Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

Saturday, September 5, 2020

हम हर साल विदेश से 12 हजार करोड़ रुपए के सैकेंड हैंड मेडिकल उपकरण मंगवाते हैं; 80% बाजार पर विदेशी कंपनियों का कब्जा

देश में हर साल 42 हजार करोड़ रुपए के मेडिकल उपकरण इंपोर्ट किए जाते हैं। इनमें सर्जिकल उपकरण, इम्प्लांट और दूसरी डिवाइस शामिल हैं। देश के 80% बाजार पर विदेशी कंपनियों का कब्जा है। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ कहते हैं कि कॉरपोरेट सेक्टर के अस्पताल देशी उपकरण पसंद नहीं करते। वहीं सरकारी अस्पतालों में सस्ते प्रोडक्ट्स खरीदे जाते हैं। हम जिन उपकरणों को इंपोर्ट करते हैं, उनमें 12 हजार करोड़ के उपकरण तो सैकेंड हैंड होते हैं।

एम्स के पूर्व घुटना इम्प्लांट एक्सपर्ट डॉ. सी एस यादव कहते हैं कि ज्यादातर इम्प्लांट या मेडिकल उपकरण भारत में बनने लगें तो इलाज के खर्च में 30% से 50% तक कमी आ सकती है।

इक्विपमेंट भारतीय प्रोडक्ट (रुपए) विदेशी प्रोडक्ट (रुपए)
रेडिएंट हीट वार्मर 45 हजार से 1 लाख 2 लाख से 6 लाख
फोटोथैरेपी मशीन 20 हजार से 30 हजार 85 हजार से 1.25 लाख
कृत्रिम घुटना 45 हजार से 50 हजार 1.25 लाख
एक्स-रे मशीन 50 हजार से 3 लाख 15 लाख से 1.5 करोड़
ईसीजी मशीन 25 हजार 75 हजार 45 हजार से 5 लाख

विदेशी उपकरणों की एमआरपी वास्तविक कीमत से 3-4 गुना ज्यादा होती है

1. अच्छी क्वालिटी के भारतीय उपकरण निजी अस्पतालों में सप्लाई नहीं हो पाते, क्योंकि इंपोर्टेड प्रोडक्ट की एमआरपी खरीद की कीमत से 3-4 गुना ज्यादा होती है। इससे कंपनी और अस्पताल दोनों की कमाई होती है।

2. सरकारी अस्पतालों में जब भी इम्प्लांट या किसी उपकरण के लिए टेंडर होता है तो सबसे कम कीमत वाली कंपनी को प्रमुखता दी जाती है। ऐसे में चीनी या दूसरी विदेशी कंपनियां बाजी मार जाती हैं।

3. विदेशों से सैकेंड हैंड प्रोडक्ट भी भारत आते हैं। खासकर वेंटिलेटर, अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन मशीन। ऐसी स्थिति में भारतीय कंपनियां सस्ती कीमतों को चुनौती नहीं दे पातीं।

4. विदेशों से भारत आने वाले मेडिकल उपकरणों पर मैक्सिमम 7.5% तक ही कस्टम ड्यूटी लगती है। इसलिए भी ये सस्ते मिल जाते हैं।

5. कई खरीदार अमेरिका के एफडीए अप्रूव्ड प्रोडक्ट मांगते हैं, खासकर कॉरपोरेट सेक्टर। इसकी वजह से भारतीय प्रोडक्ट बाहर हो जाते हैं।

देश में रिसर्च, मैन पावर पर खर्च बढ़ाना होगा
पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. जगदीश प्रसाद कहते हैं कि अगर उपकरण स्वदेशी हों तो कीमत 50-70% तक कम हो जाएगी। हालांकि, सरकार को रिसर्च डेवलपमेंट और मैनपावर पर बहुत खर्च करना पड़ेगा।

वहीं एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ का कहना है कि सरकार देशी मैन्युफैक्चरर की दिक्कतें दूर करते हुए पॉलिसी बनाए तो, भारत इस मामले में ग्लोबल फैक्ट्री बन सकता है और हम सस्ती डिवाइस बना सकते हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक (भारत सरकार) डॉ. जगदीश प्रसाद कहते हैं कि अगर उपकरण स्वदेशी हों तो कीमत 50-70% तक कम हो जाएगी। -फाइल फोटो


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2ZawTj2
via IFTTT
Share:

0 comments:

Post a Comment

Recent Posts

Blog Archive