Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

Friday, September 11, 2020

चीन से युद्ध दूर की संभावना; अच्छी बात यह है कि राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर संपर्क अभी टूटा नहीं

‘युद्धम् प्रज्ञा’ ऐसा सिद्धांत है, जिसका पालन करने के लिए अनेक बार भारतीय बलों को कहा जाता है। इसका अर्थ है कि ‘बुद्धि से युद्ध’ करें और विशेष रूप से यह भविष्य के लीडरों से दो बातें कहता है। पहला यह कि आपका इतना बुद्धिमान होना जरूरी है कि आप युद्ध की भयावहता को समझते हों और दूसरा युद्ध का सहारा तभी लेना चाहिए जब आपके पास इसे समझने और अभियोजन की बुद्धि हो।

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पिछले चार महीनों से गतिरोध जारी है और पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से लोग भारत और चीन के बीच युद्ध की आशंका से चिंतित हैं। इन हालात में हवाओं में कट्‌टर राष्ट्रवाद हावी रहेगा, इसके साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि दोनों ओर पर्याप्त नीतिज्ञ हैं, जो जानते हैं कि युद्ध कुछ ऐसी चीज है जो परिणाम की गारंटी नहीं देता।

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) द्वारा पिछले दिनों अचानक से किए हमले के बाद अगस्त के अंत में भारतीय सेना ने चतुराई से चीन को झटका दे दिया है। उसने अप्रत्याशित मोर्चा खोलते हुए पैंगॉन्ग त्सो के दक्षिण में कैलाश रेंज में प्रभुत्व वाली जगहों पर कब्जा कर लिया, ताकि कुछ बढ़त हासिल हो। इससे एक तो चुशूल बाउल में गहराई हासिल हुई यानी सैन्य भाषा में पीएलए को चुशूल में किसी भी तरह की कोशिश से पहले कैलाश रेंज में लड़ना होगा।

दूसरे इससे सपंगगुर गैप, सपंगगुर झील और पीएलए के मोल्डो गैरीसन में स्पष्ट और बिना बाधा के प्रभुत्व मिला है। ये वे जगहें हैं, जहां से पीएलए को चुशूल के लिए आगे बढ़ना होता है। तीसरे इसने पीएलए को किसी जवाबी प्रहार की बजाय हमारी मौजूदा ताकत पर फोकस करने के लिए मजबूर कर दिया है। असैनिक लोग सोच सकते हैं कि भारत ने मई-जून 2020 में इस कदम को क्यों नहीं उठाया? उस समय ऐसा न करने का संभवतया मूल सैन्य औचित्य था। क्योंकि एलएसी सिर्फ बोधात्मक है और यहां पर किसी भी तरह मौजूदगी अस्वीकार्य है।

कैलाश रेंज की पहाड़ियां दोनों ही पक्षों द्वारा खाली छोड़ी जाती रही हैं। मई-जून में हमारे द्वारा यहां पर अचानक कब्जा करने से चुशूल जैसे गंभीर क्षेत्र में पीएलए की ओर से प्रत्युत्तर दिया जा सकता था, जबकि हम तब असंतुलित थे। याद करें कि अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती के मामले में तब पीएलए को हम पर बढ़त थी।

जून-जुलाई में लद्दाख में अतिरिक्त सेनाएं भेजने के बाद भारत अधिक संतुलित है और पीएलए के किसी भी कदम का जवाब देने की स्थिति में है। यह आकलन भी उतना ही अहम है कि पीएलए ने मई-जून में रेचिन ला या हेलमेट टॉप पर कब्जे के अवसर को क्यों छोड़ दिया।

मेरा मानना यह है सुपीरियटी कॉम्पलेक्स की वजह से पीएलए को लगता था कि भारतीय सेना कभी भी प्रो-एक्टिव रवैया अपनाकर उन चोटियों पर कब्जा नहीं कर सकती, जिसको करने में उसे डर महसूस होता था। चुशूल ऐसी संवेदनशील लोकेशन है कि शायद पीएलए ठहरी रहेगी और कुछ भी बाद में तब करेगी, जब उसे चुशूल बाउल और उसके आसपास भारतीय सेनाएं और मशीनी उपकरण नजर आएंगे। हमने उन्हें अच्छी चेतावनी के साथ हराया है।

मीडिया एंकर सवाल कर रहे हैं कि क्या भारत अब बढ़त में है और क्या कैलाश रेंज में कोई जवाबी हमला हो सकता है? जो कुछ भी होगा देखेंगे। जवाबी हमले की आशंका सही हो सकती है। यह बिना किसी वजह के भी हो सकता है। कमांडरों के अवसाद से उभरे हालात में एक निचले स्तर के हमले की उम्मीद की जा सकती है।

रणनीतिक रूप से भारतीय सेनाओं द्वारा हासिल की गई चोटियों और इस मामले में मैकेनाइज्ड उपकरणों से दी गई मजबूती के बाद इन्हें बिना तोपखाने, वायुसेना, रॉकेट और मिसाइलों का इस्तेमाल किए बिना खाली कराना मुश्किल है।

इस सबका मतलब युद्ध होगा और भारत भी किसी कार्रवाई के लिए तैयार है। क्या चीन इस विकल्प को अपनाना चाहेगा? अभी न तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चीन की कहानी को वजन मिल रहा है और न ही इसकी गारंटी है कि पीएलए के पास एक छोटे युद्ध में भारत को हराने की क्षमता है। यह एक खतरा है। उद्देश्य हासिल नहीं हुआ तो इसका अर्थ चीन की परोक्ष हार होगी और अक्टूबर 2020 में होने वाली सेंट्रल कमेटी की पूर्ण बैठक से पूर्व शी जिनपिंग इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते।

परंपरागत बुद्धि कहती है कि अक्टूबर-नवंबर में युद्ध जैसे हालात होंगे और उसके बाद सर्दी शुरू हो जाएगी। इसलिए दोनों ओर से युद्ध टालने वाले वार्ताकारों के पास एक महीना या उससे कुछ अधिक समय है। इस सबके बीच सकारात्मक यह है कि राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर संपर्क अभी टूटा नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में मिल सकते हैं और इससे कोई परिणाम निकल सकता है।

चीन सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया के तीखे स्वरों से हमें प्रभावित नहीं होना है। यह सूचना युद्ध का हिस्सा है। मेरे विचार में दक्षिण पैंगॉन्ग त्सो के सूची में शामिल होने से यथास्थिति की आड़ कुछ जटिल हो गई है। झड़पें होती रहेंगी, लेकिन युद्ध दूर की संभावना है, हालांकि विकल्प खुले रहेंगे। कैसे और कब यह संभावना घटित होगी, इसे हमारी बुद्धिमानी पर छोड़ देना चाहिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
लेफ्टि. जनरल एसए हसनैन (कश्मीर में 15वीं कोर के पूर्व कमांडर)।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3ioUsw6
via IFTTT
Share:

0 comments:

Post a Comment

Recent Posts

Blog Archive