नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान करने वाली हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद है क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिये इनके चारों ओर सूर्य जैसा अलौकिक तेजोमय मंडल दिखाई देता है। स्कंदमाता की उपासना से भगवान स्कंद के बाल रूप की भी पूजा होती है।
स्वरूप
मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं। इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है। निचली दाएं भुजा के हाथ में कमल का फूल है। बायीं ओर की ऊपरी भुजा में वरद मुद्रा है और नीचे दूसरे हाथ में सफेद कमल का फूल है। सिंह इनका वाहन है।
महत्त्व
नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा विशेष फलदायी होती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति और सुख का अनुभव कराती है। मां की कृपा से बुद्धि में वृद्धि होती और ज्ञान रूपी आशीर्वाद मिलता है। सभी तरह की व्याधियों का भी अंत हो जाता है।
- डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स से जुड़ी डॉ. शोभा इराक, हैती, लाओस, नाइजीरिया में रही थीं तैनात
- इराक में आत्मघाती विस्फोट के बाद भी अपनी चिंता किए बिना पहुंच गई थीं अस्पताल
विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को तो पूरा देश जानता है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि अभिनंदन ने अपने पिता एयर मार्शल सिम्हकुट्टी वर्धमान से ही बहादुरी सीखी होगी, मगर यह अधूरा सच है। दरअसल, अभिनंदन की मां डॉ. शोभा वर्धमान खुद में साहस की एक मिसाल हैं।
पेशे से वह डॉक्टर हैं। इराक, हैती और लाओस जैसे युद्ध क्षेत्रों में वह सैकड़ों सैनिकों और आम लोगों की जान बचा चुकी हैं। दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की तरह ज्यादातर लोग भले ही उन्हें अपने बेटे विंग कमांडर अभिनंदन के चलते जानने लगे हों, मगर उनकी अपनी उपलब्धियां भी किसी योद्धा से कम नहीं।
मद्रास मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन और इंग्लैंड के रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स से एनस्थीसियोलॉजी (बेहोश करने का चिकित्सा शास्त्र) में पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाली डॉ. शोभा अंतरराष्ट्रीय एनजीओ एमएसएफ-डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स में वॉलेंटियर रही हैं।
उन्होंने 2005 में युद्धग्रस्त आइवरी कोस्ट में एमएसएफ के साथ पहली बार काम किया। इसके बाद लाइबेरिया, नाइजीरिया और ईरान-इराक सीमा पर युद्धग्रस्त इलाकों में हजारों लोगों का इलाज किया। इस दौरान वह भयानक मानवीय त्रासदी की गवाह बनीं।
उन्होंने पापुआ न्यू गिनी में ऐसी महिलाओं का इलाज किया, जिनके साथ कई बार रेप हुआ और वे एचआईवी की शिकार हो गईं। उन्हें कभी कोई इलाज नहीं मिला। डॉ. शोभा इस छोटे से देश में ऐसे आदिवासियों से मिलीं जो आज भी घास से बनी स्कर्ट पहनते हैं। चमड़े की म्यान में तलवार रखते हैं। जो जानवरों, जमीन और महिलाओं के लिए फौरन ही किसी की हत्या करने पर उतारू हो जाते हैं।
दूसरे खाड़ी युद्ध के दौरान इराक में हुए एक आत्मघाती हमले में डॉ. शोभा बाल-बाल बचीं। डॉ. शोभा बच्चों से यौन शोषण करने वालों की सजा बढ़ाने के लिए ऑनलाइन कैंपेन भी चला चुकी हैं।
अभिनंदन को पाक सेना ने पकड़ लिया तो भी डॉ. शोभा ने नहीं खोया आपा
कई दशकों से वर्धमान परिवार को जानने वाले और उनको लेकर कई आर्टिकल लिख चुके वायुसेना के रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन तरुण के सिंघा कहते हैं, "पाकिस्तानी सेना की हिरासत में अभिनंदन जिस तरह शांत और बेखौफ नजर आ रहे थे, यह उन्हें अपनी मां डॉ. शोभा से विरासत में मिला है।
कई युद्ध क्षेत्रों में भीषण हिंसा के बीच काम करने वाली डॉ. शोभा ऐसी ही शांत चित्त से लोगों का इलाज करती थीं। दूसरे खाड़ी युद्ध के दौरान इराक में तैनात वह अकेली एनेस्थिसियोलॉजिस्ट थीं। एक दिन वहां भीषण आत्मघाती विस्फोट हुआ। सभी डॉक्टरों वॉलेन्टियर्स को अंदर ही रहने को कहा गया, लेकिन घायलों के इलाज के लिए उन्होंने यह सलाह नहीं मानी और अस्पताल पहुंच गईं।"
तरुण ने एक आर्टिकल में लिखा, "उस रात मैंने सहानुभूति जाहिर करने के लिए विंग कमांडर अभिनंदन की मां को एक मेल लिखी। मुझे लगा कि ऐसे तनाव भरे माहौल में मेल का जवाब नहीं आएगा। मगर डॉ. शोभा ने 15 मिनट के भीतर ही बेहद शांत अंदाज में जवाब दिया। यह उनकी शख्सियत, मानसिक शक्ति को दर्शाता है।"
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