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Saturday, December 19, 2020

बलबीर सिंह की क्रिया तब हो पाई जब परिवार ने लिया 60 हजार का कर्ज; इधर, 40 दिन पहले शादी की खुशियां थीं, अब मां बेहाल है

अजनाला (अमृतसर). दिल्ली आंदोलन से लौटते समय 12 दिसंबर को अजनाला के बग्गा गांव के बलबीर सिंह की मौत हो गई थी। घर के मुखिया वही थे। किसान अनाज उपजाकर दूसरे लोगों का पेट भरता है, बलबीर सिंह की अंतिम किरया तब हो पाई जब आढ़ती से परिवार ने 60 हजार रुपए कर्ज लिया। बलबीर सिंह की अंतिम किरया शनिवार को उनके घर रखी गई थी। बलबीर सिंह के परिवार पर पहले से 5 लाख रुपए का कर्जा है। वह कर्जा बेटी की शादी के लिए बलबीर सिंह ने लिया था। अब बलबीर सिंह की पत्नी और दाेनाें बेटों के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि घर का खर्च चलाना पहले से ही मुश्किल हो रहा था। उनके जाने के बाद अब वह इस कर्ज काे कैसे भरेंगे?

पहले से ही परिवार पर है 5 लाख कर्ज

बलबीर सिंह की पत्नी सर्बजीत कौर कहती हैं, उनके 2 बेटे हैं। बड़ा बेटा शमशेर बढ़ईगिरी का काम करता है जबकि छाेटा बेटा लवप्रीत मेडिकल स्टोर पर लगा है। 5 साल पहले घर की छत गिर गई थी। उसी समय बेटी मनप्रीत काैर की शादी भी तय हो गई। परिवार काे मजबूरी में बैंक से 5 लाख रुपए का कर्ज लेना पड़ गया। खेती में कमाई न हाेने की वजह से इस लोन की एक भी किस्त परिवार नहीं भर पाया है। सर्बजीत कौर ने बताया कि उनके पास मात्र दो एकड़ जमीन है और परिवार का खर्च इसी जमीन से चलता है।

दूध के लिए परिवार ने दो पशु रखे हैं। तकरीबन 15 हजार रुपए का बिजली बिल बकाया है जिसे कमाई नहीं हो पाने की वजह से परिवार भर नहीं पा रहा। बिजली मुलाजिम अक्सर कनेक्शन काटने आ जाते हैं। सर्बजीत कौर के अनुसार, उनके पति को डर था कि नए खेती कानून लागू हो गए तो उनकी जमीन भी चली जाएगी। इसी वजह से वह धरने में दिल्ली गए थे।

अगले महीने 15 को बेटे की शादी है, इसलिए लौट रहे थे

बलबीर सिंह के छोटे बेटे लवप्रीत सिंह की शादी 15 जनवरी को होनी है। इसकी तैयारियों के लिए ही 12 दिसंबर काे बलबीर सिंह धरने से वापस आ रहे थे कि रास्ते में टांगरा के पास तेज रफ्तार कार ने उन्हें टक्कर मार दी जिसमें उनकी मौत हो गई। बलबीर सिंह की पत्नी कहती हैं कि उनका तो पूरा संसार ही उजड़ गया है।

अब कर्ज कैसे चुकाएंगे और घर कैसे चलाएंगे? उन्हें समझ नहीं आ रहा। घर का खर्च उन्हीं के ऊपर था। उनके रहते जैसे तैसे चलता था अब क्या होगा, समझ नहीं आ रहा। कर्ज कैसे चुकाएंगे। बेटी की शादी के लिए लिया कर्ज अभी चुका नहीं पाए। उनकी किरया के लिए भी 60 हजार का कर्ज लेना पड़ा।

बहू बार-बार दरवाजे को देख रही

मानसा/सरदूलगढ़. साड्‌डी खेती लई बणे आह कानून रद्द ना कित्ते गए ता जट्टां दे पल्ले कुझ नहीं रहणा, सारे देश का ढिड्ड भरण वाला किसान प्राइवेट कंपनियां दा गुलाम होके रहजु? अपने दोस्तों के साथ अकसर ऐसी बातें करने वाला मानसा के गांव फत्ता मालोका का जतिंदर सिंह आज गांव वालों के बीच नहीं है।
आंदोलनकारियों के लिए राशन की ट्राली ले जाते हिसार में उसकी गाड़ी को किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी, जिसमें उसकी मौत हो गई। 40 दिन पहले उसकी शादी हुई थी, आज मातम है। जतिंदर की मां का रो-रो कर बुरा हाल है। वहीं गुरविंदर कौर पति की मौत के बाद से बेसुध जैसे हालात में है। उसकी तो दुनिया उजड़ गई। उधर, शनिवार को जतिंदर का अंतिम संस्कार किया गया।

मां बोलीं- मेरे जिगर के टुकड़े को छीन लिया

26 वर्षीय जतिंदर सिंह की मौत के बाद परिवार का बेहद बुरा हाल है। उनके बड़े भाई कैनेडा रहते हैं। परिवार के नजदीकियों के अनुसार जतिंदर की शादी बड़े धूमधाम से हुई थी, खुशहाली के कुछ कार्यक्रम बीच-बीच में हो रहे थे। इसी बीच दिल्ली कूच का आंदोलन शुरू हो गया। खेती किसानी में रुचि रखने वाला जतिंदर भी दिल्ली पहुंचा। 12 दिन पहले ही अपने साथियों के साथ सेवा निभाकर लौटा था और दोबारा बुधवार को दो ट्रालियों में मोर्चे पर डटे किसानों के लिए राशन की सेवा लेकर अपने साथियों के साथ रवाना हुआ था।

मालोका के सरपंच एडवोकेट गुरसेवक सिंह कहते है कि नरम स्वभाव व समाजसेवा के कामों को दिल से करने वाले जतिंदर सिंह के ऐसे चले जाने का पूरे गांव को बेहद मलाल है। उधर, जतिंदर की मां कुछ ज्यादा नहीं बोल पा रही हैं, लेकिन बेटे को याद कर बरबस ही रो उठती हैं। और एक ही बात कहती हैं कि सेवा भाव करने वाले उनके परिवार से परमात्मा ने कैसा बदला लिया है। उनके जिगर के टुकड़े को छीन लिया।

पत्नी बोली- मुझे साथ क्यों नहीं ले गए, अकेले चले गए

करीब 40 दिन पहले जतिंदर की पत्नी के रूप में ब्याह कर नई जिंदगी शुरू करने वाली जतिंदर सिंह की पत्नी गुरविंदर कौर को अब भी यकीन नहीं है कि उसका पति इस दुनिया में नहीं है। मौत की खबर के बाद से वह बेसुध है। गुरविंदर को यही समझ में नहीं आ रहा कि जिंदगी ने उसके साथ इतना क्रूर मजाक क्यों किया है।

गुमसुम अपने घर के दरवाजे को निहार रहीं गुरविंदर कौर किसी से ज्यादा कुछ नहीं बोल पति की बाट जोह रही हैं, लेकिन उसकी आंखों में आंसू टूटे हुए अरमान को बयान करने को काफी हैं। पत्नी वैसे तो ज्यादा नहीं बोल रही लेकिन रोते हुए एक ही शब्द बोलती है- ऐसा क्यों किया मुझे भी साथ ले जाते।



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Balbir Singh's action was achieved when the family took a loan of 60 thousand; Here, 40 days ago there was happiness of marriage, now mother is suffering


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असम: तिवा स्वायत्त परिषद के चुनाव में बीजेपी की जोरदार जीत, 36 में से 33 सीटों पर कब्जा

असम में सत्तारूढ़ भाजपा ने तिवा स्वायत्त परिषद के चुनाव में 36 में से 33 सीट...

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मध्यप्रदेश में कोरोना वायरस के 1085 और छत्तीसगढ़ में 1368 नए मामले

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Friday, December 18, 2020

अमेरिका ने भारत के खिलाफ चीनी हमले से निपटने के लिए 740 अरब डॉलर का पॉलिसी बिल पारित किया है

हम चीन के साथ गतिरोध के नौवें महीने में हैं, जो कि मेरे मई के पूर्वानुमान से काफी बाद में है, जिसमें मैंने कहा था कि हमें कैंपेनिंग सीजन, जो नवंबर में होता है, तक रुके रहना होगा। गुजरते समय के साथ इसपर मत भी बदलेंगे। पुनर्विश्लेषण से मुख्य मुद्दे पर नए विचार आएंगे कि क्या आकलन के लिए विवाद की स्थिति बनी रहे और यह चीन की मंशा है कि भारत-चीन के अच्छे से विकसित होते संबंध सैन्य टकराव में बदल जाएं। इससे हमें लगातार जवाब मिलेंगे, जिससे सामना करने की रणनीति बनाने में मदद मिलेगी।

और भी देश हैं जिनका चीन के साथ झगड़ा है, लेकिन ऐसा सैन्य दबाव का प्रयास कहीं नहीं किया गया, जैसा भारत के साथ हुआ। चीन ने उन देशों के साथ वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी अपनाई, जो कि कूटनीति की जंगी शैली है, जिसमें आमना-सामना करने की बस बातें की जाती हैं। हालांकि भारत पर इसे बहुत नहीं अपनाया गया।

लद्दाख क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में सैनिक भेजकर चीन ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है, जो आपसी झड़प के जाने-पहचाने इलाकों में तो प्रभावी हो सकती है, लेकिन इसे किसी बड़े इलाके पर कब्जे के लिए अभियान चलाने में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उसने झड़प को पूर्वी लद्दाख के सबसे दक्षिणी इलाके चुमार और डेमचोक इलाकों में भी नहीं बढ़ाया।

महामारी के समय संभवतया चीन का इरादा इस इलाके में कठिनाई के स्तर का भी पता लगाना था, क्योंकि भारत के लिए ऐसा करने में कठिनाई के साथ ही खर्च का स्तर भी बहुत अधिक है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पार का इलाका पठार जैसा होने से चीनी सैनिकों के समक्ष दिक्कत कहीं कम थी। इससे साफ है कि चीन का इरादा संकट उत्पन्न करना था, न कि अपने दावे के मुताबिक क्षेत्र पर कब्जा करना। वह एलएसी पर जटिलता पैदा करने के साथ ही रणनीतिक फैसले करते समय भारत के दिमाग में संवेदनशीलता का मनोविकार पैदा करना चाहता था।

मेरे अनुमान से इसकी सबसे बड़ी वजह भारत के उस विश्वास को डिगाना हो सकता है, जो उसने 2016 के बाद हासिल किया है। इसके स्पष्ट संकेत नियंत्रण रेखा के पार किए गए ऑपरेशन, डोकलाम में विरोध, जम्मू-कश्मीर का विशेषाधिकार खत्म करना और भारत की सेनाओं को एक संयुक्त कमान के अधीन लाने और उनका संयुक्त ऑपरेशन के आधुनिक तरीकों के समकालीन बनाने से मिलते हैं।

बड़ी शक्तियों के साथ संबंधों को बनाने के साथ ही इन बहुपक्षीय संबंधों में आत्मविश्वास के साथ संतुलन बनाने को चीन के थिंक टैंक ने खतरनाक माना और बढ़ते आत्मविश्वास को भारत की अस्वीकार्य महत्वाकाक्षा के ट्रेंड के रूप में देखा। इसलिए चीनियों की तैनाती की नीति भारत को रणनीतिक किनारे पर रखने और उससे आगे की स्थिति का अनुमान न लगाने देने के साथ ही संबंधों को खत्म करने या बनाए रखने की अनिच्छा से उसके आत्मविश्वास को कम करने के लिए है।

प्रधानमंत्री की इस बात के लिए आलोचना होती है कि वे हमलावर के रूप में चीन का नाम नहीं लेते हैं। मैंने एक स्टेट्समैन के तौर पर प्रधानमंत्री के रुख का समर्थन किया है, धरातल पर तो भारत व चीन के बीच गतिरोध के हालात हैं, युद्ध की स्थिति नहीं। लेकिन हमें भीतरी तैयारी करते रहना चाहिए। चीन अब हमारे खिलाफ निम्न स्तर के सायबर हमले कर रहा है।

सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक फिशिंग अभियान के प्रति चेताया भी है। जिसमें सरकारी मदद का वितरण देखने वाली एजेंसियों, विभागों और व्यापार एसोसिएशन का नकली चोला ओढ़ा जा सकता है। इस अभियान का दायरा वैक्सीन खरीद, भंडारण और वितरण को बाधित करने के लिए भी बढ़ाया जा सकता है। इसका देशभर में असर होगा और यह भारत के स्वास्थ्य सेक्टर को खतरे में कर देगा।

चीन सर्दी में लद्दाख में कोई धरती को हिलाने वाला काम शायद ही करेगा। उसका इरादा महामारी खत्म होने और अमेरिका में बाइडेन प्रशासन के सत्ता में आने का इंतजार दिखता है। उसे अमेरिका से अब कुछ शांत व व्यापार पर कम प्रतिरोधी चीन नीति और दुनिया में बदले क्रम के लिए स्थितियां बनने की उम्मीद है। इसीलिए वह भारत के साथ अपने संबधों को आगे बढ़ाने की उम्मीद करेगा। भारत को इससे दबाव में आने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भविष्य की बागडोर चीन के हाथ में नहीं है और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर ही शी जिनपिंग को समर्थन के मुद्दे पर आंतरिक मतभेदों के संकेत हैं।

भारत की अमेरिका के साथ कूटनीतिक साझीदारी, क्वाड एजेंडे को प्रोत्साहन और भारत द्वारा स्थापित ढेरों संबंधों ने भारत को चीन से संतुलन बनाए रखने के समान उपाय दे दिए हैं। लद्दाख में तो युद्ध नहीं होगा, लेकिन अन्य क्षेत्रों में जहां पर चीन संवेदनशीलता स्पष्ट है और उसके लिए सब ठीक-ठाक नहीं है। मैं आखिर में जोड़ना चाहूंगा कि अमेरिका ने भारत के खिलाफ चीनी हमले से निपटने के लिए 740 अरब डॉलर का पॉलिसी बिल पारित किया है। बाइडेन प्रशासन के भी इसी नीति का पालन करने की उम्मीद है। यह भारत के लिए बढ़त है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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लेफ्टि. जनरल एसए हसनैन, कश्मीर में 15वीं कोर के पूर्व कमांडर


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कितनी ही दवाइयां खा लें, कोई भी बीमारी तब तक नहीं खत्म होगी, जब तक उसकी जड़ पर ध्यान नहीं दिया जाएगा

अब यह तो बिना कहे ही समझा जा सकता है कि दुनियाभर में हम सभी का ‘इम्यूनिटी’ और इसे बढ़ाने वाली तमाम चीजों पर ध्यान है। यही हमारा लक्ष्य, हमारा मंत्र बन गया है। यह इस साल का सबसे ज्यादा गूगल किया गया शब्द भी था। जबकि इम्यूनिटी मानव स्वास्थ्य का आधार रही है, लेकिन यह समझने के लिए कि इस उपहार पर ध्यान देने की कितनी ज्यादा जरूरत है, हमें एक महामारी की जरूरत पड़ी।

आने वाले वर्ष में, जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की बढ़ती संख्या के बीच, हमारा मंत्र दरअसल इंफ्लेमेशन को कम रखना होगा। इंफ्लेमेशन यानी किसी बीमारी पर शरीर की वह प्रतिक्रिया जिसमें किसी हिस्से में सूजन, जलन, खुजली, लाल निशान पड़ना, फोड़े आदि लक्षण देखे जाते हैं। इंफ्लेमेशन नियंत्रित रखना होगा क्योंकि यही आज की सभी बीमारियों की जड़ है।

कैंसर, वजन बढ़ना, पैनक्रियाटाइटिस से लेकर डाइबिटीज, किडनी रोग और ऑटोइम्यूनिटी (स्वप्रतिरक्षित रोग) तक, कोई भी बीमारी देखें, उसमें इंफ्लेमेशन होता है और मेडिकल की दुनिया में उन्हें इंफ्लेमेटरी बीमारियां कहते हैं। इंफ्लेमेशन जरूरी है और यह बुरी चीज नहीं है। यह पैथोजेन, बैक्टीरिया या किसी बाहरी तत्व आदि के प्रति हमारे रोगप्रतिरोधी तंत्र की जैविक प्रतिक्रिया का हिस्सा है। लेकिन जरूरी यह है कि इंफ्लेमेशन सही समय पर बंद और शुरू हो।

इंफ्लेमेशन अगर लगातार हो तो यह बुरा है और कई बीमारियों का कारण बन सकता है। साथ ही, कभी-कभी इसके कुछ कारक हमारे रोगप्रतिरोधी तंत्र को झांसा देकर इसे शुरू कर सकते हैं, जिससे ऑटोइम्यून बीमारी हो सकती है। अगर हम लंबी बीमारियों को हराना चाहते हैं तो दीर्घकालीन या स्थायी इंफ्लेमेशन और उसके हमारे शरीर पर असर को समझना जरूरी है क्योंकि इनके मूल कारण इंफ्लेमेशन पर कोई ध्यान नहीं देता।

ज्यादातर मामलों में सही तरीका अपनाकर हम स्थायी इंफ्लेमेशन को बंद कर सकते हैं (जेनेटिक को छोड़कर)। अनियंत्रित इंफ्लेमेशन जीन को भी प्रभावित कर घातक बीमारियों का कारण बन सकता है। एक इंफ्लेमेशन वाला और एसिडिक माहौल कैंसर की कोशिका को बढ़ने के लिए आदर्श होता है क्योंकि ऐसे माहौल में ऑक्सीजन की कमी होती है। इसलिए, बीमारियां रातोरात शरीर में नहीं आतीं। उनके लिए एक सहायक माहौल जरूरी होता है और इंफ्लेमेशन उनमें से एक कारण हो सकता है।
इंफ्लेमेशन सिर से लेकर पांव तक, शरीर के हर अंग और कोशिका को प्रभावित कर सकता है। वास्तव में आज डॉक्टरों को कोरोना संक्रमण के कारण ‘साइटोकाइन स्टॉर्म’(रोगप्रतिरोधी तंत्र की अति सक्रियता) के मामले देखने में आ रहे हैं, जो कि आक्रामक इंफ्लेमेशन का ही मामला है, जो कि शरीर में संक्रमण की वजह से होता है। यह खून, नसों, अंगों का प्रभावित करता है और कई बार घातक भी होता है।
इंफ्लेमेशन कई कारणों से हो सकता है। इनमें रिफाइंड या प्रोसेस्ड फूड खाना, एसिडिटी, कब्ज, ज्यादा खाना, नींंद की कमी, जरूरत से ज्यादा व्यायायम, शराब का सेवन, धूम्रपान, लगातार एक्स-रे किरणों का सामना, धूप में ज्यादा रहना, संक्रमण (वायरस, बैक्टीरियल), प्रदूषण व कुछ इलाज व दवाओं का सेवन शामिल है।
इससे बचने के लिए ढेर सारे भोजन उपलब्ध हैं। सीधे प्रकृति से आए किसी भी संपूर्ण और अनप्रोसेस्ड खाने में इंफ्लेमेशन को रोकने के गुण होते हैं। इंफ्लेमेशन को जीवनशैली में बदलाव लाकर भी नियंत्रित किया जा सकता है। जैसे प्रकृति के साथ समय बिताएं, सही तरीके से उपवास करें, चाय, कॉफी, शराब का सीमित सेवन करें, ग्लूटन और डेरी उत्पाद को डाइट से हटा दें (खासतौर पर जब इंफ्लेमेशन का स्तर पहले ही ज्यादा हो)। इसके अलावा खुश रहें। डीप ब्रीदिंग (गहरी सांस लेना) और ध्यान भी अपना सकते हैं।
अगर कोई वाकई में बेहतर महसूस करना चाहता है तो उसे इंफ्लेमेशन पर ध्यान देने की जरूरत है। यह हेल्थकेयर और ज्यादातर सिम्पटोमैटिक तरीकों में बड़ी कमी है और इसीलिए हम लंबी बीमारी में फंस जाते हैं। आप कितनी ही गोली-दवाइयां खा लें, कोई भी बीमारी तब त नहीं खत्म होगी, जब तक उसकी जड़, अनियंत्रित इंफ्लेमेशन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। वह इंफ्लेमेशन जो हमारी जीवनशैली के इर्द-गिर्द ही है और सौभाग्य से हमारे नियंत्रण में है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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ल्यूक कोटिन्हो, हॉलिस्टिक लाइफस्टाइल कोच


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रेलवे बोर्ड के सीईओ बोले-2024 तक सभी को मिलेगा कंफर्म टिकट; ऑन डिमांड चलाई जाएंगी ट्रेनें

भारतीय रेलवे की याेजना मांग के अनुसार ट्रेनें चलाने की है। इससे सभी को कन्फर्म टिकट दिया जा सकेगा। इसके लिए रेलवे ने 2024 की समय सीमा तय की है। इसके साथ ही माल ढुलाई में रेलवे माैजूदा हिस्सेदारी 27% से बढ़ाकर 2030 तक 45% करने की तैयारी कर रहा है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन और सीईओ वीके यादव ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।

ट्रेनाें काे सामान्य रूप से कब तक चलाया जाएगा, इस सवाल काे लेकर यादव ने कहा कि इस बारे में काेई निश्चित तारीख बता पाना संभव नहीं है। रेलवे बोर्ड के अनुसार, ट्रेनों में सालाना करीब 16 करोड़ वेटिंग टिकट बुक होते हैं।

रेलवे बोर्ड के सीईओ बोले-2024 तक सभी को मिलेगा कंफर्म टिकट...

इनमें से करीब 7 करोड़ से अधिक पैसेंजर्स के वेटिंग टिकट ट्रेन छूटने से पहले कन्फर्म हो जाते हैं और करीब 9 करोड़ के कन्फर्म नहीं हो पाते हैं। इनमें से ऑनलाइन बुक टिकट स्वत: ही कैंसिल हो जाते हैं, जबकि विंडो टिकट लेने वाले तमाम यात्री फर्श पर बैठकर यात्रा करते हैं। यह संख्या प्रति वर्ष बढ़ती जा रही है। वेटिंग खत्म करने के लिए ऑन डिमांड ट्रेनों को चलाए जाने की तैयारी है।

नेशनल रेल प्लान के तहत फ्रेट काॅरीडोर 2024 तक पूरी तरह तैयार हो जाएगा, जिससे ऑन डिमांड ट्रेनें चलाई जा सकेंगी। चेयरमैन के अनुसार कोरोना की वजह से रेलवे को पैसेंजर से होने वाली कमाई में 87% का नुकसान हुआ है। पिछले वर्ष कमाई 53 हजार करोड़ रुपए थी। इस वर्ष अभी तक 46 सौ करोड़ हुई है।

रेलवे ने साथ ही विजन 2024 के तहत फ्रेट मूवमेंट 2024 मिलियन टन पहुंचाने का लक्ष्य रखा है, जो 2019 में 1210 मिलियन टन था। यादव ने वर्चुअल प्रेस काॅन्फ्रेंस में कहा, “अब तक हम 1,768 ट्रेनों की तुलना में 1,089 मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों काे चला रहे हैं।’

उन्होंने कहा कि रेलवे इसके अलावा 264 कोलकाता मेट्रो ट्रेनों और 3,936 उपनगरीय ट्रेनाें काे चला रहा है। उन्होंने कहा, “हम अब उन जगहों पर 20 विशेष क्लोन ट्रेनें भी चला रहे हैं, जहां वेटलिस्ट के अनुसार हाई डिमांड है। त्योहारी सीजन के दौरान कन्फर्म टिकटों की अधिक मांग को देखते हुए रेलवे ने भीड़ को कम करने के लिए 618 विशेष ट्रेनें चलाईं।’



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रेलवे ने 2024 की समय सीमा तय की है। (फाइल फोटो)


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2021 में 24 उपग्रहों को एक साथ किया जाएगा लॉन्च; 24 घंटे रियल टाइम इमेज से फसल-शहरों के बदलाव देखे जा सकेंगे

इसरो अगले 8 माह में पहली बार किसी निजी भारतीय कंपनी का उपग्रह अंतरिक्ष में भेजेगा। बेंगलुरू में अंतरिक्ष तकनीकी से जुड़े स्टार्टअप पिक्सेल-इंडिया का अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट ‘आनंद’ इसरो के पीएसएलवी सी-51 रॉकेट के जरिए अगले साल अंतरिक्ष में जाएगा।

‘आनंद’ से पृथ्वी पर होने वाली किसी भी घटना की करीब-करीब 24 घंटे रियल टाइम इमेज उपलब्ध हो सकेगी। पिक्सेल के उपग्रहों की मदद से सीजन में फसल व मिट्‌टी में हो रहे बदलाव पर नजर रखी जा सकेगी। इसे लेकर कोई कदम उठाना है, तो इसकी सूचना भी रियल टाइम में पहुंचाई जा सकेगी। हालांकि सूचना पिक्सेल सीधे किसानों को नहीं देगी, बल्कि कोई अन्य कंपनी या एजेंसी पिक्सेल से डेटा हासिल कर किसानों को एसएमएस से देगी। इसी तरह वन क्षेत्र में हो रहे बदलाव या निकायों को सड़कों व अन्य बुनियादी ढांचों में हो रहे बदलावों की रियल टाइम जानकारी मिलेगी।

हर डेटा 24 घंटे में मिलेगा

अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट से ऐसी निगरानी अब भी हो होती है, पर पिक्सेल का डेटा हर 24 घंटे में मिलेगा। पिक्सेल के दो संस्थापकों में से एक क्षितिज खंडेलवाल ने बताया, ‘इन उपग्रहों से समस्याओं को जल्द पहचाना जा सकेगा और तत्काल समाधान सुझाए जा सकेंगे। बाढ़ जैसी आपदाओं में प्रबंधन, जल व वायु प्रदूषण पर भी नजर रखी जा सकेगी।’
पिक्सेल इंडिया एक अर्थ इमेजिंग स्टार्टअप है, जो 2023 तक कुल 24 उपग्रह लाॅन्च करेगी। सभी उपग्रह इसरो के अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट के आकार व लागत की तुलना में 10 गुना छोटे होंगे, लेकिन सभी 24 उपग्रहों के अंतरिक्ष में स्थापित होने के बाद इसकी क्षमता 24 घंटे में ग्लोबल कवरेज की होगी।

गुरुवार को पीएसएलवी सी-50 रॉकेट के जरिए सीएमएस-1 की सफलतापूर्वक लांचिंग के बाद इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन ने कहा कि इसरो व भारत के लिए पीएसएलवी का अगला पीएसएलवी सी-51 मिशन खास होगा, इसके जरिए ‘आनंद’ उपग्रह अंतरिक्ष में जाएगा।

अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार लागू होने के बाद निजी क्षेत्र द्वारा इसरो की सुविधाओं के इस्तेमाल की यह पहली गतिविधि होगी। आनंद के साथ दो नैनो सैटेलाइट- चेन्नई के स्टार्टअप स्पेसकिड्ज का ‘सतीश’ और यूनिवर्सिटी कंसोर्टियम का ‘यूनीवसेट’ भी भेजे जाएंगे।

सिवन बाेले- अगला साल बेहद व्यस्त, चंद्रयान व आदित्य की लाॅन्चिंग

डॉ. सिवन ने बताया कि पीएसएलवी सी-51 मिशन के अलावा भी समूचा वर्ष 2021 बेहद व्यस्तता से भरा होगा। इसरो अगले साल चंद्रयान-3, आदित्य एल-1 लाॅन्च करेगा और गगनयान की टेस्ट फ्लाइट भी भेेजेगा। इसके अलावा जीएसएलवी व एसएसएलवी के मिशन भी जारी रहेंगे। इस तरह हर महीने कम से कम एक-दाे लाॅन्चिंग हाेंगी।



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पिक्सेल इंडिया एक अर्थ इमेजिंग स्टार्टअप है, जो 2023 तक कुल 24 उपग्रह लाॅन्च करेगी


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