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सबसे ज्यादा बोली जाने के पैमाने पर, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा। मातृभाषा भाषा के रूप में दुनिया चौथी बड़ी भाषा। इतनी विराट है हमारी हिंदी। भाषाओं पर रिसर्च और एनालिसिस करने वाले पब्लिकेशन एथनोलॉग के मुताबिक दुनिया में करीब 63.7 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। आज विश्व हिंदी दिवस है। इस दिन हम इस हिंदी की इसी विराटता का उत्सव मना रहे हैं। उद्देश्य है दुनिया में हिंदी और आगे बढ़ाना।
दरअसल, आज से ठीक 45 साल पहले यानी 10 जनवरी 1975 को नागपुर में पहला विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ था। उसके बाद से मॉरीशस, त्रिनिदाद एंड टुबागो, यूनाइटेड किंगडम, सूरीनाम, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और फिजी में 12 ऐसे सम्मेलन हो चुके हैं। उसी विशेष दिन को याद करते हुए 10 जनवरी 2006 से हम विश्व हिंदी दिवस मनाते हैं।
ऐसे तो अंग्रेजी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। मंदारिन चीनी दूसरे स्थान पर है। हिंदी समेत तमाम भाषाओं पर अंग्रेजी का असर साफ नजर आता है, मगर सिक्के का दूसरा पहलू भी है। हिंदी ने अंग्रेजी को भी हिंदी सिखा दी। तो आइये आज जानते हैं ऐसे तमाम शब्दों में कुछ दिलचस्प शब्दों को जो हिंदी ने अंग्रेजी को सिखाए...
कुछ और शब्द जो हिंदी से अंग्रेजी तक पहुंचे......
Avatar : वीडियो गेम, इंटरनेट फोरम आदि में किसी व्यक्ति विशेष का प्रतिनिधित्व करने वाला आइकन या आकृति।
अवतार : अवतार संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ प्रायः उतरना होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ईश्वर का पृथ्वी पर अवतरण (जन्म लेना) अथवा उतरना ही 'अवतार' कहलाता है।
Bangle : चूड़ी, बांगड़ी या कलाई में पहने जाने वाला एक तरह का ब्रेसलेट।
चूड़ी : कांच आदि धातु का बना वृत्ताकार गहना जिसे स्त्रियां कलाइयों में पहनती हैं। यह भारतीय महिलाओं का परंपरागत गहना है।
Chit : एक छोटा नोट। आमतौर पर आधिकारिक और बकाया राशि से संबंधित।
चिट्ठी : खत, पत्र या पर्ची । माना जाता है कि अंग्रेजी का शब्द चिट हिंदी के चिट्ठी से लिया गया है।
Cushy : ऐसी स्थिति (विशेष रूप से नौकरी में) जो बेहद आसान या सुरक्षित है।
खुशी : माना जाता है कि अंग्रेजी का chusy हिंदी के शब्द खुशी से आया है। जिसका मतलब प्रसन्नता या मर्जी या इच्छा से, होता है।
विश्व हिन्दी दिवस और राष्ट्रीय हिंदी दिवस में क्या हैं अंतर
विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी 1975 को नागपुर में हुए पहले विश्व हिंदी सम्मेलन के महत्व को याद करने के लिए मनाया जाता है, जबकि राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। दरअसल, 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा और देवनागरी को आधिकारिक लिपि के रूप में अपनाया था। विश्व हिंदी दिवस का मुख्य उद्देश्य दुनिया में हिंदी को बढ़ावा देना है। यही वजह है कि दुनिया भर में फैले भारतीय दूतावास इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
रामदे और भारती किसी वीडियो में गाय-भैंस को चारा खिलाते दिखते हैं तो किसी में चूल्हे पर खाना बना रहे होते हैं। किसी वीडियो में खेत में काम करते नजर आते हैं, तो किसी में माता-पिता के साथ बात करते हुए दिखते हैं। इनके वीडियो न स्क्रिप्टेड होते हैं और न ही उसमें बहुत एडिटिंग की जाती है, लेकिन फिर भी ये यूट्यूब पर खूब देखे जाते हैं। महीने का साढ़े चार से पांच लाख रुपए सिर्फ यूट्यूब से कमा रहे हैं। कहते हैं कि यूट्यूब के लिए वीडियो तो शौक से बनाते हैं, मुख्य काम तो खेतीबाड़ी है।
रामदे और भारती दोनों ही ब्रिटेन में रहते थे। रामदे की बहन UK में रहती हैं। उन्हीं के साथ वो 2006 से 2008 तक रहे फिर वापस लौट आए। शादी के बाद 2010 में फिर UK चले गए। वहां नौकरी करने लगे। भारती को पढ़ाई करनी थी तो वो वहीं से हॉस्पिटल मैनेजमेंट में ग्रैजुएशन करने लगीं। जिंदगी सैटल हो गई थी। भारती की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी, उन्हें भी नौकरी मिल गई थी। लेकिन रामदे के मन में गांव में रह रहे अपने माता-पिता की चिंता थी। कहते हैं, 'मैं इकलौती संतान हूं इसलिए 2016 में सब छोड़कर गांव लौट आया।'
घर में बाप-दादा सब खेती ही करते आए हैं, इसलिए रामदे भी खेती करने लगे। इसके साथ ही उन्होंने पशुपालन भी शुरू कर दिया। सात भैंसे खरीद लीं। दो घोड़ी भी उनके पास हैं। एक डॉगी भी है। मैंने उनसे पूछा कि आपका यूट्यूब का कारवां कैसे शुरू हुआ? तो इस पर बोले, 'सर, हमने यूट्यूब से पैसे कमाने की नहीं सोची थी। हम तो मोबाइल से अपनी डेली लाइफ के वीडियो शूट करके अपलोड कर देते थे ताकि वो यूट्यूब पर सेव हो जाएं और हम जब चाहें, उन्हें देख सकें।' बोले, 'मेमोरीज को बनाए रखने के लिए वीडियो अपलोड करना शुरू कर दिया था। इसलिए न ही कभी कोई स्क्रिप्टिंग की और न ही कोई एडिटिंग करवाई।'
इन्हीं में से एक भैंस वाला वीडियो अचानक यूट्यूब पर वायरल हो गया। एक दिन में ही करीब साढ़े तीन लाख व्यूज आए। कहते हैं, 'वीडियो वायरल होने के बाद हमने गूगल पर यूट्यूब वीडियो के बारे में और सर्च किया। देखा कि कैसे मॉनेटाइजेशन होता है। वीडियो अपलोड करने की पॉलिसी क्या है। वीडियो कैसे बन रहे हैं। यह सब पता करके मॉनेटाइजेशन के लिए अप्लाई कर दिया। 6 महीने बाद हमारा चैनल मॉनेटाइज हो गया। फिर हर रोज एक-एक वीडियो अपलोड करने लगे। वीडियो का मकसद गांव की लाइफ स्टाइल लोगों को दिखाना था।'
रामदे के मुताबिक, 'मैं और पत्नी देश-दुनिया घूमे हैं। हम ये जानते थे कि हमारी गांव में जो लाइफ स्टाइल है, वो यूनीक है और शहर वालों के लिए नई है। इसलिए हम नेचुरल वीडियो ही अपलोड करते थे। जैसे खेत में साथ में खाना खाते हुए, पैरेंट्स के साथ वक्त बिताते हुए, खेती-बाड़ी करते हुए, घोड़ों के साथ खेलते हुए, ट्रैक्टर चलाते हुए, आरती करते हुए। बिना किसी पेड प्रमोशन के लोग इन वीडियो को देखने लगे तो सब्सक्राइबर बढ़ते चले गए। अब तीन चैनल हैं। एक चैनल बेटे के नाम से बनाया है, जिसमें उससे जुड़ी एक्टिविटी वाले वीडियो अपलोड करते हैं। एक चैनल सिर्फ गुजरातियों के लिए है और तीसरा चैनल हिंदी भाषा में है, जो मुख्य चैनल है।'
यूट्यूब से महीने का कितना कमा लेते हैं? इस सवाल पर बोले, 'कमाई का खुलासा नहीं करना चाहता, लेकिन फिर भी साढ़े चार-पांच लाख रुपए महीना हो जाता है। हमारा मुख्य काम तो खेतीबाड़ी है। यूट्यूब पर तो हम सिर्फ एक वीडियो रोज अपलोड कर देते हैं। जैसी जिंदगी जी रहे हैं, उसे ही शूट करके वीडियो बना लेते हैं। अब कई तरह के कैमरे भी ले लिए हैं। रोज महज एक से दो घंटे यूट्यूब पर देते हैं।'
यूट्यूब पर सब्सक्राइबर कैसे बढ़ाए जा सकते हैं? इस पर कहने लगे कि जो भी वीडियो अपलोड कर रहे हो, उसे डेली अपलोड करो। व्यूज नहीं आ रहे तो निराश मत हो। कंटेंट ओरिजनल है तो वायरल जरूर होता है। एक-दो वीडियो वायरल होने के बाद बाकी वीडियोज में भी व्यूज आना शुरू हो जाते हैं। रामदे के मुख्य चैनल पर अभी 7 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं। हर रोज करीब हजार सब्सक्राइबर उनके चैनल से जुड़ रहे हैं।
आप भी ऐसे यूट्यूब पर बना सकते हैं अपना चैनल
यूट्यूब चैनल की शुरुआत करने के लिए जरूरी है कि सबसे पहले आपके पास एक्टिव गूगल अकाउंट हो। अगर गूगल अकाउंट नहीं है, तो आप पहले गूगल अकाउंट बना लीजिए। यूट्यूब पर गूगल अकाउंट से साइन इन करने के बाद यूट्यूब चैनल बनाने की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
स्टेप- 1
यूट्यूब पर जाकर राइट साइड पर यूट्यूब अकाउंट के थंबनेल इमेज पर क्लिक करें। इसके बाद 'क्रिएट ए चैनल' विकल्प को सिलेक्ट करें।
स्टेप-2
अब यूट्यूब चैनल का नाम डालें, चैनल के नाम के लिए बेहतर होगा कि आप किसी ऐसे नाम को चुनें जिससे यह स्पष्ट हो कि आपका चैनल किससे संबंधित है।
स्टेप-3
नाम सिलेक्ट करने के बाद आपको कैटेगरी सिलेक्ट करनी होगी यानी आप किस तरह का कंटेंट पोस्ट करेंगे। इसके बाद चेक बाॅक्स पर ओके का विकल्प क्लिक करना होगा। (क्लिक करने से पहले नियम व शर्तें पढ़ लें)
स्टेप-4
आपका यूट्यूब चैनल बन गया है। अब आप एक नए पेज पर रीडायरेक्ट हो जाएंगे, जहां आप अपने ब्रांड से जुड़ी तस्वीरें, बैकग्राउंड आर्ट, चैनल आइकन अपलोड कर सकते हैं। इसके अलावा आप अपने चैनल के बारे में मजेदार और यूनिक डिस्क्रिप्शन डाल सकते हैं।
यहां आप वो सब कुछ शेयर कर सकते हैं, जिससे ये पता चलता है कि आपका यूट्यूब चैनल किस बारे में है और आप किस तरह के कंटेंट को कब पोस्ट करना चाहते हैं। इसके अलावा बिजनेस इन्क्वायरी के लिए आप ईमेल आईडी भी शेयर कर सकते हैं। इसके बाद आप अपने चैनल में वीडियो अपलोड के विकल्प को सिलेक्ट करके कोई भी वीडियो अपलोड कर सकते हैं।
आज से ठीक 105 साल पहले की बात है। देश की राजधानी दिल्ली से करीब 1500 किलोमीटर दूर बंबई (अब मुंबई) शहर के अपोलो बंदरगाह पर हजारों कांग्रेस कार्यकर्ता मौजूद थे। इन्हें किसी का इंतजार था और जिनका इंतजार था, वो थे मोहनदास करमचंद गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी। 1915 की उस 9 जनवरी की सुबह जैसे ही गांधीजी अपोलो बंदरगाह पर उतरे, इन कार्यकर्ताओं ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
गांधी 1893 में दक्षिण अफ्रीका गए थे। उस समय वो 24 साल के थे, लेकिन जब भारत लौटे तो 45 साल के अनुभवी वकील बन चुके थे। कहते हैं कि वो गांधी बनकर गए थे और महात्मा बनकर लौटे। मोहनदास करमचंद गांधी पर उस दिन देश के 25 करोड़ लोगों की निगाहें थीं और वो इसलिए, क्योंकि अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने जो लड़ाई लड़ी, उसी ने भारतीयों को भी उम्मीद दी कि यही नेता हमें आजादी दिला सकता है।
गांधी ऐसे वक्त में लौटे थे, जब भारत बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहा था। 1905 में बंगाल के दो टुकड़े कर दिए गए। 1911 में ही हिंदुस्तान की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली कर दी गई। कांग्रेस पार्टी भी 30 बरस की हो चुकी थी, लेकिन उसने भी अब तक आजादी के आंदोलन में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई थी। आजादी किस तरह हासिल की जाए, इसको लेकर भी अलग-अलग राय थी। कुछ नेता अंग्रेजों को उन्हीं की जुबान में जवाब देने की बात करते थे, तो कुछ अहिंसा से आजादी की लड़ाई लड़ने की बात कह रहे थे।
गांधीजी ने भारत लौटने के दो साल बाद बिहार के चम्पारण से आजादी के लड़ाई के लिए सत्याग्रह शुरू किया। इसे चम्पारण सत्याग्रह भी कहा जाता है। उन्होंने आजादी की लड़ाई का जिम्मा उठाया और एक के बाद एक आंदोलन कर अंग्रेज सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। गांधीजी के भारत लौटने पर ही हर साल 9 जनवरी को प्रवासी दिवस मनाया जाता है।
पहली बार भारतीय दल अंटार्कटिक पहुंचा
बर्फीले अंटार्कटिक महाद्वीप पर पहला भारतीय अभियान दल आज ही के दिन 1982 में पहुंचा था। इस अभियान की शुरुआत 1981 में हुई थी और इस टीम में कुल 21 सदस्य थे, जिसका नेतृत्व डॉक्टर सैयद जहूर कासिम ने किया था। कासिम तब पर्यावरण विभाग के सचिव थे और राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान निदेशक का पद संभाल चुके थे। इस मिशन का लक्ष्य यहां वैज्ञानिक अनुसंधान करना था। इस दल ने अपनी यात्रा की शुरुआत गोवा से 6 दिसंबर, 1981 को की और अंटार्कटिक से 21 फरवरी, 1982 को वापस गोवा पहुंच गए।
भारत और दुनिया में 9 जनवरी की महत्वपूर्ण घटनाएं :
भारत वह देश है, जहां विदेशों से लोग सबसे ज्यादा पैसा भेजते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के चलते इसमें भारी गिरावट आई है। अप्रैल-जून 2020 की तिमाही में पिछले साल के मुकाबले 16.2 हजार करोड़ रुपए कम भेजे गए। वहीं, जुलाई-सितंबर की तिमाही में यह कमी 17.7 हजार करोड़ रुपए की रही।
वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि 2020-21 में विदेशों से भारत भेजे जाने वाली रकम में 9% की गिरावट आएगी, जबकि कई सालों से विदेशों से भारत आने वाला पैसा लगातार बढ़ रहा था। 2019 में भी इसमें 5.5% की बढ़ोतरी हुई थी। कोरोना की वजह से विदेशों में लोगों की नौकरियां चली गईं और ऐसे कई लोग देश लौट आए। इस वजह से इस साल विदेशों से आने वाले पैसे में कमी आई।
वंदे भारत के तहत 38 लाख लोगों को विदेशों से वापस लाई सरकार
कोरोना से पहले तक 1.36 करोड़ NRI देश से बाहर थे। मई की शुरुआत से अब तक 38.4 लाख लोगों को वंदे भारत मिशन के तहत सरकार देश वापस ला चुकी है। इस दौरान कुल 6500 फ्लाइट्स चलाई गईं। वंदे भारत मिशन के तहत सिर्फ UAE से 4,57,596 लोगों को भारत वापस लाया गया, जो वहां की कुल आबादी का 5% है।
नागरिक उड्डयन मंत्री के मुताबिक, वापस आए यात्रियों में वे भी शामिल हैं, जो दो देशों के बीच हुए एयर बबल समझौते के तहत लौटे हैं। इस समझौते के तहत दो देश आपस में कुछ प्रतिबंधों और नियमों को मानते हुए आवाजाही शुरू कर देते हैं। भारत ने 23 देशों के साथ एयर बबल समझौता किया है।
वापस आने वाले ज्यादातर मजदूर बिहार के
दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर NRI की मदद के लिए तैनात एक अधिकारी बताते हैं, ‘वंदे भारत मिशन के तहत लौटे ज्यादातर मजदूर बिहार से थे, जो खाड़ी देशों में काम कर रहे थे। नौकरी छूटने की वजह से पहले ही उनके पास पैसे नहीं थे। फिर ज्यादातर को 72 घंटे के अंदर कराई गई कोरोना जांच की जानकारी नहीं थी। ऐसे में लौटने पर उन्हें एयरपोर्ट पर कोरोना जांच के लिए 5000 रुपए खर्च करने होते थे। यह उनके लिए बड़ी मुसीबत थी। इस प्रक्रिया में देरी से उनकी अपने शहरों की फ्लाइट भी छूटीं और उन्हें दोहरा आर्थिक नुकसान हुआ।’
लोग पैसा उधार लेकर वापस आए
तिरुअनंतपुरम के सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज में पढ़ाने वाले प्रवासी मामलों के जानकार डॉ. हीरालाल बताते हैं, 'केंद्र सरकार ने विदेशों से लौटने वालों की मदद नहीं की। उनसे वापस आने के पैसे भी वसूले। लॉकडाउन के चलते जिन मजदूरों की नौकरी पहले ही छूट चुकी थी, उन्होंने मोटी रकम उधार लेकर विदेशों से वापस आने के टिकट और जांच वगैरह का खर्च उठाया। अब वे अगर कमाने भी लगे तो यह कर्ज चुकाने में ही उनकी कई महीने की आमदनी खप जाएगी। ऐसे में विदेशों से आने वाले धन में आई गिरावट फिलहाल जल्दी सामान्य नहीं होगी।'
केरल और पंजाब की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर
विदेशों से भेजा गया धन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी होता है। NRI विदेशों से जो पैसा भारत भेजते हैं, वह बड़ी मात्रा में देश के घाटे यानी करंट डेफिसिट की भरपाई करता है। 2019 में विदेशों से आया धन कुल GDP का 3% था।
2020 में इसमें आई कमी का सबसे ज्यादा असर केरल पर पड़ने की गुंजाइश है, जिसके करीब 25 लाख प्रवासी खाड़ी देशों में रहते हैं। मनी कंट्रोल के मुताबिक, केरल में आने वाले विदेशी धन में 15% की गिरावट आने का अनुमान है। केरल और पंजाब में बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं, जो अपने खर्च के लिए पूरी तरह से विदेशों से भेजे गए पैसों पर निर्भर रहते हैं।
डॉ. हीरालाल कहते हैं, ‘भले ही केरल, पंजाब और कुछ अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों को विदेशों से भेजे वाले धन के मामले में भारी गिरावट का सामना करना पड़ेगा, लेकिन खाड़ी में मजदूरी करने वाले उत्तर भारतीयों के लिए यह बड़ी त्रासदी होगी, क्योंकि इनके पास पहले से की गई बचत नहीं है।’
अन्य देशों की आर्थिक मंदी भी असर डालेगी
दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में आई हैं। इससे वहां रहने वाले भारतीयों के पैसा भारत भेजने में कमी आना तय है। जो यहां से लौटे हैं, उन्हें फिर नौकरी मिलना भी मुश्किल होगा।
डॉ. हीरालाल के मुताबिक, कोरोना का असर 2021 में भी दिखता रहेगा। वे कहते हैं, 'स्थिति सामान्य होने पर केरल जैसे राज्यों के स्किल्ड वर्कर अपना काम पाने में सफल रहेंगे, लेकिन राजस्थान, बिहार और यूपी के नॉन-स्किल्ड वर्कर्स को परेशानियां उठानी पड़ेंगी।'
खाड़ी देशों में काम करने वालों पर सबसे ज्यादा असर
राज्यसभा में दिए गए सरकार के जवाब के मुताबिक, भारत में विदेशों से आने वाले कुल धन का 82% यूएई, अमेरिका, सऊदी अरब, कतर, कुवैत, ओमान, ब्रिटेन और मलेशिया से आता है। विदेशों से आने वाले कुल धन में 50% से ज्यादा हिस्सा खाड़ी देशों का होता है।
हालांकि, इस साल तेल के दामों में आई गिरावट और इम्पोर्ट के कम होने से भारत के करंट डेफिसिट पर बोझ कम हुआ है, लेकिन बुरा पक्ष यह है कि खाड़ी देशों की इकोनॉमी पर भी असर पड़ा है। इससे भारत के लोगों के लिए वहां रोजगार का संकट पैदा हो गया है। ऐसे भारतीयों के वहां से लौटने की संख्या भी बढ़ी है।
NRI दो वजहों से पैसे भेजते हैं-
1. परिवार की जरूरतों के लिए
2. बचत/निवेश के लिए
सरकार ने राज्यसभा में दिए एक जवाब में बताया था कि भारतीयों ने विदेशों से जो धन भेजा, उसमें से करीब 60% का इस्तेमाल परिवार की जरूरतों, 20% का उपयोग बैंक डिपॉजिट और 8.3% का इस्तेमाल जमीन, संपत्ति और शेयर आदि में निवेश के लिए किया गया था।
फिर भी भारत नंबर 1 बना रहेगा
इस सबके बावजूद भारत विदेशों से भेजे जाने वाले पैसों के मामले में नंबर 1 बना रहेगा। फिलहाल भारत के बाद चीन, मैक्सिको, फिलीपींस और मिस्र में सबसे ज्यादा पैसा विदेशों से भेजा जाता है। 2019 में 25,43,577 भारतीय रोजगार के लिए विदेश गए थे, लेकिन यात्राओं पर रोक से इसमें साल 2020 और 2021 में बहुत कमी आएगी।