भोपाल गैस पीड़ितों के हितों के लिए काम करने वाले पांच एनजीओ (गैर सरकारी संगठनों) ने उच्चतम न्यायालय द्वारा सुधारात्मक याचिका को खारिज किए जाने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार से पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिए जाने की मांग की है. सुधारात्मक याचिका में गैस पीड़ितों के लिए यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की उत्तराधिकारी कंपनियों से 7,844 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मुआवजे की मांग की गयी थी.
भोपाल में दिसंबर 1984 में हुए गैस कांड में तीन हजार लोगों की मौत हो गयी थी और हजारों लोग इससे बीमार हो गए. गैस पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग करने वाली याचिका को शीर्ष अदालत द्वारा 14 मार्च को खारिज कर दिया गया था.
‘भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन' की रचना ढींगरा ने पीटीआई-भाषा को बताया, 'न्यायाधीशों ने इस बुनियादी तथ्य की अनदेखी की है कि यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे से भोपाल में भूजल प्रदूषित हुआ है, जिसका 1984 गैस हादसे से कोई संबंध नहीं है. उन्होंने इस बात को नज़रअंदाज़ किया कि यूनियन कार्बाइड द्वारा गैस हादसे से पहले और बाद में भी हज़ारों टन जहरीले कचरे को असुरक्षित तरीके से कारखाने के अंदर और बाहर डाला गया, जिसकी वजह से आज भी कारखाने के आसपास भूजल प्रदूषित है.”
ढींगरा ने आरोप लगाया “साथ ही उनके द्वारा कारखाने की भूमि को उसकी मूल स्थिति में लौटाने की शर्त को भी नजरअंदाज कर दिया गया, जिसके तहत यूनियन कार्बाइड ने पट्टे पर जमीन ली थी.” ‘भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ' की अध्यक्षा रशीदा बी ने कहा, 'उच्चतम न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड के खिलाफ उन दलीलों को नजरअंदाज किया जिसमें कम्पनी ने 1989 में गैस हादसे के मामले को निपटाने के लिए कपटपूर्ण साधन का इस्तेमाल किया था.”
उन्होंने कहा, ‘‘ हमारे वकीलों ने दस्तावजी सबूत पेश किए कि किस तरह यूनियन कार्बाइड के अधिकारियों ने भारत सरकार को इस बात पर गुमराह किया कि एमआईसी गैस की वजह से ज्यादातर गैस पीड़ित केवल अस्थाई रूप से प्रभावित हुए हैं। फैसले में कार्बाइड की धोखाधड़ी के बारे में एक शब्द भी नहीं है.”
‘भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा' के बालकृष्ण नामदेव ने कहा, ‘‘ न्यायालय का यह दावा पूरी तरह से झूठा है कि भोपाल के पीड़ितों को 'मोटर वाहन अधिनियम' के तहत प्रदान किए गए मुआवजे की तुलना में छह गुना अधिक मुआवजा मिला है.‘‘
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 14 मार्च को फैसला सुनाते हुए कहा था कि समझौते के दो दशक बाद केंद्र द्वारा इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं है. केंद्र ने यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी कंपनियों से 7,844 करोड़ रुपये की मांग की थी जबकि 1989 में समझौते के हिस्से के रुप में अमेरिकी कंपनी से 715 करोड़ रुपये प्राप्त हो चुके हैं.
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने कहा, '34 पन्नों के फैसले में कहीं भी ऐसा कोई संकेत नहीं है कि न्यायाधीशों को कार्बाइड से निकली जहरीली गैस की वजह से स्वास्थ्य पर पहुंची हानि के वैज्ञानिक तथ्यों की थोड़ी भी जानकारी है. इसमें यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि न्यायाधीशों को गैस पीड़ितों को लम्बी और पुरानी बीमारियों के बारे में कोई समझ थी.'
‘चिल्ड्रेन अगेंस्ट डॉव कार्बाइड' की नौशीन खान ने कहा कि शीर्ष अदालत पीड़ितों के साथ सहानुभूति नहीं रखती थी, जबकि फैसले में ऐसा दावा किया गया है और उन्होंने गैस पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों के प्रति न्यायालय के रुख की आलोचना हुई.
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