कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करेगी और बीजेपी को हरा देगी. अब सवाल यह है कि क्या विपक्ष 2024 में एकजुट होगा. सीटों और वोटों का गणित देखें तो कांग्रेस और विपक्ष की चुनौतियां साफ हो जाती हैं.
गुजरात, कर्नाटक और उत्तराखंड में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकारें हैं. मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश हरियाणा, असम,अरुणाचल प्रदेश,मणिपुर और त्रिपुरा में एनडीए 50 प्रतिशत से अधिक है. महाराष्ट्र, मेघालय और मिजेरम में एनडीए 50 प्रतिशत से कम है. कांग्रेस को देखें तो हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसकी पूर्ण बहुमत की सरकारें हैं. राजस्थान में गठबंधन सरकार है. झारखंड में यूपीए 50 प्रतिशत से कम है.
पंजाब, बिहार,पश्चिम बंगाल, दिल्ली, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं. आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी में सीधी टक्कर मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक में है. इन राज्यों में 100 ऐसी सीटें हैं जिनमें से 93 पर बीजेपी आगे है. क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस से यही कहना है कि आप जहां-जहां सीधे मुकाबले में होते हैं, वहां हार जाते हैं. इसलिए आप अपने आपको प्रमुख मत बोलिए.
तमिलनाडु, पुद्दुचेरी,महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा और जम्मू कश्मीर में कांग्रेस पार्टी गठबंधन में तो है पर वह प्रमुख दल नहीं है. इन प्रदेशों में बीजेपी मजबूत गठबंधन में है. इन राज्यों की 172 सीटों में से बीजेपी और उसके गठबंधन दल 83 सीटें पर आगे हैं.
कुछ स्थानों पर त्रिकोणीय लड़ाई में कांग्रेस तीसरे क्रम पर है. यानी वह अगर गठबंधन मुख्य पार्टी से कर ले तब शायद कुछ बात बने. दिल्ली, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में ऐसी स्थिति है. इन राज्यों की 112 सीटों में से 37 सीटों पर बीजेपी आगे है. समस्या यह है कि इन राज्यों में कांग्रेस के साथ कोई जाना नहीं चाहता. क्षेत्रीय दलों का कहना है कि हम क्यों सीटें दे दें, हमने मेहनत की है. यानी रीजनल प्लेयर कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा मजबूती से अपना गढ़ बचाए हैं.
पंजाब और गुजरात ऐसे राज्य हैं जहां त्रिकोणीय लड़ाई में कांग्रेस दूसरे स्थान पर है. इन राज्यों की 39 सीटों में से 30 सीटों पर बीजेपी आगे है. यानी यदि कांग्रेस यहां गठबंधन कर ले तो हो सकता है कुछ चीजें बल जाएं. लेकिन कांग्रेस को इसी समझौते में दिक्कत आती है. क्षेत्रीय दल कहते हैं कि सब कुछ आप ही क्यों ले जाएं.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस त्रिकोणीय लड़ाई में भी नहीं है. यहां बीजेपी के पास 62 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एक सीट जीती थी.
उत्तर प्रदेश में 2017 में कांग्रेस का समाजवादी पार्टी से गठबंधन हुआ था. यह गठबंधन नाकाम हो गया था. साल 2019 में फिर एक गठबंधन हुआ. यह बसपा और सपा का गठबंधन था. यह भी नाकाम रहा और बीजेपी फिर आगे चली गई. पिछले साल 2022 में सपा और छोटे दलों का फिर गठबंधन हुआ लेकिन यह भी नाकाम रहा. विधानसभा में कांग्रेस दो सीटों तक सीमित हो गई. कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2.3 प्रतिशत रह गया.
बिहार में 2020 के महागठबंधन में कांग्रेस सबसे छोटी सहयोगी थी. कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी लेकिन सिर्फ 19 जीत पाई. सन 2015 में 27 सीटों पर जो कांग्रेस थी वह 19 पर सिमट गई. क्या ऐसे में कांग्रेस उम्मीद कर सकती है कि उसको 2024 में और सीटें मिल सकती हैं.
पश्चिम बंगाल में विपक्ष का गठबंधन एक चुनौती है. साल 2021 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट के साथ कांग्रेस का संयुक्त मोर्चा नाकाम हुआ था. तृणमूल कांग्रेस 292 में से 213 सीटों पर आई. बीजेपी ने 38 प्रतिशत वोट शेयर किया और दूसरे नंबर पर रही. लेफ्ट फ्रंट ने 5.5 प्रतिशत वोट शेयर किया था. कांग्रेस को 2.9 फीसदी वोट मिले थे. सीटें नहीं मिलीं.
तेलंगाना की बात करें तो 2018 के चुनाव में बीआरएस को 47 प्रतिशत वोट मिले थे. कांग्रेस को 28 और बीजेपी को 7 प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन एक साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में बीआरएस 41 प्रतिशत पर आ गई. कांग्रेस थोड़ी बढ़कर 29 प्रतिशत पर आई. लेकिन बीजेपी सात से 19.5 प्रतिशत पर आ गई. अब उनको बहुत उम्मीद है कि वे अब यहां प्रमुख विपक्षी दल बन जाएंगे और हो सकता है सरकार भी बना लें. बीजेपी इस तरह की तैयारी कर रही है. बीआरएस गैर बीजेपी, गैर कांग्रेस गठबंधन की कोशिश में है. यदि बीआरएस और कांग्रेस साथ आ जाते हैं तो क्या वे बीजेपी को तेलंगाना में आने से रोक सकते हैं? यह बड़ा सवाल है कि क्या यह दोनों दल यह व्यवहारिक कदम उठाएंगे.
महाराष्ट्र में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 51 प्रतिशत वोट मिले थे. उसके बाद शिवसेना ही टूट गई. अब शिवसेना के लगभग लोग बीजेपी के साथ चले गए हैं. कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के पास 32 प्रतिशत वोट थे. शिवसेना में जो बड़ी टूट हुई उससे विपक्ष को तगड़ा झटका लगा है. क्या शिवसेना में टूट बीजेपी के लिए एक बार फिर महाराष्ट्र में एक मौका है.
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