जब से कोरोनावायरस आया है, तभी से देश में कॉन्वलसेंट प्लाज्मा थैरेपी की चर्चा हो रही। दिल्ली समेत देशभर के कई अस्पतालों में बकायदा प्लाज्मा थैरेपी का इलाज भी चल रहा है। लेकिन, अब पता चला है कि कोरोना के इलाज में प्लाज्मा थैरेपी बहुत ज्यादा कारगर नहीं है। यह थैरेपी मृत्यु दर कम करने में भी सफल नहीं है।
यह बात भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक रिसर्च में सामने आई है। कोरोना मरीजों पर प्लाज्मा थैरेपी का असर जानने के लिए देश के 14 राज्यों में 39 निजी और सरकारी अस्पतालों में 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच ट्रायल हुआ था। नतीजों में पाया गया कि 28 दिन में प्लाज्मा थैरेपी पाने वाले मरीजों और आम इलाज पा रहे मरीजों की हालत में कोई अंतर नहीं है।
ICMR रिसर्च से क्या पता चल रहा है?
जयपुर में जेके लोन हॉस्पिटल के अधीक्षक और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक गुप्ता कहते हैं कि ICMR ने ये जो स्टडी की है, वह एक मेटा एनालिसिस है, यानी इसमें 10 से ज्यादा अस्पतालों के कोरोना मरीजों पर यह रिसर्च की गई है। ICMR, CDC, WHO जैसे संस्थान मेटा एनालिसिस की बात करते हैं, वे इंडिविजुअल एनालिसिस पर भरोसा नहीं करते हैं। मेटा एनालिसिस में वे मल्टीपल स्टडीज के डाटा को पूल करते हैं।
क्या अभी प्लाज्मा थैरेपी से कोरोना का इलाज जारी रहेगा?
डॉक्टर अशोक कहते हैं कि ICMR ने प्लाज्मा थैरेपी को पूरी तरह से खारिज नहीं किया है। बस यह कहा है कि इसे व्यापक तरीके से इलाज में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। प्लाज्मा थैरेपी आगे भी सपोर्ट ट्रीटमेंट के तौर पर कोरोना के इलाज में इस्तेमाल की जाती रहेगी।
यह अभी कितना कारगर है?
- डॉक्टर अशोक के मुताबिक, प्लाज्मा थैरेपी सपोर्ट ट्रीटमेंट पहले भी था, आगे भी रहेगा। कोरोना के 2% से 5% मामलों में सपोर्ट ट्रीटमेंट के तौर पर इसका इस्तेमाल होता रहेगा।
- ICMR की स्टडी बताती है कि कोरोना केवल प्लाज्मा थैरेपी से नहीं ठीक हो सकती है। हां, एक बात और सच है कि प्लाज्मा थैरेपी के बारे में जितना सोचा गया था, यह उतना कारगर नहीं है। इसलिए ICMR ने भी कहा है कि इसकी उपयोगिता बहुत ज्यादा नहीं महसूस हो रही है, जितनी उम्मीद पहले की जा रही थी।
रिसर्च कैसे हुई?
- ICMR ने ‘ओपन-लेबल पैरलल-आर्म फेज 2 मल्टीसेन्टर रेंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल’ (PLACID ट्रायल) में कुल 464 मरीजों पर प्लाज्मा थैरेपी के असर की जांच की। ट्रायल के लिए दो ग्रुप बनाए गए। इंटरवेंशन और कंट्रोल। यह स्टडी MedRxiv जनरल में छपी है।
- पहले ग्रुप में जिन 235 मरीजों को प्लाज्मा चढ़ाया गया था, उनमें से 34 मरीजों की मौत हो गई। वहीं, दूसरा ग्रुप जिसमें मरीजों को प्लाज्मा थैरेपी नहीं दी गई, उसमें से 31 मरीजों की मौत हो गई। दोनों ही ग्रुप में 17-17 मरीजों की हालत गंभीर बनी हुई थी।
- ICMR की रिसर्च कहती है, प्लाज्मा थैरेपी से थोड़ा ही फायदा हुआ है जो मरीज सांस की समस्या और थकान से जूझ रहे थे, उसमें उन्हें राहत मिली है। लेकिन बुखार और खांसी के मामले में इस थैरेपी का असर नहीं दिखाई दिया।
- ICMR की रिसर्च यह भी कहती है कि कॉन्वलसेंट प्लाज्मा के इस्तेमाल को लेकर दो ही स्टडी छपी हैं, एक चीन और दूसरी नीदरलैंड में। दोनों ही देशों में इस थैरेपी को बंद कर दिया गया है।
कब मिली थी मंजूरी?
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 27 जून को कोविड-19 के ‘क्लिनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल’ में प्लाज्मा थैरेपी के इस्तेमाल को मंजूरी दी थी।
क्या है प्लाज्मा थैरेपी?
- प्लाज्मा थैरेपी में कोविड-19 से उबर चुके व्यक्ति के रक्त से एंटीबॉडीज लेकर उसे संक्रमित व्यक्ति में चढ़ाया जाता है, ताकि उसके शरीर में संक्रमण से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सके। यानी इम्युनिटी आ जाए। ICMR ने अपनी रिसर्च में पाया कि दोनों तरह के मरीजों (प्लाज्मा थैरेपी और सामान्य इलाज) की मृत्यु दर में फर्क बेहद कम (1%) था।
- प्लाज्मा थैरेपी को हम "उधार की इम्युनिटी" भी कह सकते हैं, क्योंकि इसे बीमारी से उबर चुके व्यक्ति के खून से निकालकर मरीज को दिया जाता है। इसमें एंटीबॉडीज होती हैं, जो कुछ निश्चित समय के लिए प्लाज्मा से चिपक जाती हैं और वायरस के दूसरी बार लौटने पर उससे लड़ने के लिए तैयार रहती हैं।
प्लाज्मा क्या होता है?
- प्लाज्मा इंसान के खून का तरल हिस्सा है। यह 91 से 92% पानी से बना और हल्के पीले रंग का होता है। इंसान के ब्लड में करीब 55% प्लाज्मा होता है। बचे हुए 45% में रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स होती हैं।
- प्लाज्मा में पानी के अलावा हार्मोंस, प्रोटीन, कार्बन डाइऑक्साइड और ग्लूकोज मिनरल पाए जाते हैं। ब्लड में हिमोग्लोबिन और आयरन की वजह से खून लाल होता है, लेकिन यदि प्लाज्मा को ब्लड से अलग कर दिया जाए तो यह हल्का पीला तरल बन जाता है।
- प्लाज्मा का काम हार्मोन, प्रोटीन और पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न हिस्सों तक ले जाना है। जब बॉडी में किसी भी तरह का वायरस या बैक्टीरिया अटैक करता है तो हमारी बॉडी उससे लड़ना शुरू कर देती है, जिसके बाद बॉडी में एंटीबॉडी बनती है। बाद में यही एंटीबॉडी उस बीमारी के खिलाफ लड़ाई लड़ता है।
कोविड 19 में कितनी मददगार है प्लाज्मा थैरेपी?
- यह थैरेपी पहले भी मरीजों की मदद कर चुकी है। डॉक्टर्स 1918 में आए स्पेनिश फ्लू के खिलाफ भी कॉन्वलसेंट प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन की मदद ले चुके हैं। हाल ही में यह प्रक्रिया सार्स, इबोला, एच1एन1 समेत कई दूसरे वायरस से जूझ रहे मरीजों पर भी की जा चुकी है। कुछ स्टडीज बताती हैं कि यह एच1एन1 और सार्स समेत कई दूसरी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की हालत सुधारने में मदद कर सकता है।
- जब एक व्यक्ति कोविड 19 से रिकवर हो जाता है तो उनके खून में एंटीबॉडीज बन जाती हैं, जो वायरस से लड़ने में मदद करती हैं। चूंकि, यह वायरस नोवल है, इसका मतलब कि इस महामारी से पहले कोई भी इसका शिकार नहीं हुआ है। इसलिए हमारे शरीर में पहले से ही इससे लड़ने के लिए एंटीबॉडीज मौजूद नहीं है। हालांकि, एक्सपर्ट्स अभी भी कोविड 19 से जूझ रहे मरीजों में कॉन्वलसेंट प्लाज्मा के असर के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं।
प्लाज्मा थैरेपी से कोरोना का इलाज कैसे हो रहा?
- कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा को नए कोविड मरीज में ट्रांस फ्यूज किया जाता है। ठीक हो चुके मरीज से जब प्लाज्मा थैरेपी के जरिए एंटीबॉडीज कोविड मरीज की बॉडी में डाली जाती है तो वायरस का असर कम होने लगता है। इस पूरी प्रक्रिया को प्लाज्मा थैरेपी कहा जाता है। कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के प्लाज्मा को दो कोविड मरीज में ट्रांस फ्यूज किया जा सकता है।
कैसे होता है कॉन्वलसेंट प्लाज्मा डोनेशन?
अमेरिकन रेड क्रॉस के मुताबिक, कॉन्वलसेंट प्लाज्मा डोनेशन कोविड 19 से पूरी तरह उबर चुके मरीज ही कर सकते हैं। प्लाज्मा डोनेशन के दौरान व्यक्ति के हाथ से प्लाज्मा निकाला जाता है और सुरक्षित तरीके से कुछ सेलाइन के साथ रेड सेल्स वापस डाले जाते हैं। इस प्रक्रिया के कारण यह आम ब्लड डोनेशन से ज्यादा वक्त लेती है।
कुछ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर प्लाज्मा को ब्लड कलेक्ट करने के 24 घंटे के भीतर -18 डिग्री सेल्सियस पर जमा या ठंडा किया जाता है तो इसे 12 महीने तक स्टोर कर रख सकते हैं।
कौन कर सकता है डोनेट?
- एफडीए के अनुसार, कॉन्वलसेंट प्लाज्मा केवल उन्हीं लोगों से कलेक्ट किया जाना चाहिए जो ब्लड डोनेशन के लिए योग्य हैं।
- अगर व्यक्ति को पहले कोरोनावायरस पॉजिटिव रह चुका है तो ही वह दान कर सकता है।
- संक्रमित व्यक्ति कोविड 19 से पूरी तरह उबरने के 14 दिन बाद ही डोनेशन कर सकता है। डोनर में किसी भी तरह के लक्षण नहीं होने चाहिए।
- दान देने वाले के शरीर में ब्लड वॉल्यूम ज्यादा होना चाहिए। यह आपके शरीर की लंबाई और वजन पर निर्भर करता है।
- डोनर की उम्र 17 साल से ज्यादा और पूरी तरह से स्वस्थ्य होना चाहिए।
- आपको मेडिकल एग्जामिनेशन से गुजरना होगा, जहां आपकी मेडिकल हिस्ट्री की जांच की जाएगी।
यह ब्लड डोनेशन से अलग कैसे है?
इंसान के खून में कई चीजें शामिल होती हैं, जैसे- रेड ब्लड सेल्स, प्लेटलेट्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लाज्मा। ब्लड डोनेशन के दौरान व्यक्ति करीब 300ml रक्तदान करता है, लेकिन प्लाज्मा डोनेशन में व्यक्ति को एक बार उपयोग में आने वाली एफेरेसिस किट के साथ एफेरेसिस मशीन से जोड़ दिया जाता है। यह मशीन प्लाज्मा को छोड़कर खून की सभी कंपोनेंट्स को वापस शरीर में डाल देती है। इस प्रक्रिया में एक ही सुई का इस्तेमाल होता है।
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