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Wednesday, November 25, 2020

मुंबई हमले के बाद बनी NIA, जिसने कश्मीर में टेरर फंडिंग रोकी; जानें इसके बारे में सबकुछ

मुंबई पर हुए अब तक के सबसे खतरनाक और भयावह आतंकी हमले को आज 12 साल पूरे हो गए। 26 नवंबर 2008 की रात से शुरू हुए हमले 29 नवंबर 2008 तक चले थे। 166 लोग मारे गए। चारों तरफ निराशा ही निराशा थी। ये वो वक्त था जब किसी के लिए न रुकने वाली मुंबई भी थम सी गई थी।

इतनी सारी निराशा होने के बाद इस हमले से जो हमें अच्छी चीज मिली, वो थी NIA यानी नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी। NIA को काम करते हुए 11 साल से भी ज्यादा का समय हो चुका है। इस दौरान उसने कई बड़े आतंकी हमलों को रोकने में कामयाबी हासिल की।

हम इसे NIA की सबसे बड़ी सफलता मान सकते हैं, जो उसने कश्मीर में टेरर फंडिंग के नेटवर्क को तोड़ दिया। इससे न सिर्फ कश्मीर में आतंकवाद कम हुआ, बल्कि पत्थरबाजी की घटनाएं भी कम हो गईं। मुंबई हमले की देन NIA कैसे बनी? इसके अधिकार क्या-क्या हैं? आइए जानते हैं...

NIA क्या है?
NIA यानी नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी। 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए हमलों के बाद 31 दिसंबर 2008 को संसद में NIA एक्ट पास किया गया। इसी एक्ट के तहत इसकी स्थापना हुई। इस एजेंसी ने 19 जनवरी 2009 से काम शुरू कर दिया।

इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

  • मुंबई हमले से पहले देश में ऐसी एजेंसी नहीं थी, जो आतंकवाद पर नजर बनाए रखे और देश में आतंकी हमलों को नाकाम कर सके। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में जब 2001 में संसद पर आतंकी हमला हुआ, तो उसके बाद 2002 में प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट (POTA) कानून बनाया गया। इस कानून के तहत पुलिस को अधिकार था कि वो किसी को भी शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थी। लेकिन 21 सितंबर 2004 को कांग्रेस की सरकार ने इस कानून को निरस्त कर दिया।
  • मुंबई पर जब हमला हुआ तो उसके बाद एक ऐसी जांच एजेंसी की जरूरत महसूस हुई, जो केंद्र सरकार के अधीन काम करे और आतंकवादी गतिविधियों पर नजर बनाकर उनको नाकाम कर सके। NIA का मकसद टेरर फंडिंग रोकना, आतंकी हमलों और उससे जुड़े लोगों की जांच करना है।

क्या NIA केवल जांच एजेंसी है?

  • नहीं। NIA में इन्वेस्टिगेशन शब्द है, इसलिए ऐसा लगता है कि ये सिर्फ जांच एजेंसी ही होगी। लेकिन ऐसा नहीं है। NIA इन्वेस्टिगेशन एजेंसी होने के साथ-साथ प्रॉसीक्यूशन एजेंसी भी है। इन्वेस्टिगेशन यानी किसी मामले की जांच करना, उसके सबूत इकट्ठे करना और प्रॉसीक्यूशन यानी मुकदमा दर्ज करना, चार्जशीट फाइल करना और सजा देना।
  • इसको लेकर बहस भी होती रही है। क्योंकि NIA इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसीक्यूशन एजेंसी दोनों है और ये केंद्र सरकार के अधीन है। इसलिए ये केंद्र सरकार के कहने पर ही जांच शुरू करेगी और जांच के बाद प्रॉसीक्यूशन में भी सरकार का दखल होगा। NIA की तरह ही CBI भी इन्वेस्टिगेशन और प्रॉसीक्यूशन एजेंसी है।

आतंकवाद रोकने के लिए NIA ने क्या किया?

  • 19 जनवरी 2009 को काम शुरू करने वाली NIA को सबसे बड़ी कामयाबी 2012 में उस वक्त मिली, जब उसने इंटरपोल और सऊदी इंटेलिजेंस की मदद से अबु हमजा उर्फ अबु जंदाल और फसीह मोहम्मद जैसे आतंकियों की गिरफ्तारी की। अबु हमजा मुंबई हमले में भी शामिल था।
  • 2013 में नेपाल सीमा से NIA ने यासीन भटकल और असदुल्लाह अख्तर उर्फ हड्डी को गिरफ्तार किया था। दोनों ने देश में कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया था।
  • जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद 30 सालों से है। टेरर फंडिंग रोकने के लिए NIA कई सालों से काम कर रही है और अभी भी कश्मीर में आए दिन छापे मार रही है। टेरर फंडिंग मामले में NIA ने 2017 में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के घर पर भी छापा मारा था। इस मामले में NIA ने हुर्रियत के कई नेताओं को गिरफ्तार भी किया था, जिसमें सैयद अली शाह गिलानी का दामाद अल्ताफ अहमद शाह भी शामिल है।

लेकिन NIA पर राजनीतिक दबाव के भी आरोप लगे

  • जांच एजेंसियों पर राजनीतिक दबाव में काम करने के आरोप अक्सर लगते रहते हैं। NIA भी इससे अछूती नहीं है। 2004 से 2008 के बीच 7 बम ब्लास्ट हुए। 2006 और 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में, 2006 में समझौता एक्सप्रेस में, 2007 में अजमेर दरगाह में, 2007 में हैदराबाद की मक्का मस्जिद में और 2008 में गुजरात के मोडासा में।
  • इन धमाकों में मेजर रमेश उपाध्याय, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, सुधाकर चतुर्वेदी, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, इंद्रेश कुमार, स्वामी असीमानंद और सुनील जोशी को आरोपी बनाया गया। ये सभी भाजपा और आरएसएस से जुड़े थे। लेकिन 2014 में मोदी सरकार आने के बाद जांच बदल ही गई।
  • अगस्त 2014 में समझौता एक्सप्रेस धमाके में असीमानंद को जमानत मिल गई। बाद में 21 मार्च 2019 को असीमानंद समेत चार आरोपियों को बरी कर दिया गया।
  • 2007 के अजमेर बम ब्लास्ट में भी 2017 में असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा और इंद्रेश कुमार को बरी कर दिया गया। मालेगांव ब्लास्ट में 2017 में साध्वी प्रज्ञा को बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। कर्नल पुरोहित को भी सुप्रीम कोर्ट से बेल मिल गई। मोडासा ब्लास्ट केस को 2015 में NIA ने सबूतों के अभाव में बंद कर दिया।

तो NIA का कनवेक्शन रेट कितना है?
एजेंसी की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, 5 फरवरी 2020 तक NIA 315 केस रजिस्टर्ड कर चुकी है। इनमें से 60 मामलों पर फैसले आए और 54 मामलों में सजा मिली। इस हिसाब से इसका कनवेक्शन रेट 90% रहा।

NIA के पास कौन से अधिकार हैं?

  • 2019 में NIA एक्ट में संशोधन हुए, जिसके बाद इसकी शक्तियां और बढ़ गईं। अब NIA के पास एटॉमिक एनर्जी एक्ट 1962 और UAPA एक्ट 1967 के तहत होने वाले अपराधों की जांच करने का अधिकार भी है।
  • इसके अलावा मानव तस्करी, जाली नोट, प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण और बिक्री, साइबर आतंकवाद और एक्सप्लोसिव सबस्टेंस एक्ट 1908 के तहत आने वाले अपराधों की जांच भी करती है।
  • NIA के अधिकारियों दूसरे पुलिस अधिकारियों के बराबर अधिकार होंगे और ये पूरे देश में लागू होंगे। NIA अब विदेशों में जाकर भी भारतीयों के खिलाफ हुए अपराधों की जांच भी कर सकती है।


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National Investigation Agency (NIA); What Is The Role Of NIA? Who Stops Kashmir Terror Funding? Know Everything About


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