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Saturday, December 12, 2020

समस्या कितनी भी बड़ी हो, उसका सामना अहिंसा, विनम्रता और धैर्य के साथ करना चाहिए

कहानी- घटना उस समय की है कि जब गौतम बुद्ध कौशांबी नगर में रह रहे थे। इस राज्य की रानी गौतम बुद्ध को पसंद नहीं करती थी। इस कारण वह बुद्ध का अलग-अलग तरीकों से अपमान करती रहती थी।

रानी ने अपने कुछ लोग बुद्ध को अपमानित करने के लिए और परेशान करने के लिए उनके पीछे लगा दिए थे। रानी के आदेश पर वे सभी बुद्ध को तरह-तरह से प्रताड़ित कर रहे थे। उनका विरोध कर रहे थे, अपशब्द कह रहे थे। लेकिन, बुद्ध ने किसी से कुछ नहीं कहा।

उस समय बुद्ध के साथ उनका एक शिष्य भी था, उसका नाम था आनंद। आनंद ने बुद्ध से कहा, 'मैं लगातार देख रहा हूं कि यहां के लोग जान-बूझकर हमारा अपमान कर रहे हैं। हमें ये जगह छोड़ देनी चाहिए। जहां हमारा अपमान होता है, जहां सम्मान नहीं मिलता, ऐसी जगह हमें रुकना नहीं चाहिए।'

बुद्ध ने आनंद से पूछा, 'ये जगह छोड़कर हम कहां जाएंगे?'

आनंद ने कहा, 'किसी और जगह चले जाएंगे।'

बुद्ध बोले, 'अगर वहां भी हमें ऐसी ही परेशानियों का सामना करना पड़ा, तो फिर कहां जाएंगे? और हम कब तक भागते रहेंगे? इसका कोई अंत नहीं है। अपमान भी एक समस्या है, एक मुसीबत है। ये लोग हमें अपमानित कर रहे हैं। हम अहिंसा, धैर्य के साथ अपनी विनम्रता और शालीनता से इसका सामना करेंगे। हम इनके मन में अपने लिए जगह बनाएंगे।'

सीख- दुनिया में परेशानियां हर जगह हैं। हम परेशानियों से बच नहीं सकते हैं। इसीलिए समस्या चाहे कैसी भी हो, हमें उसका सामना करना चाहिए।



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उम्मीदों की पेंटिंग से नववर्ष अंक के कवर पेज का हिस्सा बनें

प्रिय पाठको, 2020 अपने अंतिम पड़ाव की ओर है और वर्ष 2021 को लेकर, खासतौर पर बच्चों और युवाओं के मन में बेहतर भविष्य से जुड़ी बड़ी उम्मीदें हैं। आशा के ये रंग करोड़ों लोगों तक पहुंचाने के लिए दैनिक भास्कर समूह एक नया और अनूठा प्रयोग करने जा रहा है। इसके तहत, पहली बार बच्चों व युवाओं को पेंटिंग प्रतियोगिता के माध्यम से दैनिक भास्कर के नववर्ष के खास अंक के कवर पेज का हिस्सा बनने का मौका दिया जा रहा है।

11 साल के बच्चों से लेकर 18 साल तक के युवा 2021 में अपनी उम्मीदों का भारत, इस थीम पर खूबसूरत पेंटिंग बनाकर विजेता बन सकते हैं। विशिष्ट ज्यूरी द्वारा चयनित सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग को दैनिक भास्कर के विशेष अंक में प्रकाशित करने के साथ ही प्रथम पुरस्कार के रूप में 51,000 रुपए की सम्मान राशि प्रदान की जाएगी।

चयनित अन्य प्रतिभाओं को 31,000 का दूसरा पुरस्कार, 11,000 का तीसरा और 1,000 रुपए के 10 सांत्वना पुरस्कार भी दिए जाएंगे। प्रविष्टि भेजने की अंतिम तारीख बुधवार 23 दिसंबर 2020 है।

प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए-

  1. 9190000073 पर मिस्ड कॉल दें। आपको SMS पर एक लिंक मिलेगी, जिसे क्लिक करके आप फॉर्म भरकर पेंटिंग को सब्मिट कर सकते हैं।
  2. www.bhaskar.com पर जाकर भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकते हैं।


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प्राकृतिक खेती शुरू कर खाद और रासायनिक दवाओं का खर्च कम किया, अब जीरो बजट खेती का टारगेट

गांधीजी की स्वराज की कल्पना गाय और ग्राम आधारित थी। क्योंकि, भारत में मानव जीवन के लिए गाय की उपयोगिता का उल्लेख धर्म-शास्त्रों और वेद-पुराणों में भी मिलता है। वहीं, पुरातन काल की खेती गौ आधारित ही थी, जिसका स्वरूप अब बदलता जा रहा है। लेकिन, सूरत जिले के वडिया गांव के एक किसान ने गौ आधारित खेती ही अपनाई। अच्छी फसल के साथ दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि इससे उनकी फसल का खर्च 60 हजार रुपए से घटकर 3-4 हजार रुपए तक आ गया है।

रासायनिक खाद और दवाईयों को पूरी तरह से त्याग चुके किसान प्रकाशभाई बताते हैं, ‘मेरे पास चार बीघा जमीन है, जिसमें भिंडी, बैंगन, प्याज, मिर्च और अन्य हरी सब्जियां उगाता हूं। जनवरी महीने में भिंडी के बीज बोए थे। तब मैंने खेत में पेस्टीसाइड का उपयोग नहीं किया। सिर्फ गाय के गोबर और गो-मूत्र का ही उपयोग किया और देखा कि कम समय में भी अच्छी फसल तैयार हो गई। फसल का टेस्ट भी पहले की तुलना में बहुत अच्छा था, जिसकी मुझे अच्छी कीमत भी मिली।

लागत 60 हजार से घटकर 2-3 हजार हुई

प्रकाशभाई बताते हैं कि इस प्रयोग के बाद रासायनिक खाद और दवाइयों का काफी खर्च बच गया है। जहां पहले 60 हजार रुपए तक खर्च हो जाते थे, उसकी जगह अब एक फसल में 2 से 3 हजार रुपए ही खर्च हुए। इसी के बाद से उन्होंने प्राकृतिक खेती करनी शुरू कर दी और अब लक्ष्य जीरो बजट पर लाने का है।

अपने खेत पर खेती के लिए दवाइयां तैयार करते हुए प्रकाशभाई।

घर पर ही जीवामृत, दशपर्णीअंक जैसी दवाएं बनाते हैं

प्रकाशभाई पटेल ने एक साल पहले ही प्राकृतिक यानी की गौ आधारित खेती की शुरुआत की है। उन्होंने इसके लिए सात दिन की ट्रेनिंग भी ली थी। इसके बाद उन्होंने गांव के पास स्थित गौशाला से संपर्क किया और वहां से रोजाना गोबर और गो-मूत्र लाकर उसका उपयोग अपनी फसलों पर किया।

फसलों पर इसका अच्छा फायदा होते देख प्रकाशभाई ने गिर नस्ल की दो गाय खरीदीं। घर पर ही जीवामृत, दशपर्णीअंक जैसी दवाएं बनाकर फसलों पर छिड़काव करना शुरू किया। प्रकाशभाई ने इसके लिए दूसरे किसानों को भी प्रोत्साहित किया। जब किसानों ने इसके बारे में जाना, तो वे भी प्रकाशभाई के रास्ते पर चल पड़े।

फसलों के प्रमोशन के लिए किसानों ने ग्रुप भी बनाया

अब किसानों ने अपना एक ग्रुप बनाया है। यह ग्रुप रासायनिक खाद रहित फसलों को शहरों में ले जाकर लोगों को इसके बारे में बताता है, जिससे फसलों के अच्छे दाम मिल सकें और दूसरे किसान भी प्राकृतिक खेती करने की ओर अग्रसर हों। इतना ही नहीं, इस ग्रुप ने यह भी व्यवस्था कर रखी है कि कोई भी किसान इस देसी दवा और खाद बनाने की ट्रेनिंग लेने के लिए उनसे संपर्क कर सकता है।

गौ आधारित खेती से शरीर से लेकर जमीन तक को फायदा

प्रकाशभाई बताते हैं कि गौ आधारित खेती से रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है, क्योंकि फसलों पर पेस्टीसाइड का उपयोग नहीं होता। गोबर के प्रयोग से जमीन ठोस नहीं होती और हल भी आसानी से चलते हैं। वहीं, इसके जरिए क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से भी निपटा जा सकता है। क्योंकि, खेतों में पेस्टीसाइड का उपयोग धीरे-धीरे जमीन की उर्वरता को खत्म कर देता है।

पेस्टिसाइड वाली फसलों से कैंसर, डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। वहीं, हम अगर प्राकृतिक खेती करें तो इन समस्याओं से निपटने के अलावा रासायनिक खाद और महंगी दवाओं का खर्च भी बचा सकते हैं। वहीं, जैविक खाद तैयार करना भी बहुत आसान है। सिर्फ 6-7 दिनों की ट्रेनिंग से ही इसे किसान खुद घर पर तैयार कर सकते हैं।



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Gujarat Farmer Organic Farming | Zero Budget Natural Farming; Success Story Of Gujarat Surat Prakash Bhai Patel Organic Farming


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पंजाब के लोगों को क्यों है फिर से अपनी जमीन के बंटने का डर

टिकरी बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों की ट्रॉलियों पर लगा एक पोस्टर ध्यान खींचता है। इस पर अविभाजित पंजाब का नक्शा है जिसके साथ लिखा है पुराना पंजाब साथ ही आज के पंजाब का नक्शा है जिसके साथ लिखा है नया पंजाब।

कतार में खड़ी दर्जनों ट्रॉलियों पर ये मैप लगे हैं। यहां खड़े युवा पंजाब और इस नक्शे पर चर्चा कर रहे हैं और डर जाहिर कर रहे हैं कि आगे चलकर पंजाब और भी टुकड़ों में बंट जाएगा।

पंजाब यानी वो जमीन जिसे पांच पानी (नदियां) सींचते हैं। अंग्रेजी हुकूमत से भारत की आजादी के बाद पंजाब का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान चला गया था। बड़ी आबादी इधर-उधर हुई। हिंसा में लाखों लोग मारे गए। जो बच गए वो अपने साथ बंटवारे की कहानियां ले आए। ये कहानियां आज भी पंजाब के लोगों को दिलों में ताजा हैं।

चौदहवीं सदी में भारत घूमने आए अरब यात्री इब्न-बतूता ने अपनी किताब में पंजाब का जिक्र किया है। इससे पहले इस शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। आज पंजाब सिर्फ भारत का एक राज्य ही नहीं बल्कि अपने आप में समृद्ध संस्कृति है और इसकी अपनी विरासत है।

सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में पंजाब की संस्कृति का हर रंग दिखता है। यहां लोग महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल की बात करते हैं। दिल्ली पर सिखों की जीत का हवाला देते हैं। लेकिन, टिकरी बॉर्डर पर जो पोस्टर लगे हैं उनमें पंजाब के लोगों की आशंकाएं और डर दिखता है। इस मैप का मतलब समझाते हुए एक बुजुर्ग बेअंत सिंह कहते हैं, 'ये पुराना पंजाब है, आजादी से पहले वाला पंजाब, महाराणा रणजीत सिंह का पंजाब। और ये नया पंजाब है, जो आजकल है।'

शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने सिख साम्राज्य को मजबूत किया था और पंजाब के अधिकतर हिस्से को अपने शासन में लिया था। पंजाब के लोग उनके शासनकाल को स्वर्णिम दौर के रूप में याद करते हैं। पोस्टर का मतलब समझाते हुए बेअंत सिंह कहते हैं, 'हम लोगों को बताना चाहते हैं कि पहले हमारा पंजाब इतना बड़ा था, अब छोटा रह गया है, हम अपने पंजाब को इससे छोटा नहीं होने देंगे। हमें चोरों से, लुटेरों से, काले कानून बनाने वालों से अपने पंजाब को बचाना है।'

जतिंदर सिंह एक युवा हैं जो अपने साथियों के साथ किसान आंदोलन में शामिल हैं। मैप पर हाथ फिराते हुए वो कहते हैं, 'पुराना पंजाब दुनिया का सबसे खुशहाल राज्य माना जाता था। ये नया पंजाब है, जिसे सियासतदानों ने बांट दिया। भाई-भाई का बंटवारा करके हरियाणा इससे निकाल दिया। पंजाब को चार राज्यों में बांट दिया। हम अपने पंजाब को और नहीं बंटने देंगे।' ब्रितानी राज के पंजाब प्रांत को दो हिस्सों में बांटा गया। मुस्लिम बहुल पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में गया और सिख बहुल पूर्वी पंजाब भारत में। पटियाला जैसे छोटे प्रिंसली स्टेट भी पंजाब का हिस्सा बने।

1950 में भारत के पंजाब से दो राज्य बने, पंजाब और पटियाला। नाभा, जींद, कपूरथला, मलेरकोटला, फरीदकोट और कलसिया की रियासतों को मिलाकर एक नया राज्य बना 'द पटियाला एंड द ईस्ट पंजाब स्टेट्स यूनियन' यानी पीईपीएसयू। बाद में कांगड़ा जिले और कई रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश को केंद्र शासित राज्य के तौर पर बनाया गया। 1956 में पीईपीएसयू को पंजाब में मिलाया गया, कई उत्तरी जिले हिमाचल को देकर उसे राज्य बना दिया गया। पंजाब का एक और बंटवारा 1966 में हुआ जब हरियाणा अलग राज्य बना दिया गया। बंटवारे के ये निशान लोगों के जेहन पर ताजा हैं और इन्होंने ही आगे और बंटवारा होने के डर को भी जन्म दिया है।

ट्राॅलियों पर लगे पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए एक युवा बताता है, 'वॉट्सऐप पर मैसेज वायरल हो रहे हैं कि कुछ और जिले जम्मू और हिमाचल को दिए जा सकते हैं। पंजाब को और छोटा करने की साजिश चल रही है। सबकी नजर हमारी जमीन पर है।' वे कहते हैं, 'हमारे इस पंजाब को तीन हिस्सों में बांटने की साजिशें चल रही हैं। इस पंजाब को खत्म करके कुछ हिस्सा हरियाणा, कुछ राजस्थान और कुछ दूसरे राज्यों को देने की साजिश चल रही है।'

ये युवा जिस साजिश की बात कर रहे हैं वो वॉट्सऐप के ग्रुपों से अलग कहीं दिखाई नहीं देती। बावजूद इसके, इन संदेशों ने लोगों की राय को प्रभावित किया है। यहां हमें कई ऐसे लोग मिले जिनका कहना था कि अब सरकारों की नजर पंजाब की जमीन पर है।

टिकरी बॉर्डर पर हरियाणा से आने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जगह-जगह पंजाब और हरियाणा के भाईचारे के बैनर भी दिखाई देते हैं। आंदोलन में शामिल लोगों का कहना है कि ये किसान आंदोलन हरियाणा और पंजाब के लोगों को और करीब ला रहा है।

हरियाणा से आए सतबीर देशवाल कहते हैं, ‘हरियाणा और पंजाब के किसान ही नहीं लोग भी करीब आ रहे हैं। हरियाणा की खापों और संगठनों ने पंजाब के किसान भाइयों को पूरा सहयोग दिया है। हम तन, मन, धन से साथ है।’ देशवाल कहते हैं, ‘पंजाब हरियाणा और हिमाचल पहले भी एक थे, अब भी एक हैं। सीमाएं भले ही बांट दी हैं लेकिन हम सबके दिल एक हैं। राजनीतिक मुद्दों ने हमें बांटने की कोशिश की है, लेकिन जमीन पर हम सब एक हैं।’

वहीं युवा किसान जतिंदर का ये भी कहना है कि हो सकता है पंजाब के बांटे जाने की आशंकाओं के मैसेज के पीछे कोई साजिश भी हो। वो कहते हैं, ‘हो सकता है कि ऐसे मैसेज वायरल पीछे करने के पीछे कोई शरारत हो, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि ये तीनों कानून पंजाब की खेती को खत्म करने की साजिश है। पंजाब की किसानी खत्म होगी, तो पंजाब अपने-आप ही खत्म हो जाएगा।’



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Farmers Protest Reason; Why Punjab Kisan Afraid Over Land | Why Farmers Are Protesting Against Farm Bill?


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लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 करने से क्या फर्क पड़ेगा? इसके पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे हैं, वो कितने सही?

लड़कियों की शादी उम्र क्या हो? 18 साल या 21 साल? इसे लेकर देश में बहस चल रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी में अपने बजट भाषण में इसका जिक्र किया था। उन्होंने एक कमेटी बनाने की बात भी कही थी। प्रधानमंत्री मोदी भी 15 अगस्त के अपने भाषण में इसका जिक्र कर चुके हैं। इसके बाद मोदी ने अक्टूबर में भी एक कार्यक्रम के दौरान एक बार फिर इसे लेकर बात की।

सरकार की इस पूरी कवायद के बारे में हमने महिलाओं के हितों के लिए काम करने वाली तीन महिलाओं से बात की।

पहली हैं अक्ष सेंटर फॉर इक्विटी एंड वेल बीइंग की डायरेक्टर शिरीन जेजीभाय। शिरीन ने मैटर्नल हेल्थ, वुमन एजुकेशन, एम्पावरमेंट पर न सिर्फ काम किया है, बल्कि उनके कई रिसर्च पेपर भी इस पर पब्लिश हो चुके हैं।

दूसरी हैं इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वुमन में डायरेक्टर रिसर्च एंड प्रोग्राम्स प्रणिता अच्युत। प्रणिता भी फैमिली प्लानिंग और बाल विवाह मामलों की विशेषज्ञ हैं।

तीसरी हैं जया वेलंकर, जो महिलाओं के लिए काम करने वाली दिल्ली की संस्था जगोरी की डायरेक्टर हैं।

तीनों से बातचीत के आधार पर इस पूरे मामले को सवाल-जवाब के जरिए समझिए।

उम्र बढ़ाने से क्या फर्क पड़ेगा?

  • शिरीन कहती हैं कि न तो ये व्यावहारिक रूप से सही है और न इससे स्थिति में कोई विशेष फर्क पड़ेगा। भारत में कानून होने के बावजूद लड़कियों के बाल विवाह नहीं रुके हैं, तो इसकी जड़ में कई सामाजिक वजहें हैं, जैसे लड़की की उम्र ज्यादा होने पर ज्यादा दहेज का दबाव, सामाजिक प्रतिष्ठा और उम्र निकलने पर लड़की के लिए अच्छा वर न मिलने का डर होना। ये इतने ताकतवर कारण हैं कि कानून भी अभिभावकों को रोक नहीं पाता। इसलिए कानून कितने भी बना दिए जाएं, कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
  • जया वेलंकर बोलीं- सरकार ने बस यही कहा है कि कम उम्र में शादी होना लड़की और उसके बच्चे के लिए जानलेवा भी हो सकता है, इसलिए हमें उम्र बढ़ानी है। लेकिन, जब मौजूदा कानून का पालन ही नहीं हो रहा है, तो नए कानून का मतलब क्या होगा।

कहा जा रहा है कि इससे लड़कियों को एजुकेशन और डेवलपमेंट का मौका मिलेगा, उसका क्या?

  • प्रणिता कहती हैं कि ये शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी जैसे मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है। झारखंड के जिस इलाके में हम काम कर रहे हैं, वहां 15-18 साल के बीच की आधी से अधिक लड़कियों की पढ़ाई छूट चुकी है जबकि दस साल की उम्र की 90 फीसदी लड़कियां स्कूल जा रही हैं।
  • लड़कियों के स्कूल छोड़ने की वजह स्कूल से दूरी है, गरीबी है और सामाजिक दबाव है। जब तक इन मूल मुद्दों पर काम नहीं होगा, लड़कियों का पूर्ण विकास नहीं होगा।
  • अगर हम 18 साल में वोट डालने का, सरकार बनाने का अधिकार देते हैं तो लड़कियों को इस उम्र में शादी करने का भी हक होना चाहिए। कानून युवाओं के अधिकार के हनन के लिए नहीं बनने चाहिए।

मदर मोर्टेलिटी रेट में कमी आने की जो बात कही जा रही है उसका क्या?

  • जया कहती हैं कि बात पेपर पर तो बिल्कुल सही लगती है। लेकिन हमारे देश में मदर मोर्टेलिटी के दो कारण होते हैं। पहला प्रसव के समय बहुत सारा खून निकलना। और दूसरा अच्छी स्वास्थ्य सेवा न मिल पाना।
  • खून बहने के कारण भी अलग-अलग होते हैं। 56% महिलाएं एनिमिक हैं। 60-62% किशोर लड़कियां एनिमिक हैं। हर दूसरी लड़की को एनिमिया है। कहने का मतलब लड़की की उम्र 21 साल हो, 22 हो या 23 हो, उसको प्रसव के समय बहुत सारा खून निकलेगा ही। इसलिए अगर मदर मोर्टेलिटी कम करनी है तो एनिमिया कम करना होगा।
  • इससे अच्छा है कि मां-बाप कम उम्र में शादी क्यों करते हैं? उसके कुछ कारणों को कम किया जाए।

फिर सरकार शादी की उम्र बदलना क्यों चाहती है?

कहा जा रहा है कि सरकार मैटरनल मोर्टेलिटी रेट में कमी लाना चाहती है। तर्क ये भी दिया जा रहा है कि लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने से उन्हें बेहतर एजुकेशन और डेवलपमेंट का भी मौका मिलेगा। सरकार की इस कवायद का समर्थन करने वाले कहते हैं लड़के और लड़की दोनों की शादी की उम्र एक होनी चाहिए।

मौजूदा कानून क्या है और कितनी इफेक्टिवनेस हैं?

  • 1929 के शारदा कानून में शादी के वक्त लड़कियों का कम से कम 14 साल और लड़कों का 18 साल होने की बात कही गई। 1978 में इसे बदलकर लड़कों के लिए ये 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई। 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून ने कुछ और शर्तों के साथ पुराने कानून की जगह ली।
  • इस कानून के बाद में दुनियाभर में जितनी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में होती है उनमें से हर तीसरी लड़की भारतीय होती है। ऐसा हम नहीं यूनिसेफ के आंकड़े कहते हैं। देश के बाल विवाह रोकथाम कानून में दो साल की सजा और एक लाख जुर्माने की बात कही गई है।
  • इस कानून का इस्तेमाल कितना हो रहा है इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 2014 से 2016 के बीच देशभर में बाल विवाह के कुल 1,785 मामले दर्ज हुए। इनमें केवल 274 लोगों की गिरफ्तारी हुई और महज 45 लोग दोषी करार दिए गए।
  • पुराने कानून का तो ये हाल है। इसके बाद सरकार अब जो नया कानून लाएगी उसकी इफेक्टिवनेस का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।


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बाइडेन की जीत और ट्रम्प की हार पर मुहर लगाएगा इलेक्टोरल कॉलेज, इस बारे में सब कुछ जानिए

तीन नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुए। जो बाइडेन जीते और डोनाल्ड ट्रम्प हारे। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया जटिल है। बाइडेन को प्रेसिडेंट इलेक्ट भले ही कहा जा रहा हो, लेकिन आधिकारिक तौर पर नतीजों का ऐलान 6 जनवरी को होगा। इसके पहले सबसे अहम चरण इलेक्टोरल कॉलेज वोटिंग है। यह 14 दिसंबर को होगी।

इलेक्टोरल कॉलेज पर हमेशा बहस होती रही है। हाल ही में गैलप के एक सर्वे में 61% अमेरिकी नागरिकों ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि राष्ट्रपति का चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज से नहीं, बल्कि पॉपुलर वोट से होना चाहिए। आइए, इलेक्टोरल कॉलेज को बहुत आसान तरीके से समझने की कोशिश करते हैं। ध्यान रहे, इलेक्टोरल कॉलेज का मतलब किसी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट से नहीं है। इसका मतलब है जन प्रतिनिधियों का समूह या निर्वाचक मंडल। यही समूह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनता है।

इलेक्टर और इलेक्टोरल कॉलेज के फर्क को समझिए
इसे हालिया राष्ट्रपति चुनाव से समझने की कोशिश करते हैं। ट्रम्प रिपब्लिकन कैंडिडेट थे। बाइडेन डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार थे। वोटर ने जब बाइडेन को वोट किया तो उनके नाम के आगे ब्रेकेट में एक नाम और लिखा था। ट्रम्प के मामले में भी यही था। दरअसल, मतदाता ने ब्रैकेट में लिखे नाम वाले व्यक्ति को अपना इलेक्टर चुना।

यही इलेक्टर 14 दिसंबर को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग करेगा। और आसान तरीके से समझें तो वोटर ने ट्रम्प या बाइडेन को वोट नहीं दिया, बल्कि अपना प्रतिनिधि चुना और उसे ही वोट दिया। अब यह प्रतिनिधि यानी इलेक्टर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनेगा।

मतदाता इलेक्टर्स चुनते हैं। और इलेक्टर्स के समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है। इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टोरल वोट या इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत है।

यह फोटो 1824 में हुई इलेक्टोरल कॉलेज वोटिंग के नतीजों की है। तब तक नतीजे हाथ से लिखकर जारी किए जाते थे।

भारत से समानता
एक लिहाज से भारत में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जिस तरह चुने जाते हैं, वैसा ही अमेरिका में होता है। भारत में लोकसभा सांसद प्रधानमंत्री और राज्यों में विधायक मुख्यमंत्री चुनते हैं। राष्ट्रपति का चुनाव भी सांसद और विधायक करते हैं। अमेरिका में सांसद और विधायकों की जगह मतदाता इलेक्टर्स चुनते हैं। फिर इलेक्टर्स राष्ट्रपति चुनते हैं। ये अप्रत्यक्ष या इनडायरेक्ट तरीका है।

इलेक्टर्स की संख्या कैसे तय होती है?
अमेरिका के झंडे में 50 सितारे हैं। इसका मतलब यहां 50 राज्य हैं। 1959 तक 48 राज्य थे। बाद में अलास्का और हवाई जुड़े। हमारी तरह संसद के दो सदन हैं। हाउस ऑफ रिप्रेंजेटेटिव (HOR) और सीनेट। HOR में 435 और सीनेट में 100 मेंबर होते हैं। ये बताना जरूरी है। क्योंकि, एक राज्य में इलेक्टर्स की संख्या उतनी ही होगी, जितने उसके HOR और सीनेट में सदस्य हैं।

आसान उदाहरण से समझिए
HOR को आप हमारी लोकसभा और सीनेट को राज्यसभा समझ सकते हैं। सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में कुल मिलाकर 535 सदस्य हैं। डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया (DC) के तीन सदस्य हैं। HOR के मेंबर राज्य की जनसंख्या के हिसाब से तय हैं। लेकिन, सीनेट में हर राज्य से सिर्फ 2 सदस्य हैं। यानी 50 राज्य और 100 सदस्य।

कैलिफोर्निया में HOR की 53 और सीनेट की 2 सीटें हैं। यानी कुल 55 सदस्य। इतनी ही संख्या इलेक्टर्स की होगी। मतलब यह हुआ कि इलेक्टोरल कॉलेज में कैलिफोर्निया के 55 वोट हैं। ये हमारे उत्तर प्रदेश की तरह है, जहां से सबसे ज्यादा सांसद चुने जाते हैं।

क्या इसमें कोई और पेंच भी है?
हां। दरअसल, राज्य छोटा हो या बड़ा। वहां इलेक्टर्स की संख्या 3 से कम नहीं होनी चाहिए। मान लीजिए अलास्का। यहां HOR का सिर्फ एक मेंबर है। लेकिन, सीनेट में हर राज्य से 2 मेंबर्स होते हैं। लिहाजा अलास्का से तीन इलेक्टर्स चुने जाएंगे। ऐसे सात राज्य हैं, जहां इलेक्टर्स की संख्या 3 है। ये 7 राज्य 21 इलेक्टर्स चुनकर इलेक्टोरल कॉलेज में भेजते हैं।

फोटो 1946 की है। तब चुनाव हुए थे और इसके बाद इलेक्टर्स ने वोटिंग की थी।

इलेक्टर कौन और कैसे बनता है?
इसका फैसला उस पार्टी का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार और पार्टी मिलकर तय करते हैं। इसे आप उम्मीदवार का प्रतिनिधि कह सकते हैं। मान लीजिए ट्रम्प रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार थे। उन्हें कैलिफोर्निया के 55 इलेक्टर्स की लिस्ट बनानी है। तो पार्टी और ट्रम्प मिलकर इनके नाम तय करेंगे। बैलट पर प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट के नाम के आगे ब्रैकेट में इस इलेक्टर का नाम होगा। वोटर जब राष्ट्रपति उम्मीदवार को चुनेगा, तो इसी इलेक्टर के नाम पर निशान लगाएगा।

एक सुझाव जो तीन साल पहले दिया गया
अमेरिकी संविधान के मुताबिक, इलेक्टर्स न तो सीनेटर होंगे और न रिप्रेजेंटेटिव्स। इनके पास लाभ का पद (office of profit) भी नहीं होना चाहिए। 2017 में जारी यूएस कांग्रेस की एक रिपोर्ट कहती है- इलेक्टर्स वास्तव में मशहूर हस्तियां, लोकल इलेक्टेड मेंबर्स, पार्टी एक्टिविस्ट्स या आम नागरिक ही होने चाहिए। अमेरिका में हर राज्य का अपना संविधान और झंडा है। पेन्सिलवेनिया का संविधान साफ कहता है- प्रेसिडेंशियल नॉमिनी अपने इलेक्टर खुद चुने।

2016 में नेवादा राज्य में इलेक्टर्स वोटिंग के लिए फॉर्म भरते हुए। इस चुनाव में ज्यादा पॉपुलर वोट हासिल करने के बावजूद हिलेरी क्लिंटन वर्तमान राष्ट्रपति ट्रम्प से हार गईं थीं।

आखिर इलेक्टोरल कॉलेज बनाया ही क्यों गया?
1787 में कम्युनिकेशन या ट्रांसपोर्टेशन के साधन बेहद कम थे। इतने बड़े देश में यह संभव नहीं था कि मतदाता देश के एक कोने में बैठकर किसी व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर पाएं। रेडियो, टीवी या इंटरनेट का दौर तो था नहीं। अखबार भी बहुत कम थे। इसलिए, यह तय किया गया कि कुछ लोकल लोगों (इलेक्टर्स) को चुना जाए। फिर ये लोग मिलकर (इलेक्टोरल कॉलेज) राष्ट्रपति का चुनाव करें। 233 साल गुजर चुके हैं। तमाम विरोध के बावजूद यह सिस्टम नहीं बदला गया। तर्क दिया जाता है- यह हमारी परंपरा है। वक्त के साथ बेहतर हो जाएगी।

(अगली कड़ी में जानिए क्या है विनर टेक्स ऑल का विवादित मामला। इसकी सबसे ज्यादा आलोचना होती है। लेकिन, 50 में 48 राज्य इसी सिस्टम को फॉलो करते हैं।)



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Donald Trump Joe Biden; Electoral College Voting Update | US Presidential Election Process, How It Works, All You Need To Know


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1 GB की मूवी 1 सेकंड में होगी डाउनलोड, 5G के लिए सरकार भी तैयार, जियो भी, लेकिन बाकी कंपनियों का क्या?

2G को घोटाले के कारण देश में जाना गया, तो 3G कब आया कब गया पता भी नहीं चला। 4G ने हम सब को मोबाइल में कैद कर दिया। अब 5G की बारी है। सरकार ने 2020 तक देश में इसे शुरू करने का टारगेट रखा था, लेकिन अब तक स्पेक्ट्रम की नीलामी भी नहीं हो सकी है।

दूसरी तरफ मुकेश अंबानी बार-बार कह रहे हैं कि उनकी कंपनी जियो अगले साल तक देश में 5G सर्विस शुरू कर देगी। लेकिन क्या वाकई ऐसा हो पाएगा? किन वजहों से अभी तक स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं हो सकी है? जियो के अलावा दूसरी कंपनियों की क्या है तैयारी? 5G आने पर क्या-क्या बदलेगा? आइए जानते हैं इन सारे सवालों के जवाब...

सबसे पहले बात नीलामी में देरी क्यों हो रही है?

  • अगस्त 2018 में टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए सिफारिश की। TRAI ने 5G सर्विस के लिए 3400 से 3600 Mhz बैंड के स्पेक्ट्रम बेचने की सिफारिश की है।
  • TRAI ने स्पेक्ट्रम की एक यूनिट की कीमत 492 करोड़ रुपए तय की है। सेल्युलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) इस कीमत को बहुत ज्यादा बताया है। COAI के मुताबिक, दूसरे देशों के मुकाबले भारत में स्पेक्ट्रम की कीमत 40-50% ज्यादा है।
  • जियो को छोड़ बाकी टेलीकॉम कंपनियों ने भी इतनी ज्यादा कीमत पर आपत्ति जताई। यहां तक कि टेलीकॉम डिपार्टमेंट की एक कमेटी ने भी 5G के लिए सस्ता स्पेक्ट्रम देने की सिफारिश की है।
  • TRAI की सिफारिशों के आधार पर ही 2020 में 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी शुरू होनी थी, लेकिन कोरोना की वजह से ये नीलामी शुरू नहीं हो सकी। अब 2021 में इसकी नीलामी हो सकती है।

इस सब पर सरकार क्या कह रही है?

  • स्पेक्ट्रम की इतनी ज्यादा कीमतों पर टेलीकॉम कंपनियां और टेलीकॉम एक्सपर्ट ने चिंता जताई है। लेकिन TRAI इन कीमतों को सही बता चुका है। कीमतों में कटौती करने से TRAI मना कर चुका है। इस बात की जानकारी सरकार ने लोकसभा में इसी साल 4 मार्च को दी थी।
  • 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए सरकार ने अक्टूबर में डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस और डिफेंस मिनिस्ट्री से स्पेक्ट्रम खाली करने की मांग की है। सरकार ने डिफेंस मिनिस्ट्री से 3300-3400 Mhz और 3000-3100 Mhz बैंड में स्पेक्ट्रम खाली करने के लिए कहा है। वहीं, डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस से 3600-3700 Mhz में स्पेक्ट्रम खाली करने का अनुरोध किया है।

कंपनियों का क्या है कहना?

  • 5G स्पेक्ट्रम की कीमतों से बस जियो को ही कोई दिक्कत नहीं है। बाकी दो बड़ी कंपनियां वोडा-आइडिया और एयरटेल को इससे दिक्कत है। इनकी वजह भी वाजिब है। एक तो ये कि दोनों ही कंपनियां घाटे में चल रही हैं। सितंबर तिमाही में वोडा-आइडिया को 7,218 करोड़ और एयरटेल को 763 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
  • दूसरा कारण है AGR यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू। सुप्रीम कोर्ट ने अगले 10 साल में बकाया AGR चुकाने का आदेश दिया है। वोडा-आइडिया और एयरटेल पर ही सबसे ज्यादा AGR बकाया है। वोडा-आइडिया पर 54,754 करोड़ और एयरटेल पर 25,976 करोड़ रुपए बकाए हैं।
  • इतना ही नहीं, सितंबर 2020 तक एयरटेल पर 88,251 करोड़ और वोडाफोन-आइडिया पर 1.14 लाख करोड़ रुपये का कर्ज भी है। इतना कर्ज होने के कारण ये कंपनियां 5G स्पेक्ट्रम नहीं खरीद सकतीं। अभी तक यही माना जा रहा है कि अगर कीमत यही रही तो नीलामी में वोडा-आइडिया और एयरटेल हिस्सा नहीं लेंगी। इससे जियो के लिए मैदान साफ हो जाएगा।

जब नीलामी ही नहीं हुई, तो मुकेश अंबानी बार-बार क्यों कर रहे हैं 5G की बात?

  • मुकेश अंबानी ने हाल ही में इंडियन मोबाइल कांग्रेस में अगले साल की दूसरी छमाही में 5G लॉन्च करने की बात कही है। इससे पहले भी वो कई मौकों पर 5G लॉन्च करने की बात कह चुके हैं। ऐसा कहने की कुछ वजहें भी हैं। पहली वजह तो यही है कि सितंबर 2016 में जियो ही सबसे पहले 4G लेकर आई थी और अंबानी चाहते हैं कि 5G भी सबसे पहले उनकी ही कंपनी लॉन्च करे।
  • दूसरा ये कि जियो लगातार 5G टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है। पिछले महीने ही जियो ने अमेरिकी कंपनी क्वालकॉम के साथ मिलकर अमेरिका में 5G का सफल ट्रायल किया है। उस समय कंपनी ने दावा किया था कि अमेरिका में 5G पर 1 Gbps से ज्यादा की स्पीड मिल रही है।
  • तीसरी वजह ये कि देश में जियो को छोड़कर बाकी टेलीकॉम कंपनियों की हालत ठीक नहीं है। एक्सपर्ट का कहना है कि जियो ने जब 4G की शुरुआत की थी, तभी उसे 5G के हिसाब से सेटअप कर लिया था, इसलिए जियो को अब ज्यादा खर्च करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।

तो क्या जियो वाकई अगले साल तक 5G लॉन्च कर देगा?

  • मुकेश अंबानी और जियो का तो यही कहना है, लेकिन एक्सपर्ट इससे अलग राय रखते हैं। एक्सपर्ट का मानना है कि 2022-23 से पहले आम लोगों के लिए 5G का आना इतना आसान नहीं है।
  • ऐसा इसलिए भी क्योंकि 5G के लिए अभी हमारे देश में बुनियादी ढांचे की कमी भी है। 5G कनेक्टिविटी के लिए 80% मोबाइल टॉवरों को नेक्स्ट जनरेशन ऑप्टिकल फाइबर से लैस करने की जरूरत होती है। अभी ऐसे सिर्फ 15 से 20% टॉवर ही ऐसे हैं।
  • टेलीकॉम इंडस्ट्री से जुड़े एक्सपर्ट का कहना है कि देश में टॉवरों और ऑप्टिकल फाइबर की कमी के कारण 4G सर्विस भी सही तरीके से शुरू नहीं हो पाई है। ऐसे में 5G में समय लगना तय है।

5G आया तो क्या-क्या बदल जाएगा?

  • ज्यादातर लोगों को लगता है कि 5G से इंटरनेट की स्पीड बढ़ जाएगी और इसका इस्तेमाल सिर्फ मोबाइल फोन या कम्प्यूटर में होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। इंटरनेट की 3G और 4G टेक्नोलॉजी से भी ज्यादा स्मार्ट होगी 5G टेक्नोलॉजी। 5G का मकसद सिर्फ स्मार्टफोन से इंटरनेट कनेक्ट करना ही नहीं होगा, बल्कि ये इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) से भी जुड़ेगा।
  • IOT मतलब स्मार्ट गैजेट्स जैसे फ्रीज, टीवी, माइक्रोवेव ओवन, वॉशिंग मशीन, एसी वगैरह-वगैरह। अभी दुनियाभर में सेल्फ ड्राइविंग कारों में जिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है, वो भी 5G ही है। भारत में भी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए 5G का इस्तेमाल होगा।

5G से इंटरनेट की स्पीड कितनी बढ़ जाएगी?

  • 5G यानी इंटरनेट की 5वीं जनरेशन। इसकी स्पीड 10 Gbps तक होगी। इसकी मदद से बड़े से बड़े डेटा को सेकंडों में डाउनलोड या अपलोड किया जा सकेगा। दुनिया के कई देशों में 5G सर्विस शुरू भी हो गई है, लेकिन वहां इतनी स्पीड अभी नहीं मिल रही है।
  • हाल ही में इंटरनेट स्पीड टेस्ट करने वाली कंपनी ओपन सिग्नल ने 5G की स्पीड पर रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा 5G डाउनलोड स्पीड सऊदी अरब में है। यहां एवरेज डाउनलोड स्पीड 377.2 Mbps है। यहां 4G पर डाउनलोड स्पीड 30.1 Mbps है।
  • इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि 377.2 Mbps डाउनलोड स्पीड से 1 सेकंड में 377.2 MB डेटा डाउनलोड किया जा सकता है। यानी 1 GB की कोई मूवी 3 सेकंड से भी कम वक्त में डाउनलोड हो जाएगी। हालांकि, जियो ने भारत में 5G नेटवर्क पर 1Gbps स्पीड देने की बात कही है। अगर जियो इतनी स्पीड देता है, तो 1 GB की मूवी 1 सेकंड में डाउनलोड हो जाएगी।

हमारे देश में 4G है, तो हमें कितनी स्पीड मिलती है?

  • 4G की स्पीड 1Gbps तक बताई जाती है, लेकिन हमारे देश में इसकी स्पीड बहुत कम है। ओपन सिग्नल ने देश में 4G स्पीड के आंकड़े सितंबर तक के दिए हैं। सितंबर में देश में 4G पर सबसे ज्यादा डाउनलोड स्पीड एयरटेल की थी। एयरटेल के नेटवर्क पर डाउनलोड स्पीड 10.4 Mbps थी। जबकि, जियो पर 6.9 Mbps थी।
  • वहीं अपलोडिंग में वोडा-आइडिया (VI) आगे रही। उसकी स्पीड 3.5 Mbps थी। एयरटेल की 2.8 Mbps और जियो की 2.3 Mbps थी। इसका मतलब ये हुआ कि भले ही देश में 4G की अवेलेबिलिटी बहुत ज्यादा हो, लेकिन स्पीड बहुत कम मिल रही है।


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Mukesh Ambani; Reliance JIO 5G Launch | 5G Spectrum Auction Delay India Date Update; Why Is Mukesh Ambani Reliance Jio Is Talking About 5G | When 5g Network Will Launch In India


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2018 की विनर टीम के टॉप-2 विकेट टेकर और 5 बल्लेबाज फिर टीम इंडिया में, कोहली-रोहित साथ नहीं खेलेंगे

टीम इंडिया 2 साल बाद फिर ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पहुंची है। यहां टीम को 4 टेस्ट की सीरीज खेलना है। पहला मैच डे-नाइट रहेगा, जो 17 दिसंबर से खेला जाएगा। भारतीय टीम ने पिछली बार 2018 के आखिर में मेजबान ऑस्ट्रेलिया को टेस्ट सीरीज में 2-1 से हराया था। टीम इंडिया की ऑस्ट्रेलिया में यह पहली टेस्ट सीरीज जीत थी। तब की भारतीय टीम के 11 प्लेयर मौजूदा ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टीम के साथ हैं।

पिछली सीरीज विनर टीम के टॉप-2 विकेट टेकर जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शमी भी ऑस्ट्रेलिया दौरे पर हैं। साथ ही चेतेश्वर पुजारा और कप्तान विराट कोहली समेत टॉप-5 स्कोरर भी टीम में शामिल हैं। ऐसे में टीम इंडिया से इतिहास दोहराने की पूरी उम्मीद है।

कोहली और रोहित साथ खेलते नहीं दिखेंगे
भारतीय कप्तान विराट कोहली जनवरी में पिता बन जाएंगे। इस कारण वे पहला टेस्ट खेलने के बाद पैटरनिटी लीव पर चले जाएंगे। वहीं, चोटिल रोहित शर्मा फिट होकर टीम में लौटे हैं। उनके 14 दिसंबर को ऑस्ट्रेलिया रवाना होने की उम्मीद है। ऐसे में वे पहला टेस्ट नहीं खेल सकेंगे। साथ ही 14 दिन क्वारैंटाइन पीरियड के कारण उनका दूसरा टेस्ट में भी खेलना मुमकिन नहीं लग रहा।

2018 में पुजारा टॉप स्कोरर रहे थे
भारतीय बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा 2018 में मेजबान ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में टॉप स्कोरर रहे थे। वे 500+ रन बनाने और 3 शतक लगाने वाले अकेले प्लेयर थे। उनके अलावा टॉप-3 में विराट कोहली और ऋषभ पंत इंडियन बैट्समैन ही थे। इन तीन बल्लेबाजों के अलावा अजिंक्य रहाणे ने 7 पारी में 217 और मयंक अग्रवाल ने 3 पारी में 195 रन बनाए थे। तब रोहित शर्मा 2 टेस्ट की 4 पारी में 106 रन बना सके थे। इस बार विराट की गैरमौजूदगी में सीरीज के आखिरी 3 टेस्ट में इन सभी पर दारोमदार रहेगा।

ऑस्ट्रेलिया का कोई भी बैट्समैन 300 रन भी नहीं बना सका था। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया टीम में पूर्व कप्तान स्टीव स्मिथ और ओपनर डेविड वॉर्नर नहीं थे। वे बॉल टेम्परिंग के कारण एक साल का प्रतिबंध झेल रहे थे। इस बार दोनों की वापसी हुई है और वे फॉर्म में भी हैं।

बॉलिंग में फिर बुमराह और शमी पर दारोमदार
2018 टेस्ट सीरीज में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीत में भारतीय गेंदबाजों की अहम भूमिका रही थी। जसप्रीत बुमराह और ऑस्ट्रेलियाई बॉलर नाथन लियोन ने 21-21 विकेट लिए थे। हालांकि, बुमराह बेस्ट इकोनॉमी (2.27) के साथ टॉप पर काबिज रहे। तीसरे नंबर पर मोहम्मद शमी थे, जिन्होंने 16 विकेट झटके। इस बार इन दो गेंदबाजों के सामने स्मिथ और वॉर्नर की चुनौती रहेगी।

पिछले दौरे पर ईशांत शर्मा भी सबसे सफल भारतीय गेंदबाज रहे थे। उन्होंने 3 मैच की 6 पारी में 11 विकेट लिए थे। उनका इकोनॉमी रेट 2.54 का रहा था। ईशांत इस बार चोट के कारण सीरीज से बाहर हैं।

टीम इंडिया 2018 में एडिलेड और मेलबर्न टेस्ट जीती थी
भारतीय टीम ने पिछली सीरीज में ऑस्ट्रेलिया टीम को एडिलेट टेस्ट में 31 और मेलबर्न टेस्ट में 137 रन से शिकस्त दी थी। हालांकि, भारतीय टीम को पर्थ टेस्ट में 146 रन से हार झेलनी पड़ी थी। सिडनी में खेला गया सीरीज का आखिरी टेस्ट ड्रॉ रहा था।

ऑस्ट्रेलिया में टीम इंडिया ने सिर्फ एक सीरीज जीती
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच अब तक 26 टेस्ट सीरीज खेली गईं। इसमें ऑस्ट्रेलिया ने 12 और टीम इंडिया ने 9 सीरीज जीती हैं। दोनों के बीच 5 मुकाबले ड्रॉ रहे। भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसी के घर में 12 टेस्ट सीरीज खेली। इसमें से सिर्फ एक में जीत मिली, जबकि 8 सीरीज हारीं और 3 ड्रॉ खेली हैं।

  • मौजूदा भारतीय टेस्ट टीम: विराट कोहली (कप्तान), अजिंक्य रहाणे (उपकप्तान), रोहित शर्मा, मयंक अग्रवाल, केएल राहुल, चेतेश्वर पुजारा, पृथ्वी शॉ, हनुमा विहारी, शुभमन गिल, ऋद्धिमान साहा (विकेटकीपर), ऋषभ पंत (विकेटकीपर), आर अश्विन, रविंद्र जडेजा, कुलदीप यादव, जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, नवदीप सैनी, उमेश यादव और मोहम्मद सिराज।
  • 2018 की भारतीय टेस्ट टीम: विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा, मयंक अग्रवाल, ऋषभ पंत, रोहित शर्मा, अजिंक्य रहाणे, रविंद्र जडेजा, हनुमा विहारी, रविचंद्रन अश्विन, मुरली विजय, लोकेश राहुल, उमेश यादव, मोहम्मद शमी, जसप्रीत बुमराह, ईशांत शर्मा और कुलदीप यादव।

भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज का शेड्यूल

मैच तारीख वेन्यू
1st Test (डे-नाइट) 17-21 दिसंबर एडिलेड
2nd Test 26-30 दिसंबर मेलबर्न
3rd Test 07-11 जनवरी सिडनी
4th Test 15-19 जनवरी ब्रिस्बेन


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Australia Vs India Test; Virat Kohli Jasprit Bumrah | India Player Performance Analysis From Cheteshwar Pujara Mohammad Shami


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ऑनलाइन क्लासेस से बच्चों में बढ़ रही सोशल मीडिया की लत, जानें निजात पाने के तरीके

क्या आपने किसी बच्चे के पेरेंट्स को कहते सुना है कि हम तो अपने बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखते हैं? या फिर किसी टीचर को भी कहते सुना होगा कि सोशल मीडिया पर वक्त खराब करने से अच्छा है, कुछ पढ़ लेना चाहिए? लेकिन क्या यह सब नैतिक शिक्षा की सीख ही रह गई है? ऐसा हम क्यों कह रहे हैं?

असल में कोरोना में लगे लॉकडाउन के बाद से दुनिया भर के स्कूल शुरू नहीं हो पाए हैं। ऐसे में सभी स्कूल ऑनलाइन क्लासेस ले रहे हैं। बच्चों के हाथ में मोबाइल, लैपटॉप और टेबलेट आ गए हैं। यह उनकी डेली यूज की चीजें बन गई है। ऐसे में उन्हें रोका नहीं जा सकता है। लेकिन हम बच्चों को सोशल मीडिया और अलग-अलग डिजिटल प्लेटफॉर्म के बारे में जागरूक कर सकते हैं।

डिजिटल मीडिया जिंदगी का हिस्सा हो गई है

  • टेंपल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉर्डन शेपिरो कहते हैं कि उन्होंने कोरोना से पहले बच्चों को डिजिटल और सोशल मीडिया का उपयोग करने की सलाह दी थी। कई सोशल मीडिया 13 साल की उम्र में ही बच्चों के अकाउंट खोल रहे हैं। डिजिटल मीडिया अब जिंदगी का हिस्सा हो गई है। इसे सामान्य तौर पर ही लेना चाहिए।
  • वहीं प्रोफेसर जॉर्डन का कहना है कि अगर किसी प्रॉब्लम से डील करना सीखा रहे हैं और वह जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। तो इसे नजरंदाज नहीं कर सकते। उनका कहना है कि वह चाहते हैं कि उनके बच्चे बताएं कि वह कंप्यूटर की स्क्रीन पर क्या देख रहे हैं।
  • शेपिरो कहते हैं कि पेरेंट्स को बच्चों के साथ वक्त बिताना चाहिए। उनके साथ बात करना चाहिए। इस उम्र में बच्चे अपने माता- पिता से बात करने को तरसते हैं। कई पेरेंट्स भी बच्चों की इच्छाओं को समझ नहीं पाते। वह कितना ही यूट्यूब देखे और गेम खेले, लेकिन बच्चे को हमेशा अपने पेरेंट्स की जरूरत होती है। खासकर 12 साल से पहले की उम्र के बच्चों के लिए।
  • शेपिरो कहते हैं कि हमें बच्चों को सिखाना होगा कि कैसे सोशल मीडिया अकाउंट चलाना है। इसमें हम उन्हें फोटो पोस्ट करना और कमेंट करना बारे में बता सकते हैं।

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बच्चों को सोशल मीडिया पर कम्युनिकेशन के तरीके बताएं

  • जब से स्कूल ऑनलाइन चल रहे हैं, तब से बच्चों का टेक्नोलॉजी के साथ समय ज्यादा बीत रहा है। ऐसे में हम बच्चों को सोशल मीडिया और इंटरनेट से दूर नहीं रख सकते हैं। इसके लिए हम उन्हें सोशल मीडिया पर कम्यूनिकेशन करने के तरीके बता सकते हैं।
  • साइकोलोजिस्ट एलिनल कैनेडी कहती हैं कि बच्चों के कम्युनिकेशन को समझना मुश्किल होता है। कभी उनके चैट देखें तो आपको उसमें किसी तरह का सेंस नजर नहीं आएगा। लेकिन यह उनके बात करने का तरीका हो सकता है। हम उनके स्तर पर जाकर कम्युनिकेशन के लेवल को समझना होगा।
  • पेरेंट्स के तौर पर आप उन्हें सोशल मीडिया के बारे में बता सकते हो। हम बच्चों को बता सकते हैं कि अगर वह किसी को मैसेज कर रहे हैं, तो उसके लिए हमें इंतजार करना पड़ सकता है। कई बार मैसेज न देखने और ऑफलाइन होने की वजह से रिप्लाई नहीं आता है।

बच्चों को सोशल मीडिया के उपयोग के लिए जागरूक करें

  • हम बच्चों को सोशल मीडिया या डिजिटल मीडिया के उपयोग को लेकर जागरूक कर सकते हैं। डॉ. रेडेस्की इसे एक उपलब्धि के तौर पर देखते हैं। उनका कहना है कि यह टेक्नोलॉजी फ्रेंडली होने के लिए समय सही है। हम उनसे कुछ सवाल पूछ सकते हैं कि आपको जब किसी का मैसेज या ईमेल मिलता है तो कैसा लगता है? आप किसी से बात करके कैसा महसूस कर रहे हैं। हम बच्चों को सोशल मीडिया पर इमोशनल अटैचमेंट न रखने की सलाह दे सकते हैं।

बच्चों में बढ़ाएं डिजिटल लिटरेसी

  • हम बच्चों को सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के बारे में शिक्षा दे सकते हैं। हम उन्हें बता सकते हैं कि किस डिजिटल प्लेटफॉर्म का कैसा उपयोग करना है। उस पर कम्युनिकेशन के तरीकों को भी हम बच्चों से साझा कर सकते हैं। उन्हें इसके फायदे और नुकसान भी बता सकते हैं।
  • हम बच्चों को बता सकते हैं कि कमेंट, पोस्ट करने से पहले किन बातों का ध्यान रखना है। हमें यह बताना होगा कि सोशल मीडिया पर किस तरह की न्यूज फीड उनके लिए सही रहेगी। क्योंकि कई बार गलत खबरों की वजह से बच्चे अफवाहों का शिकार हो जाते हैं। बच्चों को इस बारे में भी बता सकते हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नजर आ रही, कौनसी चीज विज्ञापन है।


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Can the growing social media addiction in children be stopped under the pretext of online classes? Know the opinion of experts


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5 आतंकी आए और ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगे, संसद पर उस दिन कुछ ऐसे हुआ था हमला

तारीख थी 13 दिसंबर, ठंड का मौसम था और बाहर धूप खिली हुई थी। संसद में विंटर सेशन चल रहा था और "महिला आरक्षण बिल" पर हंगामा जारी था। इस दिन भी इस बिल पर चर्चा होनी थी, लेकिन 11:02 बजे संसद को स्थगित कर दिया गया।

इसके बाद उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी संसद से जा चुके थे। तब के उपराष्ट्रपति कृष्णकांत का काफिला भी निकलने ही वाला था। संसद स्थगित होने के बाद गेट नंबर 12 पर सफेद गाड़ियों का तांता लग गया।

इस वक्त तक सबकुछ अच्छा था, लेकिन चंद मिनटों में संसद पर जो हुआ, उसके बारे में न कभी किसी ने सोचा था और न ही कल्पना की थी। करीब साढ़े ग्यारह बजे उपराष्ट्रपति के सिक्योरिटी गार्ड उनके बाहर आने का इंतजार कर रहे थे और तभी सफेद एंबेसडर में सवार 5 आतंकी गेट नंबर-12 से संसद के अंदर घुस गए। उस समय सिक्योरिटी गार्ड निहत्थे हुआ करते थे।

ये सब देखकर सिक्योरिटी गार्ड ने उस एंबेसडर कार के पीछे दौड़ लगा दी। तभी आनन-फानन में आतंकियों की कार उपराष्ट्रपति की कार से टकरा गई। बस फिर क्या था, घबराकर आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। ऐसा लगा, मानो जैसे कोई पटाखे फोड़ रहा हो। आतंकियों के पास एके-47 और हैंडग्रेनेड थे, जबकि सिक्योरिटी गार्ड निहत्थे थे।

5 आतंकियों ने संसद पर हमला किया। साढ़े चार घंटे चली मुठभेड़ के बाद पांचों आतंकी मारे गए।

फिर शुरू हुआ आतंकियों को मारने का सिलसिला
संसद भवन में अक्सर CRPF की एक बटालियन मौजूद रहती है। गोलियों की आवाज सुनकर ये बटालियन अलर्ट हो गई। CRPF के जवान दौड़-भागकर आए। उस वक्त सदन में देश के गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, प्रमोद महाजन समेत कई बड़े नेता और पत्रकार मौजूद थे।

सभी को संसद के अंदर ही सुरक्षित रहने को कहा गया। इस बीच एक आतंकी ने गेट नंबर-1 से सदन में घुसने की कोशिश की, लेकिन सिक्योरिटी फोर्सेस ने उसे वहीं मार गिराया। इसके बाद उसके शरीर पर लगे बम में भी ब्लास्ट हो गया।

बाकी के 4 आतंकियों ने गेट नंबर-4 से सदन में घुसने की कोशिश की, लेकिन इनमें से 3 आतंकियों को वहीं पर मार दिया गया। इसके बाद बचे हुए आखिरी आतंकी ने गेट नंबर-5 की तरफ दौड़ लगाई, लेकिन वो भी जवानों की गोली का शिकार हो गया। जवानों और आतंकियों के बीच 11:30 बजे शुरू हुई ये मुठभेड़ शाम को 4 बजे खत्म हुई।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 26 सितंबर 2006 को अफजल गुरु को फांसी देने का आदेश दिया। लेकिन उसकी पत्नी तबस्सुम ने याचिका लगा दी। बाद में 9 फरवरी 2013 को उसे फांसी दी गई।

आतंकी अफजल गुरु को फांसी मिली
पांचों आतंकी तो मर गए, लेकिन संसद हमले की साजिश रचने वाले बच गए थे। संसद हमले के दो दिन बाद ही 15 दिसंबर 2001 को अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी और अफशान को बरी कर दिया, लेकिन अफजल गुरु की मौत की सजा को बरकरार रखा। शौकत हुसैन की मौत की सजा को भी घटा दिया और 10 साल की सजा का फैसला सुनाया। 8 फरवरी 2013 को अफजल गुरू को दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी पर लटका दिया गया।

जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी गाजी बाबा को BSF ने 10 घंटे चले एनकाउंटर के बाद मार गिराया। गाजी बाबा संसद हमले का मुख्य आरोपी था।

हमले में 9 लोग मारे गए
इस पूरे हमले में दिल्ली पुलिस के 5 जवान, CRPF की एक महिला सिक्योरिटी गार्ड, राज्यसभा के 2 कर्मचारी और एक माली की मौत हो गई।

भारत और दुनिया में 13 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:

  • 1232: इल्तुतमिश ने ग्वालियर पर कब्जा किया।
  • 1675: सिख गुरु तेग बहादुर जी को दिल्ली में शहीद किया गया।
  • 1772: नारायण राव सतारा के पेशवा बने।
  • 1921: प्रिंस ऑफ वेल्स ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया।
  • 1921: वाशिंगटन सम्मेलन के दौरान अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, जापान और फ्रांस के बीच फोर पॉवर संधि पर दस्तख्त। इसमें किसी बड़े सवाल पर दो सदस्यों में विवाद होने पर चारों देशों से सलाह करने का प्रावधान किया गया।
  • 1937: जापान की सेना ने चीन के साथ युद्ध के दौरान नानजिंग पर कब्जा कर लिया और नानजिंग नरसंहार को अंजाम दिया, जिसमें तीन लाख से ज्यादा चीनियों को मौत के घाट उतार दिया गया।
  • 1961: भारत के दौरे पर आई इंग्लैंड की टीम के खिलाफ दिल्ली में खेले गए मैच से मंसूर अली खान पटौदी ने अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की।
  • 1977: माइकल फरेरा ने राष्ट्रीय बिलिय‌र्ड्स चैंपियनशिप में नये नियमों के तहत 1149 अंक का सर्वाधिक ब्रेक लगाया।
  • 1995: दक्षिण लंदन के ब्रिक्सटन में पुलिस हिरासत में एक अश्वेत व्यक्ति की मौत के बाद सैकड़ों श्वेत और अश्वेत युवक सड़कों पर उतर आए और तोड़फोड़ की तथा दुकानों तथा कारों को आग लगा दी।
  • 2003: इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को गिरफ्तार किया गया।


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Today History: Aaj Ka Itihas India World December 13 Update | 2001 Indian Parliament Attack, Japan China 1937 War


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