Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

Tuesday, October 20, 2020

सरकार के दावों की खुली पोल; एमएसपी कागज पर थी, कागज पर ही है और वहीं रहेगी

इसे कहते हैं सिर मुड़ाते ही ओले पड़े। पिछले महीनेभर से तीन कृषि कानूनों के पक्ष में सरकार के पास एक ही दलील थी: तीन कानूनों की चिंता मत करो, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) सुरक्षित रहेगा। कुछ दरबारी पत्रकार पूछते थे: ‘अरे भाई प्रधानमंत्री ने आश्वासन दे दिया है, अब आप उनकी बात पर भी भरोसा नहीं करते।’

इसी बीच खरीफ की फसल कटकर मंडी में आ रही थी। फसल के दाम के आंकड़े स्थानीय अखबारों व सरकार की वेबसाइट पर छप रहे थे। राष्ट्रीय मीडिया इनसे बेखबर था। पिछले सप्ताह में मीडिया ने कुछ सुध ली तो सरकारी दावों की पोल खुल गई।

‘द हिंदू’ अखबार ने देश की 600 प्रमुख मंडियों में पिछले एक महीने (14 सितंबर से 14 अक्टूबर) में 10 प्रमुख फसलों के भाव के आंकड़े इकट्ठे किए। गौरतलब है कि इस आंकड़े का स्रोत सरकार की अपनी वेबसाइट एग्रीमार्क नेट है। इन 1,80,000 आंकड़ों के विश्लेषण से पता लगा कि पिछले महीने में 32% सौदों में किसान को सरकारी एमएसपी या उसके ऊपर भाव मिल पाया।

यानी जिसे सरकार खुद किसान का न्यूनतम भाव मानती है, वह केवल एक तिहाई किसानों को ही मिल पाया। सबसे बुरी हालत बाजरा व सोयाबीन की है जहां 5% किसानों को भी एमएसपी नहीं मिल पाया। मूंगफली, मक्का, रागी में भी एक चौथाई से कम किसानों को न्यूनतम दाम मिल पाया।

बाजार के प्रकोप से फिलहाल मूंग, उड़द, तूर और तिल जैसी दलहन व तिलहन बचे हैं। इनका दाम अभी एमएसपी से ऊपर है। यह मौसम धान खरीद का है। सरकारी खरीद के बड़बोले दावों के बावजूद 30% से भी कम धान एमएसपी या इसके ऊपर बिक पाया है।

गौरतलब है कि सरकार ने धान की सामान्य किस्म यानी परमल ही खरीदी है। वह बासमती धान की कोई एमएसपी तय नहीं करती क्योंकि वह बाजार में बहुत ऊंचे दाम पर बिकता है। इस साल स्थिति यह है कि बासमती की 1509 नामक किस्म सामान्य धान के लिए तय न्यूनतम सरकारी मूल्य ₹1868 से भी नीचे बिक रहा है।

वास्तविक स्थिति इन आंकड़ों से भी बदतर है। ये आंकड़े सरकारी मंडी में दर्ज सौदों पर आधारित है। वास्तव में बहुत से किसान तो मंडी पहुंच ही नहीं पाते। और मंडी में होने वाले कई सौदे औपचारिक रिकॉर्ड में लिखे नहीं जाते। मंडी के बाहर और बिना दर्ज किए अनौपचारिक सौदे एमएसपी से कहीं नीचे होते हैं।

अगर इन्हें भी जोड़ लिया जाए तो एमएसपी या इसके ऊपर हाने वाले सौदे 20% भी नहीं होंगे। जहां सरकारी एमएसपी पर खरीद हो रही है उसकी स्थिति का अनुमान मुझे पिछले हफ्ते हरियाणा की मंडियों की यात्रा के दौरान हुआ। दक्षिणी और पश्चिमी हरियाणा के 7 जिलों (नूह, गुरुग्राम, रेवाड़ी महेंद्रगढ़ दादरी भिवानी और हिसार) की मंडियों से यह साफ हो गया कि दाना-दाना खरीदने के सरकारी दावे बस जुमले हैं।

सच यह है कि किसान की सारी फसल एमएसपी पर खरीदने की सरकार की ना तो नीति है, न नीयत। इन इलाकों की मुख्य फसल बाजरा है। सरकार ने 1 अक्टूबर से 15 नवंबर तक 45 दिन का समय सरकारी खरीद के लिए तय किया है। एक तिहाई से अधिक समय बीतने के बावजूद इन मंडियों में सिर्फ 5-10% किसानों की फसल खरीदी गई थी।

सरकारी नीति ही ऐसी है कि किसान की सारी फसल खरीदनी ना पड़े। बाजरे की कटाई सितंबर के महीने में हो जाती है लेकिन सरकारी खरीद 1 अक्टूबर से शुरू होती है। सिर्फ उन्हीं किसानों की फसल खरीदी जाएगी जिन्होंने सरकारी पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा रखा है।

इस इलाके में अच्छा किसान प्रति एकड़ 10-12 क्विंटल बाजरा पैदा कर लेता है, लेकिन सरकार ने 8 क्विंटल/एकड़ की सीमा बांध रखी है। इस पर यह नियम भी है कि चाहे जितनी भी जमीन या पैदावार हो, एक दिन में 40 क्विंटल से ज्यादा खरीद नहीं होगी। कपास किसान की स्थिति और बुरी है, क्योंकि इन सात जिलों में सिर्फ दो कपास खरीद केंद्र हैं, जिसमें एक ही काम करता है।

नीति की खामियों के ऊपर नीयत का दोष भी किसान की स्थिति दूभर बनाता है। कोरोना की आड़ में हर मंडी में रोज सिर्फ 100 किसानों को फसल बेचने बुला रहे हैं। जबकि रजिस्ट्रेशन देखते हुए कम से कम 400-500 को बुलाना चाहिए। कुछ किसान सॉफ्टवेयर की गलतियों का शिकार होते हैं, तो कुछ पटवारी द्वारा वेरिफिकेशन में की गई शरारत की चपेट में आ जाते हैं।

सुनवाई करने की ना व्यवस्था है, न इच्छा। किसान की फसल खरीद नहीं होती, लेकिन इधर-उधर के राज्यों से मंगाकर व्यापारी किसान के नाम पर खरीद करवा देते हैं। हरियाणा और पंजाब में तो फिर भी सरकार की तरफ से कुछ खरीद हो रही है। देश के बाकी राज्यों में स्थिति बदतर है। धान की छिटपुट खरीद के अलावा किसी फसल की सरकारी खरीद नहीं हो रही। अधिकांश इलाकों में एमएसपी किस चिड़िया का नाम है, यही किसान को पता नहीं है।

इसलिए अगर आपको टीवी चैनल पर भाजपा के प्रवक्ता ताल ठोक कर कहते हुए मिलें कि ‘एमएसपी थी, है और रहेगी’, तो उसका अर्थ समझ जाइए: एमएसपी जैसी थी, वैसी ही है और ऐसी ही रहेगी। कागज पर थी, कागज पर ही है और कागज पर ही रहेगी। जैसा हरियाणा में बिगड़ैल गाड़ी के पीछे लिखा होता है: ‘या तो न्यूं ही चालेगी’।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
योगेन्द्र यादव, सेफोलॉजिस्ट और अध्यक्ष, स्वराज इंडिय


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HaeLA8
via IFTTT
Share:

0 comments:

Post a Comment

Recent Posts

Blog Archive