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Tuesday, November 12, 2024

अब घूस भी मासिक किश्तों में दे सकते हैं, यक़ीन नहीं तो ये पढ़ लीजिए

Bareilly Bribe In EMI: उत्तर प्रदेश के बरेली में घूसखोरी का अजब ग़ज़ब मामला सामने आया है. दरअसल अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के बाबू ने मदरसे को स्थानांतरित करने की फाइल को आगे बढ़ाने के लिए पीड़ित से ₹1लाख की रिश्वत मांगी. जब उसने ₹1 लाख की रिश्वत देने में असमर्थता जताई तो बाबू ने उसे आसान किस्तों (EMI) में बना दिया और ₹100000 रिश्वत की पहली किस्त जैसे ही बाबू ने पकड़ी तो विजिलेंस की टीम ने उसे रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया और उसे जेल भेज दिया है. बताया जा रहा है बाबू ने ₹1 लाख की रिश्वत के बदले कई किश्तें बना दी और पहली किश्त 18000 रुपये की बनाई. 

बरेली में ही नहीं बरेली जनपद में भी EMI रिश्वत लेने का ये पहला मामला है. यह पहला अपने आप में अनोखा मामला है जब किसी बाबू ने रिश्वत लेने के लिए किश्तें बना दी और पहली किश्त की रकम लेते ही वह गिरफ्तार हो गया. विजिलेंस की टीम ने जब बाबू को गिरफ्तार किया गया, तो पूरे जिले में हड़कंप मच गया. हालांकि विभाग की ओर से जब इस बारे में प्रेस नोट जारी किया गया तो इस बात की पुष्टि हो गई. विभाग में भी इस बात को लेकर खूब चर्चा है.

6 महीने तक रोकी फाइल

बताया जा रहा है कि बरेली के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के ऑफिस में ये बाबू तैनात है. बरेली के अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के ऑफिस में तैनात वरिष्ठ सहायक वक्फ मोहम्मद आसिफ को गिरफ्तार कर लिया गया है. बताया जा रहा है कि आरोपी बाबू ने बरेली के थाना बहेड़ी के रहने वाले आरिश मदरसा मंजूरियां अख्तरूल उलूम से ₹1 लाख की रिश्वत मांगी थी. जब रिश्वत के पैसे नहीं मिले तो बाबू ने आरिश को ये रिश्वत देने के लिए आसान किश्तों में बदल दिया, लेकिन रिश्वत नही छोड़ी. वरिष्ठ बाबू आसिफ ने बहेड़ी के और जब तक रिश्वत नहीं मिल गई तब तक बाबू ने फाइल को पूरे 6 महीने तक रोक के रखा. 

विजिलेंस टीम ने किया गिरफ्तार 

इस पूरे मामले में परेशान पीड़ित की ओर से विजीलेंस टीम से शिकायत की गई. इसके बाद विजिलेंस की टीम ने इस पूरे मामले की जांच पड़ताल शुरू की और जांच सही होने के बाद टीम बनाई गई. फिर विजिलेंस की टीम ने शिकायत मिलने के बाद बरेली के विकास भवन स्थित अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के ऑफिस में जाल बिछाया. जैसे ही आरोपी बाबू ने शिकायतकर्ता से रिश्वत की पहली किस्त को हाथ में पकड़ा,  वैसे ही विजीलेंस की टीम ने बाबू को गिरफ्तार कर लिया और मुकदमा पंजीकृत करने के बाद उसे जेल भेज दिया. 



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Imported Seeds, Full-Spectrum Lights: High-Tech Marijuana Op Busted In Noida

A high-tech marijuana operation, using imported seeds and full-spectrum grow lights, has been busted in Greater Noida and an English graduate from Meerut has been arrested. Police said the man cultivated at least 100 marijuana plants, including premium (OG) and other varieties, at his flat in Beta-2's Parsvnath Panorama society, selling the produce from each of them on the dark web for between Rs 50,000 and Rs 60,000.

He was inspired to get into the drug trade after watching web series and used to gather information on growing marijuana on the internet, said an official.

Briefing reporters on Tuesday, a senior police officer said the accused, Rahul Chowdhary, would grow premium marijuana (OG) in flower pots by purchasing cannabis seeds from an international website, making payments through PayPal. He said since Chowdhary could not expose the plants to sunlight for fear of getting caught, he used full-spectrum lights for the purpose and also had air conditioners set at specific temperatures to facilitate their growth.

"During his interrogation, Chowdhary said he started the cultivation around four months ago. It would take him roughly 100-110 days to grow one plant. Cultivating a plant would cost Rs 5,000 to Rs 7,000 and he would get Rs 50,000-Rs 60,000 for each of them on the dark web," deputy commissioner of police (DCP) Saad Mian Khan told a press briefing.

The accused told police that he had managed to sell ganja from around 20 plants so far. At least 80 cannabis plants, over two kilograms of different types of marijuana, several chemicals and farming equipment were recovered from his flat, said Mr Khan.

"Chowdhary is a graduate in English and he used to watch web series on narcotics and read information on the internet to figure out how to grow marijuana," the DCP said, adding that Chowdhary's arrest was part of an ongoing crackdown on drug traffickers.



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Monday, November 11, 2024

2 Climb Mobile Tower In Jaipur, Demand CBI Probe Into 10-Year-Old's Murder

Two persons climbed atop a mobile tower on Monday demanding a CBI probe into the murder of a 10-year-old deaf and mute girl earlier this year, police said.

The two, the girl's uncle Tikaram and social activist Kamal Meena, also posted a video online in which they claimed that despite running from pillar to post for the last six months, justice has not been done, according to police.

In the video, they demanded that the case should be handed over to the Central Bureau of Investigation (CBI).

The two men climbed atop the mobile tower in the MI Road area after which civil defence and police teams reached the spot. Efforts were being made to bring down the two men safely, said Station House Officer, Vidhayakpuri, Poonam Chaudhary.

In May, Dimple Meena, 10, was found in a half-burnt condition in Karauli. Her family members suspected that she was burnt after being raped. However, rape was not confirmed in the investigation. She died on May 20 during treatment. The post-mortem report showed that she was poisoned.

Police have arrested her maternal uncle and parents in the case.

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a syndicated feed.)



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पूर्व क्रिकेटर संजय बांगर के बेटे आर्यन से बने 'अनाया', जानें क्या है ऐसा करने की वजह

ये कहानी सिर्फ क्रिकेट या किसी खिलाड़ी की नहीं है, बल्कि ये कहानी है पहचान, संघर्ष, और समाज से टकराव की! हम बात कर रहे हैं पूर्व भारतीय क्रिकेटर संजय बांगर (Sanjay Bangar) की बेटे आर्यन बांगर की, या यूं कहें संजय बांगर की बेटी अनाया बांगर (Aryan to Anaya) की, जिन्होंने हाल ही में अपनी जेंडर ट्रांजिशन की कहानी दुनिया के सामने रखी. एक ऐसा सफर, जिसने उनकी ज़िन्दगी बदल दी, लेकिन इसके साथ ही उनके बचपन के क्रिकेट के सपने को भी कठिन बना दिया. अनाया की कहानी ने सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियाँ बटोरी हैं. आइये, जानते हैं कैसे आर्यन बांगर से अनाया बांगर बनने का ये सफर रहा और इसमें क्या चुनौतियां और मुश्किलें आईं. सिद्धार्थ प्रकाश की रिपोर्ट. 

अनाया बांगर का जेंडर ट्रांजिशन

क्रिकेटर संजय बांगर के बेटे आर्यन ने लगभग 11 महीने पहले अपनी जेंडर ट्रांजिशन का सफर शुरू किया, जिसे ‘हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी' या HRT कहते हैं. इस थेरेपी से उनके शरीर में धीरे-धीरे बदलाव आए, और इस बदलाव के साथ ही उनका नाम आर्यन से अनाया हो गया. अनाया ने अपने सोशल मीडिया पर कई पोस्ट्स के ज़रिये इस सफर को लोगों से साझा किया. एक पोस्ट में उन्होंने कहा - 'शारीरिक ताकत भले ही कम हो रही हो, पर खुशी मिल रही है.'

क्रिकेट का सपना और चुनौती 

अनाया का क्रिकेट के प्रति जुनून उनके पिता से विरासत में मिला है. संजय बांगर को बचपन से खेलते देख अनाया का भी सपना था कि वो भी क्रिकेट के मैदान पर भारत का नाम रोशन करें. लेकिन HRT की वजह से उनके मसल्स और स्ट्रेंथ में काफी कमी आई है. वो कहती हैं कि 'अब मेरे लिए अपने पुराने क्रिकेट के जज़्बे को वैसे जारी रखना मुश्किल हो गया है क्योंकि मेरे शरीर में काफी बदलाव हो रहे हैं.' फिर भी, अनाया ने हार नहीं मानी है. आज वो इंग्लैंड के मैनचेस्टर में एक लोकल क्रिकेट क्लब के लिए खेलती हैं और हाल ही में उन्होंने 145 रन बनाकर यह साबित किया कि उनका क्रिकेट का प्यार अभी भी बरकरार है.

नए नियम और ट्रांसजेंडर एथलीट्स की मुश्किलें

अनाया का संघर्ष सिर्फ एक ट्रांसजेंडर महिला बनने तक सीमित नहीं है, बल्कि एक ट्रांसजेंडर एथलीट होने की मुश्किलें भी हैं. इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) ने हाल ही में एक विवादास्पद नियम लागू किया है, जिसके अनुसार 2025 से उन ट्रांसजेंडर महिलाओं को महिलाओं की क्रिकेट में खेलने से रोका जाएगा जिन्होंने मेल प्यूबर्टी का अनुभव किया हो. ये नियम अनाया के लिए दिल तोड़ने वाला साबित हुआ. भले ही उनका होर्मोन लेवल महिलाओं के बराबर हों, लेकिन इस नियम के कारण उनके लिए प्रोफेशनल क्रिकेट में खेलना नामुमकिन हो गया है. अनाया ने अपनी निराशा जताते हुए कहा – 'मुझमें जज़्बा और काबिलियत है, लेकिन सिस्टम मुझे बाहर कर रहा है क्योंकि ये नियम मेरी असलियत को नहीं समझता.'

खेलों में इंक्लूसिविटी की जरूरत

अनाया का मानना है कि खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीट्स के लिए जगह बननी चाहिए. उन्होंने इस मुद्दे को उठाते हुए एक बड़ा सवाल खड़ा किया है कि आखिर ट्रांसजेंडर एथलीट्स को अपना सपना पूरा करने का अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा? आज के समाज में खेलों में इंक्लूसिविटी यानी सबको जगह देने की बहुत ज़रूरत है. प्रोफेशनल क्रिकेट में खेलने की उनकी ख्वाहिश उन नियमों के कारण अधूरी रह गई जो ट्रांसजेंडर एथलीट्स के सपनों को रोकते हैं.



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Sunday, November 10, 2024

India Not Among Nations Nervous About US After Trump's Return: S Jaishankar

There is a trend towards a more diverse, multipolar world but older, industrialised economies have not gone away and remain prime investment targets, External Affairs Minister S Jaishankar said on Sunday.

Speaking at the silver jubilee celebrations of the Aditya Birla Group's Scholarships programme in Mumbai, S Jaishankar said while a lot of countries are nervous about the US -- following the return of Donald Trump as President -- India is not one among them.

"Yes, there is a shift. We are ourselves an example of the shift... if you look at our economic weight, you look at our economic ranking, you look at even Indian corporates, their reach, their presence, Indian professionals, which I spoke about. So no question there is a rebalancing," S Jaishankar said in response to a question on the reset in the global power dynamic that was playing out amid the shift in the balance of power from the west to the east.

"And to my mind, it was inevitable," he said, adding, "because once these countries after the colonial period got their independence, they started making their own policy choices, then they were bound to grow." "The part which is not inevitable is that some grew faster, some grew slower, some grew better, and there the quality of governance and the quality of leadership came in. So, there is, in a sense, therefore, the constant and the variable.

"There is a trend towards a more diverse, multipolar world. But there is also, you know, a period when countries really surge ahead. I mean, it's like what happened in the corporate world as well." He, however, said the industrialised economies in the west cannot be ignored and remain prime investment targets.

"But do remember one thing, the older, the western economies, the older industrialised economies, they have not gone away. They still count, they are still prime investment targets. They are big markets, strong technology centres, hubs for innovation. So let's recognise the shift, but let's not get carried away and kind of overstate it and distort our own understanding of the world," the minister said.

Speaking on the India-US relationship and Trump's win, he said, "Prime Minister Narendra Modi was among the first three calls, I think, that President (elect) Trump took." India and Prime Minister Modi have built rapport with multiple presidents, he said.

"For him (PM Modi) there's something natural in terms of how he forges those relationships. So that's helped hugely. And I think the changes in India have helped as well," he said, when asked how he sees the US presidential election outcome impacting India-US ties, especially given PM Modi's strong personal rapport with the US President-elect.

"I know today a lot of countries are nervous about the US, let's be honest about it. We are not one of them," S Jaishankar said.

Earlier, Aditya Birla Group Chairman Kumar Mangalam Birla said investment in talent is what shapes the future, and emphasised that with the scholarship programme, "we were driven by the ambition to create a cadre of handpicked leaders who would excel in India and also represent our country abroad".

"The Aditya Birla Scholarship is a tribute to my father's legacy and an ode to the spirit of ambition and extraordinary determination that defines India. With this scholarship programme, we were driven by the ambition to create a cadre of handpicked leaders who would excel in India and also represent our country abroad," he said.

Terming the scholarship a microcosm of India's immense talent -- abundant and outstanding -- Birla said, "The extraordinary success of the programme, as measured by the achievements of our scholars over the years, only indicates that ultimately investment in talent is what shapes the future." Established in 1999 in memory of late industrialist Aditya Vikram Birla, the programme has emerged as one of India's most-coveted merit-based scholarships, according to the group.

The programme partners with 22 premier institutions, including select IITS, BITS Pilani, leading IIMS, XLRI, and national law schools.

Over its 25-year journey, over 10,000 applications have been evaluated by a team of experts, maintaining a steadfast commitment to excellence and diversity. The total number of Aditya Birla Scholars now stands at 781 across engineering, management, and law disciplines, according to the group.

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a syndicated feed.)



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Saturday, November 9, 2024

उत्तराखंड का स्थापना दिवस : आज किन स्थितियों में है यह राज्य

उत्तराखंड का आज 25वां स्थापना दिवस है और इस अवसर पर हमने राज्य की वर्तमान स्थिति जानने के लिए प्रदेश के भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक घटनाक्रमों पर करीब से नजर रखने वाले कुछ लोगों से बातचीत की.

अस्कोट आराकोट यात्रा के एक यात्री की नजरों में आज का उत्तराखंड

उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति पर सबसे पहले हमने चंदन डांगी के साथ विस्तार से बातचीत की. चंदन डांगी उत्तराखंड के भौगोलिक और सामाजिक बदलावों पर साल 1974 से हर 10 सालों में पैदल चलकर ही जानकारी जुटाने वाली लगभग 1200 किलोमीटर लंबी अस्कोट आराकोट यात्रा में तीन बार शामिल हुए हैं. वह कहते हैं हाल ही में उत्तराखंड में उद्यमिता से जुड़े अनेक सफल प्रयोग हुए हैं, जैसे मुनस्यारी में महिलाओं द्वारा संचालित सरमोली होम स्टे, उत्तरकाशी के नौगांव में टमाटर की खेती और इसी के ऊपरी इलाकों में सेब की बागवानी. हिमाचल प्रदेश से तुलना की जाए तो यहां पैदावार और आमदनी अब भी कम है और उत्तराखंड में वहां से ज्यादा मेहनत और जोखिम है.

उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन से सामने आ रहे बदलावों पर चंदन ने आगे बताया कि साल 2004 की अस्कोट आराकोट यात्रा के दौरान, जब हम जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान, मण्डल, गोपेश्वर से चोपता की तरफ बढ़े तो हमें कांचुला खरक कस्तूरी मृग परियोजना देखने को मिली थी. हमें बताया गया था कि यहां अभी लगभग 18 कस्तूरी मृग हैं और एक दर्जन कस्तूरी मृग हमें वहां दिखे भी थे. साल 2014 में जब हम उस जगह पर फिर से गए तो वहां कुछ भी नही बचा था.

पिछले 20 सालों के दौरान भुलकन बड़े कंक्रीट जंगल में बदल गया है, उन्हें समझ नही आता कि पर्यावरण को लेकर इतनी संवेदनशील जगह में कैसे डीजल से चलने वाले बिजली संयंत्र के निर्माण को मंजूरी मिल गई होगी जबकि सालों पहले चोपता में ही होने वाले एक निर्माण कार्य को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद रोक दिया गया था.

उत्तराखंड की महिलाओं पर औद्योगिक क्षेत्र में लगभग चार दशकों का अनुभव प्राप्त चंदन कहते हैं कि उत्तराखंड की महिलाओं के सर और पीठ के बोझ को कम करने में दुनिया भर के डिजाइन क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियों का लाभ कतई नहीं मिला है. आज के जमाने में भी पीरियड के दौरान उत्तराखंड के अनेक गावों की महिलाएं, घर से अलग रहने के लिए बाध्य हैं. यही स्थिति यात्रा के दौरान हमने जातियों को लेकर होने वाले भेदभाव की भी देखी, जिसे आधुनिकता के साथ समाप्त हो जाना चाहिए था.

चंदन डांगी अस्कोट आराकोट यात्रा के अनुभवों से आज के उत्तराखंड पर बात करते आगे कहते हैं कि कोरोना काल के दौरान उत्तराखंड के युवाओं ने प्रदेश में वापस लौट कर स्वरोजगार के कई प्रयोग किए हैं, उदाहरण के लिए बागेश्वर जिले में कीवी का उत्पादन बढ़ा है. 

हिमालय के गांवों में कोदा, मडुवा, झंगोरा जैसे मिलेट उगाए जा रहे है, इनकी मांग देशभर में बहुत अधिक है लेकिन बड़े व्यापारी किसानों से पूरी फसल बहुत ही सस्ते दामों में खरीद रहे हैं. पहाड़ का उद्यमी कम संसाधनों के कारण पिछड़ जाता है क्योंकि उसके पास भंडारण, पैकेजिंग और उचित मार्केटिंग का सपोर्ट नहीं है. कीड़ा जड़ी की खोज में लोग उसको ढूंढने के लिए जान का जोखिम उठा रहे हैं, किंतु इसका क्या बनता है, कैसे बनता है, तैयार उत्पाद कहां बिकते हैं, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. सरकार यदि युवाओं के लिए उनके उत्पाद आसानी से बिकने के मार्ग खोले और पहाड़ में खेती के विकास को लेकर गंभीर हो तो इन युवाओं को आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता.

पहले घर में रहने वाली लड़कियां अब स्कूल जाने लगीं

चंद्रा भंडारी महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाए गए बेहद महत्वपूर्ण रहे कार्यक्रम, महिला समाख्या कार्यक्रम से लंबे समय तक जुड़ी रहीं और उन्होंने उत्तराखंड में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काफी महत्वपूर्ण कार्य किए थे. इस साल उन्होंने साल 2004 के बाद दूसरी बाद अस्कोट आराकोट यात्रा की. चंद्रा कहती हैं जिस कल्पना के साथ उत्तराखंड राज्य का निर्माण किया गया था, वह आज राज्य बनने के 24 साल पूरे होने के बाद आज भी कल्पना ही है. इसमें राज्य के जल, जंगल, जमीन को बचाना शामिल था और साथ ही राज्य से पलायन रोकने के साथ महिला हिंसा को रोकने की कल्पना की गई थी. वह कहती हैं कि अस्कोट आराकोट यात्रा के दौरान उन्होंने राज्य में लड़कियों की शिक्षा के स्तर में विकास देखा है. साल 2004 में यात्रा करते हमने देखा था कि पहाड़ों में लड़कियां ज्यादा नही पढ़ती थीं और कक्षा तीन, चार के बाद स्कूल छोड़ देती थीं लेकिन इस बार हमने कई जगह देखा कि लड़कियां घरों में खेती का काम भी करती हैं और साथ ही स्कूल भी जाती हैं, उच्च शिक्षा के लिए भी माता पिता अब अपनी लड़कियों को देहरादून, दिल्ली, हल्द्वानी जैसे शहरों में भेजने लगे हैं.

पांच दशकों का अनुभव प्राप्त पत्रकार की नजरों में उत्तराखंड

इस साल ही पत्रकारिता में प्रतिष्ठित पुरस्कार पण्डित भैरव दत्त धूलिया पत्रकार पुरस्कार प्राप्त राजीव लोचन साह को पत्रकारिता का लगभग पांच दशकों का अनुभव है. उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति पर वह कहते हैं कि मैदानी प्रदेश के साथ लगा पर्वतीय हिस्सा ठीक से विकास नही कर पा रहा था इसलिए पृथक राज्य की मांग उठी. चालीस पचास साल तक लगातार कोशिश हुई कि यह राज्य बने लेकिन इसका चरम आया साल 1994 में, जब उत्तराखंड की सारी जनता सड़क पर उतर आई थी. उनकी मांगें ज्यादा बड़ी नहीं थीं, वह यही थी कि यहां जिंदगी शांत हो, शराब का ज्यादा प्रभाव न हो, रोजगार हो, किसानी पनपे, गैरसैंण राजधानी हो, भू कानून बने. लेकिन इन चौबीस सालों में हमें इसमें से कुछ भी नही मिला, प्रदेश की खेती नष्ट हो रही है, भू कानून अब तक लागू नहीं हुआ, गर्भवती सड़क में प्रसव कर रही हैं, गैरसैंण अब तक राजधानी नहीं बनी, बेरोजगारी बढ़ रही है. प्रदेश की छवि साम्प्रदायिक रुप से तनावग्रस्त प्रदेश की हो गई है, लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग कर सामाजिक समरसता खत्म की जा रही है. उत्तराखंड की जनता को इन्हीं मूल प्रश्नों पर फिर से केंद्रित होना होगा.

बिना व्यापक तैयारी के पृथक राज्य की घोषणा

इतिहास के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अनिल जोशी उत्तराखंड के गठन से लेकर वर्तमान हालातों पर कहते हैं कि जब उत्तराखंड राज्य का आंदोलन चरम पर था तब मैं उन चंद लोगों में था जो तत्काल राज्य बनने के पक्ष में नहीं थे. मेरा मानना था कि हिमाचल की तर्ज में पहले कुछ वर्षों के लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्ज़ा मिले तो बेहतर होगा. केन्द्र की योजनाओं का तथा वहां से मिलने वाले अनुदानों का भरपूर उपभोग करके इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के बाद यदि राज्य बनता तो विकास की एक योजना बनी होती और राज्य के पास एक मज़बूत ढांचा पहले से मौजूद रहता, साथ ही तक स्थानीय नेतृत्व भी विकसित हो जाता. लेकिन अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ, आंदोलनकारियों और सरकार दोनों को ही राज्य बनाने की जल्दी थी.

बिना व्यापक तैयारी के पृथक राज्य की घोषणा तो हो गई मगर धरातल पर तो कुछ था ही नहीं. राज्य ऐसे लोग चला रहे थे जिनको राज्य की परिकल्पना से कुछ लेना देना नहीं था और न ही यहां की परिस्थिति के अनुरूप विकास से उन्हें मतलब था, अब नतीजा सबके सामने है. पच्चीस साल होने को आए लेकिन कोई भी सरकार सही से राज्य की प्राथमिकताएं तय नहीं कर पाई है.

सतत विकास किसे कहते हैं, यह बुनियादी सवाल जस का तस 

यहां हमें हिमाचल प्रदेश से सीख लेनी चाहिए थी, उनके पहले मुख्यमंत्री डॉक्टर यशवंत सिंह परमार उच्च कोटि के विद्वान थे और अपने पर्वतीय राज्य की भौगोलिक विशेषताओं और विषमताओं दोनों से भली भांति अवगत थे और वे लंबे समय तक पद पर रहे. जिससे वह हिमाचल में विकास के मॉडल को अमलीजामा पहना सके. उनके उत्तराधिकारियों ने उनके विजन को ही आगे बढ़ाया चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो.

सपनों के विपरीत मिला उत्तराखंड

वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पंत राजू से हमने सवाल पूछा कि क्या यह उत्तराखंड वही है, जैसा हमने सोचा था. इस पर वह कहते हैं नहीं कतई नहीं. हमें जो राज्य मिला वह एक पृथक प्रदेश अवश्य है लेकिन हमने ऐसे राज्य के सपने नहीं देखे थे. पृथक पर्वतीय राज्य के सपने पर्वतीय आकांक्षाओं के सपने थे, पर्वतीय सामाजिक परिवेश, संस्कृति और परिस्थितियों से उपजी समस्याओं के समाधान के सपने थे. उन सपनों में आम पर्वतीय इंसान के कष्टों के निवारण की बात थी, उसकी तरक्की की बात थी, उनकी बेहतरी की बात थी. बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य और बेहतर जीवन स्तर के साथ-साथ हरे-भरे और पर्यावरण अनुकूल विकास योजनाओं वाले उत्तराखंड की बात थी. उस सपने में राज्य के समस्त निवासियों के बीच भाईचारे और एक दूसरे के कष्टों में बढ़ चढ़कर शामिल होने की बात भी थी तथा मेलों ठेलों, उत्सवों एवं खेती पाती में परंपरागत सामूहिकता के विकास की बात भी थी. चिंतन मनन के साथ बौद्धिक, राजनीतिक और जमीनी आंदोलन के लंबे संघर्षों के बाद राज्य के रूप में उत्तराखंड की जनता को जो मिला, दुर्भाग्य से वह यहां की जनता के सपनों के एकदम विपरीत हमें हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी के खिलाफ चलाई जाने वाली हमलावर विकास योजनाएं मिलीं. 

इस राज्य ने उत्तराखंड के आम आदमी की संघर्ष क्षमता को कुंद किया, उसको दलाल और भ्रष्ट बनने की दिशा में आगे बढ़ाने का काम किया और अपनी संस्कृति तथा परंपराओं को बाजार के हवाले करने के लिए मजबूर कर दिया. पच्चीस साल में पहुंचे इस राज्य के पास आज न अपनी संस्कृति बची है न अपनी परंपरागत कृषि विशेषज्ञता बची है न अपना पर्यावरण संरक्षित बचा है. न उसकी नदियां सुरक्षित हैं न उसके गांव सुरक्षित हैं और न ही उसका आम आदमी सुरक्षित हैं. बेरोजगारी, खराब स्वास्थ्य सेवाएं और तार-तार होती शिक्षा व्यवस्था आज के उत्तराखंड का सबसे बड़ा सच है. ऐसे उत्तराखंड का सपना तो किसी ने भी नहीं देखा था.

(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.



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"Made Mistake Twice": Nitish Kumar Says He Will Stay With NDA 'Permanently'

Maintaining that he "made a mistake twice" in the past by joining hands with RJD, Bihar Chief Minister Nitish Kumar on Saturday said that now he would stay permanently with the National Democratic Alliance (NDA).

Addressing a public meeting in favour of NDA nominee, Vishal Prashant of BJP for the Tarari assembly byelection, Kumar said, "I have said it earlier also...I am once again saying that we (BJP-JDU) were together earlier. I made a mistake twice in the past by joining hands with the RJD...I went 'idhar udhar' twice in the past...But now, I have again come to the NDA. I will remain permanently with the NDA".

He said, "We have been working for the development of Bihar since 2005. Several infrastructural and development works have been done in Bihar after 2005.....and it will continue further under the NDA rule".

Kumar accused RJD of trying to "polarise" votes on "communal lines" in the upcoming bypolls in the state.

"They (RJD) always try to create a divide on communal lines. When RJD was in power in Bihar, the state witnessed several communal clashes. But, now the situation is totally different when the NDA is in power. I am sure that people will give a befitting reply to the INDIA bloc in the coming bypolls in the state", he said.

By-polls on four Bihar assembly seats will be held on November 13 for which results will be out on November 23.

All four assembly seats had fallen vacant after MLAs representing them were elected to the Lok Sabha. The four seats where by-polls will be held are Ramgarh, Tarari, Belaganj, and Imamganj.

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a syndicated feed.)



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