नई दिल्ली. Section 377: भारत में समलैंगिकता से जुड़ी धारा 377 को खत्म करने के मुद्दे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में बहस हुई। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि धारा 377 गैरकानूनी है और यह दो वयस्कों के बीच सहमति से संबध बनाने से रोकती है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी पेश हुए। उन्होंने कहा- इस धारा से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है क्योंकि समलैंगिकता का मसला सिर्फ यौन संबंधों के प्रति झुकाव का है। इसका लिंग (जेंडर) से कोई लेना-देना नहीं है। Updates - रोहतगी ने कहा- समलैंगिकता का मसला सिर्फ यौन संबंधों के प्रति झुकाव का है। जब समाज बदल रहा है तो मूल्य भी बदल रहे हैं। यानी जो 160 साल पहले नैतिकता थी, उसके आज कोई मायने नहीं हैं। - सरकार की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- वास्तव में धारा 377 कानूनी मसला है और हम इस पर चर्चा कर रहे हैं। - याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए एक और वकील अरविंद दातार ने कहा- अगर सेक्स को लेकर किसी का नजरिया अलग है तो इसे अपराध की तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। इसे प्रकृति के खिलाफ भी नहीं समझा जाना...
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Tuesday, July 10, 2018
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» Section 377: याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा- मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है धारा 377
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