1977 का बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में अलग था। अलग इसलिए क्योंकि दो साल के आपातकाल के बाद देश में और बिहार में चुनाव हो रहे थे। अलग इसलिए भी क्योंकि पहली बार कांग्रेस बिहार में दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी। आजादी के बाद से लेकर 1972 तक हर बार बिहार में कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी बनती रही। हालांकि, 1967 और 1969 में कांग्रेस बिहार में सरकार बनाने से चूक जरूर गई थी।
इसके बाद 1980 और 1985 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। 1985 का चुनाव ही कांग्रेस के लिए आखिरी चुनाव था, जब उसने 100 से ज्यादा सीटें जीतीं। उस चुनाव में कांग्रेस को 196 सीटें मिली थीं। लेकिन, 1990 के चुनाव में दूसरी बार कांग्रेस सीटों के लिहाज से दूसरे नंबर पर आ गई। और यहीं से उसका पतन भी शुरू हुआ। या यूं कहें कि 1990 से ही बिहार में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा शुरू हुआ और राष्ट्रीय पार्टियां सिर्फ सहयोगी की भूमिका में आ गई।
1990 और 1995 के चुनाव में बिहार में जनता दल की सरकार बनी। जनता दल उस समय तक राष्ट्रीय पार्टी होती थी, लेकिन ये बिखरते-बिखरते पहले क्षेत्रीय पार्टी बनी और फिर खत्म ही हो गई। 2000 से लेकर 2015 तक यहां 5 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और हर बार सबसे बड़ी पार्टी क्षेत्रीय पार्टी ही थी। सबसे बड़ी पार्टी ही किंग या किंगमेकर रही। भाजपा यहां 9 चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन आज तक 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी। भाजपा ने बिहार में अब तक सबसे ज्यादा 91 सीटें 2010 के चुनाव में जीती थीं।
पिछले 5 चुनाव से क्षेत्रीय पार्टियां ही किंग और किंगमेकर
2000 से लेकर 2015 तक यहां 5 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और हर बार क्षेत्रीय पार्टियां या तो किंग बनी हैं या फिर किंगमेकर। 2000 के चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसी की सरकार बनी। फरवरी 2005 में भी राजद ही सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन उस समय भाजपा-जदयू गठबंधन में थी और वो बहुमत से चूक गई थी। लिहाजा किसी की सरकार नहीं बन सकी।
अक्टूबर 2005 में 88 सीटें जीतकर जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनी और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2010 में भी जदयू 115 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई। 2015 में राजद ने सबसे ज्यादा 80 सीटें जीतीं और महागठबंधन की सरकार बनी, जिसमें जदयू और कांग्रेस शामिल थी। जुलाई 2017 में नीतीश कुमार की जदयू महागठबंधन से अलग हो गई और भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई।
भाजपा कभी 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई
1980 में बनी भाजपा ने बिहार में पहला विधानसभा चुनाव भी इसी साल लड़ा। इस चुनाव में 246 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 21 ही जीत सके थे। उसके बाद से अब तक भाजपा यहां 9 चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन कभी भी 100 से ज्यादा सीटें नहीं जीत सकी है।
भाजपा ने बिहार में अब तक सबसे ज्यादा 91 सीटें 2010 के चुनाव में जीती थीं। बिहार में भाजपा सरकार में सहयोगी जरूर है, लेकिन कभी अकेले दम पर सरकार नहीं बना सकी है। यहां उसने जदयू से गठबंधन कर रखा है।2015 में जदयू से भाजपा से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हो गई थी। इसका नतीजा ये हुआ कि भाजपा की सीटें घट गईं और वो सिर्फ 53 सीटें ही जीत सकी। हालांकि, बाद में जुलाई 2017 में नीतीश कुमार भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने।
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