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साल 2020 जाते-जाते काफी उठापटक में मूड में है। लगभग ढाई सौ बरस पुराने लोकतंत्र अमेरिका में पहली बार महिला उप-राष्ट्रपति बनी। मानो इतना ही काफी न हो, उनके पति ने पत्नी का हाथ बंटाने के लिए नौकरी छोड़ने का ऐलान कर दिया। इधर हमारे यहां भी जानलेवा मंजर दिख रहे हैं। टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' के 12वें सीजन में अब तक दो करोड़पति बने। दोनों ही महिलाएं। हॉट सीट पर अमिताभ बच्चन के सामने बैठी वे औरतें अपनी मालूमात के साथ एकदम सहज थीं। जैसे अलग-अलग विषयों की जानकारी रखना उनके लिए सांस लेने जितना स्वाभाविक हो।
उनके पास जवाब थे- सवाल चाहे राजनीति का हो, फिल्म, या फिर किसी मजहब का। जीतकर लौटती उन विजेताओं के चेहरे पर नक्काशीदार घमंड नहीं था, बल्कि भरपूर खेलकर लौटने का सुख था। टीवी पर एपिसोड का प्रोमो आते ही मानो पैर के नीचे सुरसुरी छूट गई। एक के बाद एक खबरें लिखी गईं। पढ़िए तो लगेगा, जैसे उनकी जीत मर्द जात के चेहरे पर तमाचा हो। मानो सोई मर्दानगी को झकझोरा जा रहा हो कि देखो, अब तो औरतें भी जीतने लगीं। मियां, अब तो होश में आओ।
ये पहली दफा नहीं, हर साल बोर्ड के नतीजे आते ही यही हाल होता है। अखबारी हेडलाइंस गाती हैं- लड़कियों ने लड़कों से मारी बाजी... पहली नजर में ये एकदम उजली हेडलाइन है। लड़कियों को मजबूत दिखाती हुई। लेकिन नजरों में जरा-भी तजुर्बा हो तो तुरंत समझ आता है कि ये हेडलाइन लड़कियों की जीत का जश्न कम, लड़कों की हार पर शर्म ज्यादा है। पुरुषों से खचाखच भरा मीडिया औरतों की जीत पर अक्सर उनके निजी दर्द उड़ेलने लगता है।
वैसे देखा जाए तो अब तक पुरुषों की जीत ठीक वैसी ही थी, जैसे मुकाबले में केवल एक खिलाड़ी का उतरना। बिना किसी रुकावट वो जीतता चला गया और इतना जीता कि जीत उसके शरीर का हिस्सा हो गई। गांव के चौराहों से लेकर शहरों के चमचमाते ड्रॉइंग रूम तक हर जगह पुरुष काबिज रहे, जो राजनीति पर चर्चा करते...क्रिकेट के छक्के-चौके पर सीटियां बजाते और किसी कानून पर ज्ञान-गंगा बहाते। इतना ज्ञान कि नील नदी के किनारे पसरे मगरमच्छ को देखकर उसकी नस्ल तक बता दें।
इधर जानकार मर्दों की नासमझ जनानियां पल्लू कमर में खोंचे सरपट यहां से वहां भागतीं कि चौका निपटे तो खेत का काम कर डालें। या फिर खेत खाली हो तो त्यौहार मुंह फाड़े इंतजार करते होते। अब ऐसी औरत जाने भी तो भला क्या! उसका सारा गणित रसोई की घट-बढ़ में चुक जाता। सारा सामान्य ज्ञान फलाने गांव के ढिकाने नातेदारों में खपता। नतीजा, ज्ञानी मर्द ने तपाक से ऐलान कर दिया कि औरतों को न तो देश-दुनिया की मालूमात है, और न राजनीति की। विज्ञान-गणित की तो क्या ही कहें।
फिर वैसा ही हुआ भी। हल्दी-मसालों से महमहाती औरत ने किताबें शादी में मिली रेशमी साड़ी में लपेटकर रख दीं और बिसार दी गईं। बस, तब से यही सिलसिला चला आ रहा है। औरत को पहली नजर में कमजोर ही माना जाता है, जब तक कि वो खुद को साबित न कर दे। इसके उलट, पुरुष को तब तक मजबूत या जानकार माना जाता है, जब तक कि वो इस बात को गलत न साबित कर दे।
ये दोहरापन केवल मर्दों के भीतर नहीं, बदकिस्मती से औरतों के खून में भी खुद अपने ही लिए ये डर बहने लगा। इसे रिसर्च की भाषा में Goldberg paradigm कहते हैं। इसके तहत पूरी दुनिया के मर्दों और औरतों को कुछ पढ़ाया गया। पढ़ाने से पहले बता दिया गया कि लेख फलां पुरुष का है। एक दूसरे ग्रुप को वही लेख फलां महिला का कहकर पढ़ने को दिया गया। पढ़ने के बाद दोनों समूहों की राय एकदम अलग थी। एक ही आर्टिकल को उन लोगों ने शानदार कहा, जिन्हें वो किसी मर्द का लिखा लगा था। वहीं औरत के लिखे पर उन्हीं शब्दों ने बेहद कम नंबर पाए।
यानी मसला जानकारी का नहीं, बल्कि इस बात का है कि काम किसने किया- मर्द ने या औरत ने। खुद को पारदर्शी बताने के फेर में मर्द जमात ने कई शोध किए। जनाना-मर्दाना दिमाग की तस्वीर तक निकाल डाली। भारी-मोटे शब्दों में खूब संभलते हुए बताया कि औरत दरअसल गाने-बजाने, खुशबूदार खाना पकाने और बच्चे संभालने में ही मर्द से बेहतर है। औरत में किडनी, लीवर की तरह ही एक अंग ममता का होता है। वो नर्स बन उल्टियां तो साफ कर सकती है, लेकिन डॉक्टर बन ब्रेन सर्जरी नहीं कर सकती।
दरियादिली से छलछलाते कई मर्दों ने लगभग पुचकारते हुए बताया कि औरत नक्शे भूलती हैं तो ये उनका नहीं, कुदरत का दोष है। उसने औरत को दिमाग ही वैसा नहीं दिया। कुल मिलाकर बची-खुची तार्किक औरतों का पानी उतारने की गरज से ये सारी खोजें हुईं। अब सवाल ये आता है कि अगर औरत के दिमाग का बायां हिस्सा ज्यादा तेज है तो आर्ट गैलरी में पुरुष कलाकारों की भीड़ कैसे है। खुद की किताबें लिख सकने वाली औरत किताबों का विषय बनकर ही क्यों रह गई। सवाल तो ढेर सारे हैं। अनाम औरत कलाकारों के एक ग्रुप गुरिल्ला गर्ल्स ने एक स्टडी की। इसमें पाया गया कि मॉडर्न आर्ट में केवल 4 फीसदी ही महिला कलाकार हैं। इसके बाद भी नंगी तस्वीरों के जखीरे का 76 फीसदी औरतों की तस्वीरों से अटा पड़ा है।
अब धीरे-धीरे ही सही सवालों का कुकुरमुत्ता उगने लगा है। बहुत-धीरे सही, औरतें संदूक खोल रेशमी साड़ी में दबी वो बिसरी किताब निकाल रही हैं। अब आपकी बारी है। जनरल नॉलेज में जीत को औरतों की किस्मत कहने की बजाए खुलकर बधाई दें। गणित या विज्ञान को पुरुषों का विषय कहना बंद कर दें और किडनी के बगल में ममता नाम का अंग आप भी ट्रांसप्लांट करवा लें। तब दायरे दोनों के बढ़ेंगे।
आपका मोबाइल बिल हर महीने अब महंगा हो सकता है। देश की तीन बड़ी टेलीकॉम कंपनियां वोडाफोन-आइडिया, एयरटेल और रिलायंस जियो टैरिफ में 20% की बढ़ोतरी करने की तैयारी में हैं। सबसे पहले वोडाफोन-आइडिया टैरिफ बढ़ा सकती हैं। उसके बाद एयरटेल और जियो भी टैरिफ प्लान महंगा कर सकती हैं। टैरिफ बढ़ने का मतलब ये हुआ कि अगर आप पहले हर महीने मोबाइल बिल पर 100 रुपए खर्च करते थे, तो अब आपको 120 रुपए खर्च करने होंगे। लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ है कि कंपनियां टैरिफ बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं? आइए जानते हैं...
ऐसा इसलिए, ताकि यूजर से होने वाली कमाई बढ़ सके
रिलायंस जियो के आने के बाद से टेलीकॉम कंपनियों को बड़ा नुकसान हुआ है। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि जियो के आने से पहले तक देश में 9 प्राइवेट कंपनियां थीं, लेकिन अब सिर्फ जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ही बचीं।
जियो के आने से टेलीकॉम इंडस्ट्री में प्राइस वॉर छिड़ गया। नतीजा ये हुआ कि कंपनियों को अपने टैरिफ की कीमतें घटानी पड़ीं। इससे उनके रेवेन्यू पर तो असर पड़ा ही, साथ ही एक यूजर से होने वाली कमाई भी कम हो गई।
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) के मुताबिक, जियो के आने से पहले जून 2016 में कंपनियां एक यूजर से हर महीने औसतन 155 रुपए कमाती थीं। इसमें से 126 रुपये कॉलिंग और दूसरी सर्विसेस से, जबकि 29 रुपये इंटरनेट डेटा से कमाती थीं। इसे एवरेज रेवेन्यू पर यूजर (ARPU) कहते हैं। जून 2020 में कंपनियों का औसत ARPU 90 रुपये पहुंच गया है। वह भी इसलिए क्योंकि कंपनियों ने बीच में टैरिफ बढ़ा दिया था। वरना जून 2018 में कंपनियों को ARPU तो 69 रुपये हो गया था।
20% बढ़ोतरी से आप पर और कंपनियों पर क्या असर होगा?
आप यानी यूजर परः जाहिर है 20% टैरिफ बढ़ने से आपका मोबाइल रिचार्ज भी 20% महंगा हो जाएगा। अगर अभी आप महीनेभर में 100 रुपये का रिचार्ज कराते हैं, तो बढ़ोतरी के बाद आपको 120 रुपये का रिचार्ज कराना होगा।
कंपनियों परः 20% टैरिफ बढ़ने से कंपनियों का ARPU बढ़ जाएगा। इससे इनकी कमाई भी बढ़ेगी। जैसे- सितंबर 2020 में जियो का ARPU 145 रुपये रहा। 20% बढ़ोतरी के बाद ये 174 रुपये तक हो सकता है। यानी, जियो एक यूजर से हर महीने औसतन 174 रुपये कमाएगी। सितंबर 2020 तक जियो के पास 40.56 करोड़ यूजर हैं। यानी, उसे 7,057 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई हो सकती है। हालांकि, ये आंकड़ा अनुमानित है और कम या ज्यादा हो सकता है। ये कंपनियां सर्विस पर क्या और कितना चार्ज बढ़ाएंगी, उस हिसाब से ये बढ़ या घट सकता है।
टैरिफ बढ़ाने को क्यों मजबूर हुईं कंपनियां? इसके दो कारण हैं
पहलाः जियो को छोड़ बाकी दो कंपनियां घाटे में
सितंबर तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक, जियो ही इकलौती ऐसी टेलीकॉम कंपनी है, जो फायदे में रही। सितंबर तिमाही यानी जुलाई से सितंबर तक उसे 2,844 करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। वोडाफोन-आइडिया को इस तिमाही में 7,218 और एयरटेल को 763 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
दूसराः बकाया AGR भी चुकाना है
टेलीकॉम कंपनियों पर बकाया AGR चुकाने के मामले में सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, कंपनियों को अगले 10 साल में बकाया AGR चुकाना है। जबकि, 31 मार्च 2021 तक कुल बकाये का 10% देना है। सितंबर 2020 तक एयरटेल पर 88,251 करोड़ और वोडाफोन-आइडिया पर 1.14 लाख करोड़ रुपये का कर्ज भी है। इन्हीं दोनों कंपनियों के ऊपर सबसे ज्यादा AGR है।
AGR यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू टेलीकॉम कंपनियां सरकार को यूजेज और लाइसेंसिंग फीस के लिए चुकाती हैं।