रात के दस बजने को हैं। दिल्ली की सड़कों पर धीरे-धीरे घना होता कोहरा इस सर्द रात को कुछ और बेरहम बना रहा है। जो लोग पूरी रात सड़कों पर ही बिताने को मजबूर हैं, उनके लिए आग ही एक मात्र सहारा है कि वे अपने शरीर को गर्म रख सकें। सिंधु बॉर्डर पर तैनात दिल्ली पुलिस और अर्ध सैनिक बलों के सैकड़ों जवान भी यही तरीका अपना रहे हैं।
यहां जवानों की कई छोटी-छोटी टुकड़ियां अलाव के आस-पास सिमटी हुई नजर आ रही हैं। लगभग सभी के कंधों पर बंदूकें लटकी हैं जो लगातार गिरती ओस से भीगने के कारण कुछ और ज्यादा चमकने लगी हैं। पुलिस की इन टुकड़ियों के पास ही सफेद रंग की एक गाड़ी खड़ी है जिस पर ‘वरुण’ लिखा है। इस हाड़ कंपा देने वाली ठंड में वॉटर कैनन चलाने वाली इस गाड़ी की महज मौजूदगी भी बेहद क्रूर जान पड़ती है। तापमान जब शून्य तक गिर जाने से कुछ ही अंक पीछे है तब यह ख्याल ही कंपकंपी पैदा कर देता है कि ठंडे पानी की मार कोई कैसे सहन कर सकेगा।
इस गाड़ी से कुछ ही दूरी पर दिल्ली पुलिस के बैरिकेड लगे हैं जो पिछले दिनों के मुकाबले कुछ ज्यादा मजबूत कर दिए गए हैं। बैरिकेड से आगे जीटी रोड पर कई किलोमीटर तक किसानों का हुजूम है। शुरुआत में ही एक स्टेज बना हुआ है जहां से किसान नेता इस आंदोलन को चलाने के लिए किसानों को संबोधित करते हैं। स्टेज के पास ही समन्वय समिति का अस्थायी कार्यालय है जहां से लगभग सभी चीजें नियंत्रित होती हैं।
रात के ग्यारह बजने के बाद भी इस कार्यालय में काफी चहल-पहल है। इस वक्त पूरे इलाके की पहरेदारी को नियंत्रित किया जा रहा है। इसकी जिम्मेदारी संयुक्त किसान मोर्चा के कंधों पर है जिसमें सभी जत्थेबंदियों के लोग शामिल हैं। हर जत्थेबंदी से पांच-पांच स्वयंसेवक पहरेदारी का काम संभाल रहे हैं। यही लोग पूरी रात सड़क पर गश्त करते हैं और हर आने-जाने वाले पर निगाह बनाए रखते हैं।
रात बारह बजने तक पूरा इलाका लगभग सुनसान हो चुका है। सभी किसान अपने-अपने ट्रैक्टर-ट्रॉली में दाखिल हो चुके हैं, लेकिन इक्का-दुक्का लंगर अब भी चल रहे हैं जो सुनिश्चित कर रहे हैं कि यहां पहुंचा कोई व्यक्ति भूखा न सोए। दिल्ली के रोहिणी से आए व्यवसायी मोहन सिंह और उनके साथी भी पूरे इलाके का दौरा कर रहे हैं और देख रहे हैं इस ठंड में किसानों के संघर्ष को कैसे थोड़ा भी आसान बना सकते हैं।
मोहन सिंह और साथियों ने किसानों के लिए गैस से चलने वाले पचास बड़े हीटर यहां लगवाए हैं, ताकि पूरी रात जागने को मजबूर किसानों की मुश्किल कुछ कम हो सके। अपने साथियों की मदद से उन्होंने किसानों के लिए पानी गर्म करने वाले कई बॉयलर भी यहां लगवाए हैं। दिनभर लंगर चला रहे किसानों के लिए यह बॉयलर काफी राहत लेकर आए हैं क्योंकि इनसे बर्तन धोना कुछ आसान हो गया है।
रात जैसे-जैसे गहराती जाती है, सिंघु बॉर्डर पर लोगों की चहलकदमी और तापमान दोनों ही मद्धम होने लगते हैं और संयुक्त किसान मोर्चा की पहरेदारी लगातार पैनी होने लगती है। अब हर आने-जाने वाले से उनके इतनी रात में बाहर होने का कारण पूछा जाने लगता है। माहौल इस वक्त तक पूरी तरह शांत हो चुका है। पूरी रात खुलने वाले मेडिकल कैम्प और सुबह जल्दी नाश्ता करवाने वाले लंगरों के अलावा बाकी सभी लोग अब तक सो चुके हैं।
कोहरे से ढकी इस ठंड में आधी रात को मोगा से आए 19 साल के कुलदीप बल्ली को नहाते हुए देखना बेहद हैरान करता है, लेकिन इस वक्त नहाने का कारण बताते हुए कुलदीप कहते हैं कि सुबह से लंगर में सेवा करने के चलते पूरा दिन उन्हें नहाने का समय नहीं मिल पाता। दिन में सड़क पर होने वाली भारी भीड़ के चलते नहाने की जगह भी नहीं रह जाती इसलिए वे सारे काम निपटाने के बाद आधी रात को नहा रहे हैं।
बीते कई दिनों से ऐसी ही कठिन परिस्थिति झेल रहे युवा कुलदीप कहते हैं, ‘ये आंदोलन इतिहास में दर्ज हो रहा है और ये किसानों के भविष्य का फैसला करने वाला आंदोलन है लिहाजा इसके लिए इतनी मुश्किलें झेलना तो बहुत छोटी बात है। कुलदीप के जोश के आगे जो मुश्किलें बेहद मामूली जान पड़ती हैं असल में उतनी हैं नहीं। ट्रैक्टर और ट्रॉली के नीचे सड़क पर सिमट कर लेते ठंड में कांपते हुए कई किसानों के बूढ़े शरीर प्रत्यक्ष बता रहे हैं कि ये संघर्ष आसान तो बिल्कुल नहीं है।
भोर में चार बजे से पहले ही सिंघु बॉर्डर पर वाहे गुरु का पाठ शुरू होने लगता है और इसकी धुन से दिन की शुरुआत भी होने लगती है। अंधेरा छंटने से पहले ही चाय-बिस्कुट के लंगर तैयार हो जाते हैं और पूरी रात सड़क पर बिताने वालों के लिए ये चाय किसी अमृत से कम नहीं लगती। ठंड से कांपते शरीर सिर्फ चाय से ही गर्म नहीं होते, बल्कि वाहे-गुरु जी का खालसा’ जैसे नारों से भी जोशीले हो उठते हैं।
हर सुबह इस आंदोलन में शामिल होने वाले किसानों की संख्या कुछ बढ़ती है और ये प्रदर्शन कर रहे किसानों के लिए अपना हौंसला बनाए रखने की सबसे बड़ी वजह है। जुगविंदर और अमृतपाल आज ऐसी ही वजह बनकर सिंघु बॉर्डर पहुंचे हैं जो तीन दिन पहले तरण-तारण से अपनी-अपनी साइकल पर सवार होकर दिल्ली के लिए निकले थे। सिंघु बॉर्डर पहुंचने पर जब ये दोनों युवा नारा उछालते हैं, ‘अस्सी जीतेंगे जरूर, जारी जंग रखियो’ तो वहां मौजूद तमाम किसान पूरे जोश से इस नारे को समर्थन देते हुए कहते हैं, ‘हौंसले बुलंद रखियो।’
सुबह के 7 बजने तक सिंघु बॉर्डर पर चहलकदमी फिर से इतनी हो जाती है कि पैदल चलना भी मुश्किल होने लगता है। स्टेज सजने लगते हैं, लंगर शुरू हो जाते हैं, पुलिस और सुरक्षाकर्मियों की नई खेप तैनाती पर लग जाती है और किसान भी अपने संघर्ष में एक और दिन डटे रहने के लिए कमर कस लेते हैं। करीब आठ बजने तक कोहरा कुछ-कुछ छंटने लगता है और सूरज की पहली किरण हल्की-हल्की नजर आने लगती है। अमृतसर से आया एक किसान अपने साथी से पूछता है, ‘क्या लगता है? आज धूप खिलेगी या फिर से कोहरा छा जाएगा?’ उसका साथी जवाब देता है, ‘कोहरा आखिर कब तक रह सकेगा? आज नहीं तो कल धूप जरूर खिलेगी, सूरज जरूर निकेलगा।’
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