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Wednesday, December 9, 2020

अब एजुकेशन सिर्फ स्कूल-कॉलेज के भरोसे नहीं, ऐसा होगा भारत में शिक्षा का भविष्य

साल 2020 का मार्च का महीना था। कोविड-19 ने भारत में तेज रफ्तार से पैर पसारने शुरू कर दिए थे। लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही देशभर के करीब 13 लाख स्कूल, 52 हजार हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट और हजारों कोचिंग सेंटर्स के दरवाजे एक झटके में बंद हो गए। नतीजतन भारत के करीब 25 करोड़ स्कूली स्टूडेंट, 4 करोड़ कॉलेज स्टूडेंट और करीब 1.5 करोड़ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले स्टूडेंट घरों में कैद हो गए, लेकिन सीखने-सिखाने का सिलसिला तो नहीं रुकना चाहिए।

यहीं पर धमाकेदार एंट्री मारी 'एडटेक' यानी एजुकेशन टेक्नोलॉजी ने।

भारत के लिए एडटेक कोई नया शब्द नहीं है। एडटेक का मतलब है ऑनलाइन पढ़ाई यानी शिक्षा को डिजिटल माध्यमों जैसे मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप के जरिए दूर-दराज के इलाकों में घर बैठे स्टूडेंट तक पहुंचाना। पिछले कुछ सालों में ये सेक्टर लगातार चर्चा में है और बढ़ रहा है, लेकिन कोविड-19 की वजह से यह दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ने वाले सेक्टर में से एक बन गया। कोविड-19 के दौरान एडटेक इस्तेमाल करने वालों और इस सेक्टर में निवेश करने वालों की संख्या में पहले के मुकाबले काफी इजाफा देखने को मिला है।

यहां सवाल उठता है कि क्या एडटेक सेक्टर में बूम सिर्फ मौजूदा कोविड-19 से पैदा हुए हालात की वजह से है या इसमें आगे की संभावनाएं भी हैं? भारत में शिक्षा का भविष्य कैसा होगा और उसमें एडटेक की क्या भूमिका रहेगी? हम यहां इन्हीं सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे।

उदारीकरण ने एजुकेशन को संभाला और संवारा

शुरू से शुरू करते हैं। बात 1990 के दशक की है। भारत में उदारवादी अर्थव्यवस्था लागू होने से लोगों के जीवन स्तर में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे थे। एजुकेशन सेक्टर भी इससे अछूता नहीं रहा। महज 10 सालों में भारत में कॉलेज और उनमें आवेदन करने वालों की संख्या दोगुनी हो गई। इस दशक में करीब 30 करोड़ नए साक्षर जुड़े, जो पिछले 20 सालों से भी ज्यादा थे। उस दौरान आईटी सेक्टर तेजी से बढ़ रहा था। दिल्ली-मुंबई स्थित बड़े संस्थानों से पढ़े स्टूडेंट्स को देश-विदेश में अच्छी नौकरियां मिल रही थीं। भारत की आर्थिक रफ्तार के साथ शिक्षा के लिए लोगों की भूख भी बढ़ रही थी। इस सबके बावजूद 21 सदी की शुरुआत तक एडटेक का कहीं जिक्र नहीं था। साल 2005 तक भारत की महज 5% आबादी तक ही इंटरनेट की पहुंच थी।

भारत ने दुनिया को दिया एडटेक का कॉन्सेप्ट

साल 2005 की बात है। बेंगलुरु के आईटी एक्सपर्ट के गणेश के दिमाग में एक आइडिया आया। उस वक्त अमेरिका में लोकल ट्यूशन की फीस करीब 40 डॉलर प्रति घंटा होती थी, जिसे बहुत सारे स्टूडेंट अफोर्ड नहीं सकते थे। गणेश एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना चाहते थे, जिससे ये फीस कम हो सके। यहीं से ट्यूटर विस्टा (TutorVista) का जन्म हुआ। उन्होंने 100 डॉलर सालाना की फीस पर अनलिमिटेड विषयों के ट्यूशन का ऑफर दिया। उनका आइडिया चल निकला और एक वक्त ऐसा भी आया, जब उनके प्लेटफॉर्म पर 60 लाख लोग आने लगे। इस तरह से गणेश ने एडटेक सेक्टर के बीज डाल दिए। इसी तरह 2005 में ही एक और टेक्निकल एजुकेशन बेस्ड कंपनी एडुकॉम्प (EduComp) भी शुरू की गई।

बायजू की शुरुआत से एडटेक सेक्टर को मिली दिशा

2009-10 का दौर आया। भारत में एमबीए का चलन तेजी से बढ़ रहा था। उस दौरान दक्षिण भारत के एक कस्बे में रविंद्रन बायजू नाम के एक इंजीनियर लड़के ने अपने कुछ दोस्तों को एमबीए एग्जाम की तैयारी में मदद करने की सोची। रविंद्रन के ट्यूशन का तरीका इतना अच्छा था कि धीरे-धीरे उसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। रविंद्रन बायजू कई शहरों में कोचिंग देने लगा, लेकिन हर जगह एक साथ मौजूद रहना संभव नहीं था। यहीं से रविंद्रन को एक आइडिया आया और उसने CAT के लिए ऑनलाइन वीडियो बेस्ड लर्निंग प्रोग्राम तैयार किया। इसके बाद साल 2015 में उसने अपना फ्लैगशिप प्रोडक्ट Byju’s – द लर्निंग एप लॉन्च किया। यह रविंद्रन बायजू के करियर और भारत में एडटेक इंडस्ट्री के भविष्य के लिए गेम चेंजर साबित हुआ। आज बायजू एडटेक सेक्टर में दुनिया का सबसे बड़ा यूनिकॉर्न है।

डिजिटल इंडिया मुहिम और रिलायंस जियो के सस्ते इंटरनेट की सौगात मिली तो एडटेक इंडस्ट्री को पंख लग गए। महज 5-6 साल के छोटे वक्त में ही भारतीय एडटेक सेक्टर ने तमाम ग्लोबल स्टैंडर्ड हासिल कर लिए हैं। चाहे बात फंडिंग की हो, स्टार्ट-अप्स की हो या फिर शहरों की, भारत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले एडटेक के क्षेत्र में आगे खड़ा है।

कोविड-19 के दौरान एडटेक ने बदला गियर

कोविड-19 की वजह से जब कई सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुए, उस वक्त एडटेक सेक्टर ने छलांग मारी। महज 6-8 महीने के कम वक्त में भी एडटेक भारत का सबसे पसंदीदा सेक्टर बन गया। ये दावा करने के पीछे कई पुख्ता वजहें हैं...

कोविड-19 से पहले 2022 तक एडटेक सेक्टर का अनुमानित बाजार 2.8 बिलियन डॉलर था, लेकिन कोविड-19 की वजह से मिले बूम के बाद अब 2022 का अनुमानित बाजार 3.5 बिलियन डॉलर हो गया है।

2019 की पहली छमाही में एडटेक सेक्टर की फंडिंग 158 मिलियन डॉलर थी, जो 2020 की पहली छमाही में पांच गुना बढ़कर 714 मिलियन डॉलर हो गई।

मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए किसी सेक्टर में पांच गुना बढ़ोतरी बहुत ज्यादा है। इसका सीधा मतलब है कि निवेशक एडटेक क्षेत्र में लंबे समय तक बड़ी पारी खेलना चाहते हैं।

कोविड-19 के दौरान एडटेक फर्क के ट्रैफिक में बढ़ोतरी

Udemy.com 9%
Coursera.org 7%
Doubnut.com 3%
Byjus.com 3%
  • बार्क इंडिया नील्सन की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान एडटेक फर्म पर औसत समय बिताने में 30% की बढ़ोतरी देखने को मिली।
  • कोविड-19 के दौरान एडटेक ऐप्स डाउनलोड करने के मामले में 88% का इजाफा रिकॉर्ड किया गया।
  • कोविड-19 के दौरान एडटेक फर्म के सब्सक्राइबर बेस में भी उछाल आया। एक शोध के मुताबिक, के-12 सेगमेंट का सब्सक्राइबर बेस 45 मिलियन से बढ़कर 90 मिलियन हो गया। इसके अलावा 83 प्रतिशत उछाल पेड यूजर बेस में आया है।

एडटेक फर्म कोर्सेरा के भारत में मैनेजिंग डायरेक्टर राघव गुप्ता का कहना है कि लॉकडाउन के 6 महीने में हमने ग्लोबल स्तर पर 650% की ग्रोथ और भारत में 1400% से ज्यादा की ग्रोथ रिकॉर्ड की है। जनवरी में कोर्सेरा के भारत में 50 लाख यूजर थे, जो अगस्त तक 80 लाख हो गए।

एडटेक फर्म ग्लोबल शाला की संस्थापक और सीईओ अनुशिका जैन का कहना है कि कोविड ने इस मॉडल को खूब बढ़ावा दिया है। अब हर व्यक्ति जानता है कि आभासी पढ़ाई कैसे होती है। हालांकि, अभी भी बहुत सारे संस्थान एक रात में ऑनलाइन नहीं हो सकते, हम इस गैप को भरने के लिए तैयार हैं।

सरकार कैसे कर रही एडटेक इंडस्ट्री को मदद

साल 2009 में भारत सरकार ने बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून पारित किया। इस कानून का मकसद था कि 6-14 साल के 100% बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिले। 10 सालों में यह कानून काफी प्रभावी रहा है और अब देश में प्राइमरी शिक्षा सभी के लिए उपलब्ध है। अब सरकार के सामने अगली बड़ी चुनौती प्राइमरी के बाद पढ़ाई छोड़ने वालों को लेकर है। इस दिशा में किए जा रहे सरकार के प्रयासों से एडटेक सेक्टर को भी मदद मिल रही है।

सरकार ने 2020-21 के बजट में डिपार्टमेंट ऑफ स्कूल एजुकेशन और लिटरेसी को 8.56 बिलियन डॉलर आवंटित किए हैं और इस साल ग्रास इनरोलमेंट रेशियो (GER) का टारगेट 30% रखा है।

सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में 100% FDI का रास्ता भी साफ कर दिया। जुलाई 2020 में गूगल ने CBSE के साथ मिलकर 22 हजार शिक्षकों को ट्रेनिंग देने का ऐलान किया था। इंटीग्रेटेड लर्निंग एक्सपीरियंस की वजह से आने वाले दिनों में वर्चुअल क्लासरूम का ज्यादा इंगेजिंग हो सकेंगे।

शिक्षा के सुधार में एक बड़ा बदलाव 2018 में हुआ जब टर्शियरी एजुकेशन सिस्टम ने UGC के नियमों के तहत ऑनलाइन डिग्री सर्टिफिकेट की शुरुआत की। ओपन ऑनलाइन कोर्स के लिए सरकार ने SWAYAM नाम का प्लेटफॉर्म लॉन्च किया।

मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOOC) के जरिए 82 अंडरग्रेजुएट, और 42 पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स जुलाई 2020 में जोड़े गए हैं। अब 400 से ज्यादा ऑनलाइन कोर्स मुफ्त में ऑफर किए जा रहे हैं, इनमें आईआईटी जैसे संस्थान भी शामिल हैं। मई 2020 में कॉलेज एंट्रेस टेस्ट की तैयारी के लिए नेशनल टेस्ट अभ्यास नाम का ऐप डाउनलोड किया गया। इसके अलावा दीक्षा और आईआईटी पीएएल जैसे कदम भी उठाए गए। ये सभी इनीशिएटिव प्रधानमंत्री ई-विद्या अभियान के तहत उठाए गए हैं।

इसके अलावा नई शिक्षा नीति 2020 के कई नियम भी एडटेक सेक्टर को बढ़ावा देने वाले साबित हो सकते हैं।

अपग्रैड के को-फाउंडर रॉनी स्क्रूवाला का कहना है कि कंपनी सरकार की नई नीति को ध्यान में रखते हुए व्यापार तीन गुना बढ़ाएगी। यह बड़ा अवसर है। यह विश्वविद्यालयों, छात्रों और नियोक्ताओं की मानसिकता को भी बदलेगा और ऑनलाइन शिक्षा को वैलेडिटी भी देगा। यह एक इंडस्ट्री के लिए बड़ी सफलता है।

भारत और दक्षिण एशिया में गूगल की एजुकेशन हेड बानी धवन का कहना है कि NEP ने पहले ही भारत के लिए ऐसा आधार बना दिया है, जिससे जापान, इंडोनेशिया और सिंगापुर का मॉडल अपनाया जा सके। धवन का कहना है कि कोविड महामारी के दौरान भारत सरकार ने भी कई स्तर पर बैठक और बातचीत की है, जिससे इंटरनेट कनेक्टिविटी और शिक्षकों की स्किल को सुधारने पर काम किया जा सके। कंप्यूटेशनल थिंकिंग और कोडिंग का बढ़ता चलन नए लर्निंग प्लेटफॉर्म की मांग पैदा कर रहे हैं।

एडटेक सेक्टर के सामने चुनौतियां

  • भारत में शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची का विषय है यानी शिक्षा के बारे में केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। इसके अलावा सीबीएसई, आईसीएसई और राज्यों के अलग-अलग बोर्ड के नियम-कानून भी हैं। कानून एक जैसे न होने की वजह से एडटेक सेक्टर को इससे जूझना पड़ता है। कई बार ये नियम-कानून रुकावट भी बन सकते हैं।
  • एडटेक से जुड़ी बातों को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन्स का अभाव है। मसलन- डेटा प्राइवेसी, ऑनलाइन सर्टिफिकेट की मान्यता, एफडीआई वगैरह। इन अनिश्चितताओं की वजह से निवेशक भी पूरे मन से निवेश करने में घबराते हैं।
  • छोटे शहर, कस्बे और ग्रामीण इलाके, जहां भारत की अधिकांश आबादी रहती है। वहां इंटरनेट कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या है। अभी उस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है। ये सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, क्योंकि आप ई-लर्निंग ऑफलाइन नहीं कर सकते।

कोविड-19 के पार एडटेक का संसार

अब आते हैं इस सवाल पर कि क्या कोविड-19 के बाद भी एडटेक सेक्टर इसी गति से आगे बढ़ेगा? इसके दो जवाब हो सकते हैं। पहला- अगर कोविड-19 की वैक्सीन आने में देरी होती है या वैक्सीन उतनी प्रभावी नहीं होती तो बच्चों को समुचित रूप से स्कूल भेजना मुश्किल होगा। इस स्थिति में एडटेक ही एक सहारा होगा, क्योंकि यह सुलभ, जरूरत के अनुरूप और सस्ता माध्यम है।

दूसरा- क्या हम उस स्तर की टेक्नोलॉजी तक पहुंच गए हैं कि स्कूल और कॉलेज की जगह एडटेक फर्म ले सकें? शायद नहीं। अभी भी भारत के अधिकांश घरों में समुचित इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल गैजेट्स मौजूद नहीं हैं। इसके अलावा बच्चों के टोटल विकास के लिए भी स्कूल और क्लासरूम जरूरी हैं।

आखिर में यही कहा जा सकता है कि एडटेक इंडस्ट्री भारत में निश्चित रूप से कोविड-19 के बाद भी विकास करेंगी, लेकिन ये स्कूल-कॉलेज का विकल्प बन पाएंगी या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा।



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