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Friday, October 2, 2020

मास्क न पहनने को लेकर मार्शलों और दो आदमियों के बीच जमकर हाथापाई

मास्क पहनने के नियम का उल्लंघन करने पर जुर्माना न देने पर बेंगलुरु नगर निगम...

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ड्रग्स के धंधेबाजों ने माना- नशे में ग्लैमर दिखाने वाले गीतों और फिल्मों से फैल रहा जाल, 56% नशेड़ी खुद ही पेडलर बन गए

(रत्न पंवार) अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड में ड्रग्स के बड़े जाल का खुलासा हुआ है। ऐसे माहौल में आईआईएम रोहतक ने एक खास स्टडी की है। पंजाब, गुजरात व दिल्ली की जेलों में बंद 872 ड्रग्स विक्रेताओं से आईआईएम रोहतक के डायरेक्टर प्रो.धीरज शर्मा और उनकी टीम ने 11 सवाल पूछे।

ड्रग्स के इन धंधेबाजों में 23 महिलाएं भी थीं। इनमें से 85% ने माना कि नशीली दवाओं को बढ़ावा देने वाले संगीत ने युवाओं में ड्रग्स की खपत बढ़ाई है। 79.36% ने माना कि ड्रग्स का महिमामंडन करने वाली फिल्मों से खपत बढ़ रही है। खास बात यह है कि सभी ग्राहक और खुद ड्रग्स विक्रेता बॉलीवुड के कुछ अभिनेता-अभिनेत्री की नकल कोशिश में लगे रहते हैं ताकि नशे के बाद उनके जैसा काल्पनिक आत्मविश्वास महसूस कर सकें।

ड्रग्स का सेवन भी ऐसे फिल्मी संगीत को सुनते समय ज्यादा किया जाता है। युवाओं को ड्रग्स की ओर खींचने में काफी हद तक भद्दे गीतों का हाथ है। इस स्टडी के साथ ही आईआईएम ने ड्रग्स के जाल को रोकने के लिए कुछ सुझाव तैयार किए हैं, जिन्हें मंत्रालय काे भेजा जाएगा।

डाॅयरेक्टर का सुझाव: फिल्मों में ड्रग्स व उसकी खपत से जुड़े दृश्यों पर चेतावनी अनिवार्य हो

  • बॉलीवुड फिल्मों में अल्कोहल और धूम्रपान की तर्ज पर ड्रग्स, उसकी खपत या बिक्री से जुड़े दृश्यों पर चेतावनी अनिवार्य हो।
  • ड्रग के व्यापार को खत्म करने के लिए शुरुआती स्तर पर ही ड्रग यूजर्स की काउंसलिंग जरूरी है।
  • स्कूल और कॉलेजों में सक्रिय परामर्श देना उपयोगी रहेगा।
  • स्वास्थ्य सेवाओं और पुनर्वास की व्यवस्था को मजबूत करना जरूरी है। सरकारी अनुदान से शैक्षिक संस्थानों में ही पुनर्वास सुविधाएं दें।
  • अधिकांश नशीली दवाओं की घुसपैठ पाकिस्तान जैसे देशों से होती है। इसलिए, सीमावर्ती क्षेत्रों में सख्त पहरेदारी को बढ़ाएं और सख्त सजा का प्रावधान हाे।
  • ड्रग विक्रेताओं के लिए कॉलेज के छात्र और पब सबसे आसान निशाना है। यहां जागरूकता व सख्ती की जरूरत है।
  • शिक्षण संस्थानों और एकेडमियों में रेंडम ड्रग जांच करवाई जानी चाहिए।

86% विक्रेता ने माना कि सप्लायर के जरिए ही वे तस्करी के जाल में फंसे
स्टडी में 78.10% ड्रग्स विक्रेताओं ने बताया कि वे खुद ड्रग्स का सेवन करते थे और उसकी बिक्री उनके दोस्तों और परिवार के लोगों तक सीमित थी। इनमें से 56.54% ने जवाब दिया कि नियमित ड्रग्स लेने के लिए वे भी इसे बेचने लगे। 86.70% ने तर्क दिया कि वे अपने ड्रग सप्लायर के मार्फत ही तस्करी में फंस गए। 83.94% ड्रग्स विक्रेताओं ने बताया कि पाकिस्तान से सबसे ज्यादा चोरी-छिपे ड्रग्स आती है।



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आईआईएम रोहतक के डायरेक्टर प्रो.धीरज शर्मा


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Thursday, October 1, 2020

गांधी जयंती पर गृह मंत्री अमित शाह ने किया ट्वीट, ऐसे दी श्रद्धांजलि

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज गांंधी जयंती के मौके पर ट्वीट कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी.

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लगातार दो मैच हार चुकी चेन्नई के पास जीत का मौका, सनराइजर्स के खिलाफ पिछले 6 में से 5 मैच जीते; ब्रावो और रायडू की वापसी हो सकती हैं

आईपीएल के 13वें सीजन का 14वां मैच चेन्नई सुपरकिंग्स (CSK) और सनराइजर्स हैदराबाद (SRH) के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। पिछले दोनों मैच हारने वाली एमएस धोनी की टीम के पास जीत की पटरी पर लौटने का मौका होगा। सनराइजर्स के खिलाफ चेन्नई का रिकॉर्ड शानदार रहा है। पिछले 6 मैचों की बात करें, तो चेन्नई ने 5 में जीत दर्ज की है। वहीं, टीम से बाहर चल रहे अंबाती रायडू और ड्वेन ब्रावो को भी टीम में जगह मिल सकती है।

शुरुआती 2 मैच हारने के बाद हैदराबाद ने पिछले मैच में दिल्ली कैपिटल्स को हराया था। ऐसे में हैदराबाद चेन्नई के खिलाफ भी अपनी लय बरकरार रखने की कोशिश करेगी। पॉइंट्स टेबल में हैदराबाद 7वें और चेन्नई 8वें नंबर पर है।

आज जीती तो 3 टीमों के खिलाफ 15+ मैच जीतने वाली दूसरी टीम होगी सीएसके
सीएसके यदि यह मैच जीत लेती है, तो 3 टीमों के खिलाफ 15 से ज्यादा मैच जीतने वाली दूसरी टीम बन जाएगी। इसके पहले मुंबई इंडियंस ही ऐसा कर सकी है।

रायडू और ब्रावो खेल सकते हैं
चेन्नई की टीम पिछले 2 मैचों में कुछ प्रदर्शन नहीं कर पाई है। ऐसे में फिट होने की स्थिति में अंबाती रायडू और ड्वेन ब्रावो की टीम में वापसी हो सकती है। शेन वॉटसन और फाफ डू प्लेसिस पर रन बनाने की जिम्मेदारी होगी। वहीं बॉलिंग में दीपक चाहर, रविंद्र जडेजा और पीयूष चावला की भूमिका अहम हो सकती है।

हैदराबाद में वॉर्नर, बेयरस्टो और विलियमसन पर जिम्मेदारी
हैदराबाद की बैटिंग में लाइन-अप में केन विलियमसन के शामिल होने से गहराई आ गई है। डेविड वॉर्नर, जॉनी बेयरस्टो और मनीष पांडे टॉप में टीम की बल्लेबाजी का जिम्मा संभालेंगे। हैदराबाद की ताकत उसकी गेंदबाजी है। राशिद खान और भुवनेश्वर पर गेंदबाजी की जिम्मेदारी होगी।

दोनों टीम के महंगे खिलाड़ी
सीएसके में कप्तान धोनी सबसे महंगे खिलाड़ी हैं। टीम उन्हें एक सीजन के 15 करोड़ रुपए देगी। उनके बाद टीम में केदार जाधव का नाम है, जिन्हें इस सीजन में 7.80 करोड़ रुपए मिलेंगे। वहीं हैदराबाद के सबसे महंगे खिलाड़ी डेविड वॉर्नर हैं। उन्हें फ्रेंचाइजी सीजन का 12.50 करोड़ रुपए देगी। इसके बाद टीम के दूसरे महंगे खिलाड़ी मनीष पांडे (11 करोड़) हैं।

सीजन में यहां कोई टीम चेज नहीं कर पाई
दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में होने वाले मुकाबले में गेंदबाजों की भूमिका अहम होगी। इस सीजन में अब तक यहां 6 मैच खेले गए हैं। सभी मैचों में यहां कोई भी टीम चेज नहीं कर पाई। दिल्ली-पंजाब और बेंगलुरु-मुंबई के मैच का फैसला सुपर ओवर में हुआ था, लेकिन दोनों मैचों में पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम को ही जीत मिली थी।

हेड-टु-हेड
आईपीएल में चेन्नई और हैदराबाद के बीच हुए मुकाबले में धोनी की टीम का पलड़ा भारी रहा है। दोनों के बीच अब तक 12 मुकाबले खेले गए। चेन्नई ने 9 और हैदराबाद ने 3 जीते हैं।

पिच और मौसम रिपोर्ट
दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 27 से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। इस आईपीएल से पहले यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है।

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122

चेन्नई ने 3 और हैदराबाद ने 2 बार खिताब जीता
महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी वाली चेन्नई ने लगातार दो बार 2010 और 2011 में खिताब जीता था। पिछली बार यह टीम 2018 में चैम्पियन बनी थी। वहीं चेन्नई पांच बार( 2008, 2012, 2013, 2015 और 2019) आईपीएल की रनरअप भी रही। दूसरी ओर हैदराबाद ने 2 बार (2009 और 2016) खिताब अपने नाम किया।

आईपीएल में चेन्नई का सक्सेस रेट सबसे ज्यादा
चेन्नई ने लीग में अब तक 168 मैच खेले, जिसमें 101 जीते और 66 हारे हैं। 1 मुकाबला बेनतीजा रहा। वहीं, सनराइजर्स ने अब तक 111 में से 59 मैच जीते और 52 हारे हैं। इस तरह लीग में सुपरकिंग्स की जीत का सक्सेस रेट 60.77% और हैदराबाद का 53.15% रहा।



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CSK VS SRH Head To Head Record - Predicted Playing DREAM11 - IPL Match Preview Update | Chennai Super Kings vs Sunrisers Hyderabad IPL Latest News


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घाटी की मस्जिदों ने 'सदके' के पैसों से ऑक्सीजन मशीनें खरीदीं, जिन मरीजों के पास पैसे नहीं, उन्हें मुफ्त दे रहे हैं

80 साल के पीरजादा गुलाम अहमद दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के बिजबिहेड़ा इलाके में रहते हैं। अगस्त के महीने में अचानक उन्हें बुखार और सांस लेने में तकलीफ हुई तो अस्पताल ले जाया गया, वहां पता चला कि वे कोरोना पॉजिटिव हैं। एक घंटे में उनका ऑक्सीजन लेवल भी डाउन होने लगा, ऊपर से दिल के मरीज वे पहले से थे। ऐसे में अस्पताल में रखना उनके लिए और ज्यादा जोखिम वाला काम था। डॉक्टरों ने सलाह दी कि वे घर पर ही ऑक्सीजन की व्यवस्था करें।

पीरजादा के बेटे, खुर्शीद पीरजादा कहते हैं, 'हमने कई जगह किराए पर ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर ढूंढा, लेकिन नहीं मिला। इसके बाद आनन-फानन में 50 हजार रु का एक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदा। ऊपर वाले का शुक्र है कि मेरे अब्बा बच गए।'

पीरजादा ने तो ऑक्सीजन की व्यवस्था कर ली, लेकिन कश्मीर घाटी में सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जिन्हें अस्पताल में बेड और वेंटिलेटर नहीं मिलता है, ऑक्सीजन के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। कश्मीर के सबसे बड़े अस्पताल एसएमएचएस में अभी सबसे ज्यादा मरीज न्यूमोनिया के आ रहे हैं और लगभग सभी को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। डॉक्टरों का कहना है कि सभी के लिए अस्पताल में सुविधा नहीं है।

इस तरह की परेशानियों से निपटने के लिए कश्मीर में कुछ मस्जिद कमेटी वालों ने पहल की है। उन्होंने पैसे इकट्ठा कर और सदके के पैसों से ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीद लिए हैं। यह मशीनें उन रोगियों को बहुत ही कम कीमत पर दी जाती है, जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत होती है। गाजी मस्जिद कमेटी ने पिछले कुछ दिन में 7 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीद लिए हैं।

मस्जिद कमेटी के सदस्य फारूक अहमद कहते हैं,' हम 50 रुपए प्रतिदिन किराए के हिसाब से यह मशीन जरूरतमंदों को देते हैं। जो लोग 50 रुपए भी नहीं दे सकते, उन्हें हम फ्री में ही मशीन दे देते हैं।' वो बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि ये कमेटियां अभी बनी हैं, इस तरह की कमेटियां सालों से काम कर रही हैं। हर महीने मस्जिद के पास रहने वाले लोग कुछ पैसे दान में देते हैं, उन्हीं पैसों से जरूरतमंदों को मदद पहुंचाई जाती है। बच्चों के पढ़ाई का खर्च, दवाइयां जैसी जरूरतें इससे पूरी होती है। अभी कोरोनाकाल में सबसे ज्यादा जरूरत इन मशीनों की है।

एक मशीन की कीमत करीब 60 हजार रु. है। गाजी मस्जिद ने कुल 5 लाख रु. खर्च किए हैं। इसके साथ ही नेबुलाइजर मशीन भी खरीदे हैं ताकि ठंड के मौसम में किसी को जरूरत हो तो उसे मदद पहुंचाई जा सके।

एसएमएचएस के डॉक्टर बताते हैं कि आजकल उनके पास जो मरीज आते हैं, उनकी हालत घंटों में खराब हो जाती है। किसी को सुबह में अस्पताल से घर भेज दिया तो शाम में उनका ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है। अगर इस तरह के मरीजों को घर में ही ऑक्सीजन की सुविधा मिल जाती है तो अस्पतालों पर बोझ कम होता ही है, साथ ही मरीज की हालत भी ठीक रहती है।

इसी तरह की पहल डाउन टाउन के खानयार इलाके की एक मस्जिद अबू-बकर ने भी की है। इस मस्जिद की तरफ से भी सात ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदे गए हैं। मस्जिद के एक सदस्य शबीर अहमद ने बताया कि हम अपने मोहल्ले के साथ साथ दूर से आने वाले लोगों को भी यह मशीन देते हैं। कोई पैसा देता है तो किसी को हम मुफ्त में भी देते हैं। हमें खुशी है कि लोगों की जान बच रही है।

अब मस्जिदों के साथ ही कुछ एनजीओ वाले भी मदद के लिए आगे आए हैं। श्रीनगर में स्थित एक एनजीओ,अथरौट ने 200 से ज्यादा ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदे हैं। अथरौट के अध्यक्ष बशीर नदवी ने बताया कि हम अमीर गरीब का फर्क किए बिना यह मशीन 50 रु प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर देते हैं और हर रोज दूर- दूर से हमारे पास लोग आ रहे हैं। उनकी संस्था भी मस्जिद कमेटियों के साथ मिल कर काम कर रही है।

अभी कश्मीर में कुछ ही मस्जिदों ने ये मशीन खरीदी हैं, ऐसे में जिनके पास मशीन नहीं है, उन्हें एनजीओ मुहैया करा रहा है। हेल्प टुगेदर नाम के एक और एनजीओ ने भी 15 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदे हैं। अभी तक कश्मीर घाटी में 45000 से ज्यादा लोग कोरोनावायरस की चपेट में आए हैं, करीब 830 लोगों की मौत हुई है।



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कश्मीर की कुछ मस्जिदों ने अनोखी पहल की है। कोरोना के जिन मरीजों के पास पैसे नहीं है उन्हें मुफ्त में दवाइयां और ऑक्सीजन की मशीनें उपलब्ध करा रही हैं।


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लॉकडाउन में नौकरी चली गई तो इंश्योरेंस और लोन देने का काम शुरू किया, पहले ही महीने 1.5 लाख रु का टर्नओवर

संदीप सिन्हा दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे। अच्छी-खासी सैलरी थी, सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कोरोना के चलते लॉकडाउन लगा तो उनकी नौकरी चली गई। उनके बॉस ने आर्थिक तंगी का हवाला देकर नौकरी से निकाल दिया। वे 15 दिनों तक सदमे में रहे, 400 से ज्यादा जगहों पर उन्होंने नौकरी के लिए अप्लाई भी किया, लेकिन कहीं से कोई पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने खुद का बिजनेस शुरू किया। पहले ही महीने में 1.5 लाख की कमाई की।

35 साल के संदीप ने 2007 में इंजीनियरिंग करने के बाद एक साल तक एक आईटी कंपनी में जॉब किया। इसके बाद उन्होंने एमबीए किया। 2011 में अदानी ग्रुप में उनका प्लेसमेंट हो गया। दो साल तक यहां उन्होंने नौकरी की इसके बाद एक एमएनसी कंपनी में छह साल तक काम किया। इस साल सितंबर में उन्होंने एक नई कंपनी जॉइन की थी।

इसी साल अगस्त के अंत में संदीप ने अपना बिजनेस शुरू किया है। संदीप के साथ अभी 10 लोग काम करते हैं। वे कहते हैं कि अगले साल हमारा टारगेट 200 से अधिक लोगों की टीम तैयार करने का है।

संदीप कहते हैं कि जब लॉकडाउन लगा तो काम का बोझ बढ़ गया था, सैलरी भी घट गई थी, फिर भी रात-दिन हम काम कर रहे थे। लगता था कि कुछ दिन बाद चीजें ठीक हो जाएंगी। लेकिन, चीजें दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थीं। जून में मुझे कंपनी से ड्रॉप करने का नोटिस दे दिया गया। जुलाई में मुझे नौकरी से निकाल दिया गया। दिल्ली जैसे शहर में बिना नौकरी के रहना मुमकिन नहीं था, कई जगहों पर नौकरी के लिए अप्लाई किया, 4-5 जगहों से कॉल भी आए, लेकिन कहीं काम नहीं मिला। कोरोना के चलते कोई नई भर्ती करना नहीं चाहता था। मेरे लिए वह दौर सबसे मुश्किल रहा।

संदीप कहते हैं कि कोरोना के दौर में सबसे ज्यादा दिक्कत उन्हें हुई, जिनका एक्सपीरियंस 5 साल से ज्यादा और 15 साल से कम था। 1-2 साल एक्सपीरियंस वालों को नौकरी ढूंढने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई।

वो कहते हैं कि आखिर कब तक हम बैठकर शोक मनाते, जीने के लिए कुछ तो करना ही था। जब कहीं से कुछ ऑफर नहीं मिला तो सोचा कि क्यों ना कुछ अपना ही काम किया जाए। वैसे भी मैं पहले से मैं अपना बिजनेस शुरू करना चाहता था, लेकिन जॉब के चलते नहीं कर पाया था तो कोरोना को ही अपॉरच्युनिटी समझकर खुद का काम शुरू करने का फैसला लिया। इस काम में मेरी पत्नी ने बहुत सपोर्ट किया।

संदीप की टीम ने अभी तक दो हजार लोगों तक अप्रोच किया है, 20 लोग उनके कस्टमर बने हैं, 200 से ज्यादा लोगों से फाइनल दौर में बातचीत चल रही है।

चूंकि फाइनांस सेक्टर में मैंने काम किया था, नंबर गेम की मुझे अच्छी समझ थी तो इसी सेक्टर में काम करने का निर्णय लिया। मैंने थोड़ा-बहुत मार्केट रिसर्च किया, जिन लोगों को मैं जानता था या जो मेरे संपर्क में थे, उनसे बात की और लोगों का डेटा इकट्‌ठा शुरू करना किया। कुछ दिनों में 14-15 हजार लोगों का डेटा मैंने कलेक्ट कर लिया। सबको फोन करके अप्रोच करना शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने दिलचस्पी दिखाई। इसके बाद अगस्त के अंत में एएनएस फिनसर्व नाम से एक कंपनी बनाई, जिसमें हम लोन और इंश्योरेंस देने का काम करते हैं।

संदीप कहते हैं कि कंपनी सेटअप के बाद हम-अलग अलग कंपनियों और बैंकों के पास गए। उनसे बातचीत की, सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर किए, वॉट्सऐप ग्रुप का सहारा लिया। शुरुआत में ही हमें अच्छा रिस्पॉन्स मिला। अब तक हमने दो हजार लोगों तक अप्रोच किया है, 20 लोग हमारे कस्टमर बने हैं, 200 से ज्यादा लोगों से फाइनल दौर में बातचीत चल रही है।

संदीप बताते हैं कि बजाज फिनसर्व, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक सहित एक दर्जन से ज्यादा कंपनियों से हमारा टाइअप हो गया है। कई कंपनियों से अंतिम दौर में बातचीत चल रही है, जल्द ही उनसे भी टाइअप कर लिया जाएगा। बीते एक महीना में हमें काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला है, लोग बीमा के लिए दिलचस्पी दिखा रहे हैं, खासकर के हेल्थ सेक्टर में जहां कोरोना के चलते लोग थोड़ा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उनकी कंपनी हर तरह के लोन, हेल्थ इंश्योरेंस, गाड़ियों के लिए इंश्योरेंस जैसे काम कर रही है।

संदीप अपनी पत्नी और बच्ची के साथ। उनकी पत्नी एक निजी कंपनी में जॉब करती हैं।

संदीप के साथ अभी 8 लोग काम करते हैं। वे कहते हैं कि अगले साल हमारा टारगेट 200 से अधिक लोगों की टीम तैयार करने का है। चूंकि अभी एक महीना ही हुआ है हमारे काम को और इतना बेहतर रिस्पॉन्स मिला है तो अगले साल तक हम 7-8 करोड़ रु टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं। अभी कोरोना के चलते कई लोगों की नौकरियां गईं हैं, लोगों के सामने आर्थिक संकट है, इसलिए अभी लोन या इंश्योरेंस पर खर्च करने वालों की संख्या कम है। लेकिन, जैसे ही सबकुछ ठीक होगा, हमारी रफ्तार और तेजी से बढ़ेगी।

वो बताते हैं कि इस फिल्ड में बेहतर काम करने के लिए तीन चीजों का होना जरूरी है। कम्युनिकेशन स्किल्स, मैथेमेटिकल स्किल्स और ट्रस्ट। अगर आप किसी से बेहतर संवाद कर सकते हैं, अपनी बातचीत से उसका भरोसा जीत सकते हैं और मार्केट के उतार चढ़ाव की आपको समझ है तो आप इस सेक्टर में सफल हो सकते हैं। इसके साथ ही मार्केट रिसर्च और अलग- अलग सेक्टर्स के लोगों से कॉन्टैक्ट होना भी जरूरी है।

ये पॉजिटिव खबरें भी आप पढ़ सकते हैं...

1. तीन साल पहले कपड़ों का ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया, कोरोना आया तो लॉन्च की पीपीई किट, 5 करोड़ रु पहुंचा टर्नओवर

2. मेरठ की गीता ने दिल्ली में 50 हजार रु से शुरू किया बिजनेस, 6 साल में 7 करोड़ रु टर्नओवर, पिछले महीने यूरोप में भी एक ऑफिस खोला

3. पुणे की मेघा सलाद बेचकर हर महीने कमाने लगीं एक लाख रुपए, 3 हजार रुपए से काम शुरू किया था

4. इंजीनियरिंग के बाद सरपंच बनी इस बेटी ने बदल दी गांव की तस्वीर, गलियों में सीसीटीवी और सोलर लाइट्स लगवाए, यहां के बच्चे अब संस्कृत बोलते हैं



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दिल्ली के रहने वाले संदीप सिन्हा ने इंजीनियरिंग के बाद एमबीए किया। करीब नौ साल तक अलग-अलग कंपनियों में काम भी किया। अब खुद का बिजनेस चला रहे हैं।


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कहां गुजरता है आपका दिन? पांच में से चार महिलाओं के रोज 5 घंटे तो घरेलू कामों में ही चले जाते हैं; महिलाओं से ज्यादा सोशल हैं पुरुष

भारत सरकार ने पहली बार टाइम यूज सर्वे (टीयूएस) कराया है। इसमें यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि हमारे देश में लोगों के 24 घंटे कैसे बीतते हैं। कितना समय ऐसे कामों में जाता है, जिसका कोई भुगतान नहीं मिलता। वहीं कितना समय सोशलाइजिंग एक्टिविटी में जाता है। मुख्य उद्देश्य था, महिलाओं और पुरुषों की पेड और अनपेड एक्टिविटी में भागीदारी।

इस सर्वे का नतीजा यह निकलकर आया कि ज्यादातर पेड वर्क पुरुष करते हैं और महिलाओं का ज्यादातर वक्त ऐसे कामों में चला जाता है, जिसका उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता। 81.2% महिलाएं रोज ही तकरीबन 5 घंटे बिना भुगतान वाले घरेलू कामों में लगी रहती हैं। जबकि पुरुषों की भागीदारी सिर्फ 26.1% और वह भी औसत एक घंटा 37 मिनट। आइए जानते हैं इस सर्वे और इसके नतीजों के बारे में...

टाइम यूज सर्वे आखिर होता क्या है?

  • टाइम यूज सर्वे एक तरह से लोगों का टाइम ऑडिट है। इससे पता चलता है कि बच्चों की देखभाल, घरेलू कामों, परिवार के सदस्यों की सेवाओं में महिलाओं का कितना समय जाता है। जाहिर है, सारे काम घर और परिवार से जुड़े हैं तो उनका भुगतान भी नहीं होता।
  • यह बताता है कि सीखने, सोशलाइजिंग, मनोरंजन गतिविधियों, खुद की देखभाल के लिए पुरुष और महिलाएं कितना समय दे रही हैं। इन सर्वे के नतीजे गरीबी, जेंडर इक्विलिटी और ह्यूमन डेवलपमेंट पर पॉलिसी बनाने में मदद करते हैं।

भारत में क्या यह सर्वे पहली बार हुआ है?

  • पिछले तीन दशक से कई विकसित देश टाइम यूज सर्वे कर रहे हैं। अमेरिका 2003 से हर साल यह सर्वे कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया में 1992 में पहली बार फुल-स्केल सर्वे कराया गया था। कनाडा भी 1961 से इसी तरह के सर्वे करा रहा है। इसके अलावा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इजराइल ने भी ऐसे ही सर्वे कराए हैं।
  • एनएसएस रिपोर्ट- टाइम यूज इन इंडिया 2019 इसी हफ्ते 29 सितंबर को जारी हुई। इसमें जनवरी से दिसंबर 2019 के बीच देशभर के 1.39 लाख परिवारों में सैम्पल सर्वे कराया गया। इसमें 6 साल से ज्यादा उम्र के करीब 4.47 लाख लोगों का टाइम यूज जानने की कोशिश की गई है।

इस रिपोर्ट के प्रमुख नतीजे क्या हैं?
2,140 पेज की इस रिपोर्ट में भारतीयों की दिनभर की अलग-अलग गतिविधियों में भागीदारी का डेटा मिलता है। यह भी पता चलता है कि वह औसत कितना समय इन एक्टिविटी को देते हैं। इसमें कई तरह की रोचक जानकारी भी सामने आई है। गांवों और शहरों में महिलाओं और पुरुषों के सोने, पढ़ने, सोशलाइजिंग करने का वक्त भी पता चला है।

महिलाओं का ज्यादातर वक्त ऐसे काम में जाता है, जिसका उन्हें भुगतान नहीं मिलता। वहीं, पुरुषों की भागीदारी की दर भुगतान वाले रोजगार यानी नौकरी, खेती, मछली पालन, माइनिंग आदि में 57.3% है। वहीं, ऐसे कामों में महिलाओं की भागीदारी दर सिर्फ 18.4% है।

भुगतान वाले कामों पर पुरुषों के 7 घंटे 39 मिनट जाते हैं जबकि महिलाओं के सिर्फ 5 घंटे 33 मिनट। जब बात घर के बिना भुगतान वाले कामों की आती है तो महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाती है।
वैसे, रोचक तथ्य यह सामने आया कि जब बुजुर्गों की देखभाल की बात आती है तो शहर हो या गांव महिलाओं से ज्यादा वक्त पुरुष दे रहे हैं।

बड़ी संख्या में भारतीय सोशलाइज रहते हैं और अपना वक्त सुविधाओं के बीच बिताते हैं। हालांकि, बहुत कम भारतीय ही वॉलेंटियर जैसे अनपेड कामों में भाग लेते हैं। आम धारणा है कि महिलाएं ज्यादा सोशल होती हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि गांवों में हालात उलट है। पुरुष वहां सोशलाइजिंग के लिए महिलाओं से भी ज्यादा वक्त देते हैं। हालांकि, शहरों में महिलाओं और पुरुषों का सोशलाइजिंग के लिए दिया जाने वाला समय बराबर है।

एक रोचक तथ्य यह भी सामने आया कि बच्चों की देखभाल में महिलाओं का वक्त ज्यादा जाता है, लेकिन जब घर के बड़े-बुजुर्गों की सेवा की बात आती है तो उसमें पुरुषों की भागीदारी ज्यादा होती है। फिर चाहे वह शहर हो या गांव। यहां तो यह भी देखने में आया कि गांव में शहरों से ज्यादा वक्त बुजुर्गों की देखभाल में दिया जा रहा है।

रोजगार हो या कोई और काम, जब बात घर से बाहर जाकर काम करने की आती है तो उसमें जिम्मेदारी पुरुषों पर ज्यादा आती है। पुरुषों का करीब एक घंटा परिवहन में लग जाता है। वहीं, महिलाओं के रोज औसतन 22 से 24 मिनट परिवहन में जाते हैं।



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How Indians Spend Their Time: What Gender Gets More Sleep? All You Need To Know In Simple Words


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