Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

Saturday, September 19, 2020

6 महीने पहले बिहार की राजनीति को बदलने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर अब गायब क्यों हैं?

इसी साल फरवरी में जदयू के पूर्व नेता और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। जदयू से निकलने के बाद वे पहली बार मीडिया से बात कर रहे थे। प्रशांत जिस जगह पर बैठे थे उसके पीछे महात्मा गांधी की एक फोटो लगी थी और उनका एक कथन “The best politics is right action” लिखा था।

आज छह महीने बाद लगता है कि प्रशांत किशोर अपने पीछे लिखे इसी वाक्य को समझ नहीं पाए। अगर समझ भी रहे थे, तो व्यवहार में नहीं ला पाए। उनकी राजनीति से “एक्शन” गायब हो गया है। उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर ने 'बात बिहार की' नाम से एक मुहिम की शुरुआत की थी।

तब उन्होंने कहा था, 'मैं अगले सौ दिन तक केवल बिहार की हर पंचायत, प्रखंड और गांव में जाऊंगा। बिहार की 8800 पंचायतों में से एक हजार ऐसे लोगों को चुनूंगा, उनसे जुड़ूंगा जो यह समझते हैं कि अगले दस सालों में बिहार को देश के अग्रणी राज्यों में खड़ा होना चाहिए।'

लेकिन सौ दिन तो दूर प्रशांत किशोर अगले तीस दिन भी बिहार में नहीं रुके। पटना के एग्जीबिशन रोड में दफ्तर खुला था। सौ से डेढ़ सौ लोग काम कर रहे थे। बिहार में उनकी मुहिम का असर यह हुआ कि खुद को रजिस्टर करवाने के लिए दफ्तर के बाहर सुबह से ही लंबी-लंबी लाइनें लग जाती थीं।

ये सब मार्च के आखिर तक बदल गया। दफ्तर बंद हो गया। भीड़ गायब हो गई। प्रशांत किशोर खुद पटना से बाहर चले गए। पटना में जो लोग उनके और उनकी कंपनी आइ-पैक के लिए काम कर रहे थे वे 'मिशन बंगला' में लग गए। सवाल उठता है कि एकदम से ऐसा क्यों हुआ? फरवरी में पूरे जोश के साथ एक मुहिम की लॉन्चिंग करने वाले प्रशांत किशोर एक महीने बाद ही ठंडे क्यों पड़ गए?

बिहार से अंग्रेजी अखबार द हिंदू के लिए लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी कहते हैं, 'देखिए… प्रशांत किशोर एक विशुद्ध बिजनेस मैन आदमी हैं। वे इसी तरह से सोचते हैं। यहां उन्होंने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। ऐसे में आप पटना में अपना बड़ा दफ्तर, बड़ी टीम रखकर काम नहीं कर सकते।'

'सरकार उनके खिलाफ हो गई थी। एक राजनीतिक व्यक्ति सरकार से टकरा सकता है। लोग टकराते भी रहे हैं, लेकिन जब आप व्यापार कर रहे हों तो सरकार से भिड़ना मुश्किल होता है। अगर आप भिड़ गए तो उसके बाद वहां रहकर काम करना और भी मुश्किल हो जाता है। खासकर तब जब आपके सामने नीतीश कुमार हों, जो लम्बे वक्त तक अपनी दुश्मनी निभाते हैं।'

आज जब बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा में कुछ दिन बाकी हैं। राजनीतिक पार्टियां ताल ठोक रही हैं। नए-नए समीकरण बन रहे हैं तो ऐसे में सवाल उठता है कि प्रशांत किशोर कहां हैं और क्या कर रहे हैं?

प्रशांत किशोर दो साल पहले जदयू में शामिल हुए थे। उन्हें जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था।

जानकारों का कहना है कि प्रशांत किशोर ने इस वक्त अपनी पूरी ताकत पश्चिम बंगाल में लगा रखी है। वे ममता बनर्जी को अगले चुनाव में जीत दिलवाना चाहते हैं। खबर ये भी है कि प्रशांत किशोर की पिछले दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुलाकात हुई है और उन्हें पंजाब में कोई बड़ा पद मिल सकता है।

तो क्या बिहार से बाहर प्रशांत किशोर केवल नए मौके की तलाश में घूम रहे हैं? प्रशांत किशोर पर कंटेंट चोरी का आरोप लगाकर पुलिस से शिकायत करवाने वाले कांग्रेस नेता शाश्वत गौतम को ऐसा नहीं लगता। वे कहते हैं, 'प्रशांत किशोर को कोर्ट से बेल नहीं मिली है। ऐसे में अगर वे आज बिहार जाएंगे तो उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर लेगी। वे गिरफ्तारी से बचने के लिए भाग रहे हैं।'

शाश्वत गौतम जिस पुलिस केस का जिक्र कर रहे हैं वो इसी साल 27 फरवरी को दर्ज करवाया गया था। गौतम ने आरोप लगाया था कि प्रशांत किशोर ने उनके प्लान का कंटेंट चोरी किया और उसे अपना बताकर 'बात बिहार की' नाम से लॉन्च कर दिया। शाश्वत गौतम की शिकायत पर पुलिस ने प्रशांत किशोर के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 और 406 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था। फिलहाल ये मामला अदालत में है।

तो क्या पुलिस की कार्रवाई ही वह वजह है, जिसने प्रशांत किशोर को बिहार से दूर रखा हुआ है? अमरनाथ तिवारी को ऐसा नहीं लगता है। वे कहते हैं, 'इसकी गुंजाइश थोड़ी कम लग रही है। वे नहीं आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि फिलहाल बिहार में माहौल उनके लिए सही नहीं है।'

'इसलिए वे दिल्ली में कभी-कभार बड़े-बड़े पत्रकारों को इंटरव्यू देकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहते हैं। प्रशांत किशोर को लेकर एक बात समझ लेनी चाहिए कि वे चुनाव लड़वाने का व्यापार करते हैं। ये उनका धंधा है। जो व्यक्ति धंधा करता है, वह अपने हर कदम में नफा-नुकसान देखता है।'

बिहार का एक बड़ा वर्ग प्रशांत किशोर को 'बिजनेस मैन' मानता है। राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले चुनावी पंडित तो ये भी मानते हैं कि बिहार को लेकर उन्होंने गलत आकलन किया। बिना सोचे-समझे मोर्चा खोल दिया और जब सब बिखरता हुआ तो दिखा तो निकल गए।

वजह चाहे जो भी हों, लेकिन इतना साफ है कि जब बिहार में चुनावी दंगल का मैदान तैयार हो रहा है, तो दंगल लड़ाने और जिताने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर गायब हैं। इस वजह से बिहार के चुनावी पंडित राज्य की राजनीति को लेकर उन पर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।

प्रशांत किशोर को लेकर उठ रहे सभी सवालों, उन पर लगाए गए आरोपों का जवाब देने और उनका पक्ष जानने के लिए भास्कर ने उनसे सम्पर्क करने की कोशिश की, लेकिन संभव नहीं हो पाया। इसके बाद हमने उनके वॉट्सऐप पर सवालों की एक फेहरिस्त भेजी। सवाल भेजने के चौबीस घंटे बाद तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से निकाले जाने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ‘बात बिहार की’ नाम से एक कैंपेन शुरू करने की घोषणा की थी।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3kvDZXx
via IFTTT
Share:

0 comments:

Post a Comment

Recent Posts

Blog Archive