हैदराबाद में नगर निगम के चुनाव खत्म हो गए हैं। लेकिन चुनावी संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो निकाय चुनाव में पूरा जोर झोंकने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब उतनी ही ताकत महापौर की कुर्सी हासिल करने के लिए लगाना चाहती है। हैदराबाद देश के बड़े नगर निगमों में से है।
यहां का बजट 5.5 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। दूसरा- हाल ही में निगम चुनाव के दौरान भाजपा ने यहां पिछली बार से 12 गुना ज्यादा सीटें जीती हैं। पहले यहां भाजपा सिर्फ 4 वार्डों में थी। इस बार उसे 48 वार्डो में जीत मिली। तीसरी बात- भाजपा अपने लिए सूदूर दक्षिण का रास्ता तेलंगाना से निकलता देख रही है।
इसलिए भी उसने लोकसभा वाले अंदाज में पूरा जोर लगाकर हैदराबाद निगम का चुनाव लड़ा। उसकी रणनीति काफी हद तक सफल भी रही और अब वह इस निकाय में टीआरएस के बाद दूसरी बड़ी पार्टी है। यही कारण हैं कि अब भाजपा की नजर हैदराबाद के महापौर की कुर्सी पर है। चुनाव जल्द ही होने वाला है। हालांकि चुनाव की अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है।
मगर राज्य सरकार चला रही सत्ताधारी टीआरएस, भाजपा और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। अभी टीआरएस के बी राममोहन हैदराबाद के महापौर हैं। मगर वे पद पर बने रहेंगे, ये तय नहीं है। क्योंकि टीआरएस इस बार 150 सदस्यों वाले निगम में 55 सीटें ही जीत पाई है। ऐसे में उसे फिर अपना महापौर चुनवाने के लिए कोई जोड़-तोड़ करनी होगी, या किसी की मदद लेनी पड़ेगी। यही बात भाजपा पर लागू होती है।
गणित ऐसा है कि भाजपा जीत-हार दोनों से फायदे में
निगम में एआईएमआईएम के 44 पार्षद हैं। इनके बिना टीआरएस, भाजपा का महापौर नहीं बन सकता। भाजपा ने चुनाव में टीआरएस पर एआईएमआईएम से गुप्त समझौते का आरोप लगाया था। टीआरएस ने आरोप खारिज किए थे। ऐसे में टीआरएस महापौर चुनाव में एआईएमआईएम की मदद लेती है, तो भाजपा को अपने आरोप को हवा देने मौका मिलेगा। टीआरएस मदद न ले तो भाजपा अपने महापौर के लिए जोर लगा सकती है।
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