Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

Sunday, November 8, 2020

ट्रेनिंग में बॉक्सिंग करते वक्त चोट लगी, बोर्ड आउट होना पड़ा, कई महीने डिप्रेशन में रहे, सुसाइड की कोशिश की

उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले अंकुर चतुर्वेदी का जन्म एक आर्मी फैमिली में हुआ। पिता आर्मी ऑफिसर थे। अंकुर भी आर्मी ज्वाइन करना चाहते थे। उनका एक ही सपना था नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) का एग्जाम पास कर आर्मी ऑफिसर बनना। सपना पूरा भी हुआ। पहले ही अटेंप्ट में उन्होंने NDA क्रैक किया, लेकिन किस्मत ने इस तरह करवट ली कि जिस सपने को उन्होंने बचपन से संजोया था, जिया था, उसकी दहलीज पर पहुंचकर भी वो पूरा नहीं कर सके।

ट्रेनिंग के दौरान बॉक्सिंग करते हुए चोट लगी और उन्हें बोर्ड आउट होना पड़ा। इस हादसे के बाद वो कई महीनों तक डिप्रेशन में रहे, जान देने की भी कोशिश की। आज अंकुर एक मल्टीनेशनल कंपनी में एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट हैं। जो बच्चे NDA से बोर्ड आउट होते हैं, उनके हक के लिए लड़ रहे हैं, उनकी मदद करते हैं, गाइड करते हैं।

अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए अंकुर कहते हैं कि एक दिन मैं पापा की कैप पहनकर आईने के सामने सैल्यूट कर रहा था। तभी पीछे पापा आए और एक थप्पड़ जड़ दिया। उन्होंने कहा कि ये मेरी खुद की कमाई हुई है, तुम्हें पहनने का शौक है तो खुद से कमाओ। दो तीन दिनों तक मेरी पापा से बात नहीं हुई। फिर पाप मुझे समझाने आए तो मैंने उनसे गुस्से में कहा कि आप तो चाइना वॉर के वक्त ऑफिसर बने, लेकिन मैं NDA पास कर ऑफिसर बनूंगा। उस वक्त पापा काफी खुश हुए।

1992 में अंकुर का चयन NDA में हो गया। तब उनकी उम्र 18 साल थी।

वे कहते हैं,'मेरे मन में NDA घूम रहा था। सोते-जागते में उसी के बारे में सोचता था। स्कूल से आने के बाद जवानों के साथ रहता था, उन्हीं के साथ खेलता था। तब मैं गाड़ियों के नंबर देखकर बता देता था कि कौन सी गाड़ी किस यूनिट की है, कौनसी गन किस काम के लिए होती है।

करगिल शहीदों के लिखे चुनिंदा आखिरी खत, जो शहादत के बाद उनके तिरंगे में लिपटे शव के साथ ही उनके घर पहुंचे

1987 में सड़क हादसे में अंकुर के पापा की मौत हो गई। उस वक्त वो महज 12 साल के थे। जिस दिन पिता का अंतिम संस्कार था, उसी दिन अंकुरा के मैथ्स का पेपर था। घर के लोगों ने और स्कूल के टीचर्स ने कहा कि आज स्कूल आना ठीक नहीं है, लेकिन उस दिन भी अंकुर स्कूल गए और स्कूल यूनिफॉर्म में ही पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। वे कहते हैं कि मेरे पापा कभी नहीं चाहते थे कि मैं किसी एग्जाम से भागूं। मैंने उस दिन प्रण किया कि मैं पापा से बेहतर आर्मी ऑफिसर बनकर दिखाऊंगा।

पापा की मौत के बाद रिश्तेदारों और उनके दोस्तों ने अंकुर का ख्याल रखा। हर जरूरत पूरी की, किसी चीज की कमी नहीं होने दी। इधर अंकुर की दिलचस्पी आर्मी ऑफिसर बनने को लेकर लगातार बढ़ती जा रही थी। वो दिन-रात उसी में खोए रहते थे। अंकुर ने पहली बार NDA तभी पास कर लिया था, जब वो एग्जाम के लिए एलिजिबल भी नहीं हुए थे। वो कहते हैं, 'उस समय इंटरनेट नहीं था कि प्रीवियस ईयर के सवालों को देख सकूं। इसलिए पैटर्न समझने के लिए पहले ही एग्जाम में बैठ गया। रिजल्ट आया तो मैं पास हो गया था। इससे मेरा कॉन्फिडेंस बढ़ा और जब एलिजिबिलिटी हुई तो आसानी से NDA क्रैक कर लिया। तब मेरी उम्र 18 साल थी।

ट्रेनिंग के दौरान अंकुर को रोइंग में गोल्ड मिला था। लेफ्टिनेंट जनरल एसके जेटली अंकुर को सम्मानित करते हुए।

NDA पास करने के बाद वो ट्रेनिंग के लिए चले गए। जब वो छठे टर्म में थे, तभी एक दिन बॉक्सिंग करते हुए अंकुर को चोट लग गई। उस वक्त उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उन्हें लगा हल्की चोट है ठीक हो जाएगी, लेकिन जब वो टॉयलेट गए तो यूरीन से ब्लड आने लगा। इसके बाद उन्हें पुणे के आर्मी हॉस्पिटल ले जाया गया। जहां डॉक्टर ने बताया कि उनकी किडनी डैमेज हो गई है और अब वे आर्मी के लिए फिट नहीं हैं।

इसके बाद अंकुर डिप्रेशन में चले गए। वो कहते हैं कि तब जीने की इच्छा नहीं रह गई थी, दिन-रात मरने के बारे में सोचते रहता था। हमेशा खुद को कोसते रहता था कि पापा के सपने को पूरा नहीं कर पा रहा हूं। वो मुझे माफ नहीं करेंगे। कई बार तो सोचता था कि सुसाइड कर लूं। अगर आज की तरह इंटरनेट होता तो शायद उस पर सुसाइड के तरीके ढूंढ कर खुदकुशी कर ली होती। तब मुझे ड्रग की भी लत लग गई थी।

फिर एक दिन अस्पताल में मेरे एक सीनियर मिले, जो आईएमए से बोर्ड आउट हो रहे थे। वो उस वक्त जॉब के दूसरे ऑप्शंस ढूंढ रहे थे। उन्होंने मुझे काफी समझाया और कहा कि जो हुआ भूल जाओ और आगे के बारे में सोचो। तब हमें एक ऑप्शन मिला कि टी गार्डन की नौकरी थोड़ी बहुत आर्मी से मिलती है तो क्यों न उसके लिए अप्लाई किया जाए। इसके बाद मैंने टाटा टी में अप्लाई किया और मेरा सिलेक्शन भी हो गया। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अंकुर बताते हैं कि कोलकाता में नौकरी के दौरान एक दिन एक लड़का मुझे सिम कार्ड देने आया। बातचीत के बाद पता चला कि वो ओटीए से बोर्ड आउट है। ट्रेनिंग के दैारान उसकी स्पाइनल इंजरी हो गई थी। गर्दन के नीचे का पूरा हिस्सा पैरालाइज हो गया था। कर्ज के चलते उसके पिता ने सुसाइड कर ली थी। उसकी कहानी सुनकर मैं दहल गया। तभी मैंने प्रण किया कि इनकी जंग मैं लड़ूंगा।

ट्रेनिंग के दौरान अंकुर अपने साथियों के साथ।

इसके बाद मैंने NDA कमांडेंट को पत्र लिखा। RTI फाइल की। फिर मुझे कुछ बच्चों का डेटा मिला, जो NDA से बोर्ड आउट हो चुके हैं। फिर हम तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मिले। उन्होंने पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया। इसका फायदा ये हुआ कि अब जो भी बच्चे बोर्ड आउट होते हैं, उन्हें दूसरे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने की छूट मिल जाती है।

वो कहते हैं कि अभी सिर्फ ऐसे बच्चों को एक्स ग्रेशिया मिलता है, जो कि बहुत कम अमाउंट होता है। बाकी कोई सुविधा नहीं मिलती, जो एक्स-सर्विस मैन को मिलती है। इन्हें मेडिकल ट्रीटमेंट की भी फैसिलिटी नहीं मिलती है। 2015 में इसको लेकर एक कमेटी भी बनी। जिसमें सुझाव दिया गया कि एक्स ग्रेशिया के नाम को बदल कर डिसेबिलिटी पेंशन कर दिया जाए। जिसके बाद लेटर लिखकर सर्विस हेडक्वार्टर भेजा गया। वहां से भी इसे हरी झंडी दे दी गई।

कहानी टाइगर हिल जीतने वाले की / मेरे सभी साथी शहीद हो गए थे, पाकिस्तानियों को लगा मैं भी मर चुका हूं, उन्होंने मेरे पैरों पर गोली मारी, फिर सीने पर, जेब में सिक्के रखे थे, उसने बचा लिया

फिर ये मामला जज एडवोकेट जनरल (जैग) के पास गया। जैग ने कहा कि जो भी कैडेट चोट के चलते आउट बोर्ड होते हैं, उनकी पेंशन और बेनीफिट के लिए ये माना जाए कि उसे चोट सर्विस कमीशन पहले महीने में लगी। लेकिन अभी तक इस ड्राप्ट पर साइन नहीं हुआ है। वे कहते हैं, 'हमारी मांग है कि इन्हें डिसेबिलिटी पेंशन दी जाए। जो सुविधा एक्स सर्विस मैन को मिलती है, वो इन्हें भी मिले।

अब जो भी NDA से बोर्ड आउट होते हैं, उन्हें आफिशियली अंकुर चतुर्वेदी का फोन नंबर दे दिया जाता है। वो उनसे करियर के दूसरे ऑप्शन के बारे में पूछते हैं। अंकुर उन्हें गाइड करते हैं, काउंसलिंग करते हैं और सही प्लेटफॉर्म पर पहुंचाने की कोशिश करते हैं।

उन्होंने ऐसे लोगों का एक नेटवर्क तैयार किया है। 500 के करीब बोर्ड आउट इसमें शामिल हैं। अंकुर कहते हैं कि मैं आर्मी ऑफिसर तो नहीं बन पाया, लेकिन इन जवानों की जंग जीतने में कामयाब होता हूं तो मैं समझूंगा कि पापा के सपने को पूरा कर पाया।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
अंकुर को ट्रेनिंग के दौरान बॉक्सिंग करते हुए चोट लगी और उन्हें बोर्ड आउट होना पड़ा।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3pa4FjL
via IFTTT
Share:

0 comments:

Post a Comment

Recent Posts

Blog Archive