बिहार के मुजफ्फरपुर में दिनदहाड़े एक डीएम को भीड़ पीट-पीटकर मार देती है। आरोपियों में दो बाहुबली नेता भी होते थे। दोनों की गिरफ्तारियां होती हैं। सजा मिलती है। बाद में हाईकोर्ट एक को बरी कर देती है।
डीएम की हत्या के 4 साल बाद एक मंत्री को गोलियों से भून दिया जाता है। इस मामले में जिन लोगों की गिरफ्तारियां होती हैं उनमें बरी हुए ये बाहुबली नेता भी होते हैं। उन्हें सजा होती है। लेकिन, इस मामले भी वो हाईकोर्ट से बरी हो जाते हैं।
हम बात कर रहे हैं, बाहुबली नेता और पूर्व विधायक विजय कुमार उर्फ मुन्ना शुक्ला की। शुक्लाजी पढ़े-लिखे भी हैं। नाम के आगे डॉक्टर लगाते हैं। उन्हें ये डिग्री जेल में रहकर ही मिली है। जेल में रहने के दौरान उन्होंने डॉ. बीआर अंबेडकर पर पीएचडी की।
पिता वकील थे, भाई की हत्या हुई तो क्राइम में आए
मुजफ्फरपुर की एक कोर्ट में वकील थे रामदास शुक्ला। इनके चार लड़के थे। सबसे बड़े थे कौशलेंद्र उर्फ छोटन शुक्ला, दूसरे नंबर पर थे अवधेश उर्फ भुटकुन शुक्ला, तीसरे नंबर पर थे विजय कुमार उर्फ मुन्ना शुक्ला और सबसे छोटे थे मारू मर्दन उर्फ ललन शुक्ला।
मुजफ्फरपुर के नामी कॉलेज लंगट सिंह कॉलेज के हॉस्टल में छात्रों के बीच जाति और इलाके में दबदबे को लेकर लड़ाई चलती थी। इसी लड़ाई से उभरे थे कौशलेंद्र उर्फ छोटन शुक्ला। छोटन दबंगई में पैर जमाने के लिए ठेकेदारी के काम में उतरे। देखते ही देखते इलाके के बड़े ठेकेदार बन गए। 1994 में उनकी हत्या कर दी गई। कहा जाता है कि इस हत्या में उस समय के मंत्री और बाहुबली विधायक बृजबिहारी प्रसाद का हाथ था।
मुन्ना शुक्ला ने अपने बड़े भाई छोटन शुक्ला की अंतिम यात्रा निकाली। जगह-जगह इस हत्या को लेकर प्रदर्शन भी हुए। उसी समय गोपालगंज के तब के डीएम जी कृष्णैया गुजर रहे थे। भीड़ ने लालबत्ती की गाड़ी देखते ही हमला कर दिया और उन्हें पहले तो पीटा और फिर गोली मार दी। डीएम की हत्या का आरोप लगा मुन्ना शुक्ला और बाहुबली आनंद मोहन पर। ये पहली बार था जब किसी क्राइम में मुन्ना शुक्ला का नाम आया था। इस मामले में मुन्ना शुक्ला को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, लेकिन 2008 में हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
भाई की मौत के बाद मुन्ना शुक्ला ने काम संभाला और ठेकेदारी करने लगे। चार साल बाद 1998 में बृजबिहारी प्रसाद राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री बन गए। इस बात को मुन्ना शुक्ला समेत कई बाहुबली सहन नहीं कर पाए।
3 जून 1998 को पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के पार्क में बृजबिहारी टहल रहे थे। तभी कुछ लोग आए और उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दीं। इस केस में नाम आया मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी, सूरजभान सिंह समेत 8 लोगों का। सभी को उम्रकैद की सजा मिली। लेकिन, 2014 में हाईकोर्ट ने इन्हें बरी कर दिया।
डीएम की हत्या में जेल हुई, तो राजनीति में उतरे
डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में मुन्ना शुक्ला को जेल हो गई। इसी दौरान उन्होंने राजनीति में आने का फैसला लिया। 2000 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने वैशाली जिले की लालगंज सीट से निर्दलीय पर्चा भर दिया। उस समय वो जेल में ही थे। पहले ही चुनाव में जेल में रहते हुए मुन्ना ने राजद के राजकुमार साह को 52,705 वोटों से हरा दिया।
इसके बाद फरवरी 2005 में वो इसी सीट से लोजपा के टिकट पर जीते और अक्टूबर 2005 में जदयू के टिकट पर। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा पाए लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। लेकिन, दबदबा बनाने के लिए मुन्ना ने अपनी पत्नी अन्नू शुक्ला को जदयू से टिकट दिलवा दिया। वो जीत भी गईं।
हत्या के मामलों में बरी होने के बाद 2015 में मुन्ना शुक्ला फिर जदयू के टिकट पर यहां से लड़े, लेकिन हार गए। इस बार लालगंज सीट भाजपा के पास चली गई। उनका टिकट कट गया, तो निर्दलीय ही खड़े हो गए।
जेल में ही बार डांसर बुलवाता था, पीएचडी भी जेल से ही की
डीएम की हत्या के मामले में मुन्ना शुक्ला जब जेल में सजा काट रहे थे, तब उनकी एक तस्वीर अखबारों में छपी थी। इस तस्वीर में उनके एक हाथ में बंदूक और दूसरे हाथ में सिगरेट थी। बगल में बार डांसर नाच रही थी। इस तस्वीर के सामने आने के बाद भी कुछ नहीं हुआ और दो-चार दिन में ही मामला ठंडा पड़ गया।
2012 में मुन्ना ने जेल से ही एक इंजीनियरिंग कॉलेज के डायरेक्टर से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी। मामला दर्ज हुआ। जेल में छापा मारा गया तो मुन्ना के पास से एक मोबाइल बरामद किया गया। इसी साल मुन्ना ने जेल में रहते हुए ही डॉ. बीआर अंबेडकर पर पीएचडी की।
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