शिखा धारीवाल मुंबई में रहती हैं। उन्होंने 26 नवंबर को सोशल मीडिया पर शिकायती पोस्ट की। लिखा कि वोडाफोन ने बिन बताए उनके पोस्टपेड नंबर का प्लान बदल दिया। फिर 699 के प्लान में उन्हें 2000 रुपए का बिल भेजा गया। उन्होंने एक दिन बाद दो और पोस्ट किए। उन्होंने लिखा कि 24 घंटे बाद भी वोडाफोन की ओर से कोई जवाब नहीं आया, जबकि रिलायंस जियो की कॉल आ गई। उनका प्लान भी बेहतर है। इसी बात की चर्चा अगस्त में ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच ने भी की थी। उसकी मानें तो आने वाले महीनों में वोडाफोन के एक करोड़ से ज्यादा यूजर उसे छोड़कर जियो या एयरटेल में चले जाएंगे।
टेलीकॉम इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (TEMA) के चेयरमैन प्रो. एनके गोयल दिल्ली के पॉश इलाके साकेत में रहते हैं। भास्कर से बातचीत में उन्होंने कहा, '5 मिनट रुकिए; घर से बाहर आकर बात करता हूं। घर में मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता, इसलिए आधा वक्त घर के बाहर ही रहना होता है। BSNL होता तो मैं प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख देता। पर प्राइवेट कंपनियों के कस्टमर केयर पर सुनवाई कहां होती है। दो-तीन कंपनियां ही हैं, और कंपनियां होती तो शायद ये न होता।''
शिखा धारीवाल और प्रो. एनके गोयल की केस स्टडी से तीन निष्कर्ष सामने आते हैं।
- वोडाफोन-आइडिया के कस्टमर कम हो रहे हैं। बीते दो साल में वोडाफोन-आइडिया के 41.8 करोड़ कस्टमर खिसक गए और अब उसके पास 28 करोड़ ही बचे हैं।
- इन्हीं दो साल में रिलायंस जियो के कस्टमर 28 करोड़ से बढ़कर 40 करोड़ हुए।
- टेलीकॉम इंडस्ट्री में मोनोपॉली बन रही है। सिम देने वाली 3 ही कंपनियां बची हैं। BSNL मैदान से बाहर होने की कगार पर है। कस्टमर भी खराब सर्विस पर कुछ कर नहीं पा रहे। एक कंपनी टैरिफ बढ़ाती है तो दूसरी भी देखादेखी बढ़ा देती है। ग्राहक को मजबूरन इन्हीं तीन में चुनना है।
ये स्थिति कैसे बनी?
आइए जानते हैं कि एयरसेल, एस्सेल, वर्जिन मोबाइल जैसी 100 से ज्यादा कंपनियां क्यों बंद हुईं? सरकार की अपनी कंपनी BSNL कैसे बर्बाद होने के कगार पर पहुंच गई? महज चार साल पुरानी रिलायंस जियो कैसे नंबर वन बन गई? 20 साल पुरानी एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया कैसे मुंह ताकती रह गईं?
BSNL: भाई साहब नहीं लगेगा से भाई साहब अब नहीं बचेगा तक
2017 में BSNL ने 4जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में हिस्सा ही नहीं लिया। BSNL को प्राइवेट कंपनियों की ओर से लगाई बोली ज्यादा लग रही थीं। सरकार भी अड़ी रही कि BSNL को प्राइवेट कंपनियों के बराबर कीमत चुकाने पर ही स्पेक्ट्रम मिलेगा। जब BSNL को 4जी मिला तब तक चिड़िया खेत चुग चुकी थी।
BSNL के एक अधिकारी का कहना है कि कंपनी को सरकारी नीतियों ने ही मार दिया। BSNL के पास एडवांटेज था। फिर भी हम नुकसान की ओर बढ़ते चले गए। नई तकनीक न होने से कस्टमर को प्राइवेट कंपनियों जैसी सुविधा ही नहीं दे पाई। दरअसल, BSNL के पास अब भी 1.5 लाख कर्मचारी हैं। कंपनी की कमाई का करीब 55-60% हिस्सा सैलेरी देने में ही खर्च हो रहा है।
कंपनी तो अपनी असेट्स का लाभ भी नहीं उठा पा रही। BSNL की देशभर में अरबों की जमीनें हैं। इसे बेचकर पैसा जुटाने का प्लान बनाया तो वह विनिवेश विभाग की अलमारियों में जाकर ठहर गया। उस प्रस्ताव पर विचार करने तक की फुर्सत नहीं है किसी के पास। नियम ही ऐसे हैं कि BSNL अपनी जमीन को किराए पर भी नहीं दे सकता। दूरसंचार राज्य मंत्री संजय धोत्रे ने राज्यसभा में बताया था कि दिसंबर-2019 तक BSNL 39,089 करोड़ के घाटे तक पहुंच गई थी।
वोडाफोन के काम न आया 4G आइडिया, AGR के बोझ से टेढ़ी हो गई गर्दन
अगस्त-2018 में आइडिया और वोडाफोन साथ आ गए। दो साल पहले मार्केट में आया जियो इनसे आगे निकलने लगा था। चुनौती कस्टमर बचाए रखने की थी। वोडाफोन ने 4जी स्पेक्ट्रम नहीं लिए थे। आइडिया के 4जी के साथ आने पर 40 करोड़ कस्टमर के साथ नंबर वन तो बने, लेकिन दो साल में ही करीब 28 करोड़ रह गए।
वोडाफोन की शिवांजलि सिंह कहती हैं कि टेलीकॉम सेक्टर में इस वक्त महज उनकी कंपनी घाटे में नहीं है। एयरटेल हो या BSNL, एजीआर चुका रही सभी कंपनियां घाटे में हैं। हम अपनी नेटवर्क क्षमता बढ़ा रहे हैं। लॉकडाउन में हमें पॉजिटिव रिजल्ट मिले हैं।
AGR यानी एडजस्टेड ग्रास रेवेन्यू। ये पुराना मामला है। 2005 से ही इस पर विवाद था। अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ चुका है। फैसला सरकार के पक्ष में है। अब टेलीकॉम कंपनियों को करीब 1.5 लाख करोड़ रुपए सरकार को चुकाने हैं। टेलीकॉम कंपनियां सरकार को मोबाइल सेवा से आने वाले पैसे में हिस्सा देना चाहती थीं। लेकिन सरकार का कहना था कि टेलीकॉम कुछ बेचकर या संपत्ति पर किसी तरह से ब्याज कमा रही हैं तो उनमें भी सरकार का हिस्सा होना चाहिए। अंत में सरकार जीत गई।
सितंबर-2020 क्वॉर्टर के नतीजों के मुताबिक, वोडाफोन 7,218 रुपये के घाटे में है। उसे AGR के करीब 50,000 करोड़ रुपए 2031 तक सरकार के पास जमा करने हैं। AGR वाले मामले में शुरुआत में दबाव बनाने पर वोडाफोन के सीईओ मार्क रीड ने इंडिया में कारोबार बंद करने की बात भी कह दी थी। अब अगली तिमाही यानी जनवरी से वोडाफोन अपने टैरिफ बढ़ाने की तैयारी में है।
4G वाली लड़की ने एयरटेल को बचाने की बहुत कोशिश की
एयरटेल इंडिया व साउथ एशिया के एमडी और सीईओ गोपाल विट्टल कहते हैं, ''हमें मुनाफे में आने के लिए करीब 300 रुपए के आरपू पर आना होगा। अभी हम टैरिफ बढ़ाकर 162 रुपए आरपू पर तो आ गए हैं, लेकिन ये नाकाफी है। पानी से सिर बाहर रखने के लिए भी हमें 200 के आरपू पर जाना होगा।''
आरपू अंग्रेजी के ARPU से बना है। इसका मतलब है एवरेज रेवेन्यू पर यूजर यानी कंपनी को एक कस्टमर से होने वाली कमाई। इसे हर तीन महीने के हिसाब से जोड़ते हैं। सबसे ज्यादा आरपू वाले एयरटेल ने भी सितंबर 2020 को जारी की गई अपनी रिपोर्ट में 763 करोड़ रुपए का घाटा दिखाया था। इसके पीछे बीते दो सालों में करीब 3 करोड़ कस्टमर कम होना और AGR में करीब 43 हजार करोड़ की देनदारी भी है।
वैसे, एयरटेल की हालत खस्ता होने के पीछे एक वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि एयरटेल ने भारतीय कस्टमर्स को हल्के में लिया। जब जियो 4जी स्पेक्ट्रम के लिए कोशिश कर रहा था, तब एयरटेल ने कुछ नहीं किया। एयरटेल भारत में 25 साल से टेलीकॉम सेक्टर में लीडर के तौर पर था। वह अपनी 2जी, 3जी सर्विसेस को सुधारने में लगा रहा। एयरटेल ने 4जी पर काम बहुत देरी से शुरू किया। एयरटेल के लिए 4जी वाली लड़की का कैंपेन भी बहुत तेजी से वायरल हुआ, बीती तिमाही में एयरटेल की हालत थोड़ी सुधरी है। इसके पीछे उनकी 4जी नेटवर्क को लेकर जबर्दस्त मेहनत बताई जा रही है।
जियो की कमाई के फॉर्मूले पर किताब लिखनी पड़ेगी
मोबाइल सेवा को लेकर सबसे विश्वसनीय जानकारियां देने वाली सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) के डायरेक्टर जनरल लेफ्टि. जन. डॉ. एसपी कोचर जियो के फायदे में होने के कई कारण गिनाते हैं। उनका कहना है कि पहला है आरपू। मान लीजिए कि आप एक बस में बैठकर दिल्ली से भोपाल आ रहे हैं। बस में आपने 10 ही सवारियां बिठाई हैं, तब भी आपकी लागत उतनी ही आएगी जितनी 40 सवारियों के साथ। आरपू यही है। तकनीक एक ही है। जियो अपने नेटवर्क के लिए माइक्रोबेस ऑप्टिकल फाइबर का इस्तेमाल करता है। यह कस्टमर्स को कई सेवाएं एक साथ दे सकती है। कस्टमर बढ़ने से खर्च बढ़ता नहीं। उतना ही रहता। जितने ज्यादा कस्टमर, उतना ज्यादा लाभ। जियो पर AGR नहीं है। लोन भी नए रेट पर मिले। पहले लोन ज्यादा महंगा था। ट्राई ने पिछले साल इंटरेक्शन यूजेस चार्ज यानी IUC को 14 पैसे से घटाकर 6 पैसे प्रति मिनट कर दिया था। इससे भी जियो को फायदा हुआ।
सरकार से जियो को फायदा मिला है, कितनी सच है ये बातें
5 सितंबर 2016 रिलायंस जियो मार्केट में आया। वह साढ़े तीन लाख करोड़ खर्च कर हाई-स्पीड 4जी नेटवर्क लेकर आया। कस्टमर को सर्विसेस फ्री देने का वादा किया। वरिष्ठ पत्रकार एमके वेणु कहते हैं कि यह जियो की कस्टमर बटोरने की पॉलिसी थी, जिसमें उसे सरकार का साथ मिला। आमतौर पर किसी भी कंपनी को कुछ नया टेस्ट करने के लिए तीन महीने की मोहलत दी जाती है, लेकिन जियो करीब एक साल तक फ्री सेवा को टेस्ट करता रहा। इसे रेगुलेटरी हॉलीडे कहा जाता है। रिलायंस पहले टेलीकॉम सेक्टर में काम चुका था और फेल होकर लौटा था। नियमों के मुताबिक उसे इतनी बड़ी छूट नहीं मिलनी चाहिए थी। जब जियो ने मार्केट में सबसे ऊपर अपनी जगह बना ली है तो दूसरी कंपनियों की तरह वह भी रेवेन्यू बढ़ा रहा है। आने वाले दिनों में और पैसे बढ़ने वाले हैं।
वे कहते हैं कि जियो अब बड़े प्लान की ओर है। कोई कंपनी उसकी टक्कर में है ही नहीं। जियो एंटरटेनमेंट, मीडिया से लेकर मॉल तक उतर रहा है। वो खुद को एक ऐसा डिजिटल मार्केट बनाने में लगा है, जहां एक ही सिम कस्टमर को सोकर उठने से दोबारा सोने तक में इस्तेमाल होने वाली सभी चीजें दे दे। 5जी के लिए भी जियो ने अभी से अपना पासा फेंक दिया है। नई तकनीक में वही पैसा डालेगा, जिसके पास होगा। इस वजह से जियो खुद को मुनाफे में ही दिखाता है। जियो ने सितंबर 2020 वाले क्वार्टर में 2,844 करोड़ का मुनाफा बताया है।
पूरे भारत को टेलीकॉम सेक्टर के लिहाज से 23 सर्किल में बांटा गया है। तब यह तय हुआ था कि हर सर्किल में कम से कम 3 कंपनियां होंगी। लेकिन, अब यह नियम प्रभावी नहीं है। कुछ सर्किल में एक-दो कंपनियां ही सक्रिय हैं। इसका नुकसान ग्राहकों को ही होगा। वरिष्ठ अर्थशास्त्री का मानना है कि बैंकों का अगला बड़ा NPA टेलीकॉम सेक्टर होने वाला है। बैंकों ने स्पेक्ट्रम की नीलामी में कंपनियों को भर-भर कर लोन दिया। अब कंपनियां घाटे में हैं। सरकार उन्हें उबारने के लिए कई बार ब्याज व अन्य राहत दे चुकी है। इससे बैंकों का नुकसान हो रहा है और आम आदमी की बचत पर असर पड़ रहा है। बैंक आम आदमी को मिलने वाले ब्याज को कम कर रहे हैं। फिक्स डिपॉजिट, ईपीएफ समेत बैंकों की आम आदमी को फायदा पहुंचाने वाली योजनाएं बंद करनी पड़ती हैं।
हालांकि इन सबके बीच इंस्टिट्यूट ऑफ कम्पीटिटिवनेस (IFC) की एक रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया कि जियो के फ्री और सस्ते प्लान की वजह से कस्टमर के सालाना करीब 6.5 लाख करोड़ रुपए बचे हैं। इससे GDP को फायदा हुआ है।
घोड़े पर बैठने से पहले ही रेस हार गए ये खिलाड़ी
एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल पर कॉल लगाने या मैसेज भेजने के लिए हवा में न दिखने वाली तरंगों का इस्तेमाल होता है। इन्हें स्पेक्ट्रम कहते हैं। स्पेक्ट्रम, हवा, पानी, कोयले की तरह प्राकृतिक संसाधन है। इस पर पहला मालिकाना हक सरकार का है। सरकार इसे प्राइवेट कंपनियों को देती है। पहले की सरकारें स्पेक्ट्रम पर बड़ी कीमत नहीं लेती थीं। बिजनेस में होने वाले मुनाफे पर हिस्सेदारी करती थीं। तब बहुत तेजी से कंपनियों ने टेलीकॉम सेक्टर में पैसा लगाया।
2G स्पेक्ट्रम घोटाले ने पूरी तस्वीर ही बदल दी। सरकार बदली और स्पेक्ट्रम खरीदने वाली पुरानी 130 कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए। ये कभी सिम बांटने का धंधा ही नहीं शुरू कर पाईं। 2जी स्पेक्ट्रम की भारी-भरकम कीमतों पर नीलामी हुई। तब एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया ने इतने ज्यादा पैसों की बोली लगाई कि छोटी कंपनियां हिम्मत ही नहीं जुटा पाईं। एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया ने पूरे मार्केट पर कब्जा कर लिया। यूनीनॉर, टाटा, डोकोमो, हच जैसी कंपनियों ने एयरटेल और वोडाफोन में अपना विलय कर लिया और एयरसेल जैसी कंपनियां दिवालिया हो गईं।
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