Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

Wednesday, November 4, 2020

12 साल की उम्र में बिना बताए मुंबई भाग आए, फुटपाथ पर रहे और फिर खड़ी की 40 करोड़ की कंपनी

राजस्थान के दुर्गाराम चौधरी महज 12 साल की उम्र में घर में किसी को बिना बताए ट्रेन में बैठ गए थे। कहां जाना है, क्या करना है, कहां रहना है, ये कुछ नहीं जानते थे। बस मन में यही था कि कुछ करना है। 150 रुपए लेकर घर से निकले थे। आज दो कंपनियों के मालिक हैं, जिनका टर्नओवर 40 करोड़ रुपए से ज्यादा है। उन्होंने खुद बताई शून्य से 40 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर तक पहुंचने की कहानी।

6-7 महीने तो फुटपाथ पर ही गुजरे

मेरे मां-बाप दोनों ही किसानी करते थे। बचपन में ही सोच लिया था कि कुछ करना है। राजस्थान से अधिकतर लोग बिजनेस के लिए साउथ जाया करते थे। उन लोगों को देखकर एक दिन घर में बिना किसी को बताए मैं भी अहमदाबाद जा रही ट्रेन में बैठ गया। जेब में 150 रुपए थे। ट्रेन में ही कुछ लोग मुंबई जाने की बात कर रहे थे, उनकी बात सुनकर मैं भी मुंबई चला गया। 40 रुपए किराये में चले गए, जब मुंबई पहुंचा तब 110 रुपए पास में थे।

कभी फुटपाथ पर रहने वाले दुर्गाराम आज दो कंपनियों के मालिक हैं। जब 21 साल के थे, तब उन्हें काम का करीब 10 साल का अनुभव हो चुका था।

वो बताते हैं- मुंबई में शुरूआती 6-7 महीने फुटपाथ पर ही निकले। सीपी टैंक में एक मंदिर था, वहां जो प्रसाद बंटता था, उसी से मैं पेट भरता था। मंदिर के नजदीक आर्य समाज का हॉल था, जहां शादियां होती थीं। वहां वेटर का काम शुरू कर दिया। एक शादी में काम करने के 15 रुपए मिलते थे। कई दिनों तक ये सिलसिला चलते रहा। आर्य समाज हॉल के पास ही एक दुकानदार थे। उन्होंने मेरी छोटी उम्र देखकर मुझे एक घर में हाउस बॉय का काम दिलवा दिया। ढाई साल वहां काम किया। खाना बनाना और घर संभालना सीख गया। फिर वहीं से एक डॉक्टर के घर यही काम करने लगा।

"मन में हमेशा चलता था कि गांव में सबको पता चलेगा कि मुंबई आकर खाना बनाता हूं तो कोई इज्जत नहीं करेगा इसलिए खाना तो नहीं बनाना है। खाना बनाना छोड़कर एक इलेक्ट्रिशियन की दुकान पर काम करने लगा। मकसद था काम सीखना। लेकिन दो महीने बाद वो दुकान बंद हो गई। जिस बिल्डिंग में वो दुकान थीं, वहां उस समय वीनस कंपनी के मालिक गणेश जैन रहा करते थे। वो राजस्थान से ही थे। मैडम से थोड़ी जान-पहचान हो गई थी तो उन्होंने अपने घर पर काम पर रख लिया। फिर वहां खाना बनाने लगा। एक दिन उन्हें मैंने कहा कि सर मैं ये खाना बनाने का काम नहीं करना चाहता। मैं कुछ सीखना चाहता हूं। तो उन्होंने मुझे अपनी कंपनी में कैसेट पैकिंग का काम दे दिया और कहा कि वहां मेरे लिए खाना भी बनाना और काम भी सीखना। डेढ़ साल तक वहीं काम करते रहा। कुछ पैसे जोड़ लिए थे तो नया काम ढूंढ़ने का सोचकर 1996 में वो काम छोड़ दिया।"

मां फैक्ट्री सुपरवाइजर थीं, बेटा पर्चे बांटता, फिर खड़ी की 20 लाख टर्नओवर की कंपनी

टी-सीरीज में सीखा कैसेट का मार्केट

दुर्गाराम ने बताया- वीनस में काम करने वाली एक मैडम टी-सीरीज में काम करने लगीं थीं। उनके रेफरेंस से मुझे भी टी-सीरीज में काम मिल गया। वहां मुझे कैसेट का मार्केट पता चला। काम कैसे होता है, ये देखा। नौकरी करते हुए ही ख्याल आया कि जॉब के साथ ही मैं खुद भी मार्केट से कैसेट खरीदकर बेच बाहर बेच सकता हूं। मैंने नौकरी के बाद वाले टाइम में कैसेट बेचना शुरू कर दीं। हर रोज मार्केट जाता। 10-12 कैसेट खरीदता और उन्हें फुटपाथ किनारे बेचा करता था। ये नौकरी के साथ चल रहा था। एक कैसेट पर दस से पंद्रह रुपए तक का कमीशन मिल जाता था।

बहुत से अवॉर्ड भी उन्हें मिल चुके हैं। कहते हैं, टाइम के साथ हम अपनी स्ट्रेटजी लगातार बदल रहे हैं।

उन्होंने कहा, "इस तरह रोज के डेढ़-दो सौ रुपए सैलरी के अलावा मिलने लगे। कुछ महीने बाद एक छोटी सी दुकान भी किराये पर ले ली। फिर वहां से कैसेट बेचने लगा। घर से निकलने के 9 साल बाद 2000 में घरवालों से बात हुई और उन्हें बताया कि मैं मुंबई में हूं और नौकरी कर रहा हूं। 2002 में मैंने टी-सीरीज छोड़ दी, क्योंकि उसी समय रिलायंस कम्युनिकेशन शुरू हो रहा था। उन्हें ऐसे बंदे चाहिए थे, जो इंडस्ट्री की समझ रखते हों, प्रोड्यूसर के साथ कोआर्डिनेट कर सकें। टी-सीरीज में काम करते-करते मेरे काफी प्रोड्यूसर, एक्टर-एक्ट्रेस से रिलेशन बन गए थे। सभी के ऑफिस में जाना होता था। इसलिए मुझे रिलायंस में काम मिल गया। रिलायंस की नौकरी के साथ ही 2004 तक मेरी दो कैसेट की दुकानें हो चुकी थीं।"

"2005 में रिंगटोन और कॉलर ट्यून का ट्रेंड आया। एक गाना लाखों में डाउनलोड होता था, लेकिन सभी गाने बॉलीवुड के होते थे। मैं गुजराती, राजस्थानी, भोजपुरी गानों की कैसेट सालों से बेच रहा था और मैंने देखा कि इनकी कैसेट बॉलीवुड के गानों से भी ज्यादा बिकती हैं। दिमाग में आया कि जब बॉलीवुड के गाने इतने ज्यादा डाउनलोड हो रहे हैं तो रीजनल के कितने होंगे। जिन लोगों से कैसेट लेता था, उन्हें बोलना शुरू किया कि आप मुझे गाने दो, मैं इन्हें डिजीटल में कन्वर्ट करवाऊंगा। ये गाने फोन पर प्ले होंगे। कई दिनों तक किसी ने रिस्पॉन्स नहीं दिया।"

कंपनी को ढूंढ़ते हुए मेहसाणा तक पहुंच गए

वो बताते हैं कि 2006 में एक गुजराती गाना आया, जो काफी हिट हो रहा था। मैं उसे तैयार करने वाली कंपनी को ढूंढ़ते हुए मेहसाणा तक पहुंच गया। उन्हें समझाया कि इस गाने के राइट्स आप मुझे दो। हम इसे डिजिटल में ले जाएंगे। फायदा हो या न हो, लेकिन नुकसान कुछ नहीं होगा। वो तैयार हो गए। अब दिक्कत ये थी कि मैं नौकरी कर रहा था, इसलिए उनसे एग्रीमेंट नहीं कर सकता था। मैंने हंगामा कंपनी में बात की। वहां मेरे कुछ दोस्त थे। उनके जरिए गुजरात की कंपनी से एग्रीमेंट किया। वो लोग भी रीजनल गाना अपलोड करने के लिए तैयार नहीं थे, मेरी काफी रिक्वेस्ट के बाद माने। डेढ़ साल में ही उस गाने को 3 लाख 75 हजार बार डाउनलोड किया गया। इस डील में मैंने 20 लाख रुपए रॉयल्टी कमाई। 20 लाख रुपए गुजरात की कंपनी को दिलवाए और 30 परसेंट कमीशन हंगामा कंपनी को मिला।"

दुर्गाराम की कंपनी में आज 65 लोग काम करते हैं। 2012 में उन्होंने खुद की कंपनी शुरू की थी।

दुर्गाराम कहते हैं- बस इसके बाद हंगामा ने मेरा सारा कंटेंट अपलोड करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद उन्होंने मुझे नौकरी भी ऑफर कर दी। मैंने कहा कि नौकरी इसी शर्त पर करूंगा कि राजस्थान, गुजरात का जो मेरा काम है, वो मेरे पास ही रहेगा। वो मान गए। जो भी गाना हिट होता था, मैं उस कंपनी तक पहुंचता था। उससे बात करके गाने को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाता था। ये सब करते-करते 2012 आ गया। यूट्यूब का जमाना आ चुका था। हंगामा वाले यूट्यूब पर जाने के लिए बहुत उत्साहित नहीं थे तो मैंने नौकरी छोड़ दी और खुद की कंपनी शुरू की।

"फिर जीरो से शुरूआत करना पड़ी, क्योंकि रीजनल के मेरे जितने भी पार्टनर थे, उन सभी को हंगामा के साथ जोड़ चुका था। फिर उन कंपनी के मालिकों से मिला। उन्हें समझाया कि मैंने अपनी कंपनी शुरू की है। आप अपना कंटेंट दीजिए, हम यूट्यूब पर लाएंगे। सभी ने मुझे सपोर्ट किया। रीजनल कंटेंट तेजी से हम यूट्यूब पर लाए। राजस्थान की कई छोटी कंपनियों को हमने एक्वायर कर लिया। कोलकाता, असम, उड़ीसा भी पहुंचे। वहां के रीजनल गानों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाए। 2017 में एनिमेशन फर्म भी इस काम के साथ शुरू कर दी। आज मेरे पास 65 एम्पलाई हैं और दोनों कंपनियों का मिलाकर टर्नओवर 40 करोड़ से ज्यादा है।"

ये भी पढ़ें

एयरपोर्ट पर सफाई करने वाले आमिर कुतुब ने कैसे बनाई 10 करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनी

तीन दोस्तों ने लाखों की नौकरी छोड़ जीरो इन्वेस्टमेंट से शुरू की ट्रेकिंग कंपनी, एक करोड़ टर्नओवर

मुंबई में गार्ड को देख तय किया, गांव लौट खेती करूंगा; अब सालाना टर्नओवर 25 लाख रुपए



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
दुर्गाराम के माता-पिता किसानी करते थे, लेकिन दुर्गाराम ने सोच रखा था कि कुछ करना है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2I1T1GG
via IFTTT
Share:

0 comments:

Post a Comment

Recent Posts

Blog Archive