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508 किमी हाई स्पीड रेल अहमदाबाद-मुंबई रूट के स्टैंडर्ड गेज ट्रैक पर 320 किमी प्रति घंटे रफ्तार से दौड़ने वाली बुलेट ट्रेन के सुरक्षित परिचालन और किसी भी तरह की रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जापान बुलेट ट्रेन की ऑटोमेटिक रेल ट्रैक फ्रैक्चर डिटेक्शन प्रणाली का इस्तेमाल होगा। यह प्रणाली रेल पटरियों के माध्यम से विद्युत नियंत्रण सर्किट का उपयोग करेगी।
यह नियंत्रण सर्किट समय रहते पटरियों पर रेल फ्रैक्चर की पहचान करने में मददगार होगी। इससे नियमित निरीक्षण के लिए सैकड़ों मैन पावर और समय की बचत करेगी। रेक के प्रत्येक कोच को किसी भी प्रकार की आग से बचाने को फायर रेटेड स्लाइडिंग डोर लगाए जाएंगे, जिससे आग लगने वाले हिस्सों को समय रहते नियंत्रित किया जा सकेगा और प्रत्येक कोच को पर्याप्त संख्या में अग्निशामक यंत्र उपलब्ध कराए जाएंगे।
महाराष्ट्र को छोड़ गुजरात के हिस्से में काम शुरू
परियोजना के सी -4 पॅकेज के वडोदरा-सूरत-वापी के बीच 237 किमी के 46 प्रतिशत हिस्से के निर्माण का ठेका लार्सन एंड टुब्रो (एलएनटी) को मिलने के बाद हाल ही में इसके सी -6 पॅकेज के वडोदरा से अहमदाबाद के बीच 88 किमी का निर्माण का ठेका भी एल एण्ड टी को दे दिया गया है।
सी 4 और सी 6 पॅकेज को मिलाकर अब यह परियोजना देश का सबसे बड़ा इंफ्रा प्रोजेक्ट बन गया है। इससे पहले सी-4 पॅकेज में एलएनटी को ही 24985 करोड़ का ठेका दिया था, जबकि सी 6 पॅकेज में 7289 करोड़ का ठेका एलएनटी को दे दिया गया है। जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (ज़ीका ) द्वारा फाइनेंस किया जाएगा।
ये कार्य होंगे सी-6 पॅकेज में
6 पॅकेज में वडोदरा से अहमदाबाद के बीच सिविल वर्क का डिजाइन कंस्ट्रक्शन,हाई स्पीड डबल लाइन (87.5), 25 क्रासिंग ब्रिज 97.5 किमी पैरेलल ब्रिज, मेंटेनेंस डिपो, समेत अन्य इंजीनियरिंग कार्य करने हैं। जबकि पैकेज सी 4 निर्माण में परियोजना का कुल 46.66% हिस्सा शामिल है, जिसकी लंबाई 237 किमी की है।
इस हिस्से में हाई स्पीड रेल कॉरिडोर का पॅकेज सी 4 निर्माण में 237 किमी में सिविल और बिल्डिंग वर्क्स का डिजाइन और निर्माण, जिसमें टेस्टिंग और कमीशनिंग शामिल है, बुलेट ट्रेन के लिए डबल लाइन ब्रिज, मेन्टेनेंस डिपो(सूरत), टनल, स्टेशन (वापी, बिलिमोरा, सूरत और भरूच) का काम किया जाएगा।
कहानी - महाभारत युद्ध के बाद का प्रसंग है। युद्ध में पांडव विजयी हो गए थे। कुछ सालों तक युधिष्ठिर ही राजा बने रहे। बाद में अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राजा घोषित कर दिया गया। परीक्षित बहुत बुद्धिमान और धर्म के जानकार थे। एक दिन वे कहीं जा रहे थे, तब उन्होंने देखा कि खेत में एक काला आदमी गाय और बैल को मार रहा है।
परीक्षित ने तीनों से उनका परिचय पूछा। गाय ने कहा कि मैं धरती हूं। बैल ने कहा कि मैं धर्म हूं। गाय और बैल के बाद काला व्यक्ति बोला कि मैं कलियुग हूं। अब मेरे आने का समय हो गया है। मैं आते ही सबसे पहले धरती और धर्म पर प्रहार करता हूं। आप द्वापर युग के अंतिम राजा हैं, तो अब आप कलियुग को यानी मुझे प्रवेश दीजिए।
परीक्षित ने काफी सोचकर कहा कि चार जगहों से तेरा प्रवेश होगा। पहली जगह जहां मदिरा पी जाती हो, दूसरी जहां जुआं खेला जाता हो, तीसरी जहां हिंसा हो और चौथी जहां व्यभिचार होता हो। व्यभिचार यानी जहां पुरुष अपनी स्त्री के होते हुए भी अन्य स्त्री से संबंध रखता है और पति के होते हुए भी महिला किसी अन्य पुरुष से संबंध रखती है। कलियुग ने कहा कि ये चारों रास्ते खराब हैं, मुझे कम से कम एक रास्ता तो अच्छा दीजिए। जहां से मैं सरलता से आ सकूं। तब परीक्षित ने कहा था कि जहां सोना (स्वर्ण) हो, वहां से भी तू प्रवेश कर सकता है।
उस समय लेन-देन की करंसी गोल्ड ही थी। गलत रास्ते से यदि आप आमदनी करेंगे तो भी कलियुग आपके जीवन में आ जाएगा। कलियुग यानी गलत आचरण। आज भी अगर ये पांच स्थान ठीक नहीं हैं, तो कलियुग आता ही है। ये व्यवस्था उस समय परीक्षित ने कर दी थी। जीवन में सुख-शांति चाहते हैं तो नशा, जुआं, हिंसा, व्यभिचार से बचें और गलत तरीके से धन कमाने की कोशिश भी न करें।
सीख - ध्यान दें, कहीं हमारी जिंदगी में भी ये पांच बातें तो नहीं हो रही हैं। अगर इन पांच में से कोई एक बात भी हमारे जीवन में हो रही है तो समय रहते सावधान हो जाएं। वरना, गलत आचरण हम करेंगे और इसकी कीमत हमारा परिवार, समाज और ये राष्ट्र चुकाएगा।
फार्मेसी और जेनेटिक्स में मास्टर्स माधवी और मैकेनिकल इंजीनियर वेणुगोपाल मूलत: हैदराबाद के रहने वाले हैं। साल 2003 से पहले ये कपल नौकरी के सिलसिले में बैंकॉक, मलेशिया, सिंगापुर और फिर अमेरिका में रहा। जब बच्चे बड़े होने लगे तो उन्हें लगा कि अगर बच्चों की परवरिश विदेश में हुई तो वो भारतीय संस्कृति से नहीं जुड़ पाएंगे। ऐसे में उन्होंने वापस अपने मुल्क लौटने का निर्णय लिया। साल 2003 में हैदराबाद आकर बस गए।
हैदराबाद लौटने के बाद एक दिन माधवी ने अपनी सोसाइटी के बाहर प्लास्टिक की प्लेट-कटोरियों का ढेर देखा, जहां कुछ गाय इसमें भोजन ढूंढ रही थीं। कुछ दिन बाद पता चला कि भोजन के साथ प्लास्टिक खाने की वजह से एक गाय की मौत हो गई। इस घटना से दोनों को बहुत दुख हुआ, इसके बाद उन्हें प्लास्टिक की प्लेट-कटोरियों का काेई इको-फ्रेंडली विकल्प तलाशने का विचार आया।
इस तरह 2019 में उन्होंने विसत्राकू की शुरुआत की, जहां माधवी और वेणु साल, सियाली और पलाश के पत्तों से 7 तरह के इको-फ्रेंडली प्लेट और कटोरी तैयार करके पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहे हैं। तेलुगु भाषा में विसत्राकू का अर्थ पत्तल होता है।
अमेरिका से लौटकर 25 एकड़ जमीन ली, यहां 12 हजार किस्म के फलों के पेड़ लगाए
माधवी कहती हैं, ‘अमेरिका से लौटने पर हमने अपनी सेविंग्स से तेलंगाना के सिद्दिपेट में 25 एकड़ जमीन ले ली। यहां हमने 30 से भी ज्यादा किस्मों के फलों के 12 हजार से भी ज्यादा पेड़ लगाए। खेत में हमारा अक्सर आना-जाना रहता था। हमारे खेत पर कई पलाश के भी पेड़ भी हैं और एक दिन बातों-बातों में मेरी मां ने बताया कि पलाश के पत्तों से पहले पत्तल बनाए जाते थे। इसके बाद मैंने और वेणु ने पलाश के कुछ पत्ते इकट्ठा कर उनसे प्लेट बनाने की कोशिश की। हमें सफलता तो मिली लेकिन प्लेट्स काफी छोटी थीं।’
पर्यावरण के प्रति जागरूक रहने वाले वेणुगोपाल कहते हैं, ‘एक फेसबुक ग्रुप पर मुझे पता चला कि ओडिशा में आदिवासी समुदाय अभी भी साल और सियाली के पत्तों से इस तरह के पत्तल बनाते हैं और वो उसको खलीपत्र कहते हैं। तब समझ में आया कि इको-फ्रेंडली पत्तल, दोना आदि अभी भी बनते हैं। लेकिन इनका इस्तेमाल कम हो गया है और इसकी जगह सिंगल-यूज प्लास्टिक की क्रॉकरी ने ले ली है।
इसके बाद मैंने कई नैचुरोपैथ से भी इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि पलाश या साल के पत्तल पर खाना खाने से सिर्फ पर्यावरण ही नहीं बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा असर होता है। जब पत्तल पर खाना परोसा जाता है तो भोजन में एक प्राकृतिक स्वाद भरता है और इससे कीड़े-मकौड़े भी दूर भागते हैं।’
यह जानने के बाद वेणुगोपाल ने ओडिशा के ऐसे सप्लायर से संपर्क किया जो आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए काम करता था। अब वे ओडिशा से सियाली और साल और तेलंगाना से पलाश के पत्ते मंगवाते हैं। फिलहाल, उन्होंने अपने खेत पर ही इन पत्तों से लीफ प्लेट्स बनाने की यूनिट लगाई है, जहां वे पत्तल और कटोरी बनाते हैं।
इन इको-फ्रेंडली, सस्टेनेबल और प्राकृतिक प्लेट्स की मार्केटिंग वेणु और माधवी ने अपनी सोसाइटी से ही शुरू की। जिस भी दोस्त-रिश्तेदार ने अपने आयोजनों में इन प्लेट्स को इस्तेमाल किया, सभी ने सोशल मीडिया पर उनके बारे में लिखा और इस तरह उनके इस इनिशिएटिव को पहचान मिलने लगी। वेणुगोपाल बताते हैं कि अब उनके प्रोडक्ट्स भारत के अलावा अमेरिका और जर्मनी तक भी जा रहे हैं। वो कहते हैं कि भारत से ज्यादा विदेशों में लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक हैं।
2010 में माधवी को ब्रेस्ट कैंसर हुआ, पर्यावरण से नजदीकी बढ़ाकर कैंसर को मात दी
माधवी कहती हैं, ‘साल 2010 में मुझे पता चला कि ब्रेस्ट कैंसर है, मैं हैरान थी कि मुझे कैंसर कैसे हो सकता है। उस वक्त मैं तीन योगा कैंप कर रही थी। फिर अचानक मुझे लगने लगा कि मैं अपने परिवार से दूर चली जाऊंगी। मेरे बच्चे उस समय 10वीं क्लास में थे और मैं उन पर अपनी बीमारी का बोझ नहीं डालना चाहती थी, लेकिन मैं उन सभी के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहती थी।
मेरे जेहन में यह बात थी कि यह कैंसर मुझे प्रदूषण की वजह से हुआ है। इसके बाद मैंने तय किया कि हम खेती करेंगे और हमने अपने खेत में सब्जियों और फलों के ढेर सारे पेड़-पौधे लगाए। यही से उगाए गए अनाज, फल-सब्जी ही हम खाने लगे। मैंने हंसते-हंसते कैंसर को मात दे दी लेकिन इस सफर ने मुझे बहुत कुछ सिखाया और इसी वजह से मैं पर्यावरण से और ज्यादा जुड़ गई।’
माधवी और वेणुगोपाल कहते हैं कि उन्होंने कभी भी स्टार्टअप के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन जब उन्हें लगा कि वो विसत्राकू के माध्यम से पर्यावरण सरंक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं तो इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय लिया। शुरुआत में उन्हें यूनिट सेटअप करने में काफी परेशानी भी आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
पहले साल महज 3 लाख का बिजनेस हुआ, इस साल 20 लाख के टर्नओवर की उम्मीद
वेणुगोपाल कहते हैं, ‘विस्त्राकु की शुरुआत हुए महज दो साल ही हुए हैं। पहले साल में बमुश्किल 3 लाख रुपए का बिजनेस हुआ। लेकिन इस फाइनेंशियल ईयर में हम 20 लाख रुपए का बिजनेस कर लेंगे। अभी तक 15 लाख रुपए का बिजनेस कर चुके हैं। पिछले महीने ही हमें यूएस से एक बड़ा ऑर्डर मिला और एक कंटेनर माल हमने यूएस भेजा है।’
माधवी और वेणु की यूनिट में गांव की ही 7 लड़कियां काम कर रही हैं। इस यूनिट में हर दिन करीब 7 हजार लीफ प्लेट्स और कटोरियां बनतीं हैं। इसके प्रोसेस के बारे में वेणुगोपाल बताते हैं कि इसमें सबसे पहले पत्तों को फूड ग्रेड धागे से सिला जाता है और फिर उन्हें फूड ग्रेड कार्डबोर्ड के साथ मशीन के नीचे रख दिया जाता है।
मशीन का तापमान 60-90 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होता है और इसे 15 सेकंड का प्रेशर दिया जाता है जो इन पत्तों को एक प्लेट का आकार देता है। माधवी का उद्देश्य है कि वे पत्तल पर खाने की संस्कृति को वापस लाएं और लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने में एक अहम भूमिका निभाएं।