from NDTV Khabar - Latest https://ift.tt/3jbOjTA
via IFTTT
Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika
IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER
IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER
IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER
IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER
IF U WANT LATEST NEWS PLEASE FILL OUR CONTACT FORM LINK BOTTON OF THE BLOGGER
देश में नौ राज्य और चार केंद्र शासित प्रदेशों में 90% से ज्यादा कोरोना संक्रमित ठीक हो चुके हैं। वहीं, न्यूजीलैंड में प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न की लेबर पार्टी ने चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की। 24 साल बाद किसी एक पार्टी को अकेले बहुमत मिला। 120 सदस्यों वाली संसद में आर्डर्न की पार्टी को कुल 64 सीटें मिलीं। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
आज इन 3 इवेंट्स पर रहेगी नजर
1. रविवार को डबल हेडर मुकाबले। हैदराबाद और कोलकाता का मैच अबु धाबी में दोपहर 3.30 बजे से शुरू होगा। वहीं, दुबई में शाम 7.30 बजे से मुंबई और पंजाब आमने-सामने होंगे।
2. देश की पहली मोनोरेल यानी मुंबई मोनोरेल 6 महीने बाद आज से फिर शुरू होगी। हालांकि, शुरू में यह केवल चेंबूर-वडाला-जैकब सर्कल मार्ग पर चलेगी।
3. आज बैडमिंटन के डेनमार्क ओपन का फाइनल होगा। किदांबी श्रीकांत के बाहर होने के साथ टूर्नामेंट में भारतीय चुनौती खत्म हो चुकी है।
अब बात कल की 7 महत्वपूर्ण खबरों की
1. कंगना पर एक और केस दर्ज, हिंदू-मुस्लिम के नाम पर फूट डालने का आरोप
कंगना रनोट के खिलाफ अब एक और FIR दर्ज हो गई है। इस बार उन पर बॉलीवुड में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर फूट डालने के आरोप लगे हैं। पिटीशनर साहिल अशरफ अली सैयद की अर्जी पर मुंबई के बांद्रा कोर्ट ने पुलिस को कंगना के खिलाफ केस दर्ज करने के आदेश दिए थे। उनकी बहन रंगोली के खिलाफ भी केस दर्ज करने के ऑर्डर दिए गए थे।
2. मिथुन के बेटे के खिलाफ केस दर्ज, रेप और जबरन अबॉर्शन के आरोप
मिथुन चक्रवर्ती के बेटे महाअक्षय चक्रवर्ती के खिलाफ मुंबई के ओशिवारा पुलिस स्टेशन में शादी का झांसा देकर रेप करने और अबॉर्शन करवाने का केस दर्ज किया गया है। मिथुन की पत्नी योगिता बाली को भी आरोपी बनाया गया है। फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाली एक एक्ट्रेस-मॉडल ने दोनों के खिलाफ केस दर्ज करवाया है।
3. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों की रैंकिंग में भारत 94वें नंबर पर
107 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत इस साल 94वें नंबर के साथ सीरियस कैटेगरी में रहा। दुनियाभर में भूख और कुपोषण की स्थिति पर नजर रखने वाली वेबसाइट ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने शुक्रवार को यह रिपोर्ट जारी की, जो शनिवार को सामने आई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, "भारत का गरीब भूखा है, क्योंकि सरकार सिर्फ अपने कुछ खास मित्रों की जेबें भरने में लगी है।"
4. अलीबाबा के जैक मा ला रहे हैं दुनिया का सबसे बड़ा आईपीओ
दुनिया का सबसे बड़ा आईपीओ आ रहा है। जैक मा की कंपनी अलीबाबा का एफिलिएट है एंट ग्रुप और यही 35 अरब डॉलर यानी 2.56 लाख करोड़ रुपए का आईपीओ ला रहा है। यह बात इसलिए भी खास है क्योंकि पिछले पांच साल में जितने आईपीओ भारत में आए हैं, उन सभी को मिला दें तो भी यह अकेला उन पर भारी पड़ने वाला है।
5. 24 की उम्र में शुरू किया स्मार्ट टीवी का बिजनेस, आज 1200 करोड़ रु नेटवर्थ
आईआईएफएल वेल्थ और हुरुन इंडिया ने हाल ही में 40 और उससे कम उम्र वाले सेल्फ मेड अमीरों की लिस्ट जारी की। इसमें एकमात्र महिला हैं 39 साल की देविता सराफ। देविता वीयू ग्रुप की सीईओ और चेयरपर्सन हैं। उन्होंने 24 साल की उम्र में स्मार्ट टीवी का बिजनेस शुरू किया। आज जिसकी नेटवर्थ 1200 करोड़ रु है।
6. बिहार चुनाव: सब ‘ठीक-ठाक’ सीटों के लिए लड़ रहे, सरकार तो जुगाड़ से ही बनेगी
बिहार 2020...। ये अपनी तरह का पहला चुनाव है, जब हालात इतने साफ हैं और चुनाव इतना खुला हुआ कि सबकुछ साफ दिख रहा है। पहली बार है, जब ये तय है कि कौन किसके खिलाफ लड़ रहा है। लेकिन, ये तय नहीं कि कौन किसे लड़ा रहा है। मसलन, सब ‘ठीक-ठाक’ सीटों के लिए लड़ रहे हैं और सरकार तो जुगाड़ से ही बनेगी।
7. फेक न्यूज़ एक्सपोज़ : भाजपा सांसद किरण खेर ने रेप को संस्कृति का हिस्सा बताया?
उत्तरप्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश समेत देश के कई हिस्सों से रेप की दिल दहला देने वाली घटनाओं के बीच भाजपा नेता किरण खेर का बताकर एक बयान सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि किरण खेर ने कहा- बलात्कार हमारी संस्कृति का हिस्सा है, हम इसे नहीं रोक सकते। जानिए इसका सच।
अब 18 अक्टूबर का इतिहास
1922: ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की स्थापना हुई।
1998ः भारत और पाकिस्तान परमाणु हथियार के खतरे को रोकने पर सहमत हुए।
2004ः कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन मारा गया।
आखिर में जिक्र हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता ओम पुरी का। आज ही के दिन 1950 में उनका जन्म हुआ था। पढ़िए उन्हीं की एक बात...
मस्तारा बानो अगले साल 50 की हो जाएंगी। लेकिन आज भी वो अपनी उम्र 32 साल ही बताती हैं। इस उम्मीद के साथ कि शायद ऐसा करने से ही सही, उनके लिए शादी का कोई रिश्ता आ जाए।जीवन के 50 बसंत अकेले ही गुजार देने वाली मस्तारा को डर है कि अगर वे अपनी असल उम्र बताएंगी तो शादी से जुड़ी उनकी आखिरी उम्मीद भी टूट जाएगी।
अधेड़ उम्र के मुहाने पर खड़ी मस्तारा इसी तरह शादीशुदा जिंदगी में दाखिल होने के अपने सपने को जिंदा रखे हुए हैं। मस्तारा जिस पंचायत में रहती हैं वहां सैकड़ों महिलाओं का दर्द भी बिलकुल उनके जैसा ही है। पूरी जिंदगी कुंवारी रहना ही इन महिलाओं की नियति है। यह फैसला अगर इन महिलाओं ने अपनी इच्छा से लिया होता तो इसमें कुछ भी गलत नहीं था।
लेकिन, शेरशाहबादी मुस्लिम समुदाय की परंपराएं ही कुछ ऐसी हैं कि इनमें लगभग हर दस में से दो लड़कियां ताउम्र अविवाहित ही रह जाती हैं। बिहार के सुपौल जिले में नेपाल बॉर्डर से बमुश्किल दस किलोमीटर की दूरी पर कोचगामा पंचायत है। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में ज्यादातर मुस्लिम शेरशाहबादी समुदाय के ही हैं। इस पंचायत के साथ ही सीमांचल के कई दूसरे जिलों और नेपाल में भी शेरशाहबादी समुदाय के लोग रहते हैं।
कोचगामा के ही रहने वाले महबूब आलम बताते हैं, ‘शेरशाहबादी समुदाय में लड़की के परिजन न तो अपनी बेटी के लिए रिश्ता खोजते हैं और न ही किसी से ऐसा करने को कह सकते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं तो यह समझा जाता है कि लड़की में जरूर कोई दोष है जो खुद ही उसके लिए लड़का तलाश रहे हैं। तब लड़की की शादी और भी मुश्किल हो जाती है।’
वे आगे कहते हैं, ‘लड़की वाले सिर्फ रिश्ता आने का इंतजार ही कर सकते हैं। इसलिए जिन लड़कियों के लिए रिश्ता आता है उनकी तो शादी हो जाती है, लेकिन जिनके लिए नहीं आता वो ताउम्र सिर्फ रिश्ते का इंतजार ही करती रह जाती हैं।’
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अबु हिलाल बताते हैं, ‘महिलाओं के अविवाहित रह जाने की यह समस्या तब से मजबूत हुई जब से लोग दहेज के लालच में फंसना शुरू हुए। अब उन्हीं लड़कियों की शादी आसानी से होती है जो या तो खूबसूरत हों या जिनके पास दहेज देने के लिए पैसा हो।
जिन लड़कियों का कद कुछ कम है, रंग गोरा नहीं है या नैन-नक्श अच्छे नहीं हैं उनकी शादी नहीं हो पाती। कई बार ऐसा भी होता है कि दो-तीन बहनों में से लड़के वाले छोटी बहन को पसंद कर लेते हैं। ऐसे में बड़ी लड़की से पहले छोटी की शादी हो जाती है और फिर बड़ी लड़की की शादी लगातार मुश्किल होती चली जाती है।’
शेरशाहबादी समुदाय में अविवाहित महिलाओं की कुल संख्या कितनी है, इसका कोई ताजा आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन, हाल ही में आई वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र की चर्चित किताब ‘रुकतापुर’ के अनुसार, सिर्फ कोचगामा पंचायत में ही कुछ साल पहले 35 साल से ऊपर की अविवाहित महिलाओं की संख्या 140 से ज्यादा थी।
एक ही पंचायत में जब यह आंकड़ा इतना बड़ा है तो भारत और नेपाल के कई जिलों में रहने वाली इस कुल आबादी में यह संख्या निश्चित ही हजारों में होगी।
कोचगामा पंचायत के दो बार मुखिया रह चुके और साल 2010 में कांग्रेस से विधानसभा चुनाव लड़ चुके शाह जमाल उर्फ लाल मुखिया बताते हैं कि कुछ साल पहले इस समस्या को सुलझाने के लिए पूरे समुदाय ने एक बैठक बुलाई थी। करीब सात साल पहले भारत और नेपाल के अलग-अलग इलाकों में रह रहे शेरशाहबादी समुदाय के लोगों ने इस बैठक में शामिल होकर तय किया था कि अब लड़की वालों को भी रिश्ता खोजने या इसकी पहल करना शुरू कर देना चाहिए।
लाल मुखिया कहते हैं, ‘इस पहल से काफी असर हुआ। अब ऐसी लड़कियों की संख्या कम है, जिनकी शादी नहीं हो रही हो। अब तो लड़कियां खुद भी लड़के को पसंद कर लेती हैं और उनकी शादी हो जाती है।’ लाल मुखिया की इस बात से गांव के अन्य लोग सहमत नहीं होते। अबु हिलाल कहते हैं, ‘उस बैठक के बाद भी कुछ नहीं बदला है। लोग आज भी लड़की का रिश्ता लेकर नहीं जाते।’
कोचगामा पंचायत में घूमने पर यह भी साफ हो जाता है कि लड़कियों द्वारा खुद ही लड़का खोज लेने की जो बात लाल मुखिया कह रहे हैं, उस पर विश्वास करना बेहद मुश्किल है। आज भी समुदाय की लड़कियों के लिए घर से निकलने पर सौ पहरे हैं, उन्हें काम करने या मजदूरी करने की भी इजाजत नहीं है और वे पढ़ाई भी सिर्फ मदरसों में ही कर सकती है।
द हंगर प्रोजेक्ट के लिए काम करने वाली शाहीना परवीन ने इन महिलाओं की आवाज कई बार उठाई है। शाहीना परवीन मानती हैं कि इस समस्या से निकलने के लिए जो कदम उठाए जाने चाहिए, उनमें से एक अहम कदम लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाना भी है। वे कहती हैं, ‘ये लड़कियां अगर बाहर निकलेंगी, अच्छी पढ़ाई करेंगी और नौकरियां करने लगेंगी तो निश्चित ही इस समस्या से भी निकल जाएंगी।’
लेकिन, ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मुस्लिम समुदाय में ऐसा होना बहुत मुश्किल है। वहां तमाम मौलवी लड़कियों को मदरसों तक ही सीमित रखने की वकालत करते हैं और लोग उन्हीं की बात मानते हैं। बल्कि लड़कियों पर भी मौलवी के उपदेशों का ही सबसे मजबूत असर रहता है।
जो लड़कियां अविवाहित रह जाती हैं वो अपनी पैत्रिक सम्पत्ति पर भी दावा नहीं कर पाती। शिक्षित लड़कियां ही नहीं कर पाती तो अशिक्षित गांव की लड़कियों से यह उम्मीद करना भी बेमानी है। ऐसे में वो लड़कियां हमेशा अपने भाई पर बोझ समझी जाती हैं और माना जाता है कि वे भाई के रहम पर ही पल रही हैं और भाई उन्हें साथ रखकर उन पर अहसान कर रहा है।’
बिहार में जब चुनाव होने जा रहे हैं तो शेरशाहबादी समुदाय की इन हजारों अविवाहित महिलाओं का मुद्दा किसी के लिए भी चर्चा का विषय नहीं है। जिस विधानसभा क्षेत्र में इस समुदाय की बहुलता है, वहां भी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं है।
शाहीना परवीन कहती हैं, ‘इनमें से अधिकतर महिलाएं कुपोषण और एनीमिया से पीड़ित होती हैं क्योंकि बेहद मुश्किल से इन्हें दो वक्त का खाना भी नसीब होता है। रमजान में जो लोग जो दान-धर्म करते हैं उसके सहारे ही इनका पेट भरता है।
पॉलिसी के स्तर पर आज तक इनके लिए कुछ नहीं किया गया। विधवा महिलाओं को जो पेंशन मिलती है ये महिलाएं उसकी भी हकदार नहीं होती जबकि देखा जाए तो इनका पूरा जीवन विधवा महिलाओं की तरह ही अकेला और बेसहारा रहकर बीतता है।’
ये अविवाहित महिलाएं अपने हालात के लिए अपनी किस्मत के अलावा किसी और को दोषी नहीं मानती। लेकिन, वे सरकार से इतना जरूर चाहती हैं कि जब पूरे देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात हो रही है और आत्मनिर्भर भारत’ का नारा जगह-जगह गूंज रहा है तो सरकार इन्हें भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कोई पहल करे।
हम बात करते हैं औरतों की बराबरी की, लेकिन ये बराबरी कैसे मिलेगी। सिर्फ औरत की इज्जत करने से मिलेगी? बिल्कुल गलत जवाब। सिर्फ इज्जत करने से नहीं मिलेगी। औरतों को बराबरी मिलेगी, सत्ता, नौकरी और संपत्ति में बराबर की भागीदारी से। बराबर काम के लिए बराबर तनख्वाह से, बराबरी के मौके और बराबरी की जगह से।
और जैसे ही इन ठोस अधिकारों की बात करो, अधिकांश मर्दों की प्रतिक्रिया क्या होती है। उन्हें ऐसा लगता है, जैसे किसी ने उनकी गर्दन पर कुल्हाड़ी रख दी है। वो बिलबिलाने लगते हैं। पंजाब सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की घोषणा की है और अभी से इनके मुंह बिचकाने शुरू हो गए हैं।
मुंह तो इनका जरा-जरा सी बात पर बिचक जाता है। औरतों को जरा सा कुछ एक्स्ट्रा मिल जाए और फिर देखिए इनका रोना। दिल्ली में जब ऑड-इवन लागू हुआ तो दिल्ली सरकार ने अकेली और साथ में छोटा बच्चा लिए महिलाओं को इस नियम से छूट दी। मेरे दफ्तर में मर्द शिकायत करते पाए गए। औरतों का बढ़िया है। इन पर कोई नियम लागू नहीं होता।
मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन मैंने आवाज धीमी रखते हुए पांच मंजिला उस दफ्तर में ऊपर से लेकर नीचे तक काम करने वाली कम से कम 30 महिलाओं का नाम गिनाया, जो दफ्तर आने से पहले अपने छोटे बच्चे को स्कूल, क्रैच या उनकी नानी के घर छोड़कर फिर काम पर आती थीं। दफ्तर से लौटते हुए पहले बच्चे को लेतीं, फिर घर जातीं। ये सारी औरतें तलाकशुदा या सिंगल मदर नहीं थीं। लेकिन, बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी अकेले उनके ही सिर आई थी।
पूरे दफ्तर में एक भी ऐसा मर्द नहीं था, जो दफ्तर के पहले और बाद में बच्चे की जिम्मेदारी उठाता हो। ऐसे में औरतों को ये सुविधा देना कोई एहसान नहीं, बल्कि उनकी थोड़ी परवाह कर लेना थोड़ा जिम्मेदार, थोड़ा संवेदनशील होना है।
मर्दों ने तो नाक-भौं तब भी सिकोड़ी थी, जब औरतों को दिल्ली की बसों में मुफ्त यात्रा करने की सुविधा दी गई। मर्दों ने कहा- "ये मुफ्तखोर औरतें" इन्हें सबकुछ मुफ्त में चाहिए। यह अंतर्विरोध कितना मारक है कि संसार के 90 फीसदी धन, जमीन, संपदा पर अकेले कब्जा जमाए मर्द एक बस टिकट मिल जाने पर औरतों को मुफ्तखोर बुलाने लगते हैं। पता नहीं, ये महज मूर्खता है या असल में धूर्तता है।
राजनीति में औरतों के लिए आरक्षण का मुद्दा पिछले 45 सालों से लटका हुआ है। आजाद भारत के इतिहास में कोई दूसरा ऐसा बिल नहीं है, जिस पर 45 साल से मर्द नेता एकमत न हो पाए हों। 1974 में पहली बार यह सवाल उठा कि राजनीति में महिलाओं की बराबर भागीदारी को सुनिश्चित करना जरूरी है। समाज में औरतों की स्थिति तभी सुधरेगी, जब सत्ता और नीति निर्धारक पदों पर उनकी मौजूदगी होगी।
1996 में पहली बार देवगौड़ा सरकार के समय संसद में महिला आरक्षण बिल पेश हुआ, जो ज्यादातर मर्द नेताओं को नहीं सुहाया। संसद में जूतमपैजार हो गई। मजे की बात ये थी कि समाज के अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे पिछड़े वर्ग के नेता भी इस बिल के सख्त खिलाफ थे। शरद यादव ने संसद में कहा कि "इससे सिर्फ परकटी महिलाओं को फायदा होगा। उसके बाद 1998, 1999, 2002 और 2003 में दोबारा इसे संसद में पेश किया गया, लेकिन नतीजा सिफर। 2010 में मनमोहन सिंह सरकार के समय राज्य सभा से फाइनली बिल पास हो पाया, लेकिन लोकसभा में फिर भी अटका ही रहा। आज तक अटका है।
आगे भी अटका ही रहेगा, क्योंकि हम औरतों को मर्दों के बाहुबल वाली इस संसद और व्यवस्था से न्याय और बराबरी की बहुत उम्मीद है भी नहीं। जैसे डंडे के बूते जोर-जबर्दस्ती बीजेपी भी संसद में तमाम बिल पास कराती दिख रही है, औरतों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने वाले बिल को वो प्यार-मोहब्बत से भी पास करवाकर राजी नहीं है। उसे पड़ी ही नहीं है, किसी को पड़ी नहीं है।
उन्हें तनिष्क का विज्ञापन बंद करवाने की ज्यादा पड़ी है, जिसका एक बहुत सीधा और साफ संदेश ये भी है कि हर बालिग औरत को अपना जीवन साथी अपनी मर्जी से चुनने का अधिकार है, फिर चाहे वह किसी भी जाति और धर्म का क्यों न हो। उसे यह अधिकार भारत का संविधान देता है। लेकिन नहीं, इतनी मामूली सी बात इन मर्दों के दिमाग में नहीं घुसती। जो इतना बुनियादी इंसानी हक देने को तैयार नहीं, वो संपत्ति और सत्ता में औरतों को बराबरी का हक देने की वकालत कैसे करेंगे भला।
नवरात्र चल रहे हैं। घर-घर में बेटियों के चरण धोने, उन्हें पूजने का उपक्रम शुरू हो जाएगा। पूरे नौ दिन देवी दुर्गा के बहाने स्त्री शक्ति का गुणगान होगा। लेकिन, सच सब जानते हैं। लड़कियों को भी ये बात ढंग से पता है कि उनकी इज्जत तभी तक है, जब तक वो देवी हैं, मूर्तियों में विराजमान हैं, श्रद्धा स्वरूपा हैं। जैसे ही वो मूर्ति से बाहर निकलकर हाड़-मांस का इंसान हो जाती हैं, अपना हक मांगती हैं, दुनिया उन्हें नोचने-खाने पर उतारू हो जाती है।
दो मिनट में वो देवी के ओहदे से उतरकर डायन हो जाती है। फेमिनाजी कहलाती है। मर्द उनसे नफरत करते हैं, उन्हें मुफ्तखोर बुलाते हैं। उनके अधिकारों वाले बिल पर सांप की तरह कुंडली मारकर बैठ जाते हैं। लड़कियों, ये दुनिया तुम्हारे लिए नहीं है। तुम इनके झांसे में मत आना। इनके पूजा-पाठ के ढोंग को समझना। असली सवाल करना। असली हक मांगना, तब तक मत आना, जब तक ये मर्दानगी के शिखर से उतरकर इंसानियत की जमीन पर न आ जाएं, मनुष्य न बन जाएं।
बात बराबरी की ये खबरें भी आप पढ़ सकते हैं :