बिहार में चुनाव है। इस बार चुनाव के केंद्र में जाति है। चर्चा के लिए कई मुद्दे हैं लेकिन वोट डालते वक्त सबसे प्रमुख जाति है। इस राज्य में जाति नाम के साथ नत्थी है। पिछले साल यानी 2019 में बिहार में देश की आजादी के लिए खुद को फंसी से झूला देने वाले अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की भी जाति खोज ली गई। उनको भी उनकी जाति के साथ बीच चौराहे पर खड़ा कर दिया गया।
जिस चंद्रशेखर आजाद ने सोलह साल की उम्र में अंग्रेज जज के सामने अपना परिचय बताते हुए कहा था, “मेरा नाम आजाद है, पिता का नाम स्वतंत्र और पता जेल है।” उस चंद्रशेखर आजाद को बिहार में चंद्रशेखर तिवारी आजाद बताया गया है। उन्हें ये नई पहचान साल भर पहले दी गई। सबके सामने और बीच चौराहे पर दी गई।
राज्य के अररिया जिले के फारबिसगंज में एक व्यस्त चौराहा है। नाम है, पोस्ट ऑफिस चौराहा या चौक। ट्रैफिक कंट्रोल की कोई व्यवस्था नहीं है। सो चारों तरफ से आने वाली गाड़ियों की वजह से यहां कभी भी ट्रैफिक जाम लग जाता है। ट्रैफिक जाम नहीं भी हो तो गाड़ियों से होने वाले शोर की वजह से वहां खड़ा रहना मुश्किल है।
इस चौराहे पर पिछले साल 7 जुलाई को स्वतंत्रता सेनानी और शहीद चंद्रशेखर आजाद की एक प्रतिमा लगाई गई, जिसमें उनके नाम में जातिसूचक ‘तिवारी’ लगाया गया। प्रतिमा लगाने वाले संगठन हिंदू युवा शक्ति के मुताबिक इसमें कुछ भी गलत नहीं है। प्रकाश पांडिया इस संगठन से जुड़े हैं। इसी चौक पर पिछले 7 साल से मोबाइल दुकान चला रहे हैं।
बिना कैमरे पर आए प्रकाश कहते हैं, “इसमें क्या गलत है? जब मोहनदास करमचंद गांधी के नाम में उनका टाइटल है तो चंद्रशेखर आजाद के नाम में क्यों नहीं होना चाहिए? उन्होंने तो अंग्रेज जज के सामने अपना नाम आजाद बताया था फिर क्यों उनके नाम में चंद्रशेखर जोड़ा गया। अगर चंद्रशेखर जोड़ा जा सकता है तो तिवारी भी जोड़ा जाना चाहिए। हमने यही किया है।”
बकौल प्रकाश उनके संगठन हिंदू युवा शक्ति से जुड़े सभी लोग कार्यकर्ता हैं। कुल तीस युवा इस संगठन से जुड़े हैं और वो इलाके में हिंदू ‘हितों’ की रक्षा के लिए सक्रिय रहते हैं। जब उन्होंने इस नाम के साथ प्रतिमा की स्थापना की थी तो काफी विरोध हुआ था, लेकिन वो सोशल मीडिया पर ही था।
वो बताते हैं, “सामने से कोई कुछ कह नहीं सकता। इतनी तो किसी की हिम्मत नहीं है। हां, यहां के कई स्थानीय लोगों ने सोशल मीडिया पर विरोध किया था। वो करते रहें। हमने प्रतिमा स्थापित कर दी क्योंकि नगरपालिका से हमने अनुमति ले रखी थी।”
सीमांचल असल गंगा-जमुनी तहजीब वाला, यहां ओवैसी के मुस्लिमवाद का क्या काम?
जो जानकारी उपलब्ध है, उसके मुताबिक मध्य प्रदेश के भाबरा में सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था। साल था 1906 और तारीख थी 23 जुलाई। जिस मुल्क की आजादी के लिए लड़ते हुए चंद्रशेखर आजाद ने 24 साल की उम्र में मौत को गले लगा लिया उसी मुल्क के एक हिस्से में उन्हें जाति के बंधन में बांधने पर गर्व महसूस किया जा रहा है।
हमारे कई बार कहने के बाद भी प्रकाश पांडिया कैमरे के सामने आकार कुछ भी कहने से मना करते हैं। यहां तक की वो अपनी तस्वीर लेने से भी मना कर देते हैं। वो ऐसा क्यों कर रहे हैं ये पूछने पर कहते हैं, “देखिए…मैं और हमारे संगठन के दूसरे सभी लड़के व्यापार करते हैं। हम किसी झंझट में नहीं फंसना चाहते हैं। हमें उनकी प्रतिमा लगानी थी सो लगा दिया। जाति बतानी थी सो बता दिया। अब इसके आगे हमें कुछ भी नहीं कहना है।”
इस चौक पर कई दुकानें हैं। कई लोग आ-जा रहे हैं लेकिन कोई भी इस बारे में बात करने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है। सुबोध साह इसी चौक पर पान की दुकान लगाते हैं। जब हमने उनसे इस प्रतिमा और जाति वाले नए पहचान के बारे में पूछा तो बोले, “क्या कहें…चौक की राजनीति बहुत गंदी होती है। संसद और विधानसभा से कहीं ज़्यादा गंदी। हम इतना ही कहेंगे कि इसकी जरूरत नहीं थी। अगर जीते जी उन्होंने अपने नाम के साथ अपनी जाति नहीं लगाई तो अब उनके मरने के बाद लगाने का कोई मतलब नहीं है।”
अपनी बात को रखते हुए सुबोध पूरी बेफिक्री से ये भी कहते हैं कि ई चौक है। किसी का मन किया तो लगा दिया। क्या करना है? लगा हुआ है। लेकिन क्या ये इतनी सी बात है? क्या अपने शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों या देश को बनाने वाले नामों को जाति और धर्म के बंधन में बंधना एक सामान्य बात है? क्या इसका नुकसान समाज को आगे होगा? क्या शहीद चंद्रशेखर आज़ाद को किसी एक जाति का माना जा सकता है?
इन सवालों के जवाब में दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर उमेश कदम कहते हैं, “सबसे पहली बात, चंद्रशेखर आजाद की शहादत इन सब से बहुत ऊपर है। वो हर बंधन से ऊपर हैं। वो उन सबके हैं जो अपने मुल्क से प्रेम करता है। रही बात, जाति के खांचे में फिट करने की तो वो तो हम कर ही रहे हैं। शहरों में जाति के नाम पर अपार्टमेंट हैं। अखबारों में शादी के लिए छपने वाले इस्तेहार में जाति का जिक्र होता है। जाति तब तक नहीं जाएगी जब तक इसे रोकने के लिए कोई कठोर कानून नहीं बनता।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/361IqDG
via IFTTT
0 comments:
Post a Comment