Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

Wednesday, October 21, 2020

चर्चा है अश्विनी चौबे जहर की शीशी लेकर बैठे थे कि गुप्तेश्वर पांडे को टिकट मिला तो जहर पी लेंगे

बक्सर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर हरपुर-जयपुर पंचायत में एक गांव है गेरूआबांध। 700 के करीब गांव की आबादी है। यहां ब्राह्मण और यादवों की संख्या ज्यादा है, जबकि दलितों के चार-पांच घर ही हैं। उनके घर टूटे हुए या झोपड़ी वाले हैं। इसी गांव के रहने वाले हैं बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे, जो पिछले दिनों सुशांत सिंह केस की जांच के वक्त चर्चित हुए थे।

गांव के प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही एक अधेड़ मिले, जो घास काट रहे थे। उनसे पूछा कि पांडेजी का गांव यही है न? उन्होंने हां में सिर हिलाया। जब उनसे सवाल किया कि गांव के लिए पांडे जी ने कुछ काम किया है कि नहीं? उन्होंने कहा, 'गांव खातिर का कइले बानी, कुछु ना। उहां के त आइना और जाइना। ( गांव के लिए कुछ नहीं किए हैं, वो यहां कुछ देर के लिए आते हैं और फिर वापस लौट जाते हैं।)

गांव में पक्की सड़क है, देखकर ऐसा लगता है कि चुनावी मौसम से थोड़े दिन पहले ही बनी है। आगे बढ़ने पर एक झोंपड़ी में कुछ लोग बैठे मिले। उनसे पूर्व डीजीपी का घर पूछा तो एक युवक ने हाथ से इशारा किया कि बगल में ही है। इन्हीं में से एक 50-55 साल के तेजनारायण पांडे हैं। ये गुप्तेश्वर पांडे के बचपन के दोस्त हैं। साथ ही पढ़े हैं, नौकरी के बाद भी कई महीने उनके आवास पर रहे हैं। आज भी जब भी वो गांव आते हैं, इनसे जरूर मिलते हैं।

गांव के लोगों में गुप्तेश्वर पांडे को टिकट नहीं मिलने पर नाराजगी है। इनका कहना है कि बक्सर की चारों सीटों पर इसका असर पड़ेगा।

वो कहते हैं, ' वीआरएस लेने से कुछ दिन पहले साहब यहां आए थे। हमलोगों से चुनाव लड़ने के बारे में चर्चा किए थे। तब हमने कहा था कि डीजीपी होकर विधायक का चुनाव नहीं लड़िए, लेकिन वो बोले कि अब मन बना लिया हूं, जनता का भी बहुत प्रेशर है। हमने कहा कि लोकसभा का लड़ जाइएगा, लेकिन वो बोले कि 'जब लड़ब त बक्सरे से लड़ब' (जब लड़ेंगे तो बक्सर से ही लड़ेंगे)।

अश्विनी चौबे, गुप्तेश्वर पांडे की पीठ में छुरा घोंप दिए

तेजनारायण कहते हैं, 'भाजपा और अश्विनी चौबे ने धोखा दिया है। जब 2014 में वो लोकसभा के लिए भागलपुर से यहां आए तो हम लोगों ने गुप्तेश्वर पांडे के कहने पर ही इनको वोट किया, पूरे क्षेत्र में इनके लिए काम किया। और आज वही अश्विनी चौबे, इनके पीठ में छुरा घोंप दिए। हम लोग कट्टर भाजपाई रहे हैं लेकिन, ई बेर (इस बार) इनको सबक सिखाना है। चौबेजी दुबारा मुंह ना दिखइहें एह क्षेत्र में। राजपुर और बक्सर दोनों जगह इनके खिलाफ वोटिंग होगी।'

हमने पूछा कि आखिर अश्विनी चौबे को गुप्तेश्वर पांडे से क्या दिक्कत है, जो उनका टिकट काटेंगे? वो कहते हैं,' दिक्कत है, दोनों की छवि में जमीन-आसमान का अंतर है। पूरे क्षेत्र में घूम लीजिए आप, एक्को काम नहीं किया है। उनको डर था कि अगर गुप्तेश्वर पांडे को टिकट मिलता है तो उनका लोकसभा का पत्ता साफ हो जाएगा। तभी पीछे से एक युवक कहता है, 'आप इस गांव से बाहर जाकर दूसरे गांव में भी पता कीजिए, सब जगह चर्चा है कि अश्विनी चौबे जहर की शीशी लेकर बैठे थे कि बक्सर से पांडे को टिकट मिला तो जहर पी लेंगे।'

थोड़ी देर बाद गुप्तेश्वर पांडे के छोटे भाई रासबिहारी पांडे भी आ गए। वे अपनी मां के साथ गांव में रहते हैं और खेती-बाड़ी का काम करते हैं। इनके घर पहुंचे तो सामने एक बेड पर गुप्तेश्वर पांडे की मां बैठीं थीं। वो थोड़ा कम सुनती हैं, चुनाव और पॉलिटिक्स के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है, बस इतना पता है कि बेटा बड़ा साहब है। इनसे बात कर ही रहा था, तभी रासबिहारी आ गए। उन्होंने कहा कि इनसे कुछ बात मत करिए चलिए बाहर हम लोग बात करते हैं। शायद वो नहीं चाहते थे कि मां से कुछ बात हो और वो बात आगे निकल जाए। खैर हमने भी कोई जबरदस्ती नहीं की।

गुप्तेश्वर पांडे की मां गांव में ही रहती हैं। इन्हें राजनीति के बारे में कुछ नहीं पता है। बस इतना जानती हैं कि बेटा बड़ा आदमी है।

हम उनके साथ बाहर दरवाजे पर आ गए। कुछ गाय-भैंस बंधी हैं, कुछ अनाज भी सूखने के लिए रखा गया है। पांडेजी के बारे में सवाल करने पर वो ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। हो सकता है कि टिकट कटने के बाद बड़े भाई का ये आदेश हो कि कुछ बोलना नहीं है। वो यहां की राजनीति के बारे में जानते बहुत कुछ हैं, मुझसे पूछते भी हैं कि क्या माहौल है और गांव के लोग गुप्तेश्वर पांडे के बारे में क्या कह रहे थे।

लेकिन, खुद टिकट कटने के सवाल पर कहते हैं,' हम किसान आदमी हैं, हम ई सब के चक्कर में नहीं रहते हैं। हमें तो गांव के लोगों से पता चला कि टिकट कटा है। क्यों कटा और कौन काटा, हमें नहीं पता। उनके पास ही एक बुजुर्ग बैठे हैं, वो मुज्जफरपुर के रहने वाले हैं। 10 साल से यहीं रहते हैं और खेती किसानी का काम करते हैं। कहते हैं, 'टिकट तो भाजपा वाले ही काटे हैं, ई बात तो सब जानते हैं। वैसे देखिएगा आप अगर सरकार बनी तो साहब को नीतीश कुमार मंत्री बनाएंगे।'

गांव में एक प्राइमरी स्कूल है। इसके बाद की पढ़ाई के लिए उनवास या बक्सर जाना होता है। कोई अस्पताल या मेडिकल ट्रीटमेंट की व्यवस्था गांव में नहीं है। नल-जल योजना के तहत गांव में नल तो लगे हैं, लेकिन कभी इनसे पानी नहीं निकला है। यहां के दलितों को न तो राशन मिलता है, न ही आवास।

नीतीश ने टिकट ही नहीं दिया

रामनाथ राम मजदूरी करके गुजारा करते हैं। कहते हैं कि नीतीश ने ही हमारे साहब( गुप्तेश्वर पांडे) का टिकट काट दिया।

रामनाथ राम पैर के घाव से तंग हैं, मजदूरी करके गुजारा करते हैं। कई सालों से इन्हें राशन नहीं मिला है। पूर्व डीजीपी 50 हजार रुपए की मदद किए थे। वो कहते हैं,' साहब जऊन हमारा खातिर कइले बानी हम कबो ना भुलाइब, वोट के का बात बा हम उहां खातिर जान दे देब। नीतीशवा नु उनकर टिकट काट देहलसा ( मेरे लिए साहब जो किए हैं, उसे हम भूल नहीं सकते हैं। वोट की क्या बात है, उनके लिए तो जान भी दे सकते हैं, लेकिन नीतीश ने टिकट ही नहीं दिया)।

पंकज पांडे होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे हैं। अभी कोरोना के चलते गांव में हैं। कहते हैं, 'ई बताइए कि नीतीश चाह देते तो पूरे बिहार में एक सीट नहीं मिलती। बक्सर में नहीं तो डुमरांव दे देते, शाहपुर दे देते, ब्रह्मपुर दे देते। लेकिन, उनको भी कहीं न कहीं डर था कि ये जीत गए तो एक तेजतर्रार नेता के सामने कहीं उनकी छवि कमजोर न हो जाए।'

लोगों से बातचीत से पता चला कि गुप्तेश्वर पांडे दो-चार महीने में यहां आते हैं, लेकिन कभी ज्यादा देर रुकते नहीं हैं। पहली बार 2009 में वीआरएस लिए थे, तब से इन क्षेत्रों में थोड़ी सक्रियता बढ़ी है। इस गांव के पास ही हरपुर और जयपुर गांव हैं। वहां भी गुप्तेश्वर पांडे की लोकप्रियता है। लेकिन, टिकट मिलने या नहीं मिलने को लेकर कोई मलाल या नाराजगी नहीं है।

इसी गांव से थोड़ी दूर पर एक गांव है महदह। ये गांव उसी भाजपा प्रत्याशी परशुराम चौबे का है, जिन्हें बक्सर से इस बार भाजपा ने टिकट दिया है। यहां भी गुप्तेश्वर पांडे को लेकर चर्चा जरूर है, लेकिन गांव के आदमी को टिकट मिलने से खुशी भी है। गांव के ही एक बुजुर्ग कहते हैं, ' देखिए गांव के आदमी को टिकट मिला है तो खुशी तो है, लेकिन पांडे जी थोड़ा मजबूत कैंडिडेट थे। उनको टिकट नहीं मिलने से इस इलाके के कुछ सवर्ण कांग्रेस को वोट कर सकते हैं। क्योंकि, सबको पता है कि ये चौबेजी के चहेते हैं और चौबेजी की छवि इधर बहुत अच्छी नहीं है, वो तो मोदी के नाम पर जीत जाते हैं।

यह भी पढ़ें :

बिहार के 'रॉबिनहुड' पांडे की कहानी : सुर्खियां बटोरना जिनका शौक, सीतामढ़ी में दंगा हुआ तो लाश के पास बैठ रोने लगे, सुरक्षा गार्ड से फेसबुक लाइव करवाते हैं



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Bihar Assembly election 2020 :Ground report From former DGP Gupteshwar Pandey, Bihar Buxar


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34lfqaG
via IFTTT
Share:

0 comments:

Post a Comment

Recent Posts

Blog Archive