कोरोनाकाल में सबसे ज्यादा तकलीफ प्रवासी मजदूरों को उठानी पड़ी। उनके दर्द और तबाही की कहानी समाचारों में छाई रही। अब उन्हीं मजदूरों की दास्तां को मूर्ति में उकेरने का काम किया है पश्चिम बंगाल के कलाकार पल्लव भौमिक ने। इन दिनों सोशल मीडिया पर उनकी क्रिएटिविटी को काफी पसंद किया जा रहा है। नदिया जिले कृष्णनगर के रहने वाले पल्लव पिछले 20 साल से तस्वीरें और मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं।
कोलकाता में बारिशा क्लब की एक पूजा के लिए उन्होंने फाइबर ग्लास से प्रतिमा बनाई है। जिसमें अपने बच्चों के साथ घर लौटती प्रवासी महिला मजदूर को ही देवी का रूप दे दिया है। उनकी इस कला को देखने के लिए पहले दिन से ही भारी भीड़ उमड़ रही है।
इस प्रतिमा को बनाते समय खुद पल्लव ने भी नहीं सोचा था कि यह लोगों को इतनी पसंद आएगी। वो कहते हैं,' लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही हम घर की चारदीवारी में कैद थे। जब भी टीवी ऑन करते तो हजारों की तादाद में पैदल चलते भूखे-प्यासे मजदूर नजर आते थे। इसलिए हमने इस बार की थीम इन प्रवासी मजदूरों को ही बनाने का फैसला किया। खासकर मैंने महिलाओं और बच्चों की तकलीफों पर फोकस किया।
पल्लव मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने गवर्नमेंट आर्ट कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। चित्र और प्रतिमाएं वो बचपन से ही बना रहे हैं। दिल्ली और कोलकाता में उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी हो चुकी है।
वो कहते हैं कि मुझे ये प्रतिमा गढ़ने में दो महीने लगे। अपने घर में बने स्टूडियो में दिन-रात काम कर इसे बनाया। इसका विचार सबसे पहले हमारे कॉन्सेप्ट डिजाइनर रिंटू दास के मन में आया। दिवंगत कलाकार विकास भट्टाचार्य ने दुर्गा सीरीज पर कई तस्वीरें बनाई थीं। उनसे काफी प्रेरणा मिली।
पल्लव कहते हैं,'देवी दुर्गा सिर्फ तस्वीरों या मूर्तियों में नहीं रहतीं। वे हर औरत में रहती हैं। मैं अपनी इस कृति के जरिए उसी नारी शक्ति का सम्मान कर रहा हूं। एक महिला बेहद मुश्किल हालातों में भी किस तरह अपनी संतान की रक्षा करती है, मैंने इसी जीवटता और समर्पण को प्रतिमा के जरिए सबके सामने लाने का प्रयास किया है।
वो बताते हैं, 'जब मैंने काम शुरू किया तो किसी तरह इसे समय पर पूरा करने की कड़ी चुनौती थी। कोरोना के दौर में गाड़ियों के नहीं चलने और दुकानों के बंद होने से जरूरी कच्चा माल जुटाना भी मुश्किल था। उस समय मैंने सोचा भी नहीं था कि यह प्रतिमा सोशल मीडिया पर वायरल हो जाएगी। बॉलीवुड के कई कलाकारों ने इस पर ट्वीट किए हैं। यह देवी की कृपा है। लोगों की तारीफ से लगता है कि मेरी मेहनत सफल रही है।'
वो कहते हैं कि कुछ लोगों ने इस मूर्ति का आइडिया स्व. चित्रकार विकास भट्टाचार्य से लेने की बात कही है। मैं उनकी पेटिंग देखते हुए बड़ा हुआ हूं। एक कलाकार कहीं न कहीं से प्रेरणा तो लेता ही है। लेकिन, प्रवासी महिला और बच्चों के चेहरे का आइडिया मेरा अपना था।
"कोरोना की वजह से कुछ महीने पहले तक यह तय नहीं था कि इस साल पूजा होगी या नहीं। आखिर जब सरकार ने इसकी मंजूरी दी तो दो महीने ही बचे थे। पहले से तय होता तो इसे शायद और बेहतर कर सकता था।"
पल्लव पहले से बारिशा क्लब के लिए काम करते रहे हैं, लेकिन इस साल पहली बार उन्होंने क्लब के लिए 11 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई है। वह भी मिट्टी की बजाय फाइबर ग्लास से। थीम के मुताबिक, पंडाल की साज-सज्जा में चावल, दाल, आलू और दूसरी खाने-पीने की चीजों से भरी बोरियों का इस्तेमाल किया गया है। प्रतिमा के हाथों में शस्त्र की बजाय राहत सामग्री है। यही भूख से लड़ने के देवी के हथियार हैं।
प्रतिमा के शरीर पर कोई गहना भी नहीं है। प्रवासी मजदूरों की असली तस्वीर उकेरने के लिए किसी रंगीन साड़ी का इस्तेमाल नहीं किया गया है। साड़ी भी चेहरे की तरह ही मटमैली है। एक ऐसी सामान्य गांव की महिला को प्रतिमा के रूप में उकेरा गया है, जो अपने बच्चों की रक्षा करने का हरसंभव प्रयास करती है।
पल्लव कहते हैं कि फाइबर ग्लास से प्रतिमा बनाना महंगा है। लेकिन, इस साल बजट की कटौती को ध्यान में रखते हुए मैंने इसे इस तरह बनाया है कि खर्च भी कम आए और इसे लंबे समय तक संरक्षित किया जा सके। यह आगे भी हमें कोरोना और उसकी वजह से उपजी सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी यानी प्रवासी मजदूरों के शहरों से गावों की ओर पलायन की याद दिलाती रहेगी। यही इन मजदूरों के दुख-दर्द के प्रति मेरी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
पश्चिम बंगाल में पिछले 10-12 सालों से थीम-आधारित दुर्गापूजा का प्रचलन बढ़ा है। पंडालों की सजावट के जरिए देश-विदेश में पूरे साल घटी प्रमुख घटनाओं को उकेरा जाता है। पहले भी सिंगुर और नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन को थीम दिया जा चुका है। बीते साल बालाकोट एयर स्ट्राइक की थीम पर बनी पूजा ने भी दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी थीं।
इस साल पूजा समितियों ने बजट में 75% तक कटौती की
किसी पंडाल में दक्षिण के मंदिर उतरते हैं तो कहीं चीन, अमेरिका या वियतनाम। कोलकाता में दर्जनों ऐसी पूजा समितियां हैं, जिनका बजट करोड़ों में रहता है। लेकिन, इस साल कोरोना और मंदी की वजह से ऐसी तमाम समितियों ने अपने बजट में 50 से 75 फीसदी तक की कटौती की है। जिस बारिशा क्लब का बजट बीते साल 40 लाख था, इस साल 10 लाख ही है।
बिजली की सजावट के जरिए पूरे साल के दौरान देश-विदेश होने वाली घटनाओं को साकार करने के मामले में हुगली जिले के चंदन नगर के कलाकार दुनिया में मशहूर है। चंदन नगर में पांच हजार से ज्यादा ऐसे बिजली कारीगर हैं, जो दुनिया की किसी भी घटना और जगह को बिजली की सजावट के जरिए जीवंत कर देते हैं। हुगली के तट पर बसा चंदन नगर, जो कभी फ्रेंच कालोनी था। अब लाइटिंग डेकोरेशन की मिसाल बन गया है।
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