राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को कहा कि इस मानसिकता को बदले जाने की जरूरत है कि बच्चों को पालना और घर चलाना केवल महिलाओं की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि महिलाओं को परिवार से अधिक सहयोग मिलना चाहिए, जिससे वे बिना किसी बाधा के अपने करियर में सर्वोच्च पद पर पहुंच सकें.
राष्ट्रपति मुर्मू ने हरियाणा के गुरुग्राम में ब्रह्माकुमारी संस्था के ‘ओम शांति रिट्रीट सेंटर' में ‘मूल्य-निष्ठ समाज की नींव- महिलाएं' विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया. इसके साथ ही राष्ट्रपति ने अखिल भारतीय जागरूकता अभियान ‘परिवार को सशक्त बनाना' की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि महिलाओं ने भारतीय समाज में मूल्यों और नैतिकता को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
मुर्मू ने इस बात को लेकर प्रसन्नता व्यक्त की कि ब्रह्माकुमारी संस्था ने महिलाओं को केंद्र में रखकर भारतीय मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है. उन्होंने कहा कि आज यह विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक संस्था है, जिसे महिलाएं संचालित करती हैं.
राष्ट्रपति ने कहा कि इस संस्था की 46 हजार से अधिक बहन लगभग 140 देशों में अध्यात्म की परंपरा और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ा रही हैं. महिला सशक्तीकरण को लेकर उन्होंने कहा कि जब भी महिलाओं को समान अवसर मिले हैं, उन्होंने हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर और कभी-कभी उनसे बेहतर प्रदर्शन किया है.
राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘‘कई क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है. हालांकि, उनमें से कई शीर्ष स्थान तक पहुंचने में सक्षम नहीं हैं. यह पाया गया है कि निजी क्षेत्र में मध्य स्तर के प्रबंधन में एक निश्चित स्तर से ऊपर महिलाओं की भागीदारी में कमी आई है. इसके पीछे मुख्य कारण पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं.''
उन्होंने कहा, ‘‘आमतौर पर कामकाजी महिलाओं को कार्यालय के साथ-साथ घर की भी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. हमें इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है कि बच्चों को पालना और घर चलाना केवल महिलाओं की जिम्मेदारी है.''
मुर्मू ने कहा कि महिलाओं को परिवार से अधिक सहयोग मिलना चाहिए, जिससे वे बिना किसी बाधा के अपने करियर में सर्वोच्च पद पर पहुंच सकें. उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तीकरण से ही परिवार सशक्त होंगे और सशक्त परिवार ही सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र का निर्माण करेंगे.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और लोग पैसे, शक्ति और प्रतिष्ठा के पीछे भाग रहे हैं. उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से मजबूत होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन केवल धन के लिए जीना उचित नहीं है. राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘आर्थिक प्रगति और समृद्धि हमें भौतिक सुख दे सकती है, लेकिन शाश्वत शांति नहीं. आध्यात्मिक जीवन दिव्य आनंद के द्वार खोलता है.''
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