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Saturday, October 17, 2020

धारा 370 रद्द करने के फैसले को चुनौती देने फिर साथ आए कश्मीर की राजनीति के दिग्गज; क्या यह धारा 370 का फ्यूनरल है जिसका लंबे समय से इंतजार था?

नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) समेत जम्मू-कश्मीर की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने 15 अक्टूबर को पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला के घर पर बैठक की। उन्होंने संविधान की धारा 370 को रीस्टोर करने और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश से फिर पहले की तरह राज्य बनाने की मांग करने वाले गुपकार डिक्लेरेशन के लिए अपना कमिटमेंट दोहराया। यह मीटिंग ऐसे वक्त हुई जब कुछ ही घंटों पहले पीडीपी चीफ मेहबूबा की 14 महीने बाद नजरबंदी से रिहाई हुई थी। इस लिहाज से यह काफी महत्वपूर्ण थी। लेकिन, जो बड़ा मुद्दा मीटिंग से निकलकर आया, वह यह था कि इस ग्रुप का नाम बदलकर अब पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन हो गया है।

पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने गुरुवार की मीटिंग के बाद कहा कि हम संविधान के दायरे में अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। हम चाहते हैं कि भारत सरकार राज्य के लोगों को 5 अगस्त 2019 के पहले के अधिकार फिर से दें। हमें यह भी लगता है कि इस राज्य के राजनीतिक मुद्दों का हल जल्द से जल्द निकाला जाएं और ऐसा सिर्फ जम्मू-कश्मीर की समस्या से जुड़े सभी लोगों के बीच शांति के साथ बातचीत से ही हो सकता है।

क्या है गुपकार डिक्लेरेशन?

  • करीब 14 महीने पहले, धारा 370 को रद्द करने के एक दिन पहले 4 अगस्त 2019 को श्रीनगर में भी जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियों की मीटिंग हुई थी। यह मीटिंग फारुक अब्दुल्ला के गुपकार रोड स्थित बंगले में हुई थी और यहां पर जॉइंट स्टेटमेंट जारी हुआ था। कहा था कि वे जम्मू-कश्मीर की आइडेंटिटी, ऑटोनोमी और स्पेशल स्टेटस की सुरक्षा के लिए लड़ते रहेंगे। इसे ही गुपकार डिक्लेरेशन कहा गया।

कश्मीर की पार्टियों को इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

  • नई दिल्ली में कश्मीर पर नजर रखने वाले तबके को लग रहा है कि पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन राजनीतिक मजबूरी है। पिछले सालभर यह नेता हिरासत में रहे। इस दौरान उन्हें जमीनी स्तर पर कोई सपोर्ट नहीं मिला। ऐसे में वे इस अलायंस के जरिए अपनी विश्वसनीयता को लोगों के बीच कायम करना चाहते हैं।
  • नई दिल्ली में सरकारी सूत्र यह भी कहते हैं कि कश्मीर में मोटे तौर पर कानून व्यवस्था अच्छा काम कर रही है। आतंकवादियों के जनाजों को लेकर होने वाले टकराव भी खत्म हो गए हैं। इस वजह से कश्मीर के कुछ नेता पहले ही मर चुकी धारा 370 का जनाजा निकालना चाहते हैं। हकीकत यही है कि धारा-370 अब कभी लौटने वाली नहीं है।
मेहबूबा मुफ्ती से मिलने के लिए उनके घर जाते फारुक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला।

क्या चाहते हैं इस नए-नवेले अलायंस के नेता?

  • कहीं न कहीं कश्मीर की मुख्य धारा की क्षेत्रीय पार्टियां अब भी उम्मीद कर रही है कि धारा 370 लौट सकती है। गुपकार डिक्लेरेशन पर साइन करने वालों ने संकेत दिए हैं कि यह लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में चलेगी।
  • जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के पूर्व राजनीतिक सलाहकार तनवीर सादिक कहते हैं कि मुद्दा यह नहीं है कि पीपुल्स अलायंस केंद्र के खिलाफ आवाज उठा रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां साथ में हैं। वह शांति के साथ और संवैधानिक तरीके से वह हासिल करने की कोशिश शुरू कर रही है जो राज्य की जनता से असंवैधानिक और अवैध तरीके से छीना गया है।
  • वह कहते हैं कि हम केंद्र के सामने अपनी दलील नहीं रखने वाले। हम तो सुप्रीम कोर्ट में जाकर संवैधानिक तरीके से लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हमारा मानना है कि केंद्र ने जो भी किया वह गैरकानूनी, असंवैधानिक और अनैतिक था, इस वजह से इसे बदला जाना चाहिए।

कितना समर्थन है इस अलायंस के नेताओं को?

  • अब्दुल्ला-मुफ्ती के भाईचारे ने कई लोगों को चौंकाया है। पिछले एक साल में एनसी और पीडीपी नेता नजरबंद थे। उनके समर्थन में न कोई बड़ा प्रदर्शन हुआ और न ही कोई लॉकडाउन। इससे यह साफ है कि जमीन पर उनके लिए कोई सपोर्ट नहीं बचा है।
  • उमर अब्दुल्ला के करीबी रहे और टीवी डिबेट्स में एनसी का कई बार प्रतिनिधित्व करते रहे जुनैद अजीम मट्टू भी आज नए ग्रुप को लेकर आशंकित हैं। उन्होंने खुद को इस ग्रुप से बाहर रखा है।
  • श्रीनगर के पूर्व मेयर जुनैद पीडीपी और एनसी दोनों में ही रहे हैं। वे कहते हैं, मेरा मानना है कि गुपकार डिक्लेरेशन दो ऐसी पार्टियों का गिल्ट (अपराध-बोध) है, जिनका नेतृत्व दो परिवार करते हैं। उनका यह सीजफायर खुद को रेलेवंट बनाए रखने की कोशिश है। ताकि वे एक-दूसरे को एक्सपोज न करें।
  • जुनैद कहते हैं, "मेरा भी यकीन है कि जम्मू-कश्मीर से जो छीना गया है, उसे वह वापस मिलना चाहिए। पर मैं यह भी नहीं मानता कि मुफ्ती और अब्दुल्ला रातोरात संत बन गए हैं। अगस्त 2019 से पहले जो भी हुआ, उसके लिए जवाब तो उन्हें देना ही होगा। वे इस सिचुएशन का लाभ उठाकर छुटकारा नहीं ले सकते।'

अब्दुल्ला ने चीन से सपोर्ट मांगा, इसका क्या मतलब है?

  • फारुक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को रीस्टोर करने में चीन से मदद लेने की बात कही और इस पर भाजपा के तीखे हमले हुए। अब्दुल्ला ने बातचीत के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को बुलाया तो यह भी राजद्रोह की नजर से देखा गया।
  • केंद्र सरकार को लगता है कि यदि सभी स्टेकहोल्डर्स को बातचीत के लिए बुलाएंगे तो उससे पाक-समर्थित भावनाएं बढ़ेंगी। इसका मतलब है कि अब्दुल्ला और उनकी गैंग को पहले चीन चाहिए था और अब पाकिस्तान। आम लोगों की तो बात ही नहीं हो रही।

जम्मू-कश्मीर का भविष्य क्या है?

  • एक्सपर्ट कहते हैं कि कश्मीर की नई राजनीति गुपकार से नहीं गुजरनी चाहिए। एनसी, पीडीपी, कांग्रेस और यहां तक कि भाजपा (पीडीपी-भाजपा गठबंधन) सरकारों ने भी सेपरेटिज्म को ही बढ़ावा दिया है। इससे नई दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में गैप बढ़ता गया। पॉलिसी पैरालिसिस की स्थिति भी बनी।
  • इस बार नई दिल्ली भी पॉलिटिकल आउटरीच के लिए डेस्पिरेट दिख रही है। मौजूदा सिचुएशन में लीडरशिप की नई पीढ़ी उभारने की कोशिश चल रही है। कश्मीर में लीडरशिप की नई पीढ़ी खड़ी करने की तैयारी हो रही है। यह भी देखना होगा कि नई पौध भी राजद्रोह की ओर न चल पड़ें। कश्मीर के पास अब तक सिर्फ धोखे की नहीं बल्कि पॉलिटिकल करप्शन और डबल गेम्स के भी भयावह किस्से रहे हैं।
  • आर्टिकल 370 को रद्द करने से पहले केंद्र के एक टॉप मिनिस्टर ने कहा था कि कश्मीर में अभूतपूर्व सिचुएशन से निकालने के लिए अभूपतूर्व उपाय करने होंगे। अब उपाय किए ही हैं तो कश्मीर को फिर टाइम बम पर न रखा जाएं, जिसका डेटोनेटर पाकिस्तान में हो। नई दिल्ली को ऐसा रास्ता नहीं पकड़ना चाहिए जो गुपकार से न गुजरता हो।

जम्मू-कश्मीर में चुनावों का क्या होगा?

  • इसी तरह जम्मू-कश्मीर में 2018 में पीडीपी-भाजपा सरकार के ब्रेक-अप के बाद चुनाव नहीं हुए हैं। सरकारी सूत्र संकेत दे रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं।
  • धारा 370 रद्द करने और केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा देने के बाद यह पहला मौका है जब असेंबली इलेक्शन कराए जाएंगे। यह चुनाव 2021 की गर्मियों में कराए जा सकते हैं।


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The stalwarts of Kashmir politics came together to challenge the decision to repeal Article 370; Is this the Funeral of Section 370 that was long awaited?


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