRmjf5SKH
अनलॉक-4 में केंद्र सरकार ने करीब 6 महीने बाद 9वीं से 12वीं तक के बच्चों के स्कूल खोलने की इजाजत दी है। सरकार ने कहा कि बच्चे गाइडेंस के लिए 21 सितंबर से स्कूल जा सकते हैं। इसके बाद राज्य सरकारों को स्कूल खोलने पर फैसला लेना था। लेकिन, अभी तक मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा ही स्कूल खोलने को राजी हुए हैं। लेकिन, सर्वे में पता चला है कि 70% से 90% पैरेंट्स अब भी बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते।
दैनिक भास्कर ने स्कूलों और पैरेंट्स के मन की बात जानने के लिए 9 राज्यों से ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है-
1. मध्यप्रदेश : सरकारी और प्राइवेट स्कूल 21 सितंबर से आंशिक रूप से खुलेंगे। कक्षाएं नहीं लगाई जाएंगी। 9वीं से 12वीं तक के छात्र पैरेंट्स की परमिशन से थोड़े समय के लिए स्कूल जा सकेंगे।
2. छत्तीसगढ़ : यहां पर स्कूलों में तैयारियां हो रही थीं, लेकिन इससे पहले ही शनिवार को रायपुर समेत 6 शहरों में लॉकडाउन लग गया। ऐसे में फिलहाल स्कूल खोलने की कोई गुजाइंश नहीं है। दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में है।
3. राजस्थान: बच्चे सिर्फ पैरेंट्स की लिखित परमिशन से गाइडेंस के लिए स्कूल जा सकेंगे। केंद्र सरकार की एसओपी के बाद राज्य सरकार ने भी साफ निर्देश जारी कर दिए हैं।
4. गुजरात: राज्य में 16 मार्च से स्कूल बंद है। इस बीच राज्य सरकार ने कहा है कि दिवाली तक स्कूल बंद रखे जाएंगे और आगे हालात को देखते हुए फैसला लिया जाएगा।
4. बिहार : स्कूल खोले जाने पर अभी न तो स्कूलों ने सहमति दी है और न ही पैरेंट्स तैयार हैं। कहा जा रहा है कि चुनाव और छठ पूजा के बाद सोचा जाएगा। राज्य सरकार की तरफ से भी कोई साफ निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। ऐसे में सोमवार से स्कूल नहीं खुल रहे हैं।
5. झारखंड : यहां राज्य सरकार ने 30 सितंबर तक स्कूल नहीं खोलने का निर्देश दिया है। पैरेंट्स के साथ टीचर्स इस बात के पक्ष में नहीं हैं कि बच्चों को अभी स्कूल बुलाया जाए।
6. हरियाणा: यहां 21 सिंतबर से स्कूल आंशिक तौर पर केंद्र की गाइडलाइन के मुताबिक खोले जाएंगे।
7. चंडीगढ़ : प्रशासन की तरफ से कराए गए सर्वे में सामने आया है कि 75% से ज्यादा पैरेंट्स बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं हैं। यहां स्कूल खोलने को लेकर कोई साफ निर्देश प्रशासन की तरफ से नहीं दिया गया है। ऐसे में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
8. उत्तर प्रदेश : केंद्र सरकार की गाइडलाइन पर योगी सरकार ने अभी तक कोई भी फैसला नहीं लिया। 15 सितंबर को बैठक होनी थी, वह भी नहीं हुई। राज्य के बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा है कि अभी कोरोना के केस बढ़ रहे हैं, इसलिए स्कूल 21 सिंतबर से नहीं खोले जाएंगे।
9. महाराष्ट्र: राज्य में 30 सितंबर तक सभी स्कूल बंद रहेंगे। अनलॉक-5 यानी 1 अक्टूबर के बाद राज्य सरकार तय करेगी। पैरेंट्स के रिएक्शन जानने के लिए सर्वे भी कराए जा रहे हैं।
बड़ा सा एयरकंडीशंड टीन शेड, लाइन में लगे हजारों बिस्तर, उन पर आराम कर रहे कोरोना संक्रमित। जहां तक नजर जाती है बस मरीज ही नजर आते हैं। मेडिकल स्टाफ और मरीजों के बीच में एक ट्रांसपेरेंट प्लास्टिक शीट लगी है जिसके पास लाइन में वे लोग खड़े हैं, जिनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई है और अब उन्हें डिस्चार्ज होना है।
वॉर्ड का दौरा कर रहे डिप्टी मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ प्रशांत मिश्रा से डिस्चार्ज हो रहा एक मरीज कहता है, ‘क्या मैं कैब बुलाकर घर चला जाऊं।' डॉ. मिश्रा उसे समझाते हैं, ‘यहां सबकुछ एक व्यवस्था के तहत हो रहा है। आपको सुरक्षित घर पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है। एंबुलेंस की व्यवस्था की जा रही है। वो ही आपको घर छोड़ेगी।' दिल्ली के बाहरी छोर छतरपुर में राधा स्वामी सत्संग ब्यास के कैंपस में दुनिया का सबसे बड़ा कोविड केयर केंद्र शुरू किया गया है, जिसकी कमान भारत के अर्धसैनिक बल आईटीबीपी के हाथ में है।
यहां जरूरत पड़ने पर दस हजार बिस्तर लगाए जा सकते हैं। अभी दो हजार बिस्तरों पर संक्रमितों को भर्ती किया जा रहा है। महिलाओं के लिए अलग से वॉर्ड बनाया गया है। यहां पांच दिनों से भर्ती पूजा कहती हैं, ‘मुझे लग रहा है,, मैं अच्छे माहौल में हूं और सुरक्षित हूं। यहां हमें अस्पताल से भी बेहतर सुविधाएं दी जा रही हैं। यहां हम एक डिसिप्लिन में रह रहे हैं। समय पर खाना मिल रहा है। समय पर मेडिकल स्टाफ हालचाल पूछ रहा है।'
पूजा कहती हैं, ‘यहां की सबसे अच्छी बात है टीम का व्यवहार। वो हमसे अच्छे से बात करते हैं। काउंसलिंग करते हैं और हर संभव मदद करने की कोशिश करते हैं। उनकी हम लोगों के साथ बॉन्डिंग बहुत अच्छी है।' पूजा के साथ ही खड़ी सरिता भी उनकी हां में हां मिलाते हुए कहती हैं, ‘लग ही नहीं रहा हम घर से दूर हैं।'
यहां भर्ती लोगों के चेहरे पर तनाव या चिंता नजर नहीं आती। अधिकतर लोग बिस्तरों पर आराम कर रहे हैं। कुछ लाइब्रेरी से पुस्तकें ले रहे हैं। कुछ कुर्सियों पर बैठे हैं। यहां हो रहे हर काम में एक अनुशासन नजर आता है जो सिर्फ स्टाफ में ही नहीं, मरीजों में भी है।
यहां सबसे अधिक ध्यान संक्रमितों की मानसिक सेहत का रखा जा रहा है। इंस्पेक्टर सुमन यादव और ब्रजेश कुमार एजुकेशन एंड स्ट्रेस काउंसलर हैं। उनकी टीम का काम मरीजों का तनाव कम करना है। वो बताती हैं, ‘सुबह मरीजों को योग कराया जाता है, शाम को मेडिटेशन कराया जाता है। हर मरीज की काउंसलिंग की जाती है। हम मरीजों को ये अहसास कराते हैं कि हम उनके साथ हैं।'
वो कहती हैं, ‘कोरोना का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं। संक्रमण का पता चलने पर तनाव में आ जाते हैं। हम उन्हें ये अहसास दिलाते हैं कि आप सुरक्षित हाथों में है और आपको कुछ नहीं होगा। हम उन्हें दिमागी तौर पर मजबूत करते हैं। हम उनकी छोटी से छोटी बात सुनते हैं। जब सारा स्टाफ उनके साथ खड़ा होता है तो उन्हें लगता है कि हम अकेले नहीं हैं।'
इंस्पेक्टर ब्रजेश कहते हैं, "ये महामारी का समय है। बहुत चुनौतियां भी हैं। लेकिन हमारी टीम उन्हें संभाल लेती है। हम टीम वर्क करते हैं और अधिकारियों के निर्देश का पालन करते हैं।’ डॉ. रीता मोगा मेडिकल स्पेशलिस्ट हैं। वह उन मरीजों का ध्यान रखती हैं जो पहले से किसी और बीमारी से भी पीड़ित हैं। वह कहती हैं, "यहां मरीज बहुत ज्यादा हैं। कई बार उनसे बात करने में मुश्किल होती है। मरीजों के साथ कोई नहीं है। हमें ही उनकी हर जरूरत का भी ध्यान रखना होता है। हमें उनकी हर चीज में मदद भी करनी होती है।"
डॉ. रीता कहती हैं, 'बुजुर्गों का अधिक ध्यान देना पड़ता है। उन्हें मास्क पहनने के लिए भी समझाना पड़ता है।’डॉ रीता और यहां काम कर रहे दूसरे मेडिकल स्टाफ घर नहीं जा रहे हैं। उनके रहने का इंतेजाम पास ही किया गया है। वो कहती हैं, "सबसे मुश्किल होता है पीपीई किट पहनकर मरीजों को देखना और घरवालों को ये समझाना की हम यहां ठीक हैं।"
आईटीबीपी के फार्मासिस्ट सुशील कुमार बताते हैं, ‘यहां आ रहे मरीजों के लिए खाने का बंदोबस्त राधा स्वामी सत्संग की ओर से किया जा रहा है। मरीजों को दिन में तीन बार काढ़ा, दो बार चाय, गरम पानी और भोजन मुफ्त उपलब्ध करवाया जाता है।'
यहां जब मरीज पहुंचते हैं तो उन्हें एक मेडिकल किट भी दी जाती है जिसमें बाकी जरूरी चीजों के अलावा च्यवनप्राश भी होता है। सुशील बताते हैं, "बच्चों और कुछ विशेष जरूरत वाले मरीजों की डाइट डॉक्टर की सलाह के मुताबिक तैयार की जाती है।"
भारत में इस समय रोजाना कोरोना संक्रमण के करीब एक लाख नए मामले सामने आ रहे हैं और ये तादाद दुनिया में सबसे ज्यादा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जुलाई के पहले सप्ताह में सरदार पटेल कोविड केयर केंद्र शुरू किया। इसमें दिल्ली सरकार, दिल्ली के नगर निगम, राधा स्वामी सत्संग व्यास और कई अन्य गैर सरकारी संगठन सहयोग दे रहे हैं। इसकी कमान आईटीबीपी के हाथ में है।
यहां अब तक करीब पांच हजार संक्रमित भर्ती हो चुके हैं। यहां बिना लक्षणों वाले या हल्के लक्षणों वाले मरीज भर्ती किए जाते हैं। अभी तक यहां एक भी मरीज की मौत नहीं हुई है। डॉ. प्रशांत मिश्रा बताते हैं, ‘यहां 1800 सामान्य बिस्तर हैं जबकि 200 बिस्तरों पर ऑक्सीजन सपोर्ट है। आपात स्थिति के लिए आईसीयू भी तैयार किया गया है।'
इस अस्थायी अस्पताल को बहुत ही कम समय में तैयार किया गया और ये काफी चुनौतीपूर्ण भी था। डॉ मिश्रा बताते हैं, 'हमारे डॉक्टर अभी तक अस्पताल या ऐसी जगह काम करते रहे थे जहां प्रॉपर इंफ्रास्ट्रक्चर था। लेकिन यहां हमने गृह मंत्रालय के निर्देश में महामारी के समय ये अस्थाई अस्पताल बनाया है। सीमित समय में ये काम करना काफी चुनौतीपूर्ण था।' वह बताते हैं, "25 जून को इस केंद्र को बनाने को लेकर हमारी पहली मीटिंग हुई थी और 05 जुलाई को हमने पहले मरीज को भर्ती कर लिया था।
डॉ. मिश्रा बताते हैं, 'आईटीबीपी के महानिदेशक एसएस देशवाल ने इस काम के लिए टीम गठित की। हमारे लिए यही निर्देश है कि जो भी यहां से जाए अच्छा महसूस करता हुआ जाए। हम सब इसी टॉस्क में जुटे हैं।'
इस कोरोना केंद्र में 17 दिन के बच्चे से लेकर 78 साल तक के बुजुर्ग आ चुके हैं। डॉ मिश्रा कहते हैं, 'बहुत से संक्रमित ऐसे आते हैं जिन्हें पहले से और भी बीमारियां होती हैं। कई को तो पता भी नहीं होता कि वो डायबिटीज या हाइपरटेंशन जैसी बीमारी से पीड़ित हैं।'
इस कोरोना केंद्र में अभी तक मेडिकल स्टाफ का कोई भी व्यक्ति संक्रमित नहीं हुआ है। जीरो फीसदी इंफेक्शन है। डॉ. मिश्रा कहते हैं, 'हमने बायो मेडिकल वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए प्लानिंग की है। हमने कई प्रोटोकॉल और एसओपी बनाए हैं जिनका हर स्तर पर पालन किया जा रहा है। अभी तक हमारी कामयाबी का कारण हमारा डिसिप्लिन ही है। यहां हर कोई अनुशासन में रहकर अपना काम कर रहा है।'
इस कोविड केंद्र के बायो मेडिकल वेस्ट का कलेक्शन दक्षिण दिल्ली नगर निगम की टीम करती है। वह कहते हैं, 'हमारा काम वायरस की चेन को तोड़ना है। लोगों के सहयोग के बिना हम ये काम नहीं कर सकते। अच्छी बात ये है कि हमें सबका सहयोग मिल रहा है।'
आईटीबीपी इस समय सरहद पर चीन से और सरहद के भीतर चीन से आए वायरस से जूझ रही है। डॉ. मिश्रा कहते हैं, 'देश ने हम पर भरोसा किया है। दुनिया के इस सबसे बड़े कोविड केंद्र का संचालन अलग तरह का अनुभव है। इसके सबक आगे काम आएंगे।'
क्या जरूरत पड़ने पर इस केंद्र की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है, इस सवाल पर मिश्रा कहते हैं, "हमें जो भी आदेश मिलेगा, हमें उसे लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। अब तो हमारे पास अनुभव भी है। 'मैंने इस कोविड केंद्र का दो बार दौरा किया और चीजों को करीब से देखने की कोशिश की। हर बार वही डिसिप्लिन नजर आया। यहां सबकुछ तय प्रोटोकॉल के तहत हो रहा है। और शायद यही डिसिप्लिन इस कोरोना केंद्र की कामयाबी का राज भी है।
कोविड केंद्र से ठीक होकर जा रहे एक मरीज रुआंसी आवाज़ में कहते हैं, 'मैं दो दिन निजी अस्पताल में भी रहा। वहां मेरा ध्यान तो नहीं रखा गया। मोटा बिल जरूर थमा दिया गया। यहां फैसिलिटी वर्ल्ड क्लास है और खर्च कुछ भी नहीं।'
इसी साल फरवरी में जदयू के पूर्व नेता और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। जदयू से निकलने के बाद वे पहली बार मीडिया से बात कर रहे थे। प्रशांत जिस जगह पर बैठे थे उसके पीछे महात्मा गांधी की एक फोटो लगी थी और उनका एक कथन “The best politics is right action” लिखा था।
आज छह महीने बाद लगता है कि प्रशांत किशोर अपने पीछे लिखे इसी वाक्य को समझ नहीं पाए। अगर समझ भी रहे थे, तो व्यवहार में नहीं ला पाए। उनकी राजनीति से “एक्शन” गायब हो गया है। उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर ने 'बात बिहार की' नाम से एक मुहिम की शुरुआत की थी।
तब उन्होंने कहा था, 'मैं अगले सौ दिन तक केवल बिहार की हर पंचायत, प्रखंड और गांव में जाऊंगा। बिहार की 8800 पंचायतों में से एक हजार ऐसे लोगों को चुनूंगा, उनसे जुड़ूंगा जो यह समझते हैं कि अगले दस सालों में बिहार को देश के अग्रणी राज्यों में खड़ा होना चाहिए।'
लेकिन सौ दिन तो दूर प्रशांत किशोर अगले तीस दिन भी बिहार में नहीं रुके। पटना के एग्जीबिशन रोड में दफ्तर खुला था। सौ से डेढ़ सौ लोग काम कर रहे थे। बिहार में उनकी मुहिम का असर यह हुआ कि खुद को रजिस्टर करवाने के लिए दफ्तर के बाहर सुबह से ही लंबी-लंबी लाइनें लग जाती थीं।
ये सब मार्च के आखिर तक बदल गया। दफ्तर बंद हो गया। भीड़ गायब हो गई। प्रशांत किशोर खुद पटना से बाहर चले गए। पटना में जो लोग उनके और उनकी कंपनी आइ-पैक के लिए काम कर रहे थे वे 'मिशन बंगला' में लग गए। सवाल उठता है कि एकदम से ऐसा क्यों हुआ? फरवरी में पूरे जोश के साथ एक मुहिम की लॉन्चिंग करने वाले प्रशांत किशोर एक महीने बाद ही ठंडे क्यों पड़ गए?
बिहार से अंग्रेजी अखबार द हिंदू के लिए लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी कहते हैं, 'देखिए… प्रशांत किशोर एक विशुद्ध बिजनेस मैन आदमी हैं। वे इसी तरह से सोचते हैं। यहां उन्होंने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। ऐसे में आप पटना में अपना बड़ा दफ्तर, बड़ी टीम रखकर काम नहीं कर सकते।'
'सरकार उनके खिलाफ हो गई थी। एक राजनीतिक व्यक्ति सरकार से टकरा सकता है। लोग टकराते भी रहे हैं, लेकिन जब आप व्यापार कर रहे हों तो सरकार से भिड़ना मुश्किल होता है। अगर आप भिड़ गए तो उसके बाद वहां रहकर काम करना और भी मुश्किल हो जाता है। खासकर तब जब आपके सामने नीतीश कुमार हों, जो लम्बे वक्त तक अपनी दुश्मनी निभाते हैं।'
आज जब बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा में कुछ दिन बाकी हैं। राजनीतिक पार्टियां ताल ठोक रही हैं। नए-नए समीकरण बन रहे हैं तो ऐसे में सवाल उठता है कि प्रशांत किशोर कहां हैं और क्या कर रहे हैं?
जानकारों का कहना है कि प्रशांत किशोर ने इस वक्त अपनी पूरी ताकत पश्चिम बंगाल में लगा रखी है। वे ममता बनर्जी को अगले चुनाव में जीत दिलवाना चाहते हैं। खबर ये भी है कि प्रशांत किशोर की पिछले दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुलाकात हुई है और उन्हें पंजाब में कोई बड़ा पद मिल सकता है।
तो क्या बिहार से बाहर प्रशांत किशोर केवल नए मौके की तलाश में घूम रहे हैं? प्रशांत किशोर पर कंटेंट चोरी का आरोप लगाकर पुलिस से शिकायत करवाने वाले कांग्रेस नेता शाश्वत गौतम को ऐसा नहीं लगता। वे कहते हैं, 'प्रशांत किशोर को कोर्ट से बेल नहीं मिली है। ऐसे में अगर वे आज बिहार जाएंगे तो उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर लेगी। वे गिरफ्तारी से बचने के लिए भाग रहे हैं।'
शाश्वत गौतम जिस पुलिस केस का जिक्र कर रहे हैं वो इसी साल 27 फरवरी को दर्ज करवाया गया था। गौतम ने आरोप लगाया था कि प्रशांत किशोर ने उनके प्लान का कंटेंट चोरी किया और उसे अपना बताकर 'बात बिहार की' नाम से लॉन्च कर दिया। शाश्वत गौतम की शिकायत पर पुलिस ने प्रशांत किशोर के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 और 406 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था। फिलहाल ये मामला अदालत में है।
तो क्या पुलिस की कार्रवाई ही वह वजह है, जिसने प्रशांत किशोर को बिहार से दूर रखा हुआ है? अमरनाथ तिवारी को ऐसा नहीं लगता है। वे कहते हैं, 'इसकी गुंजाइश थोड़ी कम लग रही है। वे नहीं आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि फिलहाल बिहार में माहौल उनके लिए सही नहीं है।'
'इसलिए वे दिल्ली में कभी-कभार बड़े-बड़े पत्रकारों को इंटरव्यू देकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहते हैं। प्रशांत किशोर को लेकर एक बात समझ लेनी चाहिए कि वे चुनाव लड़वाने का व्यापार करते हैं। ये उनका धंधा है। जो व्यक्ति धंधा करता है, वह अपने हर कदम में नफा-नुकसान देखता है।'
बिहार का एक बड़ा वर्ग प्रशांत किशोर को 'बिजनेस मैन' मानता है। राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले चुनावी पंडित तो ये भी मानते हैं कि बिहार को लेकर उन्होंने गलत आकलन किया। बिना सोचे-समझे मोर्चा खोल दिया और जब सब बिखरता हुआ तो दिखा तो निकल गए।
वजह चाहे जो भी हों, लेकिन इतना साफ है कि जब बिहार में चुनावी दंगल का मैदान तैयार हो रहा है, तो दंगल लड़ाने और जिताने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर गायब हैं। इस वजह से बिहार के चुनावी पंडित राज्य की राजनीति को लेकर उन पर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।
प्रशांत किशोर को लेकर उठ रहे सभी सवालों, उन पर लगाए गए आरोपों का जवाब देने और उनका पक्ष जानने के लिए भास्कर ने उनसे सम्पर्क करने की कोशिश की, लेकिन संभव नहीं हो पाया। इसके बाद हमने उनके वॉट्सऐप पर सवालों की एक फेहरिस्त भेजी। सवाल भेजने के चौबीस घंटे बाद तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।
उत्तराखंड की एक लड़की पढ़ाई करने दिल्ली गई, वहां एमिटी यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ सोशल वर्क की पढ़ाई की। फिर प्राइवेट कंपनी में 25 हजार रुपए महीने की नौकरी भी की। एक के बाद एक करीब 8 नौकरियां बदलीं, क्योंकि इनसे संतुष्ट नहीं थी। कुछ अलग करने की चाह उसे वापस अपने राज्य ले आई। 2013 में जब वो वापस उत्तराखंड लौटी तो देखा कि नौकरी की तलाश में प्रदेश के छोटे-छोटे गांवों से लोग दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को मजबूर हैं। तभी इस लड़की ने कुछ अलग करने का फैसला लिया।
हम बात कर रहे हैं देहरादून में रहने वाली 30 साल की दिव्या रावत की। आज दिव्या मशरूम कल्टीवेशन के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम हैं। ‘मशरूम गर्ल’ से नाम से पहचान बनाने वाली दिव्या को उत्तराखंड सरकार ने मशरूम का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया है। मशरूम के जरिए दिव्या आज करीब 2 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना कारोबार कर रही हैं।
दिव्या कहती हैं, ‘मशरूम जल, जमीन, जलवायु की नहीं बल्कि तापमान की खेती है। इसकी इतनी वैरायटी होती हैं कि हम हर मौसम में इसकी खेती कर सकते हैं। फ्रेश मशरूम मार्केट में बेच सकते हैं और इसके बाय प्रोडक्ट भी बना सकते हैं।’
पलायन रोकने के लिए रोजगार की जरूरत थी, इसलिए मशरूम की खेती को चुना
दिव्या बताती हैं, ‘दिल्ली में मैंने देखा कि बहुत सारे पहाड़ी लोग 5-10 हजार रुपए की नौकरी के लिए अपना गांव छोड़ कर पलायन कर रहे हैं। मैंने सोचा कि मुझे अपने घर वापस जाना चाहिए और मैं अपने घर उत्तराखंड वापस आ गई। मैंने सोचा कि अगर पलायन को रोकना है तो हमें इन लोगों के लिए रोजगार का इंतजाम करना होगा। इसके लिए मैंने खेती को चुना, क्योंकि खेती जिंदगी जीने का एक जरिया है।’
मशरूम की खेती को चुनने के पीछे की वजह को लेकर दिव्या बताती हैं, ‘मैंने मशरूम इसलिए चुना, क्योंकि मार्केट सर्वे के दौरान यह पाया कि मशरूम के दाम सब्जियों से बेहतर मिलते हैं। एक किलो आलू आठ से दस रुपए तक मिलता है, जबकि मशरूम का मिनिमम प्राइज 100 रुपए किलो है। इसलिए मैंने मशरूम की खेती करने का फैसला लिया।
2015 में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ली। इसके बाद 3 लाख रुपए के इन्वेस्टमेंट के साथ खेती शुरू की। धीरे-धीरे लोगों का साथ मिलता गया और जल्द ही दिव्या ने अपनी कंपनी भी बना ली। उन्होंने मशरूम की खेती के जरिए बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दिया। दिव्या अब तक उत्तराखंड के 10 जिलों में मशरूम उत्पादन की 55 से ज्यादा यूनिट लगा चुकी हैं। उन्होंने बताया कि एक स्टैंडर्ड यूनिट की शुरुआत 30 हजार रुपए में हो जाती है। इसमें प्रोडक्शन कॉस्ट 15 हजार रुपए होती है और 15 हजार इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च होता है जो मिनिमम 10 साल तक चलता है।
शुरुआत में लोगों का माइंड सेट बदलना सबसे बड़ी चुनौती थी
दिव्या ने बताया कि शुरुआत में एक सबसे बड़ी परेशानी लोगों का माइंड सेट बदलना था। लोगों को लगता था कि ये काम नहीं हो पाएगा। जब मैंने उन्हें बताना शुरू किया कि मशरूम की खेती आपके लिए एक बेहतर विकल्प है, तो लोग कहने लगे कि जब इतना ही अच्छा है तो आप खुद करो। मैं लोगों के सामने एक उदाहरण के तौर पर खड़ी हुई, इसके बाद लोगों ने इसे समझा और इस फील्ड में काम करने लगे।
10 बाय 12 के कमरे में भी मशरूम की खेती, दो महीने में हाेगा 4 से 5 हजार का प्रॉफिट
दिव्या ने बताया कि कोई भी आम इंसान 10 बाय 12 के एक कमरे से भी मशरूम की खेती शुरू सकता है। मशरूम की एक फसल की साइकिल करीब 2 महीने की होती है। इसके सेट अप और प्रोडक्शन की कॉस्ट करीब 5 हजार रुपए आती है। एक कमरे में आप दो महीने के सभी खर्चे काट कर 4 से 5 हजार रुपए का प्रॉफिट निकाल सकते हैं। मशरूम की खेती के लिए शुरुआती ट्रेनिंग की जरूरत होती है जो आप अपने प्रदेश के एग्रीकल्चर या हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट से ले सकते हैं। इसके अलावा हमारे हेल्पलाइन नंबर (0135 253 3181) पर कॉल करके भी जानकारी ली जा सकती है।
3 लाख रुपए प्रति किलो मिलने वाले कीड़ा जड़ी मशरूम के कल्टीवेशन के लिए लैब बनाई
फिलहाल दिव्या ‘सौम्या फूड प्राइवेट कंपनी’ चलाती हैं, जिसका सालाना टर्नओवर करोड़ों रुपए में है। उनका मशरूम प्लांट भी है, जहां साल भर मशरूम कल्टीवेशन होता है। इस प्लांट में सर्दियों के मौसम में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों के मौसम में मिल्की मशरूम का कल्टीवेशन होता है। इसके साथ ही दिव्या हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाली कीड़ा जड़ी की एक प्रजाति कार्डिसेफ मिलिटरीज़ का भी कल्टीवेशन करती हैं, जिसकी बाजार में कीमत 2 से 3 लाख रुपए प्रति किलो तक है। कीड़ा जड़ी के कमर्शियल कल्टीवेशन के लिए दिव्या ने बकायदा लैब बनाई है। दिव्या की ख्वाहिश है कि आम आदमी की डाइट में हर तरह से मशरूम को शामिल किया जाए।
कोरोनावायरस के कारण कई लोग घर से काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें वायरस चेन को तोड़ने के लिए वर्क फ्रॉम होम दिया गया है। यह प्रोफेशनल दुनिया का एक हिस्सा है। दूसरे हिस्से में वे लोग हैं, जिन्हें कंपनी ने नुकसान के कारण नौकरी से निकाल दिया है या अनिश्चितकाल के लिए छुट्टी पर भेज दिया है। दोनों घर में हैं, लेकिन हाल एक दम अलग हैं। नौकरी गंवा देने मनोबल तोड़ देने वाला होता है। कई लोग परिवार और आर्थिक हिस्से की चिंता में मानसिक तौर पर परेशान हो जाते हैं।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, भारत में दिसंबर 2019 में बेरोजगारी दर 7.60% थी। यह मार्च 2020 में बढ़कर 8.75% पर पहुंच गई। जबकि, अप्रैल 2020 में यह आंकड़ा 23.52% था। हालांकि, अगस्त 2020 में यह कम होकर 8.35% पर आ गई थी। इसके बाद भी ऐसे कई लोग हैं जो काम पर दोबारा वापस नहीं जा पाए। डॉयचे वेले की एक खबर के अनुसार, एक्सपर्ट्स का मानना है भारत को बेरोजगारी संकट से उबरने में लंबा वक्त लगेगा।
टिप्स, जो आपको मानसिक तौर पर तैयार करेंगी
राजस्थान के उदयपुर स्थित गीतांजलि हॉस्पिटल में एसोसिएट प्रोफेसर और साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं कि सबसे जरूरी है समय। यह कभी रुकता नहीं है। हमें समय से घबराना नहीं है। खुद को तैयार करो। डॉक्टर शर्मा से जानें, कैसे रखें खुद को शांत।
डॉक्टर शर्मा ने बताया कि उनके एक परिचित पहले कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करते थे, लेकिन बुरे दौर से गुजर रही कंपनी ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। इसके बाद वे स्ट्रेस में आ गए, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और सरकार की योजनाओं का फायदा उठाकर सब्जियों का काम शुरू कर दिया है। वे अब केवल बिजनेस ही करना चाहते हैं।
आर्थिक मोर्चे पर खुद को कैसे तैयार करें
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर आपने महामारी के दौर में अपना बिजनेस या नौकरी गंवा दी है और आपके पास सेविंग्स हैं तो उसका सही इस्तेमाल ही एकमात्र रास्ता है। अपनी सेविंग्स को ध्यान से खर्च करना बेहद जरूरी है।
अब भविष्य की तैयारी
क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है, जिसमें एक महिला सब्जी के ढेर के बीच बैठी दिख रही हैं।
दावा किया जा रहा है कि ये इंफोसिस की को-फाउंडर सुधा मूर्ति हैं। अरबों की संपत्ति होने के बाद भी वे साल में एक बार सब्जी बेचती हैं।
और सच क्या है ?
कोरोना के दौरे में अनलॉक-4 शुरू होते ही बॉलीवुड सेलेब्स अपने प्रोजेक्ट पूरे करने में व्यस्त हो गए। कई एक्टर और एक्ट्रेस देश के अलग-अलग शहरों में शूटिंग कर रहे हैं, तो कुछ शूटिंग के लिए विदेश चले गए हैं। वहीं, कुछ घर से अपना काम संभाल रहे हैं।
अक्षय कुमार अपनी फिल्म 'बेल बॉटम' की शूटिंग स्कॉटलैंड में कर रहे हैं। उनके साथ वाणी कपूर, हुमा कुरैशी और लारा दत्ता भी हैं। आर माधवन और एली अबराम दुबई में वेब शो 'सेवंथ सेंस' की शूटिंग कर रहे हैं। उनके साथ वहां करीब 100 लोगों की टीम है।
15 दिन से जयपुर में हैं तापसी पन्नू
तापसी पन्नू और विजय सेतुपति 15 दिन से जयपुर में एक साउथ इंडियन फिल्म की शूटिंग कर रही हैं। इस यूनिट में उनके अलावा 100 लोगों की एक टीम है। उधर, दीपिका पादुकोण और अनन्या पांडे गोवा में हैं। इस फिल्म का निर्देशन शकुन बत्रा कर रहे हैं।
ये सितारे भी जल्द ही देश में ही शूटिंग शुरू करेंगे
जॉन अब्राहम दो फिल्मों के लिए लखनऊ और हैदराबाद जा सकते हैं। कंगना रनोट अक्टूबर के बाद चेन्नई जाकर जयललिता की बायोपिक 'थलाइवी' की शूटिंग करेंगी। उसके बाद वे मुंबई में 'धाकड़' की शूटिंग शुरू करेंगी। विद्या बालन अक्टूबर में मध्यप्रदेश के बालाघाट जा सकती हैं। यहां वे 'शेरनी' की शूटिंग शुरू करेंगी। जल्दी ही रणवीर सिंह भी मुंबई में ही अपनी अपकमिंग फिल्म शूट करेंगे।
मुंबई के स्टूडियोज में भी जारी है शूटिंग
संजय दत्त ने हाल ही में एक स्टूडियो में 'शमशेरा' की शूटिंग पूरी की। रणबीर कपूर भी इसी फिल्म के लिए इसी स्टूडियो में शूटिंग कर सकते हैं। आलिया भट्ट 'ब्रह्मास्त्र' के लिए डबिंग शुरू कर चुकी हैं। इसके बाद वे संजय लीला भंसाली की फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' के लिए शूटिंग करेंगी। सलमान खान अक्टूबर में महबूब स्टूडियो में अपनी फिल्म 'राधे' की शूटिंग पूरी कर सकते हैं।
ये सेलेब्स फिलहाल घर से कर रहे काम
सैफ अली खान ने हाल ही में 'बंटी और बबली 2' की शूटिंग पूरी की है। अब वे अली अब्बास जफर के वेब शो 'दिल्ली' के लिए घर से ही डबिंग कर रहे हैं। मनोज बाजपेयी फिलहाल घर पर ही स्क्रिप्ट मंगवाकर उनकी रीडिंग कर रहे हैं।
केन्या के वीरान पड़े मैदानों में छोटी-छोटी काले रंग की गेंदें यानी सीडबॉल्स हरियाली वापस लाने का काम कर रही हैं। चारकोल में लिपटे हुए बीजों को गुलेल और हेलिकॉप्टर की मदद से दूर तक फेंका जा रहा है। बारिश होने पर चारकोल मेंं मौजूद बीज से पौधे पनपने की शुरुआत होती है। 2016 में सीडबॉल्स केन्या नाम के ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत टेडी किन्यानजुई और एल्सन कार्सटेड ने की थी।
पिछले चार साल में करीब 11 करोड़ सीडबॉल्स बांटी जा चुकी हैं। इनका लक्ष्य स्कूल और लोगों के साथ मिलकर केन्या के मैदानों में जंगलों को वापस तैयार करना है। सीडबॉल को एक सफल प्रयोग माना गया और भारत समेत कई देशों में इससे हरियाली वापस लाने की कोशिश की जा रही है। सीडबॉल्स केन्या के को-फाउंडर टेडी कहते हैं कि अगले 5 सालों में केन्या में हरियाली दिखने लगेगी।
मिट्टी की बजाय चॉरकोल वाले सीड बॉल ज्यादा सुरक्षित
हर सीडबॉल में एक बीज होता है। इस बीज के ऊपर चारकोल को चढ़ाकर गेंद जैसा आकार दिया जाता है। ये आकार में एक सिक्के जितने होते हैं। टेडी कहते हैं कि इसे गर्म मौसम में मैदानों में फेंका जाता है। बीजों पर चारकोल को लगाने के पीछे एक बड़ा कारण है। केवल बीजों को छोड़ने पर उसे चिड़िया और दूसरे जीव खा जाते हैं। लेकिन, इस पर चारकोल लिपटा होने के कारण यह सुरक्षित रहता है। जब बारिश आती है तो बॉल में नमी बढ़ती है और बीज अंकुरित होना शुरू होता है। इस तरह बीज से पौधा तैयार हो जाता है।
कैसे हुई शुरुआत?
टेडी कहते हैं, एक पौधा अपने क्षेत्र में पौधों की मां की तरह होता है। इससे दूसरे बीजों को पनपने में मदद मिलती है। इन पौधों से निकलने वाले बीज नए पौधों को जन्म देते हैं। इसकी शुरुआत 2016 में स्कूली बच्चों के साथ मिलकर की गई, ताकि बीजों को स्कूल के मैदानों में छोड़ा जाए। बीजों को आसपास के बच्चों को बांटा गया, उन्होंने गुलेल की मदद से इसे दूर तक पहुंचाया।
इस काम को इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए बच्चों की बीच कॉम्पिटीशन शुरू किए गए। उन्हें गुलेल देकर बीजों को दूर तक पहुंचाने का टार्गेट दिया गया। इस तरह यह काम उनके लिए एक गेम की तरह बन गया, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया।
जिन इलाकों में बीज पहुंचाना मुश्किल, वहां हेलिकॉप्टर की मदद ली गई
टेडी के मुताबिक, जिन दूर-दराज वाले इलाकों में बीजों को पहुंचाना आसान नहीं था, वहां हेलिकॉप्टर से सीडबॉल छोड़े गए। इस दौरान जीपीएस तकनीक से जाना गया कि कहां बीजों की जरूरत है, वहीं इन्हें छोड़ा गया। विमान में पैसेंजर की सीट की जगह सीट बॉल की बोरियां रखी गईं ताकि सही जगह और सही समय पर इसे पहुंचाया जा सके। इस तरह सिर्फ 20 मिनट में 20 हजार बीज छोड़े गए।
केन्या में हरियाली सबसे ज्यादा जरूरी
केन्या में जिराफ की संख्या तेजी से घटी है। 2016 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने जिराफ को लुप्त होने की कगार पर खड़े जानवरों की लिस्ट में शामिल किया था। इसकी सबसे बड़ी वजह पेड़ों की घटती संख्या को बताया गया।
टेडी कहते हैं, सीडबॉल में ऐसे पौधों के बीज हैं जो बेहद कम पानी में विकसित हो जाते हैं। जैसे- बबूल, यह तेजी से बढ़ता है। इसकी जड़ें मजबूत होने के कारण यह सूखे का सामना आसानी से कर सकता है। इससे मिट्टी का कटाव भी रोका जा सकता है। गांवों में रहने वाले केन्या के लाखों लोग मक्के पर निर्भर हैं। लगातार चारकोल का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर करने के लिए जंगल काटे गए। नतीजा, यहां सूखे जैसे हालात बन गए।
अब किसानों की आमदनी बढ़ाने की तैयारी
टेडी कहते हैं कि अगले पांच साल में हरियाली दिखने लगेगी। हम कोशिश कर रहे हैं कि किसान ज्यादा से ज्यादा बीजों को तैयार करें, ताकि उनकी आमदनी और बढ़े। टेडी और एल्सन की संस्था सीडबॉल केन्या बीजों को केन्या फॉरेस्ट्री रिसर्च इंस्टीट्यूट से वेरिफाई कराने के बाद ही इन पर चारकोल की लेयर चढ़ाती है।