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Saturday, November 9, 2024

उत्तराखंड का स्थापना दिवस : आज किन स्थितियों में है यह राज्य

उत्तराखंड का आज 25वां स्थापना दिवस है और इस अवसर पर हमने राज्य की वर्तमान स्थिति जानने के लिए प्रदेश के भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक घटनाक्रमों पर करीब से नजर रखने वाले कुछ लोगों से बातचीत की.

अस्कोट आराकोट यात्रा के एक यात्री की नजरों में आज का उत्तराखंड

उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति पर सबसे पहले हमने चंदन डांगी के साथ विस्तार से बातचीत की. चंदन डांगी उत्तराखंड के भौगोलिक और सामाजिक बदलावों पर साल 1974 से हर 10 सालों में पैदल चलकर ही जानकारी जुटाने वाली लगभग 1200 किलोमीटर लंबी अस्कोट आराकोट यात्रा में तीन बार शामिल हुए हैं. वह कहते हैं हाल ही में उत्तराखंड में उद्यमिता से जुड़े अनेक सफल प्रयोग हुए हैं, जैसे मुनस्यारी में महिलाओं द्वारा संचालित सरमोली होम स्टे, उत्तरकाशी के नौगांव में टमाटर की खेती और इसी के ऊपरी इलाकों में सेब की बागवानी. हिमाचल प्रदेश से तुलना की जाए तो यहां पैदावार और आमदनी अब भी कम है और उत्तराखंड में वहां से ज्यादा मेहनत और जोखिम है.

उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन से सामने आ रहे बदलावों पर चंदन ने आगे बताया कि साल 2004 की अस्कोट आराकोट यात्रा के दौरान, जब हम जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान, मण्डल, गोपेश्वर से चोपता की तरफ बढ़े तो हमें कांचुला खरक कस्तूरी मृग परियोजना देखने को मिली थी. हमें बताया गया था कि यहां अभी लगभग 18 कस्तूरी मृग हैं और एक दर्जन कस्तूरी मृग हमें वहां दिखे भी थे. साल 2014 में जब हम उस जगह पर फिर से गए तो वहां कुछ भी नही बचा था.

पिछले 20 सालों के दौरान भुलकन बड़े कंक्रीट जंगल में बदल गया है, उन्हें समझ नही आता कि पर्यावरण को लेकर इतनी संवेदनशील जगह में कैसे डीजल से चलने वाले बिजली संयंत्र के निर्माण को मंजूरी मिल गई होगी जबकि सालों पहले चोपता में ही होने वाले एक निर्माण कार्य को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद रोक दिया गया था.

उत्तराखंड की महिलाओं पर औद्योगिक क्षेत्र में लगभग चार दशकों का अनुभव प्राप्त चंदन कहते हैं कि उत्तराखंड की महिलाओं के सर और पीठ के बोझ को कम करने में दुनिया भर के डिजाइन क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियों का लाभ कतई नहीं मिला है. आज के जमाने में भी पीरियड के दौरान उत्तराखंड के अनेक गावों की महिलाएं, घर से अलग रहने के लिए बाध्य हैं. यही स्थिति यात्रा के दौरान हमने जातियों को लेकर होने वाले भेदभाव की भी देखी, जिसे आधुनिकता के साथ समाप्त हो जाना चाहिए था.

चंदन डांगी अस्कोट आराकोट यात्रा के अनुभवों से आज के उत्तराखंड पर बात करते आगे कहते हैं कि कोरोना काल के दौरान उत्तराखंड के युवाओं ने प्रदेश में वापस लौट कर स्वरोजगार के कई प्रयोग किए हैं, उदाहरण के लिए बागेश्वर जिले में कीवी का उत्पादन बढ़ा है. 

हिमालय के गांवों में कोदा, मडुवा, झंगोरा जैसे मिलेट उगाए जा रहे है, इनकी मांग देशभर में बहुत अधिक है लेकिन बड़े व्यापारी किसानों से पूरी फसल बहुत ही सस्ते दामों में खरीद रहे हैं. पहाड़ का उद्यमी कम संसाधनों के कारण पिछड़ जाता है क्योंकि उसके पास भंडारण, पैकेजिंग और उचित मार्केटिंग का सपोर्ट नहीं है. कीड़ा जड़ी की खोज में लोग उसको ढूंढने के लिए जान का जोखिम उठा रहे हैं, किंतु इसका क्या बनता है, कैसे बनता है, तैयार उत्पाद कहां बिकते हैं, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. सरकार यदि युवाओं के लिए उनके उत्पाद आसानी से बिकने के मार्ग खोले और पहाड़ में खेती के विकास को लेकर गंभीर हो तो इन युवाओं को आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता.

पहले घर में रहने वाली लड़कियां अब स्कूल जाने लगीं

चंद्रा भंडारी महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाए गए बेहद महत्वपूर्ण रहे कार्यक्रम, महिला समाख्या कार्यक्रम से लंबे समय तक जुड़ी रहीं और उन्होंने उत्तराखंड में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काफी महत्वपूर्ण कार्य किए थे. इस साल उन्होंने साल 2004 के बाद दूसरी बाद अस्कोट आराकोट यात्रा की. चंद्रा कहती हैं जिस कल्पना के साथ उत्तराखंड राज्य का निर्माण किया गया था, वह आज राज्य बनने के 24 साल पूरे होने के बाद आज भी कल्पना ही है. इसमें राज्य के जल, जंगल, जमीन को बचाना शामिल था और साथ ही राज्य से पलायन रोकने के साथ महिला हिंसा को रोकने की कल्पना की गई थी. वह कहती हैं कि अस्कोट आराकोट यात्रा के दौरान उन्होंने राज्य में लड़कियों की शिक्षा के स्तर में विकास देखा है. साल 2004 में यात्रा करते हमने देखा था कि पहाड़ों में लड़कियां ज्यादा नही पढ़ती थीं और कक्षा तीन, चार के बाद स्कूल छोड़ देती थीं लेकिन इस बार हमने कई जगह देखा कि लड़कियां घरों में खेती का काम भी करती हैं और साथ ही स्कूल भी जाती हैं, उच्च शिक्षा के लिए भी माता पिता अब अपनी लड़कियों को देहरादून, दिल्ली, हल्द्वानी जैसे शहरों में भेजने लगे हैं.

पांच दशकों का अनुभव प्राप्त पत्रकार की नजरों में उत्तराखंड

इस साल ही पत्रकारिता में प्रतिष्ठित पुरस्कार पण्डित भैरव दत्त धूलिया पत्रकार पुरस्कार प्राप्त राजीव लोचन साह को पत्रकारिता का लगभग पांच दशकों का अनुभव है. उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति पर वह कहते हैं कि मैदानी प्रदेश के साथ लगा पर्वतीय हिस्सा ठीक से विकास नही कर पा रहा था इसलिए पृथक राज्य की मांग उठी. चालीस पचास साल तक लगातार कोशिश हुई कि यह राज्य बने लेकिन इसका चरम आया साल 1994 में, जब उत्तराखंड की सारी जनता सड़क पर उतर आई थी. उनकी मांगें ज्यादा बड़ी नहीं थीं, वह यही थी कि यहां जिंदगी शांत हो, शराब का ज्यादा प्रभाव न हो, रोजगार हो, किसानी पनपे, गैरसैंण राजधानी हो, भू कानून बने. लेकिन इन चौबीस सालों में हमें इसमें से कुछ भी नही मिला, प्रदेश की खेती नष्ट हो रही है, भू कानून अब तक लागू नहीं हुआ, गर्भवती सड़क में प्रसव कर रही हैं, गैरसैंण अब तक राजधानी नहीं बनी, बेरोजगारी बढ़ रही है. प्रदेश की छवि साम्प्रदायिक रुप से तनावग्रस्त प्रदेश की हो गई है, लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग कर सामाजिक समरसता खत्म की जा रही है. उत्तराखंड की जनता को इन्हीं मूल प्रश्नों पर फिर से केंद्रित होना होगा.

बिना व्यापक तैयारी के पृथक राज्य की घोषणा

इतिहास के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अनिल जोशी उत्तराखंड के गठन से लेकर वर्तमान हालातों पर कहते हैं कि जब उत्तराखंड राज्य का आंदोलन चरम पर था तब मैं उन चंद लोगों में था जो तत्काल राज्य बनने के पक्ष में नहीं थे. मेरा मानना था कि हिमाचल की तर्ज में पहले कुछ वर्षों के लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्ज़ा मिले तो बेहतर होगा. केन्द्र की योजनाओं का तथा वहां से मिलने वाले अनुदानों का भरपूर उपभोग करके इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के बाद यदि राज्य बनता तो विकास की एक योजना बनी होती और राज्य के पास एक मज़बूत ढांचा पहले से मौजूद रहता, साथ ही तक स्थानीय नेतृत्व भी विकसित हो जाता. लेकिन अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ, आंदोलनकारियों और सरकार दोनों को ही राज्य बनाने की जल्दी थी.

बिना व्यापक तैयारी के पृथक राज्य की घोषणा तो हो गई मगर धरातल पर तो कुछ था ही नहीं. राज्य ऐसे लोग चला रहे थे जिनको राज्य की परिकल्पना से कुछ लेना देना नहीं था और न ही यहां की परिस्थिति के अनुरूप विकास से उन्हें मतलब था, अब नतीजा सबके सामने है. पच्चीस साल होने को आए लेकिन कोई भी सरकार सही से राज्य की प्राथमिकताएं तय नहीं कर पाई है.

सतत विकास किसे कहते हैं, यह बुनियादी सवाल जस का तस 

यहां हमें हिमाचल प्रदेश से सीख लेनी चाहिए थी, उनके पहले मुख्यमंत्री डॉक्टर यशवंत सिंह परमार उच्च कोटि के विद्वान थे और अपने पर्वतीय राज्य की भौगोलिक विशेषताओं और विषमताओं दोनों से भली भांति अवगत थे और वे लंबे समय तक पद पर रहे. जिससे वह हिमाचल में विकास के मॉडल को अमलीजामा पहना सके. उनके उत्तराधिकारियों ने उनके विजन को ही आगे बढ़ाया चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो.

सपनों के विपरीत मिला उत्तराखंड

वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पंत राजू से हमने सवाल पूछा कि क्या यह उत्तराखंड वही है, जैसा हमने सोचा था. इस पर वह कहते हैं नहीं कतई नहीं. हमें जो राज्य मिला वह एक पृथक प्रदेश अवश्य है लेकिन हमने ऐसे राज्य के सपने नहीं देखे थे. पृथक पर्वतीय राज्य के सपने पर्वतीय आकांक्षाओं के सपने थे, पर्वतीय सामाजिक परिवेश, संस्कृति और परिस्थितियों से उपजी समस्याओं के समाधान के सपने थे. उन सपनों में आम पर्वतीय इंसान के कष्टों के निवारण की बात थी, उसकी तरक्की की बात थी, उनकी बेहतरी की बात थी. बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य और बेहतर जीवन स्तर के साथ-साथ हरे-भरे और पर्यावरण अनुकूल विकास योजनाओं वाले उत्तराखंड की बात थी. उस सपने में राज्य के समस्त निवासियों के बीच भाईचारे और एक दूसरे के कष्टों में बढ़ चढ़कर शामिल होने की बात भी थी तथा मेलों ठेलों, उत्सवों एवं खेती पाती में परंपरागत सामूहिकता के विकास की बात भी थी. चिंतन मनन के साथ बौद्धिक, राजनीतिक और जमीनी आंदोलन के लंबे संघर्षों के बाद राज्य के रूप में उत्तराखंड की जनता को जो मिला, दुर्भाग्य से वह यहां की जनता के सपनों के एकदम विपरीत हमें हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी के खिलाफ चलाई जाने वाली हमलावर विकास योजनाएं मिलीं. 

इस राज्य ने उत्तराखंड के आम आदमी की संघर्ष क्षमता को कुंद किया, उसको दलाल और भ्रष्ट बनने की दिशा में आगे बढ़ाने का काम किया और अपनी संस्कृति तथा परंपराओं को बाजार के हवाले करने के लिए मजबूर कर दिया. पच्चीस साल में पहुंचे इस राज्य के पास आज न अपनी संस्कृति बची है न अपनी परंपरागत कृषि विशेषज्ञता बची है न अपना पर्यावरण संरक्षित बचा है. न उसकी नदियां सुरक्षित हैं न उसके गांव सुरक्षित हैं और न ही उसका आम आदमी सुरक्षित हैं. बेरोजगारी, खराब स्वास्थ्य सेवाएं और तार-तार होती शिक्षा व्यवस्था आज के उत्तराखंड का सबसे बड़ा सच है. ऐसे उत्तराखंड का सपना तो किसी ने भी नहीं देखा था.

(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.



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"Made Mistake Twice": Nitish Kumar Says He Will Stay With NDA 'Permanently'

Maintaining that he "made a mistake twice" in the past by joining hands with RJD, Bihar Chief Minister Nitish Kumar on Saturday said that now he would stay permanently with the National Democratic Alliance (NDA).

Addressing a public meeting in favour of NDA nominee, Vishal Prashant of BJP for the Tarari assembly byelection, Kumar said, "I have said it earlier also...I am once again saying that we (BJP-JDU) were together earlier. I made a mistake twice in the past by joining hands with the RJD...I went 'idhar udhar' twice in the past...But now, I have again come to the NDA. I will remain permanently with the NDA".

He said, "We have been working for the development of Bihar since 2005. Several infrastructural and development works have been done in Bihar after 2005.....and it will continue further under the NDA rule".

Kumar accused RJD of trying to "polarise" votes on "communal lines" in the upcoming bypolls in the state.

"They (RJD) always try to create a divide on communal lines. When RJD was in power in Bihar, the state witnessed several communal clashes. But, now the situation is totally different when the NDA is in power. I am sure that people will give a befitting reply to the INDIA bloc in the coming bypolls in the state", he said.

By-polls on four Bihar assembly seats will be held on November 13 for which results will be out on November 23.

All four assembly seats had fallen vacant after MLAs representing them were elected to the Lok Sabha. The four seats where by-polls will be held are Ramgarh, Tarari, Belaganj, and Imamganj.

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a syndicated feed.)



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Friday, November 8, 2024

AMU पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला : छात्रों ने कहा- यह हमेशा से अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी, अदालत ने भी माना

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर बड़ा फैसला आया है. सुप्रीम कोर्ट ने AMU का अल्पसंख्यक का दर्जा फिलहाल बरकरार रखा है, लेकिन साथ में यह भी साफ किया कि एक नई बेंच इसको लेकर गाइडलाइंस बनाएगी. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि एक 3 सदस्यीय नियमित बेंच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर फाइनल फैसला करेगी. यह बेंच 7 जजों की बेंच के फैसले के निष्कर्षों और मानदंड के आधार पर एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के बारे में अंतिम फैसला लेगी.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस के मामले में 7 जजों की बेंच का फैसला शुक्रवार को आया. हालांकि यह फैसला सर्वसम्मति से नहीं बल्कि 4:3 के अनुपात में आया है. फैसले के पक्ष में सीजेआई, जस्टिस खन्ना, जस्टिस पारदीवाला जस्टिस मनोज मिश्रा एकमत रहे. वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एससी शर्मा का फैसला अलग रहा.

इस फैसले का यह असर होगा कि मुस्लिम छात्रों को 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित रहेंगी, एससी,एसटी छात्रों को आरक्षण नहीं मिलेगा. जामिया सहित अन्य अल्पसंख्यक विश्वविद्यालयों पर इसका असर पड़ेगा. 

एनडीटीवी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे छात्रों के विचार जाने. एक छात्र ने कहा कि यह यूनिवर्सिटी माइनारिटी संस्थान है. यह अल्पसंख्यक संस्थान ही रहा है और आगे भी रहेगा. एक छात्र ने कहा कि, ''यह यूनिवर्सिटी उस समय बनी थी जब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सहित तीन-चार अन्य विश्वविद्यालय बने थे. देश में सिर्फ यही एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. कई संस्थान हैं, अलग-अलग धर्मों के हैं. एएमयू देश के पिछड़े हुए मुसलमान तबके को ऊपर लाता रहा है.'' 

एक छात्र ने कहा कि, ''सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने यह मामला तीन जजों की बैंच को रिफर किया है. इससे यह साबित होता है कि कोर्ट ने आगे हमारे लिए रास्ता दिखा दिया है. कोर्ट ने माना है कि यह एक अल्पसंख्यक संस्थान है. सर सैयद अहमद खान ने 1875 में यह संस्थान बनाया था. यह तभी से एक अल्पसंख्यक संस्थान है.'' 

एक छात्र ने कहा कि, ''करीब 4000 से अधिक नॉन मुस्लिम छात्र यहां पढ़ते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी दुनिया में यह पैगाम गया कि भारत और यहां की अदालतें अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण करती हैं. सबको रिजर्वेशन दीजिए कोई तकलीफ नहीं है लेकिन माइनारिटी भी एक तबका है.''



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Yoga Teacher Buried Alive, Escapes Death Using Breathing Techniques

A 34-year-old Yoga teacher faked her death using breathing techniques and saved herself after allegedly being assaulted, strangled and then buried by a group of people who assumed she was dead, police said on Friday.

Five people, including a woman identified as Bindu and her friend named Satish Reddy who runs a detective agency in Bengaluru, have been arrested in connection with the incident, they said.

"Bindu suspected her husband of having an affair with the Yoga teacher and asked Reddy to keep a tab on the woman and her proximity to him. As part of the plan, Reddy allegedly befriended the victim some three months ago on the pretext of taking Yoga classes from her and during this period, he managed to gain her confidence," a police official said.

In her complaint, the victim alleged that on the pretext of showing some places around the city on October 23, he came to her house near Dibburahalli and took her in a car in which three other men were also present.

She alleged that they took her to a secluded spot on the outskirts of the city and allegedly stripped and assaulted her.

According to her, she was thrashed, threatened and strangled using a cable. She claimed that she played along, pretended to be unconscious and faked her death using breathing techniques.

"Assuming the woman died, the accused allegedly dug a pit and covered her body with thin layers of soil because they were in a hurry and feared to be caught. But before leaving, they took away all her gold jewellery," a senior police officer said.

She claimed that she later managed to wriggle out of the pit and with the help of some villagers, got clothes and managed to reach the police station to file a complaint, he said.

The woman was sent for a medical examination as per procedure and admitted to a hospital.

"Based on the complaint, we registered a case under sections of kidnapping, attempt to murder and other appropriate sections of the Bharatiya Nyaya Sanhita. Based on the investigation, we arrested five people, including Reddy and Bindu, on November 6," the officer said.

The vehicle in which the victim was kidnapped was allegedly stolen from Bengaluru, police said, adding, the victim's jewellery has also been recovered with the arrests.

"We are trying to verify all the claims made by the victim. There were also some online money transactions between Bindu and the associates and we are investigating the money trail also," he added.

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a syndicated feed.)



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Sinclair, IIT Bombay Partner For Next Gen Wireless Broadcast-To-Everything Research

The Indian Institute of Technology Bombay and Sinclair Inc have recently signed a Memorandum of Understanding (MoU) for "collaboration of technology and standards development in wireless broadcast services over next generation telecom and broadcast networks." 

Sinclair, a diversified media company and a leading provider of local broadcast television, in a statement said, "Research efforts will focus on enhancements to the international ATSC (Advanced Television Systems Committee) 3.0 wireless broadcast standard for a variety of mobile, television and other fixed applications that can benefit India and the world." 

The new capabilities of ATSC 3.0, they said, will advance "Broadcast-to-Everything (B2X) use cases to provide dynamic traffic management and fast interworking with 5G networks, efficient spectrum utilization, low-latency datacasting, edge content distribution and improved battery life for smartphones, featurephones, wearables and IoT devices."

How Will IIT Bombay Contribute? 

IIT Bombay will also contribute directly to the B2X release standardization work under way as a member of ATSC, Sinclair said.

"B2X will help relieve network congestion, provide a high quality of service for concurrent and popular content, and promote sustainability. B2X further improves upon Direct-to-Mobile (D2M), extending broadcast into the IMT-2030 (6G) ecosystem," they added.

India has over 1 billion mobile subscribers, over 200 million homes with TV, high per-capita mobile data consumption and proliferation of news, sports and other TV and radio channels. 

In the long term, Sinclair says, "B2X will drive progress in emergency and disaster management, remote education and skilling, advanced agricultural techniques, augmentation of satellite positioning and timing, vehicular communications and open AI-based applications for broadcasting and datacasting." 

'Excited To Partner'

Professor Shireesh Kedare, Director of IIT Bombay, said, "We are excited to partner with Sinclair in wireless telecom transformation and promote academic excellence, joint projects, and joint intellectual property development including Make in India initiatives to drive B2X adoption in India. It touches IIT Bombay's mission to address the needs of society and country at large and develop technologies and products that improve the quality of life for both urban and rural population." 

Chris Ripley, President and CEO, Sinclair, Inc, said, "We consider the collaboration work with IIT Bombay to be of the utmost importance in establishing ATSC 3.0-based B2X as the preferred technology for broadcasting and multicasting for diverse applications, not just in India, but ultimately across the globe. Sinclair is proud to have IIT Bombay reinforce our foundational role in advancing next generation broadcast."  

Mark Aitken, Senior Vice President, Sinclair, Inc. and the guiding architect of the ATSC 3.0 standard, said "ATSC 3.0's high bandwidth efficiency, and time and frequency interleaving features make it undisputedly the best mobile broadcast standard. ATSC 3.0 also stands alone with its bootstrap "blanking" feature that facilitates the introduction of B2X release enhancements without disrupting the operation of earlier releases." 

Madeleine Noland, President of ATSC, said, "Telecom networks focus on unicast (one-to-one) communications, while B2X adds ATSC 3.0's high performance broadcast (one-to-many) distribution aligned with mobile specifications. ATSC applauds Sinclair's and IIT Bombay's participation in B2X standards and technology development, which has the potential to revolutionize data distribution efficiency across multiple networks. IIT Bombay joins other world class academic and research institutions as ATSC's newest member." 

Shashi Shekhar Vempati, former CEO Prasar Bharati, and member of the ATSC Business Advisory Council, said, "The recent decision by Brazil to adopt the ATSC 3.0 standard for broadcast services, based on extensive testing of multiple systems, paves the way for B2X to further advance the standard's broadcast resilience for the greater public good. This collaboration furthers the developmental goals of a Viksit Bharat (Developed Bharat) as envisioned by Prime Minister Narendra Modi." 



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"Wanted To Be A Militant After Torture By Army Officer," Claims J&K MLA

National Conference MLA Qaiser Jamshaid Lone on Friday said he wanted to become a militant after he was "tortured and humiliated" by an army officer during a crackdown when he was a teenager but a senior officer's action restored his faith in the system.

The senior army officer spoke to him and then reprimanded the junior officer for his conduct, Mr Lone said while participating in the Motion of Thanks to the Lieutenant Governor's address in the Jammu and Kashmir Legislative Assembly.

The incident showed how dialogue can resolve issues, the Lolab MLA said.

"There was a crackdown in my area when I was a youngster. I must have been a student of the 10th standard. There were 32 youths, including me, who were singled out for questioning," he said.

Mr Lone claimed that he was asked by an army officer about a youth who had joined terrorist ranks. "I said yes I know him because he lived in our area. I was beaten up for that. Then he asked me if the terrorist was present in the crackdown. I replied in the negative and I was beaten up again," the ruling party MLA said.

He said later a senior officer came to the spot and spoke to him.

"He asked me 'what do you want to become in life?' I told him I want to be a militant. He asked me the reason and I told him about the torture I had gone through," the NC leader said.

Mr Lone said the senior officer rebuked his junior publicly, which reinstated his "faith in the system". He said that he later learnt that out of the 32 youths who were questioned, 27 joined the militancy. 

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a syndicated feed.)



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Thursday, November 7, 2024

"Have To Presume...": Court On Order Banning Import Of 'The Satanic Verses'

The Delhi High Court has closed the proceedings on a petition challenging the Rajiv Gandhi government's decision to ban the import of Salman Rushdie's controversial novel "The Satanic Verses" in 1988, saying since authorities have failed to produce the relevant notification, it has to be presumed that it does not exist.

In an order passed on November 5, a bench headed by Justice Rekha Palli observed that the petition, which was pending since 2019, was therefore infructuous and the petitioner would be entitled to take all actions in respect of the book as available in law.

The Centre banned the import of the Booker Prize-winning author's "The Satanic Verses" for law-and-order reasons in 1988, after Muslims across the world viewed it as blasphemous.

Petitioner Sandipan Khan had argued in court that he was unable to import the book on account of a notification issued by the Central Board of Indirect Taxes and Customs on October 5, 1988, banning its import into the country in accordance with the Customs Act, but the same was neither available on any official website nor with any of the authorities concerned.

"What emerges is that none of the respondents could produce the said notification dated 05.10.1988 with which the petitioner is purportedly aggrieved and, in fact, the purported author of the said notification has also shown his helplessness in producing a copy of the said notification during the pendency of the present writ petition since its filing way back in 2019," the bench, also comprising Justice Saurabh Banerjee, observed.

"In the light of the aforesaid circumstances, we have no other option except to presume that no such notification exists, and therefore, we cannot examine the validity thereof and dispose of the writ petition as infructuous," it concluded.

Besides assailing the ban notification, the petitioner had sought a direction to set aside other related directions issued by the Ministry of Home Affairs in 1988.

The petition had also sought directions to enable him to import the book from its publisher or international e-commerce websites.

During the course of the proceedings in the court, authorities had said the notification was untraceable, and therefore, could not be produced.

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a syndicated feed.)



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