ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक पेरन रॉस डेंगू पर रिसर्च कर रहे हैं। पेरन डेंगू बुखार के खिलाफ रिसर्च के लिए रोजाना करीब 5,000 मच्छरों को अपने हाथ पर कटवाते हैं। पेरन के मुताबिक, इंसानों को काटने और बीमारी फैलाने का काम मादा मच्छर करते हैं। इन्हीं को कंट्रोल करके डेंगू जैसी बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।
डेंगू को रोकने की ऐसी है तैयारी
पेरन ने मच्छरों के अंडों में वोल्बाचिया बैक्टीरिया इंजेक्ट किया। वह बताते हैं, जब बैक्टीरिया से संक्रमित अंडों से निकलकर ये मादा मच्छरों के रूप में विकसित होते हैं तो डेंगू फैलाने में सक्षम नहीं होते। डेंगू का वायरस इन मच्छरों में अपनी संख्या नहीं बढ़ा पाता। इसलिए इन मच्छरों के काटने पर डेंगू नहीं फैलता है।
प्रयोगशाला में प्रजनन कराते हैं
पेरन कहते हैं, बैक्टीरिया से संक्रमित इन एडीज़ एजिप्टी मादा मच्छरों को लैब में प्रजनन कराया जाता है। इनकी संख्या बढ़ाई जाती है। जब ये पूरी तरह विकसित हो जाते हैं, तब इन्हीं मच्छरों से खुद को कटवाते हैं। इससे यह पता चल पाता है कि ये डेंगू को रोकने में सक्षम हैं या नहीं।
एक बार में 250 मादा मच्छर खून पीती हैं
पेरन के मुताबिक, वह एक बार में 250 मादा मच्छरों को खून पिलाते हैं। फीडिंग कराने के बाद ये इन्हें दूसरे समूह में ट्रांसफर कर देते हैं। एक से दो घंटे में करीब हजारों मच्छर हाथों पर बैठने से यह हल्की गर्म हो जाती है।
इंडोनेशिया में भी इस साल हुआ ऐसा प्रयोग
इंडोनेशिया में डेंगू के मामलों को घटाने के लिए यही प्रयोग किया गया। मच्छरों में खास तरह बैक्टीरिया को इंजेक्ट किया गया जो डेंगू के वायरस को फैलने से रोकता है। इन मच्छरों को खुले में छोड़ दिया गया है। रिसर्च में सामने आया कि डेंगू के मामलों में 77 फीसदी कमी आई।
डेंगू का वायरस संक्रमण के बाद बुखार और शरीर में दर्द की वजह बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेंगू का वायरस हर साल 40 करोड़ लोगों को संक्रमित करता है और 25 हजार लोगों की इससे मौत हो जाती है।
50 सालों में 30 गुना बढ़े डेंगू के मामले
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, पिछले 50 सालों में डेंगू के मामले 30 गुना तक बढ़े हैं। इसे कंट्रोल करने के लिए वोल्बाचिया बैक्टीरिया को पहली बार मच्छरों में इंजेक्ट करके ऑस्ट्रेलिया में छोड़ा गया था। पहला प्रयोग 2018 में हुआ था। लेकिन सामान्य क्षेत्र और जहां ये मच्छर छोड़े गए उनके बीच तुलना नहीं की गई थी, इसलिए प्रयोग से जुड़े सटीक आंकड़े सामने नहीं आ पाए थे।
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