Google news, BBC News, NavBharat Times, Economic Times, IBN Khabar, AAJ Tak News, Zee News, ABP News, Jagran, Nai Dunia, Amar Ujala, Business Standard, Patrika, Webdunia, Punjab Kesari, Khas Khabar, Hindustan, One India, Jansatta, Ranchi Express, Raj Express, India News, Mahanagar Times, Nava Bharat, Deshdoot, Bhopal Samachar, Bharat Khabar, Daily News Activist, Daily News, Jansandesh Times, Dastak News, Janadesh, Times, Dekho Bhopal, Apka Akhbar, Fast News, Appkikhabar, Rajasthan Patrika

Friday, October 2, 2020

भारत में कोरोना से पहली मौत के 204 दिन बाद आंकड़ा 1 लाख पार, ब्राजील में इतनी मौतें 158 दिनों में हुई थीं, अमेरिका में 83 दिनों में

कोरोना के चलते 2 अक्टूबर को भारत में मौतों का आंकड़ा 1 लाख को पार कर गया। अमेरिका और ब्राजील के बाद अब भारत कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है। भारत में कोरोना से होने वाली पहली मौत के 204 दिनों के बाद यह संख्या 1 लाख मौतों तक पहुंची है। वहीं, ब्राजील में यह आंकड़ा 158 दिनों में ही पहुंच चुका था, जब​कि अमेरिका में शुरुआती 1 लाख मौतें 83 दिनों में हुई थीं।

भारत में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी को, पहली मौत 12 मार्च को

भारत में कोरोनावायरस का पहला केस 30 जनवरी को केरल में सामने आया था। चीन के वुहान से लौटे एक छात्र में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए थे। जबकि भारत में कोरोना वायरस से पहली मौत 12 मार्च को कर्नाटक के कलबुर्गी में 76 साल के एक शख्स की हुई थी जो सऊदी अरब से लौटा था। जब भारत में कोरोना से पहली मौत हुई उस वक्त देश में महज 75 केस सामने आए थे।

अब जब भारत में मौतों का आंकड़ा एक लाख पार हो चुका है और भारत में कुल केसों की संख्या 64 लाख से ज्यादा है। वहीं वर्तमान में देश में कोरोना से होने वाली मौतों का औसत डेथ रेट 2 प्रतिशत है। भारत में कोरोना से पहली मौत 12 मार्च को हुई। इसके 48 दिनों बाद इन मौतों का आंकड़ा 1000 पहुंच गया।

वहीं अगले 78 दिनों में मौतों की यह संख्या 10 गुना बढ़कर 10 हजार पहुंच गई। फिर अगले 31 दिनों में मौतों का आंकड़ा 50 हजार के पार पहुंच गया। अगले 48 दिनों में यह आंकड़ा 1 लाख मौतों तक पहुंच चुका है।

कोरोना से होने वाली मौतों में अमेरिका सबसे आगे, भारत तीसरे नंबर पर

दुनिया में अब तक कोरोना से 3 करोड़ 46 लाख से ज्यादा केस हो चुके हैं और 10 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। कोरोना से होने वाली मौतों का औसत डेथ रेट 4% है। कोरोना से होने वाली सबसे ज्यादा मौतों वाले टॉप- 10 देशों की सूची में अमेरिका, ब्राजील और भारत के अलावा मेक्सिको, यूके, इटली, पेरू, फ्रांस, स्पेन और ईरान जैसे देश शामिल हैं।

अमेरिका में अब तक 2.12 लाख मौतें

अमेरिका में कोराेनावायरस के चलते 2.12 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। यहां कोरोना का पहला मामला 15 फरवरी को आया था और 29 फरवरी को इस वायरस से पहली मौत हुई थी। वहीं मौतों के मामले में दूसरे नंबर आने वाले देश ब्राजील में अब तक 1.44 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। यहां पहला मामला 25 फरवरी का आया और पहली मौत 17 मार्च को हुई।

इटली में शुरुआती दो महीनाें में हुईं 24 हजार से ज्यादा मौतें

इटली में शुरुआती दिनों में मौतों का आंकड़ा काफी तेजी से बढ़ा था। यहां पहली मौत 21 फरवरी को हुई और इसके एक महीने के अंदर ही 4,841 मौतें हो गईं। वहीं 60 दिनों में यह आंकड़ा 24,710 मौतों तक पहुंच चुका था। मई के बाद यहां मौतों की संख्या में कमी आना शुरू हुई। पहले केस के 242 दिन बाद और पहली मौत के 224 दिनों के बाद यहां अब 35,941 मौतें हो चुकी हैं। फिलहाल काेरोना से होने वाली मौतों के मामले में इटली छठवें स्थान पर है।

फ्रांस में सबसे ज्यादा डेथ रेट, भारत में सबसे कम

कोरोना से होने वाली मौतों में शामिल टॉप-10 देशों में फ्रांस ऐसा देश है, जहां डेथ रेट 25 प्रतिशत है। यहां कोरोना का पहला केस मिलने के 251 दिनों में 31 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। डेथ रेट के मामले में लिस्ट में दूसरे नंबर पर इटली और तीसरे नंबर पर मेक्सिको है। टॉप-10 देशों में सबसे कम डेथ रेट भारत का है, यहां 2 प्रतिशत डेथ रेट है।

जनसंख्या के लिहाज से डेथ रेट के मामलों में पेरू सबसे आगे

जनसंख्या के लिहाज से डेथ रेट के मामलों में टॉप-10 देशों में पेरू सबसे आगे है। यहां हर दस लाख लोगों में से 983 लोगों की मौतें हो रही हैं। वहीं भारत में हर दस लाख लोगों में से 73 मौतें हो रही हैं।

मौतों और संक्रमण को लेकर 6 फैक्ट्स

  • 1. अमेरिका की रिसर्च - अंग्रेजी नहीं बोलने वाले अमेरिकन को कोरोना का खतरा ज्यादा

कोरोना संक्रमण के बीच अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कोरोना और भाषा के बीच भी कनेक्शन ढूंढ निकाला है। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन ने अपनी रिसर्च में दावा किया है कि जो अमेरिकन अंग्रेजी नहीं बोलते उन्हें कोरोना होने का खतरा ज्यादा है। अमेरिका के ऐसे लोग जिनकी पहली भाषा स्पेनिश या कम्बोडियन है, उनमें कोरोना का संक्रमण होने का खतरा 5 गुना ज्यादा है। रिसर्च के लिए 300 मोबाइल क्लीनिक और 3 हॉस्पिटल्स में आए कोरोना मरीजों की जांच के आंकड़े जुटाए गए थे।

  • 2. ब्रिटेन की रिसर्च - यहां अश्वेत-अल्पसंख्यक ज्यादा संक्रमित हुए

नेशनल हेल्थ सर्विसेज के अस्पतालों के मई के आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटेन में कोरोनावायरस का संक्रमण और इससे मौतों का सबसे ज्यादा खतरा अश्वेत, एशियाई और अल्पसंख्यकों को है। अस्पतालों से जारी आंकड़ों के मुताबिक, गोरों के मुकाबले अश्वेतों में संक्रमण के बाद मौत का आंकड़ा दोगुना है। अश्वेत, एशियाई और अल्पसंख्यकों को यहां बेम (BAME) कहते हैं जिसका मतलब है- ब्लैक, एशियन एंड माइनॉरिटी एथनिक।

'द टाइम्स' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एनएचएस के अस्पतालों ने जो आंकड़ा जारी किया है उसके मुताबिक, 1 हजार लोगों पर 23 ब्रिटिश, 27 एशियन और 43 अश्वेत लोगों की मौत हुई। एक हजार लोगों में 69 मौतों के साथ सबसे ज्यादा खतरा कैरेबियाई लोगों को था, वहीं सबसे कम खतरा बांग्लादेशियों (22) को था।

  • 3. स्पेन की रिसर्च - जिंक की कमी से जूझने वाले को मौत का खतरा दो गुना

स्पेन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि ऐसे लोग जो जिंक की कमी से जूझ रहे हैं उन्हें कोरोना का संक्रमण होता है तो मौत का खतरा दो गुना से अधिक है। कोरोना के जिन मरीजों में जिंक की कमी होती है, उनमें सूजन के मामले बढ़ते हैं। यह मौत का खतरा बढ़ाता है।

बार्सिलोना के टर्शियरी यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के रिसर्चर ने 15 मार्च से 30 अप्रैल 2020 तक कोरोना के मरीजों पर रिसर्च की। रिसर्च में कोरोना के ऐसे मरीजों को शामिल किया गया है जिनकी हालत बेहद नाजुक थी। उनकी सेहत, लोकेशन से जुड़े आंकड़ों, पहले से हुई बीमारियों को रिकॉर्ड किया गया।

  • 4. चीन की रिसर्च - चश्मा न लगाने वालों में संक्रमण का खतरा

मेडिकल जर्नल ऑफ वायरोलॉजी में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, कोरोना वायरस आंखों के जरिए भी शरीर में पहुंच सकता है। रिसर्च करने वाले चीन की शुझाउ झेंगडू हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं का कहना है, जो लोग दिन में 8 घंटे से अधिक चश्मा लगाते हैं उनमें कोरोना का संक्रमण होने का खतरा कम है।

रिसर्चर्स का कहना है, हवा में मौजूद कोरोना के कण सबसे ज्यादा नाक के जरिए शरीर में पहुंचते हैं। नाक और आंख में एक ही तरह की मेम्ब्रेन लाइनिंग होती है। अगर कोरोना दोनों में किसी भी हिस्से की म्यूकस मेम्ब्रेन तक पहुंचता है तो यह आसानी से संक्रमित कर सकता है। इसलिए आंखों में कोरोना का संक्रमण होने पर मरीजों में कंजेक्टिवाइटिस जैसे लक्षण दिखते हैं।

वहीं अगर आप चश्मा पहनते हैं तो यह बैरियर की तरह काम करता है और संक्रमित ड्रॉपलेंट्स को आंखों में पहुंचने से रोकता है। इसलिए ऐसे चश्मे लगाना ज्यादा बेहतर है जो चारों तरफ से आंखों को सुरक्षा देते हैं।

  • 5. ऑस्ट्रेलिया की रिसर्च - O+ ब्लड ग्रुप वालों को कम होता है संक्रमण

ऑस्ट्रेलिया में करीब 10 लाख लोगों के डीएनए पर हुई एक रिसर्च में पाया गया कि O+ ब्लड ग्रुप वालों पर वायरस का असर कम होता है। इससे पहले हार्वर्ड से भी रिपोर्ट आयी थी, लेकिन उसमें कहा गया था कि O+ वाले लोग कोरोना पॉजिटिव कम हैं, लेकिन सीवियरिटी और डेथ रेट में बाकियों की तुलना में कोई फर्क नहीं है।

  • 6. सीडीसी के निदेशक का दावा : वैक्सीन से 70% और मास्क से 80-85% तक सुरक्षा

जब तक कोरोना की दवा नहीं आती, तब तक लोगों को मास्क का प्रयोग करने की सलाह दी जा रही है। मास्क को ही लेकर सीडीसी, अमेरिका के निदेशक रॉबर्ट रेडफील्ड ने कहा कि मास्क वैक्सीन से भी ज्यादा प्रभावी है। रॉबर्ट ने यह बात पूरी दुनिया में मास्क पर हुए बहुत सारी स्टडीज़ के आधार पर कही है। अगर दो लोग आमने-सामने बैठे हुए हैं और मास्क लगाए हैं, सुरक्षित दूरी बनाए हैं, तो सुरक्षा कई गुना बढ़ जाती है।

लेकिन, जरूरी है कि मास्क सही से लगाया गया हो, मुंह और नाक अच्छी तरह से ढका हुआ है। वायरस से प्रोटेक्शन के लिए एंटीबॉडी होते हैं, जो वैक्सीन देने के बाद लोगों के शरीर में करीब 70 प्रतिशत ही बन पाते हैं, जबकि मास्क से 80-85 प्रतिशत तक सुरक्षा मिलती है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
USA India Coronavirus Cases Vs China ussia Spain | Coronavirus Covid-19 Is Affecting 213 Countries Around The World


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34kTJGi
via IFTTT
Share:

0 comments:

Post a Comment

Recent Posts

Blog Archive